Saturday, 13 July 2013

10 जनपथ की कालकोठरी मे कैद काँग्रेस

संसदीय राजनीती के मायने भले ही इस दौर में बदल गए हों और उसमे सत्ता का केन्द्रीयकरण देखकर अब 
उसे विकेंद्रीकृत किये जाने की बातकी जा रही हो लेकिन देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस में परिवारवाद के साथ ही सत्ता के केन्द्रीकरण का दौर नही थम रहा है .....दरअसल आज़ादी के बादसे ही कांग्रेस में सत्ता का मतलब एक परिवार के बीच सत्ता का केन्द्रीकरण रहा है....फिर चाहे वो दौर पंडित जवाहरलाल  का हो या इंदिरागाँधी या फिर राजीव गाँधी का ... राजीव गाँधी के दौर के खत्म होने के बाद एक दौर ऐसा भी आया जब कांग्रेस पार्टी कीसत्ता लडखडाती नजरआई..... उस समय पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान सीता राम केसरी के हाथो में थी..... यही वह दौर था जिस समय कांग्रेस पार्टी सबसे बुरे दौर सेगुजरी..... यही वह दौर था जब भाजपा ने पहली बार गठबंधन सरकार का युग शुरू किया और अपने बूते गठबंधन की बिछाई बिसात मे  केन्द्र की सत्ता पायी थी.... 
उस शाइनिंग इंडिया  वाले दौर दौर में किसी ने शायद कल्पना  भी नही की थी कि एक दिन फिर यही कांग्रेस पार्टी भाजपा को सत्ता से बेदखल कर केन्द्र में सरकार बना पाने मेंसफल हो जाएगी.... यही नही वामपंथियों की बैसाखियों के आसरे 
अपनेपहले कार्यकाल में टिकी रहने वाली कांग्रेस अन्य पार्टियों से जोड़ तोड़ करसत्ता पर काबिज हो जाएगी और "मनमोहनशतरंज की बिसात पर सभी को पछाड़कर दुबारा "किंगबन जायेंगे ऐसी कल्पना भी शायद किसी ने नही की होगी ......

दरअसल इस समूचे दौर में कांग्रेस पार्टी की परिभाषा के मायने बदल चुके है ....उसमे अब परिवारवाद की थोड़ी महक है और कही ना कहींभरोसेमंद "ट्रबल शूटरोका भी समन्वय.....इसी के आसरे उसने यू पी   से यू पी   की छलांग लगाई है ....और पहली बार वह हाफती हुई लड़खड़ाकर सत्ता की दहलीज पर पहुँचती दिख  रही है क्युकि इस दौर मे भाजपा नमो नमो के जाप से अपने को नहीं बचा पा रही है और नए सहयोगी एन डी ए को मिलने  दूर की गोटी हो चले हैं | साथ ही नमो को सीधे पी एम के रूप मे प्रोजेक्ट करने पर भी भाजपा मे अंदरखाने भारी अंतर
विरोध देखा जा सकता है | ऐसी सूरत मे तमाम दागो के बावजूद काँग्रेस फिर से अपने लिए केंद्र मे नई संभावनाएँ  देख रही है | उसे पूरा भरोसा  है चुनाव के बाद कई नए  पुराने सहयोगी हाथ के साथ आ ही जाएंगे |   इस काम मे वह अपने भरोसेमंद लोगो को साथ ले रही है जिसमे दस जनपथ अपने अनुरूप नई बिसात बिछाता नजर आ रहा है जहां इस बार सोशल मीडिया से लेकर चुनाव प्रचार और वार रूम पॉलिटिक्स से लेकर राज्यो के नए प्रभारियो के जरिये चुनावी संग्राम मे कूदने का मन बनाया जा चुका है और पहली बार खाद्य सुरक्षा सरीखी नीतियो को जल्द से जल्द अमली जामा पहनाने की कोशिशे दस जनपथ की तरफ से हो रही है ताकि जल्द चुनावी जुआ खेले जाने की सूरत मे काँग्रेस को परोक्ष रूप से लाभ मिल सके | 

सोनिया गाँधी ने जब से हिचकोलेखाती कांग्रेस की नैय्या पार लगाने की कमान खुद  संभाली है तब से सही मायनों में कांग्रेस की सत्ता का संचालन १० जनपथ से हो रहा है ..... यहाँपर सोनिया के भरोसेमंद कांग्रेस की कमान को ना केवल संभाले हुए है बल्कि पी ऍम  तक को इनके आगे नतमस्तक होना पड़ता है .....

इस दौर में कांग्रेस की सियासत १० जनपथ से तय हो रही है जहा पर कांग्रेस के 
सिपहसलार समूची व्यवस्था को इस तरह संभाल रहे है कि उनकेहर निर्णय पर सोनिया की सहमती जरुरी बन जाती है.... दस जनपथ की कमान पूरी तरह से इस समय अहमद 
पटेल के जिम्मे हैजिनकेनिर्देशों पर इस समय पूरी पार्टी चल रही है....."अहमद भाईके नाम से मशहूर इस शख्स के हर निर्णय के पीछे सोनिया गाँधी की सहमती रहती है.... सोनिया के "फ्री हैण्ड " मिलने के चलते कम से कम कांग्रेस में तो आज कोई भी 
अहमद पटेल को नजरअंदाज नही कर सकता है...
     कांग्रेस में अहमद पटेल की हैसियत देखिये बिना उनकी हरी झंडी के बिना कांग्रेस में पत्ता तक नही हिला करता ....कांग्रेस में "अहमद भाई"की ताकत का अंदाजा इसी बात से 
लगाया जा सकता है कि पार्टी के किसी भी छोटे या बड़े नेता या कार्यकर्ता को सोनिया से मिलने के लिए सीधेअहमद पटेल से अनुमति लेनी पड़ती है.....अहमद की इसी रसूख के आगे पार्टी के कई कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करते है लेकिनसोनिया मैडम के 
आगे कोई भी अपनी जुबान खोलने को तैयार नही होता है .... कांग्रेस के एक कैबिनेट मंत्री ने मुझे बीते दिनों बताया कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य मंत्री अहमद पटेल से 
अनुमति लेकर ही सोनिया से मिलते है ....

अहमद भाई को समझने के लिए हमें ७० के दशक की ओर रुख करना होगा.....यही वह 
दौर था जब अहमद गुजरात की गलियों में अपनी पहचानबना रहे थे.....उस दौर में अहमद पटेल "बाबू भाईके नाम से जाने जाते थे और १९७७ से १९८२ तक उन्होंने गुजरात यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पदकी कमान संभाली .....७७ के ही दौर में वो भरूच कोपरेटिव बैंक के निदेशक भी रहे.....

इसी समय उनकी निकटता राजीव के पिता फिरोज गाँधी से भी बढ़ गई क्युकि राजीव के पिता फिरोज का सम्बन्ध अहमद पटेल के गृह नगर सेपुराना था..... 

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