

चली इश्क की हवा चली ... चली इश्क की हवा चली ....अपने दिलबर को दीवाना ... ढूदता दिल गली गली... "बागवान " फ़िल्म का यह गाना आजकल दूकानों में सर चदकर बोल रहा है .....
कल की ही बात है ,शाम का समय था ... हम राजधानी के न्यू मार्केट इलाके में टहल रहे थे ...कल यहाँ की दुकानों में आजकल खासी चहल पहल नज़र आ रही थी .... वैसे तो न्यू मार्केट इलाके में पहले भी कभी कभार जाना होता रहता है लेकिन इस बार यहाँ फिजा कुछ बदली बदली सी नज़र आ रही थी ... हमे इस बदलाव का कारण नही सूझ रहा था... शाम को अकेले थे, वैसे ही भीड़ से हटकर ही चलते है .... लिहाजा ,साथ में भी कोई नही था जिससे यह पूछ सकते ...
तभी हमारी नज़र एक गिफ्ट सेण्टर पर पड़ी, जहाँ पर खरीददारी हो रही थी .... कुछ युवतिया दूकानदार से बारगेनिंग कर रहे थी ... जो सामान के सही मूल्य लगाने को लेकर की जा रही थी... इस वाकये को मैं बड़ी गौर से देख और सुन रहा था लगा.... तब , पूरा माजरा समझ आ गया .... दरअसल यह सब वैलेंटाइन डे के लिए किया जा रहा था... युवतियों में इसको लेकर छा रही उत्सुकता ख़ुद ही कहानी को बयां कर रही थी... फिर बागवान फ़िल्म का गाना तो सच्ची तस्वीर को हमारे सामने ख़ुद ही ला रहा था...
न्यू मार्केट का जो दृश्य हमारी आँखों ने कल देखा .... यह आज की एक हकीकत है... भोपाल ही क्या हर जगह यही हाल होगा... चाहे आप दिल्ली की चाँदनी चौक में हो या कनाट पैलेस में, या फिर इनके जैसे किसी भी महानगर में ... हर जगह आप ऐसे दृश्यों को देख सकते है जिसका गवाह कल मेरी आँखें न्यू मार्केट में बनी....आज "वैलेंटाइन डे" पर देश के कोने कोने तक ऐसी ही बानगी देखी जा सकती है.... अब तो आलम यहाँ तक है की १४ फरवरी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार महानगरो के साथ कस्बो में भी मनाया जाने लगा है... आज का युग बदल गया है... संस्कृति गई भाड में.... तभी तो हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है ..... हमारे युवाओ को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है... विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आते है ... तभी तो शहरों से लेकर कस्बो तक वैलेंटाइन का जलवा देखते ही बनता है...आज आलम यह है यह त्यौहार भारतीयों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है...
वैलेंटाइन के चकाचौंध पर अगर दृष्टी डाले तो इस सम्बन्ध में कई किस्से प्रचलित है... रोमन कैथोलिक चर्च की माने तो यह "वैलेंटाइन "अथवा "वलेंतिनस " नाम के तीन लोगो को मान्यता देता है ....जिसमे से दो के सम्बन्ध वैलेंटाइन डे से जोड़े जाते है....लेकिन बताया जाता है इन दो में से भी संत " वैलेंटाइन " खास चर्चा में रहे ...कहा जाता है संत वैलेंटाइन प्राचीन रोम में एक धर्म गुरू थे .... उन दिनों वहाँपर "कलाउ दियस" दो का शासन था .... उसका मानना था की अविवाहित युवक बेहतर सेनिक हो सकते है क्युकियुद्ध के मैदान में उन्हें अपनी पत्नी या बच्चों की चिंता नही सताती ...अपनी इस मान्यता के कारण उसने तत्कालीन रोम में युवको के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया... किन्दवंतियो की माने तो संत वैलेंटाइन के क्लाऊ दियस के इस फेसले का विरोध करने का फेसला किया ... बताया जाता है की वैलेंटाइन ने इस दौरान कई युवक युवतियों का प्रेम विवाह करा दिया... यह बात जब राजा को पता चली तो उसने संत वैलेंटाइन को १४ फरवरी को फासी की सजा दे दी....कहा जाता है की संत के इस त्याग के कारण हर साल १४ फरवरी को उनकी याद में युवा "वैलेंटाइन डे " मनाते है...
कैथोलिक चर्च की एक अन्य मान्यता के अनुसार एक दूसरे संत वैलेंटाइन की मौत प्राचीन रोम में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचाने के दरमियान हो गई ....यहाँ इस पर नई मान्यता यह है की ईसाईयों के प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस संत की याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है...एक अन्य किंदवंती के अनुसार वैलेंटाइन नाम के एक शख्स ने अपनी मौत से पहले अपनी प्रेमिका को पहला वैलेंटाइन संदेश भेजा जो एक प्रेम पत्र था .... उसकी प्रेमिका उसी जेल के जेलर की पुत्री थी जहाँ उसको बंद किया गया था...उस वैलेंटाइन नाम के शख्स ने प्रेम पत्र के अन्त में लिखा" फ्रॉम युअर वैलेंटाइन" .... आज भी यह वैलेंटाइन पर लिखे जाने वाले हर पत्र के नीचे लिखा रहता है ...
यही नही वैलेंटाइन के बारे में कुछ अन्य किन्दवंतिया भी है ... इसके अनुसार तर्क यह दिए जाते है प्राचीन रोम के प्रसिद्व पर्व "ल्युपर केलिया " के ईसाईकारण की याद में मनाया जाता है ....यह पर्व रोमन साम्राज्य के संस्थापक रोम्योलुयास और रीमस की याद में मनाया जाता है ... इस आयोजन पर रोमन धर्मगुरु उस गुफा में एकत्रित होते थे जहाँ एक मादा भेडिये ने रोम्योलुयास और रीमस को पाला था इस भेडिये को ल्युपा कहते थे... और इसी के नाम पर उस त्यौहार का नाम ल्युपर केलिया पड़ गया... इस अवसर पर वहां बड़ा आयोजन होता था ॥ लोग अपने घरो की सफाई करते थे साथ ही अच्छी फसल की कामना के लिए बकरी की बलि देते थे.... कहा जाता है प्राचीन समय में यह परम्परा खासी लोक प्रिय हो गई... एक अन्य किंदवंती यह कहती है की १४ फरवरी को फ्रांस में चिडियों के प्रजनन की शुरूवात मानी जाती थी.... जिस कारण खुशी में यह त्यौहार वहा प्रेम पर्व के रूप में मनाया जाने लगा ....
प्रेम के तार रोम से सीधे जुड़े नजर आते है ... वहा पर क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में पूजा जाने लगा ...जबकि यूनान में इसको इरोशके नाम से जाना जाता था... प्राचीन वैलेंटाइन संदेश के बारे में भी एक नजर नही आता ॥ कुछ ने माना है की यह इंग्लैंड के राजा ड्यूक के लिखा जो आज भी वहां के म्यूजियम में रखा हुआ है.... ब्रिटेन की यह आग आज भारत में भी लग चुकी है... अपने दर्शन शास्त्र में भी कहा गया है " जहाँ जहाँ धुआ होगा वहा आग तो होगी ही " सो अपना भारत भी इससे अछूता कैसे रह सकता है...? युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चदकर बोल रही है... १४ का सभी को बेसब्री से इंतजार है... इस दिन के लिए सभी पलके बिछाये बैठे है... प्रेम का इजहार जो करना है ?.......
वैलेंटाइन प्रेमी १४ फरवरी को एक बड़े त्यौहार से कम नही समझते है.... मुझको "अंदाज "का गाना याद आगया है.... " किसी से तुम प्यार करो ..... इजहार करो कही ना फिर देर हो जाए" ..... तभी तो वह इसको प्यार का इजहार करने का दिन बताते है... यूँ तो प्यार करना कोई गुनाह नही है लेकिन जब प्यार किया ही है तो इजहार करने में कोई देर नही होनी चाहिए... लेकिन अभी का समय ऐसा है जहाँ युवक युवतिया प्यार की सही परिभाषा नही जान पाये है... वह इस बात को नही समझ पा रहे है की प्यार को आप एक दिन के लिए नही बाध सकते... वह प्यार को हसी मजाक का खेल समझ रहे है.... सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है ... लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है ... इसका प्रभाव यह है की आज १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया गया है... इस कारण संसार भर के "कपल "प्यार का इजहार करने को उत्सुक रहते है... आज १४ फरवरी का कितना महत्त्व बढ गया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है इस अवसार पर बाजारों में खासी रोनक छा जाती है .... गिफ्ट सेंटर में उमड़ने वाला सैलाब , चहल पहल इस बात को बताने के लिए काफी है यह किस प्रकार आम आदमी के दिलो में एक बड़े पर्व की भांति अपनी पहचान बनने में कामयाब हुआ है... इस अवसर पर प्रेमी होटलों , रेस्ताराओ में देखे जा सकते है... प्रेम मनाने का यह चलन भारतीय संस्कृति को चोट पहुचाने का काम कर रहा है... यूं तो हमारी संस्कृति में प्रेम को परमात्मा का दूसरा रूप बताया गया है ॥ अतः प्रेम करना गुनाह और प्रेम का विरोधी होना सही नही होगा लेकिन वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह का भोड़ापन , पश्चिमी परस्त विस्तार हो रहा है वह विरोध करने लायक ही है ....वैसे भी यह प्रेम की स्टाइल भारतीय जीवन मूल्यों से किसी तरह मेल नही खाती..... आज का वैलेंटाइन डे भारतीय काव्य शास्र में बताये गए मदनोत्सव का पश्चिमी संस्करण प्रतीत होता है...
लेकिन बड़ा सवाल जेहन में हमारे यह आ रहा है क्या आप प्रेम जैसे चीज को एक दिन के लिए बाध सकते है? शायद नही... पर हमारे अपने देश में वैलेंटाइन के नाम का दुरूपयोग किया जा रहा है ... वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है.... एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण , मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों का जैसा नही होता था... आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है... हीर_रांझा, लैला_ मजनू के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी यह भूल जाते है की मीरा वाला प्रेम सच्ची आत्मा से सम्बन्ध रखता था ... आज प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है.... प्यार को गिफ्ट में तोला जाने लगा है... वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले कुछ युवा सफल तो कुछ असफल साबित होते है .... जो असफल हो गए तो समझ लो बरबाद हो गए... क्युकि यह प्रेम रुपी "बग" बड़ा खतरनाक है .... एक बार अगर इसकी जकड में आप आ गए तो यह फिर भविष्य में भी पीछा नही छोडेगा.... असफल लोगो के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे घातक बन जाता है...
वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह की उद्दंडता हो रही है वह चिंतनीय ही है... अश्लील हरकते भी कई बार देखी जा सकती है...संपन्न तबके साथ आज का मध्यम वर्ग और अब निम्न तबका भी आज इसके मकड़ जाल में फसकर अपना पैसा और समय दोनों ख़राब करते जा रहे है... वैलेंटाइन की स्टाइल बदल गई है ... गुलाब गिफ्ट दिए ,पार्टी में थिरके बिना काम नही चलता .... यह मनाने के लिए आपकी जेब गर्म होनी चाहिए... यह भी कोई बात हुई क्या जहाँ प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जेब की बोली लगानी पड़ती है....? कभी कभार तो अपने साथी के साथ घर से दूर जाकर इसको मनाने की नौबत आ जाती है... डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है... प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता ....
आज के समय में वैलेंटाइन प्रेमियों की तादात बढ रही है .... साल दर साल यार... इस बार भी प्रेम का सेंसेक्स पहले से ही कुलाचे मार रहा है.... वैलेंटाइन ने एक बड़े उत्सव का रूप ले लिया है... मॉल , गिफ्ट, आर्चीस , डिस्को थेक, मक डोनाल्ड आज इससे चोली दामन का साथ बन गया है... अगर आप में यह सब कर सकने की सामर्थ्य नही है तो आपका प्रेमी नाराज .... बस बेटा ....प्रेम का तो दी एंड समझ लो.... फिर , देवदास के बरबाद होने का सिलसिला चल पड़ता है ... पारो की याद दिल से नही जा पाती.... दिल टूट जाता है ... हमारी समझ में यह नही आता यह कैसा देवदास जो इस बार का वैलेंटाइन पारो के साथ ... अगली बार चंद्रमुखी.... तो अगली बार किसी और चंदा के साथ मनाता है? यह एक फेक्ट है आप चाहकर भी इसको नकार नही सकते ... हम अक्सर अपने आस पास ऐसे वाकयों को देख चुके है जो हर रोज "रब ने बना दी जोड़ी " वाली एक नई "तानी " जी के पीछे भागते नजर आते है .... कॉलेज के दिनों से यह चलन चलता आ रहा है .... हर साल वैलेंटाइन प्रेमी बदलते जा रहे है.....
कुछ समय पहले तक मनोरंजन का साधन दूरदर्शन हुआ करता था... ९० के दशक में केबल की क्रांति आ गई... चैनलों की बाद आ गई... अपने बोली वुड में फिल्मो की बाढ आई हुई है..... दुर्भाग्य इस बात का है अपने प्रेमी बिरादरी वाले फिल्मो के चरित्र को अपने में उतरने की कोशिस करते है .... वह यह भूल जाते है रुपहले परदे और बुद्धू बक्से में जमीन आसमान का अन्तर होता है ..... हमारे यहाँ की ज्यादातर फिल्मे प्यार के फंडे पर बनी है ... "इश्क विश्क" से लेकर "मै प्रेम की दीवानी हूँ", "कहो ना प्यार है" से लेकर "मोहोबते" सभी प्यार के फंडे पर बनी है ... अगर "रब ने बना दी जोड़ी में शाहरुख़ " सुक्खीपापे" को तानी जी के पीछे दौड़ते हुए दिखाया जा रहा है तो आज प्राईमरी में पड़ने वाला बच्चा भी अपने स्कूल की तानी जी का पीछा करता नजर आएगा... अगर फ़िल्म में " हौले हौले सी हवा चलती है ..... हौले हौले से दवा लगती है.... हौले हौले से नशा चदता है... ......हौले हौले हो जाएगा प्यार "बज रहा है तो प्राईमरी का बालक भी इस गाने में अपनी स्कूल वाली तानी जी को ढूदता नजर आता है .... उसको अपनी स्कूल वाली तानी जी में " रब दिखाई देने लगता है.... फिर हरदम तानी जी की यादो से वह बाहर नही आ पाता .... प्राईमरी में पड़ने वाले न जाने ऐसे कितने लम्पट देवदास शायद यह भूल जाते है भारत में " सत्यम शिवम् सुन्दरम", "राम तेरी गंगा मैली" , जैसी फिल्मे भी किसी ज़माने में बनी है जो लोगो के जेहन में आज भी अपनी जगह बनाये हुए है .... यह सभी सच्चे प्यार का अहसास कराने के लिए काफी है..... आज वैलेंटाइन मनाना सबकी नियति बन चुका है.... कल ही रात में जिस बस से मै हबीबगंज उतरा .... उस बस में कुछ प्राईमरी में पड़ने वाले युवक सवार थे .... मैंने इस विषय पर उनकी नब्ज पकड़नी चाही .... जैसा मै सोच रहा था वैसा ही हुआ .... वह अपने मोबाइल में " तुझ में रब दिखताहै" गाना सुन रहे थे.... कहाँ से आ रहे है आप? यह पूछने पर जवाब मिला " १४ फरवरी की .....तैयारी है दादा ..... न्यू मार्केट से गिफ्ट ला रहे है ........
बहरहाल , आज प्यार की परिभाषा बदल गई है .... वैलेंटाइन का चस्का हमारे युवाओ में तो सर चदकर बोल रहा है , लेकिन उनका प्रेम आज आत्मिक नही होकर छणिक बन गया है... उनका प्यार पैसो में तोला जाने लगा है .... आज की युवा पीड़ी को न तो प्रेम की गहराई का अहसास है न ही वह सच्चे प्रेम को परिभाषित कर सकते है... उनके लिए प्यार मौज मस्ती का खेल बन गया है .....
नीचे की "पंक्तिया सटीक है.......
" अपने पर गौरव न तुम्हे
क्यों गीत पराया गाते हो
मीरा का प्रेम त्यागकर
तुम किसे पूजने जाते हो?
अश्लीलता में सने देह है
फिर बोलो कैसा दिल होगा
यह प्रेम नही फैशन है भइया
यहाँ हर प्रेमी कातिल होगा
ख़ुद को कहते प्रेमी क्या लाज नही आती तुम्हे
तुम तो तन के दीवाने हो
मन की सुन्दरता क्या भाती तुम्हे
क्यों आएना लोगो को दिखाते हो?
ख़ुद के चहरे को देखने से कतराते हो
क्यों चीर हरण का दुःख
चटखारे लेकर सुनते हो
बहस चर्चाएं आयोजित करते हो?
अश्लीलता को सुंदर गुलाबो से तोलते हो ?
चीर हरण की भूमिका पर
राय शुमारी क्यों नही करते
नारी को कर भोग्य रूप किस किया
संस्कृति कुरूप
उत्तर दो उत्तर दो....?
आज इतना ही.... कल पारिवारिक कार्यो के चलते बाहर जाना पड़ रहा है .... शायद दोस्तों को कुछ दिन तक मेरे ब्लॉग में कोई नई पोस्ट पदने को नही मिलेगी... आशा करता हूँ कि आप अपनी राय से मुझको अवगत करवाते रहेंगे ... अपने कार्यो को निपटाकर जब लौटूंगा तो उसके बात " बोलती कलम" में लिखने का सिलसिला चलता रहेगा .....