Wednesday 21 May 2014

कठिन डगर के राही 'नमो'





आजाद  भारत में जन्म लेने वाले  नरेन्द्र दामोदरदास मोदी  ऐसे शख़्स  हैं जो 2001  से लगातार 14  बरस  तक गुजरात के 14 वें मुख्यमन्त्री रहे और  संयोग देखिये वह देश  के 14 वे प्रधानमन्त्री होंगे जो  26 मई  2014  को  शपथ ग्रहण करेंगे। जनआकांक्षाओं की बड़ी लहर पर सवार होकर  नमो  के कदम दिल्ली के सिंहासन पर राजतिलक के लिए तेजी से बढ रहे हैं लेकिन उनके सामने विशालकाय चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है । भारतीय राजनीती में 2014 के लोक सभा चुनावो की बिसात कई मायनो में ऐतिहासिक है क्युकि कई दशक बीतने के बाद किसी राष्ट्रीय  पार्टी को अभूतपूर्व जनादेश और सफलता मिली है । नए दौर की इस  सफलता  में किसी का बड़ा योगदान है तो बेशक वह शख्स  मोदी ही हैं जिनके अथक प्रयासों से भारतीय जनता पार्टी ने वो चमत्कार कर दिखाया है जो पार्टी ने अटल आडवाणी के दौर में नहीं किया था । संकेतो तो डिकोड करें  तो भाजपा के लिए मोदी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं हैं क्युकि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत ही नहीं बढ़ा  बल्कि देश के युवा वोटरों की बड़ी जमात ने मोदी को वोट किया । भाजपा ने इस चुनाव में मोदी को तुरूप के इक्के के  रूप में  आगे कर वोट मांगे । 'अच्छे दिन  आने वाले हैं' से लेकर 'अबकी बार मोदी सरकार ' सरीखे नारो के केंद्र में मोदी ही रहे साथ ही उन्हें नापसंद करने वालो की एक बड़ी जमात बार  बार मोदी  को ही निशाने पर लेती रही लेकिन इसके बाद भी मोदी ने  अपने दम  पर भाजपा को बहुमत में लाकर अगर खड़ा करने किया है तो इसमें मोदी की मेहनत को नहीं नकारा जा सकता । 

                     प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मोदी के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा रहेगा ।  साथ ही लोगो की उम्मीदो पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती भी  होगी ।  अच्छे  दिन आने  वाले हैं के नारे को साकार करने के लिए उन्हें समाज के हर तबके को साथ लेने की जरुरत है । साथ ही वह अपने उन विरोधियो को भी अपने काम के बूते करारा जवाब दे सकते हैं जो बार बार गोधरा को लेकर उन्हें सांप्रदायिक करार देते रहते थे। अब ऐतिहासिक जीत के बाद अपने  बूते वह अपने विरोधियो को आइना दिखाकर एक नई राजनीतिक लकीर अपनी इस ऐतिहासिक  पारी में खींच सकते हैं   । इस आम चुनाव मे देश के कोने कोने में ताबड़ तोड़   जनसभाएं कर मोदी ने लोगो  को सुशासन  का जो सब्जबाग दिखाया है उसे उन्हें अब पूरा करना ही होगा साथ ही राम मंदिर , धा रा 370  , कामन सिविल कोड सरीखे मुद्दो के हल की  दिशा गंभीरता से सोचना होगा क्युकि  इन्ही  नारो  के आसरे  भाजपा ने कभी  केंद्र में राजनीतिक   वैतरणी  पार करने  की कसमें   खायी थी जिनसे बाद में वह यह कहकर मुकर गयी कि  पूर्ण बहुमत ना मिल पाने के   चलते यह सभी मुद्दे गठबंधन राजनीती में हाशिये पर चले गए । 

  यह दौर ऐसा है जब  अर्थव्यवस्था  बुरे दौर से गुजर रही है । नौजवान रोजगार की आस लगाये बैठे हैं । साथ ही महंगाई के डायन बनने के चलते आम आदमी की मुश्किलें हाल के कुछ बरस में बढ़ी हैं वहीँ आतंरिक और बाह्य सुरक्षा जैसे कई मुद्दे सामने खड़े हैं ।महंगाई दर 8. 59 के स्तर पर जा पहुंची है जो  लगातार लोगो का  जीना मुश्किल किये हुए है ।   यूपीए-2 के दौर में लगातार हुए घोटालो और गड़बड़झालो से  दुनिया में माहौल खराब हो गया है । निवेशकों का भरोसा बाजार से हट चुका है । ऐसे में उनके विश्वास और  भरोसे को जीतना नमो के लिए आसान नहीं होगा । वह इस बार हुए अपने चुनाव प्रचार के दौरान बार बार मनमोहन की नीतियों का मर्सिया मंच से पढते रहे  और पॉलिसी पैरालिसिस को लेकर  यू  पी ए सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं  । अब उनके सामने खुद बड़ी चुनौती खड़ी है क्युकि  वह नाव के मांझी हैं । उनके पक्ष में इस चुनाव में  अभूतपूर्व लहर खड़ी हुई। इस ऐतिहासिक जनादेश के प्राप्त होने के बाद उनसे लोगो की उम्मीदें  भी बढ़  गयी है । सपने बेचना आसान है । उसे हकीकत का चोला पहनाना उतना ही मुश्किल । मोदी को इसे समझना होगा । बीते दस बरस में देश में तकरीबन ढाई लाख से ज्यादा किसान हमारे देश में आत्महत्या कर चुके हैं । किसानो को लेकर इस देश में अब तक ऐसी कोई नीति नहीं बनी है जिससे कहा जा सके खेती को लाभ का सौदा बनाने की दिशा में गंभीरता से विचार हुआ है । मोदी को अब अपने इस कार्यकाल में किसानो के लिए नीतियां बनाने की जरुरत है ताकि उसको फसल का उचित दाम बाजार में मिल सके । मोदी को बड़े पैमाने पर इस चुनाव में युवाओ ने वोट दिया है । बेहतर होगा वह विभिन्न सेक्टर में रोजगार प्रदान करने के लिए कोई कारगर नीतियां इनके लिए बनाएंगे । वैसे भी यू पी ए 2  में युवाओ के लिए कोरी लफ्फाजी के सिवाय कुछ नहीं हुआ है । ऐसे में युवाओ की उम्मीदो पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती मोदी के सामने है । 

                     उद्योग जगत मोदी की तरफ आशा भरी नजर से देख रहा है । शायद यही वजह है पहली बार इस चुनाव में मोदी कॉरपरेट के डार्लिंग बनकर उभरे और इसी कॉरपरेट ने उनके लिए चुनावी बिसात बिछाने का काम किया । अब मोदी उनके साथ कैसा तालमेल बैठाते हैं यह देखने वाली बात होगी । वैसे मनमोहन के दौर में  आर्थिक सुधारो को नई हवा नरसिम्हा राव की  उस थियोरी  के आसरे देने की पहल शुरू हुई  जिसमे आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से लोन लेकर खुले बाज़ार तले बडा  खेल खेला गया जिससे पहली बार मध्यम वर्ग  मनमोहनी थाप पर नाचने को मजबूर हो गया जिसके चलते एक अलग चकाचौंध  दैनिक जीवन  मे देखने  को  मिले । खनन  से लेकर  टेलीकॉम को साधकर निजी कंपनियो के  खुले बाजार में ले जाने का जो नव उदारवाद   का खुला  खेल  नरसिंह राव की सरकार  के दौर में ही शुरु हुआ वही मनमोहन के दौर  में कारपोरेट घरानो के वारे न्यारे तक जा पहुंचा  जिसके केंद्र मे मुनाफ़ा कमाने  की जैसी होड  मची जिसने कमोवेश  हर चीज को खुले बाजार मे नीलाम कर दिया । अब मोदी इस कॉरपरेट के साथ किस नीति पर चलते हैं यह भी देखने लायक होगा । नरेंद्र मोदी के सामने संघ की नीतियों को लागू  करवाने का दबाव होगा क्युकि वह खुद  उन्होंने संघ की  नर्सरी से अपनी यात्रा शुरू की है । स्वदेशी मॉडल को लागू करना इतना आसान नहीं होगा क्युकि इस दौर में एफडीआई को लेकर खूब शोर शराबा मनमोहन के दौर में हुआ है । निवेशकों का भरोसा जीतना मोदी की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । नए रोजगार का सृजन तभी हो पायेगा जब बाजार कुलांचे मारेगा और विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में निवेश करेंगे । मोदी को इनके अनुकूल नीतियां बनानी  होंगी साथ ही कारपरेट माडल से इतर संघ  के स्वदेशी मॉडल पर भी चलना होगा । देखने वाली बात यह होगी आने वाले दिनों में मोदी किस धारा में बहते हैं? 

   मोदी ने इस चुनाव में विकास के नारो के साथ बड़े सपने लोगो के भीतर जगाये । अब उन सपनो को हकीकत का चोला पहनाने का समय शुरू हो गया है । लोगो को मोदी से बहुत आशाएं हैं । मोदी को गाँव  के अंतिम छोर  में खड़े व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुचाना होगा क्युकि 2014 के इस चुनाव की इबारत साफ़ कह रही है  लोगो ने जाति, धर्म से ऊपर उठकर विकास के लिए वोट किया है । अब मोदी के शपथ ग्रहण का सभी को इन्तजार है क्युकि उसके बाद ही नयी सरकार अपना काम शुरू करेगी और नीतियों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया  विधिवत रूप से शुरू होगी । 

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