Monday, 14 November 2016

जापान दौरे से 'नमो ' की लुक ईस्ट पालिसी को मिली नई धार




 
पी एम मोदी की जापान यात्रा कई मायनों में भारत के लिए कामयाब साबित हुई है । इसमें दोनों देशों के बीच तकरीबन 10 विषयो पर अहम समझौते हुए जिसमें असैन्य परमाणु करार सबसे अहम है । हालांकि भारत ने और कई देशों के साथ भी एटमी ऊर्जा करार कर रखे हैं  लेकिन जापान के साथ इस तरह का समझौते के कई मायने हैं |  जिस तरह मौजूदा दौर में भारत की उर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं उसे देखते हुए जापान के साथ यह करार भारत के लिए फायदे का सौदा बन सकता है | हमारे देश में परमाणु बिजलीघरों के लिए परमाणु समझौते लम्बे समय से अटके पड़े हुए थे । अमरीका के साथ परमाणु करार हो जाने के बाद भी भारत अन्य देशों के साथ परमाणु क़रार को लेकर बीते कई बरस से उत्सुकता दिखा रहा था लेकिन वह पूरी होनी दूर की गोटी लग रही थी । इसका कारण परमाणु अप्रसार की वह संधि थी जिस पर भारत ने साइन नहीं किये हैं जिसके चलते कई देश उसे परमाणु तकनीक की मदद में टालमटोल रवैया अपनाने से बाज नहीं आते थे । मोदी की जापान यात्रा में वैसे तो  सुरक्षा, आतंकवाद, कौशल विकास में सहयोग, अंतरिक्ष और नागरिकों के स्तर पर संपर्क जैसे विषय भी शामिल रहे लेकिन  जापान और भारत के बीच हुआ असैन्य परमाणु करार ही नमो की इस यात्रा की सबसे खास उपलब्धि रही । जापान के साथ हुआ परमाणु करार कई मायनों में ऐतिहासिक है । जापान ने भारत की उर्जा जरूरतों में भागीदार बनने का फैसला किया है और वह भारत को परमाणु उर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा । हालाँकि उसकी तरह से सख्त हिदायत यह भी है भारत ने अगर परमाणु परीक्षण किया तो वह अपना परमाणु करार तोड़ने पर मजबूर हो जायेगा । भारत ऐसा पहला देश है जो एन पी टी पर साइन किये बगैर परमाणु समझौतों की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है | 

मौजूदा दौर में भारत की जरूरत सस्ती बिजली पैदा करना है । लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के प्रभाव को रोकने के लिए अब कोयले के बजाय परमाणु उर्जा उसकी प्राथमिकताओं के केन्द्र में है । ऐसे में जापान के साथ बीते दिनों हुआ यह करार बहुत हद तक उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है । जापान के पास बड़ी मात्रा में यूरेनियम सहित अन्य परमाणु सामग्री है । शांतिपूर्ण कार्यों के लिए आज परमाणु उर्जा की बड़ी जरूरत भारत को है । जापान के सहयोग से इस मामले में भारत की  जरूरतें अब पूरी हो सकती हैं । जापान किसी ऐसे देश के साथ परमाणु करार  नहीं कर सकता  जिसने एनपीटी यानी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नही किये हों इसलिए एटमी ऊर्जा  पर करार भारत के लिए मुश्किल था । तकरीबन 6 बरस से भारत जापान के बीच बातचीत चल रही थी लेकिन कई पेचीदगियों की वजह से इसको आकार नहीं मिल पाया | 1998 में पोकरण के बाद जापान ने भी तकनीकी और आर्थिक प्रतिबन्ध भारत पर भी थोप दिए थे जिसके बाद परमाणु उर्जा की भारत की जरूरतें औंधे मुह गिर गई | दुनिया के ताकतवर मुल्कों की तर्ज पर जापान ने भी भारत पर प्रतिबन्ध लगाये लेकिन आज भारत की वैश्विक साख और बड़े बाजार की जरूरत को देखते हुए जब दुनिया के सभी देश भारत के साथ खड़े हो रहे हैं तो जापान भी अपनी तकनीक के आसरे भारत के साथ कदमताल करने से पीछे नहीं रहना चाहता और परमाणु उर्जा के जरिये भारत के साथ आकर खड़ा हो गया है | 

अमेरिका के साथ हुए भारत के एटमी करार को अंतिम रूप देने में भी कई बरस लगे थे। वर्ष 2007 में इंडो यू एस न्यूक्लियर एग्रीमेंट पर मनमोहन के दौर में जहाँ साइन हुए जिसके बाद एनएसजी समूह की मंजूरी मिली और 6 बरस पहले समझौता अंतिम रूप ले सका ।  जापान के साथ हुए परमाणु करार से एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को एक नया बल मिला है लेकिन चीन की शातिर चालबाजियां अभी भी यहाँ उसकी राह को रोकने का ही काम करेंगी और वह पाकिस्तान की तारीफों के कसीदे पड़े बिना नहीं रह सकता |  मोदी की जापान यात्रा से एशिया प्रशांत संबंधों के मजबूत होते रिश्तों को भी नया बल मिला है । हालाँकि जापान के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते बहुत पुराने रहे हैं लेकिन मोदी की जापान यात्रा से इन रिश्तों को नई ऊँचाई मिलेगी | जापान ने अगले पांच बरसों में तकरीबन 35 अरब डालर निवेश का मन बनाया है जिसमे 12 अरब डालर मेक इन इंडिया के तहत जापानी उद्यमियों को मदद के रूप में दिया जायेगा । मुम्बई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन चलाने के लिए भी जापान मुस्तैदी दिखा रहा है और 2023 तक इसे अमली जामा पहनाया जा सकेगा । जापान एक साथ निर्यात बढाने को भी भारत सरकार की हरी झंडी है । पौने दो फीसदी निर्यात में अब उछाल आने की संभावनाओं से भी हम इनकार नहीं कर सकते ।  मोदी की इस जापान यात्रा के दौरान भारत और जापान ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिसमें आधारभूत संरचना क्षेत्र, रेलवे और अंतरिक्ष एवं कृषि में सहयोग से जुड़े समझौते भी शामिल हैं ।  रेलवे ,परिवहन सरीखे बुनियादी ढांचे के निर्माण में जापान आज हमारा साझीदार है | खगोलीय खोजों में भारत और जापान की स्पेस एजेंसी के बीच भी महत्वपूर्ण समझौता हुआ है जो मील का पत्थर साबित हो सकता है | मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसे मसलों पर भी जापान ने भारत में अपनी रूचि दिखाई है और आधारभूत ढांचे के निर्माण में भारत को मदद का पूरा भरोसा दिलाया है  और अब जापान ने ऐतिहासिक असैन्य परमाणु सहयोग करार पर हस्ताक्षर करके  परमाणु क्षेत्र में दोनों देशों बीच नई इबारत गढ़ने का काम किया है | 

 नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा से यह भी साफ हो गया है कि दोनों देशों के सम्बन्ध अब प्रगाढ़ हो गए हैं। बीते बरस दिसंबर में शिंजो अबे जहाँ भारत आये वही इस साल मोदी का जिस तरह जापान में इस्तकबाल हुआ और जिस तरह वहां के उद्योगपतियों के साथ बैठकों का नया दौर शुरू हुआ है वह भारत जापान के सबसे बेहतर रिश्तों की तरफ इशारा कर रहा है |  दरअसल भारत और जापान दोनों लोकतांत्रिक देश हैं लेकिन दोनों सामरिक मोर्चे पर अपने पड़ोसियों से जूझ रहे हैं । जापान जहाँ पूरी तरह विकसित है वहीँ भारत विकासशील देश है । जापान तकनीक के मामले में भारत से कही आगे है और भारत के ढांचागत विकास में साझीदार बन सकता है । इसकी एक बानगी मेट्रो प्रोजेक्ट में देखी जा सकती है जहाँ जापान की मदद से भारत देश भर में मेट्रो का जाल बिछा रहा है वहीँ अब मेट्रो से इतर बुलेट ट्रेन के सपने को भी पूरा करने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ रहा है | जापान के साथ बुलेट ट्रेन के समझौते को बीते बरस शिंजो अबे की यात्रा के दौरान मंजूरी दी गई । बुलेट ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद के बीच चलेगी और पूरे प्रोजेक्ट का खर्च 98,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है | जापान के पास फिलहाल बुलेट ट्रेन का 2,664 किलोमीटर लंबा ट्रैक है।  आधी शताब्दी पहले ही जापान में बुलेट ट्रेन चलनी शुरु हो गई थी |  1964 में पहली बार जापान में बुलेट ट्रेन चली और अब प्रधानमंत्री मोदी के बुलेट ड्रीम प्रोजेक्ट को जापान के पंख लग रहे हैं । रेलवे , परिवहन ,स्पेस की तकनीक में जापान का कोई सानी नहीं है | मिसाल के तौर पर दिल्ली में मेट्रो रेल की कनेक्टिविटी को ही हम देख लें यह सब आज जापान की ही देन है । कम लागत और कम समय में जापान ने अपने देश में जिस तरह ट्रेनों का बड़ा जाल बिछाया और बुलेट ट्रेन को भी शामिल किया उसने जापान के विकास की रफ़्तार को नयी उड़ान दी है और अब जापान भारत के साथ मिलकर यहाँ भी अमदाबाद से मुम्बई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में भागीदार है । 

 मोदी की जापान यात्रा की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी से चीन आग बबूला है । चीन के धुर विरोधी जापान को गले लगाकर मोदी ने लुक ईस्ट पालिसी का जो नया पासा फेंका है वह भारत की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है क्युकि एन एस जी में चीन भारत का पुरजोर विरोधी रहा है। दुनिया के सभी देश जब भारत के समर्थन में खड़े हैं ऐसे में वह भारत के पडोसी पाकिस्तान को गले लगाकर बैठा है और उसका पडोसी जापान  भारत के साथ परमाणु करार कर अपने संबंधों को मजबूत करता जा रहा है । दरअसल चीन इस दोस्ती को नहीं पचा पा रहा है । उसके विदेश मंत्रालय ने मोदी  की जापान यात्रा के बारे में कड़ी आधिकारिक प्रतिक्रिया व्यक्त की है । चीन दक्षिण चीन सागर पर भारत और जापान के साथ आने को भी नहीं पचा पा रहा । इशारे इशारे में वह  भारत को यह सन्देश देने से पीछे नही है कि इस मामले से दूर रहे और जापान का मोहरा न बने। चीन को यह समझना होगा कि आज का भारत बदला हुआ है | अब उसकी दुनिया में धाक जैम रही है और वह अपने आर्थिक , सामरिक रिश्ते मजबूत करने के लिए खुद लेने के लिए स्वतन्त्र है और उसकी एक विदेश नीति दुनिया में असर दिखा रही है | भारत कोई कमजोर देश नहीं कि वह  किसी की गोद में बैठकर वह खेले | भारत की विदेश नीति  अब मोदिनोमिक्स की छाँव तले नया आकर ले रही है जहाँ दुनिया भारत की ताकत का लोहा मान रही है | चीन ने दक्षिण चीन सागर पर जिस तरह का तल्ख़ रुख अपनाया है  अंतरराष्ट्रीय पंचाट तक के फैसले को वह मानने से तैयार नहीं है  उस पर भारत और जापान का साथ आना उसकी चिंता को बढ़ा सकता है | अमरीका भी चीन को इस मसले पर घेर रहा है जहाँ जापान और भारत करीब आकर चीन का खेल खराब कर सकते हैं | चीन एशिया में अपनी दादागिरी दुनिया को दिखा रहा है | पाकिस्तान को साधकर वह  बलूचिस्तान तक बड़ा व्यापारिक कारिडोर बना रहा है | हिन्द ,प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में अपना सिक्का मजबूत करने की रणनीति को अंजाम तक पंहुचा रहा है उससे भारत, जापान का चिंतित होना स्वाभाविक है | ऐसे में वह उसको घेरने की किसी रणनीति पर तो एक छत के नीचे आयेंगे | चीन ने अपनी शातिर चाल से क्यूराइल  द्वीप पर पूरा हक जताकर जापान को अपना दुश्मन बनने पर मजबूर कर दिया है। जापान न चाहते हुए यह सब देख रहा है | चीन को जापान के सब्र का इम्तिहान नहीं लेना चाहिए वह अपनी विदेश नीति के जरिये आगे बढ़ रहा है और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के साथ दूसरे देशों के साथ अपने सम्बन्ध अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुधार रहा है तो चीन क्यों परेशान है |  

दो एशियाई ताकतों जापान और भारत का साथ आना शायद चीन की असल परेशानी की वजह दिखती है और पी एम मोदी के जापान दौरे के बाद दोनों देशों के बीच दोस्ताना सम्बन्धो को जहाँ मजबूती मिलेगी वहीँ चीन की चिंता बढ़नी तय है | भारत और जापान  दोनों ही चीन की बढ़ती आर्थिक व सैन्य ताकत तथा सतत आर्थिक विकास की साझा रणनीतिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और जापान का साथ आना आज की नई जरूरत बन गई  है | पीएम मोदी की एक्ट ईस्ट नीति और शिंजो आबे का उसी गर्मजोशी से दिया गया जवाब इस दिशा में व्यावहारिक कदम हैं। लुक  ईस्ट पॉलिसी पूर्व एशियाई क्षेत्र में मजबूती हासिल करने की भारत की सामरिक आर्थिक नीतियों में से एक है जिसके  तहत भारत का प्रयास है इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सामरिक , आर्थिक संबंधों को मजबूत किया जा सके | इस नीति पर चलते हुए भारत ने बीते कुछ बरसों में श्रीलंका, सिंगापुर, थाईलैंड, ताइवान , दक्षिण कोरिया  सरीखे देशों के साथ अपने सम्बन्ध मधुर किये हैं और अब इस कड़ी में नया नाम जापान का जुड़ गया है जिससे भारत जापान सम्बन्ध और प्रगाढ़ होने की उम्मीद बंध रही है | 

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