“ बाबू मोशाय हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है | कौन कब कहाँ उठेगा कोई नहीं जानता ”
यह संवाद बानगी भर है | सत्तर के दशक को याद करें | ऋषिकेश मुखर्जी ने पहली बार जिन्दगी और मौत की पहेली को इस कदर परोसा कि हर कोई जिन्दगी की पहेली का हल खोजने में जुट गया और पहली बार सलिल चौधरी के संगीत ने दिल के तारो को इस कदर झंकृत किया कि तंज संवाद के साथ इस फिल्म की बेहतर अदाकारी ने लोगो के दिलो में गहरी छाप छोड़ने में देर नहीं लगाई | काका का जब भी जिक्र होगा वह आनंद के बिना अधूरा रहेगा शायद यही वजह है आज भी काका इस फिल्म में आयकन के रूप में अमर हैं | इस फिल्म में कैंसर पीड़ित के किरदार को उन्होंने जिस तरीके से जिया वह बालीवुड में भावी पीढ़ी के लिए तो कम से कम नजीर ही बन चुका है | इस फिल्म में जिन्दगी के आखरी पड़ाव में मुंबई आने वाले आनंद सहगल की मुलाकात डॉ भास्कर मुखर्जी से होती है | आनंद से मिलकर भास्कर जिन्दगी के मायने सीखता है और आनंद की मौत के बाद अंत में यह कहने को मजबूर हो जाता है कि “आनंद मरा नहीं आनंद मरते नहीं ’’
सुपर स्टार राजेश खन्ना के करियर की यह ऐसी फिल्म थी जिसकी यादें आज भी जेहन में बनी हैं और शायद यही वजह है काका के बेमिसाल अभिनय ने इसके जरिये भारतीय सिनेमा में एक नई लकीर खींचने का काम किया | कुर्ता पहने आनंद इस फिल्म में जब समुन्दर के किनारे जिन्दगी ‘ कैसी ये पहेली हाए कभी ये हंसाये कभी ये रुलाये ’ गाना गाता है तो वह गाना लोगो को अपने आगोश में इस कदर ले लेता है कि अकेले पलो में भी यह दिल को सुकून दे देता है तो इसकी बड़ी वजह आनंद की बेहतर संवाद अदायिगी के साथ बेहतरीन संगीत है | आनंद के जरिये राजेश खन्ना ने अपने को सिल्वर स्क्रीन पर इस कदर उकेरा कि हर दर्शक उनके अभिनय के कसीदे ही पढने लगा | भारतीय सिनेमा में यही फिल्म है जो हमें सिखाती है मौत तो एक ना एक दिन आनी ही है लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते| जिन्दगी का फलसफा यह होना चाहिए जिन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं |जिन्दगी को आनंद ने परिभाषित करते हुए कहा जिन्दगी जितनी जियो दिल खोलकर जियो |
29 दिसंबर 1942 को राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में हुआ था | स्कूली दिनों में उनका नाम जतिन खन्ना था और वहीँ से कई नाटको में अभिनय के साथ ही उन्होंने अपना अभिनय का सफ़र शुरू कर दिया था | उनके चाचा ने उनकी अभिनय के फील्ड में आने की काफी हौंसला अफजाई की और उन्होंने उनका नाम जतिन से परिवर्तित कर राजेश खन्ना कर दिया | 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्म फेयर के टैलेंट हंट ने राजेश खन्ना के फ़िल्मी सफ़र को नई उड़ान देने का काम किया | दसियों हजार लडको को पछाड़कर राजेश ने पहले पायदान पर कब्ज़ा जमाने में सफलता प्राप्त की | 1967 में उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद की आखरी ख़त थी जहाँ से उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ | इसके बाद राज, बहारो के सपने ,औरत , डोली, इतेफाक सरीखी सफल फिल्मो से उनके नाम के चर्चे सब करने लगे |1969 में रिलीज हुई आराधना और दो रास्ते और फिर उसके बाद आनंद की सफलता ने उनकी लोकप्रियता के ग्राफ में ऐसा इजाफा कर दिया कि घर घर में राजेश नाम ने अपनी दस्तक देनी शुरू कर दी | आराधना में हुस्न की परी शर्मीला टैगोर के साथ उन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर ऐसी रोमांस की कैमिस्ट्री बैठाई कि युवतियों की रातो की नीदें ही उड़ गयी |
उस दौर में राजेश के गाने किशोर कुमार ने गाये और उनकी दिलकश आवाज का जादू आज भी राजेश के अभिनय को देखते समय महसूस किया जा सकता है | हाथी मेरे साथी , कटी पतंग , सच्चा झूठा , महबूब की मेहंदी , आन मिलो सजना ,आपकी कसम सरीखी फिल्मो में अपनी अभिनय से उन्होंने अभिनय के मानो झंडे ही गाड दिए | उस समय का दौर ऐसा हो चला कि लडकियों को राजेश खन्ना ने अपने मोहपाश में इस कदर जकड़ लिया मानो हर लड़की उनकी दीवानी हो गयी | उस समय कहीं अगर किसी लड़की को राजेश खन्ना की सफ़ेद रंग की गाडी मिलती तो वह उसको चूम ही लेती थी | यही नहीं उनकी लिपस्टिक से राजेश की सफ़ेद रंग की कार रंग बिरंगी हो जाती थी | लडकियों ने राजेश खन्ना में रोमांटिक हीरो की छवि देखी | राजेश खन्ना ने अपने फ़िल्मी सफ़र में तकरीबन 163 फिल्मो में काम किया जिनमे 100 से ज्यादा फिल्म बॉक्स ऑफिस में हिट रही | 1969 से 1972 तक राजेश खन्ना ने लगातार पंद्रह सुपर हिट फिल्में हिंदी सिनेमा को दी | इस बेमिसाल रिकॉर्ड के आस पास तक भी आज कोई नहीं फटक पाता है | अपने अभिनय के लिए उनको तीन बार फिल्मफेयर का अवार्ड मिला | अमर प्रेम और आप की कसम में राजेश खन्ना की ट्यूनिंग शर्मीला टैगोर और मुमताज के साथ ऐसी बैठ गयी कि इन्होने सफलता के झंडे ही गाढे और कई फिल्में हिट साबित हुई | राजेश और मुमताज़ दोनों के बँगले मुम्बई में पास पास थे अत: दोनों की अच्छी पटरी बैठी। जब राजेश ने डिम्पल के साथ शादी कर ली तब कहीं जाकर मुमताज़ ने भी उस जमाने के अरबपति मयूर माधवानी के साथ विवाह करने का निश्चय किया।
1974 में मुमताज़ ने अपनी शादी के बाद भी राजेश के साथ आप की कसम, रोटी और प्रेम कहानी जैसी तीन फिल्में पूरी कीं और उसके बाद फिल्मों से हमेशा हमेशा के लिये सन्यास ले लिया। यही नहीं मुमताज़ ने बम्बई को भी अलविदा कह दिया और अपने पति के साथ विदेश में जाकर बस गयी। इससे राजेश खन्ना को जबर्दस्त आघात लगा।1975 के बाद राजेश खन्ना का फ़िल्मी सफ़र फीका पड़ गया | इस दौरान कई फिल्म कुछ खास करिश्मा नहीं कर सकी | इसी दौर में स्टारडम का क्रेज शुरू होता है और पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर अमिताभ एंग्रीमैन की छवि गढ़ते नजर आते हैं | इसके बाद कई जगह अभिनय जगत में रोल पाने को लेकर राजेश और अमिताभ आमने सामने आते हैं लेकिन दोनों के लिए एक फिल्म में आने की डगर आसान नहीं लगती |1978 के बाद राजेश खन्ना ने दर्द, धनवान, अवतार ,अगर तुम ना होते जैसी फिल्में भी की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी | राजेश खन्ना निजी जिन्दगी में भी रोमांटिक रहे | 70 के दशक में ही उनका अंजू महेन्दू से अफेयर जोर शोर से चला लेकिन जल्द ही ब्रेक अप भी हो गया | राजेश ने अपने से पंद्रह साल छोटी डिम्पल कपाडिया से 1973 में शादी कर ली | चांदनी रात में समुन्दर के किनारे दोनों की लव स्टोरी ने उस दौर में खूब सुर्खियाँ बटोरी और कई लडकियों के दिल को भी तोड़ दिया | 1984 में डिम्पल भी उनसे अलग हो गयी | राजेश खन्ना का नाम एक दौर में सौतन की नायिका टीना मुनीम से भी जुड़ा जिनके साथ उन्होंने अधिकार, फिफ्टी फिफ्टी , बेवफाई ,सुराग जैसी फिल्में भी की |
अमिताभ बच्चन के उभार ने राजेश खन्ना का जादू फींका कर दिया | 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की तो वहीँ ढलते दौर में उन्होंने सफ़ल फिल्म सौतेला भाई , आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, प्यार ज़िन्दगी है, वफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली।राजीव गाँधी के अनुरोध पर वह नब्बे के दशक में पहली बार राजनीती में आये और लालकृष्ण आडवानी, शॉट गन सरीखे लोगो को कड़ी टक्कर दी और नई दिल्ली से लोक सभा सांसद भी बनें |बाद में फिल्मो की तरह राजनीती का मैदान भी उन्हें रास नही आया और जल्द तौबा करने में भी देरी नहीं लगाई | 2005 में उन्हें उनके शानदार अभिनय के लिए ‘ फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया | काका ने अपने दौर में अभिनय से जिस बुलंदियों को छुआ वहां तक किसी भी कलाकार का पहुचना आसान नहीं है |
जून 2012 में यह सूचना आयी कि राजेश खन्ना पिछले कुछ दिनों से काफी अस्वस्थ चल रहे हैं| 23 जून 2012 को उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिल रोगों के उपचार हेतु लीलावती अस्पताल ले जाया गया जहाँ सघन चिकित्सा कक्ष में उनका उपचार चला और वे वहाँ से 8 जुलाई 2012 को डिस्चार्ज हो गये। उस समय वह पूरी तरह स्वस्थ हैं, ऐसी रिपोर्ट दी गयी थी | 14 जुलाई 2012 को उन्हें मुम्बई के लीलावती अस्पताल में पुन: भर्ती कराया गया और 18 जुलाई 2012 को सुपरस्टार राजेश खन्ना ने आंखरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कहा | रोमांटिक हीरो के रूप में काका आज भी हमारे दिलो में बसते हैं | हिंदी सिनेमा का यह आनंद भले ही आज हमारे बीच नहीं हो लेकिन उसका किरदार कभी मरेगा नहीं |
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