रविवार को जब टेलीविजन स्क्रीन पर इंडिया गेट और विजय पथ पर गैंगरेप के
विरोध में आक्रोशित युवाओ की लाइव तस्वीरें आ रही थी ठीक उसी समय सचिन रमेश तेंदुलकर के
वन डे क्रिकेट से सन्यास की खबरें टिकर पर ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में चलने
लगी । दिल्ली में हो रहे भारी विरोध प्रदर्शन के बीच क्रिकेट के भगवान की
सन्यास की खबरें कहीं दबकर रह गई और उसने कई सवालों को पहली बार खड़ा कर दिया ।
क्या अपने अब तक के क्रिकेट करियर में सचिन पहली बार चयनकर्ताओ की आलोचना
का शिकार बने ? आखिर एकाएक सचिन ने वन डे क्रिकेट को गुड बाय क्यों बोल
दिया ? सचिन ने इतनी बड़ी घोषणा पाकिस्तान की सीरीज से ठीक पहले क्यों कर
दी वह भी तब जब रणजी मैच में शतक बनाकर सचिन ने सबको मास्टर ब्लास्टर होने
के मायने बता दिए थे । वह महान खिलाडियों की तरह मैदान में सन्यास लेने का
फैसला क्यों नहीं कर पाए वह भी तब जब भारत के चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान की
टीम सीरीज खेलने भारत दौरे पर थी । क्या गांगुली, द्रविड़, वी वी एस की तर्ज
पर "फेबुलस फोर " का यह मुख्य पिलर बी सी सी आई की अंदरूनी राजनीती का
शिकार तो नहीं हुआ जिसने पहली बार उसको क्रिकेट की पिच पर हिट विकेट कर
दिया ? ये सवाल ऐसे हैं जो विदेशी खिलाडियों से लेकर सचिन के चाहने वाले
हर प्रशंसक को इन दिनों परेशान कर रहे हैं ।
22 साल 91 दिन ... 463 मैच ..18426 रन ... 86.23 का स्ट्राइक रेट .... इन बरसों में कई बल्लेबाज टीम में आये और कई गए । कई गेदबाज टीम में अपनी जगह बनाने में सफल हुए तो कई कुछ मैच खेलने के बाद न जाने कहाँ गुमनामी के अंधेरो में खो गए। इस दौरान खेल भी बदला समय ने ऊँची करवट ली लेकिन एक चीज जो नहीं बदली वह थी सचिन रमेश तेंदुलकर के तीन फीट लम्बे भारी बल्ले की धमक जिसकी आग ने मानो विपक्षी टीम का मान मर्दन करा दिया । सचिन का बल्ला अपनी आग उगलता रहा और क्रिकेट की किताब में एक -एक रन दर्ज होकर इतिहास बनता गया । शायद इसी वजह से भारतीय क्रिकेट का यह सितारा इतिहास में कोहिनूर बन गया और क्रिकेट का भगवान कहा जाने लगा लेकिन क्रिकेट के भगवान की वन डे पारी का ऐसा खामोश अंत इस तरह बेबस ढंग से होगा इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी ।
जिस समय बी सी सी आई के चयनकर्ता पाकिस्तान के साथ हाल में खेली जाने वाली सीरीज के लिए खिलाडियों का चयन कर रहे थे ठीक उसी समय क्रिकेट का यह भगवन वन डे क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारियों में जुटा हुआ था । बीते रविवार को जब पूरे देश की नजरें दिल्ली में गैंगरेप के विरोध में युवाओ के आक्रोश की तरफ थी तब सचिन ने बी सी सी आई के जरिए जारी किये गए एक प्रेस नोट में वन डे फोर्मेट से सन्यास का फैसला लेकर सभी को चौंका दिया । दिन ढलते ढलते यह खबर सभी की जुबान पर छा गई । सचिन के वन डे से सन्यास पर विपक्षी टीम के गेंदबाजो ने भले ही राहत की सांस ली हो लेकिन इस खबर ने उनके करोडो प्रशंसकों को मायूस ही किया । सचिन ने अपना अंतिम वन डे मैच मार्च 2012 में ढाका में खेला था जिसके बाद से वह टेस्ट क्रिकेट में ही ज्यादा रमे रहे लेकिन पिछले कुछ समय से उनके प्रदर्शन पर न केवल पूर्व भारतीय कप्तानो की एक बड़ी जमात सवाल उठा रही थी वरन उनको टीम से बाहर करने का ताना बाना बुन रही थी जिसमे चयनकर्ताओ के आसरे उन पर मजबूरन सन्यास का दबाव बनाया जा रहा था और शायद यही कारण था सचिन ने किसी के दबाव के आगे न झुकते हुए अपने अंतर्मन की आवाज को सुना और खुद को एकाएक वन डे से दूर करने का फैसला कर लिया । जबकि यह सच शायद ही किसी से छुपा है सचिन का प्रदर्शन पिछले कुछ समय से टेस्ट क्रिकेट में खराब चल रहा था । इस दौरान वह अपनी कई पारियों में 'क्लीन बोल्ड' हो गए थे । उनकी तकनीक को लेकर पहली बार इस दौर में सवाल उठने लगे जिसके बाद चयनकर्ताओ ने सचिन को नसीहत दे डाली अब नए खिलाडियों को मौका देने की मांग जोर पकड़ रही है लिहाजा वह खुद से सोचकर यह तय करें कि आगे उन्हें क्या करना है ? इसी के तहत "फेबुलस फोर " की जमात में शामिल रहे गांगुली ,राहुल द्रविड़, लक्ष्मण से जबरन सन्यास दिलवाया गया और सचिन भी चयनकर्ताओ की इस गुगली के फेर में आ गए ।
अपने अब तक के करियर में सचिन ने रिकार्डो का जो पहाड़ मैदान में खड़ा किया है उसे शायद ही आने वाले दिनों में कोई छू पाए । सचिन के नाम वन डे , टेस्ट मैचो में सबसे अधिक मैच , सबसे अधिक रन , शतक, अर्धशतक बनाने का रिकॉर्ड जहाँ दर्ज है वहीँ सबसे अधिक मैन आफ द मैच से लेकर मैन आफ द सीरीज जीतने तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं । तभी सर डॉन ब्रेडमैन ने एक दौर में सचिन में अपना अक्स देखा था और शेन वार्न सरीखे कलाई के जादूगर की रातो की नीद को उड़ा डाला था । सचिन के नाम अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतको का रिकॉर्ड दर्ज है । इसी साल मार्च में सचिन ने अपना आखरी शतक बांग्लादेश के खिलाफ ठोंका था । सचिन ने 463 वन डे मैचो की 452 परियो में 44.83 की औसत से 18426 रन बनाये तो वहीं वन डे में 49 शतक बनाकर अपनी बल्लेबाजी का लोहा पूरी दुनिया के सामने मनवाया । फ़रवरी 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वन डे में दोहरा शतक लगाने वाले पहले खिलाडी बनने के साथ ही गेदबाजी में अपना कमाल 154 विकेट लेकर दिखाया । साझेदारी बनाने से लेकर साझेदारी तोड़ने तक में सचिन का कोई सानी नहीं था । दो बार उन्होंने वन डे मैचो में एक साथ 5 विकेट झटकने के साथ ही सर्वाधिक 62 बार मैन आफ द मैच से लेकर 15 बार मैन आफ द सीरीज का रिकॉर्ड अपने नाम किया । वाल्श से लेकर डोनाल्ड , अकरम से लेकर वकार , शोएब अख्तर से लेकर ब्रेट ली और फिर शेन वार्न से लेकर मुरलीधरन सबकी गेदबाजी से सामने सचिन ऐसे चट्टान की भांति डटे रहते थे जिनका विकेट हर किसी के लिए अहम हो जाता था । 15 नवम्बर 1989 को पाकिस्तान के विरुद्ध महज 16 साल की उम्र में घुंघराले बाल वाले इस युवा खिलाडी ने जब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था को किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था कि भविष्य में यह खिलाडी क्रिकेट के देवता के देवता के रूप में पूजा जायेगा लेकिन सचिन ने अपनी प्रतिभा 1988 में ही दिखा दी जब अपने बाल सखा विनोद काम्बली के साथ 664 रन की रिकॉर्ड साझेदारी कर इतिहास रच डाला था । पाकिस्तान के दौरे में अब्दुल कादिर की गुगली पर उपर से छक्का जड़कर उन्होंने अपने इरादे जता दिए थे । यही नहीं उस दौर को अगर याद करें तो सियालकोट के टेस्ट में एक बाउंसर सचिन की नाक में जाकर लग गया । नाक से खून बह रहा था लेकिन इन सबके बीच सचिन मैदान से बाहर नहीं गए और डटकर गैदबाजो का सामना किया ।
1990 में इंग्लैंड का ओल्ड ट्रेफर्ड सचिन का पहले शतक का गवाह बना जब उन्होंने विदेशी धरती से अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी । इसके बाद सिडनी और पर्थ की खतरनाक समझी जाने वाली पिचों पर सचिन ने अपनी शतकीय पारियों से प्रशंसको का दिल जीत लिया । इसके बाद तो उनके नाम के साथ हर दिन नए रिकॉर्ड जुड़ते गए । आज सचिन की इन उपलब्धियों के पहाड़ पर कोई खिलाडी दूर दूर तक उनके पास तक नहीं फटकता । सचिन में एक खास तरह की विशेषता भी है जो उनको अन्य खिलाडियों से महान बनाती है । उनका क्रिकेट के प्रति जज्बा देखते ही बनता है और पूरे करियर के दौरान उन्होंने इसे जिया । शालीन और शांतप्रिय होने के अलावे धैर्य और अनुशासन उनमे ऐसा गुण था कि विषम परिस्थितियों में में सचिन अपना रास्ता खुद से तय करते थे । कभी शून्य पर भी आउट हो जाते तो आलोचकों को करारा जवाब अपने खेल से ही देते । टीम इंडिया में एक मार्गदर्शक के तौर पर उन्होंने युवाओ को एक नया प्लेटफार्म दिया जहाँ उनसे सलाह मांगने वालो में खुद धोनी , युवराज , भज्जी सरीखे खिलाडी शामिल रहते थे । प्रत्येक खिलाडी उनसे कुछ नया सीखने की कोशिश में रहता । यह हमारे लिए फक्र की बात है सचिन को हमने उनके शुरुवाती दौर से खेलते हुए देखा है । आने वाले भावी पीढियों को हम सचिन की गौरव गाथा बड़े गर्व के साथ सुना पाएंगे ।
सचिन के लिए वर्ल्ड कप एक सपना था और धोनी की अगुवाई वाली टीम का हिस्सा बनने पर उन्हें काफी नाज है । इसकी झलक वन डे सन्यास के समय उनके द्वारा दिए बयानों में साफ झलकी जहाँ उन्होंने टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर ख़ुशी जताई और अगले वर्ल्ड कप के लिए अभी से एकजुट हो जाने की बात कही । सचिन जैसे कोहिनूर अब भारत को शायद ही मिलें क्युकि सचिन जैसे समर्पण की बात आज के खिलाडियों में नदारद है । क्रिकेट आज एक मंडी में तब्दील हो चुका है जहाँ खिलाडियों की करोडो में बोलियाँ लग रही हैं । सारी व्यवस्था मुनाफे पर जा टिकी है जहाँ खेल का पेशेवराना पुराना अंदाज गायब है जो अस्सी और नब्बे के दशक में देखने को मिलता था । आज के युवा खिलाडियों की एक बड़ी जमात ट्वेंटी ट्वेंटी के जरिये अपनी प्रतिभा को दिखा रही है जबकि वन डे और टेस्ट क्रिकेट से उनका मोहभंग हो गया है । यही नहीं इसमें उनका प्रदर्शन भी फीका ही रहा करता है । ऐसे में बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है सचिन, गांगुली, राहुल , वी वी एस वाली लीक पर कौन आज के दौर में चलेगा वह भी उस दौर में जब ट्वेंटी ट्वेंटी टेस्ट से लेकर वन डे को लगातार निगल रहा है ।
बहरहाल सचिन ने वन डे से सन्यास के बाद अभी टेस्ट मैच खेलने की बात कही है । यह उनके करोडो चहेते प्रशंसको के लिए राहत की खबर है लेकिन उनके वन डे से अचानक लिए गए सन्यास पर सस्पेन्स अब भी बना है । आगे भी शायद यह बना रहे क्युकि मैदान से अन्दर और बाहर सचिन जिस शानदार टाइमिंग से खेलकर कई लोगो को आईना दिखाते थे वैसी टाइमिंग उनके सन्यास में देखने को नहीं मिली । जाहिर है सचिन पहली बार चयनकर्ताओ के निशाने पर सीधे तौर पर आये और आखिरकार दबाव झेलने की वजह से उन्होंने वन डे से अचानक सन्यास की घोषणा कर सभी को चौंका ही दिया ।
22 साल 91 दिन ... 463 मैच ..18426 रन ... 86.23 का स्ट्राइक रेट .... इन बरसों में कई बल्लेबाज टीम में आये और कई गए । कई गेदबाज टीम में अपनी जगह बनाने में सफल हुए तो कई कुछ मैच खेलने के बाद न जाने कहाँ गुमनामी के अंधेरो में खो गए। इस दौरान खेल भी बदला समय ने ऊँची करवट ली लेकिन एक चीज जो नहीं बदली वह थी सचिन रमेश तेंदुलकर के तीन फीट लम्बे भारी बल्ले की धमक जिसकी आग ने मानो विपक्षी टीम का मान मर्दन करा दिया । सचिन का बल्ला अपनी आग उगलता रहा और क्रिकेट की किताब में एक -एक रन दर्ज होकर इतिहास बनता गया । शायद इसी वजह से भारतीय क्रिकेट का यह सितारा इतिहास में कोहिनूर बन गया और क्रिकेट का भगवान कहा जाने लगा लेकिन क्रिकेट के भगवान की वन डे पारी का ऐसा खामोश अंत इस तरह बेबस ढंग से होगा इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी ।
जिस समय बी सी सी आई के चयनकर्ता पाकिस्तान के साथ हाल में खेली जाने वाली सीरीज के लिए खिलाडियों का चयन कर रहे थे ठीक उसी समय क्रिकेट का यह भगवन वन डे क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारियों में जुटा हुआ था । बीते रविवार को जब पूरे देश की नजरें दिल्ली में गैंगरेप के विरोध में युवाओ के आक्रोश की तरफ थी तब सचिन ने बी सी सी आई के जरिए जारी किये गए एक प्रेस नोट में वन डे फोर्मेट से सन्यास का फैसला लेकर सभी को चौंका दिया । दिन ढलते ढलते यह खबर सभी की जुबान पर छा गई । सचिन के वन डे से सन्यास पर विपक्षी टीम के गेंदबाजो ने भले ही राहत की सांस ली हो लेकिन इस खबर ने उनके करोडो प्रशंसकों को मायूस ही किया । सचिन ने अपना अंतिम वन डे मैच मार्च 2012 में ढाका में खेला था जिसके बाद से वह टेस्ट क्रिकेट में ही ज्यादा रमे रहे लेकिन पिछले कुछ समय से उनके प्रदर्शन पर न केवल पूर्व भारतीय कप्तानो की एक बड़ी जमात सवाल उठा रही थी वरन उनको टीम से बाहर करने का ताना बाना बुन रही थी जिसमे चयनकर्ताओ के आसरे उन पर मजबूरन सन्यास का दबाव बनाया जा रहा था और शायद यही कारण था सचिन ने किसी के दबाव के आगे न झुकते हुए अपने अंतर्मन की आवाज को सुना और खुद को एकाएक वन डे से दूर करने का फैसला कर लिया । जबकि यह सच शायद ही किसी से छुपा है सचिन का प्रदर्शन पिछले कुछ समय से टेस्ट क्रिकेट में खराब चल रहा था । इस दौरान वह अपनी कई पारियों में 'क्लीन बोल्ड' हो गए थे । उनकी तकनीक को लेकर पहली बार इस दौर में सवाल उठने लगे जिसके बाद चयनकर्ताओ ने सचिन को नसीहत दे डाली अब नए खिलाडियों को मौका देने की मांग जोर पकड़ रही है लिहाजा वह खुद से सोचकर यह तय करें कि आगे उन्हें क्या करना है ? इसी के तहत "फेबुलस फोर " की जमात में शामिल रहे गांगुली ,राहुल द्रविड़, लक्ष्मण से जबरन सन्यास दिलवाया गया और सचिन भी चयनकर्ताओ की इस गुगली के फेर में आ गए ।
अपने अब तक के करियर में सचिन ने रिकार्डो का जो पहाड़ मैदान में खड़ा किया है उसे शायद ही आने वाले दिनों में कोई छू पाए । सचिन के नाम वन डे , टेस्ट मैचो में सबसे अधिक मैच , सबसे अधिक रन , शतक, अर्धशतक बनाने का रिकॉर्ड जहाँ दर्ज है वहीँ सबसे अधिक मैन आफ द मैच से लेकर मैन आफ द सीरीज जीतने तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं । तभी सर डॉन ब्रेडमैन ने एक दौर में सचिन में अपना अक्स देखा था और शेन वार्न सरीखे कलाई के जादूगर की रातो की नीद को उड़ा डाला था । सचिन के नाम अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतको का रिकॉर्ड दर्ज है । इसी साल मार्च में सचिन ने अपना आखरी शतक बांग्लादेश के खिलाफ ठोंका था । सचिन ने 463 वन डे मैचो की 452 परियो में 44.83 की औसत से 18426 रन बनाये तो वहीं वन डे में 49 शतक बनाकर अपनी बल्लेबाजी का लोहा पूरी दुनिया के सामने मनवाया । फ़रवरी 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वन डे में दोहरा शतक लगाने वाले पहले खिलाडी बनने के साथ ही गेदबाजी में अपना कमाल 154 विकेट लेकर दिखाया । साझेदारी बनाने से लेकर साझेदारी तोड़ने तक में सचिन का कोई सानी नहीं था । दो बार उन्होंने वन डे मैचो में एक साथ 5 विकेट झटकने के साथ ही सर्वाधिक 62 बार मैन आफ द मैच से लेकर 15 बार मैन आफ द सीरीज का रिकॉर्ड अपने नाम किया । वाल्श से लेकर डोनाल्ड , अकरम से लेकर वकार , शोएब अख्तर से लेकर ब्रेट ली और फिर शेन वार्न से लेकर मुरलीधरन सबकी गेदबाजी से सामने सचिन ऐसे चट्टान की भांति डटे रहते थे जिनका विकेट हर किसी के लिए अहम हो जाता था । 15 नवम्बर 1989 को पाकिस्तान के विरुद्ध महज 16 साल की उम्र में घुंघराले बाल वाले इस युवा खिलाडी ने जब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था को किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था कि भविष्य में यह खिलाडी क्रिकेट के देवता के देवता के रूप में पूजा जायेगा लेकिन सचिन ने अपनी प्रतिभा 1988 में ही दिखा दी जब अपने बाल सखा विनोद काम्बली के साथ 664 रन की रिकॉर्ड साझेदारी कर इतिहास रच डाला था । पाकिस्तान के दौरे में अब्दुल कादिर की गुगली पर उपर से छक्का जड़कर उन्होंने अपने इरादे जता दिए थे । यही नहीं उस दौर को अगर याद करें तो सियालकोट के टेस्ट में एक बाउंसर सचिन की नाक में जाकर लग गया । नाक से खून बह रहा था लेकिन इन सबके बीच सचिन मैदान से बाहर नहीं गए और डटकर गैदबाजो का सामना किया ।
1990 में इंग्लैंड का ओल्ड ट्रेफर्ड सचिन का पहले शतक का गवाह बना जब उन्होंने विदेशी धरती से अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी । इसके बाद सिडनी और पर्थ की खतरनाक समझी जाने वाली पिचों पर सचिन ने अपनी शतकीय पारियों से प्रशंसको का दिल जीत लिया । इसके बाद तो उनके नाम के साथ हर दिन नए रिकॉर्ड जुड़ते गए । आज सचिन की इन उपलब्धियों के पहाड़ पर कोई खिलाडी दूर दूर तक उनके पास तक नहीं फटकता । सचिन में एक खास तरह की विशेषता भी है जो उनको अन्य खिलाडियों से महान बनाती है । उनका क्रिकेट के प्रति जज्बा देखते ही बनता है और पूरे करियर के दौरान उन्होंने इसे जिया । शालीन और शांतप्रिय होने के अलावे धैर्य और अनुशासन उनमे ऐसा गुण था कि विषम परिस्थितियों में में सचिन अपना रास्ता खुद से तय करते थे । कभी शून्य पर भी आउट हो जाते तो आलोचकों को करारा जवाब अपने खेल से ही देते । टीम इंडिया में एक मार्गदर्शक के तौर पर उन्होंने युवाओ को एक नया प्लेटफार्म दिया जहाँ उनसे सलाह मांगने वालो में खुद धोनी , युवराज , भज्जी सरीखे खिलाडी शामिल रहते थे । प्रत्येक खिलाडी उनसे कुछ नया सीखने की कोशिश में रहता । यह हमारे लिए फक्र की बात है सचिन को हमने उनके शुरुवाती दौर से खेलते हुए देखा है । आने वाले भावी पीढियों को हम सचिन की गौरव गाथा बड़े गर्व के साथ सुना पाएंगे ।
सचिन के लिए वर्ल्ड कप एक सपना था और धोनी की अगुवाई वाली टीम का हिस्सा बनने पर उन्हें काफी नाज है । इसकी झलक वन डे सन्यास के समय उनके द्वारा दिए बयानों में साफ झलकी जहाँ उन्होंने टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर ख़ुशी जताई और अगले वर्ल्ड कप के लिए अभी से एकजुट हो जाने की बात कही । सचिन जैसे कोहिनूर अब भारत को शायद ही मिलें क्युकि सचिन जैसे समर्पण की बात आज के खिलाडियों में नदारद है । क्रिकेट आज एक मंडी में तब्दील हो चुका है जहाँ खिलाडियों की करोडो में बोलियाँ लग रही हैं । सारी व्यवस्था मुनाफे पर जा टिकी है जहाँ खेल का पेशेवराना पुराना अंदाज गायब है जो अस्सी और नब्बे के दशक में देखने को मिलता था । आज के युवा खिलाडियों की एक बड़ी जमात ट्वेंटी ट्वेंटी के जरिये अपनी प्रतिभा को दिखा रही है जबकि वन डे और टेस्ट क्रिकेट से उनका मोहभंग हो गया है । यही नहीं इसमें उनका प्रदर्शन भी फीका ही रहा करता है । ऐसे में बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है सचिन, गांगुली, राहुल , वी वी एस वाली लीक पर कौन आज के दौर में चलेगा वह भी उस दौर में जब ट्वेंटी ट्वेंटी टेस्ट से लेकर वन डे को लगातार निगल रहा है ।
बहरहाल सचिन ने वन डे से सन्यास के बाद अभी टेस्ट मैच खेलने की बात कही है । यह उनके करोडो चहेते प्रशंसको के लिए राहत की खबर है लेकिन उनके वन डे से अचानक लिए गए सन्यास पर सस्पेन्स अब भी बना है । आगे भी शायद यह बना रहे क्युकि मैदान से अन्दर और बाहर सचिन जिस शानदार टाइमिंग से खेलकर कई लोगो को आईना दिखाते थे वैसी टाइमिंग उनके सन्यास में देखने को नहीं मिली । जाहिर है सचिन पहली बार चयनकर्ताओ के निशाने पर सीधे तौर पर आये और आखिरकार दबाव झेलने की वजह से उन्होंने वन डे से अचानक सन्यास की घोषणा कर सभी को चौंका ही दिया ।
3 comments:
दरअसल क्रिकेट का अस्सी-नब्बे के दशक में जो मान था, वह आज पूरी तरह से धुल चुका है। सचिन इसलिए श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उन्होंने क्रिकेटीय मान के समय पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की। यदि उन्होंने संन्यास ले लिया है तो बहुत अच्छा किया। क्योंकि आज क्रिकेट मान-सम्मान न रहकर धन-अर्जन का माध्यम बन गया है। सचिन और उनके प्रशंसकों को इस संन्यास से उदास नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे बढ़कर वह है, जो संन्यास से पहले वे क्रिकेट को दे चुके हैं।
महान खिलाड़ी का सन्यास , थोड़ा देर से ही सही।
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