उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद भाजपा की डगमगाती नैय्या को सही मायनों में अगर किसी ने मध्य प्रदेश में पार लगाया है तो बेशक वो शिवराज सिंह चौहान ही हैं । सूबे में सबसे ज्यादा समय तक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का तो कीर्तिमान उन्होंने बना ही लिया है और अब मुख्यमंत्री के रूप में 10 बरस पूरे कर लेने के बाद प्रदेश में शिवराज का नायकत्व उन्हें सफल मुख्यमंत्री की कतार में लाकर खड़ा कर रहा है | विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस अंदाज में मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकालने में सफलता पाई है वह उनके दूरदर्शी नेतृत्व की मिसाल है | पिछले कुछ समय से शिवराज ने भाजपा के अंदरुनी उठापटक को शांत करने के साथ-साथ विकास की नई लकीर भी खिंची जिसकी परिणति चुनाव दर चुनाव जोरदार बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता वापसी के रूप में हुई |
विकास को मॉडल बना कर दिग्विजय सिंह ने यहाँ 10 वर्षों तक राज किया लेकिन वह विकास को लोगों तक पहुंचाने में सफल नहीं रहे जिस कारण उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। एक कद्दावर नेता होते हुए कांग्रेस को जहाँ वह फिर से सत्ता में वापस नहीं ला सके वहीँ भाजपा ने भी उमा भारती से लेकर बाबूलाल गौर तक को प्रदेश की सत्ता सौपकर कई प्रयोग किये लेकिन इन दोनों के सी एम पद से हटने के बाद पूरी भाजपा को एकजुट कर पाना मुश्किल था | ऐसे समय में शिवराज ने सत्ता और संगठन के साथ बेहतर तालमेल कायम कर मध्य प्रदेश में चुनाव दर चुनाव जीतकर भाजपा की उम्मीदों को नए पंख लगा दिए | प्रदेश में पिछले कुछ समय से भाजपा का मतलब शिवराज चौहान अगर रहा है तो इसका बड़ा कारण उनका बेहतर संगठनकर्ता होने के साथ ही जनता के सरोकारों की राजनीति करने वाला नेता होना रहा |
शिवराज की राजनीती लोगों को आपस में जोड़ने की रही है और उनकी जीत का मूल मंत्र विकास और निर्विवाद रूप से साफ़ छवि रही है और उनके शासन का विकास मध्य प्रदेश में धरातल में दिखलाई भी देता है | शिवराज ने लोगो के बीच अगर बेहतर मुख्यमंत्री की छवि बनाई है तो इसका कारण राजनीती के प्रति उनका समर्पण और जनता के सरोकारों से खुद को जोड़ने वाला नेता रहा है | हालांकि विपक्षी शिवराज पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगा चुके हैं लेकिन इससे शिवराज की विश्वसनीयता पर कोई असर नहीं पड़ा है क्युकि भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले में उन्होंने खुलकर अपना पक्ष रखा है | यही नहीं व्यापम के जिस घोटाले पर जब विपक्ष ने उन पर आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया तब भी वह ईमानदारी से मीडिया के सामने अपना पक्ष रखने से पीछे नहीं रहे और जांच कमेटी बनाकर मिसाल कायम की |
शिवराज चौहान का जन्म पांच मार्च, 1951 को एक किसान परिवार में हुआ। भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। कॉलेज जीवन से ही चौहान की दिलचस्पी राजनीति में थी। वे 1975 में मॉडल सेकेंडरी स्कूल छात्रसंद्घ के नेता रहे। 1975 में आपातकाल लगा जिसके विरोध में शिवराज आगे आये और 1976-77 में भोपाल जेल में बंद भी रहे। इसके बाद 1977 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्घ से जुड़े। इसके बाद भाजपा के साथ इनका सफर चल पड़ा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के विभिन्न पदों पर काम किया। चौहान पहली बार 1990 में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। 1991 से लगातार पांच बार विदिशा लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। सांसद रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण समितियों में काम भी किया।
विरोधियों को चुप्पी के साथ दरकिनार करने और अनर्गल बयानबाजी से बचनेवाले चौहान को 2005 में मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संगठन में भारी उथल-पुथल के साथ गुटबाजी चल रही थी। उमा भारती के जाने के बाद प्रदेश भाजपा काफी कमजोर हो गई थी। ऐसे समय में इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। 13 वीं विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम हासिल करने की बड़ी चुनौती तल्कालीन समय में उनके सामने थी जिस पर चौहान खरे उतरे और भाजपा को जीत दिलाई। फिर से सीएम भी बने और बेहतरीन काम भी कर रहे हैं।
1962 से लेकर अब तक सिर्फ कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और भाजपा नेता शिवराज चौहान ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने 10 वर्ष समय तक लगातार शासन किया है । मध्यप्रदेश की जनता के लिए अभिशाप ही रहा कि जो भी शासन में रहा मूल समस्याओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और वे आपसी खींचतान में लगे रहे लेकिन शिवराज ने न केवल मामा बन महिलाओं के दिलों में राज किया बल्कि जन जन तक अपनी पैठ विकास कार्यों से बनाई | मध्य प्रदेश में शिवराज का परचम जिन उंचाईयों को छू रहा है उससे कांग्रेस की मुश्किलें दिनों दिन बढती ही जा रही है और सशक्त और यशस्वी मुख्यमंत्री की छवि बनाकर झटके में शिवराज ने मध्य प्रदेश की राजनीति में दिग्गी राजा के कद को एकदम से कम कर दिया है । कभी दिग्गी राजा के नाम से लोगों के बीच पहचाने जानेवाले कांग्रेसी नेता शिवराज की काट के लिए आज अपने किसी नेता पर भरोसा नहीं कर पा रहे वहीँ कांग्रेस की असल मुश्किल गुटबाजी ने बढाई हुई है | आज भी अरुण यादव के दौर में वही परिस्थितियों से कांग्रेस जूझ रही है जो परिस्थितियां सुरेश पचौरी के दौर में थी तो समझा जा सकता है कांग्रेस की मुश्किलें किस कदर प्रदेश में बढती ही जा रही हैं और ऐसे हालातों में कांग्रेस की मध्य प्रदेश में वापसी मुश्किल दिखाई दे रही है | राज्य में कांग्रेस के नकारे जाने का सबसे बड़ा कारण दिग्गी राजा का विकास माडल रहा जिसमे मध्य प्रदेश की गिनती बीमारू राज्यों के तौर पर होती रही और धरातल पर विकास कहीं नहीं दिखाई दिया जिस कारण वोटरों ने कांग्रेस को नकार दिया और न जाने कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा ? भाजपा के निशाने पर शुरू से दिग्गी राजा रहे और भाजपा ने 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में राज्य में ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
शिवराज ने मध्यप्रदेश को स्थायी सरकार न केवल दी बल्कि अपनी दूरगामी योजनाओ के आसरे लोगों के दिलो में नई आस कायम की । शिवराजसिंह चौहान खुद किसान परिवार से रहे हैं लिहाजा किसानों और आम आदमी के सरोकारों के प्रति वह काफी संवेदनशील रहे हैं । अपने दस बरस के कार्यकाल में उन्होंने कई योजनाओं को न केवल धरातल पर उतारने में सफलता पाई बल्कि अन्य राज्यों को कन्याधन और लाडली लक्ष्मी सरीखी योजना लागू करवाने के लिए मजबूर किया । यही नहीं प्रदेश में कई औद्योगिक ईकाईयों की स्थापना कर यह साबित भी कर दिखाया अगर आप एक निश्चित विजन के साथ आगे बढ़े तो राज्य को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता | मुख्यमंत्री पंचायत के नाम से आरंभ की गई योजना ने शिवराजसिंह के बारे में यह धारणा पुख्ता कर दी कि वह आम आदमी के मुख्यमंत्री है। यही नहीं विभिन्न प्रदेशो की सरकारें जहाँ महिलाओं को आरक्षण देने की हवाई बयानबाजी करने से बाज नहीं आई वहीँ शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देकर अपनी कथनी और करनी को साकार किया । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने समावेशी विकास का खाका खींचकर यह भी साबित किया कि उनकी नीतियों के केंद्र में आम आदमी है शायद यही वजह है शिवराज को आम इंसान ने दुलार दिया ।
इन दस बरसों में शिवराज ने न केवल जनता के बीच घर घर जाकर लोगों की समस्याओं को सुना बल्कि किसानो की समस्याओं का समाधान करने की दिशा में कोई कसर नहीं छोडी । पेटलावाद हादसे और रतनगढ़ हादसे की विषम परिस्थितियों में भी शिवराज ने धैर्य नहीं छोड़ा और लोगों के बीच जाकर दुःख में सहभागी बने ।
दस बरस के अपने कार्यकाल में चुनाव दर चुनाव में विजय पताका फहराने वाले शिवराजसिंह चौहान ने सत्ता में कभी अपनी ठसक हावी नहीं होने दी । हंसी ठिठोली के साथ वह सत्ता और संगठन में अपनी कदमताल करते रहे और विनम्र बनकर जनता जनार्दन को सबसे बड़ी ताकत बताते रहे । सत्ता को सेवा का माध्यम और खुद को पार्टी का अदना सा सेवक मानने वाले शिवराजसिंह लगातार ने दस वर्ष का कार्यकाल पूरा कर प्रदेश में पहला गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री होने का रिकार्ड कायम कर लिया है और अब उनकी नजरें जन जन तक अपनी विकास यात्रा को पहुचाने की तरफ लगी हुई हैं क्युकि लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कुछ नहीं है खुद शिव का दर्शन भी यह कहता है लोकतंत्र में हार-जीत होती रहती है। महत्वपूर्ण यह है कि हार से सबक लेकर हमें यह देखना चाहिए कि जनता में यदि कोई विपरीत भाव पैदा हुआ है तो उसे कैसे दूर किया जाए?
दस बरस पूरा कर लेने के बाद का भावी सफर अब शिवराज चौहान के लिए आसान नहीं है। आने वाले समय में अगर एंटी इनकम्बेंसी के बीच उन्हें भाजपा का विजयरथ जारी रखना है तो अपने विकास मॉडल को जन जन तक पहुचाना पड़ेगा । केंद्र में भाजपा की सरकार होने के साथ अब शिवराज के सामने वैसी मुश्किलें भी नहीं हैं जैसी यू पी ए के दौर में थी | मध्यप्रदेश से मोदी सरकार में समुचित प्रतिनिधित्व होने के चलते अब सांसदों की भी यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह प्रदेश के विकास के लिए एकजुट हों और प्रदेश सरकार के साथ बेहतर तालमेल कायम रखे | देश का मिजाज बदल रहा है और राज्यों के चुनाव और केंद्र के चुनाव में अब विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता है लिहाजा शिवराज को भी समझना होगा वह विकास का मूल मंत्र आम लोगों तक कैसे पहुंचाएं इसकी चिंता जरूर सीएम को होनी चाहिए जिससे आने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा अपना विजयरथ जारी रख सके | विकास को प्राथमिकता में रख कर यदि उन्होंने अंतिम व्यक्ति के लिए फैसला नहीं लिया तो भाजपा को भी कांग्रेस की कार्बन कापी बनने में देरी नहीं लगेगी | लोगों की निगाहें अब न केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ लगी हैं बल्कि पार्टी आलाकमान की नज़रों में भी शिवराज भाजपा शासित राज्यों के सफल मुख्यमंत्री बन गए हैं और दस बरस के कार्यकाल में मध्य प्रदेश में शिवराज मामा का परचम नई बुलंदियों को छू रहा है|
शिवराज को लेकर समय समय पर ऐसी चर्चाएं भी उठती रही हैं कि उनकी केन्द्र में वापसी तय है और मोदी के मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल किया जा सकता है लेकिन फिलहाल तो ऎसी संभावनाएं दूर दूर तक नहीं हैं कि वह मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पद छोड़कर किसी अन्य पद को पाना चाहेंगे | यूँ भी पार्टी आलाकमान का फैसला सर माथे पर होता है लेकिन शिवराज निष्कंटक होकर फिलहाल अपनी सारी उर्जा मध्य प्रदेश के विकास को नई गति देने में लगाना चाहते है इससे अच्छी बात प्रदेश के लिए कुछ नहीं हो सकती |
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