कलम बोलती है..
सच की स्याही कभी न सूखेगी, इस कलम में, एक कोशिश
Monday, 12 May 2025
पत्रकारिता के प्रथम प्रतीक नारद मुनि
Wednesday, 7 May 2025
मोहन सरकार की जल संरक्षण की अनुपम पहल जल गंगा संवर्धन अभियान
जल का उचित उपयोग और संरक्षण न केवल हमारे आज के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार का जल गंगा संवर्धन अभियान एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह अभियान जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।यह अभियान राज्य के जल स्रोतों, नदियों, तालाबों और जलाशयों की रक्षा और पुनर्जीवन पर केंद्रित है। जल संरक्षण को जन-आंदोलन का रूप देने और भूजल स्तर में सुधार लाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। 30 मार्च 2025 से शुरू होकर 30 जून 2025 तक चलने वाला यह 90-दिवसीय अभियान उज्जैन की पवित्र क्षिप्रा नदी के तट से शुरू हुआ, जिसका समापन भी उज्जैन में ही होगा।
इस अभियान के तहत न केवल जल स्रोतों की सफाई और पुनर्जीवन पर काम किया जा रहा है, बल्कि जल संचयन के उपायों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत पुराने जलाशयों और तालाबों की सफाई और पुनर्निर्माण किया जा रहा है ताकि जल को संरक्षित किया जा सके। जल गंगा संवर्धन अभियान का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों का संरक्षण और पुनर्जनन, भूजल स्तर में वृद्धि, और जल संरक्षण के प्रति बढ़ाना है। इस अभियान के तहत जहाँ प्रदेश भर में पुराने तालाबों, कुओं, बावड़ियों और नदियों की सफाई और गहरीकरण किया जा रहा है वहीँ नई जल संरचनाओं का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है। वर्षा जल को संग्रहित करने की दिशा में पूरे प्रदेश में इस समय गंभीर प्रयास हो रहे हैं। राज्य में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए जल गंगा अभियान के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा शहरों और ग्रामीण इलाकों में वर्षा जल संचयन के लिए टैंक का निर्माण किया जा रहा है, ताकि मानसून के दौरान पानी का संचयन किया जा सके और जल संकट को रोका जा सके। जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पौधारोपण पर विशेष जोर दिया जा रहा है। युवा पीढ़ी को जल संरक्षण के महत्व को समझाने के लिए रैलियाँ, जल चौपाल, और प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं।
जल गंगा संवर्धन अभियान का व्यापक प्रभाव मध्यप्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस अभियान की सबसे बड़ी विशेषता जन-भागीदारी है। सरकार ने इसे केवल सरकारी आयोजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विभिन्न सामाजिक संगठनों, ग्राम विकास समितियों और आम नागरिकों को इसमें शामिल किया है। प्रदेश में 1.06 लाख जल दूत तैयार किए गए हैं जो जल स्रोतों के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। ये जलदूत स्थानीय स्तर पर जल संरचनाओं के रख-रखाव और जल संरक्षण का कार्य करेंगे। धार जिले में ग्राम विकास प्रस्फुरण समितियों ने श्रमदान के माध्यम से तालाबों और कुंडों की सफाई की जिससे सामुदायिक सहभागिता को बल मिला है। सरकारी विभागों के साथ-साथ एनजीओ और स्थानीय समाज से जुड़े लोग भी इस अभियान का हिस्सा बनकर जल संरक्षण में सहयोग दे रहे हैं। गांवों में जल संरक्षण समितियाँ बनाकर उन्हें सक्रिय किया गया है।
अभियान के तहत प्रदेश भर में जल संरक्षण के अनेक कार्य किये जा रहे हैं। बालाघाट जिले में सर्वाधिक 561 खेत तालाब बनाए गए हैं। प्रदेश में अनूपपुर जिला 275 खेत तालाब बनाकर दूसरे क्रम और अलीराजपुर जिला 216 खेत तालाब बनाकर तीसरे क्रम पर है। अमृत सरोवर निर्माण के लिए सिवनी जिले में सबसे अच्छा कार्य हुआ है। टीकमगढ़ में 70 प्राचीन तालाबों और 10 बावड़ियों के निकट क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाकर उन्हें स्वच्छ और सुंदर बनाने का कार्य हो रहा है। सागर में नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य भी किए जा रहे हैं। उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग में अभियान के तहत जल संरक्षण से संबंधित अनेक कार्यों को किया जा रहा है। आदिवासी झाबुआ जिले में कुओं की सफाई से जल स्तर में अपेक्षित सुधार हुआ है। यह अभियान न केवल जल संकट से निपटने में सहायक होगा, बल्कि किसानों के लिए सिंचाई और पेयजल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है जल प्रकृति का अमूल्य उपहार है जिसका संरक्षण और संवर्धन करना हम सभी की जिम्मेदारी है। हम अगर जल की बूंद-बूंद बचाएंगे, तभी हमारी सांसें बचेंगी। जल गंगा संवर्धन अभियान मध्यप्रदेश सरकार की एक दूरदर्शी पहल है, जो जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रही है। यह अभियान न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए जल संकट का समाधान प्रस्तुत करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक सुरक्षित और समृद्ध कल सुनिश्चित करता है।
Thursday, 24 April 2025
धरती के स्वर्ग पर दहशत
Tuesday, 25 March 2025
मोहन की मुस्कान हृदयप्रदेश में भर रही विकास की नई उड़ान
सियासत में बहुत कम ऐसे चेहरे हुए हैं जो अपनी सादगी, सौम्यता, सरलता और मनमोहनी मुस्कान के लिए जाने जाते हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में आप डॉ.मोहन यादव को एक विनम्रशील, व्यवहारकुशल जननेता के तौर पर देख सकते हैं। ऐसे दौर में जब राजनीति में जनसेवा करने वालों सेवाभावी लोगों की कमी होती जा रही है, उस समय डॉ. मोहन यादव जैसे नेता समाज के लिए रोल मॉडल बन जाते हैं।मौजूदा दौर की राजनीती में पारिवारिक पृष्ठभूमि से सियासत में आना बहुत आसान है लेकिन मूल्यों की राजनीति करते हुए जमीन से उठकर अपनी प्रतिभा के दम पर कम समय में देश के लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों की श्रेणी में अपनी जगह बनाना इतना भी आसान नहीं है। डॉ.मोहन यादव ने अपने संघर्ष और जनता के प्रति समर्पण से मध्यप्रदेश की राजनीती में एक नया मुकाम हासिल किया है जिसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती। सही मायनों में अगर किसी ने मध्यप्रदेश में बीते एक बरस में किसी ने सुशासन की बयार बहाई है तो वो नाम डॉ.मोहन यादव है।
भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य एक महान राजा के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका शासन भारतीय उपमहाद्वीप के स्वर्णिम काल का प्रतीक माना जाता है जो उन्हें एक आदर्श शासक के रूप में स्थापित करता है। राजा विक्रमादित्य का उद्देश्य हमेशा जनकल्याण रहा। उनके शासनकाल में बुनियादी ढांचे का विकास बेहतरीन ढंग से हुआ। उन्होंने गरीब और असहाय लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ बनाई जो लोककल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करता था। वे अपने राज्य की स्थिति और लोगों की जरूरतों को समझते हुए नीतियाँ बनाते थे। प्रजा के प्रति अनुराग ने उन्हें भारतीय इतिहास का एक महान शासक बना दिया था। सही मायनों में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उन्हीं पगचिह्नों लीक पर चलते हुए गौरवशाली मध्यप्रदेश के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं।
विनयशीलता, कर्मों में कुशाग्रता,बेहतरीन विजन, सकारात्मकता से ओत प्रोत नजर आने वाली मनमोहनी मुस्कान सहित तमाम नीति निपुणता उनकी कार्यशैली को सुन्दर बनाती है और यही अलहदा पहचान उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है। डॉ. मोहन यादव का जन्म उज्जैन में एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता पूनमचंद यादव बहुत मेहनती व्यक्ति थे जिन्होंने परिवार के बेहतर पालन-पोषण के लिए मिल में मजदूरी कर कठिन परिश्रम किया। उनकी माता लीलाबाई यादव ने घर को संभाला और अपने बच्चों में समाजसेवा के संस्कारों का बीज बोया। डॉ. मोहन यादव का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था लेकिन अध्ययन के लिए वह कठोर परिश्रम करने से कभी नहीं घबराए जिसके चलते बचपन से उनकी नींव मजबूत बन गई। उज्जैन की गलियों में बचपन में अठखेलियां करते और बाबा महाकाल के आशीर्वाद से उन्होंने समाजसेवा की अकेली राह चुनी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों से उनकी सोच पुष्पित और पल्लवित हुई। उज्जैन के धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय ने उनकी सोच को संवेदनशील बनाया। वे अक्सर अपने ओजस्वी भाषणों में उज्जैन के बाबा महाकाल की गौरवशाली परंपराओं का उल्लेख करते नजर आते हैं, जो महाकाल से उनके जीवन के गहरे जुड़ाव को बतलाता है। यही वजह है उज्जैन को मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बनाने की दिशा में वह मजबूती के साथ अपनी कदमताल करते नजर आते हैं।
डॉ. मोहन यादव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन के स्थानीय स्कूलों से पूर्ण की। इसके बाद उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से विज्ञान में स्नातक (बी.एससी.) की डिग्री हासिल की। विज्ञान के प्रति उनकी रुचि ने उनकी विश्लेषणात्मक सोच को नया आकर देने का कार्य किया वहीं इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की जिसने उनकी राजनीतिक समझ को गहरा करने का कार्य किया। उन्होंने कला में स्नातकोत्तर राजनीती विज्ञान और प्रबंधन में मास्टर्स (एमबीए) की डिग्री भी ली, जिसने उन्हें नीति निर्माण और प्रबंधन में कुशल बनाया। उनकी शैक्षिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव एमपी की शिवराज सरकार के गवर्नेंस में पीएचडी डिग्री का था, जिसने उन्हें एक गंभीर चिंतक के रूप में स्थापित किया। उनकी यह बहुमुखी प्रतिभा उन्हें प्रदेश के अन्य नेताओं से अलग करती है। विज्ञान, कानून, प्रबंधन, राजनीती और दर्शन का यह समन्वय उन्हें एक दूरदर्शी और प्रभावी नेता के रूप में स्थापित करता है।
डॉ. मोहन यादव ने काफी संघर्ष के बाद राजनीति में मुकाम हासिल किया है।डॉ. मोहन यादव को एक आदर्श पत्नी के रूप में सीमा यादव मिली जो उनके जीवन की हर परिस्थितियों में मजबूत संबल बनी रही। उनका पारिवारिक जीवन सादगी से भरा हुआ है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे अपने परिवार के साथ संयम से रहते हैं। आज भी उनका परिवार जहां उज्जैन के सामान्य घर में रहता है वहीं डॉ. यादव खुद मुख्यमंत्री निवास में अकेले रहते हैं लेकिन उनके बच्चे सीएम हाउस में नहीं रहते हैं। उनका एक बेटा भोपाल में पढ़ रहा है। उसने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब एमएस कर रहा है। उनकी बेटी ने भी भोपाल से ही एमबीबीएस की पढ़ाई की। पिता के सीएम होने के बाद भी पुत्र और पुत्री भोपाल के सीएम हाउस समत्व में नहीं रहकर खुद हॉस्टल में रहते हैं। डॉ. यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकी जनसेवा और सामाजिक कार्यों में झलकती है।मुख्यमंत्री का पद मिलने के बाद से लगातार नए उदाहरण पेश कर रहे डॉ. मोहन यादव अपनी सादगी की कई मिसाल पेश कर चुके हैं। सीएम डॉ. मोहन यादव अपने बेटे वैभव के विवाह के लिए राजस्थान के पुष्कर पहुंचे जिस कार्यक्रम को पूरी तरह से निजी रखा गया और दोनों परिवारों के बेहद नजदीकी परिजन ही इस विवाह कार्यक्रम में शामिल हुए। डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए दिन रात प्रदेश के विकास कार्य करते हुए अपने बेटे वैभव की शादी के सभी कार्यक्रमों में भी सहभागिता की और किसी भी दिन अवकाश नहीं लिया।
डॉ. मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में विकास, सुशासन और जनकल्याण को प्राथमिकता देकर मध्य प्रदेश में एक नई पहचान बनाई है। उनकी मेहनत और दूरदर्शिता ने उन्हें न केवल भाजपा के एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है बल्कि आने वाले वर्षों में उनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश को नई ऊँचाइयाँ हासिल करने की उम्मीद है। अपने एक बरस से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में डॉ. मोहन यादव ने कई विकास कार्यों को बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया है। विकसित भारत संकल्प यात्रा में 2 करोड़ से अधिक लोगों की भागीदारी हुई जिसमें 54 लाख से अधिक लोगों को विभिन्न योजनाओं का लाभ मिला। स्वामित्व योजना, मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना, हुकुमचंद मिल मजदूरों के समाधान जैसे कदमों ने सामाजिक न्याय को मजबूत करने का काम किया है। धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में श्रीराम वन गमन पथ, श्रीकृष्ण पाथेय, विक्रम संवत, वैदिक घड़ी की पुनर्स्थापना जैसे उनके सधे हुए कदमों ने मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर को नई ऊर्जा दी। मप्र में राजस्व महाअभियान भी चला,डिजिटल क्रॉप सर्वेक्षण भी किया गया जिसमें सीएम के निर्देश पर लाखों प्रकरणों का निपटारा हुआ। श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर पूरे प्रदेश में दीपावली मनाई गई, जो सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक बनी। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी अनेक पहल हुई जिससे प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान मजबूत हुई। एक साल से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में मोहन सरकार की बेहतर औद्योगिक नीतियों, बुनियादी सुविधाओं और बेहतर कनेक्टिविटी ने प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर न केवल इंडस्ट्री के लिए नई राह खोल दी है बल्कि इसने स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन की संभावनाओं को तेजी से बढ़ाने का काम किया है। जीआईएस 2025 के सफल आयोजन से डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को दुनिया के नक़्शे पर चमका दिया। इस आयोजन ने निवेशकों के लिए कई ऐसे अवसर पैदा किए जो न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को भविष्य में मजबूत बनाएँगे बल्कि देश के समग्र विकास में भी अहम योगदान देंगे। इस समिट ने हृदयप्रदेश एमपी को निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना दिया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने ब्रिटेन और जर्मनी की यात्रा कर मिशन निवेश को आगे बढ़ाया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश की पहचान एक निवेश-अनुकूल राज्य के रूप में मजबूत हुई। उनकी नीतियों ने औद्योगिकीकरण और शहरी विकास को प्राथमिकता दी, जो भविष्य में आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखेगा।
मध्यप्रदेश के गरीब और मध्यमवर्ग के परिवारों ने कभी नहीं सोचा होगा परिवार में कोई सदस्य अगर बीमार पड़ गया तो उसे एयर एम्बुलेंस जैसी सुविधा मिलेगी लेकिन डॉ. मोहन ने अपने कार्यकाल में दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को सुलभ बनाया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में 30 नए मेडिकल कॉलेज खोले गए और जल्द ही इनकी संख्या 50 तक पहुंचने की योजना है। यह कदम प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। शिक्षा के क्षेत्र में भी नवाचार और गुणवत्ता पर जोर दिया गया, जो युवाओं के भविष्य को संवारने में सहायक होगा। सिविल सेवाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण को 33% से बढ़ाकर 35% करने का उनका निर्णय ऐतिहासिक रहा। एक लाख से अधिक महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य हासिल किया गया जो महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। प्रदेश में स्मार्ट सिटी मिशन और स्वच्छ भारत सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल परियोजनाओं का निर्माण तेजी से चल रहा है जिसकी कुल लागत 14,440 करोड़ रुपये है। आयुष्मान भारत योजना के तहत 4 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड वितरित किए गए जिससे मध्यप्रदेश इस क्षेत्र में देश में अग्रणी बन गया साथ ही 70 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को भी इस योजना का लाभ देने की पहल शुरू की गई। प्रदेश में धर्मांतरण या रेप करवाने वालों को सीधे फांसी पर लटकाने के बड़े निर्णय से उन्होंने प्रदेश में एक नई नजीर पेश करने की कोशिश की है।
डॉ. यादव ने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए कई कड़े फैसले लिए। तेज लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध और खुले में मांस बिक्री पर रोक जैसे कदम पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाते हैं। इसके साथ ही जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्जनन के लिए अभियान चलाया गया। जल गंगा संवर्धन अभियान अब इसी कड़ी में 30 मार्च गुड़ी पड़वा पर्व से चलना है। केन-बेतवा और पार्वती-कालीसिंध-चंबल जैसी वृहद परियोजनाओं को मंजूरी मिलने से हरित खेत-खलिहानों की दिशा में मजबूत कदम उठे हैं। एक पेड़ मां के नाम अभियान ने भी जनभागीदारी के साथ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है।
पूरे प्रदेश में डॉ. मोहन यादव ने विकास और प्रशासनिक दक्षता के नए आयाम स्थापित किए हैं। उनके कार्यकाल ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में विशेष पहचान दिलाई है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने गुड गवर्नेंस के मॉडल को सभी के सामने पेश किया है जिसमें जनता के हितों की अनदेखी होनी फिलहाल तो मुश्किल दिखाई दे रही है।शिप्रा नदी को स्वच्छ और प्रवाहमान बनाने की योजना हो या सिंहस्थ 2028 की तैयारी इन प्रयासों से मध्यप्रदेश की प्राचीन विरासत को नई पहचान मिली है। मोहन मॉडल प्रदेश में सबकी जुबान पर चढ़ रहा है। एमपी की जनता भी उनके निर्णयों पर हामी भरती नजर आ रही है। पक्ष और विपक्ष भी उनकी नीतियों और काम करने के अलहदा अंदाज का का तोड़ नहीं निकाल पा रहा है। डॉ.मोहन यादव पार्टी के संकल्प पत्र में किये गए वायदों को पूरा करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन और मोदी की हर गारंटी पूरा करने के लिए डॉ. मोहन यादव ने अपनी ऊर्जा लगा दी है।
डॉ. यादव के नेतृत्व में भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत हासिल की। विशेष रूप से कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में भी विजय प्राप्त करना मौजूदा दौर में उनकी बड़ी राजनीतिक कुशलता का प्रमाण है। यह उपलब्धि उनकी लोकप्रियता और विजनरी नेतृत्व का परिचायक है। डॉ. मोहन यादव का अब तक का कार्यकाल एमपी के सुशासन, प्रगति और विकास का प्रतीक रहा है। उन्होंने चुनौतियों के बावजूद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित किया। उनकी नीतियां और निर्णय मोदी जी के विकसित भारत के संकल्प को साकार करने की दिशा में मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हैं। आने वाले समय में डबल इंजन सरकार के माध्यम से प्रदेश में विकास की गाड़ी तेजी से नई ऊंचाइयों पर पहुंचने की उम्मीद की जा सकती है। सीएम के रूप में डॉ. यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को मध्यप्रदेश में लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध नजर आते हैं। अपने सुशासन और साहसिक फैसलों से आज मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने कद को डॉ. मोहन यादव ने नई बुलंदियों पर पहुंचाने का काम किया है। मध्यप्रदेश उनके नेतृत्व में प्रगति के पथ पर अग्रसर है। 25 मार्च 2025 को उनके 60वें जन्मदिन पर उन्हें अशेष शुभकामनाएं। सुदिनं जन्मदिनं तव। भवतु मङ्गलं जन्मदिनम्।।
Wednesday, 19 March 2025
गौरैया के अस्तित्व पर गहराता संकट
विश्व गौरैया दिवस गौरैया के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 20 मार्च को मनाया जा रहा है। विकास की अत्याधुनिक चमचमाहट के बीच प्रकृति में गौरैया की अनदेखी हो रही है जो बड़ा चिंताजनक संकेत है। कभी हमारे आंगन में गौरैया की चहलकदमी होती थी आज वह सब सूने पड़े हुए हैं। विश्व गौरैया दिवस को मनाने की वजह गौरैया के अस्तित्व को बचाना है।
विश्व गौरैया दिवस की अवधारणा की कल्पना एक भारतीय पर्यावरणविद् मोहम्मद दिलावर ने की थी। भारत और दुनिया भर में गौरैयों की आबादी में तेजी से गिरावट के बारे में चिंतित दिलावर ने 2005 में नेचर फॉरएवर सोसाइटी की स्थापना की जो घरेलू गौरैया और अन्य सामान्य वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध एक गैर-लाभकारी संगठन है। पहला विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च, 2010 को मनाया गया था। गिरती गौरैया की आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व गौरैया दिवस का बहुत महत्व है। यह दिन पर्यावरण के साथ गौरैया के परस्पर जुड़ाव, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देने पर जोर देता है। यह सामुदायिक जुड़ाव, शैक्षिक कार्यक्रमों और नीति की वकालत के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है,जिसमें गौरैयों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक प्रयासों का आग्रह किया जाता है।
घरेलू गौरैया दुनिया में सबसे व्यापक और सामान्य तौर पर देखा जाने वाला जंगली पक्षी है।इसे यूरोपीय लोगों द्वारा दुनिया भर में पहुँचाया गया और अब इसे न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, भारत और यूरोप सहित दुनिया के दो-तिहाई भूभाग पर देखा जा सकता है।यह केवल चीन, इंडो-चीन, जापान एवं साइबेरिया और पूर्वी व उष्णकटिबंधीय अफ्रीका आदि क्षेत्रों में अनुपस्थित है। दुनियाभर में गौरैया की दर्जनों प्रजातियां हैं लेकिन भारत में हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिउ स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेट सी स्पैरो व ट्री स्पैरों मिल जाती हैं जिनमें इनमें सबसे अधिक हाउस स्पैरो बहुतायत हैं। गौरैया एक बहुत छोटा पक्षी है जिसका वजन 25 से 40 ग्राम और लंबाईं 15 से 18 सेमी होती है जो 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है।
गौरैया मादाओं की तुलना में अधिक रंगीन होती हैं जिनके पंखों पर काले, सफेद और भूरे रंग के निशान होते हैं। गौरैया को उनके मधुर गीतों के लिए जाना जाता है, जिनका उपयोग वे साथियों को आकर्षित करने और अपने क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए करते हैं। एक गौरैया का औसत जीवनकाल 2 -3 वर्ष है लेकिन कुछ व्यक्ति 5 वर्ष या उससे अधिक तक जीवित रह सकते हैं। गौरैया अपने पूरे जीवन में केवल एक ही साथी के साथ संभोग करती हैं। वे अक्सर साल दर साल एक ही घोंसले के स्थान पर लौटते हैं। घरेलू गौरैया मादा हर साल 4 से 5 अण्डे देती है जिनमें से 12 से 15 दिन बाद बच्चों का जन्म होता है। इनकी एक महत्वपूर्ण क्षमता होती है यह आकाश में उड़ने के साथ-साथ पानी के भीतर तैरने की क्षमता भी रखते हैं। गौरैया झुंडों के रूप में जानी जाने वाले घरों में रहती हैं। गौरैया अपने घोंसले का निर्माण खुद से कर लेती हैं। हाउस स्पैरो मानव आवास के साथ आसानी से जुड़ जाती हैं। नर गौरैया की गर्दन पर काली पटटी व पीठ का रंग तम्बाकू जैसा होता है जबकि मादा की पीठ पर पटटी भूरे रंग की होती है। इनका जीवन सरल घर बनाने की जिम्मेदारी नर की व बच्चों की जिम्मेदारी मादा की होती है।
मौजूदा दौर में गौरैया की आबादी में गिरावट के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिनमें शहरीकरण और निर्माण में कंक्रीट के बढ़ते उपयोग के कारण हरित स्थानों में उल्लेखनीय कमी आई है जिससे गौरैया को उनके प्राकृतिक आवासों से वंचित कर दिया गया है। वायु और जल प्रदूषण गौरैया के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। दूषित जल स्रोत और प्रदूषकों से भरी हवा इन पक्षियों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही है। कृषि और शहरी क्षेत्रों में कीटनाशकों का उपयोग गौरैयों पर हानिकारक प्रभाव डाल रहा है। खेती में मौजूदा दौर में होने वाले रासायनिक उर्वरकों और मोनोकल्चर के उपयोग सहित आधुनिक कृषि पद्धतियाँ गौरैया के लिए खाद्य स्रोतों की उपलब्धता को प्रभावित कर दिया है।
गौरैया विलुप्त होने का मुख्य कारण शहरीकरण, रासायनिक प्रदूषण और रेडिएशन को माना जा रहा है। मोबाइल फोन, टॉवरों से निकलने वाली रेडियेशन भी बड़े पैमाने पर गौरैया की मृत्यु के कारण बन रहा है। लगातार हो रहे शहरीकरण, पेड़ों के कटान और फसलों में रासायनिक का छिड़काव गौरैया की विलुप्ति का कारण बन रहा है। फसलों में पड़ने वाले कीटनाशक खतरनाक होते हैं। गौरैया न सिर्फ हमारे आसपास की खूबसूरती का हिस्सा है, बल्कि पर्यावरण के संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। ये कीड़े मकोड़ों को खाकर फसलों की रक्षा करती हैं। हम गौरैया के अनुकूल आवास बनाकर गौरैया के संरक्षण में योगदान कर सकते हैं। इसमें घौंसले स्थापित करना, जल प्रदान करना और देशी पेड़ और झाड़ियाँ लगाने का योगदान दे सकते हैं।
जैविक और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाने और शहरी क्षेत्रों में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने से गौरैयों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने में मदद मिल सकती है। गौरैयों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में लोगों को शिक्षित करने और इनका संरक्षण करने के लिए प्रेरित करने के लिए विशेष जागरूकता अभियान जनसमुदाय द्वारा चलाये जाने चाहिए। पर्यावरण संरक्षण, हरित स्थानों और टिकाऊ शहरी नियोजन को बढ़ावा देने वाली नीतियों की वकालत एक अधिक गौरैया-अनुकूल वातावरण बनाने में योगदान कर सकती है। गौरैया संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से एक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिलेगा।
गौरैया का पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में भी बड़ा योगदान है। बदलते परिवेश में गौरैया अब ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक देखने को नहीं मिल रही है। दुर्भाग्य की बात है कि इनकी तादात धीरे-धीरे कम हो गई है। पिछले 15 सालों में गौरैया की संख्या में 70 से 80 फीसदी तक की कमी आई है इसलिए जरूरी है इसके संरक्षण के लिए हम सभी अपनी छत पर पर्याप्त दाना-पानी रखें। इसके साथ ही अपने घरों के सास पास अधिक से अधिक पेड़ और पौधे लगाएं। कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करें जिससे स्वछंद होकर वे विचरण कर सके। आज जब गौरैया के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं तब ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इस नन्हीं सी चिड़िया को बचाने में हम अपना अहम योगदान दें।
Monday, 10 March 2025
सावित्रीबाई फुले : देश की सबसे पहली महिला शिक्षिका
शिक्षा एकमात्र ऐसा हथियार है जिससे हम अपना और राष्ट्र का विकास कर सकते हैं। वैसे तो पुरातन काल में हमारे देश में पुरुषों को ही शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दी जाती थी लेकिन सभी पुराने जंजीरों को तोड़ते हुए महिलाओं को शिक्षा देने के उद्देश्य से समाज के सामने देश की सबसे पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का विलक्षण व्यक्तित्व सामने आता है। एक दौर में जब महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद रखा जाता था, सावित्रीबाई फुले ने समाज के रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती देते हुए नारी सशक्तिकरण का बिगुल बजाया। महज नौ वर्ष की उम्र में विवाह बंधन में बंधी सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर समाज सुधार के अनेक कार्य किए। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक थीं, जिन्होंने महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया। उनके प्रयासों से शिक्षा के माध्यम से सामाजिक और शैक्षणिक क्रांति की नींव पड़ी।