प्रथम पुण्यतिथि पर स्मरण
भाजपा नेता अरुण जेटली की जिंदगी से जुड़ा हर पहलू और राजनीतिक करियर बेहतरीन था । यूँ ही उन्हें भाजपा का संकटमोचक नहीं कहा जाता था । जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को नई दिल्ली के नारायणा विहार इलाके के मशहूर वकील महाराज किशन जेटली के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली के सेंट जेवियर स्कूल में हुई । 1973 में जेटली ने दिल्ली के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से कॉमर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की । इसके बाद उन्होंने यहीं से लॉ की पढ़ाई भी की। छात्र जीवन में ही जेटली राजनीतिक पटल पर छाने लगे। 1974 में वह दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते गए । 1973 में उन्होंने जयप्रकाश नारायण और राजनारायण द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई वहीं 1974 में अरुण जेटली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। 1975 में आपातकाल का विरोध करने के बाद उन्हें 19 महीनों तक नजरबंद रखा तो इसी दौर में जेटली की मुलाक़ात जेल में कई नेताओं से हुई । जयप्रकाश नारायण उन्हें काफी पसंद करते थे । आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया।
1990 में अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील में रूप में अपनी नौकरी शुरू की। अरुण जेटली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में दूसरे नंबर के सबसे अहम शख्सियत माने जाते थे वहीँ उन्होंने अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में भी अहम भूमिका निभाई । अटल सरकार सरकार में उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी नियुक्त किया गया। विश्व व्यापार संगठन के शासन के तहत विनिवेश की नीति को प्रभावी करने के लिए पहली बार एक नया मंत्रालय बनाया गया। उन्होंने 23 जुलाई 2000 को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला। नवम्बर 2000 में एक कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया और एक साथ कानून, न्याय और कंपनी मामलों और जहाजरानी मंत्री बनाया गया। भूतल परिवहन मंत्रालय के विभाजन के बाद वह नौवहन मंत्री भी रहे । उन्होंने 1 जुलाई 2001 से केंद्रीय मंत्री, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री के रूप में 1 जुलाई 2002 को नौवहन के कार्यालय को भाजपा और उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में शामिल किया। 29 जनवरी 2003 को केंद्रीय मंत्रिमंडल को वाणिज्य और उद्योग और कानून और न्याय मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया। 13 मई 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार के साथ, जेटली एक महासचिव के रूप में भाजपा की सेवा करने के लिए वापस आ गए और अपने कानूनी करियर में वापस आ गए।
2004-2014 तक उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया। 16 जून 2009 को उन्होंने अपनी पार्टी के वन मैन वन पोस्ट सिद्धांत के अनुसार भाजपा के महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया। वह पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी थे । राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक की बातचीत के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन किया। जेटली ने 2002 में 2026 तक संसदीय सीटों को मुक्त करने के लिए भारत के संविधान में अस्सी-चौथा संशोधन सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया और 2004 में भारत के संविधान में नब्बेवें संशोधन ने दोषों को दंडित किया हालाँकि, 1980 से पार्टी में होने के कारण उन्होंने 2014 तक कभी कोई सीधा चुनाव नहीं लड़ा लेकिन पी एम मोदी के आग्रह पर 2014 के आम चुनाव में वह लोकसभा सीट पर अमृतसर सीट के लिए भाजपा के उम्मीदवार नवजोत सिंह सिद्धू की जगह बने जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार अमरिंदर सिंह से वह हार गए। वह लगातार 18 बरस से गुजरात से राज्यसभा सदस्य थे। उन्हें मार्च 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए फिर से चुना गया। 26 मई 2014 को, जेटली को नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वित्त मंत्री के रूप में चुना गया जिसमें उनके मंत्रिमंडल में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और रक्षा मंत्री शामिल रहे । बिहार विधानसभा चुनाव, 2015 के दौरान, अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात पर सहमति व्यक्त की कि धर्म के आधार पर आरक्षण का विचार खतरे से भरा है और मुस्लिम दलितों और ईसाई दलितों को आरक्षण देने के खिलाफ है क्योंकि यह जनसांख्यिकी को प्रभावित कर सकता है। नवंबर 2015 में जेटली ने कहा कि विवाह और तलाक को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानून मौलिक अधिकारों के अधीन होने चाहिए क्योंकि संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार सर्वोच्च हैं। उन्होंने सितंबर 2016 में आय घोषणा योजना की घोषणा की।
भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, सरकार ने 9 नवंबर, 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से 500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया। 20 जून, 2017 को उन्होंने पुष्टि की , जीएसटी रोलआउट अच्छी तरह से और सही मायने में ट्रैक पर है। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू कराने का श्रेय अरुण जेटली को जाता है। जेटली ने ही ध्रुव विरोधी लोगों में इसके लिए सहमति बनायी। जेटली पेशे से वकील थे लेकिन कानून के साथ वित्तीय मामलों पर भी अच्छी पकड़ रखते थे। उनके पास कुछ महीने वित्त के साथ रक्षा जैसे दो अहम मंत्रालय का प्रभार था। लोक सभा चुनावों के दौरान जब राफेल का मुद्दा गरमाया तो वह सरकार के लिए ट्रबलशूटर बनकर उभरे । संसद में विपक्ष के खिलाफ सीधे मोर्चा संभाला। 1990 में अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील में रूप में नौकरी शुरू की वहीँ वीपी सिंह सरकार में उन्हें 1989 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। उन्होंने बोफोर्स घोटाले की जांच में पेपरवर्क भी किया। जेटली की गिनती देश के टॉप वकीलों में यूँ ही नहीं होती थी । 90 के दशक में जैसे-जैसे टीवी की महत्ता बढ़ती गई, वैसे-वैसे जेटली का ग्राफ भी चढ़ता गया। पार्टी के प्रवक्ता होते हुए वह स्टूडियो में इतने लोकप्रिय मेहमान बन गए थे कि जब पत्रकार वीर सांघवी ने उनके मंत्री बनने के तुरंत बाद उनका स्टार टीवी पर इंटरव्यू किया तो उन्होंने मजाक किया कि इस कार्यक्रम में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि मेरा मेहमान मुझसे ज्यादा बार टीवी पर आ चुका हो। राम जेठमलानी के कानून, न्याय और कंपनी अफेयर मंत्रालय छोड़ने के बाद जेटली को इस मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। 2000 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें कानून, न्याय, कंपनी अफेयर तथा शिपिंग मंत्रालय का मंत्री बनाया गया। प्रखर प्रवक्ता और हिन्दी और अंग्रेजी-भाषाओं में उनके ज्ञान के चलते 1999 के आम चुनाव में बीजेपी ने उन्हें प्रवक्ता बनाया । अटल बिहारी सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। इसके बाद उन्हें विनिवेश का स्वतंत्र राज्यमंत्री बनाया गया । 2002 में गुजरात में दंगे हुए। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को हटाना चाहते थे। जेटली तब अटल और आडवाणी के काफी करीबी थे । गुजरात के गोधराकांड और दंगों के बाद जेटली उन चुनिंदा नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पार्टी के अंदर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव किया था। कहा जाता है कि जेटली ने अटल जी को सलाह दी और निवेदन किया कि मोदी को हटाना सही नहीं होगा। इसके बाद मोदी गुजरात में रम गए । 2004 से 2014 के बीच यूपीए सरकार के वक्त वे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस, तुलसी प्रजापति एनकाउंटर केस, इशरत जहां एनकाउंटर केस में मोदी और शाह का बचाव करने वालों में सबसे आगे रहे।
2014 के लोकसभा चुनाव के पहले मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो यह जेटली की ही बिसात थी जिसने पूरी पार्टी में मोदी के नाम पर सहमति बनायी। वह गोवा अधिवेशन में एक दिन पहले ही पहुंच गए वजह मोदी के नाम पर सहमति बनानी थी । यही नहीं एन डी ए का दायरा बढ़ाने में भी परदे के पीछे जेटली ही आगे रहे। मोदी के नाम पर एन डी ए में सर्वसम्मति बनाने में जेटली का योगदान 2014 में सबसे महत्वपूर्ण था। 2014 में लोकसभा चुनाव के पहले जब मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर विचार किया तो यह बहुत आसान काम नहीं था लेकिन जेटली की बिछाई बिसात में कमल दमदार तरीके से पूरे देश में खिला । 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू किया गया तब तब जेटली वित्त मंत्री थे। उस समय तक जीएसटी 150 देशों में लागू हो चुका था। भारत 2002 से इस पर विचार कर रहा था। 2011 में यूपीए सरकार के समय तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी इसे लागू कराने की कोशिश की थी लेकिन यह 2017 में लागू हो सका। 2019 में मोदी है तो मुमकिन है का नारा गढ़कर उन्होने देश भर मे फिर से भाजपा के लिए माहौल बनाया । धारा 370 , धारा 35 ए समाप्त करने से लेकर नोटबंदी , जी एस टी और राफेल से जुड़े हर मसले पर उन्होने एक एक कर विरोधियों को अपने तर्कों से निरुत्तर कर दिया । जेटली एक सफल वकील के साथ ही राजनीति के कुशल रणनीतिकार और ज्ञान के महासागर थे ।
जेटली को भाजपा के सबसे शालीन और मिलनसार नेताओं में से एक माना जाता था। उनके संबंध दूसरे दलों में भी मधुर रहे और वह हमेशा सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखते थे । जेटली के बारे में पार्टी में यह जुमला चलता था जिस राज्य का चुनावी प्रभारी उनको बनाया जाता है समझ लें उस राज्य में कमल खिलने से कोई नहीं रोक सकता। दक्षिण में कर्नाटक के दुर्ग को फतह करने में उनकी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। साथ ही बिहार में नीतीश के साथ गठबंधन बनाने में भी वह हमेशा आगे रहे। जेटली एक बेहतर इंसान भी थे । इसका एक नमूना ये था कि उनके निजी स्टाफ के कई कर्मचारियों के बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था उन्होनें विदेश में वहीं की जहां उनके बेटे रोहन जेटली ने पढ़ाई की । यही नहीं राजनीति के साथ ही जेटली खाने पीने और क्रिकेट के बड़े शौकीन रहे। इसके चलते पुरानी दिल्ली के तमाम दुकानदारों को वह व्यक्तिगत रूप से जानते थे । जेटली क्रिकेट के भी शौकीन थे इसी के चलते ही दिल्ली में फिरोजशाह कोटला का जीर्णोद्धार न केवल उनके दौर मे हुआ बल्कि दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , यू पी सरीखे राज्यों के छोटे इलाकों से आने वाले लड़कों ने टीम इंडिया में भी अपनी जगह बनाई । वह भी उस दौर में जब महाराष्ट्र के खिलाडियों का बड़ा बोलबाला एक दौर में हुआ करता था। भाजपा में दूसरी पीढ़ी के नेताओं में अरुण जेटली की गिनती यूं ही नहीं होती थी । प्रमोद महाजन के जाने के बाद भाजपा को संवारने में जेटली की परदे के पीछे सबसे बड़ी भूमिका थी जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । जेटली लुटियंस के पत्रकारों के काफी करीब भी थे । जेटली के औद्योगिक घरानों से लेकर मीडिया तक में अच्छे दोस्त थे जिसका उपयोग उन्होंने पार्टी के लिए किया और आजीवन अपने सिद्धांतों और विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया । ऐसे संकटमोचक नेता की कमी भाजपा को हमेशा खलेगी ।
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