कांग्रेस के
कद्दावर नेता और चार बार अविभाजित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
रहे नारायण दत्त तिवारी इन दिनों उत्तराखंड के प्रवास पर हैं | बीते दिनों उनके समर्थकों ने उनका 90 वां जन्म
दिन बड़ी धूम धाम से हल्द्वानी में मनाया जहाँ तिवारी के समर्थकों और विभिन्न
राजनीतिक दलों के नेताओं ने शिरकत की | इस आयोजन में जहाँ यू पी के मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव भी शामिल हुए वहीँ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से लेकर
उत्तराखंड की राजनीति के बड़े बड़े दिग्गज नेताओं ने तिवारी के कसीदे पड़ उन्हें ना
केवल विकासपुरुष की उपाधि से विभूषित किया बल्कि उनके दीर्घायु होने की कामना की |
यूँ तो यह कार्यक्रम गैर राजनीतिक था लेकिन अपने नब्बे वर्ष के पडाव पर बर्थडे के बहाने एन डी तिवारी ने इस मौके पर
अपने बेटे रोहित को उत्तराखंड में रीलांच करने में कोई कसर नहीं छोडी | तिवारी ने
पिछले एक हफ्ते से भी ज्यादा समय से नैनीताल जिले में सक्रियता जिस अंदाज में बढाई
हुई है उससे उत्तराखंड की राजनीती में गहमागहमी बढ़ गई है क्युकि उत्तराखंड की
राजनीति का बड़ा कवच लम्बे समय से एन डी के इर्द गिर्द ही घूमता रहा है और प्रदेश
में उनके चाहने वाले प्रशंसक न केवल कांग्रेस बल्कि हर राजनीतिक दल में आज भी
मौजूद हैं | तिवारी ने अपने कार्यकाल में विकास कार्यों से
जनता के दिलों में अपने लिए अलग छवि बनाई है शायद यही वजह रही अपने नब्बे बरस के
पडाव पर जन्मदिन के आयोजन में उनके चाहने वालों की भारी भीड़ बधाई देने पहुंची और
तिवारी जी ने भी किसी को निराश नहीं किया |
उत्तराखंड में
विधानसभा चुनाव चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है लिहाजा एन डी तिवारी की नैनीताल में
फिर से सक्रियता से तिवारी के विरोधियों की नींद उडी हुई है | उत्तराखंड की
राजनीती में एन डी फैक्टर खासा अहम रहा है और आज भी तिवारी को विकास पुरुष की
संज्ञा से नवाजा जाता रहा है तो इसका बड़ा कारण अपने कार्यकाल में तिवारी के द्वारा
खींची गई वह लकीर है जिसके पास आज तक उत्तराखंड का कोई मंत्री , नेता और
मुख्यमंत्री तक नहीं फटक सका है | आज भी उत्तराखंड के गाँवों से लेकर शहर तक में
तिवारी के बार में एक जुमला कहा जाता है जितना पैसा तिवारी जी उत्तराखंड के लिए
अपने संपर्कों के आसरे लेकर आये उतना कोई मौजूदा नेता नहीं ला सकता शायद यही वजह
है तिवारी जी विकास के शिखर पुरुष के रूप में उत्तराखंड के हर तबके में
सर्वस्वीकार्य हैं | उत्तराखंड की राजनीती
में कई लोगों ने एन डी तिवारी से ही राजनीती का ककहरा सीखा है लिहाजा आने वाले
दिनों में अगर वह अपने बेटे रोहित शेखर को आगे करते हैं तो उनके विरोधियों की
मुश्किलें बढ़नी तय हैं | इससे उन नेताओं में ख़ुशी है जिनकी अतीत में तिवारी के साथ
निकटता रही है | उत्तराखंड में कई कांग्रेस के विधायक और मंत्री हरीश रावत की
सरकार में जरूर हैं लेकिन इनमे बड़ा तबका ऐसा है जो ‘हरदा’ के एकला चलो रे राग से सरकार में अपनी
उपेक्षा से इस समय आहत है लिहाजा अगर उत्तराखंड
में तिवारी 2017 से पहले अपनी सियासी विरासत रोहित के जरिये साधते हैं तो
उन्हें इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए कई समर्थक मिल सकते हैं | कैबिनेट मंत्री इंदिरा हृदयेश से लेकर डॉ हरक
सिंह रावत , यशपाल आर्य से लेकर विजय बहुगुणा सरीखे कई बड़े नाम तिवारी की छत्रछाया
में ही बढे हैं |
बीते कुछ बरस से
नेताजी के साथ लखनऊ में एन डी तिवारी की
गलबहियां उत्तराखंड की राजनीती में कोई नया गुल खिला सकती है । अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो रोहित शेखर को
आगे कर समाजवादी पार्टी उत्तराखंड में
अपना मास्टर स्ट्रोक आने वाले कुछ समय बाद खेल सकती है | दरअसल 2009
में आंध्र प्रदेश के "सीडी" काण्ड के बाद जहां तिवारी की
कांग्रेसी आलाकमान से दूरियां बढ़
गयी वहीँ चुनावी बरस में तिवारी की राय को
कांग्रेस लगातार अनदेखा करती रही जिसके
चलते राजनीतिक बियावान में तिवारी अपने
तरकश से अंतिम तीर आने वाले कुछ दिनों में छोड़ कर अपने विरोधियों को चौंका सकते
हैं | इन दिनों एन डी तिवारी अपने
पुश्तैनी गाँव जाकर लोगों से उत्तराखंड के राजनीतिक मिजाज की टोह लेने की कोशिश कर
रहे हैं | इस दौर में वह न केवल अपने
पुराने स्कूल गए हैं बल्कि भवाली सैनिटोरियम से लेकर नैनीताल के विकास कार्यों को
लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं | हालाँकि
इशारों इशारों में तिवारी जी ने यह कहा है वह रोहित को अपनी राजनीतिक विरासत
सौंपने जा रहे हैं जिसके गहरे निहितार्थ इन दिनों गली गली में निकाले जा रहे हैं |
रोहित के चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर उन्होंने यह जरूर कहा है रोहित अपना फैसला
लेने के लिए स्वतन्त्र है लेकिन यह तय है तिवारी जी दूरदर्शी नेता रहे हैं और अपने तजुर्बे के आधार पर कोई भी बात
करते अगर देखे जा रहे हैं तो इसके गहरे मायने हैं |
रोहित के आगामी विधान सभा चुनाव लड़ने के सम्बन्ध में तिवारी अपने गृहनगर के
कुछ करीबियों से परामर्श कर अपने पत्ते 2016 में खोल सकते हैं । हाल ही में उनके जन्म दिन के मौके पर बेटे
रोहित शेखर ने यह जरूर कहा कि उम्र के इस पडाव पर उत्तराखंड सरकार ने तिवारी जी को
न केवल तन्हा छोड़ा दिया बल्कि उनके पिता से सारी
सुख सुविधा छीन ली वहीँ उत्तर प्रदेश के सी एम अखिलेश ने उन्हें न केवल
आसरा दिया बल्कि खुद उनको दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री का दर्जा दिया | अब इन संकेतों को अगर डिकोड किया जाए तो साफ़ है
तिवारी का पूरा परिवार उत्तराखंड में अपनी उपेक्षा से ख़ासा आहत दिखा है | जाहिर है ऐसे में रोहित शेखर के कांग्रेस में
जाने की संभावनाओं का चैनल इतनी आसानी से कम से कम उत्तराखंड में तो नहीं खुलने जा
रहा है | वैसे भी कांग्रेस की 2017 की बिछने जा रही बिसात में वंशवाद की अमरबेल
बढने के आसार दिख रहे हैं जिसमें इंदिरा हृदयेश से लेकर यशपाल आर्य , हरीश रावत से
लेकर विजय बहुगुणा सरीखे कई नेता सभी अपने पुत्र पुत्रियों के टिकात के लिए टकटकी
लगाये बैठे हैं | ऐसे में रोहित को कांग्रेस एप्रोच करेगी यह मौजूदा हालातों में
मुश्किल पहेली दिखती है | हाँ, समाजवादी पार्टी की राह पकड़कर वह ना केवल उत्तराखंड
में अपनी नई संभावनाएं तलाश सकते हैं बल्कि उत्तराखंड में तिवारी के करीबियों को
भी उत्तराखंड में साध सकते हैं | सक्रिय
राजनीती में नारायण दत्त तिवारी की इस वापसी से न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस के तमाम दिग्गजों
के होश फाख्ता किये हुए हैं शायद यही वजह है हर राजनीतिक दल नैनीताल उधमसिंहनगर को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं है ।
लम्बे समय से लखनऊ में नेताजी और अखिलेश
यादव के साथ तिवारी की इस नई जुगलबंदी को
उत्तराखंड की सियासत में अब एक नई लकीर
खींचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है
। बताया जाता है नेताजी ने रोहित शेखर तिवारी को उत्तराखंड से लड़ने का ऑफर दिया है जिस पर रोहित इन दिनों अपने पिता तिवारी के साथ अपनी बिसात बिछाते नजर आ रहे हैं । कांग्रेस के सबसे
बुजुर्ग नेता और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी
के बेटे रोहित शेखर के नैनीताल-ऊधमसिंहनगर
की किसी एक सीट से समाजवादी पार्टी सपा के टिकट पर 2017 में विधान सभा का चुनाव लड़ने की चर्चा जोर शोर से चल निकली है |
गौरतलब है इस सीट से तिवारी तीन बार सांसद रह चुके हैं | तीन बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री
रहे एनडी की राज्य में मान्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक
बने आठ मुख्यमंत्रियों में वह ऐसे इकलौते सीएम हैं जिन्होंने काफी खींचतान के बावजूद अपना कार्यकाल पूरा किया |
18 अक्तूबर, 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में पैदा हुए तिवारी
आजादी के समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे । तिवारी
देश के ऐसे इकलौते नेता हैं जो राजनीति में परोक्ष रूप से सक्रिय हैं | उत्तर प्रदेश में
चार बार और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तथा केंद्र में लगभग हर महत्वपूर्ण
विभाग के मंत्री रहे तिवारी की राजनीतिक
पारी राजनीती की पिच पर उनकी बैटिंग करने की टेस्ट मैच स्टाइल को बखूबी बयां करती है । 1952 में
काशीपुर से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे एनडी तिवारी के अपने 90 वें
जन्म दिन पर अपने बेटे रोहित को विरासत
सौंप देने की सुगबुगाहट से उत्तराखंड के
बड़े-बड़े नेताओं के पसीने इस दौर
में छूट रहे हैं क्योंकि नैनीताल और उधमसिंहनगर का पूरा इलाका
तिवारी का मजबूत गढ़ रहा है । अपने कार्यकाल में इस तराई के इलाके में
तिवारी ने विकास की जो गंगा बहाई उसकी आज भी विपक्षी तारीफ़ किया करते हैं और जितना
कुछ आज यहाँ दिख रहा है यह सब तिवारी जी की ही देन है | अपने कार्यकाल में तिवारी
ने न केवल इस इलाके में सडकों का भारी जाल बिछाया बल्कि औद्योगिक इकाईयों की
स्थापना से लेकर बुनियादी इन्फ्रास्ट्रेक्चर मुहैय्या करवाने में तिवारी के योगदान
को आज भी नहीं भुलाया जा सकता शायद यही वजह है उनके विरोधी भी उनके राजनीतिक कौशल
के कायल रहे हैं । वैसे एन डी तिवारी के सक्रिय
राजनीतिक जीवन की शुरुवात भी इसी
नैनीताल की कर्मभूमि से ही हुई । चालीस के
दशक में जनान्दोलनों में सक्रिय रहे तिवारी
ने अपनी सियासी पारी को नई उड़ान इसी नैनीताल संसदीय इलाके ने जहाँ दी ,वहीँ
स्वतंत्रता आंदोलन और आपातकाल के दौर में
भी तिवारी ने अपनी भागीदारी से अपनी राजनीतिक कुशलता को बखूबी साबित किया । नारायण
दत्त तिवारी नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री की कुर्सी से भी चूक गए थे । उस
दौर को अगर याद करें तो नरसिंह राव ने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन नरसिंह
राव पीएम बन गए । आज भी तिवारी के
मन में पी एम न बन सकने की कसक है | उनकी
मानें तो 1991 में नैनीताल बहेड़ी संसदीय
सीट से वह इसलिए चुनाव हार गए क्युकि चुनाव प्रचार के दौरान अभिनेता दिलीप
कुमार ने बहेड़ी में सभा की | उनका असली नाम युसूफ मिया था और किसी ने अफवाह उड़ा दी
कि युसूफ मियां की सिफारिश पर ही उन्हें टिकट मिला है | इससे लोगों में गलत सन्देश
गया और उनके वोट कट गए | अगर तिवारी
नैनीताल में नहीं हारते तो शायद वह उस समय देश के प्रधानमंत्री बन जाते । इसके बाद तिवारी की उत्तराखंड में मुख्यमंत्री
के रूप में इंट्री वानप्रस्थ के रूप में 2002
में हुई । इसी वर्ष उत्तराखंड के
पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर कांग्रेस आलाकमान ने हरीश रावत को नकारकर एनडी तिवारी को सरकार की बागडोर सौंपी थी | तिवारी उस समय लोकसभा में नैनीताल सीट से ही
सांसद थे लिहाजा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा सदस्यता से
इस्तीफा देकर रामनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और रिकार्ड जीत दर्ज कर उत्तराखंड
में अपनी धमाकेदार इंट्री की। तिवारी के तमाम
राजनीतिक कौशल के वाबजूद उनके विरोधी तिवारी को राज्य आंदोलन के मुखर विरोधी नेता
के रूप में आये हैं शायद इसकी बड़ी वजह
तिवारी का अतीत में दिया गया वह बयान रहा जिसमे उन्होंने कहा था उत्तराखंड उनकी
लाश पर बनेगा लेकिन इन सब के बीच नारायण दत्त तिवारी की गिनती विकास पुरुष के रूप
में उत्तराखंड में होती रही है । इसका सबसे बड़ा कारण यह था उन्होंने अपनी सरकार
में विरोधियो के साथ तो लोहा लिया ही साथ ही विपक्षियो को भी अपनी अदा से खुश रखा
शायद यही वजह रही उस दौर में भाजपा पर
मित्र विपक्ष के आरोप भी लगे ।
उत्तराखंड में 2002 विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन 2012 में हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर , विकासनगर, किच्छा
,जसपुर, रुद्रपुर और गदरपुर में कांग्रेस
के उम्मीदवारों के लिए बड़े रोड शो करके
वोट मांगे । इस लिहाज से उत्तराखंड में
तिवारी फैक्टर की अहमियत को अब भी नहीं नकारा जा सकता । 2009 में
हैदराबाद राजभवन "सेक्स स्कैंडल" और " रोहित
शेखर" पुत्र विवाद के बाद सियासत में बेशक उनका सियासी कद घट जरुर गया और उनके अपने
कांग्रेसियों ने उनसे दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझी लेकिन तिवारी टायर्ड नहीं हुए बल्कि देहरादून में फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का
"अनंतवन " फिर से उनकी नई राजनीति
का नया केंद्र बन गया जहाँ से उन्होंने लखनऊ की तरफ अपने कदम बढ़ाये
और नेताजी और अखिलेश सरकार को अपना मार्गदर्शन देने का न केवल काम
किया बल्कि यू पी के कई सरकारी
विभागो की ख़ाक छानकर यह बता दिया अभी भी राजनीती तिवारी की रग रग में बसी है । भले
ही कांग्रेस आलाकमान उनको भाव ना दे लेकिन वह हर किसी को सलाह देने को तैयार हैं ।
1 comment:
देखते हैं पिता पुत्र की यह नई जोड़ी उत्तराखंड में क्या गुल खिलाती है !!
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