Monday 2 March 2020

दिल्ली भाजपा की उम्मीदों पर फिर से लगा झाड़ू






दिल्ली  की सरजमीं  में अरविन्द  केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने दिल्ली में वह सब तीसरी बार  करके दिखा दिया  जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी । कहाँ  तो  चुनाव से पहले  भाजपा और आप  की लड़ाई दिल्ली में कांटे की  बताई  जा रही थी और जब चुनाव परिणाम आये तो भाजपा के  चुनावी प्रबंधकों के तोते उड़ गए । किसी ने ठीक ही कहा है आप पर जितने व्यक्तिगत हमले होते हैं उतनी मजबूती के साथ उभरकर सामने आते हैं । दिल्ली के चुनावो के चुनावी परिणामों को डिकोड करें तो जेहन  में यही तस्वीर उभरकर सामने आती है ।  दिल्ली में आप की  प्रचंड बहुमत से जीत ने राष्ट्रीय राजनीती में उस शख्स  का कद बड़ा दिया है जिसे अब तक भगोड़ा ,  अराजकवादी, आतंकी और नक्सली करार दिया जा रहा था ।  दिल्ली चुनाव जीतकर केजरीवाल  ने सही मायनों में अपनी नई छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में भावी  फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है । 2019 के लोक सभा  चुनावो  में  जिस तरह आप के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी उससे   यह लगने  लगा था यह पार्टी जल्द हुई बिखर जाएगी  लेकिन केजरीवाल ने  साढ़े चार बरस जिस तरह केंद्र राज्य की नूराकुश्ती में गुजारने के बाद आखिर  के 6 महीने  जिस तरीके से दिल्ली की सडकों  पर कार्यकर्ताओ को साधकर  अपनी बिसात बिछाई   उसने इस भ्रम को हकीकत में बदलने के बजाए  तोड़  दिया । आप पार्टी  के बारे में उनके विरोधी का  एक बड़ा तबका इस बार  जीत  को लेकर बेहद आशंकित था ।  इस बार   दिल्ली चुनाव में जिस   तरीके से गृह मंत्री अमित शाह  की टीम  राज्य  में  लगी हुई थी उससे दिल्ली की लड़ाई में इस बार भाजपा  के मैजिक चलने के आसार   बताये जा रहे थे  शायद तभी  कहा जाने लगा था दिल्ली का  यह चुनाव मोदी सरकार के अब तक  का कार्यकाल के  एसिड  टेस्ट  से कम नहीं है |  इस बार के चुनाव में जिस तरह एनआरसी के मसले की गूंज सुनाई दी उसने ध्रुवीकरण की राजनीतिक जमीन भाजपा के सामने तैयार कर दी जिससे यह माना जाने लगा था भाजपा शाहीनबाग़ के प्रकरण को भुनाने की पूरी तरह से तैयार है   लेकिन केजरीवाल  ने अपने बूते दिल्ली  फतह  कर यह बता दिया सधी हुई रणनीति से चुनाव कैसे जीते जाते हैं | | 



दिल्ली चुनाव में एक छोर  पर केजरीवाल थे तो दूसरे छोर  पर 240   सांसदों  से लेकर  केंद्रीय मंत्रियों और दूसरे  राज्य से दिल्ली लाये गये भाजपा नेताओं  और कार्यकर्ताओं की टोली जो दिल्ली में  भाजपा की जीत  के लिए एड़ी चोटी  का जोर लगा रही थी । इन सभी ने केजरीवाल पर इतने ज्यादा व्यक्तिगत हमले किये जिसके बाद केजरीवाल दिल्ली की मजबूत दीवार बनकर उभरे । भाजपा का यही  नकारात्मक चुनाव प्रचार दिल्ली में पार्टी की लुटिया को डुबो गया साथ ही बड़बोले सांसदों के खुले बयान जिसने चुनाव पास आते आते भाजपा का खेल खराब कर दिया  |  कल तक जो भाजपा के नेता चुनाव  परिणाम पार्टी के पूरी तरह अपने पक्ष में आने का दावा कर रहे थे  परिणाम आने पर उनके चेहरे पर हताशा साफ़ झलक रही थी ।   कम  से कम ऐसी हार  की कल्पना तो भाजपा के किसी नेता ने नहीं की होगी । दिल्ली  में झाड़ू ने  भाजपा का 22 बरस के वनवास को और बड़ा  कर दिया है ।  केंद्रीय सत्ता में दुबारा भारी बहुमत से आने के बाद  भाजपा दिल्ली में वापसी नहीं कर पा रही है तो यह ये नतीजे भाजपा को भी सोचने के लिए मजबूर करते हैं |  कांग्रेस तो ढल ही  रही  थी लेकिन भाजपा का इतना बड़ा संगठन होने के बाद भी दिल्ली में वापसी न होना पार्टी को अब भविष्य में अपनी रणनीति बदलने को मजबूर कर सकता है | नए अध्यक्ष जे पी नड्डा के लिए भी ये नतीजे आत्ममंथन करने को मजबूर करते हैं क्युकि कई राज्यों में कमल खिलने के बाद देश के दिल दिल्ली में कमल कई दशक से मुरझा रहा है | उनको भी अब इस बात को समझना पड़ेगा हर राज्य में जमीनी नेता तैयार करने होंगे  |  हर जगह आप प्रधानमंत्री मोदी के नाम और काम पर वोट नहीं मांग  सकते | 



 इस चुनाव में भाजपा  ने  केजरीवाल पर  जितने  व्यक्तिगत हमले किये शायद ही किसी राज्य के  चुनावो  में इस तरह के हमले किये गए । प्रधानमंत्री मोदी पर   व्यक्तिगत हमले  करने से  जहाँ इस बार केजरीवाल बचे  वहीँ इस बार  रामलीला  मैदान की  पहली रैली से ही प्रधानमंत्री मोदी ने  केजरीवाल को अपने निशाने पर ले लिया इसके बाद भी केजरीवाल ने अपने बयानों में संयम बरता | शायद वह दिल्ली में उस वोटर को नाराज नहीं करना चाहते थे जो पीएम  मोदी को वोट करता था | लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद केजरीवाल ने पी एम पर किसी भी तरह की टीका टिप्पणी नहीं की | केजरीवाल और उनकी पार्टी ने पूरे विधानसभा चुनाव में अपना फोकस किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर नहीं किया और न ही केंद्र सरकार को निशाने पर लिया। केजरीवाल ने चुनाव के दौरान किसी भी तरह के विवादास्पद मुद्दे से दूरी बनाए रखी। दिल्ली चुनाव में भाजपा ने शाहीनबाग को एक बड़ा मुद्दा बनाया लेकिन केजरीवाल ने पूरे चुनाव में शाहीनबाग से दूरी बनाए रखी। इसके उलट वह अपनी सरकार के कार्यों का ही प्रचार करते रहे। केजरीवाल चुनावों  के पहले से ही अपनी सरकार के  काम के सहारे दिल्ली वालों से वोट मांगने में जुट गए और उन्होंने चुनाव प्रचार में यहाँ तक कह दिया दिल्ली का यह चुनाव काम पर वोट करेगा |  केजरीवाल और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने अपने सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी भाजपा के नेताओं के खिलाफ बोलने से परहेज करते रहे। चुनाव के दौरान केजरीवाल ने भाजपा के मोदी-शाह समेत तमाम बड़े नेताओं के खिलाफ कोई आक्रामक बयान नहीं दिया बल्कि विनम्रता  के साथ अपनी बात रखते रहे।  वहीँ  इसी दौर में किसी ने केजरीवाल के हनुमान मंदिर जाने पर ऐतराज जताया तो विपक्ष  ने केजरीवाल को विकासपुरुष के बजाए अराजक नेता के तौर पर अपनी सभाओ में पेश किया लेकिन जनता की अदालत में केजरीवाल बरी हो गए  ।  जनता ने दिल  खोलकर जिस तरह झाड़ू को वोट दिए हैं उसने पहली बार साबित किया  है अब जनता हर चुनाव बेहतर विकल्प की तलाश में है और जाति धर्म के नाम पर वोट के  बजाय वोट विकास के नाम पर मिलते हैं ।  दिल्ली चुनाव के नतीजों से एक बात साफ़ हुई है लोगों  ने आप को भाजपा और कांग्रेस  के मुकाबले बेहतर विकल्प के रूप में  देखा ।  भाजपा के लिए तो दिल्ली में सरकार बनाना नाको चने चबाने जैसा बन गया था क्युकि प्रधान मंत्री मोदी की प्रतिष्ठा अब सीधे दिल्ली से जुडी हुई थी   लेकिन पी एम ने इस बार ज्यादा रैलियां नहीं की | एक रैली रामलीला मैदान और दूसरी कड़कडडूमा और तीसरी द्वारका में ही की | भाजपा में दिल्ली चुनाव का पूरा प्रबंधन अमित शाह की टीम ने किया  और रैलियां  और रोड शो भी बड़े पैमाने में किये लेकिन सफलता भाजपा के हाथ नहीं लग सकी | भाजपा इस बार जहाँ चुनाव प्रचार में पीछे रह गयी  वही टिकेट चयन में हुई देरी भी हार का एक बड़ा कारण रहा |  वह जनता के बीच एमसीडी में उसके द्वारा किये गए कार्यों को पहुचने में नाकाम रही | 



  2019 के लोक सभा चुनाव  के बाद भले ही केजरीवाल की रफ़्तार थम गयी हो लेकिन दिल्ली में उनका बड़ा जनाधार आज भी है इस बात से अब  इनकार नहीं किया जा सकता | झुग्गी झोपड़ी से लेकर ऑटो चालक और रेहड़ी लगाने वालो से लेकर महिलाओ के एक बड़े तबके को केजरीवाल भा रहे हैं यह हमें स्वीकार करना होगा | आज भी दिल्ली की जनता को उनसे  बड़ी उम्मीद हैं यह इस चुनाव परिणाम ने साबित किया है  |   वहीँ भाजपा भी चुनाव को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं थी  | वह अपने किसी भी चेहरे को केजरीवाल के सामने नहीं ला सकी  | दिल्ली  की जनता को वह अपने काम का भरोसा नहीं दिला पायी और चुनावी समर में देर से मैदान में आई | 1731 कच्ची कालोनियों को पक्का करने का दांव भी उसने चुनाव की घोषणा से पहले चला जो कारगर नहीं हुआ |  टिकटों के चयन में पार्टी ने देरी की वहीँ स्थानीय मुद्दों के बजाए वह राष्ट्रीय मसलों पर और मोदी के नाम पर वोट माँगने लगी ।   दिल्ली में पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए कोई बड़ा चेहरा तो दूर अच्छे प्रत्याशी ही नहीं मिले  जो केजरीवाल को घेर सकें |  स्थानीय के बजाए राष्ट्रीय मसलों  पर ज्यादा फोकस  और अपने नेताओं की अंदरूनी लड़ाई  ने पार्टी  में गुटबाजी बढ़ाने का काम किया | बीजेपी ने चुनाव से कुछ दिन पहले ही प्रचार अभियान  शुरू किया जबकि केजरीवाल ने अपना चुनावी अभियान एक साल पहले से ही दमदार तरीके से  शुरू कर दिया  था |  90 के दशक के स्वर्णिम युग के बाद भाजपा दिल्ली में अपना संगठन तक खड़ा नहीं कर पायी और केजरीवाल के खिलाफ किसी चेहरे को खड़ा नहीं कर पाई |  सीएए जैसे मसले को भी वह जनता के बीच सही तरह से पहुचने में कामयाब नहीं हो सकी |  समाज के मजदूर और पिछड़े तबके के साथ ही  मध्यम वर्ग  और महिलाओं  का एक बड़ा वोट बैंक आप के  साथ आज भी जुड़ा है  | आप ने इस चुनाव में कांग्रेस के वोट बैंक पर भी बड़ी सेंध लगायी |  दिल्ली के परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं ।           



 वहीँ अब अपने को  आम आदमी बताने वाले केजरीवाल  से अब तीसरी बार  दिल्ली की जनता की अपेक्षाएं इस कदर बड़ी हुई  आने वाले  पांच बरस में उनके पूरे होने पर  अब सभी की नजरें लगी रहेंगी  |  बेशक अब  केजरीवाल को भी इस बात को समझना जरुरी होगा कि लोक सभा चुनाव और राज्यों   के विधान सभा  चुनावों में जनता का मूड अलग अलग होता है जिसके ट्रेंड को हम हाल के कुछ वर्षो से देश में बखूबी देख भी रहे हैं |  देश में केजरीवाल का जादू भले ही ना चला हो लेकिन दिल्ली में आज भी केजरीवाल सब पर भारी पड रहे हैं  और शायद  इसकी  सबसे बड़ी वजह दिल्ली में उनके साथ जुडा मजबूत  जमीनी संगठन है | एक दौर में  दिल्ली की गद्दी छोड़कर  लोक सभा चुनावो में जल्द कूदने को अपनी भारी भूल बता चुके केजरीवाल  शुरुवात से ही  इस  चुनाव में बहुत संयम के साथ  काम  कर  रहे थे  । आम आदमी के वोटर के साथ वह  अपनी विकास की  भावनात्मक अपील के साथ  जुड़े ।  केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद कहा यदि हमने काम किया है तो वोट दीजिएगा | लोग उनकी इस भावनात्मक अपील से जुड़े |  बिजली ,पानी सरीखी बुनियादी आवश्यकताओं  में अगर कोई सबसे ज्यादा लाभ लेने की  स्थिति में था  वह आम आदमी पार्टी ही थी  | 



अब  दिल्ली फतह  के बाद केजरीवाल इस चुनावो में सही मायनो में  जीत  के नायक बनकर उभरे हैं ।  कार्यकर्ताओ में उनकी दीवानगी है ।   तो क्या माना जाए केजरीवाल  2020 में  कई राज्यों की विधान सभा की बिसात में सबसे बड़ा चेहरा होंगे ? क्या उनके कदम अब दिल्ली केन्द्रित ही होंगे या  कुछ समय बाद  वह  नई लीक पर चलने का साहस दिखायेंगे और  फिर से राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे ? ये ऐसे सवाल हैं  जो इस समय चुनाव परिणाम आने के बाद  भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के सहयोगियों और यू पी ए के सहयोगियों से लेकर कांग्रेस को परेशान कर रहे होंगे । इस बार केजरीवाल  ने दिल्ली   के  दिल को जीत लिया ।   सबका साथ सबका विकास के भाजपा के  नारे  फ़ेल  हो गए ।  दिल्ली की जनता ने केजरीवाल   के  माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि मुस्लिम बाहुल्य और झुग्गी झोपड़ी कच्ची कालोनियों  वाले इलाको में आप  का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा ।  केजरीवाल   समाज के हर  तबको का समर्थन जुटाने  में   सफल रहे ।   दुबारा दिल्ली  जीत के बाद  केजरीवाल  निश्चित ही आप  में अब सबसे मजबूत हो गए हैं। अब केजरीवाल के सामने जनता से  किये  गए वायदों को पूरा करने की कठिन चुनौती है । इस बार उनके साथ एक बार फिर से प्रचंड बहुमत है इसलिए वह जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते । देखना होगा इस बार केजरीवाल कितना बदले बदले नजर आते हैं | उनका पिछला अवतार लोग अभी भी भूले नहीं हैं जो धरनेबाज और ड्रामेबाज का था | बार बार पीएम को कोसने के सिवाय वह कुछ नहीं करते थे | हर चीज में मोदी जी की साजिश उन्हें नजर आती थी | दिल्ली को एक दौर में पूर्ण राज्य बनाने का संकल्प भी उन्होंने लिया था  और आंदोलन भी किया था जिसका नतीजा सिफर ही रहा था | पिछली बार वो सत्ता में आये थे तो बड़े बड़े दावे किये ये दावे हवा हवाई साबित हुए | किसी  तरह  बिजली , पानी , स्वास्थ्य की फ्री पालिटिक्स और कच्च्ची कालोनियों के विकास , महिलाओ की सुरक्षा  ने उनकी लोगों में पकड़ बना ली और वह तमाम विवादों के बाद भी अपनी साख बचा पाने में कामयाब हो गए जबकि फ्री पालिटिक्स के अलावा दिल्ली में बीते  पांच बरस में कुछ नहीं हुआ | स्वर्गीय शीला दीक्षित ने दिल्ली की  आधारभूत संरचना के निर्माण में बड़ा योगदान दिया और दिल्ली का हर क्षेत्र में  विकास हुआ | फ्लाईओवर बने वहीँ सडकों का बड़ा जाल भी बिछा | नए कालेज खुले वहीँ मेट्रो का जाल बिछा जबकि आम आदमी की सरकार के दौर में ऐसा कोई कायाकल्प हुआ नहीं  | दिल्ली आज भी तमाम समस्याओं से जूझ रही है | यमुना साफ नहीं है तो प्रदूषण और जाम से राहत नहीं है | ऐसी कई  समस्याओं का पहाड़ सामने है |  बेहतर होगा केजरीवाल इस कार्यकाल में अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ेंगे |  उम्मीद है वह दिल्ली को मॉडल राज्य बनाने के लिए एक नई  लकीर अपने इस नए कार्यकाल कार्यकाल में खींचने की कोशिश  करेंगे ।     

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