देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 785 पहुंच गई है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछली बार की गणना में मप्र में बाघों की आबादी महज 526 थी लेकिन अखिल भारतीय बाघ गणना जनगणना 2022 के अनुसार इस बार देश के मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में इस बार बहुत आगे निकल गया है। मध्यप्रदेश में साल 2020 के बाद 259 बाघ बढ़े हैं, जबकि दूसरे और तीसरे नंबर पर कर्नाटक (563) और उत्तराखंड (560) है। जारी आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं।
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई मध्यप्रदेश के लिये इस बार खास दिन बन गया। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था। इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने बहुत तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरु में बाघों की गणना के आंकड़े जारी किए थे। प्रधानमंत्री द्वारा जारी रिपोर्ट में देशभर में 3167 बाघ बताए गए थे, लेकिन तब राज्यवार आंकड़े जारी नहीं हुए थे। उत्तराखंड के रामनगर स्थित जिम कार्बेट नेशनल पार्क में बाघों के राज्यवार आंकड़े जारी किए गए जिसमें मध्य प्रदेश को फिर टाइगर स्टेट का ताज हासिल हुआ है। बाघों के राज्यवार आंकड़े प्रत्येक चार वर्ष में जारी किए जाते हैं। एनटीसीए द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में 3682 बाघ मौजूद हैं जिन राज्यों को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है, उनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र,तमिलनाडू टॉप-5 में शामिल हैं। इनके अलावा जिन राज्यों में बाघों की आबादी मौजूद हैं उनमें आसाम, केरला, यूपी शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, ओडिशा सहित कुल 18 राज्य शामिल हैं। जबकि मिजोरम, नागालैंड में बाघों की संख्या शून्य हो गई है। नॉर्थ-वेस्ट बंगाल में यह संख्या महज 2 पर सिमट गई है।
बाघ एक शक्तिशाली जन्तु के रूप में एक खास पहचान के लिए जाना जाता है। इसकी दहाड़ अब मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई देती है। मध्य प्रदेश न सिर्फ बाघों की संख्या के मामले में आगे रहा है, बल्कि सर्वाधिक बाघ भी मध्यप्रदेश में ही तेजी से बढ़ रहे हैं। राजधानी भोपाल के आसपास के शहरी इलाकों में भी 20 से अधिक बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2006 तक मध्यप्रदेश में केवल 300 बाघ थे, तो वहीं 2022 में यह आंकड़ा 785 तक पहुंच गया। वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश की यह अब तक की सबसे बड़ी छलांग है।
बाघ एक शक्तिशाली जन्तु के रूप में एक खास पहचान के लिए जाना जाता है। इसकी दहाड़ अब मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई देती है। मध्य प्रदेश न सिर्फ बाघों की संख्या के मामले में आगे रहा है, बल्कि सर्वाधिक बाघ भी मध्यप्रदेश में ही तेजी से बढ़ रहे हैं। राजधानी भोपाल के आसपास के शहरी इलाकों में भी 20 से अधिक बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2006 तक मध्यप्रदेश में केवल 300 बाघ थे, तो वहीं 2022 में यह आंकड़ा 785 तक पहुंच गया। वन्य जीवों के संरक्षण के मामले में मध्यप्रदेश की यह अब तक की सबसे बड़ी छलांग है।
मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां देश में सर्वाधिक छह टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, पन्ना, पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व हैं। पांच नेशनल पार्क और 10 सेंचुरी भी हैं। दमोह जिले के नौरादेही अभयारण्य को छठवां टाइगर रिजर्व बनाया गया है। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगाँव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं।
यह सुखद है कि अब प्रदेश के भीतर बाघों की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से बढ़ रही है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही है। सतना से लेकर सीधी , शहडोल से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला तक में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है।
मध्यप्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में भी पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में कुशल प्रबंधन और अनेक नवाचारी तौर तरीकों को अपनाया गया है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक कार्यक्रम समय समय पर भी चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। इस बार बांधवगढ टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह भारत के बाघ संरक्षण के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है जिसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती ।
सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से कई गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व में “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन किया जाता है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है।
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में प्रदेश के सभी राष्ट्रीय उद्यानों के कुशल प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। जहाँ एक तरफ राज्य सरकार ने भी हाल के वर्षों में गाँवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया है वहीँ संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के क्षेत्र का बड़ा विस्तार हुआ है। आज ये बड़े हर्ष की बात है कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों को नए- नए आशियाने मिल रहे हैं। पूरे देश में मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व सबसे बेहतर श्रेणियों में शामिल हैं। वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट कोआधार बनाएं तो मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी एवं पेंच, बांधवगढ़, पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है।
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में प्रदेश के सभी राष्ट्रीय उद्यानों के कुशल प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। जहाँ एक तरफ राज्य सरकार ने भी हाल के वर्षों में गाँवों का विस्थापन कर एक बड़े भू-भाग को जैविक दबाव से मुक्त कराया है वहीँ संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के क्षेत्र का बड़ा विस्तार हुआ है। आज ये बड़े हर्ष की बात है कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का बड़ा क्षेत्र भी आज जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये गए हैं, जिससे वन्य-प्राणियों को नए- नए आशियाने मिल रहे हैं। पूरे देश में मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व सबसे बेहतर श्रेणियों में शामिल हैं। वर्ष 2022 की मूल्यांकन रिपोर्ट कोआधार बनाएं तो मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और सतपुड़ा उत्कृष्ट श्रेणी एवं पेंच, बांधवगढ़, पन्ना टाइगर रिजर्व को बहुत अच्छी श्रेणी और संजय टाइगर रिजर्व को अच्छी श्रेणी में रखा गया है।
मध्यप्रदेश के विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में इस वर्ष फरवरी माह में जी-20 शिखर सम्मेलन में आए 20 देश के डेलीगेट्स ने पन्ना टाइगर रिजर्व में भ्रमण कर यहाँ बाघ संरक्षण के प्रयासों और प्रबंधन की सराहना की। विदेशी धरती से आये इन डेलीगेट्स के बीच मध्यप्रदेश को सराहना मिलने से ह्रदय प्रदेश का कद ऊँचा हुआ है।
जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व , संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं । ख़ास बात ये है कि मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। प्रदेश में हाल के दिनों में 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहाँ पहले कभी बाघ नहीं दिखे। इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है।
जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व , संवेदनशील पहल के परिणामस्वरूप आज मध्यप्रदेश में वन्य जीवों के आशियाने तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर स्तर पर निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं । ख़ास बात ये है कि मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। प्रदेश में हाल के दिनों में 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की सघन उपस्थिति देखी गई , जहाँ पहले कभी बाघ नहीं दिखे। इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश आज देश में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व बाघ दिवस पर फिर से टाइगर स्टेट बनने को लेकर कहा कि मध्यप्रदेश के 'टाइगर स्टेट' होने पर उन्हें गर्व है। बाघों के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये हम और श्रेष्ठतम कार्य करें, ताकि टाइगर स्टेट का गौरव आगे भी हमारे पास रहे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की जनता को वन एवं वन्यप्राणियों के संरक्षण में उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों से मध्यप्रदेश आज न केवल टाइगर स्टेट बना है बल्कि तेंदुआ , घड़ियाल और गिद्धों की संख्या में भी अव्वल प्रदेश बन चुका है। मध्यप्रदेश को प्रकृति ने हरित प्रदेश के रूप में मुक्त हस्त से संवारा है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में अनेक पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं।
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