उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा खाली कराई गई टिहरी संसदीय सीट के लिए होने जा रहा चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है | जैसे जैसे मतदान की तिथि १० अक्तूबर पास आते जा रही है वैसे वैसे पूरे संसदीय इलाके में चुनाव प्रचार जोर पकड़ता जा रहा है | टिहरी संसदीय सीट पर कांग्रेस के टिकट पर विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा पहली बार राजनीती के समर में अपना भाग्य आजमाने उतरे हैं | वही इस सीट पर भाजपा ने राजघराने की बहू माला राजलक्ष्मी पर दाव लगाया है | टिहरी लोक सभा उपचुनाव उत्तराखंड में ऐसे समय में हो रहा है जब लोक सभा के आम चुनाव होने में बमुश्किल दो साल से भी कम का समय बचा है | ऊपर से कांग्रेस जिस तरीके से आर्थिक सुधारो की अपनी लीक पर सहयोगियों को धता बताकर फर्राटा भर रही है और जिस तरीके से इस मसले पर उसके सहयोगी लगातार उससे छिटकते जा रहे हैं उसने पहली बार मध्यावधि चुनावो की आशंका को बल प्रदान किया है | इन सबके बीच यह उपचुनाव निश्चित ही भाजपा और कांग्रेस सरीखे दोनों राष्ट्रीय दलों के लिए उत्तराखंड में अहम हो चला है क्युकि टिहरी उपचुनाव की बढ़त दोनों दलों के लिए आने वाले लोक सभा चुनावो में उनके मनोबल को सीधे प्रभावित करेगी | वैसे भी राज्य में कांग्रेस और भाजपा इन दोनों दलों के इर्द गिर्द ही राजनीती चलती आई है | २००९ के लोकसभा चुनावो में कांग्रेस ने ५-० से भाजपा को करारी शिकस्त दी थी जिसके बाद राज्य के तत्कालीन सीएम बी सी खंडूरी की मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई थी | टिहरी लोक सभा चुनाव में उस समय विजय बहुगुणा ने भाजपा प्रत्याशी निशानेबाज जसपाल राणा को धूल चटाई थी | ऐसे में अब भाजपा के सामने टिहरी के इस उपचुनाव को जीतकर अपनी खोयी प्रतिष्ठा हासिल करने का सुनहरा अवसर है |
वैसे टिहरी लोक सभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने राज्य के कांग्रेसियों के भारी विरोध के बावजूद जहाँ अपने बेटे साकेत बहुगुणा पर दाव इस चुनाव के बहाने खेला है वहीँ भाजपा ने भी टिहरी उपचुनाव के बहाने टिहरी राजघराने की बहू माला राजलक्ष्मी शाह का नाम कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने से पहले प्रत्याशी चयन में कांग्रेस से बढ़त जरुर ले ली है | टिहरी उपचुनाव में उत्तराखंड के दो राजनीतिक परिवारों की तीसरी पीड़ी की साख दांव पर लगी है जिसके सामने अपने राजनीतिक वजूद को तलाशने की एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है | मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा पहली बार राजनीतिक अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाने उतरे है | साकेत बहुगुणा अपने " पर्वत पुत्र " दादा हेमवतीनंदन बहुगुणा के नाम के आसरे जहाँ टिहरी उपचुनाव की नैय्या पार लगने की उम्मीद पाले बैठे हैं तो वहीँ महारानी राजलक्ष्मी भी अपने ससुर राजा मानवेन्द्र शाह के नाम में अपनी जीत की सम्भावनाये तलाश रही हैं जिनकी ईमानदारी के किस्से आज भी टिहरी में सर चढ़कर बोलते हैं जो टिहरी संसदीय इलाके से रिकॉर्ड 8 बार जीते भी थे |
हरीश रावत कांग्रेस से किशोर उपाध्याय , हीरा सिंह बिष्ट, जसपाल राणा और बहुगुणा सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह के लिए अपने स्तर से लाबिंग करने में लगे हुए थे लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य , सांसद सतपाल महाराज के विजय बहुगुणा के साथ आने से साकेत बहुगुणा के नाम पर मुहर लगनी आसान हो गई | दस जनपथ के अपने सलाहकारों के साथ अहमद पटेल ने भी टिहरी उपचुनाव के लिए विजय बहुगुणा के बेटे साकेत को टिकट देने के लिए हामी भर दी जिससे साकेत बहुगुणा सब पर भारी पड़े और अंततः नए राजनीतिक माहौल के बीच टिहरी में हो रहे उपचुनाव के इस घमासान में कांग्रेस के सामने मुश्किलें इस दौर में ज्यादा हैं क्युकि राज्य की कांग्रेस सरकार का ६ साल का निराशाजनक कार्यकाल, प्रमोशन में आरक्षण ,मूल निवास प्रमाण पत्र, आपदा का मुद्दा सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए भारी पड़ता दिखाई दे रहा है | वहीँ केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी ख़त्म करने, महंगाई, एफ डी आई जैसे मुद्दे भी टिहरी के आम वोटर को सीधे प्रभावित कर रहे हैं | एफ डी आई के मसले पर पूरे भारत बंद का इस संसदीय सीट पर खासा असर हाल में देखने को मिला | वैसे भी उत्तराखंड में छोटे व्यापारियों की तादात ज्यादा है जो सबसे ज्यादा मसूरी, देहरादून, उत्तरकाशी , टिहरी में अपना असर दिखा सकते है |
जहाँ गैस ,तेल की बड़ी कीमतों से संसदीय इलाके का आम वोटर परेशान दिखता है वही आपदा की विभीषिका पर हीलाहवाली के भाजपा द्वारा लगाये गए आरोप भी बहुगुणा सरकार की मुश्किलों को बढ़ा सकते हैं क्युकि इस चुनावी बेला में आपदा प्रभावितों की सुध लेने के बजाये सभी अपनी पूरी ताकत टिहरी चुनाव जीतने को लगाये हुए हैं | मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा स्टार प्रचारक बनकर हेलिकॉप्टरो में अपने तूफानी दौरे कर रहे हैं | आपदा प्रभावितों से उनका कोई सरोकार भी नहीं रहा शायद तभी वह प्रभावितों से आपदा आई है तो भजन कीर्तन करो यह कहते हाल के दिनों में देखे गए | वहीँ प्रमोशन में आरक्षण का मसला भी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की गले की फाँस बना हुआ है | यह मुद्दा राज्य के हर वोटर को सबसे ज्यदा प्रभावित कर रहा है | खास तौर से कर्मचारियों में इसे लेकर खासा रोष देखा जा सकता है |
बीते दिनों कर्मचारियों की लम्बी हड़ताल के बाद टिहरी उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद विजय बहुगुणा ने जस्टिस इरशाद हुसैन की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर कुछ दिनों के लिए राहत की सांस जरुर ली है लेकिन दून के सचिवालय , परेड ग्राउंड से निकली क्रमिक अनशन की चिंगारी पूरे प्रदेश को अपने आगोश में ले चुकी है| संभावना है टिहरी उपचुनाव के संपन्न होने के बाद आक्रोशित कर्मचारी परेड ग्राउंड से बहुगुणा सरकार के विरुद्ध फिर से कोई बड़ी हुंकार भरें | इस समय में टिहरी की चुनावी बेला सभी के लिए टशन बढ़ाने का काम कर रही है |
भाजपा प्रत्याशी माला राजलक्ष्मी तो इन मुददों के आसरे कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रखकर जनता के बीच कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं | वह अपने ससुर राजा मानवेन्द्र शाह की साफगोई को भ्रष्टाचार विरोधी माहौल के बीच भुनाने में लगी हैं | राजा मानवेन्द्र अपनी साफगोई के चलते टिहरी को 8 बार फतह करने में कामयाब हुए थे | केंद्र सरकार की नाकाम नीति, विजय बहुगुणा के खिलाफ बन रहे असंतोष , असंतुष्टो की बढती संख्या भी इस उपचुनाव में अपना असर दिखा सकती है | शायद इसी के चलते मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने टिहरी उपचुनाव को उनकी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है और वह खुद भी यहाँ से लगातार दो बार जीत दर्ज कर अपने पुत्र साकेत को जीत दिलाकर "हैट्रिक" लगाने की फ़िराक में हैं |
राजनीतिक विश्लेषको का आंकलन है कि पार्टी हाईकमान के भरोसे में खरा उतरने की चुनोती इस समय बहुगुणा के सामने खड़ी है | वह भी ऐसे दौर में जब राज्य के सभी कांग्रेसी नेता राज्य की राजनीती में अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढाने के लिए बैचैन खड़े हैं | संगठन और हरीश रावत सरीखे खांटी कांग्रेसी नेता को हाशिये पर धकेल कर विजय बहुगुणा साकेत के लिए तो टिकट ले आये लेकिन अगर इस चुनाव में साकेत का दाव नहीं चला तो खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के खिलाफ राज्य में हरीश रावत के समर्थक अपना मोर्चा खोल सकते हैं | ऐसे में विजय बहुगुणा की मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है | शायद इसी के मद्देनजर विजय बहुगुणा ने टिहरी उपचुनाव में अपनी पूरी मशीनरी लगाई हुई है जहाँ हेलीकाप्टर के दौरों में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है | यहाँ भी मुख्यमंत्री सितारगंज विधान सभा उपचुनाव की तरह अपने भरोसेमंद साथियो से चुनाव प्रचार करवा रहे हैं |
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पूरे परिवार का जोर इस समय टिहरी चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने में लगा हुआ है| मुख्यमंत्री बहुगुणा की बहन यू पी की पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी भी इस समय चुनाव प्रचार में देखी जा सकती हैं | हरीश रावत सरीखे जमीनी नेता और उनके समर्थक इस दौर में एक बार उपचुनाव के बहाने हाशिये पर चले गए हैं |
राजनीतिक विश्लेषको का आंकलन है कि पार्टी हाईकमान के भरोसे में खरा उतरने की चुनोती इस समय बहुगुणा के सामने खड़ी है | वह भी ऐसे दौर में जब राज्य के सभी कांग्रेसी नेता राज्य की राजनीती में अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढाने के लिए बैचैन खड़े हैं | संगठन और हरीश रावत सरीखे खांटी कांग्रेसी नेता को हाशिये पर धकेल कर विजय बहुगुणा साकेत के लिए तो टिकट ले आये लेकिन अगर इस चुनाव में साकेत का दाव नहीं चला तो खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के खिलाफ राज्य में हरीश रावत के समर्थक अपना मोर्चा खोल सकते हैं | ऐसे में विजय बहुगुणा की मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है | शायद इसी के मद्देनजर विजय बहुगुणा ने टिहरी उपचुनाव में अपनी पूरी मशीनरी लगाई हुई है जहाँ हेलीकाप्टर के दौरों में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है | यहाँ भी मुख्यमंत्री सितारगंज विधान सभा उपचुनाव की तरह अपने भरोसेमंद साथियो से चुनाव प्रचार करवा रहे हैं |
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पूरे परिवार का जोर इस समय टिहरी चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने में लगा हुआ है| मुख्यमंत्री बहुगुणा की बहन यू पी की पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी भी इस समय चुनाव प्रचार में देखी जा सकती हैं | हरीश रावत सरीखे जमीनी नेता और उनके समर्थक इस दौर में एक बार उपचुनाव के बहाने हाशिये पर चले गए हैं |
टिहरी उपचुनाव में सपा , बसपा ने इस बार भी सितारगंज विधान सभा उपचुनाव की भांति कांग्रेस प्रत्याशी साकेत बहुगुणा को वाक ओवर दे दिया है | बहुगुणा सरकार में शामिल यू के डी (पी) की इस चुनाव में स्थिति सबसे असहज हो चली है क्युकि उसके कोटे के कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह पवार जहाँ चुनाव प्रचार में नदारद हैं वहीँ पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष त्रिवेन्द्र सिंह पंवार चुनावी अखाड़े में अपनी ताकत दिखाने डटे हुए हैं जो मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष में तब्दील करने की आस में हैं | यू के डी ( पी ) के नेताओ में इस बात को लेकर टीस जरुर है क़ि वह पिछले लोक सभा चुनाव में इस सीट से अस्सी हजार वोट लाकर अच्छी स्थिति में थी | इस लिहाज से बहुगुणा के बेटे के खिलाफ दम दिखाना स्वांग नहीं लग रहा | वैसे भी यू के डी में उत्तराखंड के इस बार के विधान सभा चुनाव के दरमियान दो फाड़ हो चुका है और उस पर भाजपा और कांग्रेस के साथ सत्ता में सांठगाँठ करने के आरोप राज्य गठन के बाद से लगते रहे हैं | यह टिहरी उपचुनाव निश्चित ही उसकी ताकत का थोडा बहुत अहसास तो जरुर ही करवा सकता है |
बहरहाल जो भी हो कांग्रेस और भाजपा के दो राजपरिवारो की तीसरी पीड़ी उत्तराखंड के टिहरी उपचुनाव के बहाने अपने वजूद को लेकर संघर्ष कर रही है | राज्य की कांग्रेस सरकार के लिए राहत की बात यह है क़ि चुनाव से ठीक पहले निशंक सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मातबर सिंह कंडारी ने बीते दिनों भाजपा को अलविदा कहकर २१ सालो बाद कांग्रेस का दामन थामा | उनकी वापसी बहुगुणा परिवार के लिए क्या गुल खिलाती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा ? लेकिन इस चुनावी बिसात में भाजपा प्रत्याशी रानी राजलक्ष्मी भी फिट बैठ रही है क्युकि उनके ससुर राजा मानवेन्द्र शाह का टिहरी में व्यापक प्रभाव आज भी कायम है | उनकी बहू रानी खुद नेपाली मूल की हैं और इस संसदीय इलाके कई तकरीबन पचास हजार से ज्यादा वोटर जीत के आंकड़ो को सीधे प्रभावित कर सकते हैं और महिला प्रत्याशी होना भी उनके लिए फायदे का सौदा बनकर उभर रहा है | इससे भाजपा के महिला आरक्षण के समर्थन को भी बल मिल रहा है |
वैसे पूर्व में भाजपा ने नैनीताल संसदीय सीट से नब्बे के दशक में इला पन्त को आगे कर नया एक नया दाव खेला था| तब इला पन्त ने कांग्रेस के कद्दावर नेता और यू पी के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी को हराकर सबको चौका दिया था | क्या भाजपा यह इतिहास फिर राजलक्ष्मी के जरिये टिहरी में दोहरा रही है ? कह पाना मुश्किल है लेकिन रानी राजलक्ष्मी की सभाओ में उमड़ रही भारी भीड़ बहती हवा का थोडा बहुत अहसास तो जरुर ही करवा रही है और इस चुनाव के बहाने भाजपा के उत्तराखंड में तीन बड़े चेहरे खंडूरी, कोश्यारी और निशंक एकजुट होकर यह अहसास जरुर करवा रहे हैं कि भाजपा ने सितारगंज के हालिया उपचुनावों से कुछ सबक जरुर लिया है | वैसे हमारी समझ से टिहरी के गलियारों में इस समय यह सवाल भी घुमड़ रहा है क़ि अगर विजय बहुगुणा यहाँ से अपने पुत्र साकेत बहुगुणा के बजाए अपनी पत्नी सुधा बहुगुणा या उनकी बहु गौरी बहुगुणा का दाव खेलते तो मुकाबला बराबरी का हो सकता था | लेकिन क्या करें राजनीती की बिसात ही बड़ी अप्रत्याशित है | यहाँ असंभव से संभव होने में कुछ देर नहीं लगती | क्या टिहरी उपचुनाव इतिहास की एक नई इबारत लिखने जा रहा है ? देखना होगा आगे क्या होता है | तो इन्तजार करिए १३ अक्तूबर को होने वाली काउंटिंग का.......................
No comments:
Post a Comment