Tuesday 23 December 2014

दोराहे पर खड़ा पाकिस्तान


'बोया पेड बबूल का आम कहाँ से होय'  पेशावर में मासूम बच्चो पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान को लेकर यही बातें जेहन में आ रही हैं । जिस आतंकवाद की   फैक्ट्री को   पाकिस्तान  कई बरस  से  अपने मुल्क में पनाह देता रहा आज वही उसके लिए  पूरी  तरह नासूर बन चुका  है ।  पाकिस्तान के भीतर  जिस तरह के हालात  आज  सामने हैं उससे पाकिस्तान के भीतर आतंरिक सुरक्षा को लेकर   संकट और ज्यादा  गहराता  जा रहा   है ।   अलग 2  राष्ट्र  सिद्धांत  का प्रतिपादन करने वाले मुहम्मद अली  जिन्ना ने भी ऐसा सपने में नही सोचा होगा कि एक दिन पाकिस्तान खुद दहशतगर्दो की गिरफ्त में आ जायेगा और वहां की चुनी हुई सरकार भी आतंकियों के आगे  ना  केवल  बेबस  और  तमाशबीन बनी रहेगी बल्कि सेना भी  अपने  हाथ पैर खड़े  कर देगी । 

 
 आज पाक  उस  दोराहे  पर खड़ा  है जहाँ  वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि अपने मुल्क में वह  कट्टर पंथी संगठनो  और आतंकियों का साथ दे या फिर अमरीका की आतंकवाद विरोधी मुहिम में साझीदार बन खड़ा हो । एक चुनी हुई सरकार के दौर में पाक के  हालात दिन पर दिन बद से बद्तर होते जा रहे है | मुशर्रफ़ की विदाई के बाद जहाँ  लोग इस  बात के कयास लगा रहे थे कि नवाज  शरीफ के सत्ता  संभालने  के बाद पाक में  नया सवेरा होगा लेकिन एक के बाद एक  तालिबानियों के आतंकी हमलो ने आवाम का  जीना दुश्वार कर दिया है । अब  वहा पर  अलग सा  बदला  बदला माहौल दिख रहा है  । ऐसे मे दिल में अगर यह विचार आ जाए वहां पर जम्हूरियत  का क्या भविष्य है तो इसका जवाब यह होगा क्या वह यहाँ  कभी यह सफल भी  हो पायी  है ? जब भी वहां  सूरज की नई  किरण उम्मीद  बनकर  निकली है  तो उस किरण के मार्ग मे सैन्य  शासन ने दखल देकर उसको अपना लिबास ओड़ने को  ना  केवल मजबूर ही किया है बल्कि इस बात को भी पिछले कई बरसो से साबित किया है बिना सेना के पाक के भीतर सरकार में भी पत्ता तक  नहीं हिलता ।  

भारतीय  दर्शन   में आचार्य रामानुज  '' स्यादवाद"  की जमकर आलोचना करते है । इस प्रसंग मे आज हम पाक को फिट कर सकते हैं ।   रामानुज  कहा करते थे किसी पदार्थ मे "भाव" और "अभाव" दोनों साथ साथ नही रह सकते है इस तरह यदि हम यह चाहते हैं कि पाक के पदार्थ रुपी लोकतंत्र मे सेना और सरकार दोनों साथ साथ चलेंगे तो यह नैकस्मिन सम्भवात  वाली बात  ही होगी ।  फिर पाक में  तानाशाह की भरमार जिस तरीके से  रही है उसमे दोनों के साथ आने  की उम्मीद  तो बेमानी ही  लगती है | मुशर्रफ़ से पहले  से ही सैन्य शासको ने किस तरह रिमोट अपने हाथ में लेकर पाक को चलाया और उनका क्या हश्र हुआ हम सब यह जानते है ।   9 साल  तक मुशर्रफ़ ने  पाक मे किस तरह काम किया उसकी मिसाल आज तक वहा के अवाम को देखने को नही मिली है  | मुशर्रफ़ ने कारगिल की ज़ंग खेल नवाज की पीठ में छूरा भोंककर  की और  कारगिल मे हार मिलने के बाद पाक को अपने स्टाइल में चलाने के फेर मे उनको   सुपर सीड कर खुद  सत्ता हथिया ली जिसके बाद वह अपनी  सरजमी से बेदखल कर दिए गए |   1999 मे मुशर्रफ़ का पहला अवतार तानाशाह के रूप मे हुआ ।  दूसरा अवतार सैनिक  वर्दी  के उतरने के बाद राष्ट्रपति  की कुर्सी से चिपके रहने के रूप मे देखा जा सकता था जहाँ अमरीका को साधकर उन्होंने अपना  एकछत्र राज कायम किया  |  सत्ता का स्वाद कितना मजेदार होता है यह सब परवेज मुशर्रफ़ की शातिर चालबाजियों से समझा जा सकता था जब सैनिक वर्दी उतरने के बाद भी वह वहां  की  सुप्रीम पोस्ट पर विराजमान हुए | 

जिस दौर मे मुशर्रफ़  ने नवाज से सत्ता हथियाई उस समय की स्थितिया अलग थी | भारत के पोकरण  की प्रतिक्रिया  मे पाक ने गौरी का परीक्षण कर डाला | उनको पाक की खस्ता हाल अर्थव्यवस्था का तनिक भी आभास नही हुआ |  भारत ने तो विश्व  के सारे प्रतिबंधो  को झेल लिया लेकिन पाक के लिए यह सब कर पाना मुश्किल था लेकिन फिर भी मुशर्रफ़ ने चुनौतियों को स्वीकार किया और जैसे तैसे दो बरस तक पाक की गाडी पटरी पर दौड़ाई  | 2001 मुशर्रफ़  के लिए नई सौगात लेकर आया जब 9/11 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर मे हमला हो गया जिसकी जिम्मेदारी ओसामा  बिन लादेन ने ली जिसमे अमेरिका के बहुत नागरिक मारे गए |  बेगुनाह नागरिकों  की मौत का बदला लेने और वैश्विक  आतंकवाद समाप्त करने के संकल्प के साथ अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के संगठन  को प्रतिबंधित संगठनो की  सूची मे डाल दिया और   उसके खिलाफ आर पार की लड़ाए लड़ने की ठानी |  अमेरिका के साथ आतंक के खात्मे के लिए पहली बार पाक यहीं से उसका हम दम साथी बनने को ना केवल तैयार हुआ बल्कि झटके में अपने प्रतिबंधो से भी मुक्त हो गया जो दुनिया ने परमाणु परीक्षण   के बाद लगाये थे |  यह बात तालिबानी लडाको के गले नही उतर  पाई  | 

आतंकवाद के खात्मे के नाम पर पाक सरकार को मुशर्रफ़  के कारण अरबों रुपये की मदद मिलनी शुरू हुई  जिसने  पाक के लिए टानिक का काम करना शुरू किया | जिस कारण विकास के मोर्चे पर हिचकोले खा रही पाक  की अर्थव्यवस्था  मे नई जान आयी | उस दौर में अमेरिका ने पाक से कहा लादेन हर हाल मे चाहिए चाहे जिन्दा या मुर्दा  लेकिन मुशर्रफ़ ने होशियारी दिखाते हुए  फूक फूक कर कदम रखा | आतंक और दहशतगर्दी को ख़त्म करने के लिए  अभियान शुरू होने से पहले तक अफगानिस्तान में तालिबान की तूती बोला करती थी | ओसामा के चेलों  ने इस  पूरे इलाके मे अपना आधिपत्य जहाँ कायम किया   वहीँ  कबीलाई इलाको में उसने  अपनी मजबूत पकड़ कर  ली । 

मुशर्रफ़ द्वारा अमेरिका को मदद दिए  जाने के निर्णय को ओसामा के  अनुयायी तक नही पचा पा रहे थे लेकिन उनको क्या पता मुशर्रफ़ ने अपने इस कदम से एक तीर से  दो  निशाने खेले | 9/11  के बाद मुशर्रफ़  के अमेरिका के पैसो से अपने सूबा सरहद की सेहत मजबूत की |  आतंकवाद समाप्त करना तो दूर मुशर्रफ़ तमाशबीन बने रहे |   अमेरिका के सैनिक जब अफगान इलाके पर हमला करते तो पाक सरकार के भेदिये जवाबी कार्यवाही की   जानकारी उनको हर दम पंहुचा देते थे जिस कारण वह हर दिन अपना नया घर खोजते रहते |  अमेरिका के सैनिकों  को चकमा देकर यह लडाके पाक के अन्दर छिपे रहते |  ऐसी सूरत मे उनको पकड़ पाना मुश्किल होता जा रहा था |  चित भी मेरी पट  भी मेरी फोर्मुले के सहारे मुशर्रफ़ ने पाक मे  सत्ता  समीकरणों  का जमकर लुफ्त उठाया जिसके बाद  इमरान  शाहबाज और नवाज शरीफ  के बाद वहा कोई ऐसा  नेता नही बचा जो उनका बाल बांका नहीं  कर सके  

अमेरिका से अत्यधिक निकटता दहशतगर्दो को रास नही आई और ओसामा  बिन  लादेन के एबटाबाद में मारे जाने  और अफगान सीमा  को निशाना  बनाये  जाने की घटना के बाद से  पाकिस्तान में स्वात ,पेशावर सरीखे इलाको में तालिबानी लडाको ने अपने पैर मजबूती के साथ जमाने शुरू कर दिए  जिनके खात्मे के लिए  अमेरिका ने  कभी पाक की सरकार को  मदद दी  और आज तक वहां की तस्वीर खून से रंगी ही है | अमरीकी मदद का पाक ने बेजा इस्तेमाल शुरू से आतंक की फैक्ट्रियो को पालने पोसने में ही किया है ।  मुशर्रफ़ के जाने के बाद  जहाँ डेरा इस्माईल खान और आयुध कारखाने मे बड़े  बड़े  विस्फोट  हुए  वहीँ मिया नवाज शरीफ  के आने के बाद भी मस्जिदों से लेकर सेना को निशाने पर लिया गया है | खैबर से लेकर क्वेटा वजीरिस्तान से लेकर स्वात घाटी  सब जगह तालिबानी आतंकियों ने  मासूम लोगो को अपने निशाने पर लिया है  | इन विस्फोटों में सबसे ज्यादा तहरीके तालिबान  का नाम   सामने आया है जो तालिबानी लडाको को लेकर पाक में अपना कहर बरपाते रहता है | 

असल में अफगानिस्तान में रहने वाले तालिबानी लडाको का यह संगठन है जिसकी अब  उत्तरी कबीलाई इलाको पर मजबूत पकड़ है ।  2013  में हकिमुल्ला मसूद की हत्या के बाद से ही इसकी कमान मौलाना फजउल्लाह को सौंपी गई है  जिसने अफगानिस्तान से सटी पाकिस्तानी सेना की जवाबी कार्यवाहियों के जवाब में पाकिस्तान के भीतर दहशत का वातावरण बनाने में देरी नहीं लगाई है | आज आलम यह है सेना के पूरे दखल के बावजूद भी तालिबानी आतंक पाक को अन्दर से खोखला करने पर तुला हुआ है और अब खुद ही नासूर बन गया है | अमेरिका के कई मानवरहित विमान आज  पाक मे डेरा डाले हैं जो कट्टरपंथियों को सीमा पर जाकर सबक सिखा रहे हैं इसके जवाब में तालिबानी पाक में कहर बनकर टूट रहे हैं  जिसमे पाक के बेगुनाह नागरिक हलाक हो रहे  हैं  |सरकार होने के बाद भी वहा पर सेना की राह आज भी अलग दिख रही है |  वह यह नही चाहते किसी सूरत पर पाक के भीतर अमेरिका की सेनाओं की इंट्री हो  जहाँ पर कट्टर लोग छिपे है लेकिन ओबामा का फरमान मानने को अब  सेना को मजबूर होना पड़ रहा है |  सरकार और पाक की  सेना दोनों अभी तक यह तय नही कर पा रहे हैं आतंक के खिलाफ जंग में  किसका साथ दिया जाए ? यानि पहली बार परिस्थितियां उधेड़बुन इधर कुआं तो उधर खाई  वाली  हो चली  हैं ।  पाक मे ओबामा ने सेना को ड्रोन हमले करने की अनुमती दे डाली है फिर इसके लिए चाहे उनको पाक के सीमा के अन्दर ही क्यों न घुसना पड़े | यही चीज तालिबानियों के गले की फाँस नहीं बल्कि सेना और सरकार के लिए भी गले की हड्डी  बन चुकी है | जब भी पाक की तरफ से कठोर कार्यवाही तालिबानियों के खिलाफ की जाती है उसकी प्रतिक्रिया में भी तालिबानी लडाके बम विस्फोट से अपना जवाब हर समय  देते नजर आते हैं और  हर हमलो के बाद जिम्मेदारी लेने से भी पीछे नहीं हटते | पेशावर  के इस हमले ने फिर इस बात की तस्दीक सही मायनों में कर डाली है | 

 पिछले कई बरस से  पाकिस्तान में   आतंकवाद ने  मजबूती  के  साथ  पैर पसारे हैं ।  मगर पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए हमले में तालिबान के  आतंकियों ने जिस  तरह  बच्चो  की  हत्या की  उसने  पूरी  इंसानियत  को  शर्मसार  कर दिया  है । इस हमले को मिया नवाज ने पाकिस्तान की  सबसे भीषण ′राष्ट्रीय आपदा′ बताया  है लेकिन  ऐसे बयानों से पाक  की तस्वीर नहीं बदलने वाली है ।  पेशावर  में आर्मी  स्कूल  में जिस जगह  यह हादसा हुआ वहां पर  इमरान खान की  सियासी पार्टी  तहरीक का  सिक्का  मजबूती के साथ चलता आ  रहा  है और खुद मिया  इमरान का इन तालिबानियों के खिलाफ  बहुत सॉफ्ट कॉर्नर रहा है ।  सियासत  की  कुछ मजबूरियों   के तहत  इन  नेताओं को एक साथ आकर इस हमले की न केवल निंदा करनी पड़ी है  बल्कि उन्हें पाकिस्तान की सरजमीं से दहशतगर्दों को पूरी तरह से खत्म करने का साझा  वायदा भी करना पड़ा है।  नहीं  तो  क्या कारण   है  तालिबानियों  के कई हमलो  के बाद भी    पाकिस्तान  किसी  कारवाही को करने की जहमत नहीं उठा पाया ? मिया  नवाज शरीफ ने भी कल  आतंकवाद के खात्मे के लिए कहा  ′अच्छे′ और ′बुरे′ तालिबान में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। यह कहना  आसान  है  पर जमीनी हकीकत इसलिए उलट है क्युकि पाकिस्तान में  पिछले कुछ  समय से  जमात उद  दावा, जैश ए महुम्मद , लश्कर ऐ तैयबा , हरकत  उल मुजाहिदीन सरीखे  दर्जनो संगठनो  को बीज और खाद न केवल मुहैया करवाई गयी है बल्कि  डी कंपनी यानी  दाऊद इब्राहीम को भी  अपने यहाँ पनाह दी  ।  उत्तर-पश्चिम वजीरिस्तान में यह हमला हुआ है वहां इमरान खान  का  रुख  तालिबान के प्रति काफी उदार रहा है। नवाज शरीफ ने दहशतगर्दों के खिलाफ बड़ी जंग लड़ने  की बात  जरूर कही है लेकिन  सेना  के अब तक के इतिहास को देखते हुए यह लगता नहीं  पाकिस्तान  तालिबान के खिलाफ कोई बड़ी लड़ाई  सीधे लड़ पायेगा । 

26  \11  के मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी  हाफिज सईद पर  पाकिस्तान  सबूत देने के बावजूद  भी कार्रवाई  तक नहीं कर सका है   जबकि उसका संगठन जमात उद  दावा संयुक्त राष्ट्र संगठन की प्रतिबंधित संगठन की सूची में खुद शामिल है । यही नहीं उस पर करोडो डालरों का इनाम भी रखा जा चूका है जिसके बाद भी पाकिस्तान की सेना और सरकार दोनों आज तक उसका बाल बांका नहीं कर सकी है ।  उसकी दाद देखिये  उसने पेशावर के भीषण  हमले के बाद एक बार फिर से भारत को  न केवल धमकी दी है बल्कि पेशावर के अटैक के लिए सारा दोष भारत सरकार के मत्थे  मढ़  दिया है और कहा है यह हमला कर भारत ने मुम्बई हमलों का  बदला ले लिया  है।  अभी बीते दिन ही  पाकिस्तान ने मुंबई हमलों के आरोपी जकी-उर रहमान लखवी को जमानत दिए जाने से आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान का दोहरा रवैया  एक  बार फिर से उजागर हो गया है । हमने पाकिस्तान को पर्याप्त सबूत दिए थे इसके बावजूद इस मामले की  वहां  पर ठीक से सुनवाई नहीं हुई और उसे जमानत दे दी गई फिर इसकी तीखी   प्रतिक्रिया जब हुई तो यू टर्न ले लिया । लखवी हाफिज  सईद  का दाहिना हाथ माना जाता  है और उसने  पाकिस्तान में  कसाब के साथी आतंकियों  को ट्रेनिंग  ही नहीं दी बल्कि पाक में  बैठकर  मुंबई  हमलों  की पल पल की अपडेट ली ।  अब ऐसे हालातो में क्या हम पाक से  ख़ाक उम्मीद कर सकते हैं?  क्या नफरत की नीव में सुलग रहा पाकिस्तान  पेशावर के  हमलों के बाद  बदलने को बेकरार है ?  जी नहीं ,  फिलहाल तो  हमें यह दूर की कौड़ी ही नजर आ रहा है ।

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