Friday 4 August 2023

वो नटखट,मधुर, चितचोर सभी का किशोर

   

                           



प्राचीन परंपरा, संस्कृति और स्मृतियों को समेटे मध्यप्रदेश का खंडवा शहर मायानगरी किशोर कुमार की  खूबसूरत स्मृतियों से भी जुड़ा है। उनका जन्म खंडवा, मध्यप्रदेश में 4 अगस्त 1929 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। उनके पिता कुंजलाल गांगुली, एक वकील थे और उनकी माँ, गौरी देवी, एक गृहिणी थीं। किशोर कुमार के चार भाई अशोक कुमार, अनूप कुमार, कुणाल कुमार और रतन कुमार थे। अशोक कुमार भाइयों में सबसे बड़े थे और भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता भी थे। किशोर कुमार ने भारतीय सिनेमा उस स्वर्णिम दौर में संघर्ष शुरु किया था जब उनके भाई अशोक कुमार एक सफल सितारे के रूप में स्थापित हो चुके थे। उस दौर को याद करें तो  सिनेमा में दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी, गुरुदत्त और रहमान जैसे कलाकारों के साथ ही पार्श्वगायन में मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का ही  बोलबाला था।

किशोर कुमार की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में फ़िल्म शिकारी (1946) से हुई। इस फ़िल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्हें पहली बार गाने का मौका 1948 में बनी फ़िल्म जिद्दी में मिला  जिसमें उन्होंने देव आनन्द के लिए खूबसूरत  गाना गाया। किशोर कुमार के एल सहगल के विशिष्ट प्रशंसक थे इसलिए उन्होंने यह गीत उन की शैली में ही गाया। जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। उन्होंने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित फ़िल्म 'आन्दोलन' में हीरो के रूप में काम किया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई। 1954 में उन्होंने बिमल राय की 'नौकरी' में एक बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी प्रभावकारी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी "बाप रे बाप", 1956 में "नई दिल्ली", 1957 में "मि. मेरी" और "आशा" और 1958 में बनी "चलती का नाम गाड़ी" जिसमें किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया। यह भी मजेदार बात है कि किशोर कुमार की शुरुआत की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए अपनी आवाज दी थी। मोहम्मद रफ़ी ने फ़िल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी तो मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया। काम के लिए किशोर कुमार सबसे पहले एस डी बर्मन के पास गए थे, जिन्होंने पहले भी उन्हें 1950 में बनी फ़िल्म "प्यार" में गाने का मौका दिया था। एस डी बर्मन ने उन्हें फिर "बहार" फ़िल्म में एक गाना गाने का मौका दिया और  गाना बहुत हिट हुआ।

शुरू में किशोर कुमार को एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फ़िल्म "फंटूस" में दुखी मन मेरे गीत अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एस डी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने 'मुनीम जी', 'टैक्सी ड्राइवर', 'फंटूश', 'नौ दो ग्यारह', 'पेइंग गेस्ट', 'गाईड', 'ज्वेल थीफ़', 'प्रेमपुजारी', 'तेरे मेरे सपने' जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज से फ़िल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। 

किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 500  से अधिक गाने गाए।  हिन्दी के साथ ही किशोर कुमार ने तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फ़िल्मों के लिए भी गीत गाए। किशोर कुमार को उनकी गायकी के लिए आठ फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले। पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में अराधना फ़िल्म के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की विशेषता यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। 1975 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना।

 किशोर के गाये गाने संगीत प्रेमियों को झूमने के लिए मजबूर कर देते हैं।   किशोर कुमार ने 81 फ़िल्मों में अभिनय किया और 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। फ़िल्म 'पड़ोसन' में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। किशोर कुमार ने एक गायक के रूप में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे लोकप्रिय गायकों में एक अलहदा पहचान बनाने में सफल हुए। उनकी मधुर आवाज़  ने उन्हें घर -घर नई  पहचान देने का काम किया। गायन  के अलावा किशोर कुमार ने  अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय जीत में फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” (1959) से “एक लड़की भीगी भागी सी”, फिल्म “आराधना” (1970) से “रूप तेरा मस्ताना” और फिल्म “सफर” (1971) से “जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर ” शामिल हैं।

किशोर कुमार को कला और संगीत के क्षेत्र  में उनके योगदान के लिए 1983 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री से सम्मानित किया गया ।  यही नहीं 8 बार  फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया । सही मायनों में किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक बेहद सफल गायक और अभिनेता थे। उनकी विशिष्ट आवाज़ और शैली ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। किशोर कुमार ने “हाफ टिकट”, “पड़ोसन”, “चलती का नाम गाड़ी” और “गोल माल” सहित कई लोकप्रिय फिल्मों में अभिनय और निर्देशन भी किया। अपने अभिनय और गायन कौशल के अलावा, किशोर कुमार ने अपनी खुद की कई फिल्मों के लिए संगीत भी तैयार किया और अपने काम में एक अनूठा और रचनात्मक स्पर्श लाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। भारतीय फिल्म उद्योग में उनके योगदान ने उन्हें एक स्थायी और प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया है और उन्हें अभी भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बड़ी प्रतिभाओं में से एक के रूप में याद किया जाता है।

 किशोर कुमार को खंडवा से बेपनाह प्यार था। वो मुंबई से लौटकर वापस खंडवा बसना चाहते थे लेकिन नियति को कुछ और मजबूर था। किशोर कुमार खंडवे वाला छोरा तो उस समय हिट हो गया था । 58 साल की आयु में किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को  में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग में एक अत्यधिक सफल और प्रभावशाली व्यक्ति थे जो पार्श्व गायक के रूप में अपनी अनूठी आवाज और शैली के साथ-साथ अपने अभिनय और निर्देशन कौशल के लिए जाने जाते थे। किशोर कुमार भारतीय सिनेमा में एक सदाबहार गायक के तौर पर आज भी याद किये जाते हैं।  फिल्म उद्योग में उनके योगदान को आज भी दिल से सराहा जाता है।  


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