Monday, 12 May 2025

पत्रकारिता के प्रथम प्रतीक नारद मुनि



हिंदू पौराणिक कथाओं में नारद मुनि को एक ऐसी शख्सियत के रूप में जाना जाता है, जो सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में माहिर थे। वे देवताओं, असुरों, और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक की भूमिका निभाते थे। उनकी यह विशेषता उन्हें "आदि पत्रकार" की उपाधि देती है। नारद न केवल सूचना के वाहक थे, बल्कि वे समाज में जागरूकता फैलाने और सत्य को उजागर करने में भी निपुण थे।  नारद को  अगर हम विस्तार से समझें  तो पता चलता  है कि उनका प्रत्येक संवाद  जनकल्याण के लिए था।

 गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापंडि़त, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नारद मुनि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई, जिसके कारण उन्हें "मानस पुत्र" कहा जाता है। नारद मुनि का जीवन भक्ति, तप, और ज्ञान का अनुपम उदाहरण है।कथाओं के अनुसार, नारद का जन्म एक दासी के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया, जिसके बाद उन्होंने भक्ति और तप में रुचि ली। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ, और वे ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुए।नारद मुनि ने भक्ति मार्ग को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और "नारायण-नारायण" का जाप करते हुए तीनों लोकों में विचरण करते थे। उनकी वीणा, जिसे "महती" कहा जाता है, भक्ति और संगीत का प्रतीक है। नारद मुनि ने "नारद भक्ति सूत्र" की रचना की, जो भक्ति के सिद्धांतों को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके अलावा, उन्होंने "नारद पंचरात्र" और "नारद संहिता" जैसे ग्रंथों के माध्यम से धर्म और ज्ञान का प्रसार किया।

नारद मुनि के भक्तिसूत्र भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का एक अनमोल ग्रंथ है, जो भक्ति के तत्वों को सरल और गहन रूप में प्रस्तुत करता है। यह सूत्र न केवल आध्यात्मिक जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि आधुनिक संदर्भों, जैसे पत्रकारिता, में भी प्रासंगिकता रखता है। पत्रकारिता, जो समाज का दर्पण और जनमानस को दिशा देने वाला माध्यम है, नारद के भक्तिसूत्र से प्रेरणा लेकर निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और मानवीय मूल्यों को सुदृढ़ कर सकती है।नारद भक्तिसूत्र में सत्य को भक्ति का आधार माना गया है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य भी सत्य को उजागर करना है। एक पत्रकार, जो नारद के सिद्धांतों से प्रेरित हो, सनसनीखेज खबरों या पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से बचेगा और तथ्यों को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करेगा। सूत्र 25 में नारद कहते हैं:"तद्विस्मरणात् संसारदुःखं"अर्थात, सत्य को भूलने से संसार में दुख उत्पन्न होता है। पत्रकारिता में असत्य या भ्रामक जानकारी का प्रसार समाज में अराजकता और अविश्वास को जन्म देता है। इसलिए, पत्रकार को सत्य के प्रति अटूट भक्ति रखनी चाहिए।

नारद भक्ति को निष्काम कर्म से जोड़ते हैं, जहां कार्य बिना स्वार्थ के किया जाता है। पत्रकारिता में भी निष्पक्षता और निष्काम भाव आवश्यक है। एक पत्रकार को व्यक्तिगत लाभ, राजनीतिक दबाव या कॉरपोरेट हितों से ऊपर उठकर केवल समाज के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए। सूत्र 19 में नारद कहते हैं "न तद् भक्तिर्व्यसनं यथा"अर्थात, भक्ति कोई व्यसन या लत नहीं है, बल्कि वह पूर्ण समर्पण है। पत्रकारिता को भी सनसनी या लोकप्रियता की लत से मुक्त होकर समाज के प्रति समर्पित होना चाहिए।भक्तिसूत्र में करुणा और प्रेम को भक्ति के अभिन्न अंग बताया गया है। पत्रकारिता में भी मानवीय संवेदनाओं का सम्मान आवश्यक है। उदाहरण के लिए, आपदा या व्यक्तिगत त्रासदी की खबरों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करना पत्रकार का कर्तव्य है। नारद का यह सिद्धांत पत्रकारों को स्मरण दिलाता है कि उनकी कलम से निकला प्रत्येक शब्द समाज पर गहरा प्रभाव डालता है।नारद भक्तिसूत्र में आत्मसंयम और नैतिक आचरण पर बल दिया गया है। पत्रकारिता में भी नैतिकता का पालन अनिवार्य है। चाहे वह स्रोतों की गोपनीयता हो, तथ्यों की सत्यता हो, या किसी की निजता का सम्मान, पत्रकार को नारद के सूत्रों से प्रेरणा लेकर अपने आचरण को शुद्ध रखना चाहिए। सूत्र 66 में नारद कहते हैं:"सङ्गत्यागात् सत्सङ्गति"अर्थात, कुसंगति का त्याग कर सत्संगति अपनानी चाहिए। पत्रकार को भी भ्रष्टाचार, पक्षपात या अनैतिक प्रथाओं से दूरी बनाकर सत्य और नैतिकता के मार्ग पर चलना चाहिए।

 आधुनिक पत्रकारिता में टीआरपी, डिजिटल क्लिकबेट, और कॉरपोरेट दबाव जैसे कारक सत्य और नैतिकता को चुनौती देते हैं। फिर भी, नारद का यह सूत्र प्रेरणा देता है:"भक्तिरेवैनं नयति" (सूत्र 54)अर्थात, भक्ति ही अंततः मार्ग दिखाती है। पत्रकार, जो सत्य और समाज के प्रति भक्ति भाव रखता है, वह इन चुनौतियों को पार कर सकता है।नारद के भक्तिसूत्र पत्रकारिता के लिए एक आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शक की तरह कार्य करते हैं। सत्य, निष्पक्षता, करुणा और आत्मसंयम जैसे सिद्धांत पत्रकारिता को न केवल एक पेशा, बल्कि समाज के प्रति एक पवित्र कर्तव्य बनाते हैं। नारद का यह संदेश कि भक्ति परम प्रेम और समर्पण है, पत्रकारों को प्रेरित करता है कि वे अपनी कलम को सत्य और मानवता की सेवा में समर्पित करें। आज के युग में, जब पत्रकारिता पर विश्वास का संकट मंडरा रहा है, नारद के भक्तिसूत्र एक प्रेरणादायी प्रकाशस्तंभ की तरह हैं, जो इस पेशे को पुनः सम्मान और विश्वसनीयता की ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।  देवर्षि नारद के  संचार का पूर्ण  अध्ययन किया जाए तो हम पाते हैं उनका पूरा संवाद लोककल्याण के लिए था।  

नारद को भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता है। पुराणों के अनुसार, वे ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई। नारद का व्यक्तित्व जटिल और बहुआयामी है। वे एक तपस्वी, गायक, कथावाचक, और संगीतज्ञ हैं, जो अपनी वीणा के साथ भक्ति भजनों का गायन करते हैं। उनकी त्रिलोक भ्रमण की आदत उन्हें हर जगह सूचनाएँ एकत्र करने और उन्हें जरूरतमंदों तक पहुँचाने में सक्षम बनाती है।नारद की विशेषता उनकी वाक्पटुता और बुद्धिमत्ता है। वे अपनी बात को इस तरह प्रस्तुत करते थे कि वह सुनने वाले पर गहरा प्रभाव छोड़ती थी।  नारद मुनि को संदेशवाहक के रूप में भी जाने जाते थे। वे देवताओं, दानवों, और मनुष्यों के बीच संवाद स्थापित करते थे। उनकी बुद्धिमत्ता और कूटनीति ने कई पौराणिक घटनाओं को प्रभावित किया।

नारद की पत्रकारिता के कई गुण आज भी प्रासंगिक है। नारद सूचनाओं को त्वरित और सटीक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाते थे। वे त्रिलोक (स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल) में स्वतंत्र रूप से विचरण करते थे, जिससे उन्हें हर घटना की जानकारी रहती थी।नारद किसी एक पक्ष के प्रति पूरी तरह झुके हुए नहीं थे। वे देवताओं और असुरों दोनों के साथ संवाद करते थे और सत्य को प्राथमिकता देते थे।उनकी वाणी में जादू था। वे अपनी बात को इस तरह प्रस्तुत करते थे कि वह सुनने वाले को विचार करने पर मजबूर कर दे। नारद ने कई अवसरों पर समाज में जागरूकता फैलाई। उदाहरण के लिए, भगवान विष्णु की भक्ति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई कथाएँ और भजन गाए।

आज के डिजिटल युग में पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है लेकिन  नारद के गुण और उनकी संचार की क्षमता से सभी पत्रकारों को एक नई  प्रेरणा मिलती है । उनकी निष्पक्षता, त्वरित सूचना संप्रेषण, और समाज को जागरूक करने की क्षमता आधुनिक पत्रकारों के लिए एक आदर्श है। नारद की पत्रकारिता हमें यह भी सिखाती है कि पत्रकारिता में सनसनीखेज खबरें फैलाने से हर हाल में बचना चाहिए और सत्य को संतुलित रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।नारद मुनि न केवल एक पौराणिक चरित्र हैं, बल्कि वे पत्रकारिता के प्रथम प्रतीक भी हैं। उनकी सूचना संप्रेषण की कला, निष्पक्षता और समाज को जागरूक करने की क्षमता उन्हें आदि पत्रकार के रूप में अमर बनाती है। आज के पत्रकारों को नारद से यह सीख लेनी चाहिए कि सत्य और निष्पक्षता ही पत्रकारिता का मूल आधार है। 

Wednesday, 7 May 2025

मोहन सरकार की जल संरक्षण की अनुपम पहल जल गंगा संवर्धन अभियान

जल का उचित उपयोग और संरक्षण न केवल हमारे आज के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार का जल गंगा संवर्धन अभियान एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह अभियान जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।यह अभियान राज्य के जल स्रोतों, नदियों, तालाबों और जलाशयों की रक्षा और पुनर्जीवन पर केंद्रित है। जल संरक्षण को जन-आंदोलन का रूप देने और भूजल स्तर में सुधार लाने की दिशा में यह एक  महत्वपूर्ण कदम है। 30 मार्च 2025 से शुरू होकर 30 जून 2025 तक चलने वाला यह 90-दिवसीय अभियान उज्जैन की पवित्र क्षिप्रा नदी के तट से शुरू हुआ, जिसका समापन भी उज्जैन में ही होगा।

इस अभियान के तहत न केवल जल स्रोतों की सफाई और पुनर्जीवन पर काम किया जा रहा है, बल्कि जल संचयन के उपायों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत  पुराने जलाशयों और तालाबों की सफाई और पुनर्निर्माण किया जा रहा है ताकि जल  को संरक्षित किया जा सके। जल गंगा संवर्धन अभियान का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों का संरक्षण और पुनर्जनन, भूजल स्तर में वृद्धि, और जल संरक्षण के प्रति बढ़ाना है। इस अभियान के तहत जहाँ प्रदेश भर में  पुराने तालाबों, कुओं, बावड़ियों और नदियों की सफाई और गहरीकरण किया जा रहा है वहीँ  नई जल संरचनाओं का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है। वर्षा जल को संग्रहित करने की दिशा में पूरे प्रदेश में इस समय गंभीर  प्रयास हो रहे हैं। राज्य में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए जल गंगा अभियान के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा शहरों और ग्रामीण इलाकों में वर्षा जल संचयन के लिए टैंक का निर्माण किया जा रहा है, ताकि मानसून के दौरान पानी का संचयन किया जा सके और जल संकट को रोका जा सके। जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पौधारोपण पर विशेष जोर दिया जा रहा है।  युवा पीढ़ी को जल संरक्षण के महत्व को समझाने के लिए रैलियाँ, जल चौपाल, और प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं।

 जल गंगा संवर्धन अभियान का व्यापक प्रभाव मध्यप्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस अभियान की सबसे बड़ी विशेषता जन-भागीदारी है। सरकार ने इसे केवल सरकारी आयोजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विभिन्न सामाजिक संगठनों, ग्राम विकास समितियों और आम नागरिकों को इसमें शामिल किया है। प्रदेश में 1.06 लाख जल दूत तैयार किए गए हैं जो जल स्रोतों के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। ये जलदूत स्थानीय स्तर पर जल संरचनाओं के रख-रखाव और जल संरक्षण का कार्य करेंगे। धार जिले में ग्राम विकास प्रस्फुरण समितियों ने श्रमदान के माध्यम से तालाबों और कुंडों की सफाई की जिससे सामुदायिक सहभागिता को बल मिला है। सरकारी विभागों के साथ-साथ एनजीओ और स्थानीय समाज से जुड़े लोग भी इस अभियान का हिस्सा बनकर जल संरक्षण में सहयोग दे रहे हैं। गांवों में जल संरक्षण समितियाँ बनाकर उन्हें सक्रिय किया गया है। 

 अभियान के तहत  प्रदेश भर में जल संरक्षण के अनेक कार्य किये जा रहे हैं। बालाघाट जिले में सर्वाधिक 561 खेत तालाब बनाए गए हैं। प्रदेश में अनूपपुर जिला 275 खेत तालाब बनाकर दूसरे क्रम और अलीराजपुर जिला 216 खेत तालाब बनाकर तीसरे क्रम पर है। अमृत सरोवर निर्माण के लिए सिवनी जिले में सबसे अच्छा कार्य हुआ है। टीकमगढ़ में 70 प्राचीन तालाबों और 10 बावड़ियों के निकट क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाकर उन्हें स्वच्छ और सुंदर बनाने का कार्य हो रहा है। सागर में नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य भी किए जा रहे हैं। उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग में अभियान के तहत जल संरक्षण से संबंधित अनेक कार्यों को किया जा रहा है। आदिवासी झाबुआ जिले में कुओं की सफाई से जल स्तर में अपेक्षित सुधार हुआ है। यह  अभियान न केवल जल संकट से निपटने में सहायक होगा, बल्कि किसानों के लिए सिंचाई और पेयजल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा।

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है जल प्रकृति का अमूल्य उपहार है जिसका संरक्षण और संवर्धन करना हम सभी की जिम्मेदारी है। हम अगर जल की बूंद-बूंद बचाएंगे, तभी हमारी सांसें बचेंगी। जल गंगा संवर्धन अभियान मध्यप्रदेश सरकार की एक दूरदर्शी पहल है, जो जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही है। यह अभियान न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए जल संकट का समाधान प्रस्तुत करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित और समृद्ध कल सुनिश्चित करता है।

Thursday, 24 April 2025

धरती के स्वर्ग पर दहशत


अपनी  नैसर्गिक प्राकृतिक सुषमा और सुंदरता के लिए दुनिया भर में  पहचाने जाने वाले जम्मू कश्मीर के  पहलगाम में आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि ने एक बार फिर हमारी सुरक्षा व्यवस्था, सामाजिक ताने-बाने और पर्यटन उद्योग पर कई  गंभीर सवाल खड़े किए हैं।  इस आतंकवादी घटना  ने एक बार फिर से हमें झकझोर दिया है। 2019 में पुलवामा अटैक के बाद कश्मीर में यह अब तक का  सबसे बड़ा हमला था जिसमें निशाने पर पर्यटक थे ।   

इस आतंकी  घटना ने  25 बरस पहले छत्तीसिंहपुरा नरसंहार की याद ताजा कर दी है। आतंकियों ने  पहलगाम से करीब 6 किलोमीटर की दूरी के  बैसरन के जिस  इलाके को निशाना बनाया, यह इलाका घने देवदार के पहाड़ों से घिरा घास का बड़ा मैदान है। आतंकियों ने इस जगह को इसलिए चुना क्योंकि यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। खूबसूरत कश्मीर की फिज़ा  को बिगाड़ने के लिए आतंकियों ने इस जगह को चुना। इन हमलों की प्रकृति में सुनियोजित रणनीति  स्पष्ट दिखाई देती है।  द रेजिस्टेंस फ्रंट  नाम के संगठन ने इस हमले  जिम्मेदारी ली है जो लश्कर-ए-तैयबा की ही एक  फ्रेंचाइजी है। आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा  न केवल सुरक्षाबलों को निशाना बना रहे हैं, बल्कि पर्यटकों और प्रवासी मजदूरों  पर भी हमले कर रहे हैं। भारत के खिलाफ  होने वाली हर  साजिश  को अंजाम देने में उसे पाक की सेना और कट्टरपंथी सगठनों  का पूरा सहयोग मिल रहा है । यह तो बानगी भर है।  जैश , हिज्बुल और लश्कर का पाक में अभी भी एक बड़ा नेटवर्क है। दुखद है जम्मू-कश्मीर में  किसी भी बड़ी आतंकी घटना के तार सीधे इन्ही संगठनों से मिलते है और ये खुद ही आतंकी हमलों में अपनी संलिप्तता से पीछे नहीं हटते। 

 पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है। वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली  है।  असल नियंत्रण सेना का हर जगह है। पाक  यह महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा नहीं सुलझ पाएगा। पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और  आतंक के खिलाफ ठोस ऐक्शन लेने की जरूरत है।  

2019 में धारा 370 के निरस्त होने के बाद  भारत सरकार ने दावा किया था कि जम्मू कश्मीर में शांति और स्थिरता स्थापित होगी  लेकिन इस तरह की आतंकी  घटनाएँ बताती हैं कि आतंकवादी गतिविधियाँ फिर से बढ़ रही हैं।  सीमा पार से घुसपैठ और स्थानीय पर सहयोग इन हमलों का प्रमुख कारण हैं। आतंकी हमले हमारे सामाजिक सौहार्द को  भी प्रभावित करते हैं।  पर्यटकों को निशाना बनाए जाने से विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास और भय का माहौल बन सकता है।जम्मू और कश्मीर में देशी-विदेशी सैलानियों की तादाद पिछले वर्षों में लगातार बढ़ रही है। सड़क, रेल और हवाई यातायात के माध्यमों यह पूरे देश से जुड़ चुका है। बीते बरस  2.35 करोड़ से अधिक पर्यटक जम्मू-कश्मीर पहुंचे, जबकि अमरनाथ यात्रा में 5 लाख श्रद्धालु शामिल हुए।  यही  विकास आतंकियों  को खटक रहा है। जिस कश्मीर को आर्टिकल 370 खत्म होने से पहले डर की भावना से देखा जाता था, वह अब पर्यटकों को लुभा रहा  है। श्रीनगर का लाल चौक जहां कभी अलगाववादी देश विरोधी रैलियां निकालते थे, वहां अब सब खुली हवा में साँस ले सकते  हैं। ऐसे में  आतंकियों ने पर्यटकों  पर निशाना बनाकर उनके मन में फिर से खौफ पैदा करने की कोशिश की है । 

आने वाले महीनों में पवित्र अमरनाथ यात्रा भी शुरू होनी है और उससे पहले माहौल बिगाड़ने से पूरी दुनिया का ध्यान कश्मीर पर एक बार फिर से केंद्र में  आ  सकता है। पहलगाम आतंकी हमले को सिर्फ एक घटना मानना भूल होगी, क्योंकि यह हमला पाकिस्तान की नई स्ट्रैटेजी का हिस्सा भी हो सकता है। इस रणनीति का उद्देश्य  है जम्मू क्षेत्र से होकर आतंकियों को भारत में प्रवेश कराना और धर्म के नाम पर नई दहशत फैलाना जिससे कश्मीर में आतंक की तसवीरें दिखाकर  भारत की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देना है।  

खुफिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान की ओर से जम्मू सेक्टर के सामने 32 लॉन्च पैड्स में करीब 100 आतंकवादी घुसपैठ के लिए तैयार बैठे हैं, वहीं कश्मीर के सामने 10 लॉन्च पैड्स में सैकड़ों आतंकियों की मौजूदगी है।  2023 में 125 ड्रोन सीमा पार से भेजे गए, जबकि 2024 में यह संख्या 300 तक पहुंच चुकी है।  इन ड्रोन्स के जरिए हथियार, विस्फोटक और संचार उपकरण पहुंचाए जा रहे हैं। 2022 में जहां 107 आतंकी घटनाएं हुई थीं, वहीं 2023 और 2024 में यह आंकड़ा घटकर क्रमशः 27 और 26 पर आ गया लेकिन पहलगाम से एक बार फिर जम्मू -कश्मीर  में आतंक और हिंसा का नया तांडव शुरू हो सकता है।   इस तरह पर्यटकों पर किये हमलों से जम्मू कश्मीर के  पर्यटन उद्योग को गहरा आघात पहुँच सकता है। इस मौसम में पर्यटन सीज चरम पर  रहता है। ऐसे  हालातों में  हुए इन हमलों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है शायद इस घटना के बाद शायद पर्यटक कश्मीर का  रुख करने से कतराने लगें। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात को दोहराया है कि हमलावरों को कड़ी  सजा दी जाएगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर में आपातकालीन बैठक बुलाकर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की है । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी आज कहा है हमला करने वालों को करारा जवाब मिलेगा ऐसा जवाब मिलेगा जो पूरी दुनिया देखेगी।  हम हर जरूरी कदम उठाएंगे। भारत को डराया नहीं जा सकता। यह बयान भारत की तरफ से अभी तक का एक  कड़ा  बयान नजर आता है।  

 पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर ने कश्मीर को लेकर अभी एक हफ्ते पहले ही अपना बयान दिया था।पहलगाम में पर्यटकों की इतनी बड़ी संख्या में निर्मम हत्या के पीछे सीधे-सीधे पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष असीम मुनीश की रणनीति भी हो सकती है। उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान की ‘गले की नस’ बताया था। उन्होंने ‘टू नेशन थ्योरी’ का जिक्र करते हुए हिंदुओं के खिलाफ नफरती बयान देते हुए कहा था कि पाकिस्तानियों को नहीं भूलना चाहिए कि हम उनसे अलग हैं।  उनके इस बड़े बयान कहीं न कहीं आतंकवादियों के लिए एक संदेश का काम किया है कि जम्मू-कश्मीर को रक्तरंजित करने के लिए यही माकूल वक्त है। इस तरह की घटनाओं की दहशत बहुत ज्यादा होती है और पूरी दुनिया तक संदेश पहुंचाया जा सकता है कि कश्मीर में अब भी कुछ नहीं बदला है। इस हमले से  आतंकियों ने अमेरिका को भी संदेश देने की कोशिश की  है कि कश्मीर अभी भी शांत नहीं हुआ है। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की समस्या जटिल  है। इसके समाधान के लिए  खुफिया जानकारी के आधार पर त्वरित कार्रवाई, ड्रोन और सैटेलाइट निगरानी, और स्थानीय पुलिस की क्षमता में वृद्धि आतंकी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकती है। स्थानीय स्तर पर सहयोग मिले बिना आतंकी किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दे सकते यह हमें समझने की आज आवश्यकता है। 

 स्थानीय  लोग आतंकवादियों को गुप्त सूचनाएं प्रदान करते हैं और उन्हें छिपाने में मदद करते हैं।  युवाओं को रोजगार और शिक्षा के नए  अवसर प्रदान करके उन्हें आतंकी संगठनों की भर्ती से दूर रखा जा सकता है। स्थानीय समुदायों के साथ संवाद भी इस दिशा में महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत करके सीमा पार से आतंकवाद को प्रायोजित करने की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

जम्मू और कश्मीर में 2024 के आखिर में ही वर्षों के अंतराल के बाद एक लोकतांत्रिक सरकार बनी है। ऐसे समय में यह हमला और भी चिंताजनक है।जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएँ न केवल सुरक्षा के लिहाज से बड़ी  चुनौती हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए भी खतरा हैं। इनका समाधान त्वरित सैन्य कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय जगत को  विश्वास  में लेकर ही  संभव है। आतंकवादी  भारत में आतंकी हमलों के साथ धार्मिक अलगाव भी पैदा करना चाहते हैं। पाकिस्तान की इस  चाल को समझते हुए देश में अमन-चैन बनाए रखना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार और हमारी सेना आतंकियों के खिलाफ बड़ा एक्शन लेगी। हमारी सभी सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट मॉड पर हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूरी स्थिति पर निगाह रखे हुए हैं।

 इस संवेदनशील मौके पर सभी राजनीतिक दलों को एकजुटता दिखानी होगी। पाकिस्तान के मंसूबों को विफल करने और उसे कड़ा जवाब देने की रणनीति पर इस समय  काम करना होगा। सरकार और नागरिकों को मिलकर इस खूबसूरत क्षेत्र को आतंकवाद के साये से मुक्त करना होगा, ताकि यहाँ शांति, समृद्धि और सामंजस्य का नया युग शुरू हो सके।

Tuesday, 25 March 2025

मोहन की मुस्कान हृदयप्रदेश में भर रही विकास की नई उड़ान


सियासत में बहुत कम ऐसे चेहरे हुए हैं जो अपनी सादगी, सौम्यता, सरलता और मनमोहनी मुस्कान के लिए जाने जाते हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में आप डॉ.मोहन यादव को एक विनम्रशील, व्यवहारकुशल जननेता के तौर पर देख सकते हैं। ऐसे दौर में जब राजनीति में जनसेवा करने वालों सेवाभावी लोगों की कमी होती जा रही है, उस समय डॉ. मोहन यादव जैसे नेता समाज के लिए रोल मॉडल बन जाते हैं।मौजूदा दौर की राजनीती में पारिवारिक पृष्ठभूमि से सियासत में आना बहुत आसान है लेकिन मूल्यों की राजनीति करते हुए जमीन से उठकर अपनी प्रतिभा के दम पर कम समय में देश के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों की श्रेणी में अपनी जगह बनाना इतना भी आसान नहीं है। डॉ.मोहन यादव ने अपने संघर्ष और जनता के प्रति समर्पण से मध्यप्रदेश की राजनीती में एक नया मुकाम हासिल किया है जिसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती। सही मायनों में अगर किसी ने मध्यप्रदेश में बीते एक बरस में किसी ने सुशासन की बयार बहाई है तो वो नाम डॉ.मोहन यादव है।

भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य एक महान राजा के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका शासन भारतीय उपमहाद्वीप के स्वर्णिम काल का प्रतीक माना जाता है जो उन्हें एक आदर्श शासक के रूप में स्थापित करता है। राजा विक्रमादित्य का उद्देश्य हमेशा जनकल्याण रहा। उनके शासनकाल में बुनियादी ढांचे का विकास बेहतरीन ढंग से हुआ। उन्होंने गरीब और असहाय लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ बनाई जो लोककल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करता था। वे अपने राज्य की स्थिति और लोगों की जरूरतों को समझते हुए नीतियाँ बनाते थे। प्रजा के प्रति अनुराग ने उन्हें भारतीय इतिहास का एक महान शासक बना दिया था। सही मायनों में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उन्हीं पगचिह्नों लीक पर चलते हुए गौरवशाली मध्यप्रदेश के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं।

विनयशीलता, कर्मों में कुशाग्रता,बेहतरीन विजन, सकारात्मकता से ओत प्रोत नजर आने वाली मनमोहनी मुस्कान सहित तमाम नीति निपुणता उनकी कार्यशैली को सुन्दर बनाती है और यही अलहदा पहचान उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है। डॉ. मोहन यादव का जन्म उज्जैन में एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता पूनमचंद यादव बहुत मेहनती व्यक्ति थे जिन्होंने परिवार के बेहतर पालन-पोषण के लिए मिल में मजदूरी कर कठिन परिश्रम किया। उनकी माता लीलाबाई यादव ने घर को संभाला और अपने बच्चों में समाजसेवा के संस्कारों का बीज बोया। डॉ. मोहन यादव का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था लेकिन अध्ययन के लिए वह कठोर परिश्रम करने से कभी नहीं घबराए जिसके चलते बचपन से उनकी नींव मजबूत बन गई। उज्जैन की गलियों में बचपन में अठखेलियां करते और बाबा महाकाल के आशीर्वाद से उन्होंने समाजसेवा की अकेली राह चुनी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों से उनकी सोच पुष्पित और पल्लवित हुई। उज्जैन के धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय ने उनकी सोच को संवेदनशील बनाया। वे अक्सर अपने ओजस्वी भाषणों में उज्जैन के बाबा महाकाल की गौरवशाली परंपराओं का उल्लेख करते नजर आते हैं, जो महाकाल से उनके जीवन के गहरे जुड़ाव को बतलाता है। यही वजह है उज्जैन को मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बनाने की दिशा में वह मजबूती के साथ अपनी कदमताल करते नजर आते हैं।

डॉ. मोहन यादव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन के स्थानीय स्कूलों से पूर्ण की। इसके बाद उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से विज्ञान में स्नातक (बी.एससी.) की डिग्री हासिल की। विज्ञान के प्रति उनकी रुचि ने उनकी विश्लेषणात्मक सोच को नया आकर देने का कार्य किया वहीं इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की जिसने उनकी राजनीतिक समझ को गहरा करने का कार्य किया। उन्होंने कला में स्नातकोत्तर राजनीती विज्ञान और प्रबंधन में मास्टर्स (एमबीए) की डिग्री भी ली, जिसने उन्हें नीति निर्माण और प्रबंधन में कुशल बनाया। उनकी शैक्षिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव एमपी की शिवराज सरकार के गवर्नेंस में पीएचडी डिग्री का था, जिसने उन्हें एक गंभीर चिंतक के रूप में स्थापित किया। उनकी यह बहुमुखी प्रतिभा उन्हें प्रदेश के अन्य नेताओं से अलग करती है। विज्ञान, कानून, प्रबंधन, राजनीती और दर्शन का यह समन्वय उन्हें एक दूरदर्शी और प्रभावी नेता के रूप में स्थापित करता है।

डॉ. मोहन यादव ने काफी संघर्ष के बाद राजनीति में मुकाम हासिल किया है।डॉ. मोहन यादव को एक आदर्श पत्नी के रूप में सीमा यादव मिली जो उनके जीवन की हर परिस्थितियों में मजबूत संबल बनी रही। उनका पारिवारिक जीवन सादगी से भरा हुआ है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे अपने परिवार के साथ संयम से रहते हैं। आज भी उनका परिवार जहां उज्जैन के सामान्य घर में रहता है वहीं डॉ. यादव खुद मुख्यमंत्री निवास में अकेले रहते हैं लेकिन उनके बच्चे सीएम हाउस में नहीं रहते हैं। उनका एक बेटा भोपाल में पढ़ रहा है। उसने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब एमएस कर रहा है। उनकी बेटी ने भी भोपाल से ही एमबीबीएस की पढ़ाई की। पिता के सीएम होने के बाद भी पुत्र और पुत्री भोपाल के सीएम हाउस समत्व में नहीं रहकर खुद हॉस्टल में रहते हैं। डॉ. यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकी जनसेवा और सामाजिक कार्यों में झलकती है।मुख्यमंत्री का पद मिलने के बाद से लगातार नए उदाहरण पेश कर रहे डॉ. मोहन यादव अपनी सादगी की कई मिसाल पेश कर चुके हैं। सीएम डॉ. मोहन यादव अपने बेटे वैभव के विवाह के लिए राजस्थान के पुष्कर पहुंचे जिस कार्यक्रम को पूरी तरह से निजी रखा गया और दोनों परिवारों के बेहद नजदीकी परिजन ही इस विवाह कार्यक्रम में शामिल हुए। डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए दिन रात प्रदेश के विकास कार्य करते हुए अपने बेटे वैभव की शादी के सभी कार्यक्रमों में भी सहभागिता की और किसी भी दिन अवकाश नहीं लिया।

डॉ. मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में विकास, सुशासन और जनकल्याण को प्राथमिकता देकर मध्य प्रदेश में एक नई पहचान बनाई है। उनकी मेहनत और दूरदर्शिता ने उन्हें न केवल भाजपा के एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है बल्कि  आने वाले वर्षों में उनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश को नई ऊँचाइयाँ हासिल करने की उम्मीद है। अपने एक बरस से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में डॉ. मोहन यादव ने कई विकास कार्यों को बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया है। विकसित भारत संकल्प यात्रा में 2 करोड़ से अधिक लोगों की भागीदारी हुई जिसमें 54 लाख से अधिक लोगों को विभिन्न योजनाओं का लाभ मिला। स्वामित्व योजना, मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना, हुकुमचंद मिल मजदूरों के समाधान जैसे कदमों ने सामाजिक न्याय को मजबूत करने का काम किया है। धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में श्रीराम वन गमन पथ, श्रीकृष्ण पाथेय, विक्रम संवत, वैदिक घड़ी की पुनर्स्थापना जैसे उनके सधे हुए कदमों ने मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर को नई ऊर्जा दी। मप्र में राजस्व महाअभियान भी चला,डिजिटल क्रॉप सर्वेक्षण भी किया गया जिसमें सीएम के निर्देश पर लाखों प्रकरणों का निपटारा हुआ। श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर पूरे प्रदेश में दीपावली मनाई गई, जो सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक बनी। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी अनेक पहल हुई जिससे प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान मजबूत हुई। एक साल से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में मोहन सरकार की बेहतर औद्योगिक नीतियों, बुनियादी सुविधाओं और बेहतर कनेक्टिविटी ने प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर न केवल इंडस्ट्री के लिए नई राह खोल दी है बल्कि इसने स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन की संभावनाओं को तेजी से बढ़ाने का काम किया है। जीआईएस 2025 के सफल आयोजन से डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को दुनिया के नक़्शे पर चमका दिया। इस आयोजन ने निवेशकों के लिए कई ऐसे अवसर पैदा किए जो न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को भविष्य में मजबूत बनाएँगे बल्कि देश के समग्र विकास में भी अहम योगदान देंगे। इस समिट ने हृदयप्रदेश एमपी को निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना दिया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने ब्रिटेन और जर्मनी की यात्रा कर मिशन निवेश को आगे बढ़ाया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश की पहचान एक निवेश-अनुकूल राज्य के रूप में मजबूत हुई। उनकी नीतियों ने औद्योगिकीकरण और शहरी विकास को प्राथमिकता दी, जो भविष्य में आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखेगा।

मध्यप्रदेश के गरीब और मध्यमवर्ग के परिवारों ने कभी नहीं सोचा होगा परिवार में कोई सदस्य अगर बीमार पड़ गया तो उसे एयर एम्बुलेंस जैसी सुविधा मिलेगी लेकिन डॉ. मोहन ने अपने कार्यकाल में दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ बनाया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में 30 नए मेडिकल कॉलेज खोले गए और जल्द ही इनकी संख्या 50 तक पहुंचने की योजना है। यह कदम प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। शिक्षा के क्षेत्र में भी नवाचार और गुणवत्ता पर जोर दिया गया, जो युवाओं के भविष्य को संवारने में सहायक होगा। सिविल सेवाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण को 33% से बढ़ाकर 35% करने का उनका निर्णय ऐतिहासिक रहा। एक लाख से अधिक महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य हासिल किया गया जो महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। प्रदेश में स्मार्ट सिटी मिशन और स्वच्छ भारत सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल परियोजनाओं का निर्माण तेजी से चल रहा है जिसकी कुल लागत 14,440 करोड़ रुपये है। आयुष्मान भारत योजना के तहत 4 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड वितरित किए गए जिससे मध्यप्रदेश इस क्षेत्र में देश में अग्रणी बन गया साथ ही 70 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को भी इस योजना का लाभ देने की पहल शुरू की गई। प्रदेश में धर्मांतरण या रेप करवाने वालों को सीधे फांसी पर लटकाने के बड़े निर्णय से उन्होंने प्रदेश में एक नई नजीर पेश करने की कोशिश की है।

डॉ. यादव ने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए कई कड़े फैसले लिए। तेज लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध और खुले में मांस बिक्री पर रोक जैसे कदम पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाते हैं। इसके साथ ही जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्जनन के लिए अभियान चलाया गया। जल गंगा संवर्धन अभियान अब इसी कड़ी में 30 मार्च गुड़ी पड़वा पर्व से चलना है। केन-बेतवा और पार्वती-कालीसिंध-चंबल जैसी वृहद परियोजनाओं को मंजूरी मिलने से हरित खेत-खलिहानों की दिशा में मजबूत कदम उठे हैं। एक पेड़ मां के नाम अभियान ने भी जनभागीदारी के साथ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है।

पूरे प्रदेश में डॉ. मोहन यादव ने विकास और प्रशासनिक दक्षता के नए आयाम स्थापित किए हैं। उनके कार्यकाल ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में विशेष पहचान दिलाई है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने गुड गवर्नेंस के मॉडल को सभी के सामने पेश किया है जिसमें जनता के हितों की अनदेखी होनी फिलहाल तो मुश्किल दिखाई दे रही है।शिप्रा नदी को स्वच्छ और प्रवाहमान बनाने की योजना हो या सिंहस्थ 2028 की तैयारी इन प्रयासों से मध्यप्रदेश की प्राचीन विरासत को नई पहचान मिली है। मोहन मॉडल प्रदेश में सबकी जुबान पर चढ़ रहा है। एमपी की जनता भी उनके निर्णयों पर हामी भरती नजर आ रही है। पक्ष और विपक्ष भी उनकी नीतियों और काम करने के अलहदा अंदाज का का तोड़ नहीं निकाल पा रहा है। डॉ.मोहन यादव पार्टी के संकल्प पत्र में किये गए वायदों को पूरा करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन और मोदी की हर गारंटी पूरा करने के लिए डॉ. मोहन यादव ने अपनी ऊर्जा लगा दी है।

डॉ. यादव के नेतृत्व में भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत हासिल की। विशेष रूप से कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में भी विजय प्राप्त करना मौजूदा दौर में उनकी बड़ी राजनीतिक कुशलता का प्रमाण है। यह उपलब्धि उनकी लोकप्रियता और विजनरी नेतृत्व का परिचायक है। डॉ. मोहन यादव का अब तक का कार्यकाल एमपी के सुशासन, प्रगति और विकास का प्रतीक रहा है। उन्होंने चुनौतियों के बावजूद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित किया। उनकी नीतियां और निर्णय मोदी जी के विकसित भारत के संकल्प को साकार करने की दिशा में मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हैं। आने वाले समय में डबल इंजन सरकार के माध्यम से प्रदेश में विकास की गाड़ी तेजी से नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की उम्मीद की जा सकती है। सीएम के रूप में डॉ. यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को मध्यप्रदेश में लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध नजर आते हैं। अपने सुशासन और साहसिक फैसलों से आज मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने कद को डॉ. मोहन यादव ने नई बुलंदियों पर पहुंचाने का काम किया है। मध्यप्रदेश उनके नेतृत्व में प्रगति के पथ पर अग्रसर है। 25 मार्च 2025 को उनके 60वें  जन्मदिन पर उन्हें अशेष शुभकामनाएं। सुदिनं जन्मदिनं तव। भवतु मङ्गलं जन्मदिनम्।।

Wednesday, 19 March 2025

गौरैया के अस्तित्व पर गहराता संकट

विश्व गौरैया दिवस गौरैया के  महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 20 मार्च को मनाया जा रहा है। विकास की अत्याधुनिक चमचमाहट के बीच प्रकृति में गौरैया की  अनदेखी  हो रही है जो बड़ा चिंताजनक संकेत है। कभी हमारे आंगन में गौरैया की चहलकदमी होती थी आज वह सब सूने पड़े हुए हैं। विश्व गौरैया दिवस को मनाने की वजह गौरैया के अस्तित्व को बचाना है। 

विश्व गौरैया दिवस की अवधारणा की कल्पना एक भारतीय पर्यावरणविद् मोहम्मद दिलावर ने की थी। भारत और दुनिया भर में गौरैयों की आबादी में तेजी से गिरावट के बारे में चिंतित दिलावर ने 2005 में नेचर फॉरएवर सोसाइटी की स्थापना की जो घरेलू गौरैया और अन्य सामान्य वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध एक गैर-लाभकारी संगठन है। पहला विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च, 2010 को मनाया गया था। गिरती गौरैया की आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व गौरैया दिवस का बहुत महत्व है। यह दिन पर्यावरण के साथ गौरैया के परस्पर जुड़ाव, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देने पर जोर देता है। यह सामुदायिक जुड़ाव, शैक्षिक कार्यक्रमों और नीति की वकालत के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है,जिसमें गौरैयों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक प्रयासों का आग्रह किया जाता है।

घरेलू गौरैया दुनिया में सबसे व्यापक और सामान्य तौर पर देखा जाने वाला जंगली पक्षी है।इसे यूरोपीय लोगों द्वारा दुनिया भर में पहुँचाया गया और अब इसे न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, भारत और यूरोप सहित दुनिया के दो-तिहाई भूभाग पर देखा जा सकता है।यह केवल चीन, इंडो-चीन, जापान एवं साइबेरिया और पूर्वी व उष्णकटिबंधीय अफ्रीका आदि क्षेत्रों में अनुपस्थित है। दुनियाभर में गौरैया की दर्जनों प्रजातियां हैं लेकिन भारत में हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिउ स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेट सी स्पैरो व ट्री स्पैरों मिल जाती हैं जिनमें इनमें सबसे अधिक हाउस स्पैरो बहुतायत हैं। गौरैया एक बहुत छोटा पक्षी है जिसका वजन 25 से 40 ग्राम और लंबाईं 15 से 18 सेमी होती है जो 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है।

गौरैया मादाओं की तुलना में अधिक रंगीन होती हैं जिनके पंखों पर काले, सफेद और भूरे रंग के निशान होते हैं। गौरैया को उनके मधुर गीतों के लिए जाना जाता है, जिनका उपयोग वे साथियों को आकर्षित करने और अपने क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए करते हैं। एक गौरैया का औसत जीवनकाल 2 -3 वर्ष है लेकिन कुछ व्यक्ति 5 वर्ष या उससे अधिक तक जीवित रह सकते हैं। गौरैया अपने पूरे जीवन में केवल एक ही साथी के साथ संभोग करती हैं। वे अक्सर साल दर साल एक ही घोंसले के स्थान पर लौटते हैं। घरेलू गौरैया मादा हर साल 4 से 5 अण्डे देती है जिनमें से 12 से 15 दिन बाद बच्चों का जन्म होता है। इनकी एक महत्वपूर्ण क्षमता होती है यह आकाश में उड़ने के साथ-साथ पानी के भीतर तैरने की क्षमता भी रखते हैं। गौरैया झुंडों के रूप में जानी जाने वाले घरों में रहती हैं। गौरैया अपने घोंसले का निर्माण खुद से कर लेती हैं। हाउस स्पैरो मानव आवास के साथ आसानी से जुड़ जाती हैं। नर गौरैया की गर्दन पर काली पटटी व पीठ का रंग तम्बाकू जैसा होता है जबकि मादा की पीठ पर पटटी भूरे रंग की होती है। इनका जीवन सरल घर बनाने की जिम्मेदारी नर की व बच्चों की जिम्मेदारी मादा की होती है।

मौजूदा दौर में गौरैया की आबादी में गिरावट के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिनमें शहरीकरण और निर्माण में कंक्रीट के बढ़ते उपयोग के कारण हरित स्थानों में उल्लेखनीय कमी आई है जिससे गौरैया को उनके प्राकृतिक आवासों से वंचित कर दिया गया है। वायु और जल प्रदूषण गौरैया के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। दूषित जल स्रोत और प्रदूषकों से भरी हवा इन पक्षियों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही है। कृषि और शहरी क्षेत्रों में कीटनाशकों का उपयोग गौरैयों पर हानिकारक प्रभाव डाल रहा है। खेती में मौजूदा दौर में होने वाले रासायनिक उर्वरकों और मोनोकल्चर के उपयोग सहित आधुनिक कृषि पद्धतियाँ गौरैया के लिए खाद्य स्रोतों की उपलब्धता को प्रभावित कर दिया है।

गौरैया विलुप्त होने का मुख्य कारण शहरीकरण, रासायनिक प्रदूषण और रेडिएशन को माना जा रहा है। मोबाइल फोन, टॉवरों से निकलने वाली रेडियेशन भी बड़े पैमाने पर गौरैया की मृत्यु के कारण बन रहा है। लगातार हो रहे शहरीकरण, पेड़ों के कटान और फसलों में रासायनिक का छिड़काव गौरैया की विलुप्ति का कारण बन रहा है। फसलों में पड़ने वाले कीटनाशक खतरनाक होते हैं। गौरैया न सिर्फ हमारे आसपास की खूबसूरती का हिस्सा है, बल्कि पर्यावरण के संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। ये कीड़े मकोड़ों को खाकर फसलों की रक्षा करती हैं। हम गौरैया के अनुकूल आवास बनाकर गौरैया के संरक्षण में योगदान कर सकते हैं। इसमें घौंसले स्थापित करना, जल प्रदान करना और देशी पेड़ और झाड़ियाँ लगाने का योगदान दे सकते हैं।

जैविक और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाने और शहरी क्षेत्रों में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने से गौरैयों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने में मदद मिल सकती है। गौरैयों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में लोगों को शिक्षित करने और इनका संरक्षण करने के लिए प्रेरित करने के लिए विशेष जागरूकता अभियान जनसमुदाय द्वारा चलाये जाने चाहिए। पर्यावरण संरक्षण, हरित स्थानों और टिकाऊ शहरी नियोजन को बढ़ावा देने वाली नीतियों की वकालत एक अधिक गौरैया-अनुकूल वातावरण बनाने में योगदान कर सकती है। गौरैया संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से एक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिलेगा।

गौरैया का पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में भी बड़ा योगदान है। बदलते परिवेश में गौरैया अब ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक देखने को नहीं मिल रही है। दुर्भाग्य की बात है कि इनकी तादात धीरे-धीरे कम हो गई है। पिछले 15 सालों में गौरैया की संख्या में 70 से 80 फीसदी तक की कमी आई है इसलिए जरूरी है इसके संरक्षण के लिए हम सभी अपनी छत पर पर्याप्त दाना-पानी रखें। इसके साथ ही अपने घरों के सास पास अधिक से अधिक पेड़ और पौधे लगाएं। कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करें जिससे स्वछंद होकर वे विचरण कर सके। आज जब गौरैया के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं तब ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इस नन्हीं सी चिड़िया को बचाने में हम अपना अहम योगदान दें।


Monday, 10 March 2025

सावित्रीबाई फुले : देश की सबसे पहली महिला शिक्षिका

 शिक्षा एकमात्र ऐसा हथियार है जिससे हम अपना और राष्ट्र  का विकास कर सकते हैं। वैसे तो पुरातन काल में हमारे देश में पुरुषों को ही शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दी जाती थी लेकिन सभी पुराने जंजीरों को तोड़ते हुए महिलाओं को शिक्षा देने के उद्देश्य से समाज के सामने देश की सबसे पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का विलक्षण व्यक्तित्व सामने आता  है। एक दौर में जब महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद रखा जाता था, सावित्रीबाई फुले ने समाज के रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती देते हुए नारी सशक्तिकरण का बिगुल बजाया। महज नौ वर्ष की उम्र में विवाह बंधन में बंधी सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर समाज सुधार के  अनेक कार्य किए। वह  भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक  थीं, जिन्होंने महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया। उनके प्रयासों से शिक्षा के माध्यम से सामाजिक और शैक्षणिक क्रांति की नींव पड़ी।


सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज की एक महान शिक्षिका, समाज सुधारक और महिला अधिकारों की अग्रणी थीं। उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को पुणे के नजदीक नायगांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए अपने जीवन का सम्पूर्ण समय समर्पित किया। उन्होंने न केवल महिलाओं के शिक्षा अधिकार की वकालत की, बल्कि समाज के उत्पीड़ित वर्गों के लिए भी कार्य किया। सावित्रीबाई का विवाह 9 वर्ष की उम्र में महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले से हुआ था।  फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई थी। वे स्त्री शिक्षा के समर्थक थे और उन्होंने सावित्रीबाई को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। सावित्रीबाई ने अपनी शादी के बाद ही शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा और एक नई दिशा की ओर बढ़ी। 1 जनवरी 1848 को सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले ने पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल खोला। यह उस समय सामाजिक रूढ़ियों के विरुद्ध एक क्रांतिकारी कदम था। इस पहल का रूढ़िवादी समाज ने घोर विरोध किया। उन्हें अपमान सहना पड़ा, रास्ते में उन पर पत्थर फेंके गए और गालियां दी गईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। महिलाओं और दलित समुदाय को शिक्षित करने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कठोर संघर्ष किया। धीरे-धीरे फुले दंपति ने पुणे और उसके आसपास के गांवों में 18 स्कूलों की स्थापना की। 

सावित्रीबाई  जब  पढ़ने स्कूल जाती थीं तो लोग उन्हें पत्थर, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे। वह अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा साथ लेकर जाती थीं और स्कूल पहुंचकर गोबर और कीचड़ से गंदे हो गए कपड़ों को बदल लेती थीं। उन्होंने हिम्मत नहीं और और हर चुनौती का सामना किया। पढ़ने के बाद उन्होंने दूसरी लड़कियों और दलितों के लिए एजुकेशन पर काम करना किया।सावित्रीबाई फुले को शिक्षा के क्षेत्र में महान योगदान देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 1848 में उन्होंने भारत में पहली बार महिलाओं के लिए एक स्कूल खोला। यह स्कूल पुणे के एक उपनगर में स्थित था और यहाँ पर केवल लड़कियाँ ही पढ़ने आती थीं। इस पहल ने भारतीय समाज में शिक्षा के प्रति महिलाओं के अधिकार को उजागर किया और उनके लिए शिक्षा के द्वार खोल दिए।सावित्रीबाई फुले ने अपनी शिक्षा प्रणाली में जातिवाद, धर्मवाद और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया। उन्होंने सिखाया कि शिक्षा केवल एक व्यक्ति की क्षमता का निर्माण नहीं करती, बल्कि यह समाज को भी एक बेहतर दिशा में मार्गदर्शन देती है।

सावित्रीबाई ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कियाबल्कि उन्होंने समाज के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार की दिशा में कई कदम उठाए। उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा और विधवा पुनर्विवाह जैसे कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। वे समाज में महिलाओं के लिए समान अधिकारों की वकालत की और उ महिलाओं के हक में कई अभियान चलाए। सावित्रीबाई ने 1854 में "सीनियर स्कूल" में दलित बच्चों को भी शिक्षा देने की पहल की थी। इससे यह साबित हुआ कि उनके लिए किसी भी जाति या धर्म के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार समान था। उन्होंने यह भी सिखाया कि समाज में लैंगिक समानता और अधिकारों की स्थिति को लेकर पुरुषों और महिलाओं को एक समान दृष्टिकोण रखना चाहिए।

सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत संघर्षों का सामना किया। उनका समाज ने कई बार विरोध किया, ताने मारे और कई बार उन्हें शारीरिक रूप से भी प्रताड़ित किया गया लेकिन उन्होंने इन सभी कष्टों को सहन किया और अपने कार्यों को जारी रखा। वे जीवनभर समाज की जड़ता और पितृसत्तात्मक मानसिकता से संघर्ष करती रहीं। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय समाज में महिलाओं और समाज के निचले वर्गों के लिए जो कार्य किए, वह अत्यंत प्रेरणादायक हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया  कि शिक्षा ही समाज के सुधार और जागरूकता का सबसे शक्तिशाली साधन है। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता और वे आज भी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और सामाजिक समानता के प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। सावित्रीबाई ने औरतों के हक के लिए बहुत लड़ाई लड़ी। उन्होंने सिर्फ औरतों के लिए ही नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए भी आवाज उठाई जिन्हें समाज में कमतर समझा जाता था। उन्होंने जाति-पाति, छुआछूत और विधवाओं के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ खड़े होकर बात की। सावित्रीबाई ने गरीबों और औरतों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले। उन्होंने लोगों को यह समझाया कि सब बराबर हैं और किसी को कम नहीं समझना चाहिए। 

महाराष्ट्र में 1875 से 1877 के बीच बहुत बड़ा अकाल पड़ा था। लोगों को उस दौर में खाने-पीने की चीज़ें नहीं मिल पा रही थी और सभी बहुत बीमार पड़ रहे थे। सावित्रीबाई ने सत्यशोधक समाज नाम के एक समूह का नेतृत्व किया। इस समूह के लोगों ने बहुत सारे बीमार लोगों की मदद की। सत्यशोधक समाज के लोग बिना किसी पंडित या पुजारी के शादियां करवाते थे। उन्हें दहेज लेने-देने का भी विरोध था। 1896 में फिर से महाराष्ट्र में बहुत बड़ा अकाल पड़ा। इस दौरान सावित्रीबाई को पता चला कि उनके दोस्त पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ का बेटा बहुत बीमार है। सावित्रीबाई तुरंत उनके पास गईं और बीमार बच्चे को अपनी पीठ पर उठाकर डॉक्टर के पास ले गईं। इस दौरान खुद सावित्रीबाई भी बीमार हो गईं। उन्हें प्लेग नाम की बीमारी हो गई थी। इसी बीमारी की वजह से 10 मार्च, 1897 को सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया।

सावित्रीबाई ने कन्या हत्या को रोकने के लिए प्रभावी पहल भी की थी। उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को सशक्त करने के लिए अभियान चलाया बल्कि नवजात कन्या शिशु के लिए आश्रम तक खोले। जिससे उनकी रक्षा की जा सके। सावित्रीबाई फुले ने अपना पूरा जीवन केवल लड़कियों को पढ़ाने और समाज को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित कर दिया। सावित्रीबाई फुले का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था लेकिन फिर भी बचपन से ही उनका लक्ष्य था कि ‘किसी के साथ भी कोई भेदभाव ना हो और हर किसी को बराबरी का हक मिलने का साथ पढ़ने का समान अवसर मिले। उनके विचारों की वजह से वह भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री, समाजसेविका बनी जिनका मुख्य मकसद महिलाओं का उत्थान रहा।

सावित्रीबाई फुले की यात्रा यह सिखाती है कि जब तक समाज में समानता और न्याय नहीं आता, तब तक निरंतर संघर्ष करना आवश्यक है। उनके द्वारा किए गए कार्यों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में महिलाओं और उत्पीड़ित वर्गों के लिए एक नया रास्ता खोला। उनकी निडर भावना और यथास्थिति को चुनौती देने का दृढ़ संकल्प अविश्वसनीय है। हर तरह के दमन और भेदभाव के खिलाफ उनकी लड़ाई प्रशंसनीय है। फुले ने महिलाओं को शिक्षा और आत्मनिर्भरता का जो अमूल्य उपहार दिया उसकी बदौलत वह आज भी याद की जाती हैं । उनके जीवन ने यह साबित किया कि समर्पण, लगन और संघर्ष से समाज की हर बाधा को पार किया जा सकता है। महिला शिक्षा  को लेकर उनका योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।   

Sunday, 9 March 2025

जाकिर हुसैन: भारतीय शास्त्रीय संगीत और तबले के आइकन सम्राट


 
जाकिर हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान तबला वादक और संगीतकार थे। उन्होंने अपनी शानदार तबला वादन शैली से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाई। जाकिर हुसैन का नाम भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। वह भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने वाले एक अग्रणी कलाकार थे जिन्होंने अपनी कला से संगीत की नई ऊँचाइयों को छुआ।
 
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वह प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अली अकबर खान के घराने से ताल्लुक रखते थे। उनके पिताउस्ताद अल्लाह रक्खा खानभी एक प्रसिद्ध तबला वादक थेजो पं.रविशंकर के साथ कई संगीत समारोहों में भाग ले चुके थे। जाकिर हुसैन ने बचपन से ही अपने पिता से संगीत की शिक्षा ली। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण वे बहुत जल्दी एक शानदार तबला वादक बन गए।
 
जाकिर हुसैन का संगीत का सफर बहुत ही प्रेरणादायक रहा। उन्होंने अपनी शुरुआत भारतीय शास्त्रीय संगीत से की लेकिन समय के साथ-साथ उन्होंने वर्ल्ड म्यूजिकजाज और अन्य संगीत शैलियों को भी अपनाया। वह संगीत के विविध रूपों को समझते हुए विभिन्न शैलियों में माहिर हो गए। जाकिर हुसैन ने न केवल भारतीय संगीत में उत्कृष्टता प्राप्त कीबल्कि उन्होंने पश्चिमी संगीतकारों के साथ भी काम किया। उनका संगीत भारतीय और पश्चिमी संगीत का एक अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। उनका नाम ऐसे संगीतकारों के साथ लिया जाता है जिन्होंने भारतीय संगीत को पश्चिमी दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया।
 
जाकिर हुसैन की वादन शैली अद्वितीय और प्रभावशाली थी। उनके तबला वादन में एक विशेष तरह की ताजगी और नवीनता दिखती थी। वह शास्त्रीय तकनीकों के साथ-साथ संगीत में सुधार करने की कला में भी माहिर रहे। जाकिर हुसैन लयगति और ताल की जटिलताओं को साधारण रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम थे। उनके तबला वादन की शैली इतनी सहज और सजीव होती थी कि वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी।
 
लगभग छह दशकों के करियर में हुसैन ने पंडित रविशंकर और उस्ताद विलायत खान जैसे महान भारतीय कलाकारों के साथ काम किया। उन्होंने जॉन मैकलॉघलिन के साथ शक्ति और ग्रेटफुल डेड के मिकी हार्ट के साथ प्लैनेट ड्रम जैसे प्रतिष्ठित फ्यूजन बैंड बनाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नई जमीन बनाई जिसने भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहुंच का विस्तार किया जिससे यह दुनिया भर के दर्शकों के लिए सुलभ हो गया। उन्होंने मलयालम फिल्म वनप्रस्थम (1999) के लिए संगीत सलाहकार के रूप में अपने काम के लिए प्रशंसा प्राप्त की जिसका कान फिल्म महोत्सव में प्रीमियर हुआ था। फिल्म को ए.एफ.आई.लॉस एंजिल्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ग्रैंड जूरी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था और 2000 में इस्तांबुल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवमुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते थे।
 
एक कलाकार के रूप में हुसैन कई फिल्मों में अपने झंडे गाड़ते दिखाई दिए जैसे कि वृत्तचित्र ज़ाकिर एंड हिज फ्रेंड्स (1998) और द स्पीकिंग हैंडः ज़ाकिर हुसैन एंड द आर्ट ऑफ़ द इंडियन ड्रम (2003) जिसका निर्देशन सुमंत्र घोषाल ने किया था। हुसैन ने 1983 की मर्चेंट आइवरी फिल्म हीट एंड डस्ट में इंदर लाल के रूप में अपनी अभिनय प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया जहाँ उन्होंने एक सहयोगी संगीत निर्देशक के रूप में काम किया। 2018 में फिल्म निर्माता और लेखक नसरीन मुन्नी कबीर ने 'जाकिर हुसैनः ए लाइफ इन म्यूजिकपुस्तक में हुसैन के जीवन और करियर के बारे में लिखा। यह कार्य 2016 और 2017 में आयोजित 15 साक्षात्कार सत्रों पर आधारित था। हुसैन ने इस्माइल मर्चेंट की इन कस्टडी और द मिस्टिक मैसर जैसी फिल्मों के साउंडट्रैक में भी अपना बेमिसाल योगदान दिया। उनके तबला प्रदर्शन को फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की एपोकैलिप्स नाउ और बर्नार्डो बर्टोलुची की लिटिल बुद्ध में भी जोड़ा गया था। हुसैन तबला बीट साइंस के संस्थापक सदस्य भी थे जो अमेरिकी संगीतकार बिल लासवेल के नेतृत्व में एक विश्व संगीत सुपरग्रुप था। इस ग्रुप नेसमकालीन इलेक्ट्रॉनिक और वैश्विक संगीत शैलियों के साथ पारंपरिक भारतीय लय को मिश्रित किया। 2016 में हुसैन ने व्हाइट हाउस में अंतर्राष्ट्रीय जैज़ डे ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में प्रदर्शन किया जिसकी मेजबानी तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की थी।
 
जाकिर हुसैन ने संगीत की कई शैलियों में योगदान दिया और भारतीय संगीत को पश्चिमी दुनिया में फैलाने के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा "पद्मश्री" और 2002 में "पद्मभूषण" जैसे सम्मान प्राप्त हुए। जहाँ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1990) प्रदर्शन कला में उत्कृष्टता के लिए इस राष्ट्रीय मान्यता के सबसे कम उम्र के प्राप्तकर्ताओं में से एक रहा वहीँ 7 बार के ग्रैमी विजेताजिसमें 1992 में प्लैनेट ड्रम के लिए उनकी ऐतिहासिक पहली जीत और 2024 में ऐज वी स्पीकदिस मोमेंट और पश्तो के लिए तीन जीत शामिल रही। हिलेरी क्लिंटन द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक कलाओं के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रीय विरासत अध्येतावृत्ति (1999 ) भी प्राप्त किया। कालिदास सम्मान (2006) कला में असाधारण योगदान के लिए मिला वहीँ क्योटो पुरस्कार (2022) संगीत में वैश्विक उपलब्धि के लिए जापान का प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा गया। उन्हें 2022 में मुंबई विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि और 2017 में सैन फ्रांसिस्को जैज़ सेंटर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला। इसके अलावाउन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।
 
वे महान तबला वादक साथ ही एक संगीतकार और कुशल एक्टर भी रहे। उन्होंने द परफेक्ट मर्डर’, ‘मिस बीटीज चिल्ड्रन, ‘साज’ और मंटो’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय की विशेष छाप छोड़ी। बतौर अभिनेता पहली बार 1983 की फिल्म हीट एंड डस्ट’ में नजर आए। 1998 की फिल्म साज’ में जाकिर हुसैन ने शबाना आजमी के साथ अहम रोल निभाया थाजो अपने कॉन्टेंट की वजह से काफी विवादों में रही थी। शबाना आजमी के प्रेमी के रोल में उनके अभिनय को काफी सराहा गया था। हुसैन ने तबला की भूमिका को बदल दिया और इसे एक सहायक वाद्ययंत्र से शास्त्रीय प्रदर्शन के केंद्र में बढ़ा दिया। उनकी जटिल लय और अभिव्यंजक वादन शैली ने भारत और विदेशों दोनों में व्यापक प्रशंसा प्राप्त की। जाकिर हुसैन ने अपनी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला से शादी कीजो एक कथक नर्तकी और शिक्षिका थींजिन्होंने अपने करियर का प्रबंधन भी किया था।
 
जाकिर हुसैन का नाम भारतीय संगीत के क्षेत्र में हमेशा सम्मान से लिया जाएगा। उन्होंने अपने अद्वितीय वादन शैली और संगीत के प्रति अपने समर्पण से भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध किया। उनका संगीत न केवल शास्त्रीय संगीत के प्रति प्रेम को बढ़ावा देता हैबल्कि वह एक नई दिशा और सोच को भी प्रस्तुत करता है। उनकी कला आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।