बिहार की सत्ता पर ठसक के साथ तीसरी बार काबिज होने वाले जेडीयू अध्यक्ष और सूबे के सीएम नीतीश कुमार ने मिशन 2019 के लिए अभी से मुनादी कर डाली है । नीतीश ने 2019 लोकसभा चुनाव की ज़मीन तैयार करते हुए भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता को हवा देनी शुरू का दी है । 11 मार्च के बाद अगर पीएम मोदी का औरा फीका पड़ता है और भाजपा सकारात्मक परिणाम पांच राज्यो के विधान सभा चुनावों में हासिल करने में नाकामयाब रहती है तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ महा गठबंधन बनाने में नीतीश उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं जिससे 2019 में मोदी सरकार की विदाई हो सकेगी । साथ ही उन्होंने उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को साधकर अपने पत्ते भी खोल दिए हैं । बीते दिनों उन्होंने नवीन पटनायक से मुलाकात में यह भी साफ़ कर दिया आगामी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के प्रत्याशी के तौर पर विपक्ष अपना मजबूत उम्मीदवार उतारने पर विचार कर सकता है । नीतीश का साफ़ मानना है अगर बीजेपी का हराना है तो तमाम पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। नीतीश की हुंकार के बाद लग रहा है कि पी एम मोदी के खिलाफ 11 मार्च के बाद वह उसी तरह की गोलबंदी सभी दलों को साधकर करना चाहते हैं जैसा प्रयोग उन्होंने बिहार में किया ।मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत की तर्ज पर नीतीश ने भरोसा ही नहीं उम्मीद जताई है भाजपा को महागठबंधन की तर्ज पर पराजित किया जा सकता है।
तो क्या माना जाए नीतीश ने बिहार से निकलकर पहली बार राष्ट्रीय राजनीती में सक्रिय होने के संकेत दे दिए हैं और क्या पहली बार बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर सभी दल नीतीश की छाँव तले एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ बड़ी मोर्चाबंदी 11 मार्च के बाद करने जा रहे हैं । इन शुरुवाती संकेतों को डिकोड करें तो विपक्ष की कमान अपने हाथ में लेते ही नीतीश कुमार के निशाने पर अभी से 2019 आ चुका है जिसके खिलाफ वह माहौल बनाने में जुट गए हैं जिसकी शुरुवात आने वाले दिनों में उनके दक्षिण के राज्यो के सघन दौरे से होने जा रही है । यह भाजपा को शिकस्त देने के लिए गैर भाजपाई दलों को एक झंडे के नीचे लाने की कोशिश मानी जा सकती है ।
नवीन पटनायक के साथ नीतीश जब मुलाक़ात कर रहे थे तो उनकी नजरें शायद भारतीय राजनीती की इस ऐतिहासिक इबारत की ओर भी जा रही थी । शायद इसलिए उन्होंने 11 मार्च से पहले गैर भाजपा दलों और अपने कार्यकर्ताओ को तैयार रहने की सलाह इशारो इशारो में दे डाली है । आत्मविश्वास से लबरेज नीतीश राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने में सिर्फ उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं । उत्प्रेरक किसी भी क्रिया की गति को बढाने में सहायक है लिहाजा नीतीश की राष्ट्रीय राजनीती में सार्थकता को कम नहीं आँका जा सकता । वहीँ जद यू को भी उम्मीद है नीतीश की साफ़ छवि और सुशासन बाबू की छवि को ढाल बनाकर 2019 से पहले वह गैर भाजपा दलों को अपने पाले में लाकर गठबंधन में स्वीकार्यता बढ़ा सकते हैं । यूँ तो 2019 की चुनावी बिसात अभी बहुत दूर है मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काट की तैयारी नीतीश अभी से करने लगे हैं।विपक्षी दलों की एकजुटता मोदी के मुकाबले नीतीश कुमार पर फिट बैठ रही है । बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी उनका इस समय भरपूर साथ दे रहे हैं। लालू ने तो बीते बरस ही यहां तक कह दिया कि नीतीश एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे तो हमें खुशी होगी।
उम्मीदों और देश की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर नीतीश द्वारा भाजपा के खिलाफ गोलबंदी का प्रयोग आसान नहीं लगता क्युकि बिना उत्तर प्रदेश फतह किये बिना दिल्ली में अगली सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाने के सपने देखना मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है । यू पी में 11 मार्च को कांग्रेस सपा महागठबंधन के मजबूत होने की सूरत में ही नीतीश प्रधान मंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं लेकिन यहाँ पर भी राजनीती के दिग्गज नेताजी को साधना नीतीश के लिए आसान नहीं होगा । अतीत में नेताजी महागठबंधन से बिहार चुनावों से पहले ही खुद बाहर हो चुके हैं । सपा और बसपा के इर्द गिर्द ही यू पी की राजनीती घूमती रही है लेकिन मोदी को रोकने के लिए और नीतीश को पी एम उम्मीदवार बनाने के लिए यह दोनों दल अपने गिले शिकवे भुलाकर साथ आयेंगे ऐसा कहना दूर की गोटी है । रही बात अजीत सिंह की तो उनका पश्चिमी यू पी पर जबरदस्त प्रभाव है लेकिन फिलहाल वह अपने पत्ते 11 मार्च के बाद फैंटने की सूरत में होंगे । ऐसा ही हाल झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का है जिनका कोई नावलेवा अब नहीं बचा है ।ममता नीतीश को लेकर साथ आ सकती है लेकिन क्या वह नीतीश को बड़ा चेहरा बनाएगी ? तो ऐसे हालातों में नीतीश के पी एम के सपनों को भला कैसे पंख लग पायेंगे ? नीतीश के बारे में कहा जा रहा है वह भविष्य में लोक सभा चुनावों से पहले अपनी पार्टी जद यू ,राजद, झारखंड विकास मोर्चा , आर एल डी का विलय कर जनविकास दल नाम की नई पार्टी खड़ी करना चाहते हैं लेकिन पांच राज्यों में भाजपा के मजबूत होने के चलते इनका यह प्रयोग पूरे देश में साकार हो पायेगा इसमें संशय है । बिहार देश नहीं है और देश का मतलब इस दौर में बिहार नहीं है । हर राज्य की परिस्थितिया कमोवेश अलग अलग हैं और आज का वोटर भी अब बदल चुका है । राष्ट्रीय राजनीती अपनी जगह है और राज्यों में छत्रपों के वर्चस्व हो हम नहीं नकार सकते । मुलायम सिंह , मायावती , नवीन पटनायक , ममता ,केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला क्यों अपने राज्यों को नीतीश की पार्टी के हवाले कर देंगे और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे ? नीतीश का साथ बिहार में कांग्रेस ने दिया और कांग्रेस ने यू पी में सपा से गठबंधन किया । सोनिया का प्रयोग बिहार में सफल रहा लेकिन देश के मसले पर कांग्रेस भी अपनी 132 बरस पुरानी साख क्यों नीतीश के साथ जाने से खोएगी ? वैसे अगर यू पी में अखिलेश अच्छा प्रदर्शन कर ले जाते हैं तो वह भी खुद पी एम की कतार में खड़े हो सकते हैं । क्या वह भी नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार कर पाएंगे ?नीतीश कुमार ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए गैर भाजपा दलों से एकजुट होने की अपील की है।उन्होंने भरोसा दिलाया कि भाजपा विरोधी दलों कांग्रेस वामदल और अन्य क्षेत्रीय दलों को 2019 से पहले एक साथ लाने के लिए प्रयासरत रहेंगे ।
राजनीती संभावनाओ का खेल है और यहाँ महत्वाकांशा हिलारे मारती रहती है। इस समय नीतीश के साथ भी यही हो रहा है ।अलग मोर्चा बनाने के कई बार प्रयास हो चुके हैं मगर यह मोर्चे बहुत दूर तक सफर तय नहीं कर पाए।1996 में नेताजी ने अपने पैतरे से केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनाने की मंशा पर जहाँ पानी फेरा था वही बाद में वह रक्षा मंत्री बन गए। 1999 में अटल बिहारी की सरकार गिरने के बाद अपनी दूरदर्शिता से कांग्रेस को गच्चा देकर उसे सरकार बनाने से रोक दिया था । वही नेताजी ने 2004 में न्यूक्लिअर डील पर यू पीए 1 को संसद में विश्वासमत प्राप्त करने में जहाँ मदद की वहीँ यू पीए 2 के तीन साल के जश्न में वह शरीक भी हुए तो वहीँ मौका आने पर कांग्रेस के साथ रहकर उसी के खिलाफ तीखे तेवर दिखने से बाज नहीं आये । उसकी नीतियों को कोसते हैं और तीसरे मोर्चे का राग अपनी राष्ट्रीय कार्यकारणी में कई बार अलापते रहे जिसमे वह भाजपा -कांग्रेस दोनों को किनारे कर लोहियावादी, समाजवादी , वामपंथियों को साथ लेकर राजनीति की नई लकीर उसी तर्ज पर खींचते दिखाई दिए जो उन्होंने 1996 में नरसिंह राव के मोहभंग के बाद खींची थी । इसके बाद देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल को साधकर तीसरे मोर्चे का दाव खेल गया लेकिन यह प्रयोग भी असफल रहा । यू पी ए के दौर में प्रोग्रेसिव अलाइंस बनाने की बातें भी खूब हुई लेकिन चुनाव से पहले यह प्रयोग भी फुस्स हो गया ।3 बरस पहले ही लोकसभा चुनाव के समय नेताजी ने तमाम छोटे दलों को जोड़ कर भाजपा और कांग्रेस के सामने तीसरे मोर्चा के रूप में सशक्त चुनौती पेश करने की पहल की थी पर वह नाकामयाब रहे। अब नीतीश कुमार मोदी का भय दिखाकर सभी पार्टियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं। भविष्य में उनकी कोशिश अपनी शराबबंदी की योजना को पूरे देश में प्रचारित करने की है । इसे ब्रांड इमेज बनाने का कार्य प्रशांत किशोर करने जा रहे हैं ।
दरअसल जब लोग भाजपा और कांग्रेस से ऊब जाते हैं तब वह तीसरे विकल्प की तरफ चले जाते हैं। लेकिन जब यह दल सत्ता में रहते हैं तो इनके राजनीतिक हित टकराने लगते हैं। देश में अब माहौल बदल चुका है । विकास के नाम पर ही अब वोट मिल रहे हैं इस बात को हमें समझने पड़ेगा । आज का भारत नब्बे के दशक वाला नहीं रहा जब मंडल कमंडल ने देश की राजनीती को झटके में बदल दाल था । आज हर क्षेत्रीय दल का अपना समीकरण है तो पार्टियां भी जातीय राजनीती के दंगल से अपने को बाहर नहीं निकाल पा रही हैं । देश में क्षेत्रीय स्तर पर सभी विपक्षी दलों के आपस में टकराव हैं। जहां सपा होगी वहां बसपा के लिए साथ देना गवारा नहीं होगा। द्रमुक और अन्नाद्रमुक एक साथ नहीं होना चाहेंगे। इस तरह अगर देखें तो नीतीश का सभी पार्टियों को साथ लाने का सपना तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक विपक्षी दल अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर न उठें। बड़ा सवाल है क्या 11 मार्च के बाद देश की सियासत बदलेगी ? अगर भाजपा कमजोर हुई और मोदी की साख घाट गयी तो क्या यह विपक्ष की एकजुटता नया रंग होली के बाद छोड़ेगी ? ये ऐसे सवाल हैं जो इस समय पूरे देश में उमड़ गुमड़ रहे हैं ।
राजनीती की नई बिसात में 11 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार कुछ ऐसी खिचड़ी पकाना चाह रहे हैं जिससे भाजपा से इतर एक नयी मोर्चाबंदी केंद्र में शुरू हो सके जिसकी कमान वह खुद अपने हाथो में लेकर सियासत में नई लकीर खिंच सकें । 1996 में जब नरसिंहराव सरकार से लोगो का मोहभंग हो गया तो नेताजी ही वह शख्स थे जिसने समाजवादियो , वामपंथियों, लोहियावादी विचारधारा के लोगो को एक साथ लाकर उस दौर में शरद पवार के साथ मिलकर एक नई बिसात केंद्र की राजनीती में चंद्रशेखर को आगे लाकर बिछाई थी । उसी तर्ज पर चलते हुए नीतीश अपना राग गा रहे हैं ,साथ में तीसरे मोर्चे के लिए भी हामी भरते दिख रहे हैं । दशकों बाद वह गैर भाजपाई मोर्चे के लिए अपनी शतरंजी बिसात बिछाने में लग गए हैं । 11 मार्च के बाद विपक्ष की एकजुटता का सही से पता चल पायेगा । अगर मोदी का जादू चल गया तो विपक्ष की एकता फीकी पड़ जाएगी और अगर भाजपा हारी तो यह प्रधानमंत्री की करारी हार होगी क्योंकि इन पांच राज्यों के चुनावों में मुख्य चेहरा मोदी ही रहे जिनके इर्द गिर्द पूरी चुनावी कैम्पैनिंग हुई । राजनीती के अखाड़े में चतुर नीतीश कुमार इस बात को बखूबी समझ रहे हैं 11 मार्च को अगर मोदिनोमिक्स की हवा निकलती है तो भाजपा के खिलाफ तब विपक्ष पूरा एकजुट नहीं हुआ तो समय हाथ से निकल जायेगा। वैसे भी नीतीश कुमार के पास पी ऍम बनने का सुनहरा मौका शायद ही होगा जिसमे 1996 की तीसरे मोर्चे से हुई गलतियों से सीख लेकर एक नई दिशा में देश को ले जाने का साहस दिखा सकते है । वैसे भी इस समय देश में कांग्रेस ढलान पर है तो भाजपा पर भी 11 मार्च को लेकर साढ़े साती चल रही है ।
11 मार्च के बाद मोदी के लिए आने वाले ढाई बरस चुनौतियों भरे रहेंगे वहीँ नीतीश के सामने भी आने वाले बरसों में उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती है । मोदी के सामने पूरा देश है तो नीतीश के सामने बिहार । मोदी गुजरात मॉडल के बूते जब 7 रेस कोर्स का सफर तय कर सकते हैं तो नीतीश भी अपने बिहार मॉडल और सुशासन बाबू के शराबबंदी के आसरे देश में नई लकीर खींचने का माद्दा तो रखते हैं शायद यही वजह है नीतीश कुमार को लेकर विपक्ष के कैडर मे जोश है और अगर 11 मार्च को भाजपा आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पायी तो केंद्र में मोदी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी । ऐसे में बिहार मॉडल के आसरे नीतीश दिल्ली जीतने की तैयारी विपक्ष को एक छतरी तले लाकर कर सकते हैं । 11 मार्च के बाद तीसरे मोर्चे की सियासत को आगे बढाने का बेहतर समय नीतीश के पास आ सकता है । नीतीश इसके मर्म को शायद समझ भी रहे हैं । ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि राजनीती के अखाड़े में नीतीश का 11 मार्च के बाद विपक्ष की एकजुटता का दाव कितना कारगर होता है और पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद विभिन्न राज्यों के छत्रप किस तरह उनके इस कदम पर ताथैय्या करते हैं । फिलहाल 11 मार्च का इन्तजार हर किसी को है ।
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