Wednesday 7 September 2022

ट्रस पर ब्रिटेन के ट्रस्ट के मायने

                     



 यूनाइटेड किंगडम में भारतीय मूल के व्यक्ति  इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक को लिज ट्रस ने  पराजित कर दिया है । पूर्व प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन के इस्तीफे के बाद ट्रस पर जनता ने ट्रस्ट  किया है ।   वह  यूनाइटेड किंगडम के इतिहास में  तीसरी महिला प्रधानमंत्री होंगी। लिज़ ट्रस को कंज़र्वेटिव पार्टी के प्रमुख सदस्यों द्वारा पार्टी का नेतृत्व करने के लिए नेता के रूप में चुना गया और उन्हें बोरिस जॉनसन के बाद देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलने जा रहा है  मगर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी लोकप्रियता अभी साबित करनी होगी।  ब्रिटेन की जनता चुनावों से पहले से असहज  हुई है और बोरिस जॉनसन के कार्यकाल  की लुंज -पुंज  नीतियों ने देश की माली हालत खस्ता की हुई है। ऐसे में घरेलू से लेकर  तमाम  अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियाँ उनके सामने खड़ी हैं।  

ट्रस का जन्म साल 1975 में ऑक्सफ़ोर्ड में हुआ। उनके पिता गणित के प्रोफेसर और मां नर्स रही हैं। ट्रस ने ऑक्सफोर्ड विवि से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्री की पढ़ाई की। वह पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में सक्रिय हो गईं। शुरुआत में वह लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में थीं लेकिन बाद में वह कंजर्वेटिव पार्टी से जुड़ गईं। ऑक्सफोर्ड की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शेल और केबल एंड वायरलेस कंपनियों से जुड़ गईं। उन्होंने साल 2000 में अपने सहकर्मी ह्यूग ओ लैरी से शादी की।  1996 में कंजरवेटिव पार्टी में शामिल हुई थी। 2010 में पहली बार सांसद बनने के बाद वह दो साल के भीतर शिक्षा और बाल संरक्षण राज्य मंत्री बनीं। उसके बाद उन्होंने पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास जैसे कई विभागों में काम किया है। सितंबर 2021 में वह बोरिस जॉनसन की कैबिनेट में विदेश सचिव बनीं। अब वह ब्रिटिश सरकार में सर्वोच्च पद पर पहुंच गई है।  

सोमवार को घोषित परिणामों में  ट्रस केवल 20,927 मतों से निर्वाचित हुई है। उन्हें डाले गए वैध मतों का केवल 57 प्रतिशत ही मिला। पार्टी के आम कार्यकर्ता ट्रस के पक्ष में हों, लेकिन सुनक को सांसद और पदाधिकारी अधिक पसंद करते हैं। भले ही  सुनक  ने पहले चरण के सभी पांच राउंड में लगातार बढ़त  बनाई  लेकिन सुनक का प्रदर्शन बहुत  ख़राब नहीं रहा। उनका पूरा चुनावी प्रचार अच्छा था और वह बेहतरीन वक्त के तौर पर भी इस चुनाव में सामने आये ।  लेकिन सियासत में हार जीत होती रहती है।  अब  हार के  बाद  आने वाले 2024  को लेकर सुनक अब अपनी  नई  बिसात बिछा सकते हैं क्योंकि उनकी नजरें फिलहाल  ट्रस के कामकाज और नीतियों को लेकर है । अगर ट्रस ब्रिटेन को आर्थिक संकट से बहार नहीं निकाल  पाते हैं  तो  सुनक अगले चुनाव में उनकी मुश्किलें बढ़ाने का काम कर सकते हैं।  इस चुनाव में  ऋषि सनक और लिज़ ट्रस के बीच प्रमुख मुद्दा कर कटौती था। ट्रस ने ब्रिटिश जनता से कर में भारी कटौती का वादा किया है। उन्होंने निर्वाचित होते ही नई कर नीति की घोषणा करने का भी वादा किया था इसलिए पिछले सभी राउंड में आगे चल रहे सुनक को आखिरी राउंड में हार का सामना करना पड़ा ।  सुनक  ने तर्क दिया था कि मौजूदा हालात में करों को कम करना गलत होगा। दिलचस्प बात यह है कि सुनक जॉनसन की सरकार में वित्त मंत्री थे और उन्होंने ही कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव को कम करने के लिए कर वृद्धि की शुरुआत की थी।  ट्रस  की जीत में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक उनकी कर नीति रही है  लेकिन ट्रस  के पास बहुत कम समय है। 17 दिसंबर 2024 को लोकसभा स्वतः भंग हो जाएगी।  24 जनवरी 2025 को वोटिंग होगी। इसलिए ट्रस के पास मुश्किल से 2 साल हैं। इस दौरान उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।  जहाँ उन्हें बोरिस जॉनसन की तरह नाटकीय फैसले लेने से जहाँ बचना है वहीँ अपने चुनावी नारे  वी विल डिलीवर को जनता तक पहुंचाना होगा।  

चुनावी नारे  कैम्पेनिंग में जितने आसान हैं वहीँ धरातल में उतारने में चुनौतीपूर्ण। ट्रस ने  अपने चुनाव प्रचार के दौरान जनता को लोगों को महंगाई,  उर्जा ,बिजली की कीमतों से राहत देने,  राष्ट्रीय  स्वास्थ्य  सेवा को ठीक करने  के लिए कई वायदे किए  हैं । लीज ट्रेस यानी  लेस टैक्स  की  उम्मीद  भी उनकी पार्टी की तरफ से हो रही है लेकिन अर्थव्यवस्था में  मंदी के बादल हैं।  2024  में बड़ी जीत के लिए उनको अभी से अपनी बेहतर नीतियां बनाकर नए  प्रयास करने होंगे।  

बहुत से लोग उन्हें  राजनीती  के प्रति गंभीर नहीं मान रहे हैं लेकिन  सच यह है उन्हें हमेशा उम्मीद से कम आँका गया है और उन्होनें शिक्षा , पर्यावरण मंत्री  के अपनी कार्यकाल में हर चीज की बेहतर समझ दिखाई है।  मंत्री के तौर पर उनके द्वारा किये गए कार्य वहां सराहे गए हैं।   सबसे  बड़ी मुश्किल यह है  अपने सामाजिक आधार को बढ़ाने के लिए अगर इस  समय वो अपना बजट घाटा  बढ़ाती हैं  तो अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ  तय है। ऐसी सूरत में सरकारी खजाने पर सरकारी बजट पर 100 अरब पाउंड  से अधिक  का भारी  बोझ  पड़ना तय है।  क्या लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था इस  बोझ को सह पाएगी ?  ट्रस के फैसलों जैसे नेशनल इंश्योरेंस टैक्स और कार्पोरेट टैक्स में कटौती जैसे फैसलों से कार्पोरेट्स को सीधा लाभ मिलेगा ? क्या ट्रस इन मुद्दों पर अपनी कंजर्वेटिव पार्टी में  सहमति बना पाएंगी?  इस दौर में उनके सामने सबसे प्रमुख चुनौती है अर्थव्यवस्था को पटरी में लाना । जीवनयापन महंगा होने के कारण  स्वास्थ्य सेवा, रेल एवं विश्वविद्यालय कर्मचारियों ने  बीते दौर में वेतन बढ़ाने की मांग के साथ हड़ताल की थी। ब्रेक्सिट पर बातचीत की नए सिरे से शुरुआत भी अधर में लटकी है। जी-10 देशों में ब्रिटेन सबसे ऊंची मुद्रास्फीति से जूझ रहा है और उसकी आर्थिक वृद्धि के पूर्वानुमान सबसे कमजोर हैं। इन वजहों से पाउंड को बुरी तरह झटका लगा है और रूस तथा यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण चढ़ीं ऊर्जा की कीमतें और बढ़ीं तो पाउंड पर दबाव गहराता जाएगा। इसका नतीजा चालू खाते के घाटे में इजाफे के रूप में सामने आया है जो पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का 8.3 फीसदी रहा। एक विश्लेषण के अनुसार यह बढ़कर 10 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। उस स्थिति में ब्रिटेन किसी उभरते बाजार जैसे भुगतान संतुलन संकट का शिकार हो जाएगा। व्यापार में स्थिरता नहीं आई तो ब्रिटेन शायद अपने बाहरी घाटे की भरपाई के लिए पर्याप्त विदेशी पूंजी नहीं जुटा पाएगा परंतु यह समझना मुश्किल है कि मार्गरेट थैचर की शैली में ट्रस की नीतिगत घोषणाएं तस्वीर में अहम बदलाव कैसे लाएंगी? ट्रस ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को अपना आदर्श मानती हैं। पिछले साल एक टैंक पर बैठकर खींची गई उनकी फोटो काफी चर्चित हुई थी। दिलचस्प बात यह है कि 1986 में टैंक पर बैठे थैचर की वही तस्वीर मशहूर है लेकिन ट्रस को ब्रिटेन की ‘आयरन लेडी’ थैचर जितना हासिल करने के लिए लंबा रास्ता तय करना है। अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी चुनौतियाँ विकराल हैं।  2030 तक जीडीपी का 3 फीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च  करने ,  यूक्रेन संकट ,  जी-7 के साथ समन्वय , चीन और रूस केंद्रित ब्रिटेन की नई विदेश नीति में बदलाव  , राष्ट्रकुल देशों से व्यापार समझौता,  चीन के खिलाफ  मोर्चाबंदी , 2023 तक यूरोपीय संघ के कानूनों को खत्म करना,  प्रवासी  संकट जैसी अनगिनत चुनौतियाँ उनके सामने खड़ी हैं  जिनके  समाधान के लिए दुनिया की नजर उन पर है ।  

ब्रेक्सिट और उसके बाद  कोरोना  ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से चरमरा दिया है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन का महंगाई सूचकांक 10.1 फीसदी पर पहुंच गया है। कई सालों में पहली बार महंगाई सूचकांक दहाई अंक को पार कर गया है। देश में बिजली की दरें ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। रूस के हमले के बाद यूक्रेन का समर्थन करने के लिए ब्रिटेन अमेरिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।ट्रस के पास अपना नेतृत्व साबित करने के लिए बहुत कम समय होगा। अपने प्रचार में उन्होंने करों में कमी करने की बात की थी, जिससे देश में सबसे ज्यादा कमाने वालों को बेजा फायदा मिल जाएगा। उन्होंने घरों के बिजली के बिल बढ़ने से रोकने की बात भी कही है।  बिना लक्ष्य के खर्च से आर्थिक परिस्थितियां  बिगड़ सकती हैं। उनके विदेश मंत्री स्थगित रही ब्रेक्सिट की वार्ता और यूरोपीय संघ से मशविरा किए बगैर उत्तरी आयरलैंड व्यापार संधि में बदलाव करने से पैदा हुआ तनाव निवेशकों के अविश्वास को इतनी आसानी से शायद ही दूर कर पाएगा। ये समस्याएं खत्म करना जरूरी है क्योंकि यूरोपीय संघ ब्रिटेन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ब्रेक्सिट के बाद से ही दोनों के बीच व्यापार में काफी कम हुआ है।  ट्रस के प्रधानमंत्री बनते ही उनका सामना कुछ जटिल मुद्दों से होगा। इनमें से सबसे प्रमुख जीवन-यापन का संकट होगा। जैसे-जैसे सर्दियां आ रही हैं और ऊर्जा की कीमतों की सीमाएं हटाई जाएंगी, यह और तेज होगा, जिससे कई लोगों को अपने घरों को गर्म करने और भोजन खरीदने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। गर्मियों के दौरान देखी गई औद्योगिक कार्रवाई तेज होगी।अगला मुद्दा यूक्रेन में युद्ध है। रूसी वैश्विक रणनीति का एक हिस्सा यह आशा करना है कि पश्चिमी राज्य, कम से कम यूके, यूक्रेन के समर्थन में आगे नहीं बढ़ेगा। ट्रस के तहत ऐसा नहीं होगा। वह यूक्रेन की पक्की समर्थक हैं और उनसे ब्रिटेन के समर्थन की मौजूदा मुद्रा को बनाए रखने की उम्मीद की जा सकती है।

बोरिस जॉनसन ने राजनीति में विश्वास को तोड़ा, लेकिन ट्रस इस विशेष मुद्दे को संबोधित करने के लिए शायद उतनी उपयुक्त नहीं हैं। उनके सलाहकार उन्हें जल्द चुनाव कराने का लालच देंगे ताकि ट्रस को एक नकली "जनादेश" दिया जाए जिसकी वेस्टमिंस्टर प्रणाली को आवश्यकता नहीं है। ऐसा करते हुए थेरेसा मे के उदाहरण को याद रखना होगा, उनके समय पर भी इसी तरह के लालच का परिणाम क्या हुआ था।फिर भी अपने सभी दोषों के बावजूद, जॉनसन ने ट्रस को 73-सीटों का बहुमत दिया है।  ट्रस को सावधानी से चलना होगा ।   कई वर्षों बाद उनके रूप में विपक्ष के पास कंजर्वेटिव्स को सता से बाहर करने का मौका आया है।  अर्थव्यवस्था और व्यापार में स्थिरता नहीं आई तो ब्रिटेन शायद अपने बाहरी घाटे की भरपाई के लिए पर्याप्त विदेशी पूंजी नहीं जुटा पाएगा परंतु यह समझना मुश्किल है कि मार्गरेट थैचर की शैली में ट्रस की नीतिगत घोषणाएं तस्वीर में अहम बदलाव कैसे लाएंगी। अपने प्रचार में उन्होंने करों में कमी करने की बात की थी, जिससे देश में सबसे ज्यादा कमाने वालों को बेजा फायदा मिल जाएगा। 

नके विदेश मंत्री स्थगित रही ब्रेक्सिट की वार्ता और यूरोपीय संघ से मशविरा किए बगैर उत्तरी आयरलैंड व्यापार संधि में बदलाव करने से पैदा हुआ तनाव निवेशकों के अविश्वास को इतनी आसानी से शायद ही दूर कर पाएगा। ये समस्याएं खत्म करना जरूरी है क्योंकि यूरोपीय संघ ब्रिटेन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ब्रेक्सिट के बाद से ही दोनों के बीच व्यापार में काफी कम हुआ है। ब्रिटेन के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों के साथ सार्थक मुक्त व्यापार को अभी फलीभूत होना है। चूंकि उनके देश में इतनी अधिक समस्याएं चल रही हैं, इसलिए यह भी स्पष्ट नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री रहते हुए ट्रस ने भारत के साथ व्यापार समझौता दीवाली तक पूरा करने का जो वादा किया था, उसे भी वह पूरा कर पाएंगी या नहीं। 

उन्होंने भारत के साथ सामरिक और आर्थिक रिश्तों को वैश्विक व्यापारिक गुणा-गणित का सबसे वांछित हिस्सा करार दिया था। गत वर्ष उन्होंने भारत-ब्रिटेन परिष्कृत व्यापार साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद हालिया वार्ता शुरू हो सकीं। उन्होंने यह संकेत भी दिया था कि वह भारतीय पेशेवरों के लिए वीजा नियम आसान बना सकती हैं, जो पहले बड़ा गतिरोध था। परंतु उनके सामने जो वास्तविक चुनौतियां हैं, उनके कारण सदिच्छा भरे इन कदमों में देर हो सकती है। ट्रस के प्रधानमंत्री बनने के बाद माना जाता है कि भारत और ब्रिटेन के आर्थिक संबंध प्रगाढ़ होंगे।

ट्रस के बारे में कहा जाता है कि वे अवसरवादी राजनेता हैं।  कंजर्वेटिव पार्टी के अन्दर ब्रेक्जिट पर हुए जनमतसंग्रह में वे ब्रिटेन के यूरोप के साथ रहने  वाले  खेमे  के साथ थीं लेकिन नतीजों के बाद ब्रेक्जिट की पक्षधर बन गईं।  ऐसे ही बोरिस जानसन के खिलाफ पार्टी में हुए विद्रोह खासकर कैबिनेट मंत्रियों के इस्तीफे के दौरान वे ख़ामोशी से तमाशा देखती रहीं और खुद इस्तीफा देने से इनकार कर दिया।  जानसन के इस्तीफे के बाद मौका आया तो प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार बन गईं और जानसन के सहयोग से प्रधानमंत्री भी बन गईं ।   अब उनके पास यू-टर्न के ज्यादा मौके नहीं हैं।  वह ऐसे समय में 10 डाउनिंग स्ट्रीट में कदम रख रही हैं जब कंजरवेटिव पार्टी के विचार और मतदाताओं के एक बड़े तबके के अनुभव अलग-अलग हो रहे हैं। ब्रिटिश कार्यकर्ताओं को "आलसी" बताने के उनके विचार नेतृत्व प्रतियोगिता के दौरान फिर से सामने आए। यह बात उत्तरी इंग्लैंड में 45 तथाकथित "रेड वॉल" सीटों पर उनके खेमे में आए लेबर मतदाताओं को पसंद नहीं आएगी, जो 2019 के चुनाव में जॉनसन के नेतृत्व वाली कंजर्वेटिव पार्टी में चले आए थे।ऐसी सीटों पर चुने गए कंजर्वेटिव सांसदों को डर है कि इस तिरस्कार का सामना करने पर उनके नए समर्थक लेबर पार्टी में वापस जा सकते हैं।पूर्व मतदाताओं ने ऐसी सीटों पर हाल के तीन उपचुनावों में लिबरल डेमोक्रेट्स की ओर रुख किया, जिससे जॉनसन पर इस साल की शुरुआत में इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया।

जानसन के समय में भारत ब्रिटेन  के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंचे।  पिछले साल मई में पीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन पीएम बोरिस जॉनसन के बीच वर्चुअल बैठक हुई थी। इस बैठक में आपसी सहयोग को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर ले जाने की सहमति बनी। उम्मीद है  वह भारत के साथ अच्छे संबंधों की  वकालत करेंगी  । इस साल की शुरुआत में वह भारत की यात्रा पर आई थीं। अपनी इस यात्रा के दौरान लिज ने भारत-ब्रिटेन संबंधों को पहले से ज्यादा मजबूत बनाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारत-ब्रिटेन के रिश्तों में मजबूती अब पहले से ज्यादा अहम हो गई है।  इस बयान को देखा जाए तो जाहिर है कि उनके इस कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के संबंधों में नई रवानगी एवं मजबूती देखने को मिलेगी। भारत और ब्रिटेन के बीच मजबूत संबंध हिंद-प्रशांत सहित वैश्विक स्तर पर सुरक्षा को बढ़ाएंगे। साथ ही इससे दोनों देशों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।  उन्होंने वादा किया कि ब्रिटेन का वीजा प्रशासन भारत से बेहतरीन प्रतिभाओं' को आकर्षित करना जारी रखेगा। रूस और चीन के करीब आने के बाद दुनिया बदल रही है और मोदी की कूटनीति विदेश नीति में भारत के लिए नए अवसर तलाश कर रही है।  ग्लोबल  लीडर के तौर पर भारत की साख दुनिया में मोदी के आने से बड़ी है इसे नकार नहीं जा सकता।  इसके बाद दोनों देशों के बीच सम्बन्ध प्रगाढ़ होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। 

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