Sunday 20 July 2014

आपदा के बाद …




कभी तीर्थ यत्रियो की चहल पहल से गुलजार रहने वाली केदारघाटी में वीरानगी दिखाई दे रही है | आज भी पिछले बरस के भयानक जलजले की यादो से यहाँ के बाशिंदे बाहर नहीं आ पा रहे  हैं | पिछले साल मची तबाही में यहाँ मीडिया का जैसा रेला लगा वह भी अब थम गया है लेकिन केदारनाथ  से अपनी रोजी रोटी चलाने  वाले कई लोगो के चेहरों पर अब भी पिछले साल आई भीषण तबाही में अपनों के खोने का गम साफ़ महसूस किया जा सकता है | बीते बरस तक जिस केदारनाथ में  केदार बाबा के दर्शनों को लम्बी लम्बी कतारें दिखती थी वही आज आलम यह है यह कतारें सैकड़ो में सिमट कर रह गयी है | पिछले साल प्रकृति ने केदारघाटी में जैसा तांडव मचाया उसने इस इलाके के पूरे नक़्शे को ही बदल कर रख दिया है | पुनर्वास , पुनर्निर्माण और आपदा राहत के नाम पर चमत्कारिक काम विज्ञापनों में किये जाने के दावे कर रही यहाँ की राज्य सरकार के दावे इस बरसात में फिर सामने आने लगे हैं | पिछले कुछ दिनों  से राज्य में हो रही भीषण बरसात ने सरकार के ढुलमुल रवैये की एक बार फिर पोल खोल दी है जिस कारण सरकार को मजबूर होकर  मौसम खुलने तक चार धाम यात्रा को स्थगित करने का  एलान करना पड़ा है | अभी भी कई यात्री चार धाम के यात्रा पथ में फंसे हुए हैं लिहाजा पानी सर पर होने के समय  राज्य सरकार को केंद्र से मिग विमान  की मांग करनी पड़ रही है |


    पिछले कुछ समय से आपदा प्रबंधन के नाम पर जैसी लूट खसोट इस  छोटे से राज्य उत्तराखंड  में मची है वैसी मिसाल अन्यत्र हमें देखने को नहीं मिलती | आपदा प्रबंधन को यहाँ ऐसी दुधारू गाय बना दिया गया है जिसका इस्तेमाल  हमेशा अपने हितो के लिए किया जाता रहा है | बीते कई बरस से आपदा प्रबंधन के नाम पर यहाँ के प्रशासनिक अमले ने नौकरशाहों के साथ विदेश दौरे जमकर किये |  पता नहीं इन दौरों में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी कैसा प्रबंधन इन्होने सीखा जो एक साल बीतने  के बाद भी चार धाम यात्रा का पथ दुरुस्त नहीं कर सके | नौकरशाहों और राजनेताओ के काकटेल ने आपदा राहत के नाम पर पिछले कुछ समय से न केवल भारी लूट खसोट मचाई बल्कि आपदा के बजट से   चहेते ठेकेदारों की ही जेब गर्म की हैं | पिछले साल केदारनाथ में आई भीषण आपदा के बाद केंद्र सरकार और देश विदेश के कई सामाजिक संगठनो और राज्य सरकारों की तरफ से अरबो रुपये बटोरने के बाद भी चार धाम का यात्रा पथ  और राज्य की माली हालत खस्ता है | उत्तराखंड सरकार के पर्यटन प्रदेश , हर्बल स्टेट के दावे खोखले साबित हो रहे हैं | आज भी पर्यटक उत्तराखंड आने से सीधे कतरा रहे हैं |

         जलजले का एक साल बीतने के बाद भी केदारघाटी की वीरानगी बहुत कुछ कहानी खुद ही बयां कर रही है | कभी यात्रा के भारी शोर गुल से गुलजार रहने वाली केदारघाटी आज शांत है | कुछ यात्री भले ही आस्था के इस यात्रा पथ में अपनी जान जोखिम में डालकर उबड़ खाबड़ मार्गो से यात्रा कर रहे हों लेकिन अब यहाँ पहले जैसी बात नहीं दिखाई देती | आपदा के ठीक एक साल बाद भी केदारघाटी में कई नर कंकालो का मिलना सरकार और प्रशासन के दावो की पोल खुद ही खोल देते हैं | देश में कई लोग अब भी ऐसे हैं जिन्होंने  केदारनाथ  में अपने परिजनों को खोया | उनका अंतिम संस्कार तो दूर आज  शव तक  नहीं मिल पाए हैं लेकिन यहाँ की सरकार सेना , सरकार के सर्च आपरेशनो और मीडिया मेनेजमेंट का हवाला देकर खुद अपनी पीठ थपथपाने से पीछे नहीं हटती | बीते बरस के हादसे ने  विजय बहुगुणा का विकेट भले ही गिरा दिया हो लेकिन उनके बाद हरीश रावत ने भले ही बैटिंग कर रहे हों  लेकिन राज्य की बेलगाम नौकरशाही का कॉकस उनको  भी  सही से काम नहीं करने दे रहा ऊपर से इस छोटे से राज्य का दुर्भाग्य यह है यहाँ गली मुहल्लों में पनप रहे छुटभैय्ये नेताओ और राजनेताओ के चहेते ठेकेदारो ने राज्य का बेडा गर्क कर दिया है जिससे जनता जनार्दन के सरोकार कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं |   

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