Thursday 24 April 2014

देवभूमि में दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा


 ( ग्राउंड जीरो से )

उत्तराखंड में आगामी 7 मई को होने  मतदान पर सभी की नजरें टिकी हैं । 2014 को लेकर एक नए तरह के बद्लाव की बयार  पहाड़ो  में देखने मे आ रही है ।  पांच  लोकसभा  सीटों  वाले इस छोटे राज्य में वैसे तो भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं लेकिन पहाड़ो मे बसपा के हाथी , उत्तराखंड़  क्रांति दल  और आम आदमी पार्टी ने मुकाबले को इस बार  दिलचस्प बना दिया है । भाजपा को जहाँ नमो लहर पर जीत का  भरोसा है वहीँ  कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत मुख्यमंत्री   हरीश रावत हैं जिन पर इस चुनाव मे सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने  भारी दबाव है ।  उत्तराखंड में लोक सभा की कुल 5 सीटें हैं जिनमें से 3 गढ़वाल मंडल और 2 सीटें कुमाऊं से आती हैं । उत्तराखंड में सीटो का  बंटवारा मैदानी बनाम पहाड़ी के तौर पर  होता आया है जिनमे से हरिद्वार और नैनीताल मे तराई के वोट हार जीत के गाणित को प्रभावित करते  रहे हैं । 

                            उत्तराखंड में कांग्रेस की ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे  सी एम हरीश रावत ने राज्य मे कांग्रेस को भाजपा  के  सामने मुकाबले मे लाकर तो खड़ा कर दिया है लेकिन सत्ता विरोधी लहर और गुटबाजी  भी कांग्रेस का खेल  खऱाब कर रही है । भले ही हरीश रावत उत्तराखंड मे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं  मे  जान फूंकने  मे बीते कुछ महीनो मे क़ामयाब  हुए हैँ लेकिन सतपाल महाराज का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस  सरकार के  लिए इस समय सरदर्द बन गया है ।  गढ़वाल के कई इलाको मे  महाराज की पकड़ और धार्मिक और आध्यत्मिक गुरु के रूप में उनकी पूरे देश पहचान  कहीं  ना कहीं कुमाऊं मंडल मे भी भाजपा को लाभ पहुचा रही है । 

 कुमाऊं की अल्मोड़ा संसदीय सीट पर भाजपा जहाँ इस बार कांग्रेस पर भारी पड़  रही है वहीँ नैनीताल मे भी वह पूर्व  सी एम  भगत सिंह कोश्यारी के आने से मुकाबले मे बनी  है । पौड़ी और टिहरी सरीखी सीटों  पर भी भाजपा अभी तक आगे चल रही है । वहीँ हरिद्वार में कांग्रेस बढत लेतीं दिख रही है क्युकि यहाँ मुख्यमंत्री हरीश रावत की प्रतिष्ठा सीधे दाव पर है । उनकी पत्नी रेणुका रावत इस सीट से ताल ठोक  रही  हैँ । ऐसे हालातो में हरीश रावत के सामने इस बार के पॉलिटिकल  टी-20 लीग  में अच्छे प्रदर्शन का  दबाव  है । वैसे भी  विजय बहुगुणा को हटाकर राहुल गांधी ने उनको सी एम की कुर्सी  इसलिए  सौंपी थी क़ि वह आने वाले लोक सभा चुनाव  कांग्रेस की हालत सुधारेंगे ।  अगर नतीजे  कांग्रेस के मन मुताबिक नहीं  आये तो  हरीश रावत की मुश्किल 16 मई के बाद बढ़ सकती है । वैसे सूत्रों की बातों पर भरोसा करें तो सतपाल महाराज मिशन -7 के तहत हरीश रावत को सत्ता से बेदखल करने के अपने गुप्त प्लान पर काम कर  चुके हैं । लोकसभा चुनावो के परिणामो के बाद सतपाल अपने समर्थक 7  विधायको को साथ लेकर हरीश रावत के सामने संकट पैदा कर सकते हैं । खुद सतपाल की पत्नी अमृता रावत इस समय हरीश की सरकार मे कैबिनेट मंत्री हैँ ।  

                   
           2009 के लोक  सभा  चुनावो में 5 सीटें गंवाने वाली भाजपा इस  बार  पूरे दम ख़म  के साथ देवभूमि  के सियासी अखाड़े  मे कदमताल कर रही है । चुनाव प्रचार से लेकर टिकटों के बँटवारे मे उसने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है । भाजपा ने इस चुनाव में अपने पूर्व मुख्यमंत्रियो की तिकड़ी को मैदान मे आगे कर दिया है । पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी जहाँ पौड़ी से दावेदारी कर रहे हैं वहीँ डॉ रमेश पोखरियाल  निशंक  हरिद्वार और भगत सिंह कोश्यारी नैनीताल से ताल ठोंके हुए हैँ । उत्तराखण्ड में लोकसभा की पांचों सीटों पर  मुकाबला  दिलचस्प  है ।   पहले   माना जा रहा था कि पांचों सीटें  भाजपा के खाते में  जाएंगी  लेकिन विजय बहुगुणा  का बदला जाना कांग्रेस के पक्ष में गया है। भाजपा द्वारा दिल्ली की एक एजेंसी से कराए गये एक सर्वै से इस बात की चिंता  है कि हरीश रावत के कुर्सी पर आने के बाद  सत्ता विरोधी लहर  में कमी आई है पहली दफा हरीश रावत के आने से भाजपा को अपनी रणनीति बदलणे को मजबूर होना पड़  रहा है । 


टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट पर लम्बे समय से  भाजपा का कब्जा रहा है । यह सीट टिहरी राजपरिवार की परम्परागत  सीट मानी जाती रही है ।  2009 के लोक सभा चुनावो में  विजय बहुगुणा ने इस सीट पर फतह हासिल की लेकिन 2012 में उनके  मुख्य मंत्री बनने के बाद रिक्त हुई इस सीट पर उनके बेटे उनके बेटे साकेत  बहुगुणा को  उपचुनाव मे भाजपा की रानी माला राजलक्ष्मी के हाथो मुह की खानी पड़ी थी । इस बार भाजपा ने माला पर  दाव लगाया है वहीँ कांग्रेस ने भी साकेत बहुगुणा को आगे किया है । रानी माला राजलक्ष्मी का कार्यकाल हालांकि कुछ खास  नहीं रहा है लेकिन उनका टिहरी राज परिवार से होना और कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी भाजपा के पक्ष मे जा रही है ।   इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 14  विधानसभा सीटों में से कांग्रेस का छह भाजपा का छह और अन्य का दो पर कब्जा है। यहां चालीस फीसदी ठाकुर पचास फीसदी ब्राह्मण मतदाता  हैं।  देहरादून शहर के लगभग सत्तर हजार सिख पचास हजार गोरखा और चालीस हजार मुस्लिम मतदाता हैं। देहरादून में गोरखा , पंजाबी , मुस्लिम मतदाता भी हार जीत के गाणित को गड़बड़ा सकते  हैं । तीसरी ताकत के रूप में यहाँ आप भी उभर रही है लेकिन चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच  नजर आ रहा है जिसमें निश्चित तौर पर अभी भाजपा का पलड़ा भारी है।  


वहीँ हरिद्वार सीट पर डॉ निशंक भाजपा प्रत्याशी के तौर पर हरीश की पत्नी रेणुका के सामने खड़े हैं । तकरीबन 34 हजार नए युवा वोटरो पर इस  बार  यहॉँ सभी की  नजर है  साथ  ही  साढ़े पांच लाख मुस्लिम मतदाता  हार  जीत  के गणित को    प्रभावित  कर सकते  हैं। बीते लोक सभा  चुनाव में बसपा प्रत्याशी शहजाद को लगभग दो लाख मत मिले थे। इस बार बसपा ने हाजी इस्माइल को प्रत्याशी बनाया है जबकि एक दौर मे  डॉ  अंतरिक्ष सैनी  का यहाँ से टिकट पक्का  रहे थे लेकिन बहिन जी ने बाद मे टिकट बदलकर हाज़ी को दे दिया जिससे सैनी समुदाय में असंतोष है। इस पूरे लोकसभा क्षेत्र में सैनियों के 3  लाख वोट हैं। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी रेणुका रावत  को मुस्लिम के साथ-साथ दलित मतों का भी लाभ मिल सकता है । हरिद्वार संसदीय सीट  रावत ने 2009  में भारी मतों से इस सीट पर कांग्रेस की जीत दर्ज कराई थी। भाजपा के स्वामी यतीन्द्रनाथ को उन्होंने सवा लाख से अधिक मतों से पराजित कर रिकॉर्ड बनाया था। अबकी बार भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' को अपना प्रत्याशी बना लड़ाई को रोचक कर दिया है। निशंक की मुश्किल कुम्भ मे उनके द्वारा किये गये घोटालो ने बढ़ाई है साथ ही उनकी सरकार के भ्रष्टाचार  को  राजनीतिक दल निशाने  पर ले रहे  है और प्रदेश भाजपा का एक गुट निशंक  हरिद्वार से हरवाने के लिये भितरघात  कर रहा  है।   निशंक को यहां से प्रत्याशी बनाए जाने से  भाजपा के दिग्गज नेता मदन कौशिक नाराज हैँ जिनके सुर मे सुर यतीन्द्रनाथ  मिला रहे हैं । ये दोनों अपना  टिकट काटे जाने से नाराज हो चले हैं । ऐसे में मीडिया मैनेजर माने जाने वाले डॉ निशंक अपनी मैनेजरी और चुनावी प्रबन्धन कैसे करते  हैं  यह देखना दिलचस्प  होगा ।   हरिद्वार की  14  विधानसभा सीटों में से सात सीटों पर भाजपा , चार   पर कांग्रेस ,  तीन पर बसपा का कब्जा है। ऐसे में निश्चत तौर पर कांग्रेस-भाजपा की लड़ाई को बसपा ने रोचक बना दिया है । हरिद्वार में आप पर भी सभी  की नजरेँ  लगी हैं । यहाँ से प्रदेश की पूर्व डी  जी पी कंचन भट्टाचार्य मैदान मे हैं ।  

पौड़ी गढ़वाल से   भाजपा ने साफ़ छवि के   पूर्व मुख्यमंत्री  खंडूरी पर दांव  लगाया  है। खंडूरी चार बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं । केंद्र में  अटल की कैबिनेट मे भूतल परिवहन मंत्री जब वह बने थे तो इसी सीट ने उनको कैबिनेट मंत्री  बनाया बल्कि 2007  में प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बनाया  ।  इस बार  आखिरी समय मे कांग्रेस ने यहाँ से अपने कैबिनेट  मंत्री  डॉ हरक सिंह रावत को उतारा  है। इस सीट पर  सतपाल महाराज   ने बीते लोक सभा चुनाव मे जीत हासिल  की थी  लेकिन अब उन्होने   भाजपा का दामन थाम लिया है। इसका लाभ भाजपा को मिलने के पूरे  आसार है।  यहां की चौदह विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास 10  भाजपा 3  और एक निर्दलीय के पास है।  भाजपा प्रत्याशी जनरल खण्डूड़ी को यहां से परास्त कर पाना सतपाल महाराज के लिए इस  बार  बेहद  मुश्किल  माना जा रहा था।लेकिन उनके  भाजपा में जाने से  खण्डूड़ी बम   बम  हैँ ।    उत्तराखंड के 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य मे  अपनी लोकप्रियता के रथ मे सवार  खण्डूड़ी कोटद्वार सीट कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी के हाथों हार गये थे। तब भितरघात  के साथ ठाकुर ब्राह्मण  समीकरणों ने यहाँ के समीकरणों को उलझा दिया था  लेकिन   सतपाल  का भाजपा में आना खण्डूड़ी  लिये टॉनिक  का काम  सकता है । वही अतीत में  सतपाल खंडूरी के हाथो मुह की खा चुके हैं । कांग्रेस प्रत्याशी डॉ  हरक सिंह रावत को बहादुर योद्धा के रूप मे कांग्रेस प्रोजेक्ट करती रही है लेकिन इस  बार वह खंडूरी के सामने कोइ बढ़ा  उलटफेर कर पायेँगे इसकी  कम ही सम्भावना है ।  खंडूरी का पूरे उत्तराखंड मे जलवा कायम है ।   



नैनीताल संसदीय सीट से इस बार भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला 2009  में विजयी साँसद  के सी बाबा से है ।  37000 नए युवा वोट कोई बड़ा उलटफेर कर सकते हैं । बाबा अपनी हैट्रिक लगाने की तैयारी मे लगे हैं  वहीँ कोश्यारी राज्य सभा के बाद अब नमो लहर मे सवार  होकर लोक सभा मे एण्ट्री  मारने के लिये बैचैन हैं ।   इस साल 25 नवम्बर को उनका राज्य सभा कार्यकाल पूरा हो रहा  है ।कोश्यारी  की चिंता इस चुनाव मे भाजपा के पूर्व मंत्री  बची सिंह रावत एवं पूर्व सांसद बलराज पासी ने  बढ़ाई   हुई है । इन दोनों  पत्ता कोश्यारी ने साफ कर दिया और दिल्ली से अपना टिकट  फ़ाइनल कर लिया। प्रदेश संगठन ने पैनल में केवल कोश्यारी का ही नाम भेजा गया । भले ही अब ये दोनों शांत हो गये हों लेकिन  अंदरखाने यह सभी अपने समर्थकों के साथ पूरा जोर कोश्यारी को डेमेज करने में लगाये हुए हैं । कॉंगेस की इस  सीट पर पकड़  बेहद मजबूत रही है शायद  यही वजह है  हरीश फैक्टर  भी यहाँ   प्रभावी नजर आ रहा  है।  मुस्लिम मतदाता भी यहांँ  गणित  बिगाड़ सकते है। मोदी के चलते अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण  होने की सम्भावना  है। आम आदमी पार्टी ने यहां से जनकवि बल्ली सिंह चीमा को मैदान में उतारा है जो संगठन के अभाव मे बिखरी है । आप से दिल्ली जैसे करिश्मे की उम्मीद उत्तरखंड  बेमानी ही लग रहा  है । वहीँ यू के डी (ऐरी ) वेंटिलेटर पर है ।   

अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय सीट से कांग्रेस के निवर्तमान सांसद प्रदीप टम्टा पार्टी के प्रत्याशी हैं जिनके सामने भाजपा के सोमेश्वर के विधायक अजय  टम्टा  सामने हैं  जो 2009 के लोक सभा चुनावो में कुछ अन्तर से पराजित  हो गये  थे ।  इस सीट पर  50 फीसदी  मतदाता ठाकुर 40  फीसदी ब्राह्मण और 10  फीसदी  अन्य हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत  की प्रतिष्ठा भी यहाँ दाव पर है ।अतीत में हरीश रावत  प्रतिनिधित्व कर चुके हैं ।   प्रदीप टम्टा को हरीश रावत का  हनुमान  माना  जाता है लेकिन हरीश रावत का  गाँव यहाँ होने  से प्रदीप टम्टा को जिताने की बड़ी जिम्मेेदारी अब उनके कंधों पर आ  गयी है ।   कम उम्र में ब्लाक प्रमुख और लगातार लोकसभा में हैट्रिक लगाने के बाद  अस्सी के दशक में  पहले  चुनाव में  हरीश रावत ने डॉ मुरली  जोशी सरीखे कद्दावर  नेता को  इस  सीट  से हराकर धमाकेदार  इंट्री अविभाजित उत्तर  में की । संजय  ब्रिगेड के सिपहसालार और समर्पित सिपाही  बन हरीश ने इसके बाद इतिहास उस  समय रचा  जब डॉ मुरली मनोहर को 1984 में उनके हाथो फिर  पराजित होना  पड़ा।  इसके बाद रावत ने  भगत सिंह कोश्यारी और काशी  सिंह  ऐरी जैसे   दिग्गजों  की नींद  उड़ा डाली जब उनको भी रावत के हाथो  पटखनी  मिली ।  नब्बे के दशक  की रामलहर में   हरीश रावत का सियासी कैरियर पूरी तरह से थम गया । रामलहर में उन्हें राजनीती के नए  नवेले  खिलाडी जीवन शर्मा के हाथ हार खाने को मजबूर होना पड़ा तो 1996 , 19 98 ,1999 में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री बची सिंह रावत के सामने  हार  गए  । रावत की इस हार के पीछे एक बड़ा कारण यहां के ब्राह्मण मतदाताओं की उनके प्रति अविश्वास और नाराजगी है। ब्राह्मण मतदाताओं की इस नाराजगी को एनडी  ने राज्य का सीएम रहते और हवा देने का काम किया था। इसके  बाद उनकी पत्नी  रेणुका  रावत भी  बची सिंह  रावत  के सामने हार गयी । 2009 में हरीश ने हरिद्वार से  भाग्य आजमाया और हरिद्वार ने  उनका  राजनीतिक  पुनर्वास  किया  जब 15  लोक सभा में वह   श्रम राज्य मंत्री बने  । 2011 में  कृषि  राज्य मंत्री , संसदीय कार्यमंत्री और फिर  जल संसाधन  मंत्री  ने दिल्ली में उनकी  राजनीतिक उड़ान  को  नई  दिशा  दी । बीते  लोकसभा  चुनाव में रावत अपने प्रदीप टम्टा को यहां से जिताने में सफल रहे थे। प्रदीप टम्टा से  जनता  खासी नाराज  है लिहा जा इस  बार उनकी  राह  आसान नहीं  लग रही ।   इस बार एंटी कांग्रेस की  हवा भी हरीश के समीकरणों को गड़बड़ा  सकती  है। 

 भाजपा हरीश फैक्टर के अलावा अजय टम्टा को टिकट मिलने से नाराज  प्रत्याशियों के भितरघात  से भी यहां आशंकित है। पूर्व आईएएस चनरराम अल्मोड़ा के डीएम भी रह चुके हैं। टिकट न मिल पाने से वह  सज्जन लाल वर्मा के साथ अब भी कोपभवन मे हैं । भगत सिंह कोश्यारी की चहेती रेखा  आर्या भी टिकट  मिलने से आहत हैं लेकिन उनको  इस   सूरत मे मना लिया गया है भाजपा प्रत्याशी  अजय टम्टा के जीतने की सूरत मे उन्हे पार्टी सोमेश्वर से विधान सभा चुनाव  जिसके  बाद  भाजपा की गुटबाज़ी पर इस सीट  पर कुछ हद तक विराम लग  गया  है । 

बहरहाल मिलाकर 2014 की उत्तराखंड की सियासी  बिसात मे   उत्तराखण्ड में  लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होती नजर आ रही है। भाजपा के तीनो पूर्व मुख्यमंत्री जहॉं नमो लहर मे सवारी कर लोक सभा चुनाव जीतने के हसीन सपने देख रहे हैं वहीँ कांग्रेस मुख्यमँत्री चुकी  हरीश रावत   को आगे कर अपने विकास कार्यो और उपलब्धियों  बीच ले जाकर अखाड़े मे  उतर चुकी है । देवभूमि में 16 वी लोक सभा  का  ऊट किस करवट  बैठेगा इसके लिये फिलहाल 16 मई तक कीजिए  इन्तजार...... 

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