Wednesday, 21 July 2010

अज्ञात वास में जॉर्ज ......................

"कोई हम दम ना रहा ..... कोई सहारा ना रहा......................
हम किसी के ना रहे ........... कोई हमारा ना रहा........................
शाम तन्हाई की है ......... आएगी मंजिल कैसे.........
जो मुझे राह दिखाए....... वही तारा ना रहा ...............
क्या बताऊ मैं कहाँ............ यू ही चला जाता हू.......
जो मुझे फिर से बुला ले..........वो इशारा ना रहा........."


झुमरू
की याद जेहन में आ रही है ............. मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है........... पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड "....... सही से पता अब चल रहा है............

७० के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है........ कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नही की होगी.......कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज बीमार पड़ा है ....वह खुद अपने साथियो को नही पहचान पा रहा ......यह बीमारी संपत्ति विवाद में एक बड़ा अवरोध बन गयी है......


....."प्रशांत झा" मेरे सीनियर है.........अभी मध्य प्रदेश के नम्बर १ समाचार पत्र से जुड़े है........... बिहार के मुज्जफरपुर से वह ताल्लुक रखते है ......... जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती है तो खुद के हाल चाल कम राजनीती के मैदान के हाल चाल ज्यादा लिया करता हूँ ....... एक बार हम दोनों की मुलाक़ात में मुजफ्फरपुर आ गया ...


देश की राजनीती का असली बैरोमीटर यही मुजफ्फरपुर बीते कुछ वर्षो से हुआ करता था....... पिछले लोक सभा चुनावो में यह सिलसिला टूट गया...... यहाँ से जार्ज फर्नांडीज चुनाव लड़ा करते थे..... लेकिन १५ वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव ने उनको टिकट देने से साफ़ मन कर दिया........... इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था...

नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे......... पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली....... आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा...........


इन परिणामो को लेकर मेरा मन शुरू से आशंकित था...... इस चुनाव के विषय में प्रशांत जी से अक्सर बात हुआ करती थी..... वह कहा करते थे जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तेजी से हुए है... लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो सकती ...उनका आकलन सही निकला ... जार्ज को हार का मुह देखना पड़ा....

हाँ ,यह अलग बात है इसके बाद भी शरद और नीतीश की जोड़ी ने उनको राज्य सभा के जरिये बेक दूर से इंट्री दिलवा दी .........आज वही जार्ज अस्वस्थ है...... अल्जायीमार्स से पीड़ित है........ उनकी संपत्ति को लेकर विवाद इस बार तेज हो गया है..... पर दुःख की बात यह है इस मामले को मीडिया नही उठा रहा है.... जार्ज को भी शायद इस बात का पता नही होगा , कभी भविष्य में उनकी संपत्ति पर कई लोग अपनी गिद्ध दृष्टी लगाए बैठे होंगे..... पर हो तो ऐसा ही रहा है....

जार्ज असहाय है... बीमारी भी ऐसी लगी है कि वह किसी को पहचान नही सकते ... ना बात कर पाते है...... शायद इसी का फायदा कुछ लोग उठाना चाहते है.......

कहते है पैसा ऐसी चीज है जो विवादों को खड़ा करती है.......... जार्ज मामले में भी यही हो रहा है.... उनकी पहली पत्नी लैला के आने से कहानी में नया मोड़ आ गया है.... वह अपनेबेटे को साथ लेकर आई है जो जार्ज के स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रही है...

बताया जाता है जार्ज की पहली पत्नी लैला पिछले २५ सालो से उनके साथ नही रह रही है.... वह इसी साल नए वर्ष में उनके साथ बिगड़े स्वास्थ्य का हवाला देकर चली आई..... यहाँ पर यह बताते चले जार्ज और लैला के बीच किसी तरह का तलाक भी नही हुआ है...अभी तक जार्ज की निकटता जया जेटली के साथ थी....वह इस बीमारी में भी उनकी मदद को आगे आई और उनके इलाज की व्यवस्था करने में जुटी थी पर अचानक शान और लैला के आगमन ने उनका अमन ले लिया ....

जैसे ही जार्ज को इलाज के लिए ले जाया गया वैसे ही बेटे और माँ की इंट्री मनमोहन देसाई के सेट पर हो गयी ..... लैला का आरोप है जार्ज मेरा है तो वही जया का कहना है इतने सालो से वह उनके साथ नही है लिहाजा जार्ज पर पहला हक़ उनका बनता है.... अब बड़ा सवाल यह है कि दोनों में कौन संपत्ति का असली हकदार है...?


जार्ज के पेंच को समझने ले लिए हमको ५० के दशक की तरफ रुख करना होगा.... यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था..3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था.....५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया ... यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी ......कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज कि सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे... जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब १९६७ में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया ...

लोक सभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी ... इस जीत ने जार्ज को नायक बना दिया... बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए १९७४ में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए...उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे... जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी....


आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जेपीका समर्थन किया.. तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे ... लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा... १९७७ में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनको उद्योग मंत्री बनाया गया...

उस समय उनके मंत्रालय में जया जेटली के पति अशोक जेटली हुआ करते थे ... उसी समय उनकी जया जेटली से पहचान हुई ...बाद में यह दोस्ती में बदल गयी और वे उनके साथ रहने लगी....हालाँकि लैला कबीर उनकी जिन्दगी में उस समय आ गयी थी जब वह मुम्बई में संघर्ष कर रहे थे..

तभी उनकी मुलाकात तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री हुमायु कबीर की पुत्री लैला कबीर से हुई जो उस समय समाज सेवा से जुडी हुई थी... लैला के पास नर्सिंग का डिप्लोमा था और वह इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी ...बताया जाता है तब जार्ज ने उनकी मदद की...उनके साथ यही निकटता प्रेम सम्बन्ध में बदल गयी और २१ जुलाई १९७१ को वे परिणय सूत्र में बढ़ गए...


इसके बाद कुछ वर्षो तक दोनों के बीच सब कुछ ठीक चला...परन्तु जैसे ही जॉर्ज मोरार जी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाये गए तो लैला जॉर्ज से दूर होती गई... जॉर्ज अपने निजी सचिव अशोक जेटली कि पत्नी जया जेटली के ज्यादा निकट चली गई... इस प्रेम को देखते हुए लैला ने अपने को जॉर्ज से दूर कर लिया और ३१ अक्तूबर १९८४ से दोनों अलग अलग रहने लगे..इसके बाद लैला दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने लगी वही जॉर्ज कृष्ण मेनन मार्ग में...


अब इस साल की शुरुवात से संपत्ति को लेकर विवाद गरमा गया है..इसे पाने के लिए जया और लैला जोर लगा रहे है..चुनावो के दौरान जॉर्ज द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वह करोडो के स्वामी है जिनके पास मुम्बई , हुबली, दिल्ली में करोड़ो की संपत्ति है..यहीं नही मुम्बई के एक बैंक में उनके शेयरों की कीमत भी अब काफी हो चुकी है...


ऐसे में संपत्ति को लेकर विवाद होना तो लाजमी ही है.. जॉर्ज के समर्थको का कहना है जया ने उनको जॉर्ज की संपत्ति से दूर कर दिया है...वही वे ये भी मानते है जया ने उनका भरपूर इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया ...

सूत्र तो यहाँ तक बताते है कि जया के द्वारा जॉर्ज की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा झटक लिया गया है..२००९ में खुद जॉर्ज ने अपनी पोवार ऑफ़ अटोर्नी में इस बात का जिक्र किया है...वही जया ने लैला पर जबरन घर में घुसकर जॉर्ज के दस्तावेजो में हेर फेर के आरोप लगा भी जड़ दिए है..

यही नही जया का कहना है उन्हें जॉर्ज के गिरते स्वास्थ्य की बिलकुल भी चिंता नही है..वही लैला और उनके बेटे सुशांत कबीर का कहना है वे जॉर्ज के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है तभी वे हर पल उनके साथ है चाहे पतंजलि योगपीठ ले जाते समय कि बात हो या चाहे उनके गिरते स्वास्थ्य के समय की बात वे हर पल उनके साथ बने है॥


जया के समर्थको का कहना है संपत्ति हड़पने के आरोप लैला के द्वारा लगाये जाने सही नही है..अगर उन्हें गिरते स्वास्थ्य की थोड़ी से भी चिंता होती तो उन्हें देखने इस साल नही आती जब जॉर्ज बीमार हुए ...लैला भी कम नही है वे भी संपत्ति पर नजर लगाये बैठी है..

वैसे इस कहानी का एक पक्ष ये भी है की जया ने जॉर्ज का इस्तेमाल करना बखूबी सीखा है तभी उन्ही के कारन जॉर्ज की छवि कई बार धूमिल भी हुई है..जैसे रक्षा सौदों में दलाली से लेकर तहलका में उनके दामन पर दाग लगाने में जया की बड़ी भूमिका रही है..

यही नही जॉर्ज को मुजफ्फर पुर से लड़ने की रणनीति भी खुद जया की थी..इस हार के बाद उनको राज्य सभा में भेजने की कोई जरुरत नही थी...वैसे भी जॉर्ज कहा करते थे समाजवादी कभी राज्य सबह के रास्ते "इंट्री" नही करते..इन सब बातो के बावजूद भी उनका राज्य सभा जाना कई सवालों को जन्म देता है....

यही नही शरद नीतीश की जोड़ी का हाथ पकड़कर उनको राज्य सभा पहुचाना उनकी छवि पर ग्रहण लगाता है.. आखिर एका एक उनका मूड कैसे बदल गया ये फैसला कोई गले नही उतार पा रहा है..इसमें भी जया की भूमिका संदेहास्पद लगती है॥


बहरहाल जो भी हो आज जॉर्ज सरीखा शेर खुद दो पाटन के बीच फसकर रह गया है...जंग जारी है संपत्ति को लेकर विवाद अभी भी गरम है..जॉर्ज तो एक बहाना है॥

देखना होगा इस नूराकुश्ती में कौन विजयी होता है...? लैला कबीर के लिए राहत की बात ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उनको अपने साथ रखने की अनुमति दे दी है...

वैसे इससे ज्यादा अहम् बात जॉर्ज का गिरता स्वास्थ्य है जिसकी चिंता किसी को नही है॥ लेकिन"पैसा " एक ऐसी चीज है जो झगड़ो का कारन बनती है ये कहानी जॉर्ज की नही , कहानी घर घर की है.............देखना होगा ये कहानी किस ओर जाती है?

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नये तथ्य जानने को मिले।

Unknown said...

हर्षजी, जॉर्ज के बारे में आपके माध्यम से विस्तार से जानने को मिला... आपका विश्लेषण बहुत अच्छा लगा ... इसी तरह की जानकारी आगे भी मिलती रहेगी... उत्तराखंड का मान बढ़ाते रहिये.... अभी आपको बहुत आगे जाना है......

Alpana Verma said...

५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर जाने जाने वाले जार्ज साहब की सेहत के बारे में जान कर दुःख हुआ.
कुछ नयी बातें भी मालूम हुईं.

अच्छा लेख है.

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

achi jaankaari mili....badhaai

पी.एस .भाकुनी said...

harsh ji samyabhav ke karan blog lok main km hi ana jana hota hai .aaj aapke blog main aya to dekha ki jarg sahab ke barey main itni sari jankari bhari post ko main miss kr raha tha...thanks god ki ....bharhaal rochak jankariyon se bhapur is post hetu abhaar.vilamb se aaney ke liye kshma chahta hun

hem pandey said...

जार्ज फर्नांडीज के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी आज पहली बार पढी.उनके उद्योग मंत्री रहते मुझे उनका एक निर्णय बहुत अच्छा लगा, जो विरोध और दबाव के चलते लागू नहीं हो पाया. वह था कुछ उत्पादों को केवल लघु उद्योगों के लिए आरक्षित करना-जिनमें साबुन भी शामिल था. आज के खुले बाजार में तो आलू चिप्स जैसे घर में बनाए जाने वाली सामग्री भी मल्टीनेशनल कम्पनियां बेच रही हैं.

वर्ड वेरिफिकेशन हटा देंगे तो टिप्पणीकारों को सुविधा होगी.

Unknown said...

george ke bare me bahut kuch aapse jaana harsh ji......................... shukria ..........

Ankur Jain said...

achchha lekh...as always,
good