पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड एक भीषण गंभीर राजनीतिक संकट से बाहर निकल आया है । बीते दिनों मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग के नाटकीय इस्तीफे ने इस छोटे से राज्य के राजनीतिक संकट को जहाँ बढाने का काम किया वहीँ सत्तारूढ़ नागा पीपुल्स फ्रंट ,एनपीए ने शुर्होजेली लीजीत्सु को विधायक दल का नेता चुन लिया जिसके बाद सभी ने 22 फरवरी को ग्यारह मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ नागालैंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रही रस्साकसी थम गई ।
असल में निवर्तमान मुख्यमंत्री जेलियांग ने जनवरी के आखिर में नगर निकाय चुनाव कराने का ऐलान किया था जिसमें शहरी निकाय चुनावों के लिए महिलाओं का आरक्षण तैंतीस प्रतिशत कर दिया था। इसके बाद से वहां पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। इस विरोध प्रदर्शन ने तब हिंसक रूप ले लिया जब पुलिस से झड़प में दीमापुर में दो युवकों की मौत हो गई। इसके बाद प्रदर्शन बहुत उग्र हो गया । गुस्साई भीड़ ने कोहिमा स्थित मुख्यमंत्री आवास को अपने कब्जे में लेने की कोशिशे तेज़ कर दी । प्रदर्शन काफी उग्र हुए । कई सरकारी भवनों में जहाँ आग लगी वहीँ राष्ट्रीय सम्पत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया गया । प्रदर्शनकारियों ने दीमापुर और कोहिमा के बीच राजमार्ग को घंटो बाधित कर दिया । राज्य के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा रहा जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ । इसी दौरान नागालैंड ट्राइब एक्शन काउंसिल नाम से गठित संगठन ने मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग और उनके कैबिनेट को इस्तीफा देने की मांग की। साथ ही कई संगठनों ने मांग की थी कि राज्य सरकार स्थानीय निकाय चुनावों को निरस्त करे, प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को निलंबित करें और जेलियांग मुख्यमंत्री पद से हट जाएं। । नगालैंड की सरकार ने नगालैंड ट्राइब्स एक्शन कमिटी कोहिमा और ज्वाइंट कोऑर्डिनेशन कमिटी की मांग को स्वीकार करते हुए शहरी स्थानीय निकाय चुनावों की पूरी प्रक्रिया के साथ ही तैंतीस फीसदी महिला आरक्षण को निरस्त कर दिया।
राज्य में जब हालात खराब होने लगे तब मुख्यमंत्री जेलियांग के खिलाफ बगावती सुर उठने लगे । एनपीएफ पार्टी के कई विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ हो गए। ऐसे में राज्य के मौजूदा हालात पर चर्चा के लिए सत्ताधारी एनपीएफ के विधायकों ने बैठक की। इस बैठक में शामिल अधिकांश विधायक नगा गुटों के विरोध प्रदर्शनों को ठीक ढंग से संभाल पाने में असमर्थता के चलते जेलियांग को सीएम पद से हटाने की मांग पर सहमत दिखे। इसके बाद जेलियांग ने इस्तीफा दिया। जेलियांग ने एनपीएफ के विधायकों को लिखे एक पत्र में कहा कि उन्होंने आंदोलनकारी समूहों और सरकार के बीच गतिरोध तोड़ने के लिए इस्तीफा देने का फैसला किया । मुख्यमंत्री पद से टीआर जेलियांग के इस्तीफे के बाद नए मुख्यमंत्री के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के एकमात्र लोकसभा सदस्य नीफियू रियो का नाम चल रहा था। उनके पक्ष में आमराय बन जाने के बावजूद वे विधायक दल का नेता नहीं चुने जा सके। एक तो इसलिए कि उनके बजाय जेलियांग मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एनपीएफ के अध्यक्ष शुर्होजेली लीजीत्सु को देखना चाहते थे। रियो ही थे जिन्होंने 2015 में जेलियांग को मुख्यमंत्री पद से बेदखल करने की कोशिश की थी।एनपीएफ ने पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में पिछले साल रियो की सदस्यता अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दी थी। लिहाजा, राज्य के ग्यारहवें मुख्यमंत्री के रूप में लीजीत्सु के चुने जाने का रास्ता साफ हो गया।
साठ सदस्यीय नगालैंड विधानसभा में एनपीएफ 49 विधायक हैं, जिनमें से करीब 40 विधायक इस बैठक में शामिल हुए थे और वह अधिकांश विधायकों ने नगालैंड के एक मात्र सांसद नेफियू रियो को विधायक दल का नेता चुना था। लेकिन एनपीएफ ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पिछले साल रेयो की सदस्यता अनिश्चितकालीन के लिए निलंबित कर दी थी। दिलचस्प यह है नागालैंड के 60 विधायकों वाली विधानसभा में कोई भी नेता विपक्ष में नहीं है। इसके अलावा किसी भी पार्टी ने शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं के आरक्षण के विरोध में चल रहे आंदोलन के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं की। यही नहीं, राज्य की सारी विधायिका ने ‘नगालैंड ट्राइब्स एक्शन कमेटी’ और ‘जाइंट कोआर्डिनेशन कमेटी’ के आगे घुटने टेक दिए।साथ राज्य सरकार ने दोनों नागा गुटों के उग्र प्रदर्शन के आगे अपने घुटने टेक दिए। नागालैंड में विपक्ष नाममात्र का है। साठ सदस्यीय विधानसभा में सभी एनपीएफ के ही विधायक हैं। एनपीएफ के 49 विधायकों के अलावा चार भाजपा के और सात निर्दलीय हैं। लेकिन विपक्ष में बैठनाकिसी को पसंद नहीं था लिहाजा सभी विधायक सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक अलायंस आॅफ नगालैंड (डीएएन) में शामिल हैं।
अब लीजीत्सु के सामने यह चुनौती होगी वह महिला सशक्तीकरण के लिए निकाय चुनावों में महिलाओं का आरक्षण लागू कर पाएंगे। क्या वह नागा गुटों के विरोध प्रदर्शनों से निपट पाएंगे ? क्या वह भी अपने पूर्ववर्ती सी एम की तरह बेबस नजर आएंगे ? ऐसे मुश्किल दौर में लीजीत्सु के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनजातीय संगठनों के विरोध से निपटने और शांति कायम करने की होगी ? बड़ा सवाल यह है क्या वह नई लकीर नागालैंड में खींच पाएंगे ? क्या वे स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए तैंतीस फीसद आरक्षण के प्रावधान को लागू करा पाएंगे? लीजीत्सु ऐसे वक्त मुख्यमंत्री पद का दायित्व लेने जा रहे हैं जब राज्य एक उथल-पुथल से गुजरा है और उसका तनाव अब भी जारी है। लीजीत्सु के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनजातीय संगठनों के विरोध से निपटने और शांति कायम करने की है। देखना होगा इसमें वो कितना सफल हो पाते हैं ?
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