Friday, 23 November 2012

राजनीती के मैदान पर केजरीवाल ...................



“ जब सारी व्यवस्था ही लूट खसोट की पोषक बन जाए | शासक वर्ग सत्ता की ठसक दिखाते हुए सत्ता के मद में चूर हो जाए और आम आदमी के सरोकार हाशिये पर चले जाए तो ऐसे में रास्ता किस ओर जाए और किया भी क्या जाए " ? 
मध्य प्रदेश के सीहोर के बिलकिसगंज इलाके से ताल्लुक रखने वाले  राजकुमार परमार जब मौजूदा व्यवस्था से थक हार कर आक्रोश में यह जवाब देते हैं तो भारतीय राजनीती के असल स्तर का पता चलता है | कांग्रेस के युवराज के बजाए अब वह राजनीती के नए युवराज केजरीवाल के जरिए देश की हालत सुधारने निकलने जा रहे हैं | २६ नवंबर को सभी की नजरें जहाँ जंतर मंतर पर केजरीवाल के समर्थन में सड़को पर उतरने वाले जनसैलाब पर रहेंगी वहीँ राजकुमार सरीखे युवा लोग भी केजरीवाल की घोषित होने जा रही पार्टी का हिस्सा बन अपने इलाको में हर व्यक्ति को आम आदमी की पार्टी से जोड़ने का रोडमैप तैयार करेंगे | २६ नवम्बर १९४९ को अपने देश में संविधान का विधान बना था वहीँ २६ जनवरी  १९५० को यह लागू हुआ था | इसी से प्रेरित होकर २६ नवंबर को केजरीवाल और उनकी युवा टीम देशवासियों को राजनीती का एक नया विकल्प देती दिखाई देगी क्युकि इस दिन आईएसी से इतर उनका संगठन पहली बार उस पार्टी का स्वरूप ग्रहण करेगा जिसमे आम आदमी मुख्यधारा में दिखाई देगा | सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने निशाने पर लेने वाले अरविन्द केजरीवाल की इंट्री भारतीय राजनीती में उस “एंग्री यंगमैन “ के तौर पर हो रही है जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी है जो इस दौर में हाशिये पर चला गया है वहीँ अरविन्द आम आदमी के आसरे भारत की भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था की जड़ो को खदबदाने की कोशिशे कर रहे हैं जिसमे उनको सफलताए भी मिल ही है शायद यही कारण है आम आदमी केजरीवाल में उस करिश्माई युवा तुर्क का अक्स देख रहा है जिसके मन में सिस्टम से लड़ने की चाहत है और वह सिस्टम में घुसकर नेताओ को आइना दिखा रहा है |


                                
  
दरअसल भारतीय राजनीती इस दौर में सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है | यह पहला मौका है जब सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष की साख मिटटी में मिल गई है | एक के बाद एक घोटाले भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक बनते जा रहे हैं लेकिन सरकार को आम आदमी से कुछ लेना देना नहीं है क्युकि उसकी पूरी जोर आजमाईश विदेशी निवेश बढाने और कारपोरेट के आसरे मनमोहनी इकोनोमिक्स की लकीर खीचने में लगी हुई है | उदारीकरण के बाद इस देश में जिस तेजी से कारपोरेट  के लिए सरकारों ने फलक फावड़े बिछाए हैं उसने उसी तेजी के साथ भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है | इस लूट के खिलाफ समय समय देश में आवाजें उठती रही हैं लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल इस दौर में नहीं हो पायी है | स्थितिया कितनी बेकाबू हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर मौजूदा दौर में कोई केजरीवाल सरीखा व्यक्ति तत्कालीन कानून मंत्री और वर्तमान विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को उनके संसदीय इलाके फर्रुखाबाद में चुनौती देता है तो माननीय मंत्री उसे खून से रंगने और निपटा देने की बात कहते हैं वहीँ दम्भी प्रवक्ता रहे और वर्तमान में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी अन्ना को भगौड़ा एक दौर में घोषित कर देते हैं जो आम आदमी का हाथ कांग्रेस के साथ की असल तस्वीर आँखों के सामने लाता है | देश में यह पहला मौका रहा है  जब २०११ मे अन्ना की अगस्त क्रांति , रामदेव के जनान्दोलन ने लोगो को इस भ्रष्टाचार के दानव के खिलाफ लड़ने के लिए सड़क पर एकजुट किया और पहली बार राजनेताओ की साख पर सीधे सवाल इसी दौर में ही उठने लगे |

 

दरअसल अपने देश में अब भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या बन चुका है | प्रायः लोग इसको लाइलाज समझने लगते हैं लेकिन अब समय आ गया है जब इससे निजात पाने का विकल्प  लोगो को देना होगा | देश के युवाओ में इसे लेकर गहरा आक्रोश है और वह पहली बार देश के नेताओ से लेकर नौकरशाहों को निशाने पर लेकर उनकी जमीन को निशाने पर ले रहा है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही हर लड़ाई में अपनी भागीदारी दर्ज कर रहा है | इस लड़ाई में पहली बार वो लोग भी युवाओ के साथ दिख रहे है जो अपने अपने पदों से रिटायर होकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार करने सड़क से संसद तक का रास्ता अख्तियार करने को भी तैयार खड़े हैं |
                          
  

देश की पैसठ फीसदी युवा आबादी अब आगामी चुनाव में अपनी बिसात के जरिए सत्ता के हठी तंत्र को भोथरा करने में जुटी है जिसमे अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम के साथी टिमटिमाते दिए में रोशनी दिखाते नजर आते हैं | अरब स्प्रिंग से प्रेरित होकर भारत में भी लोग तहरीर चौक की तर्ज पर नया भारत बसाने का सपना अब देखने लगे हैं और शायद उसी का परिणाम था पूरे देश में अन्ना आन्दोलन की परिणति ऐसी हुई जिसने पहली बार लोकतंत्र में लोक के महत्व को साबित कर दिखाया | २ जी , आदर्श सोसाईटी , कामनवेल्थ घोटाला ,कर्नाटक की खदान में हुआ घोटाला यह सब ऐसे मुद्दे थे जिसने अन्ना के आन्दोलन को प्लेटफोर्म देने का काम किया | लोगो ने इस जनांदोलन से सीधा जुड़ाव महसूस किया शायद इसी के चलते सभी नए इस पर बढ़ चढकर भागीदारी बीते बरस की | आज अन्ना और अरविन्द की राहें भले ही जुदा हो गई हैं लेकिन दोनों का मुद्दा एक है देश से भ्रष्टाचार का खात्मा और इसी के चलते अब केजरीवाल जहाँ अब सत्ता के मठाधीशो को उनकी माद में घुसकर चुनौती दे रहे हैं वहीँ राजनेताओ को आईना दिखाकर यह भी बतला रहे हैं २०१४ में खुद अकेले ही चलना है और अकेले ही रास्ता भी तैयार करना है | केजरीवाल के राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे भी अब फिर से जनलोकपाल की लड़ाई नई टीम के साथ लड़ने वाले हैं | जो लोग सोचते थे अन्ना का आन्दोलन अब खत्म हो गया है वह शायद यह भूल गए हैं असली लड़ाई तो अब शुरू हो रही है जब रामदेव और अन्ना देश भर में घूम घूमकर २०१४ के चुनावो के लिए नई अलख जगाने लोगो के बीच निकलेंगे | अन्ना अगले महीने पटना के गाँधी मैदान से भ्रष्टाचार की लम्बी लड़ाई की हुंकार भरेंगे जिसमे कई रिटायर्ड नौकरशाह और अधिकारी भी उनका साथ देंगे और पूरे देश में भ्रष्टाचार समाप्त करने जन जन को जगायेंगे |  ऐसे में भ्रष्टाचार देश में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है |  मौजूदा दौर में भारतीय राजनीती के सामने जैसा संकट खड़ा है वैसा पहले कभी खड़ा नहीं था |

              

 इस दौर में जहाँ कांग्रेस की  भ्रष्टाचार के मसले पर खासी किरकिरी हो रही है वहीँ कोयले की कालिक के दाग से लेकर पूर्ति के गडबडझाले पर पहली बार उस विपक्षी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर सवाल उठे हैं जो पार्टी अपने को पार्टी विथ डिफरेंस कहती नहीं थकती है | ऐसे हालातो में  “केशव कुञ्ज” उनको अध्यक्ष पद पर अगर बनाए रखता है तो समझा जा सकता है ऐसा करके उसकी भ्रष्टाचार की लड़ाई खुद कमजोर नजर आने लगी  है | आम जनता में यह सन्देश जा रहा है दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में भ्रष्टाचार के मसले पर भी मैच फिक्सिंग है | अगर इच्छा शक्ति  होती तो दोनों पार्टिया उन लोगो को पद से हटा देती जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हैं लेकिन मनमोहन को देखिये मंत्रिमंडल विस्तार में उन्ही दागियो का प्रमोशन कर देते हैं जिनकी वजह से पार्टी की साख को नुकसान हुआ है | ऐसे माहौल में केजरीवाल सरीखे लोग अब लोगो को यह विश्वास करा रहे हैं अब भ्रष्टाचारी नेताओ के दिन जल्द ही लदने वाले हैं तो समझा जा सकता है आने वाले दिनों में नई बिसात संसदीय राजनीती में बिछने जा रही है जिसमे जनता के हाथ सत्ता की चाबी सही मायनों में होगी | न केवल केजरीवाल के साथ बल्कि रामदेव और अन्ना के गैर राजनीतिक आन्दोलन के साथ भी अब जनता खड़ी होती इस दौर में अगर दिख रही है तो इसका बड़ा कारण यह है आम आदमी इस दौर में भ्रष्टाचार से परेशान है | मिसाल के तौर अरविन्द  केजरीवाल को ही लीजिए अन्ना के राजनीतिक विकल्प देने के सवाल पर जब दोनों ने अलग राहें चुनी तो कई लोगो ने सोचा बिना अन्ना के केजरीवाल की राह मुश्किल भरी रहेगी लेकिन जनलोकपाल पर मनमोहन , सोनिया और गडकरी के घेराव , बिजली की बड़ी कीमतों के खिलाफ दिल्ली में विशाल प्रदर्शन द्वारा उन्होंने अपनी असली ताकत का एहसास करा दिया | युवाओ की एक बड़ी टीम उनके साथ हर मसले पर खड़ी रही चाहे वाड्रा का मामला लें या गडकरी का हर जगह उनको युवा साथियो का सहयोग इस दौर में मिला है | आज आलम यह है केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार की आये दिन सैकड़ो शिकायते देश भर से आ रही हैं जिन पर वह अपने साथियो के साथ प्रतिदिन बहस करते हैं और युवा साथियो से लैस केजरीवाल ब्रिगेड उस पर गंभीरता के साथ अध्ययन करती है |
                               
  

मौजूदा दौर में पक्ष और विपक्ष दोनों यह कहते हैं कि आरोप लगने से कोई आरोपी नहीं हो जाता और वह जाँच से भी घबराते हैं वहीँ केजरीवाल को देखिये उन्होंने अपने साथियों की जांच के लिए भी अलग से टीम गठित कर दी है | इस दौर में जहाँ प्रशांत भूषण पर हिमाचल में नियमो को ताक पर रखकर जमीन लेने के आरोप लगे वहीँ मयंक गाँधी पर भी अपने चाचा को   महाराष्ट्र में जमीन देने के भी आरोप लगे हैं वहीँ अंजलि दमानिया पर भी ऊँगली  उठी जिसमे फर्जी किसान बनकर रायगढ़ में कम दामो पर खरीदी गई ३५ एकड़ जमीन को बेचकर मुनाफा बनाने का संगीन आरोप लगा है  लेकिन केजरीवाल ने उन सभी की जांच करने का ऐलान एक झटके में कर लोगो का बीच एक नई नजीर पेश कर डाली है | आम जनता उनके इस निर्णय के साथ खड़ी दिखाई देती है | लोगो को उम्मीद है कि केजरीवाल की नई पार्टी अन्य पार्टियों से इतर अलग राह पर चलेगी | जंतर मंतर पर आगामी सोमवार को पार्टी की न केवल आम सभा होने जा रही है बल्कि संविधान भी घोषित होगा | इसके बाद केजरीवाल चुनावी अखाड़े में कूदेंगे जहाँ पर उनकी असली परीक्षा होगी | उनकी नज़रे फिलहाल दिल्ली पर टिकी हैं | अगले साल दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने हैं | शीला दीक्षित की मुश्किलें बिजली की बड़ी कीमतों ने बढ़ाई हुई हैं | ऊपर से सरकार के खिलाफ आम जनमानस में रोष है | केजरीवाल ने वहां पर आम सभाए कर जनता से  जुड़े मुद्दे उठाये हैं | जनता बिजली, पानी , महंगाई से कराह रही है ऊपर से भ्रष्टाचार से देश का आम आदमी परेशान  इस दौर में हो चुका है | केजरीवाल इन्ही मुद्दो के आसरे जनता में घर घर पैठ बनाने की कोशिशो में लगे हैं |
                             
कुछ लोग केजरीवाल की राजनीती को ख़ारिज करने में लगे हुए हैं और उनको आये दिन निशाने पर ले रहे हैं | कांग्रेसी जहाँ सत्ता के मद में चूर होकर केजरीवाल को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं वहीँ भाजपा भी उसी के सुर में सुर मिला रही है जबकि हमारे देश के राजनीतिक दल शायद इस बात को भूल रहे हैं कि मौजूदा दौर में हमारे राजनीतिक सिस्टम में गन्दगी भर गई है | अपराधियों और माफिया प्रवृति के लोग राजनीती की बहती गंगा में डुबकी लगा रहे है | हत्या, चोरी, बलात्कार जैसे संगीन अपराधो में लिप्त लोग लोकतंत्र की शोभा बड़ा रहे है | राजनीती में भाई भतीजावाद, परिवारवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता भरी हुई है और इन सबके बीच अगर केजरीवाल राजनीति का शुद्धिकरण करने जंतर मंतर  निकल रहे हैं तो वह कौन सा संगीन अपराध कर रहे हैं जो हमारे देश की बड़ी राजनीतिक जमात उनको ख़ारिज करने पर तुली हुई है | यही नहीं पत्रकारों की एक बड़ी जमात भी अब उनके पार्टी बनाने के फैसले पर साथ नहीं है | हमारे पत्रकारिता जगत के लिए यह शर्म की बात है जो खुलासे केजरीवाल कर रहे हैं उन पर अब तक किसी भी मीडिया घराने ने कई बरस से ना तो कलम ही चलाई और ना ही अपने चैनल में उन पर खबरें दिखाई  | केजरीवाल के यही खुलासे शायद अब इसी जमात को हजम नहीं हो रहे हैं | वैसे भी केजरीवाल जिस बेबाकी से मीडिया को उत्तर देते हैं उससे पत्रकारों के पसीने प्रेस कांफ्रेंस में छूट जाते हैं |  कुछ पत्रकारों और मठाधीशो ने राजनीती को अपनी जागीर समझ लिया है अब केजरीवाल नए सिरे से राजनीती को परिभाषित करने जा रहे हैं जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी रहेगा | अब तक देश की सभी पार्टियों द्वारा वह आम आदमी छला जाता रहा है | अब केजरीवाल अपनी पार्टी द्वारा जनता की नब्ज पकड़ेंगे | यही एक नेता की खासियत होती है | वह इसे बखूबी जानते हैं और इसकी खुशबू उन्होंने अपने सरकारी सेवाकाल के दौरान भी महसूस की  है |  यह तय हो चुका है उनकी पार्टी में सब अब आम आदमी ही तय करेगा और शायद इसीलिए यह पार्टी आम आदमी की होने जा रही है जिसमे ना तो महासचिव होगा ना अध्यक्ष | यह पार्टी जनता के सपनो की पार्टी होगी | तो इन्तजार कीजिये २६ नवंबर को जंतर मंतर से होने जा रहे केजरीवाल के बड़े एलान का | हमारी भी नजरें अब वहीँ की ओर हैं |

1 comment:

Shikha Kaushik said...

SARTHAK VICHARON KO PRESHIT KARTI AAPKI POST SARAHNIY HAI .AABHAR

. हिंदी चिट्ठाकार हैं