माँ ,माटी और मानुष के जिस मुद्दे के आसरे कुछ बरस पहले ममता ने 'पोरिबर्तन ' की जो लकीर खींचने की कोशिश की थी वह अब मिटती दिखाई दे रही है । राज्य में औद्योगिक विकास की तमाम कोशिशो पर जहाँ ग्रहण लगा हुआ है वहीँ बंगाल की बड़ी आबादी के सामने न्यूनतम जरुरतो की चीजो को लेकर जैसा संकट गहरा रहा है उसने राज्य को वामपंथी शासन के दौर की याद दिला दी है जहाँ परिस्थितियां इतनी जटिल नहीं थी जितनी अभी हैं । मौजूदा दौर में किसानो की माली हालत बंगाल में सबसे खराब हो चली है वहीँ क़ानून व्यवस्था की लचर स्थिति ने इस दौर में सीधे ममता को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है । रही सही कसर सारदा को लेकर हुए अरबों के वारे न्यारे ने पूरी कर दी है । हर दिन इस मामले में जिस तरीके से नए खुलासे हो रहे हैं उससे पश्चिम बंगाल की राजनीती भी नई करवट बदलने की दिशा में तेजी के साथ बढ़ रही है और अगर यही सब रहा तो आने वाले पंचायत और निकाय चुनावो के बाद होने वाले विधान सभा चुनाव में ममता की मुश्किलें बढ़ सकती हैं ।
सारदा घोटाले में गिरफ्तार किए गए तृणमूल कांग्रेस सांसद सृंजय बोस इस मामले में जमानत पर रिहा होने वाले तृणमूल के पहले वरिष्ठ नेता थे । सीबीआई ने सारदा घोटाले में शामिल होने के आरोप में बीते बरस बोस को गिरफ्तार किया था। कार्गो के कारोबार के अलावा बोस बांग्ला दैनिक संवाद प्रतिदिन के मालिक व संपादक भी हैं। सारदा घोटाले की चपेट में ममता सरकार के एक के बाद एक कई वरिष्ठ नेता सीबीआई की चंगुल में फंसते जा रहे हैंजिससे ममता की साख संकट में है और जिस तरह के प्रदर्शन आये दिन ममता के खिलाफ हो रहे हैं उससे तृणमूल के समर्थको में निराशा का माहौल है । ममता सरकार में नंबर -2 की हैसियत रखने वाले मुकुल रॉय से सीबीआई ने जिस अंदाज में सारदा पर पूछ ताछ की है उससे अब जांच का दायरा ममता तक बढ़ने की सम्भावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता । तृणमूल कांग्रेस में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद दूसरे नंबर की हैसियत मुकुल राय की ही है । सारदा चिट फंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के दो सांसद और पश्चिम बंगाल सरकार के एक कैबिनेट मंत्री पहले से ही हिरासत में हैं।
इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा पशोपेश की स्थिति खुद तृणमूल के सामने खड़ी हो गयी है । जो सबूत सीबीआई के पास हैं उसका तर्कसंगत जवाब पार्टी न तो जांच एजेंसियों को दे रही है और न ही अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को। मुकुल रॉय ने सी बी आई के सामने पूछताछ में खुद स्वीकार किया था कि वह सारदा के कर्ता-धर्ता सुदीप्तो सेन से मिलते रहे हैं जिससे पार्टी को भारी नुकसान के अनुमान लगाये जा रहे हैं । सीबीआई के सूत्रों की मानें तो बिहार के चारा घोटाले की तरह सारदा घोटाले में भी साक्ष्य डॉक्यूमेंट्स के ऊपर आधारित हैं जिसमें आरोपियों के लिए बचना मुश्किल होता जा रहा है । पार्टी के एक अन्य राज्यसभा सदस्य कुणाल घोष के अलावा मंत्री मदन मित्रा और तृणमूल नेता व पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजूमदार अभी भी जेल में हैं। सारदा घोटाले के कथित मास्टरमाइंड सुदीप्त सेन और उनका एक सलाहकार बताये जाने से यह मसला अब काफी जटिल बन गया है । सूत्रों का कहना है कि दास ने कथित तौर पर सेन को एक पोंजी योजना की शुरूआत करने तथा भारी मुनाफे का वादा कर जमाकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए कहा। इसके बदले में व्यापार शुरू करने के बाद सेन ने दास को शारदा रियल्टी में एक निदेशक तथा शेयरधारक बनाया। जांच के दायरे के आगे बढ़ने से अब खुद ममता की साख प्रभावित हो रही है । देर सबेर सी बी आई उनके घर भी दस्तक दे सकती है । उधर गृह सचिव अनिल गोस्वामी को बीते दिनों सरकार ने बर्खास्त कर दिया । केंद्र सरकार ने यह फैसला गृह मंत्रालय के कहने पर लिया। माना जा रहा है की सीबीआई निदेशक ने कहा कि गृह सचिव ने सीबीआई की उस टीम को फ़ोन किया था जो सारदा मामले की जांच कर रही थी और उस टीम से आरोपी मतंग सिंह को किन सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया जा रहा है यह जानना चाहा। साथ ही कहा कि सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत नहीं है इसलिए गिरफ़्तारी नहीं बनती। सीबीआई ने यह सब बातें फाइल में पी एम ओ को भेज दी जिसकी जानकारी भी सीबीआई निदेशक ने गृहमंत्री को दी। पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री मतंग सिंह को कथित रूप से आपराधिक षड्यंत्र रचने, धोखाधड़ी और रकम की गड़बड़ी करने के आरोपों में पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया गया था। ये आरोप सारदा चिटफंड घोटाले से जुड़े हैं जिसके तहत हज़ारों छोटे निवेशकों को उनकी बचत से हाथ धोना पड़ा था। मतंग सिंह का नाम शारदा के चेयरमैन सुदीप्ता सेन ने सीबीआई को लिखे एक खत में उजागर किया था।
ममता की पार्टी के नेताओ की आये दिन हो रही पूछताछ और गिरफ्तारी ने जहाँ केंद्र के साथ ममता की तल्खी को बढ़ाने का काम किया है वहीँ खुद ममता की सियासत पर भाजपा राज्य में ग्रहण लगा रही है लेकिन ममता इन सारे आरोपों को बेबुनियाद बताकर अपने को पाक साफ़ बताने पर तुली हुई है । ममता जिस तरह आक्रामक होकर इस मामले पर बयान बाजी कर रही है उससे उनकी परेशानी और अड़ियल रवैये को देखा जा सकता है । वह इस मसले पर केंद्र की मोदी सरकार क निशाना बनाने से नहीं चूक रही जबकि असलियत यह है सारदा की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है । दरअसल इस पूरे मामले पर ममता को ना उगलते बन रहा है ना निगलते । कुणाल घोष से परिवहन मंत्री मदन मिंत्रा तक होता हुआ सफर अब जिस तरहब मुकुल राय और मतंग सिंह तक जाता दिख रहा है उससे ममता की मुश्किलें कम नहीं हो रही है । हर दिन कोई नया नाम इस मेल में जुड़ रह है और जिस तरह की खबरें बंगाल को लेकर इस दौर में आ रही हैं उससे ममता के वोट बैंक में गिरावट के आसार दिखाई दे रहे हैं । यानी जनाधार के सिकुड़ने का साया अब ममता की सियासत में मंडरा रहा है ।
बंगाल में चिटफंड के कारोबार में जिस तरीके से अरबों के वारे न्यारे किये गए हैं और चिटफंड ने जिस तरह कुलांचे मारे हैं उससे एक बात तो साफ है कम समय में मालामाल होने का यह धंधा बंगाल में जोर शोर के साथ कई दशको से चल रहा था जिसमे कारोबारियों ने राजनेताओ के साथ मिलकर काली कमाई के कुबेर बनने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दिया । चिटफंड के कारोबार में तृणमूल के कई नेता और कार्यकर्ताओ की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता शायद यही वजह है इस सारदा मामले में नेटवर्क काफी मजबूत नजर आ रहा है । वामपंथियो के 34 वर्षो के शासन का सफाया ममता ने जिस तरीके 2011 के विधान सभा चुनावो के दौरान किया था उससे उनसे लोगों को काफी उम्मीदें बंधी थी लेकिन आज आलम यह है बंगाल के तमाम बुद्धिजीवी जो कभी वामपंथियो के साथ थे वह अब भाजपा में अपना विकल्प खोजने में लगे हुए हैं । हाल के लोक सभा चुनावो में भाजपा का वोट प्रतिशत जिस तरीके से बढ़ा है और जिस तरीके से केशव कुञ्ज नागपुर संघ की शाखाओ में अपना डमरू बंगाल में बजा रहा है उससे ममता की सियासी रफ़्तार थमने के आसार दिखाई देने लगे हैं । आज हालत कितनी ख़राब है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं वामपंथियो के दौर में जो तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए वह अब भाजपा में जाने की तिकड़म भिड़ाने में लगे हुए हैं । भाजपा जिस तरीके से बंगाल में अमित शाह की अगुवाई में मास्टर स्ट्रोक ममता को घेरने के लिए खेल रही है उससे लगता तो यही है भाजपा समाज के हर तबके में अपना जनाधार मजबूत करने में लगी हुई है । अगर भाजपा का ग्राफ इसी तरह से बढ़ता रहा तो ममता की मुश्किल सबसे ज्यादा बढ़ने के आसार हैं । बंगाल में ममता की रफ़्तार अगर थमी तो इसका असर पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में भी पड़ेगा जहाँ विधान सभा चुनावो की डुगडुगी आने वाले वर्षो में बजनी है । वैसे भी ममता की सरकार के कई कैबिनेट मंत्री इस दौर में अमित शाह के सीधे संपर्क में हैं । पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी तो भाजपा में शामिल होने के लिए बावले हो चले हैं । ऐसे में ममता की राजनीती पर ग्रहण लगने की प्रबल संभावनाएं दिख रही हैं । बंगाल में वामपंथी वेंटिलेटर में हैं । कांग्रेस सिकुड़ चुकी है । उसका कोई नामलेवा संगठन नहीं बचा है । वहीँ तृणमूल सारदा की आंच में ढलान पर है । ऐसे में भाजपा बंगाल में मजबूत विकल्प बने इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता । बहरहाल जो भी हो यह तय है सारदा की आंच से ममता बनर्जी पूरी तरह सहमी हुई है और जिस तरीके से जांच में तृणमूल के नेताओ की संलिप्तता सबके सामने आ रही है उससे आने वाले दिनों में ममता के सामने ही पार्टी की सियासत साधने की विकराल चुनौती खड़ी हो गयी है इस संम्भावना से कम से कम अब तो इंकार नहीं किया जा सकता ।
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