भारतीय क्रिकेट टीम को वन डे सीरीज में 2-1 से हराने के बाद पाकिस्तान
की टीम अभी जीत के जश्न से पूरी तरह से सरोबार भी नहीं हुई थी कि
पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना घिनौना चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर
दिया । पुंछ जिले में मेंढर सेक्टर के मनकोट इलाके में बीते मंगलवार
हुए हादसे में पाक सेना की बॉर्डर एक्शन फ़ोर्स के
जवान भारतीय इलाके में 100 मीटर अन्दर घुस आये और भारतीय सेना पर अपना धावा बोल दिया जिसमे लांसनायक सुधाकर सिंह और हेमराज को भारत ने खो दिया । ऐसा करके पकिस्तान ने नवम्बर 2003 से चले आ रहे संघर्ष विराम का न केवल उल्लंघन किया बल्कि बर्बर कार्यवाही कर एक भारतीय जवान हेमराज का सर काट डाला । बर्बर कार्यवाही में पाक ने जहाँ तमाम अन्तरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई वहीँ बीते दौर में हुए कारगिल युद्ध की यादो को ताजा करा दिया । उस दौर को अगर हम याद करें तो कैप्टन सौरभ कालिया के शव के साथ भी पकिस्तान ने ऐसा ही सलूक किया था और सर कलम करने वाले एक पाकिस्तानी जवान को 5 लाख रुपये के पुरस्कार से नवाजा था ।
सुधाकर सिंह और हेमराज के साथ की गई इस अमानवीय कार्यवाही ने हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है अब पकिस्तान के साथ किस मुह से हम दोस्ती का हाथ बढ़ाये ? पकिस्तान के साथ दोस्ती का आधार क्या हो वह भी तब जब वह लगातार भारत की पीठ पर छुरा भौंकते हुए लगातार विश्वासघात ही करता जा रहा है । इस दुस्साहसिक कारवाई की जहाँ पूरे देश में निंदा हुई है वहीँ आम आदमी अब भारतीय नीति नियंताओ से सीधे सवाल पूछ रहा है कि अब समय आ गया है जब पकिस्तान से सारे रिश्ते तोड़ लिए जाएँ तो यह वाजिब सवाल है । यही नहीं विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज अगर इस बार सरकार के द्वारा की जाने वाली हर कार्यवाही के समर्थन में कदमताल कर रही हैं तो यह सही भी है क्युकि लगातार होते हमलो से हमारा धैर्य अब जवाब दे रहा है । बीते एक बरस में लाइन ऑफ़ कंट्रोल में मुठभेड़ की यह 70 वी घटना है जहाँ पकिस्तान की मंशा इसके जरिये भारत में उन्माद फैलाने की ही रही है ।
असल में कारगिल के दौर में भी पकिस्तान ने भारत के साथ ऐसा ही सलूक किया था । हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी रिश्तो में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से गए लेकिन नवाज शरीफ को अँधेरे में रखकर मिया मुशर्रफ कारगिल की पटकथा तैयार करने में लगे रहे । इस काम में उनको पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला था । इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । अपने कार्यकाल के अन्तिम पडाव पर खड़े पाक सेनाध्यक्ष अशफाक कियानी भारत के साथ रिश्तो को सुधारने के बजाए बिगाड़ना चाहते हैं । यह उनके द्वारा दिए गए हाल के बयानों में साफ़ झलका है । अभी कुछ दिनों पूर्व उन्होंने भारत को चेताते हुए कहा था समय आने पर भारत को माकूल जवाब दिया जायेगा । इसकी परिणति हमारी सेना के दो जवान खोने के रूप मे हुई है । पुंछ की इस कार्यवाही में कियानी का पाक के सैनिको को पूरा समर्थन रहा है । पाक में सरकार तो नाम मात्र की है वहां पर चलती सेना की ही है और बिना सेना के वहां पर पत्ता भी नहीं हिला हिलता । कट्टरपंथियों की बड़ी जमात वहां ऐसी है जो भारत के साथ सम्बन्ध सुधरते नहीं देखना चाहती है । ऐसी सूरत में अगर हम बार बार उससे दोस्ती का राग छेड़ते है तो यह हजम नहीं होता क्युकि छलावे के सिवा यह कुछ भी नहीं है ।
दुखद पहलू यह है पाक जहाँ इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही में अपना हाथ होने से अब भी साफ़ इनकार कर रहा है वहीँ भारत सरकार कह रही है वह हमारे सब्र का इम्तिहान नहीं ले तो यह पहेली किसी के गले नहीं उतर रही । आखिर कब तक हम पाक के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहेगे और बातचीत से मेल मिलाप बढ़ायेंगे जबकि हर मोर्चे पर वह हमको धोखा ही धोखा देता आया है । इस घटना के बाद हमारे नीतिनियंताओ को यह सोचना पड़ेगा अविश्वास की खाई में दोनों मुल्को की दोस्ती में दरार पडनी तय है । अतः अब समय आ गया है जब हम पाक के साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ डालें । हमें अपने उच्चायुक्त को पाक से वापस बुला लेना चाहिए ताकि पाक के चेहरे को पूरी दुनिया में बेनकाब किया जा सके ।
मुंबई में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने यह खुलासा भी किया हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद सईद था । हमने मुंबई हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को सौंपे भी लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है । आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और भारत के खिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक हम पाक को हाफिज के मसले पर ढील ही देते रहे हैं यही कारण है वहां की सरकार उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है । 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले के बाद उसके जमात उद दावा ने कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको को जेहाद के लिए प्रेरित किया । अमेरिका द्वारा उसके संगठन को प्रतिबंधित घोषित करने और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी पाकिस्तान सरकार ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर रिहा कर दिया । आज पाकिस्तान उसे पाक में होने को सिरे से नकारता रहा है जबकि असलियत यह है पुंछ की इस बर्बर कार्यवाही में हाफिज की संलिप्तता एक बार फिर से उजागर हुई है । बताया जाता है सप्ताह भर पहले उसको
मेंढ़र इलाके से सटे पाकिस्तान के कब्जे वाले पी ओ के में देखा गया था जिसने पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ भारत में घुसपैठ बढाने की कार्ययोजना को तैयार किया था । भारतीय गृह मंत्रालय भी अब इस बात को मान रहा है उस इलाके में हाफिज नजर आया था । भारत के खिलाफ इस साजिश को अंजाम देने में उसे पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला लेकिन पाकिस्तान को देखिये वह अपनी सेना की करतूत को इस पूरे मामले में नकार रहा है । अब ऐसे हालातो में हम उससे बेहतर सम्बन्ध कैसे बना सकते हैं ?
26 / 11 के हमलो के बाद भारत ने जहाँ कहा था जब तक 26 /11 के दोषियों पर पाक कार्यवाही नहीं करेगा तब तक हम उससे कोई बात नहीं करेंगे लेकिन आज तक उसके द्वारा दोषियों पर कोई कार्यवाही ना किये जाने के बाद भी हम 200 बिलियन व्यापार , वीजा नियमो में ढील , क्रिकेट के आसरे अगर इस दौर में निकटता बढा रहे हैं तो यह हमारी लुंज पुंज विदेश नीति वाले रवैये को उजागर करता है । पिछले साल भारत दौरे पर आये रहमान मालिक से जब 26 /11 के बारे में हमने पुछा तो उन्होंने कहा इवाइडेंस और आरोपों में भेद होता है । अगर भारत सबूत पेश करता है तो पाक 26/11 के दोषियों को सजा देगा । लेकिन यह कैसा सफ़ेद झूठ है । भारत तो पहले ही पाक को सभी सबूत पेश कर चुका है लेकिन पाक उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करता ? अब तो हर घटना में अपना हाथ होने से इनकार करना पाक का शगल ही बन गया है । लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर युद्ध विराम तो नाम मात्र का है इसके बावजूद भी उस पूरे इलाके में सैनिको के बीच अकसर तनाव देखा जा सकता है और फायरिंग की घटनाएं आये दिन होती रहती हैं । सर्द मौसम में कोहरे की आड़ में भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां अब पाक की सेना कर रही है क्युकि इस दौर में जम्मू में शांति ही शांति रही है । पाक का पूरा ध्यान अपने अंदरूनी झगडो और तालिबान में लगा रहा है । उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कश्मीर उसके हाथ से निकल जायेगा । अतः ऐसे हालातो में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनो को पी ओ के में भारत के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं । पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है । वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही रही है । सरकार तो नाम मात्र की लोकत्रांत्रिक है असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है । पाक इस बार यह महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा ठंडा पड जायेगा । अतः वह भारतीय सेना को अपने निशाने पर लेकर कट्टरपंथियों की पुरानी लीक पर चल निकला है । आने वाले दिनों में अफगानिस्तान से अमरीकी सेनाओ की वापसी तय मानी जा रही है । ऐसे में भारत को चौकन्ना रहने की जरुरत है क्युकि अमेरिकी सैनिको की वापसी के बाद पाक में कई कट्टरपंथी सेना के जरिये भारत में घुसपैठ तेज कर सकते हैं । कश्मीर का राग पाक का पुराना राग है जो दोस्ती के रिश्तो में सबसे बड़ी दीवार है । ऐसे दौर में हमें पाक पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है । हमारी सेना को ज्यादा से ज्यादा अधिकार सीमा से सटे इलाको में मिलने चाहिए ।
2 जवानो की हत्या के बाद अब भारत को पाक के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए । उसे किसी तरह की ढील नहीं मिलनी चाहिए । पकिस्तान हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले अब ऐसे बयान देकर काम नहीं चलने वाला क्युकि इस घटना ने हमारे सैनिकॊ के मनोबल को गिराने का काम किया है । पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के जरिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाफ माहौल बनाना चाहिए साथ ही अमेरिका सरीखे मुल्को से बात कर यह बताना चाहिए आतंक के असल सरगना पकिस्तान में पल रहे हैं और आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली हर मदद का इस्तेमाल पाक दहशतगर्दी फैलाने में कर रहा है । इस समय पाक को तकरीबन 3 अरब से ज्यादा की सालाना इमदाद अमेरिका के आसरे मिल रही है जिससे पाक की माली हालत कुछ सुधरी है अन्यथा वहां की अर्थव्यवस्था तो पटरी से उतर चुकी है । आर्थिक विकास दर जहाँ लगातार घट रही है वहीँ आतंक के माहौल के चलते कोई नया निवेश नहीं हो पा रहा है । घरेलू गैस से लेकर तेल की बड़ी कीमतों ने संकट बढाया है तो वहीँ दैनिक उपभोग की चीजो के दाम आसमान छू रहे हैं । अगर पाक को विदेशो से मिलने वाली मदद इस दौर में बंद हो जाए तो उसका दीवाला निकल जायेगा । ऐसी सूरत में कट्टरपंथियों के हौंसले भी पस्त हो जायेंगे । तब भारत पी ओ के में चल रहे आतंकी शिविरों को अपना निशाना बना सकता है । माकूल कार्यवाही के लिए यही समय बेहतर होगा । अब समय आ गया है जब पाक के खिलाफ भारत बातचीत के विकल्पों से इतर कोई बड़ी कार्यवाही की रणनीति अख्तियार करे क्युकि एक के बाद एक झूठ बोलकर पाक हमें धोखा दे रहा है और कश्मीर के मसले के अन्तरराष्ट्रीयकरण के पक्ष में खड़ा है ।
आज तक हमने पाक के हर हमले का जवाब बयानबाजी से ही दिया है । भारत सरकार धैर्य , संयम की दुहाई देकर हर बार लोगो के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात दोहराती रहती है । इसी नरम रुख से पाक का दुस्साहस इस कदर बढ गया है वह हमारे जवानो के शव धड से अलग कर अंतरराष्ट्रीय नियमो का उल्लंघन करता है और कश्मीर पर मध्यस्थता का पुराना राग छेड़ता रहता है ।यह दौर भारतीय नीति नियंताओ के लिए असली परीक्षा का है क्युकि उसी की नीतियां अब पाक के साथ भारत के भविष्य को ने केवल तय कर सकती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आसरे दुनिया तक पहुच सकता है । लेकिन दुर्भाग्य है वोट बैंक के स्वार्थ के चलते हम अपने जवानो की शहादत का बदला लेने के बजाए धैर्य और संयम की दुहाई देकर पाक के साथ सम्बन्ध हर बार सुधारने की बात दोहराते रहे हैं । दुर्भाग्य है आज इस देश में ना तो इंदिरा गाँधी सरीखा नेतृत्व किसी के पास बचा है और ना ही वाजपेयी सरीखी विदेश नीति । क्या करें सारी कवायद तो इस दौर में विदेशी निवेश बढाने और मनमोहनी इकोनोमिक्स के आसरे विकास की लकीर खींचने और अमरीकी कंपनियों को लाभ पहुचाने में लगी है । सीमा पर देश की रक्षा करने वाले जवानो के दुःख दर्द को महसूस करने की छमता किसी राजनेता में नहीं बची है । यही नहीं जय जवान जय किसान का नारा लगाने वाले शास्त्री सरीखे नेता भी इस दौर में नहीं हैं जो ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली लीक पर चला करते थे । अगर ऐसा होता तो सौरभ कालिया के दौर की पुनरावृत्ति इस देश में नहीं होती ।
जवान भारतीय इलाके में 100 मीटर अन्दर घुस आये और भारतीय सेना पर अपना धावा बोल दिया जिसमे लांसनायक सुधाकर सिंह और हेमराज को भारत ने खो दिया । ऐसा करके पकिस्तान ने नवम्बर 2003 से चले आ रहे संघर्ष विराम का न केवल उल्लंघन किया बल्कि बर्बर कार्यवाही कर एक भारतीय जवान हेमराज का सर काट डाला । बर्बर कार्यवाही में पाक ने जहाँ तमाम अन्तरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई वहीँ बीते दौर में हुए कारगिल युद्ध की यादो को ताजा करा दिया । उस दौर को अगर हम याद करें तो कैप्टन सौरभ कालिया के शव के साथ भी पकिस्तान ने ऐसा ही सलूक किया था और सर कलम करने वाले एक पाकिस्तानी जवान को 5 लाख रुपये के पुरस्कार से नवाजा था ।
सुधाकर सिंह और हेमराज के साथ की गई इस अमानवीय कार्यवाही ने हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है अब पकिस्तान के साथ किस मुह से हम दोस्ती का हाथ बढ़ाये ? पकिस्तान के साथ दोस्ती का आधार क्या हो वह भी तब जब वह लगातार भारत की पीठ पर छुरा भौंकते हुए लगातार विश्वासघात ही करता जा रहा है । इस दुस्साहसिक कारवाई की जहाँ पूरे देश में निंदा हुई है वहीँ आम आदमी अब भारतीय नीति नियंताओ से सीधे सवाल पूछ रहा है कि अब समय आ गया है जब पकिस्तान से सारे रिश्ते तोड़ लिए जाएँ तो यह वाजिब सवाल है । यही नहीं विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज अगर इस बार सरकार के द्वारा की जाने वाली हर कार्यवाही के समर्थन में कदमताल कर रही हैं तो यह सही भी है क्युकि लगातार होते हमलो से हमारा धैर्य अब जवाब दे रहा है । बीते एक बरस में लाइन ऑफ़ कंट्रोल में मुठभेड़ की यह 70 वी घटना है जहाँ पकिस्तान की मंशा इसके जरिये भारत में उन्माद फैलाने की ही रही है ।
असल में कारगिल के दौर में भी पकिस्तान ने भारत के साथ ऐसा ही सलूक किया था । हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी रिश्तो में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से गए लेकिन नवाज शरीफ को अँधेरे में रखकर मिया मुशर्रफ कारगिल की पटकथा तैयार करने में लगे रहे । इस काम में उनको पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला था । इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । अपने कार्यकाल के अन्तिम पडाव पर खड़े पाक सेनाध्यक्ष अशफाक कियानी भारत के साथ रिश्तो को सुधारने के बजाए बिगाड़ना चाहते हैं । यह उनके द्वारा दिए गए हाल के बयानों में साफ़ झलका है । अभी कुछ दिनों पूर्व उन्होंने भारत को चेताते हुए कहा था समय आने पर भारत को माकूल जवाब दिया जायेगा । इसकी परिणति हमारी सेना के दो जवान खोने के रूप मे हुई है । पुंछ की इस कार्यवाही में कियानी का पाक के सैनिको को पूरा समर्थन रहा है । पाक में सरकार तो नाम मात्र की है वहां पर चलती सेना की ही है और बिना सेना के वहां पर पत्ता भी नहीं हिला हिलता । कट्टरपंथियों की बड़ी जमात वहां ऐसी है जो भारत के साथ सम्बन्ध सुधरते नहीं देखना चाहती है । ऐसी सूरत में अगर हम बार बार उससे दोस्ती का राग छेड़ते है तो यह हजम नहीं होता क्युकि छलावे के सिवा यह कुछ भी नहीं है ।
दुखद पहलू यह है पाक जहाँ इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही में अपना हाथ होने से अब भी साफ़ इनकार कर रहा है वहीँ भारत सरकार कह रही है वह हमारे सब्र का इम्तिहान नहीं ले तो यह पहेली किसी के गले नहीं उतर रही । आखिर कब तक हम पाक के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहेगे और बातचीत से मेल मिलाप बढ़ायेंगे जबकि हर मोर्चे पर वह हमको धोखा ही धोखा देता आया है । इस घटना के बाद हमारे नीतिनियंताओ को यह सोचना पड़ेगा अविश्वास की खाई में दोनों मुल्को की दोस्ती में दरार पडनी तय है । अतः अब समय आ गया है जब हम पाक के साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ डालें । हमें अपने उच्चायुक्त को पाक से वापस बुला लेना चाहिए ताकि पाक के चेहरे को पूरी दुनिया में बेनकाब किया जा सके ।
मुंबई में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने यह खुलासा भी किया हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद सईद था । हमने मुंबई हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को सौंपे भी लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है । आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और भारत के खिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक हम पाक को हाफिज के मसले पर ढील ही देते रहे हैं यही कारण है वहां की सरकार उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है । 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले के बाद उसके जमात उद दावा ने कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको को जेहाद के लिए प्रेरित किया । अमेरिका द्वारा उसके संगठन को प्रतिबंधित घोषित करने और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी पाकिस्तान सरकार ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर रिहा कर दिया । आज पाकिस्तान उसे पाक में होने को सिरे से नकारता रहा है जबकि असलियत यह है पुंछ की इस बर्बर कार्यवाही में हाफिज की संलिप्तता एक बार फिर से उजागर हुई है । बताया जाता है सप्ताह भर पहले उसको
मेंढ़र इलाके से सटे पाकिस्तान के कब्जे वाले पी ओ के में देखा गया था जिसने पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ भारत में घुसपैठ बढाने की कार्ययोजना को तैयार किया था । भारतीय गृह मंत्रालय भी अब इस बात को मान रहा है उस इलाके में हाफिज नजर आया था । भारत के खिलाफ इस साजिश को अंजाम देने में उसे पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला लेकिन पाकिस्तान को देखिये वह अपनी सेना की करतूत को इस पूरे मामले में नकार रहा है । अब ऐसे हालातो में हम उससे बेहतर सम्बन्ध कैसे बना सकते हैं ?
26 / 11 के हमलो के बाद भारत ने जहाँ कहा था जब तक 26 /11 के दोषियों पर पाक कार्यवाही नहीं करेगा तब तक हम उससे कोई बात नहीं करेंगे लेकिन आज तक उसके द्वारा दोषियों पर कोई कार्यवाही ना किये जाने के बाद भी हम 200 बिलियन व्यापार , वीजा नियमो में ढील , क्रिकेट के आसरे अगर इस दौर में निकटता बढा रहे हैं तो यह हमारी लुंज पुंज विदेश नीति वाले रवैये को उजागर करता है । पिछले साल भारत दौरे पर आये रहमान मालिक से जब 26 /11 के बारे में हमने पुछा तो उन्होंने कहा इवाइडेंस और आरोपों में भेद होता है । अगर भारत सबूत पेश करता है तो पाक 26/11 के दोषियों को सजा देगा । लेकिन यह कैसा सफ़ेद झूठ है । भारत तो पहले ही पाक को सभी सबूत पेश कर चुका है लेकिन पाक उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करता ? अब तो हर घटना में अपना हाथ होने से इनकार करना पाक का शगल ही बन गया है । लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर युद्ध विराम तो नाम मात्र का है इसके बावजूद भी उस पूरे इलाके में सैनिको के बीच अकसर तनाव देखा जा सकता है और फायरिंग की घटनाएं आये दिन होती रहती हैं । सर्द मौसम में कोहरे की आड़ में भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां अब पाक की सेना कर रही है क्युकि इस दौर में जम्मू में शांति ही शांति रही है । पाक का पूरा ध्यान अपने अंदरूनी झगडो और तालिबान में लगा रहा है । उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कश्मीर उसके हाथ से निकल जायेगा । अतः ऐसे हालातो में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनो को पी ओ के में भारत के खिलाफ एक बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं । पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है । वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही रही है । सरकार तो नाम मात्र की लोकत्रांत्रिक है असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है । पाक इस बार यह महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा ठंडा पड जायेगा । अतः वह भारतीय सेना को अपने निशाने पर लेकर कट्टरपंथियों की पुरानी लीक पर चल निकला है । आने वाले दिनों में अफगानिस्तान से अमरीकी सेनाओ की वापसी तय मानी जा रही है । ऐसे में भारत को चौकन्ना रहने की जरुरत है क्युकि अमेरिकी सैनिको की वापसी के बाद पाक में कई कट्टरपंथी सेना के जरिये भारत में घुसपैठ तेज कर सकते हैं । कश्मीर का राग पाक का पुराना राग है जो दोस्ती के रिश्तो में सबसे बड़ी दीवार है । ऐसे दौर में हमें पाक पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है । हमारी सेना को ज्यादा से ज्यादा अधिकार सीमा से सटे इलाको में मिलने चाहिए ।
2 जवानो की हत्या के बाद अब भारत को पाक के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए । उसे किसी तरह की ढील नहीं मिलनी चाहिए । पकिस्तान हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले अब ऐसे बयान देकर काम नहीं चलने वाला क्युकि इस घटना ने हमारे सैनिकॊ के मनोबल को गिराने का काम किया है । पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के जरिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाफ माहौल बनाना चाहिए साथ ही अमेरिका सरीखे मुल्को से बात कर यह बताना चाहिए आतंक के असल सरगना पकिस्तान में पल रहे हैं और आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली हर मदद का इस्तेमाल पाक दहशतगर्दी फैलाने में कर रहा है । इस समय पाक को तकरीबन 3 अरब से ज्यादा की सालाना इमदाद अमेरिका के आसरे मिल रही है जिससे पाक की माली हालत कुछ सुधरी है अन्यथा वहां की अर्थव्यवस्था तो पटरी से उतर चुकी है । आर्थिक विकास दर जहाँ लगातार घट रही है वहीँ आतंक के माहौल के चलते कोई नया निवेश नहीं हो पा रहा है । घरेलू गैस से लेकर तेल की बड़ी कीमतों ने संकट बढाया है तो वहीँ दैनिक उपभोग की चीजो के दाम आसमान छू रहे हैं । अगर पाक को विदेशो से मिलने वाली मदद इस दौर में बंद हो जाए तो उसका दीवाला निकल जायेगा । ऐसी सूरत में कट्टरपंथियों के हौंसले भी पस्त हो जायेंगे । तब भारत पी ओ के में चल रहे आतंकी शिविरों को अपना निशाना बना सकता है । माकूल कार्यवाही के लिए यही समय बेहतर होगा । अब समय आ गया है जब पाक के खिलाफ भारत बातचीत के विकल्पों से इतर कोई बड़ी कार्यवाही की रणनीति अख्तियार करे क्युकि एक के बाद एक झूठ बोलकर पाक हमें धोखा दे रहा है और कश्मीर के मसले के अन्तरराष्ट्रीयकरण के पक्ष में खड़ा है ।
आज तक हमने पाक के हर हमले का जवाब बयानबाजी से ही दिया है । भारत सरकार धैर्य , संयम की दुहाई देकर हर बार लोगो के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात दोहराती रहती है । इसी नरम रुख से पाक का दुस्साहस इस कदर बढ गया है वह हमारे जवानो के शव धड से अलग कर अंतरराष्ट्रीय नियमो का उल्लंघन करता है और कश्मीर पर मध्यस्थता का पुराना राग छेड़ता रहता है ।यह दौर भारतीय नीति नियंताओ के लिए असली परीक्षा का है क्युकि उसी की नीतियां अब पाक के साथ भारत के भविष्य को ने केवल तय कर सकती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आसरे दुनिया तक पहुच सकता है । लेकिन दुर्भाग्य है वोट बैंक के स्वार्थ के चलते हम अपने जवानो की शहादत का बदला लेने के बजाए धैर्य और संयम की दुहाई देकर पाक के साथ सम्बन्ध हर बार सुधारने की बात दोहराते रहे हैं । दुर्भाग्य है आज इस देश में ना तो इंदिरा गाँधी सरीखा नेतृत्व किसी के पास बचा है और ना ही वाजपेयी सरीखी विदेश नीति । क्या करें सारी कवायद तो इस दौर में विदेशी निवेश बढाने और मनमोहनी इकोनोमिक्स के आसरे विकास की लकीर खींचने और अमरीकी कंपनियों को लाभ पहुचाने में लगी है । सीमा पर देश की रक्षा करने वाले जवानो के दुःख दर्द को महसूस करने की छमता किसी राजनेता में नहीं बची है । यही नहीं जय जवान जय किसान का नारा लगाने वाले शास्त्री सरीखे नेता भी इस दौर में नहीं हैं जो ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली लीक पर चला करते थे । अगर ऐसा होता तो सौरभ कालिया के दौर की पुनरावृत्ति इस देश में नहीं होती ।
1 comment:
बहुत सटीक टिप्पणी की है आपने। भारत-पाक सम्बन्धों के नाम पर जो समय-व्यतीत हो रहा है,उसका नुकसान राजनेताओं को नहीं सैनिकों और आम आदमियों को होता है। ये राजनेता समझने को तैयार नहीं है।
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