शीत युद्ध वह परिस्थिति है जब दो देशों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध ना होते हुए भी युद्ध की परिस्थिति बनी रहती है । विश्व इतिहास के पन्नो में झाँकने पर यही परिभाषा हर इतिहास के छात्र को ना केवल पढाई जाती रही है बल्कि विश्व इतिहास की असल धुरी की लकीर इन्ही दो राष्ट्रों अमरीका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच खिंची जाती रही है लेकिन अभी जिस तर्ज परअमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति पुतिन की निकटता बढ़ रही है उसने विश्व राजनीती में पहली बार कई सवालों को लाकर खड़ा कर दिया है ?
दरअसल पिछले दिनों जिस तरीके से इन दोनों विश्व के ताकतवर मुल्कों के बीच निकटता देखने को मिली है उसके संकेतो को अगर डिकोड किया जाए तो लग ऐसा रहा है मानो शीत युद्ध की दशकों की बर्फ अब पिघलने के कगार पर आ खड़ी हुई है । इन दोनों देशों के रिश्ते कई दशकों से खराब चल रहे थे लेकिन बीते दिनों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अमेरिका के साथ दरार पाटने और आतंकवाद से निपटने की कोशिश में सहयोग की आशा जिस तर्ज पर जताई है उससे लग रहा है कि अमेरिका और रूस की नई दोस्ती जनवरी 2017 में अब परवान चढ़ सकती है । रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने भी सार्वजनिक रूप में इस इच्छा को जाहिर करते हुए कहा है कि अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोनों देशों के बीच दूरी पाटने में मदद करेंगे।
वैसे दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होने के आसार पहली बार अमरीका के इस नए ट्रम्प काल के दौरान नजर आ रहे हैं जब ट्रंप और पुतिन ने पहली बार फोन पर बात की । फोन पर दोनों नेताओं ने साझे खतरों , रणनीतिक, आर्थिक मामलों पर लंबी बातचीत की । ओबामा के अब तक के दौर के पन्नों को टटोलें तो हालिया बरसों में दोनों देशों के रिश्तों में गंभीर तल्खी दिखाई दी । हाल के बरसों में यह भी साफ तौर पर दिखा रूस और अमेरिका उत्तर कोरिया और ईरान जैसे मामलों पर मिलकर काम कर रहे थे लेकिन असल विवाद की जड़ सीरिया ,दक्षिण चीन सागर और यूक्रेन रहा जहाँ पर दोनों में खुले तौर पर मतभेद पूरी दुनिया के सामने नजर आये । इस बरस भी दोनों देशों में सीरिया के मामले पर समझौता होने के करीब था लेकिन नहीं हो सका। मौजूदा दौर में रूस अपना ध्यान पूर्वी एशिया की ओर पश्चिम से ठंडे रिश्तों की वजह से नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों की वजह से कर रहा है । राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस बात को मान रहे हैं । समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार संघीय सदन को अपने वार्षिक संबोधन में रूस के नेता ने इस बदलाव के पीछे किसी अवसरवादी कारणों से इनकार किया है और दोहराया है कि देश की मौजूदा नीति देश के दीर्घकालिक हितों और वैश्विक झुकाव को लेकर है वहीँ अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि मॉस्को के साथ संबंधों को सामान्य बनाना अमेरिका और रूस दोनों के हित में है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह रूस के साथ संबंधों को सामान्य बनाये जाने के विरोधी नहीं हैं। डोनल्ड ट्रंप ने रूस के साथ संबंधों को सामान्य बनाने में ओबामा सरकार पूरी तरह विफल करार दिया वहीँ रूस के राष्ट्रपति पुतीन ने भी वाशिंग्टन और मॉस्को के संबंधों को सामान्य बनाये जाने का स्वागत किया जिसके बाद अमरीका और रूस नई इबारत गढ़ने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ते दिख रहे हैं ।
बात अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की करें तो राष्ट्रपति के चुनाव में सफल होने से पहले चुनाव रैलियों में हमेशा रूस के साथ तनाव को कम करने और क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में द्विपक्षीय सहकारिता की अपील लोगो से करते दिखाई दिए । वह शुरुवात से ही अमेरिका और रूस के संबंधों में तनाव नहीं चाहते थे । यही नहीं चुनावी प्रचार के दौरान ट्रंप ओबामा को कमजोर प्रशासक कहकर पुतिन की तारीफों के कसीदे पढ़ते दिखाई देते थे । वहीँ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी अब अमेरिका के साथ दरार पाटने और आतंकवाद से निपटने की साझा कोशिश में सहयोग की अपील कर रहे हैं । मास्को में उन्होंने इस आशा को जाहिर करते हुए कह दिया है अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप वाशिंगटन के साथ संबंधों को दुरूस्त करने में मदद कर सकते हैं ।
दरअसल दोनों देशों के बीच संबंध यूक्रेन सीरिया युद्ध और कई अन्य विवादों को लेकर शीत युद्ध के बाद और ज्यादा खराब हुए थे जो दशकों तक खराब दौर में रहे । ट्रंप के आने से पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका और रूस के बीच खराब होते सम्बन्ध को दुनिया के सामने माना था । इसके बाद उन्होंने जोर देकर ओबामा की नीतियों की दुनिया के सामने मुखालफत की थी । 2013 में दोनों देशों के बीच सीरिया के रासायनिक हथियारों को नष्ट किए जाने की योजना का एक बड़ा समझौता हुआ था लेकिन सीरिया में विद्रोही सेना फ्री सीरियन आर्मी के कमांडर जनरल सलीम इदरीस ने यह समझौता ठुकरा दिया था। उनका कहना था कि उन्हें मॉस्को या दमिश्क में काम कर रहे लोगों पर भरोसा नहीं है। रूस के साथ अमेरिका के संबंध गलत दिशा में उस वक्त चले गए जब पश्चिम के देशों ने सोवियत संघ के विद्घटन के बाद रूस को एक राष्ट्र के तौर पर सम्मान नहीं दिया। उसे सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा गया जो कि पश्चिमी देशों के अविश्वास की मुख्य वजह रही है। रूस मानता है कि शीत युद्ध के बाद से उसके साथ पश्चिमी मुल्कों ने ज्यादती की ।
हालांकि पुतिन अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर संजीदा थे। 2013 में जब अमेरिका के पूर्व सीआईए एजेंट ने रूस में छिपने के लिए आवेदन किया था तब रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि रूस और अमेरिका के संबंध किसी जासूसी कांड से अधिक महत्वपूर्ण हैं। पुतिन स्नोडेन को चेतावनी दी थी कि उनका कोई भी कार्य जो रूस और अमेरिका संबंधों को क्षति पहुंचाएगा अस्वीकार्य है। अमेरिकी की गोपनीय जानकारी लीक करने के बाद से स्नोडेन वहां अपराध के मामले में वांछित हैं लेकिन रूस ने उन्हें शरण करने से इनकार कर दिया। स्नोडेन को आखिरकार रूस ने अस्थाई रूप से एक वर्ष के लिए शरण दे दी थी। स्नोडेन को शरण देकर रूस ने अमेरिका के साथ कूटनीतिक मतभेद का खतरा मोल लिया था ज्सिके बाद अमेरिका ने स्नोडेन को शरण दिए जाने की संभावनाओं को बेहद निराशाजनक बताया था जिसके एक बरस बाद अमरीका ने रूस के खिलाफ अपना रुख कड़ा करते हुए यह धमकी दी थी कि अगर वह यूक्रेन के तनाव को कम करने के लिए नए अंतरराष्ट्रीय समझौते का पालन करने में विफल रहता है तो उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे जिस पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया दी जिससे दोनों के रिश्ते काफी तल्ख हुए थे।
2014 में ऑस्ट्रेलिया में सम्पन्न जी 20 देशो की बैठक में भाग लेने गए रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन बीच बैठक को छोड़कर अपने देश लौट गए जिसने अमरीका से लेकर यूरोप तक हलचल मचाने का काम किया । इसी दौर में रूस ने क्रीमिया में कब्ज़ा कर लिया और इसके बाद पुतिन के निशाने पर यूक्रेन आ गया जहाँ पर कब्ज़ा जमाने और पाँव पसारने की बड़ी रणनीति पर रूस ने काम शुरू भी कर दिया था और पश्चिमी देशो की एक बड़ी जमात ने रूस को सीधे अपने निशाने पर लेते हुए युक्रेन में अनावश्यक दखल ना देने की मांग के साथ ही उस पर कठोर प्रतिबन्ध लगाने की घुड़की देने से भी परहेज नहीं किया जिसका असर यह हुआ पुतिन को बीच में ही यह सम्मेलन छोड़ने को मजबूर होना पड़ा ।
क्रीमिया को लेकर भी 2014 के बरस में रूस की मोर्चेबंदी शुरुवात से ही जारी रही वहीँ जुलाई 2014 में मलेशिया के एम एच 17 विमान गिराने को लेकर भी पूरी दुनिया की निगाहें रूस पर लगी रही जिसमे उसके शामिल होने और संलिप्तता के खूब चर्चे पश्चिम के देशों में हुए । क्रीमिया पर टकटकी लगाये जाने से रूस पूरी दुनिया की निगाहों में भी खटका और पश्चिम के कई देशों ने पुतिन पर एक के बाद एक तीखा हमला करना शुरू कर दिया । शुरुवात से सुपर पावर अमेरिका ने कहा यूक्रेन में रूस का हस्तक्षेप पूरी दुनिया के लिए खतरा है वहीँ ब्रिटेन की यह धमकी दी कि अगर रूस ने अपने पड़ोस को अस्थिर करना नहीं छोड़ा तो उस पर नए प्रतिबंध लगाए जाएंगे। रही-सही कसर कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने पूरी कर दी। हार्पर ने कहा कि वह उनसे हाथ नहीं मिलाएंगे । इसके ठीक बाद अमरीका ने अपनी सधी चाल से ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री को साधकर एक प्रस्ताव पास किया जिसमे रूस से मलेशियाई विमान के हादसे में मारे गए लोगो को न्याय देने से लेकर क्रीमिया को मुक्त करने से लेकर यूक्रेन के पचड़े में ना फंसने का अनुरोध किया । इसी प्रस्ताव के आने के बाद पुतिन पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुट हो गए । देखते ही देखते रूस के बैंकों रक्षा और ऊर्जा कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया गया। यह कार्रवाई रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध कठोर करने के यूरोपीय संघ के फैसले के बाद की गई। यूक्रेन के बहाने अमेरिका ने जो निशाना साधा उससे रूस को कई तरह के आर्थिक नुकसान होने के आसार बन गये क्युकि अमरीकी दवाब में अब पश्चिमी देश और यूरोपियन यूनियन रूस पर आक्रामक रुख अपनाना शुरू कर दिया जिसमे अमरीका भी रूस के खिलाफ हो गया । वैसे यूक्रेन मसले को सुलगाने में अमेरिका का भी बड़ा हाथ रहा | 2009 में नाटो विस्तार के बाद से ही एशियाई देशों में भी कई तरह की गतिविधियां बढ़ी । फिर भी कई एशियाई देशों का अमेरिका की तरफ झुकाव जारी रहा जिसके कारण रूस अब पहले से अलग-थलग पड़ गया जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान भी पहुंचा ।
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के सहयोगी व्लादीमिर ज़िरीनोवोस्की ने इस बार अमरीकी चुनावों के दौरान दावा करते हुए कहा है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार ही एक ऐसे व्यक्ति है जो मास्को और वाशिंगटन के बीच बढ़ रहे तनाव को रोक सकते है। ज़िरीनोवोस्की का यह बयान ऐसे समय में आया जब सीरिया और यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका के बीच स्थितियां बेहद तनावपूर्ण हो गई । साथ ही उन्होंने अमेरिका के लोगों के सामने विकल्प रखते हुए कहा या तो वे आगामी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप को वोट देकर जिताएं या फिर परमाणु युद्ध का जोखिम उठाएं। इतना ही नहीं रॉयटर्स से बात करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि अगर वे ट्रंप को वोट देते हैं, तो वे इस दुनिया में शांति कायम रखने का विकल्प चुनेंगे लेकिन अगर वे हिलरी को वोट देते हैं, तो यह युद्ध का चुनाव होगा। दुनिया में हर जगह हिरोशिमा और नागासाकी दिखाई देंगे जिसके बाद ओबामा की पार्टी ने रूस को अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में दखल ना देने की अपील भी की और उसके खिलाफ आँखें भी तरेरी ।
अब अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत से अमेरिका रूस के संबंध सुधारने में मदद मिल सकती है । व्लादिमिर पुतिन और डोनाल्ड ट्रंप दोनों नेता एक दूसरे की तारीफों में कसीदे भी पढ़ चुके हैं लेकिन अब असल विवाद की जड़ चीन और पाकिस्तान बन सकता है जिन पर दोनों का रुख विपरीत है । दक्षिण चीन सागर में रूस इस बरस चीन के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास कर चुका है। हालांकि यह इलाका दक्षिण चीन सागर के उस विवादित क्षेत्र से दूर है लेकिन रूस का चीन के साथ कदमताल करने का फैसला ट्रम्प की दोस्ती में रोड़ा बन सकता है । अमरीका की तरह वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, ताइवान और फिलीपींस पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे का विरोध कर रहे हैं। फिलीपींस चीन को दक्षिण चीन सागर के मसले पर अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल हेग में घेर चुका है जिसका फैसला भी चीन के खिलाफ आया फिर भी रूस चीन के साथ खड़ा रहा । चीन के महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट 'वन बेल्ट वन रोड' से भी रूस गदगद है, क्योंकि इसका रास्ता रूस के साइबेरिया से भी गुजरेगा और उसे आर्थिक लाभ होंगे। अब ट्रम्प इस चाल की कौन सी काट निकालते हैं यह देखना होगा ? इसी तरह चीन पाक के करीब है तो रूस भी भारत अमरीका के साथ आने से पाकिस्तान में अपने लिए संभावना देख रहा है । वह पाकिस्तान के साथ भी सैनिक अभ्यास कर चुका है और बीते दिनों अमृतसर में सम्पन्न हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में साफ़ कह चुका है अफगानिस्तान को भारत पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद की लडाई में यूज कर रहा है । यानि रूस चीन और पाक को साधकर एशिया में इस दौर में नया त्रिकोण बनाना चाहता है । उधर पाकिस्तान ने निर्यात के लिए सामरिक महत्व के ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल करने के लिए रूस के अनुरोध को मंजूरी दे दी है जबकि अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प चीन और पाक के खिलाफ चुनाव पूर्व तीखे बयान दे चुके हैं । वह भारत के पी एम मोदी की तारीफों के पुल बाँध चुके हैं तो पाकिस्तान को आतंकवाद के मसले पर कठघरे में खड़ा करते नजर आये हैं । अब ऐसे में ट्रम्प और पुतिन की दोस्ती किस करवट बैठती है यह देखने लायक बात होगी । यह बहुत हद तक ट्रम्प की भावी विदेश नीति के रुख पर निर्भर करेगा वह अब क्या रुख अपनाते हैं । अगर दाव सही पड़ा तो अमरीका और रूस के बीच दशकों पुरानी शीत युद्ध की परत पिघल सकती है ।
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