उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव के ठीक बाद पंचायत चुनावो में चली मुख्यमंत्री हरीश रावत की सुनामी ने यह जतला दिया है कि राज्य में अब मोदी की हवा
इस कदर निकल चुकी है कि लोगो का नमो से धीरे धीरे मोहभंग हो चला है | लोक सभा चुनाव के बाद अब इससे हरीश रावत फैक्टर उत्तराखंड में निश्चित ही
मजबूत हो गया है वहीँ नमो की लहर औंधे मुह
गिर चुकी है शायद इसी वजह से भाजपा को
धारचूला, सोमेश्वर और डोईवाला में करारी
हार का सामना करने को मजबूर होना पड़ा है |
इस जीत का सीधा प्रभाव कांग्रेस के मनोबल को बढाने के साथ ही आने वाले समय में
हरियाणा , महाराष्ट्र और झारखंड, जम्मू के विधान सभा चुनावो और कई राज्यों में विधान
सभा उपचुनाव में पड़ने के आसार हैं |
मोदी लहर में उत्तराखण्ड की पांचों लोकसभा सीटें बीजेपी
के खाते में जहाँ गई थी वहीँ भाजपा
में डॉ निशंक और भगत सिंह कोश्यारी सरीखे
लोग अपने को बड़ा तीस मार खान समझने लगे थे लेकिन विधानसभा उपचुनाव के ठीक बाद हुए पंचायत चुनाव
के परिणामो के बाद उत्तराखण्ड भाजपा को
सांप सूंघ गया है शायद यही वजह है भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के निशाने पर पहली बार उत्तराखंड भाजपा
का ऐसा चेहरा सामने आया है जो बाबा रामदेव
के साथ अपनी गलबहियो के जरिये मोदी मंत्रिमंडल में उत्तराखंड से शामिल होने का हर
दाव अंतिम समय तक खेलने से बाज नहीं आया लेकिन उस शख्स के अतीत को देखते हुए मोदी टस से मस नहीं हुए और
किसी एक सांसद पर सहमति न बनने की सूरत में उन्होंने उत्तराखंड से किसी को
केंद्रीय मंत्रिमडल में शामिल नहीं किया |
गौरतलब है निशंक पर एनआरएचएम, सिटजुरिया से लेकर कुम्भ में करोडो के वारे न्यारे करने के संगीन आरोप लगे
हैं लेकिन इसके बाद भी निशंक अपने प्रबंधन से इस बार हरिद्वार से लोक सभा चुनाव जीत गए वहीँ उत्तराखंड से कैबिनेट
मंत्री के तौर पर बी सी खंडूरी की सबसे मजबूत दावेदारी मानी जा रही थी लेकिन सत्तर
के खांचे में वह खुद कोश्यारी के साथ फिट
नहीं बैठे जिसके चलते उनकी दावेदारी भी अंत समय में धरी की धरी रह गयी | उत्तराखंड में भाजपा की यह गुटबाजी कोई नई नहीं
है | तीनो पूर्व मुख्यमत्री कोश्यारी
,खंडूरी और निशंक ने पहले तो राज्य में आपसी प्रतिद्वंदिता सी एम की कुर्सी पाने
को लेकर की बाद में इसी गुटबाजी का भारी
नुकसान भाजपा को उठाने पर उस समय मजबूर
होना पड़ा जब राज्य के बीते विधान सभा चुनाव में पार्टी कांग्रेस से दो सीटें पीछे
रही थी | भाजपा की इस दुखती रग का पूरा
फायदा इस बार हरीश रावत ने उठाया और उत्तराखंड में सरकार को मजबूत बनने में सफलता पायी | इसी बिसात पर हरीश
रावत ने एम्स से अपनी रणनीतियो को इस कदर अंजाम दिया कि भाजपा के बड़े बड़े सूरमा
धराशायी हो गए |
कोश्यारी , निशंक ,
खंडूरी की गुटबाजी ने इस बार पंचायत चुनावो और उपचुनाव में भाजपा का जायका ही खराब करवा दिया और पहली बार अमित शाह को 24,
अशोका रोड में परिणाम आने के बाद डॉ निशंक को कड़ी लताड़ लगाने को मजबूर होना पड़ा | उत्तराखंड के उपचुनाव में दो सीटें डोईवाला और सोमेश्वर ऐसी थी जो भाजपा विधायकों के सांसद बनने से रिक्त
हुई थीं। इन दोनों सीटों के खोने से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह
इतने नाराज हैं कि उत्तराखंड के भाजपा अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत को दस मिनट की तगड़ी
लताड़ अमित शाह से सुनने को मिली है जिसके बाद उन्हें तत्काल देहरादून वापस लौटने
को मजबूर होना पड़ा |
अब अमित शाह से अगली बार तीरथ रावत जब मिलेंगे तो वह हर बूथ का रिपोर्ट कार्ड ले जाना नहीं भूलेंगे
जहाँ अभी तीन सीटो पर उपचुनाव हुए हैं | वैसे मोदी लहर में पांच सीटें उत्तराखंड
में अपने नाम करने से भाजपा इतना गदगद थी कि पंचायत चुनावो और उपचुनावों और पंचायत चुनावो को उसने हलके में लेना शुरू कर
दिया था | उत्तराखंड में लोक सभा चुनावो के बाद कहा तो यहाँ तक जा रहा था सतपाल
महाराज हरीश रावत सरकार को लोक सभा चुनावो के बाद गिरवा देंगे जिससे कांग्रेस पर
संकट के बादल मडरा जायेंगे लेकिन खांटी कांग्रेसी हरीश ने उत्तराखंड के जननेता के
तौर पर उपचुनाव में अपने को बखूबी साबित कर दिखाया है |
हरीश के
मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद से विजय बहुगुणा इतना नाराज हो चले थे कि कैबिनेट मंत्री
हरक सिंह रावत को आगे कर वह दस जनपथ में
अपनी नाखुशी को अहमद पटेल , अम्बिका सोनी ,
जनार्दन द्विवेदी और सोनिया गाँधी के
सामने जाहिर कर चुके थे लेकिन हरीश रावत ने अपने प्रबंधन और कौशल से ना केवल उपचुनाव में बल्कि पंचायत चुनावो में भी कांग्रेस को जीत
दिलवाकर अब अपनी राहें उत्तराखंड में मजबूत कर ली हैं |
हरीश की मृदु भाषिता , सादा जीवन , कार्यकर्ताओ से सीधा
संवाद और जमीनी नेता के तौर पर पहचान न केवल उनको उत्तराखंड के अन्य नेताओ से अलग
करती है बल्कि यही पहचान सब पर भारी पड़ती है | सत्तर के दशक से शुरू हुई हरीश रावत
की राजनीतिक यात्रा आज जिस पड़ाव पर है
उसमे कई उतार चदाव हमें देखने को मिलते हैं | ब्लाक प्रमुख , प्रदेश यूथ कांग्रेस महासचिव
के तौर पर शुरू हुई उनकी राजनीतिक यात्रा आज सी एम पद के पड़ाव पर है लेकिन रावत की
राजनीतिक महत्वाकांशा के पर अगर किसी ने कतरे तो वह अविभाजित उत्तर प्रदेश एके
मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे जिनका हरीश रावत के साथ शुरू से छत्तीस का
आंकड़ा जगजाहिर रहा और समय समय पर इसी प्रतिद्वंदिता की मार हरीश को अपने राजनीतिक
जीवन में झेलने को मजबूर होना पड़ा |
हरीश
रावत को एन डी तिवारी घोर ब्राह्मण विरोधी नेता के तौर पर साबित करने से कभी पीछे
नहीं हटे | पहाड़ के राजनीतिक मिजाज को देखें तो यहाँ वोटो का ध्रुवीकरण ब्राह्मण
बनाम ठाकुर मतों के आधार पर होता आया है और हरीश रावत भी अपने राजनीतिक जीवन में
इससे नहीं बच सके यह अलग बात है अब हरीश रावत सभी को विकास के आसरे साधने की कोशिश
कर रहे हैं और अब उत्तराखंड भी बदल रहा है शायद यही वजह है अब लोग जातिवादी
राजनीती से इतर पहली बार विकास के आधार पर वोट कर रहे हैं | उत्तराखंड बनने के बाद हरीश रावत का मुख्य
मंत्री पद पर दावा सबसे मजबूत था लेकिन नारायण कवच ने उनकी राह पर स्पीड ब्रेकर लगाये
वही बाद में विधायको के ना चाहते हुए 2012 में विजय बहुगुणा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया
गया तब भी हरीश रावत ही प्रबल दावेदार थे |
उस दौर को याद करें तो जेहन में 9 तीन मूर्ति लेन आता है जब रावत के समर्थको ने
आलाकमान के इस फैसले को कड़ी चुनौती दी थी बाद में आलाकमान ने हरीश रावत को कैबिनेट
मंत्री बनाने का फैसला लिया जिसके बाद मामला थोडा ठंडा पड़ा लेकिन इससे बहुगुणा की मुश्किलें
कम नहीं हुई | केदारनाथ के बीते बरस के हादसे ने विजय बहुगुणा का विकेट गिरा दिया लेकिन
बहुगुणा ने जिस अंदाज में उत्तराखंड में
पारी खेली और आपदा के दौर में अपने को प्रभावित इलाको से दूर कर लय वैसी मिसाल
हमें कहीं देखने को नहीं मिलती | अपने कार्यकाल में बहुगुणा के बेटे साकेत
उत्तराखंड के सबसे बड़े सुपर पावर सेण्टर
के रूप में काम करने लगे जिसके चलते लोग
परेशान हो गए | इसी दौर में करोडो के वारे
न्यारे भी हुई और साकेत और विजय बहुगुणा की सम्पत्ति में भी
सेंसेक्स की तरह उछाल आ गया | विजय बहुगुणा कार्यकर्ताओ को मिलने का समय
नहीं दे सके लेकिन कॉर्पोरेट घरानों को अपने पक्ष में कर उत्तराखंड में सरकार
चलाते रहे |
तीनो सीटें उत्तराखंड उपचुनाव में अपने नाम कर चुकी
कांग्रेस अब इस जीत के बाद मजबूत हुई है राज्य में उसके विधायको की संख्या 35 हो
गयी है | इसी के साथ ही अब वह पीडीएफ की गठबंधन की बैसाखियों पर भी नहीं टिकी है |
बहुत संभव है आने वाले दिनों में हरीश अब अपने कैबिनेट मे बड़ा फेरबदल कर निर्दलीय
और बसपा , यू के डी का प्रतिनिधित्व कम कर दें जिससे कांग्रेस के ज्यादा विधायक
कैबिनेट में जगह पाने में कामयाब हो जाएँ |
इस हार के बाद
उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश कार्यालय में माहौल
बदला बदला सा नजर आ रहा है | उपचुनावों के परिणाम जिस दिन आये उस दिन
डोईवाला से भगत सिंह कोश्यारी के
हनुमान त्रिवेन्द्र सिंह रावत के समर्थको
ने हार का ठीकरा सांसद डॉ निशंक पर फोड़ा
है जिनके समर्थको ने भीतर घात कर त्रिवेन्द्र रावत को हरवा दिया | वैसे निशंक
उत्तराखंड में इस तरह के आरोप कोई पहली
बार नहीं झेल रहे हैं | निशंक के भीतरघात का शिकार पूर्व में ईमानदार मुख्यमंत्री
रहे सांसद बी सी खंडूरी भी हो चुके हैं जहा निशंक के समर्थको ने मिलकर खंडूरी को
विधान सभा का चुनाव हरवाने में अपनी सारी ताकत लगा दी थी जिसके बाद जनरल खंडूरी की हार ने प्रदेश की जनता को चौका
दिया था |दरअसल निशंक इस बात को नहीं पचा
सके 2012 के विधान सभा चुनावो से ठीक तीन महीने पहले उनको हटाकर खंडूरी को राज्य
की कमान दी गयी |
खंडूरी अपने दम पर भाजपा
के जहाज को तीस सीटो के पार कांग्रेस की
दहलीज पर पंहुचा गए लेकिन उनकी
कोटद्वार से हार के चलते सी एम नहीं बन
सके | इसके बाद पार्टी आलाकमान ने तीनो
पूर्व मुख्यमंत्री की गुटबाजी से पार पाने के लिए इस बरस का लोक सभा चुनाव लडाया जिसमे मोदी लहर चली
और भाजपा भी राज्य की सारी सीटें जीतने में कामयाब हो गयी | अब तीनो उपचुनाव में
सूपड़ा साफ़ होने और सिर्फ गढ़वाल में मात्र दो
पंचायतो में भाजपा के आने से अब उत्तराखंड भाजपा के बुरे दिन आने तय हैं |
अमित शाह की तगड़ी लताड़ दिल्ली में सुनकर आये एक संगठन मंत्री की माने तो अब भविष्य
में भाजपा के किसी सांसद की मोदी मंत्रिमंडल में दावेदारी की संभावनाएं समाप्त ही
हो गयी हैं |
उपचुनावों और पंचायत चुनाव में जीत का सेहरा अगर किसी पर
बंधता है तो वह बेशक मुख्यमंत्री हरीश रावत ही हैं जिन्होंने एम्स में एडमिट होने
के बाद भी अपनी रणनीति और कौशल से कांग्रेस की राज्य में पताका फहरायी | लोकसभा
चुनावो से पहले कांग्रेस ने प्रदेश में
नेतृत्व परिवर्तन कर सांसद हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन रावत को विधायक न होने के कारण उन्हें
विधानसभा का सदस्य 31 जुलाई तक बनना जरूरी था। डोईवाला से निशंक और सोमेश्वर से अजय टम्टा के सांसद चुने जाने के कारण दोनों सीटें खाली हो
गई । उत्तराखंड में सुगबुगाहट शुरू से यह थी कि मुख्यमंत्री डोईवाला से उपचुनाव लड़ेंगे
लेकिन डोईवाला में लोक सभा चुनावो में
भाजपा को मिली बाईस हजार वोटो की लीड ने हरीश की चिंता को बढ़ा दिया जिसके बाद
उन्होंने धारचूला विधान सभा ने ताबड़तोड़ घोषणाएं करनी शुरू कर दी | धारचूला के विधायक हरीश धामी ने अपने राजनीतिक
गुरु हरीश रावत को गुरु दक्षिणा में धारचूला सीट दे दी | हरीश धामी ने धारचूला सीट से इस्तीफ़ा दिया
जिसके बाद हरीश रावत ने वहां से चुनाव
लड़ने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री के इस निर्णय को विपक्षी भाजपा ने बखूबी लपकने में देरी नहीं
लगाई और उसी का परिणाम सबके सामने आया जहाँ कांग्रेस ने उपचुनाव के साथ ही पंचायत
चुनावो में भी भाजपा का सूपड़ा साफ़ करवा दिया |
उत्तराखंड
में जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के लिए चुनाव में भी कांग्रेस ने भारी जीत
दर्ज की है|
राज्य के 12 जनपदों में हुए 12 जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के चुनाव में कांग्रेस समर्थित
प्रत्याशियों ने जीत हासिल की | यही नहीं
आठ महिलाओं में सात जिला पंचायत अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष पद भी कांग्रेस की झोली
में गया | अल्मोड़ा जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर पार्वती देवी और उपाध्यक्ष पद पर
शिवेन्द्र सिंह, बागेश्वर से हरीश चंद्र सिंह और उपाध्यक्ष
पर देवेन्द्र सिंह परिहार, चंपावत से अध्यक्ष पद पर खुशहाल
सिंह और उपाध्यक्ष पर देवकी देवी, नैनीताल,पिथौरागढ जिले से प्रकाश जोशी व वीरेन्द्र सिंह, उधमसिंह
नगर से ईश्वरी प्रसाद गंगवार व संदीप चीमा,देहरादून से चमन
सिह व डबल सिह,पौड़ी से दीप्ती रावत व सुमन कोटनाला,चमोली से मुन्नी देवी व लखपत सिह बुटोला,टिहरी से सोना देवी व श्याम सिंह,उत्तरकाशी से जसोदा राणा व प्रकाश चन्द्र और रूद्रप्रयाग से लक्ष्मी राणा व लखपत सिह विजयी घोषित किये गये है | प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के नेतृत्व में उत्तराखण्ड राज्य के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली भारी सफलता ने कांग्रेस के प्रति जनता के विश्वास को फिर से मजबूत कर दिया है | पार्टी में इन परिणामों को लेकर भारी उत्साह का माहौल बना दिया है वहीँ भाजपा यह नहीं समझ पा रही है दो महीने में ऐसा क्या हो गया जो भाजपा की लहर फींकी पड गई |
डोईवाला और
सोमेश्वर सीट पर उपचुनाव से भाजपा को काफी
उम्मीदें थीं। डोईवाला में भाजपा के तीनों
पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में उतरे लेकिन
आपसी गुटबाजी के कारण पार्टी को यहां पराजय का सामना करना पड़ा। दरअसल, डोईवाला
सीट को लेकर तीनों पूर्व मुख्यमंत्री अपने-अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए लाबिंग
करने में लगे थे | पार्टी
आलाकमान ने डोईवाला से दो बार विधायक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट दिया
जिन्होंने अमित शाह के के साथ यू पी में सह राज्य प्रभारी के तौर पर काम किया ।
लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी पार्टी को यह सीट दिलाने में नाकाम रहे। सोमेश्वर
सीट भी भाजपा से कांग्रेस ने इस उपचुनाव
में छीनी । सोमेश्वर से पहले पार्टी ने रेखा आर्या को टिकट देने का वादा किया था लेकिन
अपना टिकट भाजपा से कटता देख रेखा आर्या को कांग्रेस में शामिल करवाकर हरीश रावत
ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया और टिकट
चयन में भाजपा को पछाड़कर कांग्रेस को चुनाव प्रचार में कहीं आगे
खड़ा कर दिया |
एम्स में एडमिट होने
के बावजूद वह चुनाव प्रचार में नहीं जा सके लेकिन संगठन के अपने बरसो की पकड़ को
उन्होंने पंचायत चुनावो में साबित कर दिखाया जब अपने भरोसेमंद साथियो और कैबिनेट
मंत्रियो को लोक सभा चुनाव के ठीक बाद पंचायत चुनाव का मोर्चा संभालने में
उन्होंने लगा दिया जिसका प्रतिफल आज उनके सामने दिख रहा है | कांग्रेस की उत्तराखंड में इस जीत से उन
कार्यकताओ में नई उर्जा का संचार निश्चित ही होगा जहाँ आने वाले दिनों में विधान
सभा चुनाव और उपचुनाव होने हैं |
इस जीत
के बाद हरीश रावत का कद कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री के तौर पर बडा है साथ ही उन्होंने
आलाकमान को भी यह बता दिया है वह अगर विजय
बहुगुणा को पहले राज्य में सी एम नहीं
बनाता तो शायद उत्तराखंड में लोक सभा चुनावो की सभी सीटें कांग्रेस के नाम हो जाती
| वैसे हरीश रावत ने फरवरी में राज्य की कमान संभाली इस लिहाज से लोक सभा चुनावो
में जाने में उनको कम समय लगा लेकिन अनिल कपूर के ‘नायक’ फिल्म के अभिनय की तर्ज पर उत्तराखंड में हरीश
रावत ने टी ट्वेंटी अंदाज में न केवल लोगो
से सीधा संवाद कायम किया बल्कि अपने ताबड़तोड़ विकास कार्यो से लोगो का दिल जीतने
में कोई कसर नहीं दिखाई | वहीँ पार्टी के भीतर उनके विरोधी गुट यशपाल आर्य और विजय बहुगुणा ,हरक
सिंह रावत और पी डी ऍफ़ को साधकर हरीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने से बाज नहीं आये
लेकिन राजनीती के माहिर खिलाडी हरीश रावत
कमजोर नहीं पड़े | उन्होंने अपने अंदाज में विरोधियो को धूल चटाई और अपनी पार्टी की
गुटबाजी पर लगाम लगाई |
इस दौर में उन्होंने अपने करीबी किशोर उपाध्याय को न केवल
प्रदेश अध्यक्ष बनवाया बल्कि सभी विधायको को लाल बत्ती का लालीपाप देकर अपनी सरकार
की चाल हाईवे पर बढाई | आम चुनाव में 5-0 से हार के बाद से ही विरोधी गुटों का दबाव मुख्यमंत्री हरीश रावत पर बढ़ रहा था | कहा तो
यहाँ तक जा रहा था आम चुनाव के बाद जिस
अंदाज में मोदी लहर चली है उससे हरीश रावत सरकार पर भी अस्थिरता के बादल मडरा रहे
हैं लेकिन हरीश रावत ने अपनी राजनीतिक
कौशल से विरोधियो की बोलती बंद कर दी |
हाल के इन नतीजो का
असर गठबंधन सरकार पर पड़ने की अब पूरी सम्भावना है | अब मुख्यमंत्री हरीश रावत पीडीएफ
की घुड़कियो से बेपरवाह होकर काम भी कर सकेंगे | 70 सीटों वाली उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस के 35 विधायक
हो गए हैं | 7 विधायकों
वाले पीडीएफ के पांच विधायक वर्तमान सरकार में मंत्री हैं। अब कांग्रेस हरीश लहर में सत्ता के करीब पहुंच गई है | बहुमत के लिए उसे महज एक विधायक का समर्थन चाहिए| बहुत संभव है आने वाले दिनों में हरीश
रावत मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल करें जिसमे वह ज्यादा
से ज्यादा कांग्रेस के विधायको को जगह देने का प्रयास करेंगे |
बहरहाल, जो भी हो उपचुनाव और पंचायत चुनाव में जीत के
बाद हरीश रावत उत्तराखंड में मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं | अब उनके सामने अपने
शासन में की गयी घोषणाओ को अपने बचे कार्यकाल में उतारने की कठिन चुनौती सामने खड़ी है | साथ ही उत्तराखंड के
आम आदमी तक विकास की किरण पहुचाने का प्रयास भी उनके द्वारा होना चाहिए तभी बात
बनेगी | असल चुनौती तो बेलगाम नौकर शाही पर लगाम लगाने और उसे पटरी पर लाने की है जिसका सिक्का
उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों में आज भी बढ़ चदकर चलता है | देखना होगा जमीनी हकीकत को
समझने वाले जननेता हरीश रावत आने वाले दिनों में किस तरह की कार्यशैली आने
वाले दिनों में उतारते हैं ? इंतज़ार सबको
है |
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