बीते दिनों कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी को लेकर लखनऊ में एक समारोह का आयोजन हुआ । इस मौके पर अब पूर्व हो चुके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी उपस्थित थे । मंच पर जैसे ही उनको माला पहनाई गई तो वह माला टूट गई । यह गडकरी की दुबारा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से ठीक पहले एक बड़ा अपशकुन साबित हुआ । चुनाव की तिथि से महीनो पहले जहाँ महेश जेठमलानी ने राष्ट्रीय कार्यकारणी से इस्तीफ़ा देकर गडकरी की मुश्किलों को बढाया वहीँ मशहूर वकील और भाजपा से राज्य सभा सांसद रामजेठमलानी ने सबसे मुखर होकर गडकरी के खिलाफ अकेले मोर्चा खोला जिसके सुर में सुर यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और जसवंत सिंह ने मिलाया । इसके बाद राम जेठमलानी को जहाँ निलंबन झेलना पड़ा वहीँ वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने अपने तल्ख़ तेवर बरक़रार रखते हुए गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र की हवा निकालने का काम किया और गडकरी की मुसीबत बढ़ा दी । लेकिन असल घटनाक्रम तो नामांकन के ठीक एक दिन पहले घटा जब गडकरी विरोधी खेमे ने आयकर विभाग की छापेमारी के दौरान संघ पर इतना दबाव बनाया कि अंत में संघ खुद को लाचार बताने को मजबूर हुआ और उसे यह बयान मजबूरी में देना पड़ा कि भाजपा अपना अध्यक्ष चुनने को खुद स्वतन्त्र है ।
असल में भाजपा में नए अध्यक्ष के नामांकन से ठीक पहले आडवानी संघ के एक कार्यक्रम में शिरकत करने मुंबई गए थे जहाँ उनके साथ नितिन गडकरी और सर कार्यवाह भैय्या जी जोशी भी मौजूद थे । इसी दिन महाराष्ट्र में गडकरी की कंपनी पूर्ती के गडबडझाले को लेकर आयकर विभाग ने छापेमारी की कारवाही सुबह से शुरू कर दी । आडवानी की भैय्या जी जोशी से मुलाकात हुई तो ना चाहते हुए बातचीत में पूर्ती का गड़बड़झाला बातचीत में आ गया । आडवानी ने भैय्या जी जोशी से गडकरी पर लग रहे आरोपों से भाजपा की छवि खराब होने का मसला छेडा जिसके बाद भैय्या जी को गडकरी के साथ बंद कमरों में बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ा । काफी मान मनोव्वल के बाद गडकरी इस बात पर राजी हुए अगर संघ को उनसे परेशानी झेलनी पड़ रही है तो वह खुद अपने पद से इस्तीफ़ा देने जा रहे हैं ।
आडवानी से भैय्या जी जोशी ने गडकरी का विकल्प सुझाने को कहा तो उन्होंने यशवंत सिन्हा का नाम सुझाया । हालाँकि पहले आडवानी सुषमा के नाम का दाव एक दौर में चल चुके थे लेकिन सुषमा खुद अध्यक्ष पद के लिए इंकार कर चुकी थी लिहाजा आडवानी ने यशवंत का नाम बढाने की कोशिश की जो संघ को कतई मंजूर नहीं हुआ । बाद में गडकरी से भैय्या जी ने अपना विकल्प बताने को कहा तो उन्होंने राजनाथ सिंह का नाम सुझाया जिस पर संघ ने अपनी हामी भर दी और आडवानी को ना चाहते हुए राजनाथ को पसंद करना पड़ा । इसके बाद शाम को दिल्ली में जेटली के घर भाजपा की डी --4 कंपनी की बैठक हुई जिसमे रामलाल मौजूद थे जिन्होंने राजनाथ सिंह के नाम पर सहमति बनाने में सफलता हासिल कर ली और देर रात राजनाथ सिंह को सुबह राजतिलक की तैयारी के लिए रेडी रहने का सन्देश भिजवा दिया गया । सुबह होते होते राजनाथ के घर का कोहरा भी धीरे धीरे छटता गया और दस बजते बजते संसदीय बोर्ड ने उनके नाम पर पक्की मुहर लगा दी और इस तरह राजनाथ दूसरी बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में सफल रहे ।
दरअसल पूर्ती का गडबडझाला भाजपा की पिछले कुछ महीने से गले की फांस बना हुआ था जिसमे गडकरी के साथ पूरी पार्टी की खासी फजीहत हो रही थी जिससे पार्टी का उबर पाना मुश्किल लग रहा था क्युकि इसके बाद भी संघ अपने लाडले गडकरी की अध्यक्ष पद पर दुबारा ताजपोशी का पूरा मन बना चुका था लेकिन आयकर विभाग के छापो ने गडकरी की दुबारा ताजपोशी पर ग्रहण सा लगा दिया जिससे ऐसा दबाव पड़ा कि एक सौ अस्सी डिग्री पर झुकते हुए गडकरी खुद इस्तीफ़ा देने को मजबूर हो गए जिसकी उम्मीद बहुत कम लोगो को थी क्युकि दुबारा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को संघ कितना उतावला था इसकी मिसाल सूरजकुंड से ही दिखाई देने लगी थी जब संघ ने भाजपा के संविधान में संशोधन तक कर डाला था । भाजपा में आर एस एस के दखल का इससे नायाब उदाहरण कही नहीं मिल सकता । पिछली बार जब गडकरी केशव कुञ्ज के वरदहस्त के चलते अध्यक्ष बनाये गए थे तो उनकी टीम में मराठी लाबी के स्वयंसेवको की बड़ी कतार देखने को मिली थी और कार्यकर्ता भी उस दौर में ऐसे अध्यक्ष के साथ मजबूरन कदमताल करते नजर आये जिसका नाम किसी ने पहले नहीं सुना था और उस चेहरे को मोहन भागवत ने पैराशूट की तर्ज पर दिल्ली की चौकड़ी के सामने उतारा जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता था ।
अब गडकरी दुबारा अध्यक्ष बनने से रह गए तो इसे मोहन भागवत की व्यक्तिगत हार के तौर पर देखा रहा है । लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद गडकरी को देखिये वह अब भी खुद को पार्टी का सच्चा सिपाही बताने पर तुले हुए हैं । गडकरी कह रहे हैं उन पर लगे आरोपों से भाजपा की छवि को नुकसान पहुँच रहा था लिहाजा उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन वह यह क्यों भूल रहे हैं अगर नैतिकता के आधार पर वह पहले ही इस्तीफ़ा दे देते तो कौन सा अनर्थ हो जाता ? पहले तो वह किसी भी तरह की जांच से नहीं घबरा रहे थे लेकिन अब वह अपने खिलाफ इसे कांग्रेस का षडयंत्र करार जहाँ दे रहे हैं वहीँ आयकर अधिकारियों को भी वह लताड़ रहे हैं और हद में रहने की नसीहत दे रहे हैं जो गडकरी के दीवालियेपन और खासियाहट को उजागर कर रहा है । गडकरी संघ की कृपा दृष्टि से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जरुर रहे हों लेकिन उनकी सोच ने कार्यकर्ताओ और पार्टी के वरिष्ठ नेताओ के सर को बीते तीन बरस में चकरा ही दिया था । गडकरी को ना केवल अपने खुद के दिए बयानों पर कोई खेद रहा और ना ही बीते तीन बरस में मनमोहन सरकार को घेरने की कोई रणनीति कारगर साबित हुई ।
अफजल गुरु कांग्रेस का दामाद, औरंगजेब की औलाद , तलुए चाटते जैसे ना जाने कई नए शब्द उनकी निजी डिक्शनरी में जहाँ शामिल रहे वहीँ फूहड़ बयानबाजी के बावजूद उनकी सबसे बड़ी ताकत हर समय संघ को खुश करने और मोहन भागवत की चरण वंदना करने में लगी रही और शायद यही वजह भी रही अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने संघ के साथ इस निकटता को ढाल के रूप में इस्तेमाल भी किया । गडकरी ने अपने कार्यकाल में कारपोरेट के आसरे पार्टी के फंड में चन्दे की रिकॉर्ड रकम जुटाकर जहाँ संघ को खुश किया वहीँ अपने समर्थको की भारी फ़ौज महाराष्ट्र से हाईजैक कर ली जहाँ गोपी नाथ मुंडे सरीखे जनाधार वाले नेता और उनके समर्थको को हाशिये पर रखकर अपनी खुद की बिसात बिछाई । वहीँ अपने कार्यकाल में अंशुमन मिश्र एन आर आई को भाजपा प्रत्याशी बनाये जाने , झारखंड में सोरेन के साथ जबरन सरकार बनाने , बाबू सिंह कुशवाहा को यू पी चुनावो में साथ लेने ,अजय संचेती को कोयला खदाने आवंटित करने के काम कर भाजपा के अध्यक्ष की पुरानी शुचिता को तार तार ही कर डाला और इससे आडवानी के साथ जेटली, सुषमा सरीखे लोगो की खूब भद्द पिटी क्युकि उन्हें भी लगता था पार्टी की जीत का सेहरा भाजपा नेताओ के सर बधता है और हार की बदनामी का ठीकरा गैर आर एस एस पृष्ठभूमि के नेताओ के सर फोड़ा जाता है लिहाजा इस बार गैर संघी नेताओ ने मुखर होकर गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और संघ ने खुद की बिसात पर गडकरी को कुर्बान कर दिया ।
गडकरी के बाद अब कमान राजनाथ सिंह के हाथ आई है । वह एक सुलझे हुए नेता है और उत्तर प्रदेश की नर्सरी से आते हैं जहाँ भाजपा ने हिंदुत्व का परचम एक दौर में फहराकर केंद्र में सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी । लेकिन इस बार अपनी दूसरी पारी में राजनाथ के पास बहुत कम समय बचा है । लोक सभा चुनावो से पहले पार्टी को 10 राज्यों के चुनावी समर में कूदना है वहीँ दूसरी पंक्ति के नेताओ में इस दौर में आगे निकलने की जहाँ होड़ मची हुई है तो वहीँ राज्यों में छत्रप दिनों दिन मजबूत होते जा रहे हैं जिसके चलते आगामी चुनावो में भाजपा के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है । इधर गुजरात तीसरी बार फतह करने के बाद मोदी की महत्वाकान्शाएं बढ़ गयी हैं और उन्हें प्रधान मंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने की मांग पार्टी के भीतर से ही मुखर होने लगी है जिस पर एन डी ए के बिखरने का अंदेशा बना हुआ है। ऐसे माहौल में राजनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती एन डी ए का दायरा बढाने और नए सहयोगियों के तलाश की है तो वहीँ पी एम को लेकर एन डी ए में किसी एक नाम पर सर्व सम्मति बनाने की चुनौती से जूझना है ।
अटल बिहारी को प्रधानमंत्री बनाने में आडवानी उनके सारथी थे वहीँ राजनाथ किसके सारथी रहेंगे और किसको सहयोग देंगे यह सवाल अब राजनीतिक गलियारों में गरमाने लगा है । अब तक केन्द्रीय नेतृत्व के कमजोर होने से हर मोर्चे पर भाजपा जूझ रही थी । उम्मीद है राजनाथ के आने से भाजपा की ग्रह दशा कुछ ठीक होगी । गडकरी के खिलाफ लग रहे आरोप जहाँ भाजपा की छवि पर ग्रहण लगा रहे थे वहीँ अब उम्मीद है राजनाथ के आने के बाद भाजपा की दुर्गति होने का अंदेशा कम हो गया है । बेदाग़ राजनाथ के कमान सौंपने के बाद अब भाजपा सड़क से संसद तक में भ्रष्टाचार की लड़ाई को मजबूती से उठा सकती है । संघ के पास इस दौर में मोदी को छोड़कर ना कोई ब्रह्मास्त्र , ना कोई हथियार है और ना ही समय । ऐसे में संघ की तरफ से भाजपा में संघर्ष विराम के लिए राजनाथ को आगे करने की पहल इस समय ज्यादा कारगर साबित हो सकती है । वाजपेयी के राजनीती से सन्यास के बाद भाजपा में किसी सर्व मान्य नेता के नाम पर सहमति नहीं है । राज्यों में उसके छत्रप दिनों दिन मजबूत हो रहे हैं तो वहीँ आडवानी का राजनीतिक करियर ढलान पर है । 7 रेस कोर्स में जाने की उनकी उम्मीदें भी अब ख़त्म हैं शायद तभी बीते बरस उन्हें अपने जन्म दिवस के मौके पर उन्हें यह कहना पड़ा पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया । अब किसी पद की चाह नहीं रही है तो वहीँ डी -4 की दिल्ली वाली चौकड़ी तो बीते तीन बरस से मोहन भागवत के निशाने पर है जब अटल के राजनीती से सन्यास और लगातार दो लोक सभा चुनाव हारने के बाद से संघ ने भाजपा को एक व्यक्ति के करिश्मे की पार्टी न बनाने की रणनीति के तहत गडकरी को दिल्ली के अखाड़े में उतारा ताकि पार्टी में संघ का सीधा नियंत्रण स्थापित हो सके ।
लेकिन अब गडकरी की विदाई से मोहन भागवत को तगड़ा झटका लगा है और कई विश्लेषक इसे उनकी निजी हार के रूप में देख रहे हैं और अब राजनाथ सिंह भी संघ के वरदहस्त के चलते अध्यक्ष जरुर बने हैं लेकिन उनके एन डी ए से जुड़े नेताओ से मधुर सम्बन्ध हैं जिसका लाभ वह आने वाले दिनों में जरुर लेना चाहेंगे । वह पार्टी के पहले अध्यक्ष भी रह चुके हैं लिहाजा उनका अनुभव पार्टी के नाम आएगा लेकिन राजनाथ के जेहन में उनके पिछला कार्यकाल भी जरुर उमड़ घुमड़ रहा होगा तब पार्टी में गुटबाजी चरम पर थी जिसकी कीमत पार्टी को लोक सभा में करारी हार के रूप में चुकानी पड़ी थी वह भी उनके अपने ही कार्यकाल में । भले ही राज्यों के चुनावो में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन उनके कार्यकाल में किया । कर्नाटक में पहली बार भाजपा का कमल राजनाथ के कार्यकाल में ही खिला था वहीँ आज पार्टी को येदियुरप्पा के बागी होने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है । भाजपा के 13 विधायक स्पीकर को अपना इस्तीफ़ा देने जा रहे हैं जिससे शेटटार की मुश्किलें इस दौर में बढ़ी ही हैं साथ में भाजपा के पास आने वाले दिनों में कर्नाटक में दुबारा काबिज होने की बड़ी चुनौती भी खड़ी है ।
वहीँ राजनाथ के गृह राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा वेंटिलेटर पर है तो राजस्थान , उत्तराखंड, हिमाचल में सत्ता से बाहर हो चुकी है । इस दौर ब्रांड मोदी की दीवानगी कार्यकर्ताओ से लेकर नेताओ में जरुर है लेकिन गठबंधन की राजनीति में मोदी की गुजरात से बाहर स्वीकार्यता दूर की कौड़ी है । इससे राजनाथ कैसे जूझते हैं यह देखने वाली बात होगी ? देखना यह भी होगा जब यू पी ए 2 के पास उपलब्धियों के नाम पर कहने को कुछ ख़ास नहीं है ऐसे में वह पार्टी की नैय्या कैसे पार लगाते है ?
पिछले कार्यकाल में राजनाथ को आडवानी के विरोधी खेमे के नेता के तौर पर प्रचारित किया गया था लेकिन इस बार की परिस्थितिया बदली बदली सी दिख रही हैं । भाजपा लगातार 2 लोक सभा चुनाव हारने के बाद से केंद्र में वापसी के लिए छटपटा रही है । उम्र के इस अंतिम पडाव पर अब आडवानी को राजनाथ में जहाँ उम्मीद दिख रही है और ऐसा उत्साह किसी के अध्यक्ष बनाये जाने पर नहीं दिख रहा है तो मोदी ट्विटर पर ट्वीट करके राजनाथ को अनुभवी नेता करार दे चुके हैं और उनसे मिलने दिल्ली तक आ पहुचे हैं जहाँ बीते दिनों ढाई घंटे दोनों के बीच मिशन 2014 को लेकर चर्चा भी हुई है जिसके बाद भाजपा में अंदरखाने मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव समिति की कमान देने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है । वही पिछली दफे राजनाथ ने मोदी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से जहाँ बाहर कर दिया था वहीँ इस बार राजनाथ ने मोदी को सबसे लोकप्रिय सी एम कहना पड़ा है । जाहिर है यह सब भाजपा में नई संभावनाओ का द्वार खोल रहा है ।
राजनाथ के अध्यक्ष बनने के बाद भले ही कोहरा छंट चुका है लेकिन मोदी को लेकर सस्पेंस अभी भी बरकरार है । आडवानी 7 रेस कोर्स की रेस से बाहर हैं तो डी --4 की चौकड़ी के निशाने पर मोहन भागवत हैं और इन सबके बीच गैर संघ बैक ग्राउंड के नेता मोदी को पी एम बनाने की तान इस दौर में छेड़ रहे हैं । जो वसुंधरा राजनाथ से आँख मिलाना तक पसंद नहीं करती थी वह आज राजनाथ को बधाई देने सबसे पहले पहुचती है तो वहीँ जिस खंडूरी को हटाने के लिए राजनाथ ने भगत सिंह कोश्यारी के साथ अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया था अब वहीँ खंडूरी पार्टी के लिए इस दौर में जरुरी बन गए हैं जिनको राजनाथ आने वाले दिनों में अपने संसदीय बोर्ड में भी ले सकते हैं तो यह बदलती फिजा की तरफ इशारा कर रहा है । लोक सभा चुनावो से पहले राजनाथ को मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ में भाजपा की दुबारा वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा । इसके बाद महाराष्ट्र और दिल्ली में ध्यान देना होगा जहाँ भाजपा लम्बे समय से सत्ता से बाहर है । दक्षिण में भाजपा के दुर्ग को मजबूत करना होगा साथ ही नए सहयोगी गठबंधन के लिए ढूँढने होंगे । इस बार निश्चित ही राजनाथ के लिए बदली परिस्थितिया हैं । लोग भाजपा में उम्मीद देख रहे हैं लेकिन पार्टी की गुटबाजी आगामी चुनाव में उसका खेल खराब कर सकती है राजनाथ को इस पर ध्यान देना होगा । सभी को एकजुट करने की भी बड़ी चुनौती उनके सामने है । वहीँ संघ को भी बदली परिस्थियों के अनुरूप भाजपा के लिए बिसात बिछाने की जिम्मेदारी राजनाथ के कंधो पर देनी होगी क्युकि गडकरी के बचाव से सवाल इस दौर में संघ की तरफ भी उठे हैं ।
संघ की सबसे बड़ी दिक्कत यह है वह बहुत जल्द इस दौर में लोगो पर भरोसा कर रहा है और कहीं ना कहीं संगठन को लेकर भी बहुत जल्दबाजी दिखा रहा है । शायद इसी वजह से गडकरी सरीखे लोगो ने संघ के आसरे अपने निजी और व्यवसायिक हित ही इस दौर में साधे हैं और अब संघ की कोशिश इसी व्यक्तिनिष्ठता को खत्म करने की होनी चाहिए और यही चुनौती से असल में राजनाथसिंह को भी अब झेलनी है । आज भाजपा को दो नावो में सवार होना है ।
गुजरात में मोदी की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर अपना दक्षिणपंथी चेहरा विकास की तर्ज पर और उम्मीद के रूप में पेश करना होगा जहाँ हिंदुत्व के मसले पर देश के जनमानस को एकजुट करना होगा जिसकी डगर मुश्किल दिख रही है क्युकि गुजरात की परिस्थितिया अलग थी । वहां मोदिनोमिक्स माडल को हिंदुत्व के समीकरणों और खाम रणनीति के आसरे मोदी ने नई पहचान अपनी विकास की लकीर खींचकर दिलाई लेकिन केंद्र में गठबंधन राजनीती में ऐसी परिस्थितिया नहीं हैं लिहाजा राजनाथ की राह में कई कटीले शूल दिख रहे हैं जिनसे जूझ पाने की गंभीर चुतौती उनके सामने है । देखते है राजनाथ दूसरी पारी में क्या करिश्मा कर पाते हैं ?
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BILLI KE KHWAB ME CHHINKE HI CHHINKE BHALA BJP KYON NAHI SAMJH LETI KI USE SATTA ME KEVAL ATAL JI HI LE AAYE THE UNKE ATIRIKT KISI NETA ME ITNA DAM NAHI KI BJP KO SATTA ME LE AAYE. मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
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