क्या यू
पी ए - २ अपना मौजूदा कार्यकाल सही से पूरा कर पाएगी ? क्या आम लोक सभा
चुनाव देश में समय से ही होंगे ? क्या तृणमूल, झारखण्ड विकास मोर्चा और
द्रमुक के बाद यू पी ए २ सरकार से समर्थन वापस लेने वालो की जमात में
कोई अन्य सहयोगी तो शामिल नहीं होंगे ? यह ऐसे सवाल हैं जो सियासी
गलियारों में पिछले कुछ समय से सभी को परेशान किये हुए हैं क्युकि सैफई
में होली मिलन कार्यक्रम के दौरान मुलायम सिंह ने कांग्रेस को लेकर जिस
तरह की तल्ख़ भाषा का इस्तेमाल किया उससे यू पी ए २ का संकट फिर से
गहराने के आसार दिखाई दे रहे हैं ।
नेताजी ने कांग्रेस को लेकर राजनीतिक लकीर खींचने की कोशिश यह कहते हुए खींची कि वह इस दौर में पीएम पद की रेस में नहीं हैं तो उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा साथ देने वाले दोस्तों पर भी कांग्रेस को भरोसा नहीं रहता । यही नहीं तीन कदम आगे जाकर मुलायम ने कांग्रेस पर भय दिखाकर समर्थन लेने के आरोप लगाने के साथ ही इस बार कांग्रेस सरकार को घोटालो की सरकार करार दे दिया । यही नहीं सेकुलिरिज्म पर कांग्रेस के तमाशबीन होने के आरोपों की बौछार से यह सवाल गहरा गया है इन सबके पीछे नेता जी की मंशा आखिर क्या है ? दरअसल अगले लोक सभा चुनावो से पहले इसका एकमात्र उद्देश्य कांग्रेस से दूरी बनाकर चलने के साथ ही राष्ट्रीय राजनीती में सपा को किंग मेकर बनाना और गैर कांग्रेसी , गैर भाजपाई मोर्चे की अगुवाई करना हो सकता है ।
२ ० १ ४ से ठीक पहले नेताजी कुछ ऐसी खिचड़ी पकाना चाह रहे हैं जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों से इतर एक नयी मोर्चाबंदी केंद्र में शुरू हो जिसकी कमान वह खुद अपने हाथो में लेकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकें । १ १ ९ ६ में जब नरसिंहराव सरकार से लोगो का मोहभंग हो गया तो नेताजी ही वह शख्स थे जिसने समाजवादियो , वामपंथियों, लोहियावादी विचारधारा के लोगो को एक साथ लाकर उस दौर में शरद पवार के साथ मिलकर एक नई बिसात केंद्र की राजनीती में चंद्रशेखर को आगे लाकर बिछाई थी । उसी तर्ज पर अब नेताजी कांग्रेस को ठेंगा दिखाते हुए अकेला चलो रे का राग अपना रहे हैं साथ में तीसरे मोर्चे के लिए भी हामी भरते दिख रहे हैं । १७ बरस बाद नेताजी गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी मोर्चे के लिए अपनी शतरंजी बिसात बिछाने में लग गए हैं । अगर उत्तर प्रदेश में सपा पचास से अधिक लोक सभा सीट जीत जाती है तो नेताजी की कृष्ण मेनन मार्ग से ७ रेस कोर्स की राह आसान हो सकती है । लेकिन असल परीक्षा तो यू पी में है क्युकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही गुजरता है । वर्तमान में सपा के 22 संसद हैं और नेताजी अपने सांसदों की संख्या आगामी लोक सभा चुनावो में बढाने के लिए अपना हर दाव खेलने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं ।
जवानी में पहलवानी के अखाड़े में अपना जोश दिखाने वाले नेताजी इस बार विपक्षियो को मात देने के लिये अपना हर दाव खेलने की तैयारी में हैं जिससे समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में बदत मिल सके । नेताजी के निशाने पर अब आगामी लोक सभा चुनाव हैं यही वजह है उन्होंने पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय राजनीती में अपनी पारिवारिक विरासत को स्थापित करने के लिए जोर आजमाईश शुरू कर दी थी । शिवपाल से लेकर रामगोपाल , धर्मेन्द्र यादव से लेकर डिंपल यादव अगर आज राजनीती में हैं तो इसके पीछे नेताजी की राजनीतिक बिसात ही है जिसके बूते वह लोक सभा चुनावो में समाजवादी पार्टी की मजबूती चाह रहे हैं चाहे इसके लिए उन्हें अपने पूरे परिवार को ही आगे क्यों ना करना पड़ जाए ।
मुलायम की मुश्किल इस समय यह है उत्तर प्रदेश सरीखे बड़े राज्यों के अलावा सपा का अन्य राज्यों में कुछ ख़ास जनाधार नहीं है और वह इन राज्यों में कुछ करिश्मा भी अब तक नहीं कर पायी है । आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में जहाँ उनकी कोशिश लोक सभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना इस दौर में बन रही है वहीँ अन्य राज्यों को लेकर भी माथे पर चिंता की लकीरें हैं क्युकि यू पी के अलावे अन्य राज्यों में सपा का संगठन लचर है । ऐसे में उनके सामने दो ही संभावनाये बन रही है या तो वह कांग्रेस के साथ फिर जाए या फिर अपने बूते ही गैर भाजपा और गैर कांग्रेस के नारे के आसरे अपने लिए केन्द्र की सत्ता का रास्ता साफ़ करें । मौजूदा दौर में कांग्रेस की पतली हालत के चलते सपा अपने बूते ही आगे का रास्ता तय करेगी लिहाजा कांग्रेस के साथ जाने का विकल्प तो बंद होता दिख रहा है । इन दिनों सपा के हर छोटे बड़े नेता की तरफ से जिस तरह यू पी ए सरकार को कभी भी गिराने के बयान सामने आ रहे हैं उससे यह संभावना भी बन रही है यू पी ए --२ सपा की बैसाखियों पर अब ज्यादा दिन नहीं चल सकती । नेताजी अपने 22 सांसदों के दम पर कभी भी मनमोहन सरकार को गिरा सकते हैं ।
बीते दिनों ताबड़तोड़ अंदाज में केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद ने नेताजी को जिस तरह निशाने पर लिया है उससे सपा के हर कार्यकर्ता में नाराजगी बढ़ गई है और वह नेताजी के जरिये मनमोहन सरकार को गिराने का दबाव बना रहे हैं जिस पर मुलायम सिंह को फ्री हैण्ड मिल चुका है । लोक सभा चुनाव की तैयारियों के चलते यह तो साफ़ ही लग रहा है नेताजी अब जल्द चुनावो का जुआ खेलना चाह रहे हैं । वह काग्रेस के भ्रष्टाचार के दागो को अब ज्यादा धो पाने की स्थिति में भी नहीं दिख रहे हैं । ज्यादा समय तक कांग्रेस के साथ जाने से सपा के वोट बैंक को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है । इस दौर में मुलायम सिंह जहाँ कांग्रेस से मेलजोल बढाने के बजाए सीधे उसे निशाने पर लेने के साथ ही दूरियां बना रहे हैं वहीँ इशारो इशारो में तीसरे मोर्चे का राग अलाप रहे हैं । यही नहीं कांग्रेस को आईना दिखाने की मुहिम के तहत वह लाल कृष्ण आडवानी की तारीफों में कसीदे पड़ने से पीछे नहीं हट रहे हैं । अपनी राजनीतिक बिसात के मद्देनजर नेताजी अखिलेश सरकार को भी निशाने पर लेने से नहीं चूक रहे है क्युकि एंटी इनकम्बेंसी के मिजाज को मुलायम ने यू पी में विपक्ष में रहते हुए महसूस किया हैं यही वजह है वह क़ानून व्यवस्था के नाम पर अपनी नाराजगी उत्तर प्रदेश को लेकर कई बार जाहिर कर चुके हैं ।
अभी कुछ दिनों पहले सैफई में होली मिलन के दौरान नेताजी ने मध्यावधि चुनावो के लिए नवंबर तक का वक्त दे दिया जो बतलाता है सपा ने आगामी लोक सभा चुनावो के लिए कमर कस ली है । यही वजह है ५६ लोक सभा प्रत्याशी तय करने के बाद अब उनकी नजरे जल्द शेष बचे प्रत्याशी घोषित करने की है जो एक दो महीने में शायद पूरी कर दी जाएँ । राजनीती संभावनाओ का खेल है और नेताजी बड़े दूरदर्शी नेता हैं वह जान रहे हैं यही समय है जब अगर कांग्रेस भाजपा अगर दो सौ से कम में सिमट कर रह गए तो सपा की अगुवाई में तीसरा मोर्चा दिल्ली में अपनी दस्तक दे सकता है । वैसे वामपंथी साथियो को भी अभी भी मुलायम में तीसरे मोर्चे की उम्मीदें दिख रहीं हैं जिसका इजहार वह कई बार बड़े मंचो से कर चुके हैं । आडवानी तो पिछले साल ही तीसरे मोर्चे में एक उम्मीद अपने ब्लॉग में देख चुके हैं जिसमे मुलायम सिंह कड़ी का काम कर सकते हैं । कुश्ती के अखाड़े की तर्ज पर नेताजी आने वाले दिनों में कुछ ऐसा गणित भी फिट कर सकते हैं जिससे अगले लोक सभा चुनाव में
कांग्रेस को उन्हें समर्थन देने को मजबूर होना पड़े । यही वजह है इस दौर में मुलायम कांग्रेस की सरकार गिराना नहीं चाह रहे हैं । वैसे भी इस समय भाजपा और वामपथी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के खिलाफ हैं । अगर सपा अपना बाहर से समर्थन यू पी ए २ से वापस ले लेती है तो सरकार गिराने का कलंक मुलायम को खुद ढोना पड़ेगा जिससे जनता में अच्छा सन्देश नहीं जायेगा इसलिए मुलायम राजनीती का हर दाव इस तरह से चल रहे हैं ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।
वर्तमान समय में मुलायम की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा उत्तर प्रदेश में होनी है । अखिलेश उत्तर प्रदेश में अपने हर चुनावी वादे को पूरा करने में लगे हुए हैं । विपक्ष अखिलेश सरकार में कानून व्यवस्था बदहाल होने के आरोप लगा रहा है साथ ही बीते दिनों प्रतापगढ में जो कुछ घटा उसमे राजा भैया सरीखे बाहुबलियों की ठसक से समाजवादी सरकार की छवि पर बदनुमा दाग लग गया है । अगर यही सब चलता रहा तो आगामी दिनों में सपा का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन फींका पड़ सकता है और अगर ज्यादा दिनों तक मुलयम मनमोहन सरकार के साथ खड़े होते हैं तो कांग्रेस की खराब होती सेहद का असर खुद उनकी पार्टी पर भी पड सकता है । शायद इसी के चलते मुलायम सोच समझ कर समझ बूझ के साथ अपनी शतरंजी चाल चल रहे हैं । वह ऍफ़ डी आई पर मनमोहन सरकार की नैय्या पार लगाते हैं तो वहीँ कांग्रेस को घोटालो की सरकार कहने के साथ ही समर्थन वापसी की घुड़की भी समय समय पर देते हैं लेकिन मनमोहन सरकार को गिराने का खतरा मोल नहीं लेना चाहते क्युकि दूरदर्शी नेता रहे नेताजी जानते हैं अगर पासा उल्टा पड़ गया और मनमोहन किसी नए सहयोगी के बूते आई सी यू से अपने को बाहर निकालने में कामयाब हो जाते हैं तो पूरे प्रकरण में किरकिरी सपा की ही होगी और आगामी लोक सभा चुनाव से ठीक पहले सपा के लिए यह अपशकुन साबित होगा ही साथ ही नेताजी के प्रधानमंत्री बनने के सपनो को शायद इस बार भी पंख नहीं लग पाएं ।
नेताजी ने कांग्रेस को लेकर राजनीतिक लकीर खींचने की कोशिश यह कहते हुए खींची कि वह इस दौर में पीएम पद की रेस में नहीं हैं तो उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा साथ देने वाले दोस्तों पर भी कांग्रेस को भरोसा नहीं रहता । यही नहीं तीन कदम आगे जाकर मुलायम ने कांग्रेस पर भय दिखाकर समर्थन लेने के आरोप लगाने के साथ ही इस बार कांग्रेस सरकार को घोटालो की सरकार करार दे दिया । यही नहीं सेकुलिरिज्म पर कांग्रेस के तमाशबीन होने के आरोपों की बौछार से यह सवाल गहरा गया है इन सबके पीछे नेता जी की मंशा आखिर क्या है ? दरअसल अगले लोक सभा चुनावो से पहले इसका एकमात्र उद्देश्य कांग्रेस से दूरी बनाकर चलने के साथ ही राष्ट्रीय राजनीती में सपा को किंग मेकर बनाना और गैर कांग्रेसी , गैर भाजपाई मोर्चे की अगुवाई करना हो सकता है ।
२ ० १ ४ से ठीक पहले नेताजी कुछ ऐसी खिचड़ी पकाना चाह रहे हैं जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों से इतर एक नयी मोर्चाबंदी केंद्र में शुरू हो जिसकी कमान वह खुद अपने हाथो में लेकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकें । १ १ ९ ६ में जब नरसिंहराव सरकार से लोगो का मोहभंग हो गया तो नेताजी ही वह शख्स थे जिसने समाजवादियो , वामपंथियों, लोहियावादी विचारधारा के लोगो को एक साथ लाकर उस दौर में शरद पवार के साथ मिलकर एक नई बिसात केंद्र की राजनीती में चंद्रशेखर को आगे लाकर बिछाई थी । उसी तर्ज पर अब नेताजी कांग्रेस को ठेंगा दिखाते हुए अकेला चलो रे का राग अपना रहे हैं साथ में तीसरे मोर्चे के लिए भी हामी भरते दिख रहे हैं । १७ बरस बाद नेताजी गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी मोर्चे के लिए अपनी शतरंजी बिसात बिछाने में लग गए हैं । अगर उत्तर प्रदेश में सपा पचास से अधिक लोक सभा सीट जीत जाती है तो नेताजी की कृष्ण मेनन मार्ग से ७ रेस कोर्स की राह आसान हो सकती है । लेकिन असल परीक्षा तो यू पी में है क्युकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही गुजरता है । वर्तमान में सपा के 22 संसद हैं और नेताजी अपने सांसदों की संख्या आगामी लोक सभा चुनावो में बढाने के लिए अपना हर दाव खेलने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं ।
जवानी में पहलवानी के अखाड़े में अपना जोश दिखाने वाले नेताजी इस बार विपक्षियो को मात देने के लिये अपना हर दाव खेलने की तैयारी में हैं जिससे समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में बदत मिल सके । नेताजी के निशाने पर अब आगामी लोक सभा चुनाव हैं यही वजह है उन्होंने पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय राजनीती में अपनी पारिवारिक विरासत को स्थापित करने के लिए जोर आजमाईश शुरू कर दी थी । शिवपाल से लेकर रामगोपाल , धर्मेन्द्र यादव से लेकर डिंपल यादव अगर आज राजनीती में हैं तो इसके पीछे नेताजी की राजनीतिक बिसात ही है जिसके बूते वह लोक सभा चुनावो में समाजवादी पार्टी की मजबूती चाह रहे हैं चाहे इसके लिए उन्हें अपने पूरे परिवार को ही आगे क्यों ना करना पड़ जाए ।
मुलायम की मुश्किल इस समय यह है उत्तर प्रदेश सरीखे बड़े राज्यों के अलावा सपा का अन्य राज्यों में कुछ ख़ास जनाधार नहीं है और वह इन राज्यों में कुछ करिश्मा भी अब तक नहीं कर पायी है । आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में जहाँ उनकी कोशिश लोक सभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना इस दौर में बन रही है वहीँ अन्य राज्यों को लेकर भी माथे पर चिंता की लकीरें हैं क्युकि यू पी के अलावे अन्य राज्यों में सपा का संगठन लचर है । ऐसे में उनके सामने दो ही संभावनाये बन रही है या तो वह कांग्रेस के साथ फिर जाए या फिर अपने बूते ही गैर भाजपा और गैर कांग्रेस के नारे के आसरे अपने लिए केन्द्र की सत्ता का रास्ता साफ़ करें । मौजूदा दौर में कांग्रेस की पतली हालत के चलते सपा अपने बूते ही आगे का रास्ता तय करेगी लिहाजा कांग्रेस के साथ जाने का विकल्प तो बंद होता दिख रहा है । इन दिनों सपा के हर छोटे बड़े नेता की तरफ से जिस तरह यू पी ए सरकार को कभी भी गिराने के बयान सामने आ रहे हैं उससे यह संभावना भी बन रही है यू पी ए --२ सपा की बैसाखियों पर अब ज्यादा दिन नहीं चल सकती । नेताजी अपने 22 सांसदों के दम पर कभी भी मनमोहन सरकार को गिरा सकते हैं ।
बीते दिनों ताबड़तोड़ अंदाज में केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद ने नेताजी को जिस तरह निशाने पर लिया है उससे सपा के हर कार्यकर्ता में नाराजगी बढ़ गई है और वह नेताजी के जरिये मनमोहन सरकार को गिराने का दबाव बना रहे हैं जिस पर मुलायम सिंह को फ्री हैण्ड मिल चुका है । लोक सभा चुनाव की तैयारियों के चलते यह तो साफ़ ही लग रहा है नेताजी अब जल्द चुनावो का जुआ खेलना चाह रहे हैं । वह काग्रेस के भ्रष्टाचार के दागो को अब ज्यादा धो पाने की स्थिति में भी नहीं दिख रहे हैं । ज्यादा समय तक कांग्रेस के साथ जाने से सपा के वोट बैंक को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है । इस दौर में मुलायम सिंह जहाँ कांग्रेस से मेलजोल बढाने के बजाए सीधे उसे निशाने पर लेने के साथ ही दूरियां बना रहे हैं वहीँ इशारो इशारो में तीसरे मोर्चे का राग अलाप रहे हैं । यही नहीं कांग्रेस को आईना दिखाने की मुहिम के तहत वह लाल कृष्ण आडवानी की तारीफों में कसीदे पड़ने से पीछे नहीं हट रहे हैं । अपनी राजनीतिक बिसात के मद्देनजर नेताजी अखिलेश सरकार को भी निशाने पर लेने से नहीं चूक रहे है क्युकि एंटी इनकम्बेंसी के मिजाज को मुलायम ने यू पी में विपक्ष में रहते हुए महसूस किया हैं यही वजह है वह क़ानून व्यवस्था के नाम पर अपनी नाराजगी उत्तर प्रदेश को लेकर कई बार जाहिर कर चुके हैं ।
अभी कुछ दिनों पहले सैफई में होली मिलन के दौरान नेताजी ने मध्यावधि चुनावो के लिए नवंबर तक का वक्त दे दिया जो बतलाता है सपा ने आगामी लोक सभा चुनावो के लिए कमर कस ली है । यही वजह है ५६ लोक सभा प्रत्याशी तय करने के बाद अब उनकी नजरे जल्द शेष बचे प्रत्याशी घोषित करने की है जो एक दो महीने में शायद पूरी कर दी जाएँ । राजनीती संभावनाओ का खेल है और नेताजी बड़े दूरदर्शी नेता हैं वह जान रहे हैं यही समय है जब अगर कांग्रेस भाजपा अगर दो सौ से कम में सिमट कर रह गए तो सपा की अगुवाई में तीसरा मोर्चा दिल्ली में अपनी दस्तक दे सकता है । वैसे वामपंथी साथियो को भी अभी भी मुलायम में तीसरे मोर्चे की उम्मीदें दिख रहीं हैं जिसका इजहार वह कई बार बड़े मंचो से कर चुके हैं । आडवानी तो पिछले साल ही तीसरे मोर्चे में एक उम्मीद अपने ब्लॉग में देख चुके हैं जिसमे मुलायम सिंह कड़ी का काम कर सकते हैं । कुश्ती के अखाड़े की तर्ज पर नेताजी आने वाले दिनों में कुछ ऐसा गणित भी फिट कर सकते हैं जिससे अगले लोक सभा चुनाव में
कांग्रेस को उन्हें समर्थन देने को मजबूर होना पड़े । यही वजह है इस दौर में मुलायम कांग्रेस की सरकार गिराना नहीं चाह रहे हैं । वैसे भी इस समय भाजपा और वामपथी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के खिलाफ हैं । अगर सपा अपना बाहर से समर्थन यू पी ए २ से वापस ले लेती है तो सरकार गिराने का कलंक मुलायम को खुद ढोना पड़ेगा जिससे जनता में अच्छा सन्देश नहीं जायेगा इसलिए मुलायम राजनीती का हर दाव इस तरह से चल रहे हैं ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।
वर्तमान समय में मुलायम की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा उत्तर प्रदेश में होनी है । अखिलेश उत्तर प्रदेश में अपने हर चुनावी वादे को पूरा करने में लगे हुए हैं । विपक्ष अखिलेश सरकार में कानून व्यवस्था बदहाल होने के आरोप लगा रहा है साथ ही बीते दिनों प्रतापगढ में जो कुछ घटा उसमे राजा भैया सरीखे बाहुबलियों की ठसक से समाजवादी सरकार की छवि पर बदनुमा दाग लग गया है । अगर यही सब चलता रहा तो आगामी दिनों में सपा का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन फींका पड़ सकता है और अगर ज्यादा दिनों तक मुलयम मनमोहन सरकार के साथ खड़े होते हैं तो कांग्रेस की खराब होती सेहद का असर खुद उनकी पार्टी पर भी पड सकता है । शायद इसी के चलते मुलायम सोच समझ कर समझ बूझ के साथ अपनी शतरंजी चाल चल रहे हैं । वह ऍफ़ डी आई पर मनमोहन सरकार की नैय्या पार लगाते हैं तो वहीँ कांग्रेस को घोटालो की सरकार कहने के साथ ही समर्थन वापसी की घुड़की भी समय समय पर देते हैं लेकिन मनमोहन सरकार को गिराने का खतरा मोल नहीं लेना चाहते क्युकि दूरदर्शी नेता रहे नेताजी जानते हैं अगर पासा उल्टा पड़ गया और मनमोहन किसी नए सहयोगी के बूते आई सी यू से अपने को बाहर निकालने में कामयाब हो जाते हैं तो पूरे प्रकरण में किरकिरी सपा की ही होगी और आगामी लोक सभा चुनाव से ठीक पहले सपा के लिए यह अपशकुन साबित होगा ही साथ ही नेताजी के प्रधानमंत्री बनने के सपनो को शायद इस बार भी पंख नहीं लग पाएं ।
2 comments:
पता नहीं कि किसके मन में क्या है।
विश्लेषण तो सटीक है। लेकिन लोकतन्त्र का वास्तविक उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है इन सब राजनीतिक दलों के जोड़-तोड़ के फेर में।
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