Saturday, 27 October 2012

टूटने लगा बहुगुणा का तिलिस्म ........................



आज से तकरीबन साढ़े सात महीने पहले जब  विजय बहुगुणा ने  उत्तराखंड के मुख्यमन्त्री का कांटो रुपी  ताज पहना था तो लोगो को उम्मीद थी कि वह पर्वत पुत्र माने जाने वाले अपने पिता स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के सच्चे वारिस साबित होंगे लेकिन बहुगुणा के शासन से अब उत्तराखंड के आम जनमानस  का धीरे धीरे  मोहभंग होता जा रहा है | यही नहीं अब बहुगुणा सरकार के मंत्री भी खुलकर अपने समर्थको को लालबत्तियां  देने के लिए नए सिरे से लाबिंग करने में सिरे से लग गए हैं जिसके चलते बहुगुणा के सामने इस दौर में सबसे  बड़ी मुश्किल पेश आ रही है | टिहरी लोक सभा उपचुनाव  में अपने बेटे साकेत की हार से अब राज्य में    बहुगुणा  के खिलाफ विरोध के स्वर मुखरित होने लगे हैं | 
                   

 विजय बहुगुणा ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में जो ख्वाब प्रदेश वासियों को दिखाए थे वह  राज्य में  अब हवा हवाई ही साबित हो रहे है | प्रदेश में इस समय  अफसरशाही बेलगाम है और कभी न्यायाधीश रहे बहुगुणा इससे जूझ पाने में विफल साबित हो रहे हैं | बहुगुणा का अब तक का ज्यादातर समय दिल्ली की मैराथन दौड़ में ही जहाँ  बीता है वहीँ कांग्रेस के विधायक भी अंदरखाने बहुगुणा को राज्य में मुख्यमन्त्री के रूप में नहीं पचा पा रहे हैं | राज्य में विकास कार्य  इस कलह से सीधे प्रभावित हो रहे हैं और शायद यही कारण है  राजनीती के ककहरे  से अनजान बहुगुणा को  पहली बार सियासी अखाड़े में अपनी पार्टी के लोगो से ही  तगड़ी  चुनौती मिल रही है जहाँ अपनी कुर्सी बचाने के लिए वह दस जनपथ में अपनी बराबर हाजिरी लगाते हुए देखे जा सकते हैं |  राज्य  में कांग्रेस के  एक  बड़े नेता की माने तो बहुगुणा पूरे प्रदेश की जनता को कम समय दे पा रहे हैं जिसके चलते सरकार की योजनाये आम आदमी तक नहीं पहुच पा रही हैं | राज्य  कांग्रेस  में  बने कई गुट भी कांग्रेस की साख को  प्रभावित कर रहे हैं | इस समय राज्य में हरीश रावत, सतपाल महाराज , इंदिरा हृदयेश , यशपाल आर्य का गुट सक्रिय है जिसमे खुद विजय बहुगुणा  भी शामिल हैं  लेकिन बहुगुणा  की सबसे बड़ी दिक्कत यही हो चली है  हर गुट को मनाना उनके लिए संभव नहीं है | साथ में बहुगुणा को बाहर से समर्थन दे  रहे बसपा , यू के डी ( पी ) और  निर्दलियो को खुश करना उनके लिए एक बड़ी पहेली बनता जा रहा है | जिस गुट को भाव ना दो वही आँखें तरेर देता है जिसके बाद बहुगुणा को आप बीती सुनाने आलाकमान के यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती है  और अपनी सरकार के नेता और कार्यकर्ताओ के विरोध के बीच  बहुगुणा साथियो के विरोध पर  सीधे कुछ  भी कहने से भी बचते रहे हैं |
      

  दरअसल बहुगुणा पर मुख्यमन्त्री बनने के बाद से ऐसी  साढ़े साती की अंतरदशा चल रही है जो अभी तक उनका पीछा नहीं छोड़  पा रही  है |  तमाम विरोध और बगावत के बीच बहुगुणा राज्य के नए मुख्यमन्त्री तो  बनाए गए लेकिन उसी समय से राज्य में कुछ भी सामान्य नहीं चल रहा है |  हालाँकि  सितारगंज  विधान सभा चुनाव में करोडो रुपये खर्च कर और पानी की तरह पैसा बहाने के बाद बहुगुणा के हाथ ४०००० से ज्यादा वोटो से उत्तराखंड के विधान सभा चुनावो में अब तक मिली सबसे बड़ी भारी जीत हाथ तो लग गई लेकिन हाल ही में जनता ने उनकी ताजपोशी पर सवाल उठाते हुए उनके बेटे साकेत  को टिहरी लोक सभा उपचुनाव में  करारी हार का ऐसा तमाचा मारा जिसकी टीस बहुगुणा को  सताती रहेगी | आज आलम यह है  टिहरी की हार के सपने बहुगुणा को नींद में भी आ रहे हैं और वह सपने में  भी अपनी मुख्यमन्त्री की कुर्सी सलामत  नहीं देख रहे हैं शायद तभी टिहरी की हार के बाद सोनिया के सलाहकार और दस जनपथ के सबसे बड़े पावर हाउस अहमद पटेल  ने उनको भाव नहीं दिया है और उत्तराखंड  के  मामले को गुजरात और हिमाचल के विधान सभा चुनाव निपटने  तक टाल दिया है | 

                  

बहुगुणा इस कठिन दौर में इस बात के लिए  भाग्यशाली हैं इस समय पार्टी आलाकमान का सारा ध्यान हिमाचल और गुजरात में लगा हुआ है इसी के चलते  वह उत्तराखंड को ज्यादा तवज्जो इस दौर में नहीं दे रहा है लेकिन टिहरी का चुनाव निपटने  के बाद अब बहुगुणा के सामने असली परीक्षा की घडी शुरू हो रही है जब  चुनाव निपटने के बाद प्रदेश के नेताओ और कार्यकर्ताओ ने संगठन में व्यापक फेरबदल के साथ कांग्रेस  मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष  यशपाल आर्य को भी बदलने की मांग की है जिनका कार्यकाल इसी नवम्बर में ख़त्म हो रहा है |  छनकर सूत्रों से आ रही खबरें कह रही हैं विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज यशपाल को दूसरा कार्यकाल देने के मूड में हैं तो वहीँ केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत अपने समर्थको को इस कुर्सी पर बैठाना चाह रहे हैं जिनमे सबसे आगे पिथौरागढ़ के विधायक मयूख महर हैं  तो वहीं अगर इस पर सहमति नहीं बनती है तो रावत अपने चहेते विधायक प्रीतम सिंह , सांसद प्रदीप टम्टा का नाम आगे कर सकते हैं | इन पर मुहर  ना लगने  की सूरत में  तिवारी सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री नरेन्द्र सिंह भंडारी और कांग्रेस के कद्दावर नेता महेंद्र पाल का नाम आगे किया जा सकता है | 

वैसे बताते चलें इनके साथ बैटिंग करने में बहुगुणा अपने को असहज महसूस करते रहे हैं और अगर हरीश रावत के यह समर्थक प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पाने में कामयाब हो जाते हैं तो ऐसे में बहुगुणा के सामने मुश्किलें ज्यादा  बढ़ जाएगी शायद इसलिए अब उनकी पूरी कोशिश इस बात को लेकर है किसी भी तरह यशपाल आर्य को राज्य में दूसरा कार्यकाल दिया जाए | वह टिहरी हार का ठीकरा खुद और यशपाल के बजाए अब अन्य नेताओ पर फोड़ने के लिए रजामंद हो गए हैं जिस पर सतपाल महाराज ने भी अपनी सहमति व्यक्त कर दी है | सतपाल हरीश रावत को डेमेज करने के लिए आखरी समय में अपने चेहेते किसी नेता का नाम इस पद के लिए आगे कर सकते हैं | संभव है आने वाले समय में मुख्यमन्त्री विजय बहुगुणा की राय को भी तवज्जो दी जाए | 
                     

                                        लेकिन बहुगुणा का संकट यह नहीं है जो अभी वह टिहरी उपचुनाव में बेटे की हार के बाद  से झेल रहे हैं | उन्हें तो शपथ ग्रहण से ही राज्य के कांग्रेस से जुड़े  विधायको  से तगड़ी चुनौती  मिलनी शुरू हो गई थी जब २० से ज्यादा उनकी पार्टी के विधायक उनके शपथ  ग्रहण समारोह में नहीं पहुंचे थे | फिर इसके बाद मंत्री पद मनमाफिक  ना मिलने से हरीश रावत के समर्थक विधायक असंतुष्ट हो गए और वह खुलकर बहुगुणा के विरोध में अपना मोर्चा खोलने लगे | उस दौर में कांग्रेस की मुश्किल प्रणव चैम्पियन जैसे विधायको ने बढाई जो अपनी मांगो को लेकर जंतर मंतर हो आये वहीँ वह राज्य के खेल मंत्री दिनेश अग्रवाल को निशाने पर लेते रहे जो ओलंपिक खेलो को देखने लन्दन गए थे | चैम्पियन ने उनको ललकारते हुए कह डाला  अग्रवाल  खेल मंत्री बनने लायक नहीं हैं और उनके लन्दन जाने का प्रदेश को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है | अब ऐसे बयानों पर सी ऍम बहुगुणा कुछ प्रतिक्रिया नहीं देते थे जिसके चलते बहुगुणा की भद्द पिटती थी | 

यही नहीं इसके बाद अल्मोड़ा के विधायक  मनोज तिवारी ने भी अपनी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया | उन्होंने अपने विधान सभा इलाके में चिकित्सको  की नियुक्ति  ना होने का मामला उठाया जिसका  बागेश्वर , चम्पावत, पिथौरागढ़ जिलो के विधायको  ने भी समर्थन किया | इसके  बाद खुद स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र नेगी ने मोर्चा संभाला तब कही जाकर यह मामला शांत हो पाया था | वहीँ बहुगुणा के रूठे विधायको की कहानी यहीं नहीं थमी | धारचूला के नए नवेले विधायक हरीश धामी ने  जहाँ काली पट्टी बांधकर विधान सभा में बहुगुणा के खिलाफ अपना विरोध खुले आम बीते कुछ महीनो में  दर्ज किया वहीँ पिथौरागढ़ के विधायक मयूख महर तो सुपर विधायक निकले |  पार्टी आलाकमान के निर्देशों को धता बताते हुए उन्होंने आज तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष का पद ग्रहण नहीं किया है | 


 बहुगुणा के विरोध की कहानी यहीं नहीं थमती | कृषि मंत्री हरक सिंह रावत ने जहां दमयंती रावत को तराई बीज निगम का निदेशक बना डाला तो वहीँ शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने उनको रिलीव नहीं किया जिससे दोनों मंत्रियो की तकरार सबके सामने आ गई  | यह विवाद  बहुगुणा के लिए गले की फांस बना रहा लेकिन वह इस पर अपना मुह नहीं खोल पाए |  बहुगुणा की सबसे बड़ी व्यथा यह है कि राज्य में कांग्रेसियों के हर गुट को साधना उनके लिए मुश्किल  हो रहा है  शायद इसलिए उनको अपने साढ़े सात  महीने के छोटे से कार्यकाल में कई विधायको को कैबिनेट सचिव का ओहदा देना पड़ा है | 
               

बहुगुणा के खिलाफ नाराजगी यहीं नहीं थमी है | बहुगुणा ने टिहरी में हरीश रावत के सिपहसालार किशोर उपाध्याय को हरवाने के लिए हालिया  विधान सभा चुनाव में पूरा जोर लगाया था और वहां निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश धने का समर्थन किया था | दिनेश ने टिहरी  विधान सभा चुनाव जीत लिया और बहुगुणा को इस शर्त पर समर्थन दिया कि वह उनको कैबिनेट मंत्री बनायेंगे लेकिन बहुगुणा ने काफी माथापच्चीसी  के   बाद उनको  गढ़वाल विकास निगम का अध्यक्ष बनाया | धने ने तो यह भी कहा था वह बहुगुणा के लिए विधान सभा  उपचुनाव  में सीट खाली करवाएंगे लेकिन दाल ना गलने पर दिनेश ने विधायकी से इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया जिसके बाद बहुगुणा के लिए तराई के दबंग नेता तिलक राज बेहड़ ने मिशन सितारगंज चलाकर भाजपा के विधायक रहे किरण मंडल के साथ करोडो की डीलिंग  कर बहुगुणा के  चुनाव लड़ने के लिए सीट खाली कराई |  
                              

बहुगुणा सितारगंज चुनाव तो  जीत गए लेकिन उनके बेटे साकेत  अभी हाल ही में टिहरी से लोक सभा का चुनाव हार गए | हार की बड़ी वजह यह थी टिहरी की  जंग  पारिवारिक लड़ाई में तब्दील हो  गई जिसे केवल बहुगुणा का परिवार ही लड़ रहा था |हरीश रावत सरीखे खांटी  कांग्रेसी समर्थको  को इस उपचुनाव में एक बार फिर हाशिये पर रखा गया था जिसका नुकसान पूरी कांग्रेस को झेलना पड़ा  | आलम यह था जब नतीजे आये तो देहरादून की सात विधान सभा सीटो में से ६ में कांग्रेस को करारी हार का मुह देखना पड़ा  जो इस बात को बताने के लिए काफी था कि देहरादून  नगर का पढ़ा  लिखा वोटर बहुगुणा की नीतियों से खासा नाराज हो चला था शायद इसी के चलते उसने कांग्रेस के मुह पर यहाँ तमाचा मार कर इस बात का अहसास जरुर करवाया समय रहते बहुगुणा को अपनी कार्यशैली  में  बदलाव लाना होगा नहीं तो राज्य में २०१४ के लोक सभा चुनावो में उसकी मिटटी पलीत हो जाएगी  |
                      
प्रदेश के कई बड़े कांग्रेसी नेताओं के अलावा सक्रिय कार्यकर्ताओं को भी इस चुनाव में बहुगुणा ने  नजरअंदाज किया जिसका परिणाम यह हुआ  टिहरी संसदीय सीट बहुगुणा परिवार के हाथ से खिसक कर फिर से राजपरिवार की झोली में आ गई। राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को हार का सबसे बड़ा कारण मान रहे हैं  | परिवार के अलावा कांग्रेस के एक-दो नेताओं को ही साकेत बहुगुणा ने अपनी टीम में जगह इस उपचुनाव में  दी । चुनाव के दौरान क्षेत्र एवं प्रदेश के कुछ दिग्गज नेताओं को हाशिए पर रखा गया |  हालत यह थी कि टिहरी विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले पूर्व कांग्रेसी विधायक को भी नजरअंदाज किया गया। । भाजपा के हाथों मिली शिकस्त के बाद हाशिए पर रखे गए ये नेता अब चुनाव प्रबंधन पर निशाना साधने लगे हैं शायद तभी  पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण ने चुनाव निपटने के बाद बहुगुणा को इशारो इशारो में जो सन्देश दिया उस  पर सभी का ध्यान गया | 

सजवाण ने कहा  हम पार्टी के समर्पित नेता हैं पार्टी की हार से दुख होता है। हार का मुख्य कारण पार्टी नेताओं में आपसी विश्वास की कमी रही है। उन्होंने यह भी बताया कि 'हम पार्टी के साथ मजबूती से खडे़ रहे हैं लेकिन जब हम पर शक किया जाता है जासूसी कराई जाती  है तो मन को  चोट पहुंचती है। शूरवीर सिंह सजवाण के अलावा टिहरी के पूर्व कांग्रेस विधायक किशोर उपाध्याय की भी चुनाव में उपेक्षा की गई। पिछले चुनाव में भी वह कुछ ही वोट से हारे थे इसके बावजूद पार्टी ने उनकी उपेक्षा की। उन्होंने भी बहुगुणा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा 'यह हार पार्टी के लिए चिंता का विषय है। पूरे चुनाव में एक बार भी हमसे सहयोग नहीं लिया गया। हमने स्वयं पार्टी प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को इस बाबत पत्र लिखे थे मगर उन लोगों ने हमारा भरोसा नहीं किया।'


 दरअसल टिहरी की  इस हार का बड़ा कारण  विजय बहुगुणा का अहंकार भी था  जो हरीश रावत सरीखे खांटी कांगेसी नेता और उनके समर्थको की उपेक्षा करने में लगे  थे और अपने को सुपर सी ऍम समझने की भारी  भूल कर बैठे जबकि बहुगुणा का उत्तराखंड के जनसरोकारो से सीधा कोई वास्ता भी नहीं रहा है | वह तो अपने पिता हेमवती नंदन बहुगुणा के  नाम  परिवारवाद  और कॉरपोरेट के आसरे उत्तराखंड के सी ऍम की कुर्सी पा गए और सितारगंज में धन बल के जरिये अपना चुनाव जीत भी गए |जबकि बहुगुणा के जनसरोकारो का असली चेहरा यह रहा है कि वह पहाड़ के जनसरोकारो से ज्यादा कॉरपोरेट कंपनियों के ज्यादा करीब रहे हैं और इसी कॉरपोरेट ने उनके लिए दस जनपथ में मुख्यमंत्री बनाने की बिसात  इस बार बिछाई थी | यह सच भी शायद ही किसी से छुपा है कि बहुगुणा   इंडिया बुल्स जैसी विवादास्पद कम्पनी के वकील और ट्रस्टी एक दौर में रहे है जब उत्तराखंड भी नहीं बना था | उसी दौर में यह बहुगुणा अगर रईसजादो के महंगे गोल्फ जैसे खेलो से जुड़ उत्तराखंड के सरोकारों से जुड़ने का ढोंग करते हुए इस दौर में पाए जाते हैं तो यह कुछ हास्यास्पद सा मालूम पड़ता है क्युकि बहुगुणा  राजनीति को निजी व्यवसाय समझते हैं  शायद तभी उन्होंने साकेत के लिए टिहरी लोक सभा चुनाव में टिकट के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया | 


सबसे  नाइंसाफी अगर इस दौर में उत्तराखंड में किसी के साथ हुई है तो वह केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत हैं जिन्होंने अपने प्रयासों से उत्तराखंड में कांग्रेस को ना केवल अपनी सांगठनिक छमताओ से  सींचा वरन राज्य  में कांग्रेस  का बड़ा जनाधार भी बनाया | वह उत्तराखंड के पहले चुनाव में कांग्रेस को अपने बूते सत्ता में भी लाये लेकिन पार्टी ने उनको दरकिनार कर एन डी तिवारी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और इस बार भी हरीश रावत के साथ कांग्रेस ने नाइंसाफी कर उत्तराखंड की कमान विजय बहुगुणा के हाथ दे दी जिनका उत्तराखंड में कोई जनाधार ही नहीं है | लेकिन अब टिहरी में कांग्रेस की करारी हार के बाद बहुगुणा के सामने असली संकट लाल बत्ती देने का खड़ा हो गया है जिसमे बड़े पैमाने पर हरीश रावत के समर्थको के साथ उन्हें कांग्रेस के अन्य गुटों में भी संतुलन बनाना है | देखना होगा वह आने वाले दिनों में कैसे सरकार चलाते हैं  | 
        

             बहुगुणा को राज्य में शुरुवात से हर मसले पर विरोध का सामना करना पड़ा | बिजली परियोजनाए शुरू करने के मसले पर हरीश रावत  के साथ उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए | हरीश रावत को संतो के साथ खड़े होकर एक समय बहुगुणा को डेमेज करने में लगे थे जब उन्होंने गंगा की  अविरलता बनाये रखने के लिए गंगा के किनारे भजन कीर्तन करने की बात कही थी | बहुगुणा की किरकिरी उस वक्त भी हुई थी जब उन्होंने रातो रात कैबिनेट की बैठक में पल भर में राज्य में चार प्राइवेट यूनिवर्सिटी खोलने का ऐलान कर दिया था | तब भी हरीश  रावत ने उनके इस निर्णय पर खुले आम सवाल उठये थे | यही नहीं जब आपदा आई तो उनके कई कैबनेट मंत्री लन्दन में ओलंपिक देखने चले गए और बहुगुणा आपदा प्रभावितों के बीच जाकर यह कहने लगे आपदा आई है तो भजन कीर्तन करो ऐसे बयानों से भी उनकी छवि  खूब ख़राब हुई | 

 कई रोज पूर्व सिडकुल फेज 2  के सितारगंज में उद्घाटन को लेकर भी बहुगुणा की सरकार में मत भिन्नता देखने को मिली  | उत्तराखंड से कांग्रेस के कद्दावर नेता और केन्द्रीय मत्री हरीश रावत ने बहुगुणा की इस निवेश योजना पर सवाल उठाकर भाजपा के सुर में सुर कृषि भूमि कम होने पर चिंता जताते हुए  मिलाया है |विपक्षी  भाजपा भी इस कार्ययोजना के औचित्य पर सवाल उठाते हुए सेज पर  स्पेशल एग्रीकल्चर ज़ोन को तरजीह देने की पैरवी कर रही है | वहीँ राज्य में इस समय  पेयजल, बिजली जैसी समस्याओ का संकट  खड़ा है तो राजधानी दून में दिन दहाड़े अपराध बढ रहे हैं पर क़ानून  व्यवस्था लचर की लचर ही बनी है | अधिवक्ता की पत्नी की दिन दहाड़े हत्या पर कई वकील घंटाघर में बहुगुणा के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं तो बीते दिनों कानून व्यवस्था की लचर स्थिति पर दून बंद भी हो चुका है  यह स्थिति तब है जब उत्तराखंड में सी ऍम की कमान एक हाई कोर्ट के जज के हाथो में है | एडवोकेट की पत्नी रही पुष्पा सकलानी मर्डर केस के आधे अधूरे खुलासे को लेकर दून पुलिस की किरकिरी हो ही रही थी की अपराधियों ने बीते दिनों एक और बड़ी वारदात  को अंजाम दे दिया | क्लेमेंट टाउन  थाना एरिया के कश्मीरी मोहल्ले के रहने वाले सोनू नाम के युवक का सहसपुर में मर्डर कर दिया गया |  ऐसे में समझा जा सकता है राज्य में बहुगुणा सरकार का शासन कैसा चल  रहा है ? 

बहरहाल जो भी हो टिहरी चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद अगर बहुगुणा ने  अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं किया तो इतना तय है कि उन पर मुख्यमंत्री का  सिंहासन खाली करने का भारी दबाव   पड़  सकता है और राज्य में उनको समर्थन दे रहे बसपा , यू  के डी (पी ) जैसे दल भी उनसे किनारा कर किसी नए चेहरे को सी ऍम बनाने की मांग कर सकते है | ऐसे में संभावनाए हैं कि हरीश रावत के सितारे बुलंदियों पर  जा सकते हैं क्युकि उनके समर्थक विधायको और कार्यकर्ताओ की बड़ी संख्या उनको  सी ऍम  बनाने के लिए एक बार फिर से  9, तीन मूर्ति लेन जैसे  सियासी गलियारों के अखाड़े में उतर सकती है जिसके बाद कांग्रेस आलकमान को  इस बार उत्तराखंड में डेमेज कंट्रोल के लिए उसी हरीश रावत को मैदान में आगे करना पड़ सकता है जिसे उत्तराखंड की जमीनी हकीकत की  गहरी समझ  है | जो भी हो अगर ऐसा होता है तो इस छोटे से राज्य उत्तराखंड में रोचक सत्ता का संघर्ष देखने को मिल सकता है | देखना होगा आने वाले दिनों में ऊट किस करवट यहाँ बैठता है ?  

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