एक समय था जब मध्य प्रदेश से अलग हुए आदिवासी
बाहुल्य छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के नाम का डंका बड़े जोर शोर के साथ बजा
करता था । साथ ही उनकी गिनती दस जनपद के खासमखास लोगो में होती थी जहाँ
पर उनका सिक्का बड़ी बेबाकी से चला करता था । उस दौर को याद करें तो अहमद पटेल से लेकर जनार्दन द्विवेदी हर कैम्प में उनकी तूती बोला करती थी । यही नही अविभाजित मध्य
प्रदेश में रायपुर में अपनी इसी प्रशासनिक दक्षता का लोहा जोगी ने आलाकमान के सामने भी मनवाया था शायद इसी के चलते पार्टी आलाकमान ने अजित जोगी को छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री
रुपी कांटो का ताज पहनाया .....
१ नवम्बर २००० की सुबह जोगी के लिए सुकून भरी साबित हुई । अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधायको की संख्या ज्यादा थी लिहाजा वहां की अंतरिम सरकार कांग्रेस की बनी । इस दौर में तकरीबन तीन साल जोगी को राजपाट सँभालने का मौका मिल गया । .2003 में चुनावी डुगडुगी बजी और विधान सभा चुनावो के बाद नई करवट बदली और रमन सिंह की बिछाई बिसात में जोगी ऐसे चारो खाने चित्त हो गए जिसके झटको से वह आज तक नहीं उबर पाए हैं । 2003 के बाद से उनके हाथ लगातार सत्ता फिसलती गई । यही वह दौर था जब अजित के बेटे अमित जोगी की दिलीप सिंह जूदेव प्रकरण के कारण खासी किरकिरी हुई । उस दौर को याद करें तो ऐसे आरॊप भी लगे जूदेव प्रकरण को हवा देने में उनके बेटे अमित जोगी की खासी अहम् भूमिका है । .इसके बाद एक मर्डर के सिलसिले में अमित जोगी को जेल की हवा भी खानी पड़ी ।
राजनीती संभावनाओ का खेल है॥ यहाँ चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती । उतार चदाव आते रहते है । बेटे का नाम मर्डर केस में आने के बाद छत्तीसगढ़ में २००३ के आम चुनाव में पार्टी ने अजित जोगी के चेहरे को आगे किया परन्तु उसके हाथ से सत्ता फिसल गई ..... मजबूर होकर जोगी को विपक्ष में बैठना पड़ा ....इसके बाद से लगातार राज्य में कांग्रेस का ग्राफ घटता जा रहा है.... खुद अजित जोगी की राजनीती पर अब संकट पैदा हो गया है...उनको करीब से जाने वाले कहते है वर्तमान दौर में उनकी राजनीती के दिन ढलने लगे है....खुद राज्य में जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे है.....इसी के चलते अब कई लोग और कांग्रेस के जानकार यह मानने लगे है अगर समय जोगी पर ज्यादा भरोसा किया गया तो राज्य में रमन सिंह तीसरी बार अपनी सरकार बना लेंगे..... शायद इसी को धयान में रख इस बार आलाकमान ने केंद्रीय मानती चरण दस महंत पर अपना भरोसा जताया है और उन्ही के चेहरे को लेकर चुनाव में जाने का मन बनाया है । आज स्थिति बदल चुकी है । छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के भीषण हमले ने जहाँ कांग्रेस के कई कद्दावर चेहरों को छीन लिया है वहीँ आने वाले विधान सभा चुनावो को लेकर पहली बार कांग्रेस के सामने असल संकट खड़ा हो गया है ।
२००४ में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर में है परन्तु अब पहले से कुछ ठीक होने बाद भी जोगी का राजनीती से मोह नही छूट रहा है ... जानकार बताते है कि जोगी एक दौर में आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे , आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में " चावल वाले बाबा जी " के मुकाबले जोगी की कोई पूछ परख तक नही होती .....यह बात धीरे धीरे अब जोगी भी समझ रहे है शायद तभी अब वह अपनी नयी बिसात बिछाकर आलाकमान को आइना दिखा रहे हैं ।
पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे । जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया ....बीते विधान सभा चुनावो में आदिवासी बाहुल्य इलाको में कांग्रेस को कुछ खास सफलता नहीं मिल सकी .....यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह जोगी अपने राज्य के आदिवासियों के बीच ठुकराए जा रहे है जबकि जोगी छत्तीसगढ़ में खुद को आदिवासियों का बड़ा हिमायती बताया करते थे ......भारतीय राजनीती में वंशवाद से कोई अछूता नही है फिर जोगी उस पार्टी की उपज है जहाँ सबसे ज्यादा वंशवाद की अमर बेल फैली है । इसकी परछाई जोगी पर स्वाभाविक पड़नी थी ... शायद इसी के चलते उन्होंने १५ वी लोक सभा के चुनावो में अपनी पत्नी डॉक्टर रेनू जोगी को लोक सभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वहां पर भी जोगी की नाक कट गई .....इसके बाद भी उनका राजनीती के प्रति उनका मोह कम नही हुआ .....राज्य सभा के जरिये केंद्र वाली सियासत करने में रूचि दिखाई लेकिन असफलता ही हाथ लगी......
जोगी की असल मुश्किल यह है वह अब भी छत्तीसगढ़ में खुद को सी एम के रूप में देखना चाहते हैं साथ ही आज भी अपने को आदिवासियों का बड़ा हिमायती मानने से परहेज नही करते है..... आलाकमान की इस बेरुखी और वक़्त की नजाकत को भापते हुए अब उन्होंने आदिवासी इलाको में अपने बेटे अमित के लिए सम्भावना तलाशनी शुरू कर दी है.....आदिवासी कार्ड खेलकर वह राज्य में अपने बेटे अमित के चेहरे को जनता के सामने लाकर उन्हें राज्य की राजनीती में अपनी विरासत सौपने की दिशा में जल्द ही कदम बढ़ाकर कोई बड़ा फैसला ले सकते है । ."जग्गी " हत्या कांड में जेल की यात्रा कर चुके अमित भी अब पिता के पग चिन्हों पर चलकर अपनी छवि बदलने की छटपटाहट में हैं ....
वह इस बात को जानते है चाहे राज्य के कांग्रेसी नेता और दिग्गी राजा का कैम्प उनके पिता को आने वाले दिनों में किनारे करने के मूड में है लेकिन पिता आदिवासी इलाके में उनको स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है.....अजित जोगी भी इस बात को बखूबी जान रहे है .. तभी उनकी नजर आदिवासियों के एक बड़े वोट बैंक पर आज भी लगी हुई है जो छत्तीसगढ़ के आने वाले विधान सभा चुनावो में उनके साथ आ सकता है ..... ये अलग बात है बस्तर में लोक सभा के उप चुनाव में वह पार्टी के लिए खास करिश्मा नही कर पाये .....इस चुनाव में बलिराम कश्यप के निधन से रिक्त हुई सीट भाजपा के पाले में चली गई.....लेकिन आदिवासियों की सभा में आज भी जोगी की एहमियत कम नही हुई है .... उनकी सभाओ में लोगो की भारी भीड़ उमड़ आती है....
हाल ही मे कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में भी अजित जोगी ने बड़ी भीड़ को अपने पक्ष में करने की लामबंदी की थी । अब जोगी की कोशिश है कि छत्तीसगढ़ में युवा नेतृत्त्व के नाम पर किसी तरह वह अपने बेटे अमित जोगी का दाव चल दें जिससे आलाकमान को कुछ हद तक अपने पक्ष में किया जा सके और आने वाले विधान सभा चुनाव में किसी भी तरह अमित जोगी को कांग्रेस पार्टी टिकट दे जिससे राज्य में वह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सके.....
देखना होगा अजित जोगी का यह दाव छत्तीसगढ़ में कितना कारगर साबित होता है.....?. इस बहाने अजित जोगी जहाँ अपने बेटे को आगे कर अपनी विरासत को आगे बदाएगे वही आदिवासियों के बीच अपनी लोकप्रियता के मद्देनजर अपने बेटे अमित जोगी की राजनीतिक राह आसान कर अपने विरोधियो को भी करारा जवाब दे सकेंगे । फिलहाल तो चरण दास महंत द्वारा छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान हाथ में आने और वहां पर दिग्गी गुट की बदती सक्रियता और राहुल दरबार से बढती निकटता के मद्देनजर अजित जोगी की छत्तीसगढ़ की राजनीती में वापसी के आसार तो मुश्किल ही दिख रहे हैं । वैसे भी उनके ही नेतृत्व में पार्टी लगातार दो विधान सभा चुनाव हार चुकी है । ऐसे में अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए जोगी के पास बेटे का ही आसरा बचा है जिससे वह छत्तीसगढ़ में अपनी साख बचाने में सफल हो सकते हैं ।
१ नवम्बर २००० की सुबह जोगी के लिए सुकून भरी साबित हुई । अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधायको की संख्या ज्यादा थी लिहाजा वहां की अंतरिम सरकार कांग्रेस की बनी । इस दौर में तकरीबन तीन साल जोगी को राजपाट सँभालने का मौका मिल गया । .2003 में चुनावी डुगडुगी बजी और विधान सभा चुनावो के बाद नई करवट बदली और रमन सिंह की बिछाई बिसात में जोगी ऐसे चारो खाने चित्त हो गए जिसके झटको से वह आज तक नहीं उबर पाए हैं । 2003 के बाद से उनके हाथ लगातार सत्ता फिसलती गई । यही वह दौर था जब अजित के बेटे अमित जोगी की दिलीप सिंह जूदेव प्रकरण के कारण खासी किरकिरी हुई । उस दौर को याद करें तो ऐसे आरॊप भी लगे जूदेव प्रकरण को हवा देने में उनके बेटे अमित जोगी की खासी अहम् भूमिका है । .इसके बाद एक मर्डर के सिलसिले में अमित जोगी को जेल की हवा भी खानी पड़ी ।
राजनीती संभावनाओ का खेल है॥ यहाँ चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती । उतार चदाव आते रहते है । बेटे का नाम मर्डर केस में आने के बाद छत्तीसगढ़ में २००३ के आम चुनाव में पार्टी ने अजित जोगी के चेहरे को आगे किया परन्तु उसके हाथ से सत्ता फिसल गई ..... मजबूर होकर जोगी को विपक्ष में बैठना पड़ा ....इसके बाद से लगातार राज्य में कांग्रेस का ग्राफ घटता जा रहा है.... खुद अजित जोगी की राजनीती पर अब संकट पैदा हो गया है...उनको करीब से जाने वाले कहते है वर्तमान दौर में उनकी राजनीती के दिन ढलने लगे है....खुद राज्य में जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे है.....इसी के चलते अब कई लोग और कांग्रेस के जानकार यह मानने लगे है अगर समय जोगी पर ज्यादा भरोसा किया गया तो राज्य में रमन सिंह तीसरी बार अपनी सरकार बना लेंगे..... शायद इसी को धयान में रख इस बार आलाकमान ने केंद्रीय मानती चरण दस महंत पर अपना भरोसा जताया है और उन्ही के चेहरे को लेकर चुनाव में जाने का मन बनाया है । आज स्थिति बदल चुकी है । छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के भीषण हमले ने जहाँ कांग्रेस के कई कद्दावर चेहरों को छीन लिया है वहीँ आने वाले विधान सभा चुनावो को लेकर पहली बार कांग्रेस के सामने असल संकट खड़ा हो गया है ।
२००४ में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर में है परन्तु अब पहले से कुछ ठीक होने बाद भी जोगी का राजनीती से मोह नही छूट रहा है ... जानकार बताते है कि जोगी एक दौर में आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे , आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में " चावल वाले बाबा जी " के मुकाबले जोगी की कोई पूछ परख तक नही होती .....यह बात धीरे धीरे अब जोगी भी समझ रहे है शायद तभी अब वह अपनी नयी बिसात बिछाकर आलाकमान को आइना दिखा रहे हैं ।
पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे । जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया ....बीते विधान सभा चुनावो में आदिवासी बाहुल्य इलाको में कांग्रेस को कुछ खास सफलता नहीं मिल सकी .....यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह जोगी अपने राज्य के आदिवासियों के बीच ठुकराए जा रहे है जबकि जोगी छत्तीसगढ़ में खुद को आदिवासियों का बड़ा हिमायती बताया करते थे ......भारतीय राजनीती में वंशवाद से कोई अछूता नही है फिर जोगी उस पार्टी की उपज है जहाँ सबसे ज्यादा वंशवाद की अमर बेल फैली है । इसकी परछाई जोगी पर स्वाभाविक पड़नी थी ... शायद इसी के चलते उन्होंने १५ वी लोक सभा के चुनावो में अपनी पत्नी डॉक्टर रेनू जोगी को लोक सभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वहां पर भी जोगी की नाक कट गई .....इसके बाद भी उनका राजनीती के प्रति उनका मोह कम नही हुआ .....राज्य सभा के जरिये केंद्र वाली सियासत करने में रूचि दिखाई लेकिन असफलता ही हाथ लगी......
अब
जोगी यह बात भली भांति शायद जान गए है मौजूदा समय में उनका राज्य में बड़े
पैमाने पर सक्रिय हो पाना असंभव लगता है ॥ साथ ही पार्टी आलाकमान ने उन पर
घास डालनी बंद कर दी है... प्रदेश राजनीती में उनके विरोधियो ने उनको
हाशिये पर धकेल दिया है इस लिहाज से वह अपना खुद का वजूद बचाने में लगे हुए
है......बीते दिनों छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में मारे गए नेताओ की
श्रद्धान्जली सभा में जिस तरह के तल्ख़ तेवर अजित जोगी ने दिखाए हैं उससे
साफ़ जाहिर होता है कि आलाकमान जोगी को आने वाले विधान सभा चुनावो से दूर
रखना चाहता है लिहाजा जोगी ने इस शोक सभा में दिग्गी राजा पर निशाना साधकर
यह कहा छत्तीसगढ़ को बाहरी नेताओ की अब आवश्यकता नही है । वह दिल्ली से
आयातित नेताओ को छत्तीसगढ़ चुनावो का चेहरा बनांये जाने से अन्दर ही अन्दर
बेहद आहत दिखे और सभा में झल्लाकर अपने तल्ख़ तेवर दिखाकर उन्होंने
पार्टी आलाकमान की चुनाव से पहले मुश्किलों को बढाने का काम एक तरह से किया
है ।
जोगी की असल मुश्किल यह है वह अब भी छत्तीसगढ़ में खुद को सी एम के रूप में देखना चाहते हैं साथ ही आज भी अपने को आदिवासियों का बड़ा हिमायती मानने से परहेज नही करते है..... आलाकमान की इस बेरुखी और वक़्त की नजाकत को भापते हुए अब उन्होंने आदिवासी इलाको में अपने बेटे अमित के लिए सम्भावना तलाशनी शुरू कर दी है.....आदिवासी कार्ड खेलकर वह राज्य में अपने बेटे अमित के चेहरे को जनता के सामने लाकर उन्हें राज्य की राजनीती में अपनी विरासत सौपने की दिशा में जल्द ही कदम बढ़ाकर कोई बड़ा फैसला ले सकते है । ."जग्गी " हत्या कांड में जेल की यात्रा कर चुके अमित भी अब पिता के पग चिन्हों पर चलकर अपनी छवि बदलने की छटपटाहट में हैं ....
वह इस बात को जानते है चाहे राज्य के कांग्रेसी नेता और दिग्गी राजा का कैम्प उनके पिता को आने वाले दिनों में किनारे करने के मूड में है लेकिन पिता आदिवासी इलाके में उनको स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है.....अजित जोगी भी इस बात को बखूबी जान रहे है .. तभी उनकी नजर आदिवासियों के एक बड़े वोट बैंक पर आज भी लगी हुई है जो छत्तीसगढ़ के आने वाले विधान सभा चुनावो में उनके साथ आ सकता है ..... ये अलग बात है बस्तर में लोक सभा के उप चुनाव में वह पार्टी के लिए खास करिश्मा नही कर पाये .....इस चुनाव में बलिराम कश्यप के निधन से रिक्त हुई सीट भाजपा के पाले में चली गई.....लेकिन आदिवासियों की सभा में आज भी जोगी की एहमियत कम नही हुई है .... उनकी सभाओ में लोगो की भारी भीड़ उमड़ आती है....
हाल ही मे कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में भी अजित जोगी ने बड़ी भीड़ को अपने पक्ष में करने की लामबंदी की थी । अब जोगी की कोशिश है कि छत्तीसगढ़ में युवा नेतृत्त्व के नाम पर किसी तरह वह अपने बेटे अमित जोगी का दाव चल दें जिससे आलाकमान को कुछ हद तक अपने पक्ष में किया जा सके और आने वाले विधान सभा चुनाव में किसी भी तरह अमित जोगी को कांग्रेस पार्टी टिकट दे जिससे राज्य में वह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सके.....
देखना होगा अजित जोगी का यह दाव छत्तीसगढ़ में कितना कारगर साबित होता है.....?. इस बहाने अजित जोगी जहाँ अपने बेटे को आगे कर अपनी विरासत को आगे बदाएगे वही आदिवासियों के बीच अपनी लोकप्रियता के मद्देनजर अपने बेटे अमित जोगी की राजनीतिक राह आसान कर अपने विरोधियो को भी करारा जवाब दे सकेंगे । फिलहाल तो चरण दास महंत द्वारा छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान हाथ में आने और वहां पर दिग्गी गुट की बदती सक्रियता और राहुल दरबार से बढती निकटता के मद्देनजर अजित जोगी की छत्तीसगढ़ की राजनीती में वापसी के आसार तो मुश्किल ही दिख रहे हैं । वैसे भी उनके ही नेतृत्व में पार्टी लगातार दो विधान सभा चुनाव हार चुकी है । ऐसे में अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए जोगी के पास बेटे का ही आसरा बचा है जिससे वह छत्तीसगढ़ में अपनी साख बचाने में सफल हो सकते हैं ।
2 comments:
sarthak tathyon se parichay karvati aapki post gyanvardhak hai .aabhar
हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
pandey ji sach ye bhi hai ki jab tak jogi ko sath me nahi liya jata tab tak congres ki naiya par nahi ho sakti hai
aur jogi ko cm se kam pasand bhi nahi hoga har hal me dusre gut ko jogi ki baat mani padegi tabhi hi cg me congres ke liye kuchh ho sakta hai ,baat rahi 2008 ke vidhansabha chunav ki to bjp aur congress me 49 aur 39 seat yani panch seat congress ko mil jati to congress ka parcham lahra jata par khuda na khasta aisa huaa nahi .....lekin jogi ke bina congress ko cg ka kila fatah karna mushkil hi nahi namumkin hai
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