Thursday 6 July 2023

जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ रही है शिवराज सरकार

 

  



 

मध्यप्रदेश में राजनीति की दिशा तय करने में जनजातीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछली सरकारों ने जनजातियों को प्रदेश में वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जिसके चलते जनजातीय नायकों को इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसके वो वास्तविक हकदार थे। लम्बे समय तक मध्यप्रदेश का जनजातीय समुदाय अपनी तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से अलग-थलग रहा, पर अब यह स्थिति प्रदेश में तेजी से बदल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक  और आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। जनजातीय समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों ने राज्य में जनजातियों के नए दौर की शुरुआत कर दी है।

देश की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और  मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की संख्या तकरीबन एक करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 फीसद से अधिक है। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंड जनजातीय समुदाय बहुल हैं। राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की 6  सीटें अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 35 सीटें ऐसी हैं जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही जनजातीय समुदाय को साधने की इस बार के चुनावों में एक बड़ी चुनौती है। प्रदेश में हुए चुनावों में जब भी जिस भी पार्टी ने इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत की वह सत्ता पाने में कामयाब रहा। सूबे के पिछले विधानसभा  चुनाव में कांग्रेस ने जनजातीय समुदाय के बड़े वोटों को साधकर ही प्रदेश में अपनी वापसी की पटकथा लिखी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीट पर सिमट गई जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली।

 जनजातीय समुदाय  मध्यप्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखता है जो हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2003 से 2013 तक के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जनजातियों पर मजबूत पकड़ रही जिसका भाजपा को लाभ मिला लेकिन 2018 में यह भाजपा के पाले से कांग्रेस के पास चला गया। ये पुराना जनाधार वापस आये बिना प्रदेश में सत्ता की चाबी नहीं मिल सकती इसलिए इस बार भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में अपनी पूरी ऊर्जा जनजातीय क्षेत्रों में फोकस करने में लगवाई हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी अब तक 10 दौरे लगातार मध्यप्रदेश  में कर चुकी है जो जनजातीय इलाकों की नब्ज को अपने दौरों के जरिये टटोलने की व्यापक कोशिशें करती नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने अनुसूचित जाति और जनजाति के विकास के लिये देश में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। पूर्व की केन्द्र सरकार एससी-एसटी वर्ग के लिये 24 हजार करोड़ प्रतिवर्ष खर्च करती थी, मोदी सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 90 हजार करोड़ रूपये कर दिया है। पहले सिर्फ 167 एकलव्य विद्यालय हुआ करते थे, मोदी सरकार ने इनकी संख्या बढ़ाकर 690 कर दी है। इसी प्रकार एससी-एसटी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिये पहले 1000 करोड़ रूपये का प्रावधान था, जिसे मोदी सरकार ने बढ़ा कर 2833 करोड़ रूपये कर दिया है। इसके अलावा पिछली सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति की 978 करोड़ रूपए की राशि को बढ़ाकर 2533 करोड़ रूपए कर दिया।

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लम्बे समय से मध्यप्रदेश के जनजातीय इलाकों में लगातार सक्रियता बनी हुई है। उन्होनें आदिवासी समुदाय के नायकों को समुचित सम्मान देने के लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश की धरती को चुना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने एवं हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर करने की घोषणा कर जनजातीय समाज को अपने से जोड़ने की सबसे बड़ी पहल की थी जिसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी। सही मायनों में जनजातीय गौरव को जनता से जोड़ने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिनके नेतृत्व में जनजातीय समाज देश में पहली बार एकजुट हुआ। इसके बाद जनजातीय नायकों की गाथाएं सभी की जुबान पर आई। आज़ादी एक अमृत महोत्सव के अवसर झाबुआ, भोपाल, खंडवा, धार, रतलाम , झाबुआ,  अलीराजपुर, खरगोन, सतना में विशाल जनजातीय सम्मेलन आयोजित किये गए। मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से सटे मानगढ़ की पवित्र भूमि पर जनजातीय जननायकों के बलिदान की नई गौरवगाथा इतिहास में स्वर्णिम अखाड़ों में दर्ज हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम में वहां राष्ट्रीय स्मारक बनाने की बड़ी घोषणा हुई।  जनता पहले की सरकारों का व्यवहार आज भी नहीं भूली है  जिन्होंने दशकों तक देश में सरकार चलाई लेकिन जनजातीय समाज के प्रति उनका रवैया असंवेदनशील रहा। 

 मध्यप्रदेश में कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने भी आदिवासी वर्ग को साधने के लिए साहूकारों के कर्ज माफ़ी से लेकर, गोठान विकास,  आदिवासी दिवस मनाने जैसे कई लोकलुभावन वायदे जरूर किये लेकिन आपसी गुटबाजी और अंतर्कलह के कारण राज्य में कांग्रेस की सरकार चली गई। इसके बाद सत्ता में वापस लौटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातियों के लिए दिल खोलकर अपनी योजनाओं की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय कार्य विभाग के बजट में काफी वृद्धि की है। वर्ष 2003-04 में जो जनजातीय बजट मात्र 746.60 करोड़ था, आज जो वर्ष 2022-23 में 10 हजार 353 करोड़ रुपये का हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के हजारों लोगों को वनाधिकार पट्टा देकर और पेसा एक्ट लाकर उनके जीवन में नया सवेरा लाने का काम किया है। जनजातीय समाज के कल्याण के लिये शिवराज सरकार ने जनजातीय समुदाय बजट में बड़ा इजाफा किया है। जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओंमाध्यमिक पाठशालाओं, हाईस्कूल, हायर सेकेंडरी और कन्या शिक्षा परिसरों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 

कोल जनजाति जिसका आज़ादी के आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है, मोदी सरकार ने 200 करोड़ रूपये की लागत से देशभर में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करवा रही है। जनजातियों के प्रमुख जननायक टंट्या भील मामा , भीमा नायक, ख्वाजा नायक, संग्राम सिंह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती, रानी कमलापति, बादल भोई, राजा भभूत सिंह, रघुनाथ मंडलोई भिलाला, राजा ढिल्लन शाह गोंड, राजा गंगाधर गोंड, सरदार विष्णु सिंह उईके जैसे जनजातीय नायकों को शिवराज सरकार ने पूरा सम्मान दिया है।  शिवराज सरकार ने पातालपानी स्टेशन का नाम टंटया मामा के नाम पर रखा है। छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय संग्रहालय परिसर का निर्माण, जबलपुर में 5 करोड़ की लागत से राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह स्मारक, राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय का निर्माण जनजातियों के हितों के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। शहडोल संभाग में केन्द्रीय जन-जातीय विश्व-विद्यालय का खुलना भी मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।  जनजातीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति, डिंडोरी में बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजातीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना के प्रयास  के लिए सामुदायिक भवनों का निर्माण कार्य भी तेजी से किये जा रहे हैं। शिवराज सिंह सरकार ने यूपीएससी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग की शुरूआत के साथ ही उनको पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने की योजना भी शुरू की है जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। 

जनजातीय समाज के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, शिवपुरी एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना हुई है जिससे वह अपना कौशल निखारकर स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं।  जनजाति समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार प्रतिबद्ध है।  सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार और पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जनजातीय समुदाय का सशक्तिकरण हुआ है। पेसा कानून के तहत जो नियम बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार जनजातीय समुदाय को दिया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने प्रदेश में पेसा एक्ट लागू कर जनजातीय समाज को अधिकार सम्पन्न बनाया है। जमीन के साथ जंगल की उपज के लिए भी उनको अधिकार दिया गया है।  जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में 3 नई योजनाएँ बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है। विशेष पिछड़ी  जनजातीय बैगा, भारिया, सहरिया, कोल समाज की बहनों को एक हजार रुपया प्रतिमाह आहार अनुदान दिया जा  रहा है। इसी तरह जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए देवारण्य योजना लागू की गई है। शिवराज सरकार द्वारा संचालित जनजाति कल्याण की विभिन्न योजनाओं से जहाँ जनजातीय समुदाय का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास  हुआ है और ये तीव्र गति से समाज की मुख्य-धारा में आ रहे हैं, वहीं इनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का व्यापक संवर्धन भी हो रहा है। प्रदेश में सभी जनजातीय नायकों की प्रतिमाएँ लगाने का काम भी चल रहा है। राज्‍य सरकार द्वारा आदिवासियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए साहूकार विनियम को लागू किया गया  है।

 भाजपा ने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों में आदिवासियों को साधते हुए अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी  भी शुरू कर दी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री के पिछले दिनों हुए दौरे के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित शहडोल का चयन किया गया, ताकि दोनों राज्यों के जनजातीय वोटरों को साधा जा सके। एक सप्ताह के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्यप्रदेश का यह दूसरा दौरा रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने एक तरफ अपने शहडोल दौरे में जटिल बीमारी सिकल सेल उन्मूलन मिशन का शुभारम्भ किया जिसका जनजातीय समुदाय सबसे अधिक शिकार होते हैं वहीँ जिस मंच से सम्बोधित किया, उस पर जनजातीय समुदाय के नायकों वीरांगना रानी दुर्गावती, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील और बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमाओं को विशेष स्थान दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकरिया गांव में आम के बगीचे में लोगों से संवाद भी किया जिसमें पेसा एक्ट पर बातचीत, स्व-सहायता समूह की महिला सदस्यों और फुटबॉल क्लब के खिलाडियों से संवाद भी अहम रहा जिसके कई गहरे मायने हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी ने आयुष्मान कार्ड भी बाटें और जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठकर भोजन भी किया। ऐसा पहली बार हुआ जब देश के किसी प्रधानमंत्री ने देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर पहली बार कोदो, भात- कुटकी खीर का आनंद लिया और जमीन पर बैठकर मोटे अनाज को विशेष प्राथमिकता दी। पकरिया ग्राम में सतत संवाद कार्यक्रम के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत कर प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातीय समुदाय के कल्याण के लिए अपने बुलंद इरादे जता दिए हैं जिसका आगामी चुनावों में भाजपा को लाभ मिलना तय है। हर चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी अपने संवाद और रैलियों से बाजी पलटने  की क्षमता रखते हैं। 

 2018 के विधानसभा चुनावों में मिली हार ने सियासी मोर्चे पर मौजूदा दौर में भाजपा की बिसात को असहज किया हुआ है। प्रदेश में जनजातीय वोट निर्णायक हैं इसलिए उन पर पकड़ मजबूत कर डैमेज कंट्रोल किया जा सकता है। भाजपा जनजातीय इलाकों में अधिक से अधिक संवाद और विकास कार्यक्रमों के बहाने जनजातीय समाज पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेना चाहती है। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को भी लगता है  कि  2023 के विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा को अपनी फिर से वापसी करनी है तो जनजातीय समाज का दिल हर हाल में जीतना होगा। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों को जहाँ अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से रिझाने में लगे हुए हैं वहीँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह  खुद इन इलाकों में मोर्चा संभाले हुए हैं और प्रदेश नेतृत्व से लगातार फीडबैक लेने में जुटे हुए हैं। 

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