Monday 30 March 2020

मध्य प्रदेश में फिर से ' शिव ' का राज

  




उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद भाजपा की डगमगाती नैय्या को सही मायनों में अगर किसी ने मध्य प्रदेश में पार लगाया है तो बेशक वो शिवराज सिंह चौहान ही हैं । मध्य प्रदेश में एक बार फिर राज्य की कमान शिवराज सिंह चौहान ने  संभाल ली  है | चौथी बार सीएम बनकर शिवराज नेमध्य प्रदेश में    विधानसभा में बहुमत हासिल कर  इतिहास रच दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब प्रदेश में कोई चौथी बार मुख्यमंत्री बना है। शिवराज के अलावा अब तक अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल भी तीन-तीन बार सीएम की कुर्सी संभाल चुके थे |

 सूबे में सबसे ज्यादा समय तक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का तो कीर्तिमान उन्होंने बना ही लिया है और अब मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार  लेने के बाद प्रदेश में शिवराज का नायकत्व उन्हें सफल मुख्यमंत्री की कतार में लाकर खड़ा कर रहा है | विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस अंदाज में मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकालने में सफलता पाई  वह उनके दूरदर्शी नेतृत्व की मिसाल है | पिछले कुछ समय से  शिवराज ने भाजपा के अंदरुनी उठापटक को शांत करने के साथ-साथ विकास की नई लकीर भी खिंची जिसकी परिणति चुनाव दर चुनाव जोरदार बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता वापसी के रूप में हुई | विकास को मॉडल बना कर दिग्विजय सिंह ने यहाँ 10 वर्षों तक राज किया लेकिन वह विकास को लोगों तक पहुंचाने में सफल नहीं रहे जिस कारण उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। एक कद्दावर नेता होते हुए  कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस को जहाँ  हाल के 15  महीनों में नहीं संभाल  सके वहीँ  वहीँ भाजपा ने  भी उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर तक को प्रदेश की सत्ता सौपकर कई प्रयोग किये लेकिन इन दोनों के सी एम पद से हटने के बाद पूरी भाजपा को एकजुट कर पाना मुश्किल था | ऐसे समय में शिवराज ने सत्ता और संगठन के साथ बेहतर तालमेल कायम कर मध्य प्रदेश में चुनाव दर चुनाव जीतकर भाजपा की उम्मीदों को नए पंख लगा दिए | प्रदेश में पिछले कुछ समय से  भाजपा का मतलब शिवराज चौहान अगर रहा है तो इसका बड़ा कारण उनका  बेहतर संगठनकर्ता होने के साथ ही जनता के सरोकारों की राजनीति करने वाला नेता होना रहा | पिछले  विधान सभा चुनाव में भाजपा मध्य प्रदेश में बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी लेकिन वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी  | कांग्रेस ने कमलनाथ को  सौंपी  लेकिन शिवराज  प्रदेश में सक्रियता में कोई कमी नहीं आयी | वह सड़क से लेकर विधानसभा तक न केवल जनता से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर  कुशल संगठनकर्ता  बन अपनी छाप भाजपा के  सदस्यता अभियान में छोड़ी जो आज सबसे बड़े सक्रिय सदस्यों वाली पार्टी बन चुकी है |   भाजपा के सदस्यता अभियान के संयोजक बनकर  शिवराज  ने पार्टी में खुद की उपयोगिता को साबित किया |  

शिवराज की राजनीती लोगों को आपस में जोड़ने की रही है और उनकी जीत का मूल मंत्र विकास और निर्विवाद रूप से साफ़ छवि  रही  है और उनके शासन का विकास मध्य प्रदेश में धरातल में दिखलाई भी देता है | शिवराज ने  लोगो  के बीच पिछले  कार्यकाल में अगर बेहतर मुख्यमंत्री की छवि बनाई  तो इसका कारण राजनीती के प्रति उनका समर्पण और जनता के सरोकारों से खुद को जोड़ने वाला नेता रहा है |   हालांकि   शिवराज  पर  उनके अपने और विरोधी   भ्रष्टाचार के भी आरोप लग चुके हैं लेकिन इससे शिवराज की  विश्वसनीयता पर कोई असर नहीं पड़ा क्युकि भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले में  उन्होंने खुलकर अपना पक्ष रखा |यही नहीं व्यापम के जिस घोटाले पर जब विपक्ष ने उन पर आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया तब भी वह ईमानदारी से मीडिया के सामने अपना पक्ष रखने से पीछे नहीं रहे और जांच कमेटी बनाकर मिसाल कायम की |

शिवराज चौहान का जन्म पांच मार्च, 1951  को एक किसान परिवार में हुआ। भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। कॉलेज जीवन से ही चौहान की दिलचस्पी राजनीति में थी। वे 1975  में मॉडल सेकेंडरी स्कूल छात्रसंद्घ के नेता रहे। 1975  में आपातकाल लगा जिसके विरोध में शिवराज आगे आये और 1976-77 में भोपाल जेल में बंद भी रहे। इसके बाद 1977  में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्घ से जुड़े। इसके बाद भाजपा के साथ इनका सफर चल पड़ा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के विभिन्न पदों पर काम किया। चौहान पहली बार 1990  में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 1991  से लगातार  पांच बार विदिशा लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। सांसद रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण समितियों में काम भी किया।विरोधियों को चुप्पी के साथ दरकिनार करने और अनर्गल बयानबाजी से बचनेवाले चौहान को 2005  में मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संगठन में भारी उथल-पुथल के साथ गुटबाजी चल रही थी। उमा भारती के जाने के बाद प्रदेश भाजपा काफी कमजोर हो गई थी। ऐसे समय में इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। 13 वीं विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम हासिल करने की  बड़ी चुनौती  तत्कालीन  समय में उनके सामने थी जिस पर चौहान खरे उतरे और भाजपा को जीत दिलाई। लगातार तीन बार  सीएम   हैट्रिक लगाई  और अब चौथी बार कमान संभाल  रहे हैं।

मध्यप्रदेश की जनता के लिए अभिशाप ही रहा कि जो भी शासन में रहा मूल समस्याओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और वे आपसी खींचतान में लगे रहे लेकिन शिवराज ने न केवल मामा बन महिलाओं के दिलों में राज किया बल्कि जन जन तक अपनी पैठ विकास कार्यों से बनाई | मध्य प्रदेश में शिवराज का परचम जिन उंचाईयों को  छुआ उसने  कांग्रेस की मुश्किलों  को  हमेशा बढ़ाया  |  15  महीने  विपक्ष में बैठकर भी शिवराज सिंह चौहान  ने   सशक्त  और यशस्वी मुख्यमंत्री की छवि बनाकर झटके में मध्य प्रदेश की राजनीति में  दिग्गी राजा और कमलनाथ  के कद को एकदम से कम कर दिया  । इस समूचे दौर में भी  कांग्रेस की असल मुश्किल गुटबाजी ने बढाई हुई है | आज भी उन्हीं  परिस्थितियों  से कांग्रेस जूझ रही है जो परिस्थितियां  सुरेश पचौरी, अरुण यादव के दौर में  के दौर में थी तो समझा जा सकता है कांग्रेस की मुश्किलें किस कदर प्रदेश में बढती ही जा रही हैं |  इसी गुटबाजी  ने  मध्य प्रदेश में  15  महीने  में कांग्रेस सरकार का खेल मध्य प्रदेश से खत्म कर दिया | रही सही कसर ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखे  युवा तुर्क और उनके समर्थकों  की उपेक्षा ने पूर्ण कर दी |  

शिवराज ने  मध्यप्रदेश में  अपनी दूरगामी योजनाओ के आसरे लोगों के दिलो में नई आस कायम की । शिवराजसिंह चौहान  खुद किसान परिवार से रहे हैं लिहाजा  किसानों और आम आदमी के  सरोकारों  के प्रति वह काफी संवेदनशील रहे हैं । अपने  कार्यकाल में उन्होंने कई योजनाओं को न केवल धरातल पर उतारने में सफलता पाई  बल्कि अन्य राज्यों को कन्याधन और लाडली लक्ष्मी सरीखी योजना लागू करवाने के लिए मजबूर किया ।  यही नहीं प्रदेश में कई औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना कर यह साबित भी कर दिखाया अगर आप एक निश्चित विजन के साथ आगे बढ़े तो राज्य को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता |  मुख्यमंत्री पंचायत के नाम से आरंभ की गई योजना ने शिवराजसिंह के बारे में यह धारणा पुख्ता कर दी कि वह आम आदमी के मुख्यमंत्री हैं । यही नहीं विभिन्न प्रदेशो की सरकारें जहाँ महिलाओं को आरक्षण देने की हवाई बयानबाजी करने से बाज नहीं आई वहीँ  शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण  देकर अपनी कथनी और करनी को साकार किया । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने समावेशी विकास का खाका खींचकर यह भी साबित किया कि उनकी नीतियों के केंद्र में आम आदमी है शायद यही वजह है शिवराज को आम इंसान ने खूब दुलार दिया ।  15  महीने विपक्ष में रहने के दौरान  भी शिवराज का जनता जनार्दन की तरफ झुकाव काम नहीं हुआ |  अपने  पिछले  कार्यकाल  में भी  शिवराज ने न केवल जनता के बीच घर घर जाकर लोगों की समस्याओं को सुना बल्कि किसानो की समस्याओं का समाधान करने की दिशा में कोई कसर नहीं छोडी ।  पेटलावाद हादसे और रतनगढ़ हादसे की विषम परिस्थितियों में भी शिवराज ने धैर्य नहीं छोड़ा और लोगों के बीच जाकर दुःख में सहभागी बने ।अपने कार्यकाल में चुनाव दर चुनाव में विजय पताका फहराने वाले शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में कभी अपनी ठसक हावी नहीं होने दी । हंसी ठिठोली के साथ वह सत्ता और संगठन में अपनी कदमताल करते रहे और  विनम्र बनकर जनता जनार्दन को सबसे बड़ी ताकत बताते रहे ।  शिवराज राजनीती में सादगी पसंद  राजनेता  रहे हैं |  वह  समस्याओं के  तत्काल निवारण करने वाले राजनेता रहे हैं  ऐसा बीते 15  महीने  विपक्ष में रहकर भी उन्होंने दिखाया है | यकीन मानिए विपक्ष में रहते कठिन समय में उन्होंने अपना धैर्य नहीं  खोया  और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार  को हर मसले पर घेरने का कोई मौका नहीं चूका |  15  महीने  पहले हुए  विधानसभा  चुनाव में भाजपा सत्ता  की दहलीज  पर पहुँचने में कामयाब नहीं हो  पाई लेकिन शिवराज का कद मध्य प्रदेश की  सियासत में कम नहीं हुआ |  शिवराज मामा  की अगुवाई में ही में भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनावों में 27 सीटें  और 2019  के लोक सभा  चुनावों में 28  सीटों पर कमल खिलाया जो भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन  प्रदेश की सियासत में रहा |  

 सत्ता को सेवा का माध्यम और खुद को पार्टी का अदना सा सेवक मानने वाले शिवराजसिंह  ने प्रदेश में पहला गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री  होने का रिकार्ड  कायम कर लिया है और अब उनकी नजरें जन जन तक  सरकार की नीतियों  को पहुचाने की तरफ लगी हुई हैं क्युकि लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कुछ नहीं है खुद शिव का दर्शन भी यह कहता है लोकतंत्र में हार-जीत होती रहती है। महत्वपूर्ण यह है कि हार से सबक लेकर हमें यह देखना चाहिए कि जनता में यदि कोई विपरीत भाव पैदा हुआ है तो उसे कैसे दूर किया जाए?  

चौथी बार का  भावी सफर अब शिवराज चौहान के लिए आसान नहीं है। आने वाले समय में अगर  उन्हें भाजपा का विजयरथ जारी रखना है तो अपने विकास मॉडल को जन जन तक पहुचाना पड़ेगा ।  मध्यप्रदेश से मोदी सरकार में समुचित प्रतिनिधित्व होने के चलते अब सांसदों की भी यह नैतिक  जिम्मेदारी है कि  विकास के लिए एकजुट हों और केंद्र  सरकार के साथ बेहतर तालमेल कायम रखे | देश का मिजाज बदल रहा है और राज्यों के चुनाव और केंद्र के चुनाव में अब विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता है लिहाजा शिवराज को भी समझना होगा वह विकास का मूल मंत्र आम लोगों तक कैसे पहुंचाएं इसकी चिंता जरूर सीएम को होनी चाहिए जिससे 6 माह में होने वाले विधानसभा उपचुनाव चुनावों में भी भाजपा अपना विजयरथ जारी रख सके | इस  बार  कैबिनेट के  गठन की भी  एक बड़ी चुनौती उनके सामने  है | शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके पुराने  विधायक  भी मंत्री पद पाने की लालसा  में  हैं   वहीँ  कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल  सिंधिया समर्थक भी अपने लिए  जोर  आजमाईश में   जुट  गए हैं | मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार पर संकट का कारण सभी को ना साध  पाना रहा | कमलनाथ सरकार के दौर में सरकार और  संगठन में दिग्विजय सिंह का दखल बढ़ गया था |   शिवराज के सामने  अब ऐसी ही  विकट परिस्थिति है | एक तरफ खुद  अपने भाजपा के  विधायकों  साधना है दूसरी तरफ कांग्रेस से भाजपा में आये सिंधिया समर्थकों को   मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देना है | इसके अलावा निर्दलीयों की नजरें भी मंत्री पद पर लगी हुई हैं |


शिवराज को अपने पिछले कार्यकाल से भी सबक लेना चाहिए | 15  माह पहले हुए विधान सभा चुनाव में वह खुद तो अपनी सीहोर  विधान सभा सीट जीत गए थे लेकिन उनकी कैबिनेट के नकारा  चुनाव हार गए थे जिसके चलते शिवराज सरकार बहुमत से दूर चली गयी | ऐसे में इस  नई  पारी में  उनको सत्ता  संगठन में बेहतर तालमेल बनाना ही होगा | इस बार शिवराज के साथ संगठन में विष्णु दत्त शर्मा सरीखा  युवा चेहरा प्रदेश अध्यक्ष है |  विष्णु दत्त शर्मा वर्तमान में खजुराहो से सांसद हैं | वह  मध्य प्रदेश भाजपा में प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी एक दौर में संभाल  चुके हैं |  विष्णु दत्त शर्मा की  राजनीति   अस्सी के दशक में  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से  शुरू हुई , इसके बाद वह  2013 में भाजपा में आए। इस दौरान उन्होंने भाजपा में विद्यार्थी परिषद की  तर्ज पर  युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने  का काम किया | विष्णु दत्त शर्मा अपनी नई  टीम में किसे जगह देते हैं यह आने वाले दिनों में पता चलेगा लेकिन शर्मा के सांगठनिक कौशल का लाभ शिवराज को मिलना तय है | मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराज और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी को एक दौर में अजेय समझा जाता था | इस बार विष्णु दत्त शर्मा से भी  पार्टी को वही उम्मीदें हैं |  
आने वाले दिनों   के भीतर  प्रदेश  में 24  विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है जहाँ शिवराज की साख सीधे  दांव पर लगी  होगी जिनमें से अधिक  से अधिक सीट जीतने की बड़ी चुनौती उनके  सामने होगी | देखना होगा शिवराज और शर्मा  इस चुनौती से आने वाले  दिनों में कैसे निपटते हैं  ?

 विकास को प्राथमिकता में रख कर यदि उन्होंने अंतिम व्यक्ति के लिए फैसला नहीं लिया तो भाजपा को भी कांग्रेस की कार्बन कापी बनने में देरी  नहीं लगेगी | मध्य प्रदेश की जनता की निगाहें अब एक बार फिर   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ लगी हैं  ऐसे  में शिवराज को  निष्कंटक होकर फिलहाल अपनी सारी उर्जा मध्य प्रदेश के विकास को नई गति देने में लगानी  चाहिए |

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