Friday 31 October 2014

फिर से समाजवादी टोपी पहनने को बेताब अमर सिंह




बीते बुधवार को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित  आवास 16 अशोका रोड का नजारा देखने लायक था | नेता जी के प्रति अमर सिंह का प्रेम एक बार फिर जागने के कयास लगने शुरू हो गए हैं और पहली बार इन मुलाकातों के बाद एक नई तरह की किस्सागोई समाजवादी राजनीति को लेकर शुरू हो गयी है | यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण  है क्युकि सूबे के युवा सी एम अखिलेश भी दिल्ली प्रवास के दौरान  इस बार नेताजी से मिले हैं और अमर सिंह के साथ बैठकर उन्होंने  अपनी  भावी राजनीति को लेकर कई चर्चाएँ भी की हैं | इस तिकड़ी ने कई घंटे बैठकर  यू पी की सियासत को साधने और मिशन 2017 को लेकर भी  मैराथन मंथन किया  | यूपी की 10 राज्यसभा की सीटों के चुनाव के लिए प्रक्रिया जल्द शुरू हो रही है। ऐसे में अमर सिंह के दर्द को बखूबी समझा जा सकता है | यू पी में 20   नवम्बर को  खाली होने जा रही 10 सीटों के लिए सियासी बिसात अभी से बिछनी शुरू हो गयी है  और  उत्तर प्रदेश की  राजनीतिक  बिसात के केंद्र  में अमर सिंह एक बार फिर आ गये हैं ।  दरअसल सपा ने अपने सभी 6 राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी जिसमें अमर सिंह का नाम शामिल नहीं है । जिन लोगों का नाम जारी किया गया है उसमें प्रदेश के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खां की पत्नी का नाम भी शामिल है लेकिन आजम खां की पत्नी द्वारा राज्यसभा के टिकट ठुकरा देने से अमर सिंह के नाम की चर्चा एक बार फिर सबसे उपर है। इनमें जिन छह लोगों के नाम जारी किए गए हैं उनमें राम गोपाल यादव, नीरज शेखर, चंद्रपाल यादव, रवि प्रकाश वर्मा, जावेद अली खान और तंजीम फातिमा शामिल हैं लेकिन नामों की घोषणा के  बाद आजम खान की पत्नी तंजीम फातिमा ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद से ही अमर सिंह का सेंसेक्स  एक बार फिर सातवें  आसमान पर चढ़ गया है ।  ऐसे में संभावना है कि उन्हें एक बार फिर सपा के टिकट पर राज्यसभा में इंट्री  मिल सकती है।

यह दूसरा ऐसा  मौका है  जब अमर सिंह नेता जी के साथ मिलकर हाल के दिनों में दिल्ली में सक्रियता बढाकर उत्तर प्रदेश के हालात और केंद्र सरकार के काम काज को लेकर खूब चर्चा की है   |  इससे पहले छोटे लोहिया के रूप में पहचान रखने वाले खांटी समाजवादी जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने पार्क के उद्घाटन के मौके पर दोनों ने साथ मिलकर सार्वजनिक मंच पहली बार साझा किया था हालांकि इस  समारोह में  भी सपा से निकाले गए अमर सिंह के आने की खबरें हवा में तैरने लगी थी लेकिन समाजवादी पार्टी से जुडे़ कार्यकर्ताओं से लेकर विधायकों तक को उम्मीद नहीं थी कि अमर सिंह सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ मंच साझा कर सकते हैं  लेकिन राजनीती में कुछ भी संभव है लिहाजा इस बार भी दिल्ली में तीनो के साथ बैठने से कई कयासों को न केवल हवा मिलनी शुरू हुई है बल्कि नेता जी के साथ दिल्ली में बैठने के बाद अमर सिंह के सपा प्रेम के जागने के प्रमाण मिलने शुरू हो रहे हैं और अब  तंजीम फातिमा के राज्य सभा टिकट के  प्रस्ताव को ठुकरा देने के बाद अमर सिंह को लेकर हलचल तेज हो गयी है । 

लोकसभा चुनाव में भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ब्रह्मास्त्र को छोड़ने के बाद अब सपा को समाजवादी राजनीति साधने के लिए एक ऐसे कुशल प्रबंधक की आवश्यकता है जो नमो के शाह की बराबरी कर सके लिहाजा नेता जी भी अमर सिंह के साथ  इन दिनों गलबहियां करने में लगे हुए हैं | वह एक दौर में नेता जी के हनुमान रह चुके हैं |  नेता जी भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं अगर यू पी में उन्हें मोदी के अश्वमेघ घोड़े की लगाम रोकनी है तो अमर सिंह सरीखे लोगो को पार्टी में वापस लाकर ही 2017  में होने वाले विधान सभा चुनाव तक  अपना जनाधार ना केवल मजबूत किया जा सकता है बल्कि कॉरपरेट की छाँव तले समाजवादी कुनबे में विस्तार किया जा सकता है और  अब तंजीम फातिमा के टिकट प्रस्ताव को  ठुकरा देने के बाद  एक बार फिर सभी की नजरें  नेता जी  की तरफ लग गयी हैं  ।संकेतो को डिकोड करें तो अमर की पार्टी में दोबारा  वापसी की अटकलें  फिलहाल तेज हो चली हैं।  

मौजूदा परिदृश्य में सपा के कोटे में 6 सीटें जानी तय मानी जा रही हैं लिहाजा सपा ने भी जिन छह लोगों के नाम जारी किए गए हैं उनमें राम गोपाल यादव, नीरज शेखर, चंद्रपाल यादव, रवि प्रकाश वर्मा, जावेद अली खान और तंजीम फातिमा शामिल हैं लेकिन आजम खां की पत्नी तंजीम के टिकट के प्रस्ताव को ठुकरा देने के बाद अब एक सीटों को लेकर भी खासी रस्साकस्सी देखने को मिल सकती हैं |  हालाँकि सब कुछ तय करने की चाबी खुद नेता जी के हाथो में है लेकिन  चयन में खुद अब उनकी बड़ी भूमिका देखने को मिल सकती है | इन सबके बीच क्या अमर सिंह की वापसी हो पायेगी यह कह पाना मुश्किल है लेकिन दिल्ली में नेता जी के साथ हाल के दिनों में  अमर सिंह की मुलाकातों ने एक बार फिर उनके सपा में शामिल होने के कयासों को बल तो दे ही  दिया है |  हालाँकि एक दौर में  अमर सिंह  ने खुद कहा था कि वह किसी राजनीतिक दल में शामिल होने नहीं जा रहे हैं ।  सक्रिय राजनीति में उनकी जिंदगी के 18 साल खर्च हुए हैं और अब वह नवंबर में राज्यसभा का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा प्रयास नहीं करेंगे। दिल्ली रवाना होने से पहले  इसके मजमून को  मीडिया समझ गया  और  नेता जी के साथ मुलाकातों के बाद और गहन मंत्रणा के बाद उन्होंने  भी अपनी राज्य सभा की दावेदारी के प्रति दुबारा इच्छा नेता जी के सामने जाहिर की । 
 
अमर सिंह की सपा में एक दौर में ठसक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1995 में पार्टी ज्वॉइन करने के बाद मुलायम और सपा दोनों  को दिल्ली में स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।  तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने और उसमें मुलायम की भूमिका बढ़ाने में भी अमर सिंह ही बड़े  सूत्रधार थे वहीँ इंडो यू एस न्यूक्लियर डील में भी कड़ी का काम अमर सिंह ने ही किया जब उनके सांसदों ने मनमोहन सरकार की लाज यू पीए सरकार को  बाहर से समर्थन देकर बचाने का काम किया |  यू पी की जमीन से इतर पहली बार विभिन्न राज्यों में पंख पसारने में अमर सिंह के मैनेजमेंट के किस्से आज भी समाजवादी कार्यकर्ता नहीं भूले हैं | सपा में शामिल होने के बाद किसी एक नेता का इतना औरा सपा में इतना नहीं होगा जितना उनका था। उन्होंने पार्टी को फिल्मी सितारों के आसरे एक पंचसितारा रंग देने की  भरपूर कोशिश की थी। एक वक्त था जब अमर सिंह फैसले लेते थे और मुलायम उन फैसलों को स्वीकार कर लेते थे। बाद में एक वक्त ऐसा भी आया जब वह मुलायम के बेहद करीबी आजम खान के लिए गले की हड्डी बन गए | सपा में अमर सिंह की गिनती एक दौर में नौकरशाहों  से लेकर  बालीवुड उद्योगपतियों के बीच खूब जोर शोर से होती थी लेकिन पंद्रहवी लोक सभा चुनाव में मिली पराजय और आतंरिक गुटबाजी ने अमर सिंह की राजनीती का बंटाधार कर दिया |2010  में उन्हें पार्टी से  बाहर निकाल दिया गया जिसके बाद 2012  में विधान सभा चुनाव और 201 4 के लोक सभा चुनाव में सपा के विरोध में उन्होने अपने उम्मीदवार खड़े किये लेकिन करारी हार का सामना करने को मजबूर उन्हें होना पड़ा |  आजम खान को जहाँ उनके दौर में पार्टी से निकाल  दिया गया वहीँ अमर सिंह  के रहते एक दौर में  आजम खान सपा में नहीं टिक  सके |  यह अलग बात है आजम खान अमर की विदाई और कुछ समय की जुदाई के बाद वह खुद सपा में चले आये | 
 
 अमर सिंह के पार्टी में बढ़ते प्रभाव का नतीजा यह हुआ कि पार्टी के संस्थापक रहे नेता धीरे-धीरे दूर होने लगे। उनका आरोप था कि अमर के चलते पार्टी अपना परंपरागत  वोट बैंक खोती जा रही है। आखिरकार वह वक्त भी आ गया जब उन्हें मुलायम सिंह नजर अंदाज करने लगे। देखते ही देखते हालात बिगड़ते चले गए। उन्होंने बयान दे दिया कि मुलायम सिंह और उनके परिवार ने उनकी  बीमारी के दौरान कोई सहानुभूति नहीं रखी जिसके  बाद 2012 में पार्टी ने अमर सिंह, जया प्रदा और 4 अन्य विधायकों को निष्कासित कर दिया। अमर सिंह की अगर सपा में दुबारा इंट्री होती  है तो  नगर विकास मंत्री आजम खां पार्टी से बाहर जाने का रास्ता तैयार कर सकते हैं | बीते कुछ महीनो पहले आजम खां ने इस संभावना से इनकार नहीं किया था कि यदि अमर सिंह सपा में वापस आए तो उन्हें बाहर जाना पड़ सकता है | उन्होने तो खुले मंच से यहां तक कह दिया था अमर सिंह के आने के बाद खुद उनका अस्तित्व खतरे में पड  सकता है |

 अमर सिंह को सपा में वापस लाए जाने की तैयारी लोकसभा चुनाव से पहले ही हो गई थी लेकिन आजम खां के वीटो के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपना इरादा बदल दिया था। अब इस बार क्या होगा यह देखना बाकी है क्युकि आजम के अलावे सपा में अमर विरोधियो की लम्बी चौड़ी फेहिरस्त मौजूद है और अब सबसे बड़ा सवाल तंजीम फातिमा के विकल्प का है । 5 सीटो के तय करने के बाद क्या सपा अमर सिंह को टिकट देने का फैसला ले पायेगी यह  बन गया  है ।  इतिहास समय समय पर खुद को दोहराता है और संयोग देखिये सपा के पूर्व महासचिव और वर्तमान कांग्रेसी नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने भी अमर सिंह के कारण ही समाजवादी पार्टी को एक समय अलविदा कहा था। अब लगभग चार साल बाद न सिर्फ अमर सिंह का  नेता जी के साथ मिलन होना तय सा लग रहा  है | अखिलेश के साथ बैठकर जिस तरीके से उन्होंने यू पी की सियासत को लेकर अपनी मैनेजरी  के किस्से अखिलेश को सुनाये  हैं उससे आने वाले दिनों में समाजवादी सियासत का एक नया मिजाज हमें देखने को मिल सकता है |  अमर सिंह  और आजम खां का छत्तीस का आंकड़ा  भले ही जगजाहिर है लेकिन नेता जी और अमर सिंह का दोस्ताना  आज भी सलामत है शायद यही वजह है  अमर सिंह ने हर उस मौके को भुनाने का  प्रयास किया है जहाँ उन्हें फायदा  नजर आता है |  जनेश्वर पार्क के उद्घाटन के मौके पर भी इस  बरस वह  नेता जी की तारीफों के पुल बांधकर साफ संकेत दे चुके हैं साईकिल  की सवारी करने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है | राजनीती में  किसी के दरवाजे कभी बंद नहीं किये जा सकते। कभी अमर सिंह के कारण ही  एक समय आजम खां ने सपा को टाटा  कहा था |  जिस दौर में  आजम खां ने सपा का साथ छोड़ा था उस वक्त भी समाजवादी खेमे में अमर सिंह को निकाले जाने के समय जश्न का माहौल देखा गया ।  जिस तरह से अमर सिंह को सपा के कुछ बडे़ नेता पसन्द नहीं करते थे ठीक वही स्थिति सपा में आजम खां की भी  हो चली है|  

लोकसभा चुनाव के दौरान आजम खां ने  मुस्लिम वोट बैंक पूरा सपा के साथ लाने के बड़े दावे किये थे लेकिन नमो की लोकसभा चुनावो में चली सुनामी और राज्यों में मोदी के हुदहुद ने सपा के जनाधार का ऐसा बंटाधार कर दिया कि लोक सभा चुनावो में सपा की खासी दुर्गति हो गयी |  नेता जी को  आजम खां  पर पूरा भरोसा था  लेकिन नेताजी परिवार के अलावा सपा का पूरा कुनबा लोकसभा चुनाव में साफ हो गया  |  अब  नए  सिरे से वोटरों को साधने के लिए नेता जी यू पी की राजनीति  को  अपने अंदाज में साध रहे हैं  ।  इन्हीं परिस्थितियों से निपटने के लिए नेता जी  ने अमर सिंह की वापसी  का एक नया चैनल इस समय खोल दिया है | । हालांकि पार्टी में उनकी वापसी को लेकर ज्यादातर नेताओं ने हामी नहीं भरी है लेकिन आजम खान और शिव पाल यादव उनकी वापसी पर सबसे बड़ी रेड कार्पेट बिछा  रहे हैं | यही अमर सिंह की सबसे बड़ी मुश्किल इस समय  है |  दूसरा अब  रालोद भी एक सीट से  यू  पी में सपा के कोटे से अपने उम्मीद वार को राज्य सभा भेजने की तैयारी में है | अजित सिंह की राजनीति  को जहाँ मोदी मैजिक ने ठन्डे बस्ते में डाल दिया है वहीँ अमर प्रेम के जागने पर जया  प्रेम जागने के आसार  भी  नजर आ रहे हैं | अमर सिंह अगर सपा में आते हैं तो जया  भी सपा में अपनी इंट्री के साथ  कहीं से राज्य सभा का टिकट चाहेंगी | ऐसे में यह सवाल बड़ा मौजू  होगा टिकट  किसे मिलेगा ? 

दिल्ली में अमर सिंह अखिलेश और नेता जी की खिचड़ी साथ पकने के बाद से ही  1 6  अशोका रोड से लेकर 5  कालिदास मार्ग तक हलचल मची हुई है | अमर सिंह नेता जी  से अपने घनिष्ठ सम्बन्धो का फायदा उठाने  का कोई मौका  कम से कम  अभी तो नहीं छोड़ना चाहते हैं |  शायद ही आगे चलकर उन्हें  इससे  बेहतर मौका कभी मिले | वैसे भी इस समय सपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार  उत्तर प्रदेश में चला रही है |  नेता जी भी बड़े दूरदर्शी हैं | वक्त के मिजाज को वह बेहतर ढंग से पढना जानते हैं | 1996 में अपने पैंतरे से उन्होंने केंद्र में कांग्रेस को आने से जहाँ रोका वहीँ बाद में वह खुद रक्षा मंत्री बन गए |  2004 आते ही  वह कांग्रेस को परमाणु करार पर बाहर  से समर्थन का एलान करते हैं  तो यह उनकी समझ बूझ को सभी के सामने लाने का काम करता है |

 फिर राजनीती का यह चतुरसुजान इस बात को बखूबी समझ रहा है अगर कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ एकजुट नहीं हुए तो आने वाले दौर में उनके जैसे छत्रपों की राजनीति पर सबसे बड़ा ग्रहण लग सकता है शायद इसीलिए वह इस सियासत का तोड़ खोजने निकले हैं जहाँ उनकी बिसात में अमर सिंह  ही अब सबसे फिट बैठते हैं | नेता जी  इस राजनीती के डी एन ए को भी बखूबी समझ रहे हैं | ऐसे में अमर सिंह को लेकर उनके रुख का सभी को इंतजार है | देखना दिलचस्प होगा  तंजीम फातिमा की राज्य सभा टिकट पेशकश ठुकराने के बाद  अमर कहानी राज्य सभा चुनाव के नामांकन में कहाँ तक पहुँच पाती है ?

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