हरियाणा में विधान सभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है । हरियाणा
के चुनावी महासमर में सभी दलों ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है । दिल्ली
से सटे होने के चलते हरियाणा में इस समय कांग्रेस के सामने अपना पिछला इतिहास
दोहराने की तगड़ी चुनौती तो है साथ में हुड्डा की साख इस चुनाव में सीधे दांव पर है
क्युकि उनके सामने कांग्रेस की पुरानी सीटो पर हाथ को मजबूत बनाने की तगड़ी
जिम्मेदारी है वहीँ ओमप्रकाश चौटाला के सामने भी अपनी पार्टी का अस्तित्व और वजूद
बचाने की विकराल चुनौती है क्युकि जेबीटी शिक्षक घोटाले में जेल की हवा खाने के
चलते उनके पुराने वोटर अब पाला बदलने
की तैयारी में दिखायी देते हैं । हरियाणा में कांग्रेस हुड्डा के नाम के आगे
अपने वोट मांगती दिख रही है लेकिन राज्य की हुड्डा सरकार के प्रति लोगो में थोडा बहुत गुस्सा भी
साफ़ दिखाई देता है । बीते बरस दिसंबर में दिल्ली की जमीन से रुखसत कांग्रेस के
सामने अब पडोसी राज्य हरियाणा में हुड्डा के विकास की कहानी लोगो तक पहुचाने
की जिम्मेदारी है क्युकि भारी गुटबाजी और एंटी इंकम्बेंसी का अंदेशा राज्य की
नब्बे सीटों के गणित को सीधे प्रभावित कर रहा
है लेकिन हरियाणा में विपक्ष के बिखराव का सीधा लाभ लेने के लिए मुख्यमंत्री
हुड्डा अपनी बिसात दिन रात मजबूत करते नजर आ रहे हैं जिसके चलते वह सब पर भारी पड़ रहे हैं । पिछले एक दशक
में हुड्डा ने अपने कार्यो के बूते विकास
की जो गंगा बहायी है उसकी नाव में सवार होकर कांग्रेस
अपने लिए विधान सभा चुनावो में भरोसेमंद
साथियों को साथ लेकर अपने अनुकूल बिसात बिछाती नजर आ रही है । मुख्यमंत्री हुड्डा के सामने इस चुनाव में सत्ता में वापसी
कर हैट्रिक बनाने की तगड़ी चुनौती है वहीँ विपक्षी दल दक्षिणी हरियाणा में भेदभाव
को लेकर उन पर सीधे निशाना साधने से नही चूक रहे | भाजपा के साथ इनलो , हजका, गोपाल कांडा की
हरियाणा लोकहित पार्टी समेत विनोद शर्मा की नई नवेली पार्टी हरियाणा जनचेतना
पार्टी , बसपा के मैदान में होने से हरियाणा की जंग दिलचस्प राजनीती का अखाड़ा बन
गई है |
1966 में हरियाणा के
अस्तित्व में आने के बाद से यहाँ की पूरी राजनीती 3 लालों की धुरी बनी रही जिसमे
देवीलाल, बंशीलाल और भजन लाल का नाम आज भी बड़े जोर शोर से लिया जाता है | कांग्रेस
मुक्त भारत की बात करने वाली भाजपा के सामने भी मौजूदा दौर की सबसे बड़ी मुश्किल
किसी कद्दावर जाट नेता के न होने से ही खड़ी हुई है , वहीँ तीनो लालों का औरा और
हुड्डा का कद भाजपा के चुनावी समीकरणों को आज भी गड़बड़ा रहा है शायद यही वजह है
हरियाणा के चुनावी इतिहास में भाजपा आज तक कभी यहाँ विधान सभा के वोट प्रतिशत में
दहाई का आंकड़ा तक नहीं छू पाई है लेकिन केंद्र में नमो सरकार बनने के बाद भाजपा हरियाणा को
लेकर इस दौर में सबसे ज्यादा आशान्वित भी है | लोक सभा चुनावों में नमो लहर ने
जैसा करिश्मा हरियाणा में दिखाया वैसे ही करिश्मे की उम्मीद भाजपा को हरियाणा के
विधान सभा चुनाव को लेकर भी है | अमित शाह और मध्य प्रदेश भाजपा के हनुमान कैलाश
विजयवर्गीय जिस तरीके से हरियाणा की चुनावी बिसात को बिछाने में लगे हुए हैं उससे
यह साफ़ जाहिर होता है भाजपा हरियाणा में सरकार बनाने का सुनहरा मौका इस बार नहीं
चूकना चाहती है | हाल के लोक सभा चुनावो में भाजपा 90 विधान सभा सीटों में 52
सीटों में आगे रही थी लेकिन तब नमो लहर पूरे शबाब पर थी और कुलदीप विश्नोई के साथ
भाजपा का गठबंधन हरियाणा में था जिसने जातीय समीकरणों को ध्वस्त करने में अहम भूमिका
निभायी लेकिन आज चार महीने बाद नमो का मैजिक चलेगा इसमें थोडा संशय
लग रहा है क्युकि हरियाणा की राजनीती में कांग्रेस और रीजनल पार्टियों का दबदबा
लम्बे समय से रहा है जिस वजह से भाजपा को भी एक दौर में यहाँ इनलो और हजका सरीखे
छोटे दलों की बैशाखियों का सहारा लेकर चुनाव लड़ना पड़ा | लेकिन पहली बार स्पष्ट जनादेश लेकर आई नमो सरकार के आने और अमित शाह के हाथ भाजपा की कमान आने के बाद कार्यकर्ताओ
का जोश इस कदर सातवें आसमान पर है कि अब भाजपा गठबंधन की राजनीती को धता बताते हुए
महाराष्ट्र और हरियाणा सरीखे राज्यों में खुद अपने दम पर पैर पसारना चाह रही है तो
यह भाजपा में मोदी और शाह के नए युग की आहट की तरफ साफ़ इशारा है | इसके परिणाम आने
वाले दिनों में हमें पंजाब सरीखे राज्य में भी देखने को मिल सकते हैं जहाँ अकालियो
के साथ भाजपा की गठबंधन सरकार है और बहुत सम्भव है आने वाला पंजाब का विधान सभा
चुनाव भाजपा अकेले लड़े | हरियाणा में अतीत में भाजपा इनलो से समझौता 2009 में जहाँ
कर चुकी है वहीँ कुलदीप विश्नोई की पार्टी हजका के साथ गठबंधन की गाँठ बीते कुछ महीनो
पूर्व टूट चुकी है जिसके बाद भाजपा ने अपने दम पर हरियाणा के चुनावी महासमर में
कूदने का एलान किया |
भाजपा ने इस चुनाव में
मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर किसी के नाम को घोषित नहीं किया है |
हरियाणा में ‘चलो चलें मोदी के साथ ’ का नारा जोर शोर से चलता दिखाई दे रहा है
जिससे यह साफ है पार्टी यहाँ भी नमो मंत्र का सहारा लेकर चुनावी वैतरणी को पार
करना चाह रही है | उसके पास मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारो की भारी भरकम फ़ौज खड़ी है
लेकिन किसी को वह मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं कर पाई है जबकि आम तौर पर राज्यों में भाजपा किसी
चेहरे को प्रोजेक्ट कर चुनाव लडती रही है शायद इसकी बड़ी वजह हरियाणा की जाट
राजनीती रही है | हुड्डा के शासन में
दक्षिणी हरियाणा विकास लहर से सबसे ज्यादा वंचित रहा है और यहाँ से भाजपा के पास अहीरवाल
इलाके में केन्द्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं | लोक सभा चुनावो से ठीक पहले
वह हुड्डा के जहाज को छोड़ने वाले पहले शख्स थे | उन्होंने गुडगाँव लोक सभा सीट पर
ऐतिहासिक जीत हासिल कर अपने विरोधियो को धूल चटा दी | अहीरवाल इलाके में भाजपा का
यह ट्रम्प कार्ड अगर चल गया तो इनके प्रभाव की तकरीबन 20 विधान सभा सीटों पर भाजपा
अपना कमल खिला सकती है | राव इन्द्रजीत का पार्टी में प्रभाव कितना है इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है पार्टी की टिकट आवंटन
की पहली सूची में ही वह अपने चहेते लोगो को टिकट देने में कामयाब रहे | भाजपा के
राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे कैप्टन अभिमन्यु भी मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदारों में
शामिल हैं | युवा होने के साथ ही उनकी अमित शाह से गहरी निकटता चुनाव बाद नया गुल
खिला सकती है | वहीँ भारतीय जनता पार्टी की किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम
प्रकाश धनकड़ भी मुख्यमंत्री पद की कतार में खड़े हैं | वह लोक सभा चुनाव में
दीपेन्द्र हुड्डा से पराजित भी हो चुके हैं लेकिन वाजपेयी के दौर में धनकड़ पर पैट्रोल
पम्प आवंटन का दाग अभी भी उनकी संभावनाओ पर पलीता लगा रहा है | भाजपा के प्रदेश
अध्यक्ष रामविलास शर्मा भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में बने रहने के लिए अपने
समर्थको के साथ बिसात बिछाने में लगे हुए हैं | महेंद्रगढ़ में अहीर मतदाताओ पर
उनका प्रभाव रहा है इसी के चलते 2000 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने एकतरफा जीत
हासिल की लेकिन इस बार उनके कितने चेहरे चुनाव जीत पाते हैं यह देखना होगा क्युकि
भाजपा में टिकट आवंटन में उनकी ही सबसे ज्यादा चली है | कांग्रेस से भाजपा में
शामिल हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह का भी मुख्यमंत्री पद का दावा भाजपा में कमजोर नहीं
है | वह सर छोटू राम के नाती रह चुके हैं जिनका हरियाणा में जबरदस्त प्रभाव रहा |
बीरेंद्र चार बार प्रदेश में मंत्री और तीन बार संसद रह चुके हैं | यू पी ए 2 के
अंतिम कार्यकाल में हुए मंत्रिमंडल फेरबदल में उनका नाम पवन बंसल के स्थान पर रेल मंत्री के रूप में
खूब चला लेकिन हुड्डा से छत्तीस के आंकड़े के चलते वह केंद्र में मंत्री बनने से
चूक गए | कांग्रेस में रहते उनकी मुख्यमंत्री पद को पाने की कसक पूरी नहीं हो सकी |
अब भाजपा में आने के बाद वह अपना दावा मुख्यमंत्री पद के लिए छोड़ देंगे इस बात से
कैसे इनकार किया जा सकता है | हरियाणा में मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा हाईकमान की नजर में एक चौकाने वाला
नाम कृष्णपाल गुर्जर का है। यदि गैर जाट
मुख्यमंत्री पर भाजपा की सहमति बनी तो कृष्णपाल गुर्जर के नाम पर मोहर लगनी तय
मानी जा रही है। इसके अलावा हरियाणा भाजपा में कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आ रहा है
जिसे भाजपा मुख्यमंत्री प्रोजैक्ट कर सके। दक्षिण हरियाणा मुख्यमंत्री हुड्डा के शासन में सबसे ज्यादा उपेक्षित रहा
है। सर्वाधिक राजस्व देने के बावजूद फरीदाबाद व गुडग़ांव सबसे अधिक उपेक्षित रहे हैं
| चौटाला के मुख्यमंत्री रहते हुए जहाँ सिरसा क्षेत्र में विकास कार्य चरम पर रहे वहीँ
हरियाणा में भजनलाल के हाथ मुख्यमंत्री की कमान रहते हुए हिसार का
जबरदस्त विकास हुआ | बीते 10 बरस में कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह
हुड्डा ने रोहतक के आसपास के क्षेत्र का विकास किया | रोहतक में हुड्डा ने न केवल अपने चहेते लोगो को
रेवड़ियाँ बांटीं दिलाई बल्कि अपने चहेते
नौकरशाहों को उनके मनमाकिफ विभागों की जिम्मेदारियां दी | दक्षिण हरियाणा गैर जाट बैल्ट है और भाजपा यदि इस क्षेत्र से ही गैर जाट
मुख्यमंत्री लाती है तो यह कांग्रेस की मुश्किलें बढा सकता है | डार्क हॉर्स के
रूप में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का नाम भी यहाँ के सियासी गलियारों में चल रहा
है | अगर चुनाव के बाद किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनती है तो अमित शाह और मोदी की
जोड़ी सुषमा स्वराज के नाम को आगे कर सकती है | सुषमा मूल रूप से अम्बाला की हैं और
अतीत में वह दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी भी संभाल चुकी हैं |
बात इनलो की करें तो
ओमप्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जी बी टी शिक्षक भारती घोटाले में फंसने और जेल
की सजा होने के बाद अब दुष्यंत चौटाला के सामने अपनी पार्टी इनलो का वजूद बचाने की
तगड़ी चुनौती है | बीते 25 सितम्बर को ताऊ देवीलाल की जन्म शताब्दी के मौके पर अपने
समर्थको को इकट्टा कर जिस तरह के तल्ख़ तेवर उन्होंने दिखाए हैं उससे इनलो के कार्यकर्ताओ
की बांछें खिल गयी हैं और इस रैली के जरिये ओम प्रकाश चौटाला ने यह जताने की भी
पूरी कोशिश की है उनको कमजोर समझना एक बहुत बड़ी भूल होगी | जींद में आयोजित अपनी
रैली में उन्होंने हुड्डा को निशाने पर लिया और हरियाणा में एक बार फिर इनलो के
हाथ सत्ता सौंपने की अपील अपने समर्थको के बीच की | इस रैली के बाद पूरे जाटलैंड
के समीकरण बदल गए हैं क्युकि पिछडो के साथ यही इमोशनल कार्ड चौटाला को न केवल सत्ता
के गलियारों तक एक बार फिर पहुंचा सकता है बल्कि इसी से उनकी साख प्रतिष्ठा बच सकती
है | असल में हरियाणा की राजनीती पर लालों का बाद दबदबा रहा है | देवीलाल की खडाऊ
लेकर राजनीती करने वाले चौटाला आज भले ही कानूनी बाध्यता के चलते चुनाव ना लड़ पाये
हों लेकिन एक दौर में हरियाणा में उनकी भी खूब तूती बोलती रही है | किसानो के बड़े
वर्ग और जाटो के बड़े वोट बैंक पर इनकी मजबूत पकड़ रही है | पुराने पन्नो को टटोलें
तो जेपी की छाँव तले देवीलाल ने 70 के दशक में न केवल इंदिरा को अपनी ठसक का अहसास
कराया बल्कि रक्षा मंत्रालय की कमान केंद्र में संभालते समय अपने भरोसेमंद चेहरे
बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा की कुर्सी पर बिठाने में देरी नहीं की | आपातकाल के
बाद देवीलाल के हाथ फिर हरियाणा की कमान आई लेकिन बगावती माहौल के बीच भजनलाल ने
सत्ता हथियाने में देरी नहीं लगाई | अस्सी का दशक आते आते भजनलाल इंदिरा के साथ कांग्रेस
में आ गए और प्रदेश के पांचवे विधान सभा चुनाव में बहुमत ना होने के बावजूद उनको
मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई जिसका एक दौर में देवीलाल ने खूब विरोध भी किया जिसके
बाद 1986 में बंशीलाल को कुर्सी सौंपी गई
लेकिन जनता के हको की लड़ाई लड़ने वाले देवीलाल इस लड़ाई में जीते जब उनके हाथ 1987
में हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी आ गई | और संयोग ऐसा रहा 1989 में जब वह उप प्रधानमंत्री
बने तो अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया | देवीलाल
के निधन के बाद से इनलो अपना वजूद बचाने को संघर्ष करती नजर आ रही है | चौटाला को जेल की सजा सुनाये जाने के बाद हरियाणा का ऊट
किस करवट बैठता है इस पर सबकी नजर है क्युकि यह जेल का मामला कोई छोटा बड़ा मामला
नहीं है | भ्रष्टाचार के मामले में कई वारे न्यारे करने से यू पी ए की चार महीने
पूर्व हुए लोक सभा चुनावो में खासी किरकिरी हुई | देखने वाली बात यह होगी जनता की
अदालत में चौटाला के साथ कितनी सहानुभूति की लहर इस चुनाव में साथ रहती है ?
बात सत्तारुढ कांग्रेस की करें तो इस चुनाव में उसकी सबसे बड़ी चुनौती बगावत को
रोककर अपना विजय रथ आगे बढ़ाना है | आतंरिक गुटबाजी ,अंतर्कलह और बगावत के बीच इस
चुनाव में भी कांग्रेस का बड़ा चेहरा हुड्डा ही बने हुए हैं | उन पर दस जनपथ का
भरोसा जरुर है लेकिन कई पुराने साथी इस चुनाव में हुड्डा के जहाज को छोड़कर दूसरे
जहाज पर सवार हो चुके हैं | राज्य में विभिन्न पार्टियों के अलग अलग लड़ने को
हुड्डा अपने पक्ष में कैश कराने में लगे हुए हैं | भाजपा के पास हुड्डा को चुनौती देना
इतना आसान नहीं है क्युकि बीते दस बरस में हरियाणा विकास के मामले में कहीं आगे
निकल चुका है और ख़ास बात यह है हरियाणा कांग्रेस शासित राज्यों का सबसे बड़ा रोल माडल
इस समय बना हुआ है | भाजपा मोदी के जिस
गुजरात माडल की दुहाई देकर इस समय केंद्र
सरकार चला रही है कांग्रेस के शासन में हरियाणा माडल ने पूरे देश में एक नई लकीर
हुड्डा के कार्यकाल में खींचने की कोशिश की है शायद यही वजह है कांग्रेस शासित
राज्यों के विकास माडल के मामले में हरियाणा माडल हाईवे में इस समय फर्राटा बन दौड़
रहा है क्युकि प्रति व्यक्ति सालाना आय के मामले से लेकर मनरेगा में सबसे ज्यादा
मजदूरी और दुग्ध उत्पादन से लेकर फसलो की पैदावार के मामले में हरियाणा अन्य
राज्यों से आज कहीं आगे है | वहीँ बीते दस बरस में बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले
में भी हरियाणा ने नई ऊंचाई को छूने का काम
भी किया है शायद यही वजह है बिजली पानी और सड़क सरीखी बुनियादी सेवाओ के विस्तार
में हरियाणा में बीते कुछ समय में गाँव गाँव काम हुआ है लेकिन इन सब के बाद भी
हुड्डा पर सबसे बड़ा आरोप विरोधी विकास कार्यो में भेदभाव को लेकर लगाते रहे हैं जो
बहुत हद तक सही भी है | हुड्डा के शासन में चमचमाते फ्लाई ओवर जरुर बने लेकिन यह
भी एक सच है इस चकाचौंध का सीधा असर रोहतक , झज्जर और सोनीपत जैसे इलाको तक ही
सिमटा जिसके चलते दक्षिणी हरियाणा के लोगो में हुड्डा के प्रति निराशा इस चुनाव
में भी साफ़ देखी जा सकती है | एंटी
इंकम्बेंसी फैक्टर के बीच कांग्रेस के हाथ का एक मात्र सहारा हरियाणा
के मुख्यमंत्री भूपेन्दर सिंह हुड्डा ही बने हैं शायद यही वजह है बीते एक
दशक में हरियाणा में एक जुमला 'हरियाणा इज हुड्डा' , 'हुड्डा इज हरियाणा'
खूब चला है जो इस चुनावी बरस में भी इंदिरा गांधी वाले दौर की
यादें ताजा कर देता है तब इंदिरा गांधी कांग्रेस का पूरे देश में सहारा हुआ करती
थी । कम से कम हरियाणा में पूरे देश में कांग्रेस विरोधी लहर के बाद भी अगर
हुड्डा की तारीफो के कसीदे वोटरों से सुनने को मिल रहे हैं तो
यह कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत की तरफ इशारा कराता है लेकिन इस चुनाव में
कांग्रेस में भारी अंतर्कलह पूरा खेल बिगाड़ सकती है | कैथल में नरेन्द्र मोदी के
मंच पर जिस तरह की हूटिंग हुड्डा को लेकर की गयी उसने कांग्रेस की मुश्किलों को बढाने
का काम किया है वहीँ बीते दिनों टिकटों के बंटवारे को लेकर प्रदेश अध्यक्ष तंवर और
हुड्डा में जिस तरह की खींचतान मची उसने भी कई सवालों को भी पहली बार हवा देने का
काम किया | इस चुनाव में कांग्रेस सबसे
मुश्किल दौर से गुजर रही है और जीत हो या हार दोनों परिस्थितियो में सेहरा हुड्डा
के सर ही बंधना तय है | वैसे भी इस बार
टिकट आवंटन में भी हुड्डा सब पर भारी पड़े हैं | युवा प्रदेश अध्यक्ष तंवर के मन
में अपने चहेते व्यक्तियों को टिकट ना दे पाने की
कसक इस क़दर देखने को बेटे दिनों मिली कि मनमाकिफ टिकटों का आवंटन
ना होने के चलते उन्होंने हुड्डा के सामने अपना त्याग पत्र कांग्रेस हाई कमान को
भेजने का एलान कर दिया हालाँकि बाद में बातचीत से सब कुछ सुलझा लिया गया लेकिन
इससे अभी भी तंवर के समर्थको में नाराजगी साफ़ दिखाई दे रही है | वहीँ हुड्डा
विरोधी खेमे की कमान अभी कुमारी शैलजा के समर्थको ने संभाली हुई है | शैलजा बीते
कुछ समय से हुड्डा के खिलाफ कई मंचो से बयानबाजी ना केवल कर चुकी हैं बल्कि अपने
समर्थको के साथ मिलकर हुड्डा को कमजोर करने का कोई मौका हरियाणा की राजनीती में
नहीं छोड़े हुए हैं | इस बार के विधान सभा चुनावो मे भी यह देखना होगा उनके समर्थक
हुड्डा को गले लगाते हैं या हुड्डा को डैमेज करने के लिए विरोधियो से हाथ मिलाकर कांग्रेस में भीतरघात को हवा कई सीटों पर देते
हैं |
कुलदीप विश्नोई की पार्टी हजका यह विधान सभा चुनाव अपने दम
पर लड़ रही है | भाजपा के साथ उसका गठबंधन टूटने के बाद अब उसके सामने भाजपा की
मौकापरस्ती को सामने लाने का सुनहरा अवसर सामने है लेकिन सीटो पर समझौता न होने से
दोनों दल एक दूसरे से अलग हो गए जिसका
पूरा फायदा उठाने की कोशिश अब इनलो और कांग्रेस हरियाणा में करेंगे | इस लोक सभा
चुनाव में दोनों के गठबंधन ने हरियाणा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की | कई सर्वे में यह
बात सामने आई अगर मौजूदा विधान सभा चुनाव भाजपा और हजका साथ साथ लड़ते तो दोनों के
वोट प्रतिशत में मजबूत इजाफा होता जिसका सीधा नुकसान हुड्डा को उठाना पड़ता लेकिन
अब दोनों के अलग अलग लड़ने से कांग्रेस अपने अनुरूप बिसात बिछा रही है | राजनीती
संभावनाओ का खेल है | यहाँ कुछ भी संभव है | हिसार से सटे कई इलाको में कुलदीप का
प्रभाव आज भी हरियाणा में मौजूद है | इस चुनाव में उन्होंने विनोद शर्मा की नई
नवेली पार्टी हरियाणा जनचेतना पार्टी से हाथ मिलाया है | दोनों साथ आकर हरियाणा के
मुकाबले को दिलचस्प बना रहे हैं | वहीँ गीतिका शर्मा केस में आरोपी गोपाल कांडा की
नई पार्टी हरियाणा लोकहित पार्टी की भी सिरसा से सटे इलाको में बड़ी धूम मची हुई है
| इस चुनाव में कांडा ने 100 करोड़ का बजट चुनाव प्रचार का रखा है | वह घर घर राशन
पानी के गिफ्ट देकर अपनी सियासी पार्टी के जनधार को मजबूत करने में लगे हुए हैं |
सिरसा से सटे इलाको में कांडा इफ़ेक्ट अगर चल गया तो सबसे ज्यादा मुश्किल इनलो को
झेलनी पड सकती है | ऐसे में इनलो के वोट बैंक में बिखराव भी तय माना जा रहा है |
2009 के विधान सभा चुनावो में भी कांग्रेस
बहुमत से दूर ही रही थी | उसके पास महज 40 सीटें थी लेकिन इसके बाद भी वह सत्ता की
दहलीज तक विनोद शर्मा और कांडा की मदद से पहुंची थी तब हजका के पांच विधायक टूटकर कांग्रेस में शामिल हो गए और हुड्डा मुख्यमंत्री भी इनकी बैसाखियों के
सहारे पहुंचे थे और संयोग देखिये आज वही साथी हुड्डा से दूर जाकर खुद अपनी
पार्टियों के जनाधार को मजबूत करते देखे जा सकते हैं |
मौजूदा दौर में हरियाणा में 90 सीटो की सीधी लड़ाई में कांग्रेस के
सामने इनलो ,भाजपा, हजका सीधे
खड़ी हैं लेकिन इस बार के विधान सभा चुनाव
में हरियाणा जनचेतना पार्टी, हरियाणा लोकहित
पार्टी और बसपा ने कई इलाको में संघर्ष ने हरियाणा के सियासी महासमर को रोचक बना
दिया है जहाँ हर किसी दिग्गज की प्रतिष्ठा सीधे दांव पर लगी है | हुड्डा को जहाँ
अपने विकास कार्यो के बूते चुनाव जीतने को लेकर आशान्वित दिखाई दे रहे हैं वहीँ
इनलो को अब सहानुभूति की लहर का सहारा है | भाजपा भी नमो लहर से ही बड़े करिश्मे की उम्मीद
लगाये बैठी है । भाजपा नमो को हरियाणा के
तारणहार के रूप में देख रही है वही पंजाब में भाजपा की सहयोगी अकाली दल के
लोग इनलो के चुनाव प्रचार में साथ भागीदारी कर भाजपा की मुश्किलो को सीधे बढ़ाने का
काम कर रहे हैं । अगर एकमुश्त पंजाबी वोट इनलो अपने पाले में लाने में कामयाब हो
जाती है तो इससे भाजपा, कांग्रेस और
हजका को परेशानी कई सीटो पर पेश आ सकती है
। विनोद शर्मा और गोपाल कांडा की पार्टी हार जीत की
संभावनाओ पर सीधा असर डाल सकती है ऐसी संभावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता | ऐसे
में देखने वाली बात यह होगी इन सबके बीच हरियाणा में ऊंट किस करवट बैठता है ?
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