फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव संपन्न हो गए जिसमे एमानुएल मैक्रोन की शानदार जीत हुई है | चुनाव से पहले उनके बारे में तरह तरह की बातें कही गयी लेकिन तमाम कयासों को धता बताते हुए उन्होंने कुर्सी पा ही ली | मैक्रोन एक ऐसे पहले बैंकर हैं जिन्होंने पहली बार जिन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी और झटके में दक्षिणपंथी मरीन ली पेन को हराया। इस चुनाव में मैक्रोन को 65.5 से 66.1 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। दूसरी ओर मरीन ली पेन 34.5 प्रतिशत तक ही सिमट गई | मैक्रोन ने अपनी इस ऐतिहासिक जीत को फ्रांस हेतु नई संभावनाओं विश्वास से भरे अध्याय की शुरुवात बताया है । फ्रांस के इस चुनाव में खास बात युवा वोटरों का मैक्रोन के साथ ख़ास तरह का झुकाव और उत्साह देखने को मिला | खासतौर से शहरी युवा वोटरों ने उन्हें आँखों पर बिठाया जिसका नतीजा आज सबके सामने है | मैक्रोन की यह जीत दक्षिणपंथियों के लिए किस सदमे से काम नहीं है क्युकि हाल के बरस में पूरी दुनिया में दक्षिणपंथियों की जीत की सुनामी भारत से लेकर अमरीका और यूरोप तक चली है जिसने पहली बार वैश्विक स्तर पर एक अजीबोगरीब तरह की हलचल पैदा की है | राष्ट्रपति चुनाव में मिली इस ऐतिहासिक जीत के बाद अब मैक्रोन को बधाई देने वालों की बाढ़ आयी हुई है लेकिन उनकी नीतियां न केवल अब फ्रांस के भविष्य को तय करेगी बल्कि आतंकवाद और प्रवासियों के मसले पर कोई नई लेकर खींची जाएगी ऐसी आशा फ़्रांस के शहरी , मध्यम , प्रगतिशील तबके को है |
मैक्रोन का जन्म 21 दिसंबर 1977 को फ्रांस के एमियेंज में हुआ। फिलोसोफी से छात्र रहे एमानुएल साल 2004 में ग्रेजुएट होने के बाद इनवेस्टमेंट बैंकर बन गए। 2006 से 2009 के बीच वह सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य भी रहे । 2012 में पहली बार जब ओलांद की सरकार जब बानी तो तब मैक्रोन को डिप्टी सेक्रेटरी जनरल चुना गया। 2014 में मैक्रोन ने वित्त मंत्री का जिम्मा संभालने के साथ ही अगस्त 2016 में उन्होंने सरकार से इस्तीफ़ा देकर राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सबको चौंका दिया और संयोग देखिये झटके में फ्रांस के भीतर उन्होंने नया करिश्मा कर अपनी नयी इबारत गढ़ने की तैयारी कर ली | उनकी जीत के साथ आज फ्रांस में एक नयी सुबह की शुरुवात हुई है | पहली बार दक्षिणपंथी ताकतों को जनता ने नकार दिया है और ओलांद की सरकार के खिलाफ आक्रोश को अपनी वोट की ताकत से हवा देने का काम किया है | इस चुनाव के एक सच यह भी है कि हर तीन में से एक मतदाता ने या तो किसी के पक्ष में भी वोट देना ठीक नहीं समझा | फ्रांस में 1958 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, कि चुना गया राष्ट्रपति फ्रांस के दो प्रमुख राजनीतिक दलों, सोशलिस्ट और रिपब्लिकन पार्टी से नहीं है।
इसके साथ ही अब फ्रांस के नए राष्ट्रपति मैक्रोन के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया है | आज फ्रांस को आतंकवाद , प्रवासियों के संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दो पर बेहतर काम करना है । चुनावी अभियान में मैक्रोन इन मुद्दों को शालीनता के साथ हवा देते रहे | मैक्रोन की जीत से यूरोपियन संघ को काफी राहत मिली है | उसके नेताओं ने इस चुनाव परिणाम का खुले दिल से स्वागत किया है | इसका बड़ा कारण उनका यूनियन के प्रति विश्वास है | अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद यूनियन के नेताओं को आशंका थी कि कहीं फ्रांस की सत्ता भी राष्ट्रवादी समर्थक मरीन के हाथ में न चली जाए शायद यह वजह रही इन चुनावों में ओबामा मैक्रोन के साथ खुलकर खड़े दिखे और उन्होंने उनकी तारीफों के कसीदे भी खूब पड़े | जीत के बाद मैक्रोन ने कहा हम भय के सामने हार नहीं मानेंगे | विभाजन की कोशिशों के सामने घुटने नहीं टेकेंगे| ऐसा करके उन्होंने अगले पांच साल के लिए सबको साथ लेकर चलने का रोडमैप बना दिया है | साथ ही अतिवाद के समर्थन में वोट न डालने की अपील कर अपने बुलंद इरादे जता दिए हैं | अपने प्रचार अभियान में मैक्रोन ने फ्रांस को ज्यादा बिजनेस फ्रेंडली देश बनाने और कॉरपोरेट टैक्स कम करने का वादा किया था | अब उन्हें काम करके दिखाना होगा | उदार मध्यमार्गी मैक्रोन व्यापार समर्थक और यूरोपीय संघ के समर्थक हैं। मैक्रोन ने चुनावी सभाओं में 5000 बॉर्डर गार्ड्स की फोर्स बनाने के साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रीयता हासिल करने के लिए फ्रैंच भाषा का राग भी छेड़ा | अपने चुनाव अभियान के दौरान मैक्रोन ने कहा राज्य को निरपेक्ष रहना चाहिए क्योंकि धर्मनिरपेक्षता फ्रांस हृदय में है | साफ़ है वह धर्म के नाम को किसी बड़े विभाजन के साफ़ खिलाफ हैं |
फ्रांस पिछले कुछ समय से मुस्लिम आतंकवादियों का दंश झेल रहा है जहाँ आई एस आई एस आये दिन आतंकी वारदातों में शामिल रहा है | शरणार्थियों का मुद्दा राष्ट्रपति चुनावों में अहम मुद्दा रहा | शरणार्थी संकट के दौर में फ्रांस में लाखो शरणार्थी आये लेकिन कई आतंकी हमलों के बाद धर्मनिरपेक्ष देश में मुसलिम आबादी के साथ तनाव बढ़ गया | पिछले दिनों फ्रांस में तमाम आतंकी हमले हुए हैं जिसके चलते यूरोप में असहिष्णुता का भाव बढ़ा है । आज दुनियाभर में शायद इस्लामोफोबिया का डर हावी है, लेकिन यूरोप में यह कुछ ज्यादा है। मैक्रोन को इस दलदल से फ्रांस को बाहर निकालना होगा | इस जीत के साथ ही उन्होंने काफी समय से फ्रांस की राजनीति में हावी रही रिपब्लिकन पार्टियों की जड़ें हिला दी हैं लेकिन मैक्रोन की पार्टी एन मार्शे के पास संसद में एक भी सीट नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव के बाद अगले महीने ही संसदीय चुनाव होने हैं। मैक्रोन को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए गठबंधन का सहारा भी लेना पड़ सकता है। संसदीय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों को भी साधना पड़ सकता है | फ्रांस के खर्च में बड़ी कटौती करने की दिशा में भी उन्हें कदम बढ़ाने होंगे | सामाजिक सुरक्षा और सरकारी नौकरियों पर इसी खर्च के चलते तलवार की तरह लटक रही है | मैक्रोन की नीतियां इसके समर्थन में हो सकती हैं| बहुत संभव है वह राजकोषीय घाटे के लिए कटौती को मुकाम तक ले जायेंगे | अपने चुनावी अभियान में मैक्रोन ने बजट में 60 अरब यूरो की बचत करने का लक्ष्य पहले ही रखा था अब देखने वाली बात होगी वह कौन सी नयी राह चुनते हैं जिससे अवसर मिल सकें | मैक्रोन के सामने युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे | युवा इस चुनाव में खुलकर आये है इसलिए नौकरियों का नया पिटारा फ़्रांस में उन्हें खोलना ही होगा | मैक्रोन ने चुनाव के दौरान श्रम बाजार में सुधारों की बात कही है साथ ही कमजोर कमजोर श्रम कानूनों को बदलकर रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराना उनके चुनावी एजेंडे में रही भी है | साथ ही उन्हें आर्थिक सुधारों की दिशा में भी मजबूती के साथ अपने कदम बढ़ाने होंगे |
इसके साथ ही आतंकवाद के मोर्चे पर उन्हें बड़ी लड़ाई लड़नी होगी | खूबसूरत फ्रांस को पिछले कुछ बरस से आतंकी हमलों की नजर लग चुकी है जिनमें कई निर्दोष देशी और विदेशी नागरिको की जानें जा चुकी हैं | आतंरिक सुरक्षा पिछले कुछ बरस में ढुलमुल रही है जिसके चलते एक के बाद एक आतंकी हमलों से फ्रांस दहलता रहा | मैक्रोन को आतंकवाद पर कठोर रवैया अपनाना होगा | वैसे मैक्रोन अपनी नयी सियासी पारी खेलने जा रहे हैं | अब उनको अपने काम के दम पर अब खुद को साबित करना होगा | देखना दिलचस्प होगा वह खुद के लिए क्या प्राथमिकताएं आने वाले दिनों में तय करते हैं ?
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