Tuesday, 3 June 2014

अनाथ हुई महाराष्ट्र भाजपा.............



गोपीनाथ मुंडे ने महाराष्ट्र भाजपा को खड़ा करने में खासा महत्वपूर्ण योगदान दिया ।  महाराष्ट्र में भाजपा का सीधा  मतलब गोपीनाथ मुंडे रहा है ।  कई बरसो से भाजपा और गोपीनाथ मुंडे  महाराष्ट्र  में एक दूसरे के पर्याय बने हुए थे। 

 गोपीनाथ मुंडे के  गृह जिला बीड के बारे में मेरे अजीज मित्र रत्नाकर सिरसाट उत्तम  के यह विचार  महाराष्ट्र भाजपा  में गोपीनाथ मुंडे के करिश्मे और रुतबे को बखूबी बयां करते हैं । गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र राज्य में भारतीय जनता पार्टी का बड़ा  चेहरा थे ।  मुंडे की  महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की ओर से भीड़ जुटाने वाले नेता के तौर पर  पहचान  मानी  जाती थी  ।  महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को खड़ा करने वालों में  जिस चेहरे का नाम प्रमुखता  के साथ  लिया जाता है उसमे गोपीनाथ मुंडे सबसे आगे थे  ।  कद्दावर ओबीसी नेता के तौर पर  गोपीनाथ मुंडे ने ना केवल राष्ट्रीय  राजनीती  में अपनी अलग पहचान बनाई बल्कि महाराष्ट्र के  पिछड़े वर्गों में अपनी मजबूत पैठ स्थापित करने में  भी सफलता हासिल की  । महाराष्ट्र  में उन्हें भारतीय जनता पार्टी का ऐसा जननेता माना जाता था जिसके नाम पर महाराष्ट्र की पूरी भाजपा की धुरी आकर  टिक जाती थी ।  गोपीनाथ पांडुरंग मुंडे का जन्म  परली , बीड महाराष्ट्र में एक कृषक परिवार में  पांडुरंग मुंडे के घर हुआ था। उनकी माँ का नाम लिंबाबाई मुंडे था। मुंडे की प्राथमिक शिक्षा जिल्हापरिषद नाथ्रा में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने आंबेजोगाई के योगेश्‍वरी शिक्षण संस्था स्वामी रामानंद तीर्थ महाविद्यालय में अध्ययन किया जहां पर   उन्होंने वाणिज्य उपाधि प्राप्त की। स्नातक की शिक्षा समाप्त करने के बाद मुंडे  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुये यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया । मुंडे महाराष्ट्र की विधानसभा में १९८० से २००९ तक विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र राज्य के उपमुख्यमंत्री का कार्य भी संभाला  । उपमुख्यमंत्री के रुप में उनके काम को आज भी विपक्षियो द्वारा सराहा जाता है । 1978 में पहली  बार मुंडे ने  महाराष्ट्र वि्धानसभा का चुनाव लड़ा  पर हार गये । इसके बाद बीड जीला परिषद के सदस्य बने । 1980 मे महाराष्ट्र बीजेपी मे सक्रमण का वक्त था ।  वसंतराव भागवत ने इसी समय पिछडे वर्ग को साख लेकर एक नई लकीर खींची  जिसका  प्रतिनिधित्व मुंडे करते थे ।  1980 मे मुंडे महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य बने और  महाराष्ट्र विधानसभा मे पहला कदम रखा । 1985  का विधानसभा चुनाव मुंडे रेणापुर  से लड़ा जहाँ उन्हें  हार का मुह देखने को  मजबूर होना पड़ा  लेकिन नब्बे  के  दशक में  मुंडे फिर एक बार महाराष्ट्र  विधानसभा  में धमक के साथ पहुंचे  । इस दौरान मुंडे ने  विधानसभा मे आक्रमक नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने में सफलता  पाई । 1993 के मुंबई बम धमाको के बाद शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने लेकिन  मुंडे ने पवार का नाम अंडर्वल्ड डॉन दाउद इब्राहीम से जोडकर पूरे  राज्य मे दौरा किया । मुंडे के प्रचार से पवार खासे बदनाम भी हुए  ।गोपीनाथ मुंडे पिछले दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति की धुरी माने जाते  थे । उन्होने चुनावों मे भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिए बहुत परिश्रम किया। दिवंगत नेता प्रमोद महाजन के साथ मिलकर उन्होंने महाराष्ट्र की भारतीय जनता पार्टी राजनीति को सफलता दिलाई थी। भारतीय जनता पार्टी शिवसेना युति ने  १९९५  में महाराष्ट्र राज्य विधानसभा चुनाव जीता और शिवसेना- भारतीय जनता पार्टी की गठबंधनसत्ता में आ गया। गोपीनाथ मुंडे भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना की गठबंधन सरकार में महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री बनाए गए और पांच साल तक पद पर रहे। बीजेपी सेना युति वाली  सरकार मे मुंडे ने उपमुख्यमंत्री ओर गृहमंत्री के तौर पर अंडरवर्ड  के खातमे पर जोर दिया । 


दिसम्बर २००९ में गोपीनाथ मुंडे  भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गए ।  २००९ में ही  वह  लोकसभा के सदस्य  भी चुने गये। गोपीनाथ मुंडे बीड लोकसभा से प्रतिनिधित्व के रूप में पहली बार प्रारम्भ किया था और संयोग देखिये  पहली बार मराठवाड़ा के बीड़ से सांसद बनने के फौरन बाद मुंडे को पहले लोकसभा में  सुषमा के बाद  उपनेता पद प्रदान किया गया । उन्हें संसद की लोकलेखा समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया । मुंडे महाराष्ट्र की जमीनी राजनीति की गहरी समझ रखते थे और पार्टी के 'ओबीसी चेहरा' थे ।  गोपीनाथ मुंडे  को २९ जनवरी २००७ को  पार्टी का महासचिव बनाया गया ।

उनकी राजनीति को समझने के लिए हमें महाजन के दौर में जाना होगा । मुंडे महाजन का बहनोई का रिश्ता था  इसी के चलते जब महाजन मुंडे को भाजपा में लाये तो उनका पार्टी के कई दिग्गज नेता सम्मान करते थे लेकिन महाजन के अवसान के बाद मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिए गए । नितिन गडकरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने के बाद गोपीनाथ मुंडे राज्य की राजनीती में पूरी तरह से उपेक्षित कर दिए गए ।  उनके समर्थक भी गडकरी ने एक एक करके किनारे लगा दिए जिससे एक दौर में गोपीनाथ की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से तनातनी भी चली। 

महाजन के जाने के बाद उनके साथ कुछ भी अच्छा नही चला  । जब तक पार्टी में महाजन थे तो उनके चर्चे महाराष्ट्र में जोर शोर के साथ होते थे ।  समर्थको का एक बड़ा तबका उनके  नाम पर घरो से निकला  करता था । अगर भाजपा में महाजन का दौर करीब से आपने देखा होगा तो याद कीजिये महाजन की मैनेजरी जिसने पूरी भाजपा को कायल कर दिया था ।  भाजपा का हनुमान भी उस दौर में महाजन को कहा जाता था और उसी दौर में  मुंडे की भी पार्टी में  खूब चला करती थी ।  मुंडे को महाराष्ट्र में स्थापित करने में महाजन की भूमिका को नजर अंदाज नही किया जा सकता।  यही वह दौर था जब मुंडे ने राज्य में अपने को एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया । महाजन के जाने के बाद पार्टी में कुछ भी सही नही चला ।   महाराष्ट्र  भाजपा को महाजन के बाद अब गोपीनाथ मुंडे की कमी सबसे ज्यादा खलेगी क्युकि  पहचान जनसरोकारों से जुड़े राजनेता के तौर पर मानी  जाती  थी  शायद यही वजह रही  महाराष्ट्र की राजनीती में शिव सेना के साथ गठजोड़ बनाने और भाजपा को स्थापित करने में महाजन की दूरदर्शिता का लोहा  पार्टी से जुड़े लोग मानते थे । 

मुंडे ने महाजन के साथ मिलकर महाराष्ट्र में  भाजपा का बढ़ा  जनाधार बनाया ।  जिस दौर में गडकरी अध्यक्ष बने  तब से मुंडे के समर्थको की राज्य की राजनीती में  एक नही चल पा रही थी जिससे एक दौर में मुंडे खासे आहत भी हुए  । अपनी इस पीड़ा का इजहार वह पार्टी आलाकमान के सामने कई बार कर चुके थे  लेकिन  उनकी  पार्टी  में एक नही सुनी जा रही थी  जिसके चलते तीन बरस पहले उन्होंने  पार्टी से अलविदा कहने का मूड भी  बना लिया । यू पी ए 2 में जब भाजपा विपक्ष में थी तो सुषमा  स्वराज के बाद वह लोक सभा में उपनेता थे । उस दौर में वह चाहते थे लोक लेखा समिति का अध्यक्ष पद उनको मिल जाए । इसके लिए वह उस दौर में  पार्टी के नेताओ के साथ बातचीत करने में लगे हुए  थे । अपनी ताजपोशी के लिए उन्होंने आडवानी को भी  समय  राजी कर लिया था ।  खुद आडवानी लोक लेखा समिति से मुरली मनोहर जोशी की विदाई चाहते थे  । दरअसल आडवानी और मुरली मनोहर में शुरू से ३६ का आकडा जगजाहिर रहा है । अटल के समय आडवानी की गिनती नम्बर दो  और मुरली मनोहर की गिनती नम्बर तीन  में हुआ करती थी लेकिन अटल जी के जाने के बाद भाजपा में हर नेता अपने को नम्बर एक  मानने लगा । अटल जी के समय आडवानी ने अपने को उपप्रधानमंत्री घोषित कर परोक्ष रूप से मुरली मनोहर को चुनोती दे डाली थी  जिसके  बाद आडवानी के आगे मुरलीमनोहर  दौड़ में पीछे चले गए । शुक्र था उस दौर से  पूरी भाजपा संघ चला रहा है जिसके चलते मुरली मनोहर जैसे नेताओ को लोक लेखा समिति की कमान मिली ।  आडवानी को सही समय की दरकार थी लिहाजा उन्होंने मुरली के पर कतरने की सोची पर दाव सही नही पड़ा । कहा तो यहाँ तक गया   संघ मुरली मनोहर को लोक लेखा समिति के पद से हटाने का पक्षधर नही था लेकिन संघ भाजपा की सुलह के बीच  मुंडे को  लोक लेखा समिति के अध्यक्ष बनने  का सपना  उस समय  पूरा  हो गया  । 

 कुछ बरस  पहले गोपीनाथ मुंडे  ने  मुंबई शहर में भाजपा अध्यक्ष पद पर मधु चौहान की नियुक्ति का सबके सामने विरोध कर दिया था जिसके बाद आलाकमान को "डेमेज कंट्रोल" करने में पसीने आ गए थे।  मुंडे की नाराजगी का एक बड़ा कारण अजित पवार का गढ़  रहा पुणे भी रहा  था जहाँ पर गडकरी ने अपने खासमखास विकास मठकरी को  उस समय भाजपा जिला अध्यक्ष बना दिया जबकि मुंडे अपने चहेते योगेश गोगावले को यह पद देना चाहते थे लेकिन आडवानी का भारी दबाव होने के बाद भी गडकरी ने अपनी ही चलायी । मुंडे की चिंता यह भी रही  जब गडकरी पार्टी के अध्यक्ष बने  तब से महाराष्ट्र में उनका दखल अनावश्यक रूप से बढ़ रहा था जिसके चलते चलते मुंडे  समर्थको  के पर गडकरी समर्थक एक एक करके कतरने की तैयारी में थे जिससे  अंदर ही अंदर गोपीनाथ मुंडे नाराज भी थे।   एक  सप्ताह पहले ही  नमो  मंत्रिमंडल  में केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने  शपथ ली थी ।  उन्हें केंद्रीय  ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया था। यह काफी दुखद है  कि दिल्ली में सड़क हादसे में मुंडे का निधन  हो गया । राज्य में बहुजन समाज का दूसरा बड़ा नेता भारतीय जनता पार्टी के पास अब बचा नहीं हैं साथ ही अपने दम पर लोगों को चुनाव जितवाए ऐसा करिश्मा भी किसी नेता के पास नहीं हैं।  महाराष्ट्र भाजपा का एक बड़ा मजबूत आधार  स्तम्भ हमारे बीच नहीं रहा और एक शालीन जननेता देश ने खो दिया । भाजपा  को मुंडे की कमी बहुत खलेगी ।  

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