गुजरात
के चुनावी अखाड़े में इस समय चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं । भाजपा
और कांग्रेस इस बार भी यहाँ पर आमने सामने खड़ी हैं लेकिन टिकट चयन से लेकर
हाईटेक प्रचार में मोदी कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों पर भारी पड़ते
दिखाई देते हैं । इसकी छाप बीते दिनों घोषित प्रत्याशियों की सूची को
देखकर देखी जा सकती हैं जहाँ कांग्रेस ने पहले तो अपने प्रत्याशियों की दो
-- दो सूची घोषित की लेकिन बाद में एक चरण के उम्मीदवारों की सूची को
कार्यकर्ताओ के विरोध के चलते उसे रात सादे तीन बजे रद्द करने को मजबूर
होना पड़ा वहीँ भाजपा टिकट चयन में कांग्रेस से आगे न केवल निकली बल्कि
प्रचार में भी उसने उसको पीछे छोड़ दिया है । राजनीती के जानकारों की माने
तो नरेन्द्र मोदी तीसरी बार भाजपा की गुजरात में वापसी कराकर छह करोड़
गुजरातियों के सम्मान की रक्षा को बेताब खड़े दिख रहे हैं तो वहीँ पहली बार
उनकी नजरें दिल्ली के सिंहासन पर भी लगी हुई हैं ।
पिछले दिनों भाजपा की केन्द्रीय समिति की एक बैठक में भाजपा की दिल्ली वाली " डी कम्पनी" मोदी से सीधे मुखातिब हुई । मौका था गुजरात विधान सभा में भाजपा के टिकट बटवारे का । इस बार भी टिकटों के बटवारे में मोदी ने अपने फ्री हैण्ड का बखूबी इस्तेमाल किया और "डी कंपनी " की धमाचौकड़ी को यह अहसास करा ही दिया टिकट आवंटन में तो चलेगी तो मोदी की ही और वही नेता टिकट पाने में कामयाब होगा जो मोदी की चुनावी बिसात में फिट बैठेगा । बीते दस बरस में यह मौका पहली बार आया है जब गुजरात का कोई सीऍम टिकटों का चयन करने सीधे दिल्ली पंहुचा है ।यही नहीं मोदी ने पहली बार दिल्ली पहुंचकर पार्टी के बड़े और छोटे नेताओ को मोदी होने के मायने बता दिए हैं । तो क्या माना जाए गुजरात चुनावो के निपटने के बाद मोदी के कदम अहमदाबाद से सीधे निकलकर दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे हैं ? गुजरात चुनावो में मोदी की भारी बहुमत से जीत ही उनके लिए 2014 की चुनावी बिसात में अहम् भूमिका अदा करेगी।
गुजरात विधान सभा के हाल के चुनावो में एक तरफ मोदी खड़े हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस है जिसके पास कोई ऐसा चेहरा इस चुनाव में नहीं बचा है जो मोदी के मुकाबले में कहीं ठहरता है । भाजपा से निष्काषित और अब कांग्रेस में गए शंकर सिंह वाघेला से लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोड़वाडिया तक के सभी नेताओ में आपसी गुटबाजी इतनी ज्यादा है कि इस बार के चुनावो में भी यह पार्टी का खेल खराब करती ही दिख रही है जिसके चलते मोदी की राह आसान लग रही है । वहीँ मोदी के सामने भी खुद अपनी पार्टी के असंतुष्टों से निपटने की तगड़ी चुनौती है। आरएसएस के असंतुष्ट स्वयंसेवको से लेकर वीएचपी और बजरंग दल सरीखे संगठन जहाँ इस बार भी मोदी के धुर विरोधियो में शामिल हैं वहीँ भाजपा को गुड बाय कह चुके पूर्व मुख्यमंत्री केशु भाई पटेल अब गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर मोदी को ललकार रहे हैं । लेकिन इन सबके बीच आम गुजराती वोटर से अगर आप चुनाव के बारे में पूछें तो उसके मुह पर मोदी के अलावे कोई चेहरा इस दौर में नहीं ठहरता । मुस्लिम बाहुल्य इलाको में भी मोदी ने अपने विकास कार्य के बूते अपने विरोधियो को भी अपने पाले में लाने की गोलबंदी इस चुनाव में की है । जाहिर है मोदी की नजरें इस बार मुसलमानों पर भी लगी हुई हैं जहाँ वह अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने में जुटे हैं क्युकि दिल्ली का रास्ता गुजरात के बूते ही तैयार करना है । शायद इसीलिए आरएसएस भी मोदी की नाव में सवारी करने का मन इस दौर में बना चुका है । चूँकि गुजरात दंगो पर आई एसआईटी की रिपोर्ट ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है और अब अदालत से भी उनको राहत मिल चुकी है लिहाजा "हिन्दू हृदय सम्राट " को अब राजनीती के असल हीरो के रूप में पेश करने से संघ पीछे नहीं हटने वाला है ।इसके संकेत गुजरात में मोदी की फिर से जीत के बाद देखने को मिलेंगे ।
इस साल संघ ने अपने मुखपत्र " आर्गनाइजर " में चूँकि यह लिखा कि मोदी ने गुजरात दंगो के दौरान राजधर्म निभाने में कोई कोताही नहीं की जो बहती हवा के असल रुख का अहसास तो करवा ही रहा है । साथ ही इसी बहाने संघ मोदी को अपना खुला समर्थन भी दे रहा है क्युकि संघ मान चुका है गुजरात से लेकर आगामी लोक सभा चुनावो में अकेले नरेन्द्र मोदी ऐसे नेता हैं जो संघ के राष्ट्रवाद को अपने कद में ढाल सकते हैं और हिंदुत्व को एक नई पहचान दे सकते हैं ।इसके संकेत हाल ही में कुछ महीने पहले मोदी और मोहन भागवत के बीच हुई मुलाकात के दौरान देखने को मिले थे जहाँ गुजरात चुनावो से ठीक पहले मोहन भागवत ने नरेन्द्र मोदी को "नमस्ते प्रजा वत्सले मातृभूमि " का पाठ पढ़ाकर मोदी को संघ की आखरी उम्मीद होने का पाठ पढाया । साथ ही भाजपा की दिल्ली वाली डी कंपनी के पीएम बनने की संभावनाओ को नकार दिया है ।
इधर मोदी भी अपने अंदाज में गुजरात के रण में कांग्रेस की मुश्किलें अपने विकास कार्यो के द्वारा बढ़ा रहे हैं । मोदी ने हाल के समय में जहाँ गुजरात चुनावो से पूर्व अपने सदभावना उपवास के माध्यम से अपनी छवि बदलने की कोशिश की है तो वहीँ विवेकानंद विकास यात्रा के जरिये युवाओ के बीच अपनी अलग पहचान बनाने में भी सफलता हासिल की है ।साथ ही यह पहला मौका है जब वह गुजरात के मुद्दों से इतर राष्ट्रीय मुद्दों को अपने चुनाव प्रचार में आक्रामक ढंग से उठा रहे हैं और राहुल ,सोनिया से लेकर मनमोहन तक पर सीधे वार करने से नही चूक रहे हैं । यद्यपि 2002 के गोधरा दंगो का जिन्न मोदी का पीछा आज भी नही छोड़ रहा है वहीँ उनके दल की कद्दावर मंत्री रही माया कोडनानी को 28 साल तो बजरंग दल के बाबू बजरंगी को नरोदा पाटिया नरसंहार में उम्रकैद की सजा ने उनकी मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है लेकिन बीते दस बरस में यह पहला मौका है जब नरोदा पाटिया और गोधरा सरीखे मुद्दो को मोदी के विरोधी पीछे छोड़ चुके हैं । गुजरात के पिछले विधान सभा चुनाव में सोनिया गाँधी द्वारा मोदी को मौत का सौदागर बताने भर से मोदी की जीत की राह आसान हो गई थी शायद इस बार यही सोचकर कांग्रेस दंगो के मसलो को छोड़कर अन्य मुद्दे राज्य में उठा रही है क्युकि हिन्दू ह्रदय सम्राट जनता की नब्ज पकड़ना जानते हैं ।वह अपने खिलाफ बनने वाले हर माहौल को हिंदुत्व वोटो के ध्रुवीकरण के जरिये भारी वोटो में तब्दील करने का माद्दा रखते हैं । गुजरात में मोदी ने अपने विकास कार्य से लोगो का दिल जीता है साथ ही वहां का कायाकल्प किया है । एक दशक पहले के गुजरात को कौन भूल सकता है ? कौन भूल सकता है भुज के भूकंप को जब यह पूरा इलाका तहस नहस हो गया था लेकिनं आज वहां जाकर अगर आप भुज को देखें तो यकीन ही नहीं करेंगे यह गुजरात का वही भुज है जहाँ कभी भूकंप के झटके आये थे ।
आज मोदी ने अपने विकास कार्यो से गुजरात को एक माडल स्टेट के रूप में खड़ा किया है ।मोदी ने इस दरमियान ना केवल सड़को का भारी जाल बिछाया है बल्कि बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओ को भी चुस्त दुरुस्त करने के साथ ही गुजरात में कॉरपोरेट के आसरे विकास की नई लकीर खींची है । यही नहीं आज स्थिति ऐसी है कॉरपोरेट इस दौर में खुले तौर मोदी के साथ खड़ा है जहाँ मुकेश अम्बानी से लेकर सुनील भारती मित्तल और रतन टाटा से लेकर अनिल अम्बानी तक सभी नरेन्द्र मोदी की तारीफों के कसीदे पढ़ते नजर आते है और उनको वह देश की अगुवाई करने वाले नेताओ में शुमार करने से पीछे नहीं हटते तो इसका कारण मोदी का विकास माडल रहा है जिन्होंने आम गुजराती के मन में अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता हासिल की है । शायद यही कारण है गुजरात का आम वोटर भी अब गुजराती अस्मिता की चाशनी में मोदी के हाथो में अपना भविष्य सुरक्षित देख रहा है । 1985 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे माधव सिंह सोलंकी ने छत्रिय ,आदिवासी, दलित और मुसलमानों को साथ लेकर "खाम " रणनीति के आसरे 182 में से 149 सीटें जीती थी वहीँ मोदी भी इस बार हिंदुत्व माडल को गुजराती अस्मिता के साथ जोड़कर 150 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत से गुजरात में भाजपा की सरकार बनाना चाहते हैं ।
मोदी ने इस चुनाव में अपना सब कुछ पर लगा दिया है ।ट्विटर से लेकर फेसबुक , थ्रीडी प्रचार से लेकर ऑनलाइन चैटिंग , मुखौटा प्रचार से लेकर हाईटेक प्रचार सभी जगह मोदी की जय जय हो रही है । यहाँ तक कि मीडिया भी इस चुनाव में मोदी का यशोगान करता नजर आ रहा है । मोदी माधव सिंह सोलंकी से आगे निकलकर "खाम " रणनीति के आसरे अपने लिए रिकॉर्ड मतो से जीत का रास्ता तैयार कर रहे हैं ।हर विषय पर वह अपनी राय इस चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर रख रहे हैं और चुनाव प्रचार में हिंदी का प्रयोग कर उसे ग्लोबल बना रहे हैं । छह करोड़ गुजरातियों में 16 फीसदी आदिवासी, 15 फीसदी पटेल हैं तो वहीँ 10 फीसदी मुस्लिम , 7 फीसदी दलित और 8 फीसदी ब्राह्मण हैं वहीँ 44 फीसदी पिछड़ी जाति के लोग शामिल हैं ।पटेल समुदाय पर जहाँ केशु भाई की पकड़ मजबूत है वहीँ पिछड़ी जाति पर मोदी की पकड़ मजबूत है । मोदी खुद भी ओबीसी जाति से आते हैं जहाँ पर उनका मजबूत जनाधार रहा है ।पिछली बार भी गुजरात के चुनावो में केशु भाई फेक्टर बड़ा बताया जा रहा था लेकिन वहां पर उनकी कोई बड़ी भूमिका देखने को नहीं मिली परन्तु इस साल वह अपनी गुजरात परिवर्तन पार्टी के जरिये ताल ठोक रहे हैं जहाँ मोदी से नाराज नेताओ का एक बड़ा तबका उनके साथ शामिल बताया जा रहा है ।ऐसे माहौल में मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं लेकिन राजनीती के जानकारो का कहना है गुजरात के चुनाव निपटने तक ही केशु भाई बड़ा फेक्टर माना जाएगा । मतदान निपटने के बाद वह संघ के जरिये मोदी को ही लाभ पहुचायेंगे ।
कांग्रेस के पास मोदी की काट का कोई फार्मूला इस दौर में बचा नहीं है लिहाजा इस चुनाव में भी वह मोदी के खिलाफ फर्जी इनकाउंटर , कैग की गुजरात पर आई रिपोर्ट , सौराष्ट्र में सूखा , किसानो की ख़ुदकुशी और राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति ना होने का मुद्दा उछाल रही है वहीँ मोदी केंद्र द्वारा गुजरात के साथ किए गए सौतेले व्यवहार और यू पी ए 2 के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उसे तगड़ी चुनौती दे रहे है । अगर गुजरात के साथ हिमाचल में भी भाजपा की जीत होती है तो यकीन जान लीजिए मोदी का नाम राष्ट्रीय फलक पर मजबूत नेता के तौर पर उभरेगा । पिछले दिनों ब्रिटेन के उच्चायुक्त की मोदी से मुलाक़ात के बाद जहाँ उनके समर्थको की बाछें खिली हुई हैं वहीँ अब मोदी सभी वर्गो में अपनी पैठ मजबूत कर 2014 का रास्ता दिल्ली के लिए खुद के बूते अगर तैयार कर रहे हैं तो इसमें शक शायद ही किसी को हो । गोधरा अब काफी पीछे छूट चुका है । अपने माडल से मोदी ने गुजरात को एक नई पहचान दी है । आज उनके इस माडल की उनके विरोधी भी सराहना करते हैं ।यह ब्रांड मोदी का चेहरा है जिसने हिंदुत्व की प्रयोगशाला में उन्होंने अपने अथक परिश्रम से सींचा है । मोदी प्रतिदिन 19 से 20 घंटे काम करते हैं और बंद कमरों में बैठकर विरोधी की हर चाल का माकूल जवाब देने की रणनीति तैयार करते हैं । इस काम में वह भाजपा के आरएस एस को ठेंगा दिखाकर अपनी पार्टी के नेताओं को भी ठिकाने लगाने से परहेज अगर नहीं करते तो समझा जा सकता है बीते एक दशक में मोदी ने तमाम आरोपों के बीच किस तरह के करिश्माई नेता की पहचान बनाई है ।
एक दौर में संघ के प्रचारक रहे नरेन्द्र भाई मोदी कुशल संगठनकर्ता भी रहे है । शायद इसी के चलते वह अपने बूते हर बार गुजरात में सरकार और संगठन में अच्छा तालमेल बनाने में सफल हुए हैं ।20 दिसंबर को अगर गुजरात में भाजपा बड़ी दिवाली मनाने में सफल होती है तो इसके बाद अपनी जीत से मोदी यह सन्देश देने में कामयाब हो जायेंगे अब गुजरात का बोझ उठाने के बाद वह राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने निकलने जा रहे हैं । संभव है इसके बाद भाजपा पीएम पद के लिए "ब्रांड मोदी " नाम को भुनाएगी । ऐसी सूरत में पार्टी उन्हें 2014 के लोक सभा चुनावो से ठीक पहले प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने से शायद ही हिचकेगी । राहुल गाँधी की तरह भाजपा में भी पार्टी की मोदी पर निर्भरता शायद बढ़ जाएगी । लोक सभा में उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव संचालन समिति की कमान तब मोदी के पास ही रहेगी ।अगले लोक सभा चुनाव से पहले सभी की नजरें गुजरात , हिमाचल में हैं अगर मोदी की वापसी गुजरात में आने वाले दिनो मे होती है तो मध्य प्रदेश , राजस्थान , छत्तीसगढ़ , दिल्ली सरीखे 10 राज्यो में अगले साल होने जा रहे विधान सभा चुनावो में यह जीत पार्टी और कार्यकर्ताओ में नया जोश तो अवश्य ही भरेगी ।लेकिन फिलहाल सभी की नजरें मोदी की शानदार जीत पर लगी हैं और वाइब्रेन्ट गुजरात को भी 20 दिसम्बर तक का इन्तजार है ।
पिछले दिनों भाजपा की केन्द्रीय समिति की एक बैठक में भाजपा की दिल्ली वाली " डी कम्पनी" मोदी से सीधे मुखातिब हुई । मौका था गुजरात विधान सभा में भाजपा के टिकट बटवारे का । इस बार भी टिकटों के बटवारे में मोदी ने अपने फ्री हैण्ड का बखूबी इस्तेमाल किया और "डी कंपनी " की धमाचौकड़ी को यह अहसास करा ही दिया टिकट आवंटन में तो चलेगी तो मोदी की ही और वही नेता टिकट पाने में कामयाब होगा जो मोदी की चुनावी बिसात में फिट बैठेगा । बीते दस बरस में यह मौका पहली बार आया है जब गुजरात का कोई सीऍम टिकटों का चयन करने सीधे दिल्ली पंहुचा है ।यही नहीं मोदी ने पहली बार दिल्ली पहुंचकर पार्टी के बड़े और छोटे नेताओ को मोदी होने के मायने बता दिए हैं । तो क्या माना जाए गुजरात चुनावो के निपटने के बाद मोदी के कदम अहमदाबाद से सीधे निकलकर दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे हैं ? गुजरात चुनावो में मोदी की भारी बहुमत से जीत ही उनके लिए 2014 की चुनावी बिसात में अहम् भूमिका अदा करेगी।
गुजरात विधान सभा के हाल के चुनावो में एक तरफ मोदी खड़े हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस है जिसके पास कोई ऐसा चेहरा इस चुनाव में नहीं बचा है जो मोदी के मुकाबले में कहीं ठहरता है । भाजपा से निष्काषित और अब कांग्रेस में गए शंकर सिंह वाघेला से लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोड़वाडिया तक के सभी नेताओ में आपसी गुटबाजी इतनी ज्यादा है कि इस बार के चुनावो में भी यह पार्टी का खेल खराब करती ही दिख रही है जिसके चलते मोदी की राह आसान लग रही है । वहीँ मोदी के सामने भी खुद अपनी पार्टी के असंतुष्टों से निपटने की तगड़ी चुनौती है। आरएसएस के असंतुष्ट स्वयंसेवको से लेकर वीएचपी और बजरंग दल सरीखे संगठन जहाँ इस बार भी मोदी के धुर विरोधियो में शामिल हैं वहीँ भाजपा को गुड बाय कह चुके पूर्व मुख्यमंत्री केशु भाई पटेल अब गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाकर मोदी को ललकार रहे हैं । लेकिन इन सबके बीच आम गुजराती वोटर से अगर आप चुनाव के बारे में पूछें तो उसके मुह पर मोदी के अलावे कोई चेहरा इस दौर में नहीं ठहरता । मुस्लिम बाहुल्य इलाको में भी मोदी ने अपने विकास कार्य के बूते अपने विरोधियो को भी अपने पाले में लाने की गोलबंदी इस चुनाव में की है । जाहिर है मोदी की नजरें इस बार मुसलमानों पर भी लगी हुई हैं जहाँ वह अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने में जुटे हैं क्युकि दिल्ली का रास्ता गुजरात के बूते ही तैयार करना है । शायद इसीलिए आरएसएस भी मोदी की नाव में सवारी करने का मन इस दौर में बना चुका है । चूँकि गुजरात दंगो पर आई एसआईटी की रिपोर्ट ने मोदी को क्लीन चिट दे दी है और अब अदालत से भी उनको राहत मिल चुकी है लिहाजा "हिन्दू हृदय सम्राट " को अब राजनीती के असल हीरो के रूप में पेश करने से संघ पीछे नहीं हटने वाला है ।इसके संकेत गुजरात में मोदी की फिर से जीत के बाद देखने को मिलेंगे ।
इस साल संघ ने अपने मुखपत्र " आर्गनाइजर " में चूँकि यह लिखा कि मोदी ने गुजरात दंगो के दौरान राजधर्म निभाने में कोई कोताही नहीं की जो बहती हवा के असल रुख का अहसास तो करवा ही रहा है । साथ ही इसी बहाने संघ मोदी को अपना खुला समर्थन भी दे रहा है क्युकि संघ मान चुका है गुजरात से लेकर आगामी लोक सभा चुनावो में अकेले नरेन्द्र मोदी ऐसे नेता हैं जो संघ के राष्ट्रवाद को अपने कद में ढाल सकते हैं और हिंदुत्व को एक नई पहचान दे सकते हैं ।इसके संकेत हाल ही में कुछ महीने पहले मोदी और मोहन भागवत के बीच हुई मुलाकात के दौरान देखने को मिले थे जहाँ गुजरात चुनावो से ठीक पहले मोहन भागवत ने नरेन्द्र मोदी को "नमस्ते प्रजा वत्सले मातृभूमि " का पाठ पढ़ाकर मोदी को संघ की आखरी उम्मीद होने का पाठ पढाया । साथ ही भाजपा की दिल्ली वाली डी कंपनी के पीएम बनने की संभावनाओ को नकार दिया है ।
इधर मोदी भी अपने अंदाज में गुजरात के रण में कांग्रेस की मुश्किलें अपने विकास कार्यो के द्वारा बढ़ा रहे हैं । मोदी ने हाल के समय में जहाँ गुजरात चुनावो से पूर्व अपने सदभावना उपवास के माध्यम से अपनी छवि बदलने की कोशिश की है तो वहीँ विवेकानंद विकास यात्रा के जरिये युवाओ के बीच अपनी अलग पहचान बनाने में भी सफलता हासिल की है ।साथ ही यह पहला मौका है जब वह गुजरात के मुद्दों से इतर राष्ट्रीय मुद्दों को अपने चुनाव प्रचार में आक्रामक ढंग से उठा रहे हैं और राहुल ,सोनिया से लेकर मनमोहन तक पर सीधे वार करने से नही चूक रहे हैं । यद्यपि 2002 के गोधरा दंगो का जिन्न मोदी का पीछा आज भी नही छोड़ रहा है वहीँ उनके दल की कद्दावर मंत्री रही माया कोडनानी को 28 साल तो बजरंग दल के बाबू बजरंगी को नरोदा पाटिया नरसंहार में उम्रकैद की सजा ने उनकी मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है लेकिन बीते दस बरस में यह पहला मौका है जब नरोदा पाटिया और गोधरा सरीखे मुद्दो को मोदी के विरोधी पीछे छोड़ चुके हैं । गुजरात के पिछले विधान सभा चुनाव में सोनिया गाँधी द्वारा मोदी को मौत का सौदागर बताने भर से मोदी की जीत की राह आसान हो गई थी शायद इस बार यही सोचकर कांग्रेस दंगो के मसलो को छोड़कर अन्य मुद्दे राज्य में उठा रही है क्युकि हिन्दू ह्रदय सम्राट जनता की नब्ज पकड़ना जानते हैं ।वह अपने खिलाफ बनने वाले हर माहौल को हिंदुत्व वोटो के ध्रुवीकरण के जरिये भारी वोटो में तब्दील करने का माद्दा रखते हैं । गुजरात में मोदी ने अपने विकास कार्य से लोगो का दिल जीता है साथ ही वहां का कायाकल्प किया है । एक दशक पहले के गुजरात को कौन भूल सकता है ? कौन भूल सकता है भुज के भूकंप को जब यह पूरा इलाका तहस नहस हो गया था लेकिनं आज वहां जाकर अगर आप भुज को देखें तो यकीन ही नहीं करेंगे यह गुजरात का वही भुज है जहाँ कभी भूकंप के झटके आये थे ।
आज मोदी ने अपने विकास कार्यो से गुजरात को एक माडल स्टेट के रूप में खड़ा किया है ।मोदी ने इस दरमियान ना केवल सड़को का भारी जाल बिछाया है बल्कि बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओ को भी चुस्त दुरुस्त करने के साथ ही गुजरात में कॉरपोरेट के आसरे विकास की नई लकीर खींची है । यही नहीं आज स्थिति ऐसी है कॉरपोरेट इस दौर में खुले तौर मोदी के साथ खड़ा है जहाँ मुकेश अम्बानी से लेकर सुनील भारती मित्तल और रतन टाटा से लेकर अनिल अम्बानी तक सभी नरेन्द्र मोदी की तारीफों के कसीदे पढ़ते नजर आते है और उनको वह देश की अगुवाई करने वाले नेताओ में शुमार करने से पीछे नहीं हटते तो इसका कारण मोदी का विकास माडल रहा है जिन्होंने आम गुजराती के मन में अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता हासिल की है । शायद यही कारण है गुजरात का आम वोटर भी अब गुजराती अस्मिता की चाशनी में मोदी के हाथो में अपना भविष्य सुरक्षित देख रहा है । 1985 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे माधव सिंह सोलंकी ने छत्रिय ,आदिवासी, दलित और मुसलमानों को साथ लेकर "खाम " रणनीति के आसरे 182 में से 149 सीटें जीती थी वहीँ मोदी भी इस बार हिंदुत्व माडल को गुजराती अस्मिता के साथ जोड़कर 150 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत से गुजरात में भाजपा की सरकार बनाना चाहते हैं ।
मोदी ने इस चुनाव में अपना सब कुछ पर लगा दिया है ।ट्विटर से लेकर फेसबुक , थ्रीडी प्रचार से लेकर ऑनलाइन चैटिंग , मुखौटा प्रचार से लेकर हाईटेक प्रचार सभी जगह मोदी की जय जय हो रही है । यहाँ तक कि मीडिया भी इस चुनाव में मोदी का यशोगान करता नजर आ रहा है । मोदी माधव सिंह सोलंकी से आगे निकलकर "खाम " रणनीति के आसरे अपने लिए रिकॉर्ड मतो से जीत का रास्ता तैयार कर रहे हैं ।हर विषय पर वह अपनी राय इस चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर रख रहे हैं और चुनाव प्रचार में हिंदी का प्रयोग कर उसे ग्लोबल बना रहे हैं । छह करोड़ गुजरातियों में 16 फीसदी आदिवासी, 15 फीसदी पटेल हैं तो वहीँ 10 फीसदी मुस्लिम , 7 फीसदी दलित और 8 फीसदी ब्राह्मण हैं वहीँ 44 फीसदी पिछड़ी जाति के लोग शामिल हैं ।पटेल समुदाय पर जहाँ केशु भाई की पकड़ मजबूत है वहीँ पिछड़ी जाति पर मोदी की पकड़ मजबूत है । मोदी खुद भी ओबीसी जाति से आते हैं जहाँ पर उनका मजबूत जनाधार रहा है ।पिछली बार भी गुजरात के चुनावो में केशु भाई फेक्टर बड़ा बताया जा रहा था लेकिन वहां पर उनकी कोई बड़ी भूमिका देखने को नहीं मिली परन्तु इस साल वह अपनी गुजरात परिवर्तन पार्टी के जरिये ताल ठोक रहे हैं जहाँ मोदी से नाराज नेताओ का एक बड़ा तबका उनके साथ शामिल बताया जा रहा है ।ऐसे माहौल में मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं लेकिन राजनीती के जानकारो का कहना है गुजरात के चुनाव निपटने तक ही केशु भाई बड़ा फेक्टर माना जाएगा । मतदान निपटने के बाद वह संघ के जरिये मोदी को ही लाभ पहुचायेंगे ।
कांग्रेस के पास मोदी की काट का कोई फार्मूला इस दौर में बचा नहीं है लिहाजा इस चुनाव में भी वह मोदी के खिलाफ फर्जी इनकाउंटर , कैग की गुजरात पर आई रिपोर्ट , सौराष्ट्र में सूखा , किसानो की ख़ुदकुशी और राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति ना होने का मुद्दा उछाल रही है वहीँ मोदी केंद्र द्वारा गुजरात के साथ किए गए सौतेले व्यवहार और यू पी ए 2 के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उसे तगड़ी चुनौती दे रहे है । अगर गुजरात के साथ हिमाचल में भी भाजपा की जीत होती है तो यकीन जान लीजिए मोदी का नाम राष्ट्रीय फलक पर मजबूत नेता के तौर पर उभरेगा । पिछले दिनों ब्रिटेन के उच्चायुक्त की मोदी से मुलाक़ात के बाद जहाँ उनके समर्थको की बाछें खिली हुई हैं वहीँ अब मोदी सभी वर्गो में अपनी पैठ मजबूत कर 2014 का रास्ता दिल्ली के लिए खुद के बूते अगर तैयार कर रहे हैं तो इसमें शक शायद ही किसी को हो । गोधरा अब काफी पीछे छूट चुका है । अपने माडल से मोदी ने गुजरात को एक नई पहचान दी है । आज उनके इस माडल की उनके विरोधी भी सराहना करते हैं ।यह ब्रांड मोदी का चेहरा है जिसने हिंदुत्व की प्रयोगशाला में उन्होंने अपने अथक परिश्रम से सींचा है । मोदी प्रतिदिन 19 से 20 घंटे काम करते हैं और बंद कमरों में बैठकर विरोधी की हर चाल का माकूल जवाब देने की रणनीति तैयार करते हैं । इस काम में वह भाजपा के आरएस एस को ठेंगा दिखाकर अपनी पार्टी के नेताओं को भी ठिकाने लगाने से परहेज अगर नहीं करते तो समझा जा सकता है बीते एक दशक में मोदी ने तमाम आरोपों के बीच किस तरह के करिश्माई नेता की पहचान बनाई है ।
एक दौर में संघ के प्रचारक रहे नरेन्द्र भाई मोदी कुशल संगठनकर्ता भी रहे है । शायद इसी के चलते वह अपने बूते हर बार गुजरात में सरकार और संगठन में अच्छा तालमेल बनाने में सफल हुए हैं ।20 दिसंबर को अगर गुजरात में भाजपा बड़ी दिवाली मनाने में सफल होती है तो इसके बाद अपनी जीत से मोदी यह सन्देश देने में कामयाब हो जायेंगे अब गुजरात का बोझ उठाने के बाद वह राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने निकलने जा रहे हैं । संभव है इसके बाद भाजपा पीएम पद के लिए "ब्रांड मोदी " नाम को भुनाएगी । ऐसी सूरत में पार्टी उन्हें 2014 के लोक सभा चुनावो से ठीक पहले प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने से शायद ही हिचकेगी । राहुल गाँधी की तरह भाजपा में भी पार्टी की मोदी पर निर्भरता शायद बढ़ जाएगी । लोक सभा में उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव संचालन समिति की कमान तब मोदी के पास ही रहेगी ।अगले लोक सभा चुनाव से पहले सभी की नजरें गुजरात , हिमाचल में हैं अगर मोदी की वापसी गुजरात में आने वाले दिनो मे होती है तो मध्य प्रदेश , राजस्थान , छत्तीसगढ़ , दिल्ली सरीखे 10 राज्यो में अगले साल होने जा रहे विधान सभा चुनावो में यह जीत पार्टी और कार्यकर्ताओ में नया जोश तो अवश्य ही भरेगी ।लेकिन फिलहाल सभी की नजरें मोदी की शानदार जीत पर लगी हैं और वाइब्रेन्ट गुजरात को भी 20 दिसम्बर तक का इन्तजार है ।
1 comment:
jab mungeri lal haseen sapne dekh sakte hain to modi rangeen sapne kyon nahi dekh sakte.sarthak prastuti aabhar न्यायालय का न्याय :प्रशासन की विफलता
Post a Comment