Saturday, 12 October 2024

'शक्ति 'और 'विजय' का उत्सव विजयादशमी

     

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू होते हैं जो नौ दिनों तक चलते हैं।  शुक्लपक्ष की दशमी का बड़ा विशेष महत्व है।  विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो  हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजयादशमी का अर्थ है  'विजय का दसवां दिन' और यह दिन रावण के खिलाफ भगवान राम की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विजयादशमी का त्यौहार भगवान राम की कथा से जुड़ा हुआ है। रावण एक महापराक्रमी लेकिन अधर्मी राजा था जिसने  माता सीता का हरण किया था। राम के द्वारा रावण का वध न केवल धर्म की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि अंततः सत्य और न्याय की विजय होती है। इस दिन को मनाने के लिए रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होते हैं।विजयादशमी केवल राम की विजय का पर्व नहीं है, बल्कि यह नवरात्रि के पर्व का अंतिम दिन भी है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और विजयादशमी के दिन देवी की शक्ति और संहारक रूप की विजय का जश्न मनाया जाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है।  इस दिन दशहरा पूरे देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन श्रीराम, मां दुर्गा, श्री गणेश, विद्या की देवी सरस्वती और हनुमान जी की आराधना करके परिवार के मंगल की कामना की जाती है। दशहरा या विजयादशमी सर्वसिद्धिदायक तिथि मानी जाती है इसलिए इस दिन सभी शुभ कार्य फलकारी माने जाते हैं। विजयादशमी या शस्त्र पूजा हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। अश्विन मास  के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने इसी दिन  लंकेश रावण का वध किया था। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है इसलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा पर्व  वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियां में से एक है। अन्य दो हैं  चैत्र शुक्ल की  प्रतिपदा और कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इस दिन का भारतीय सनातन संस्कृति में बड़ा महत्व है जब सभी  लोग अपना  नया कार्य प्रारंभ करते हैं और शस्त्र पूजा भी करते हैं। इस दिन को विशेष रूप से शस्त्र पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो सैन्य, सुरक्षा, या विभिन्न प्रकार के व्यवसायों से जुड़े होते हैं।शस्त्र पूजा का उद्देश्य अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना और उन्हें पवित्र मानना है। यह पूजा विशेष रूप से सैनिकों, पुलिसकर्मियों, और उन लोगों के लिए की जाती है जो विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग करते हैं। शस्त्र पूजा से यह संदेश मिलता है कि युद्ध और हिंसा का उपयोग केवल जब आवश्यक हो तब किया जाए, और उससे पहले अपने अस्त्रों का सम्मान किया जाए।विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हम अपने शस्त्रों का उपयोग केवल आवश्यकता के समय करें और सदैव शांति और सद्भाव की भावना को प्राथमिकता दें

विजयादशमी के त्योहार मनाने के पीछे एक दूसरी भी पौराणिक मान्यता प्रचलित है। महिषासुर नाम के एक दैत्य ने सभी देवताओं को पराजित करते हुए उनके राजपाठ छीन लिए थे। महिषासुर को मिले वरदान और पराक्रम के काण उसके सामने कोई भी देवता टिक नहीं पा रहा था। तब महिषासुर के संहार के लिए ब्रह्रा, विष्णु और भोलेनाथ ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा का सृजन किया। मां दुर्गा और महिषासुर दैत्य के बीच लगातार 9 दिनों तक युद्ध हुआ और युद्ध के 10वें दिन मां दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध करके उसकी पूरी सेना को परास्त किया था। इस कारण से शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है और पांडालों में स्थापित देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर अपनी विजय  यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन को उत्साव का रूप दिया गया है जब  पूरे देश में विशेष आकर्षण देखा जा सकता है।  जगह-जगह मेले लगते हैं और  रामलीलाओं का आयोजन होता है।   दशहरे के अवसर पर रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया भी जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान रघुनाथ जी की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा की उपासना का पर्व है और शस्त्र पूजन की तिथि है जो  एक तरह से  हर्ष , उल्लास  और  विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक और शक्ति की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव  पर्व के रूप में रखा गया है। दशहरा का पर्व 10 प्रकार के पापों काम. क्रोध,  लोभ , मोह ,मद , मत्सर,  अहंकार ,  हिंसा और चोरी के परित्याग की सदप्रेरणा प्रदान करता है। 

दशहरे का एक सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है और जब किसान अपने खेत में   फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति को अपने घर लाता है तो इससे  उसके उल्लास और उमंग का कोई ठिकाना नहीं रहता। इस ख़ुशी  के अवसर को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण  के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी से मनाया जाता है। सायं काल के समय पर सभी ग्रामीण जन सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित होकर गांव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्ते के रूप में स्वर्ण मानकर उसे  अपने ग्राम में वापस आते हैं और फिर उस पत्ते  का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।

दशहरे के  भारत के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग  रूप  दिखाई देते  हैं।  दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा की पूजा के रूप में दोनों में यह शक्ति और विजय का उत्सव  है। हिमाचल प्रदेश के कल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की भांति यहां पर 10 दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इसकी तैयारी आरंभ हो जाती हैं। स्त्रियां  और पुरुष सभी सुंदर कपड़ों  से सुसज्जित होकर  तुरही ,बिगुल , ढोल , नगाड़े , बांसुरी आदि  जिसके पास जो भी वाद्य यंत्र होता है उसे  लेकर अपने घरों से  बाहर  निकलते हैं।  हिमाचल के पहाड़ी लोग इस मौके पर अपने कुलदेवता का धूमधाम से समरण  कर जुलूस निकालकर उसकी आराधना करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत आकर्षक और सुंदर ढंग में सजाया जाता है और पालकी में बिठाया जाता है, साथ ही वे अपने  मुख्य देवता  रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं।  इस विशाल जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हुए लोगों को झूमने पर मजबूर कर देते हैं।  इस प्रकार जुलूस बनाकर के मुख्य मार्गों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कल्लू नगर में देवता रघुनाथ जी की वंदना से दशहरे के उत्सव को शुरू करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा बड़ी निराली होती है।

 पंजाब में दशहरा नवरात्रि की 9 दिन का उपवास रखकर मनाते  हैं। इस दौरान यहां आगुंतकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहार से किया जाता है। यहां भी रावण दहन के अनेक आयोजन होते हैं और मैदान पर मेले  भी लगते हैं।  छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर में  भी दशहरे  पर विशेष आकर्षण देखने को मिलता है।  बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को  राम की रावण पर विजय न मानकर लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी है जो दुर्गा का ही एक  रूप है। ये आयोजन यहाँ पर  पूरे 75 दिन चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन शुक्ल की त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन  जिसे 'काछिन गादि'  कहते हैं, देवी से समारोह आरंभ करने की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटो की सेज पर विराजमान रहती है। यह  कन्या एक अनुसूचित जाति की कन्या  है  जिससे बस्तर के राज परिवार के व्यक्ति अनुमति देते हैं। यह समारोह लगभग 15 वीं शताब्दी से शुरू हुआ था।  इसके बाद जोगी -बिठाई होती है और इसके बाद भीतर 'रैनी  विजयदशमी 'और बाहर ' रैनी रथ यात्रा' और अंत में ' मुरिया'  दरबार लगता  है। इसका समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को 'ओहाड़ी' पर्व से होता है।   बंगाल, उड़ीसा और असम में यहां पर दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व बंगाल, उड़ीसा और असम के लोगों का सबसे प्रमुख त्यौहार है। पूरे बंगाल में  सप्ताह भर से अधिक दिन तक इस पर आयोजन किये जाते हैं।  उड़ीसा और असम में 4 दिन तक त्यौहार चलता है। यहां देवी को भव्य  रूप में सुसज्जित  पांडालों  में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को  दुर्गा की मूर्ति तैयार  करने के लिए बुलाया जाता है।  इसके साथ ही  अन्य देवी, देवताओं की भी कई मूर्तियां भी  बनाई जाती है। त्योहार के दौरान शहर में छोटे-स्टॉल भी लगाए जाते हैं जो  मिठाइयों की मिठास से भरे रहते हैं।यहां षष्टी के दिन दुर्गा देवी का भजन, आमंत्रण और  प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन भी  किया जाता है। उसके उपरांत अष्टमी और नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। अष्टमी के दिन महापूजन और  बलि  भी दी जाती है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और प्रसाद  चढ़ाने के साथ ही   प्रसाद का वितरण और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं जिसे 'कोलाकुली' कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं और देवी को अश्रुपूरित  विदाई देती हैं।  इसके साथ ही वे आपस में सिंदूर भी  लगाती हैं  है और सिंदूर से खेलती भी हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके पश्चात देवी देवताओं को बड़े-बड़े  ट्रकों में भरकर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की ये यात्रा बड़ी सुहानी और दर्शनीय होती है। तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दशहरा पूरे 10 दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी ,सरस्वती और दुर्गा देवी की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती, कला और विद्या की देवी की पूजा अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा की शक्ति की देवी स्तुति की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है लोग एक दूसरे को मिठाई और कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने  के लिए बहुत ही शुभ समय होता है। 

कर्नाटक में मैसूर का दशहरा विशेष उल्लेखनीय है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सजाया जाता है और हाथियों का श्रृंगार करके पूरे शहर में एक विशाल जुलूस  निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालाओं  से दुल्हन की तरह सजाया जाता है और इसके साथ ही शहर में लोग टॉर्च लाइट के साथ  नृत्य और संगीत की शोभा यात्रा का आनंद लेते हैं।इन द्रविड़ प्रदेशों में भी रावण दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।

गुजरात में मिट्टी सुरभि रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक मानी जाती है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर  पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान होती है।  पुरुष और स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर  आपस में बजाते  हुए घूम-घूम कर नृत्य करते  हैं। इस अवसर पर भक्ति, फिल्म और पारंपरिक लोक संगीत सभी का सुन्दर समन्वय  देखने को मिलता है। पूरा गुजरात गरबे के रंग से सरोबार होता है और इन दिनों प्रदेश की रौनक देखते ही बनती है।  पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात तक चलता है जिसमें सभी थिरकने से अपने को नहीं रोक पाते हैं। नवरात्रि में सोने और गहनों  की खरीद को बहुत ही शुभ माना जाता है।

 महाराष्ट्र में नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं जबकि दसवें  दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है।  इस दिन विद्यालय में जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या की आराध्य देवी के लिए यह  दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह प्रवेश और नए घर खरीदने को शुभ मुहूर्त समझते हैं। कश्मीर के अल्पसंख्यक भी  हिंदू नवरात्र के पर्व को बहुत श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सभी सदस्य वयस्क 9 दिन तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। अत्यंत पुरानी परंपरा के अनुसार 9 दिनों तक लोग माता खीर  भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं और एक मंदिर एक झील के बीचों- बीच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है की देवी ने अपने भक्तों से कहा हुआ कि यह यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। कहा जाता है कि इंदिरा गाँधी की हत्या के ठीक एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले यहाँ का पानी सचमुच काला  हो गया था।  

दशहरे का उत्सव शक्ति और विजय का  उत्सव है। नवरात्रि के 9 दिन आदिशक्ति  जगदंबा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य भी विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है और इस दृष्टि से दशहरे का बहुत महत्व है जिसे विजय के  प्रस्थान  उत्सव के रूप में मान्यता मिली हुई है।  भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता और शक्ति की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता का प्रादुर्भाव होने के कारण से ही दशहरे  का उत्सव मनाया जाता है।  यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा न कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति की निशानी है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक  है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु भी इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न  शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी  दिन प्रस्थान करके सनातन हिंदू धर्म की रक्षा की थी। ऐसे अनेकों  उदाहरण हमारे इतिहास में हैं जब हमारे हिंदू राजाओं ने इस दिन विजय के रूप में प्रस्थान किया करते थे।इस पर्व को भगवती के विजया नाम पर विजयदशमी भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक मुहूर्त होता है। यह कार्य सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है इसलिए भी इसे विजयदशमी कहते हैं। ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग उसे और भी शुभ बनता है। 

युद्ध करने का प्रसंग ना होने पर भी इस काल में राजाओं ने महत्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोगों की  सीमा का उल्लंघन किया । दुर्योधन ने पांडवों को जुए  में पराजित कर 12 वर्ष के वनवास के साथ 13 वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। 13वें वर्ष का  पता उन्हें अगर  लग जाता तो उन्हें फिर से  12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना टुनीर धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था और स्वयं वृहन्नला के वेश  में राजा विराट के यहां नौकरी शुरू कर ली थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र और द्रौपदी  के भाई  धृष्टद्युम्न  ने  अर्जुन को अपने साथ रख लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने  हथियार उठाकर शत्रुओं पर प्रचंड विजय प्राप्त की थी।  विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम चंद्र जी लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था इसीलिए इस विजय काल के उत्सव में में शमी  का पूजन बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जो आज भी बड़ा फलदायी  है। भगवान राम को मिले 14 वर्ष के वनवास के दौरान लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। तब भगवान राम, लक्ष्मण, हनुमानजी और वानरों की सेना ने माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए भीषण  युद्ध किया था। कई दिनों तक भगवान राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। भगवान राम ने 9 दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना करते हुए 10वें दिन रावण का वध किया था। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था और रावण के बढ़ते अत्याचार और अंहकार के कारण भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध कर पृथ्वी को रावण के अत्याचारों से मुक्त कराया।

विजयादशमी केवल राम की विजय का पर्व नहीं है, बल्कि यह नवरात्रि के पर्व का अंतिम दिन भी है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और विजयादशमी के दिन देवी की शक्ति और संहारक रूप की विजय का जश्न मनाया जाता है। विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का आयोजन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में किया जाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अस्त्रों और औजारों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी रखनी चाहिए। विजयादशमी पर्व  हमें आत्मविश्वास, साहस और नैतिकता का पाठ  पढ़ाता  है, जिससे हम अपने समाज की भलाई के लिए कार्यरत रह सकें। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की ही  विजय होती है।


Sunday, 22 September 2024

सुशासन के संकल्पों को साकार करती 'मोहन सरकार '

शासन की संपूर्ण व्यवस्थाओं में जनता के प्रति जवाबदेही,पारदर्शिता और सेवा-भाव से सभी को समर्पित कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना सुशासन का मूलमंत्र है। भारतवर्ष में आदिकाल से ही सुशासन की परंपरा रही है। आदिकाल की इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में मध्य प्रदेश  भी सुशासन के नए अध्याय लिख रहा है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसम्बर 2023 को प्रदेश की बागडोर संभाली। उनके बागडोर संभालते ही प्रदेश में सुशासन का सूर्यादय हुआ है। प्रदेश सरकार सबका साथ-सबका विकास, सबका प्रयास और सबका विश्वास के मूलमंत्र को लेकर आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में 9 माह की अल्पावधि में कई जनहितकारी फैसलों से समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए प्रदेश सरकार ने अनेक कदम उठाए गए हैं। सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति का प्रतिफल है कि आज प्रदेश के हर कोने में मोहन सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण  स्वच्छ और ईमानदार प्रशासन और सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाना रहा है। आम आदमी की जिंदगी में बदलाव लाना मुख्यमंत्री डॉ. यादव का मुख्य उद्देश्य है। अल्प अवधि में  मोहन सरकार ने जनता से किए गए वादे पूर्ण करने की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं, जिसके कारण प्रदेश में विकास का नया दौर शुरू हुआ है। सेवा, सुशासन, सुरक्षा एवं विकास के संकल्प को लेकर प्रदेश सरकार जनता की सेवा में दिन-रात लगी हुई है।  

मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने छोटे से कार्यकाल में अपने काम से न केवल जनता का दिल जीता है बल्कि अपने सख्त निर्णयों के माध्यम से राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भी अपनी अलहदा पहचान बनाने में सफलता पाई है। उन्होनें योग्य अफसरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देकर अपने बुलंद इरादों को सभी के सामने जता दिए। इस छोटे से कार्यकाल में उन्होनें अपनी खुद की नई टीम बनाई और सीएम आवास से लेकर मंत्रालय, संभाग और जिलों में बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करने से भी परहेज नहीं किया। हर समय एक्शन में रहने वाले डा. मोहन यादव के तेवरों को देखकर आज प्रदेश में पूरी नौकरशाही सहमी हुई है। मंत्रालय का वल्लभ भवन एक दौर में दलालों का अड्ड़ा बना था।  वहाँ पर भी ताबड़तोड़ तबादलों से मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने खलबली मचा दी । हर किसी अधिकारी  के ट्रैक रिकार्ड को न केवल  खंगाला बल्कि कार्यक्षमताओं के अनुरूप सभी को नए कार्यों का प्रभार सौंपा। ख़ास बात ये है इस सरकार में  बेलगाम नौकरशाही पर भी नकेल कसी गई है जिस कारण  मध्यप्रदेश का डबल इंजन विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। नए मुखिया की  तीव्र गति से निर्णय लेने की क्षमताओं से  मध्यप्रदेश में एक  बदलाव  की नई  बयार देखने को मिल रही है। नई विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था होने से अब प्रदेश के विकास कार्यों में न केवल तेजी आयी है बल्कि समय -समय पर  मॉनीटरिंग  किये जाने से जनता के हित में  तेजी से निर्णय लिये जा रहे हैं।

साइबर तहसील डिजिटल इंडिया की दिशा में प्रदेश के नागरिकों को सुविधा प्रदान करने की दिशा में की गई बड़ी पहल है। इसके जरिए लोगों को कई कामों को करने में आसानी हुई है। खासतौर से  भूमि या भूखंड खरीदी बिक्री के बाद आने वाली कठिनाइयों को साइबर तहसील के जरिये काफी आसान कर दिया गया है।  इससे लोगों को भाग दौड़ से निजात मिल रही है और समय की भी बचत हो रही है। साइबर तहसील खोले जाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और लोगों को सुविधा पहुंचना है।  साइबर तहसील बनने के बाद रजिस्ट्री होने पर बिना किसी आवेदन के नामांतरण प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। साइबर तहसील में सार्वजनिक नोटिस की प्रक्रिया को भी सरल किया गया है। क्रेता- विक्रेता और गांव के निवासियों को एसएमएस के माध्यम से सार्वजनिक नोटिस जारी किया जाता है। इसके अलावा आपत्तियों को लेकर भी ऑनलाइन प्रक्रिया का पालन किया जाता है। एसएमएस में 10 दिनों के अंदर ऑनलाइन आपत्तियां दर्ज करने के लिए लिंक भी प्रदान किया जाता है। साइबर तहसील में पटवारी की सकारात्मक रिपोर्ट और कोई आपत्ति नहीं होने पर तुरंत नामांतरण आदेश जारी किया जाता है।  इसके अलावा भू अभिलेख अपडेट करने को लेकर भी रियल टाइम में तुरंत खसरा, नक्शा जैसे भू अभिलेख ऑनलाइन दर्ज हो जाते हैं। इतना ही नहीं प्रमाणित प्रति भी व्हाट्सएप और ईमेल के माध्यम से तुरंत भेज दी जाती है।   

मुख्यमंत्री की शपथ लेने के तुरंत बाद डा. मोहन यादव का पहला फैसला मध्यप्रदेश में धार्मिक स्थानों पर जोर से लाउड स्पीकर बजाने और खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्ती से रोक का रहा। इस फैसले का सभी ने तहे दिल से स्वागत किया। अपराधियों के घरों पर मोहन  सरकार  भी अपनी बुलडोजर नीति पर चल रही है जिससे अपराधियों के मन में खौफ बैठ गया है।मुख्यमंत्री डा.मोहन नई बसाहट के साथ  काम करना चाहते हैं जो त्वरित निर्णय ले सके। 

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में पहली बार हुकुमचंद मिल इंदौर के 4 हजार 800 श्रमिकों को उनका हक दिलाया। तीस वर्ष से अटके इस मामले को डॉ. मोहन यादव ने एक ही बैठक में निपटा दिया। मध्यप्रदेश  सरकार, राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार के बीच 28 जनवरी को श्रमशक्ति भवन स्थित जल शक्ति मंत्रालय के कार्यालय में संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चंबल-ईआरसीपी लिंक परियोजना के त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए जिससे मध्यप्रदेश के चंबल और मालवा अंचल के 13 जिलों की आम जनता को मिलेगा। कई बरसों से लटके इस मामले को  मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने जयपुर में एक ही बैठक में निपटा दिया। 

मप्र में राजस्व महाअभियान चला जिसमें  सीएम के निर्देश पर लाखों  प्रकरणों का निपटारा हुआ। अभियान्तर्गत डिजिटल क्रॉप सर्वेक्षण भी किया गया। किसानों और आमजन की सहूलियत के लिये पटवारी अपने  दायित्वों का निर्वहन  कर रहे हैं। अविवादित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण 30 दिन में, विवादित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण 150 दिन में किया जायेगा। बंटवारा प्रकरणों के निराकरण की समय-सीमा 90 दिन है और सीमांकन प्रकरणों को 45 दिन में निराकृत करने के निर्देश दिये गये हैं। राजस्व महाअभियान में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारी कर्मचारियों को अब प्रदेश में  सम्मानित भी किया जा रहा है। राजस्व महा अभियान में  सही ढंग से मॉनीटरिंग भी की जा रही है। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने श्रीराम पथ गमन न्यास की पहली बैठक में  अयोध्या की तर्ज पर  चित्रकूट में भी विकास कार्य करवाए जाने की बड़ी घोषणा की। जिन स्थानों से भगवान राम गुजरे और कृष्ण के कदम जहाँ जहां पड़े , सरकार ने उन स्थानों को सड़क मार्ग से जोड़ने का  ऐलान कर सनातन प्रेमियों का दिल जीतने का काम किया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत 2047 के विजन को आगे बढ़ाने के लिए मध्यप्रदेश की डॉ. मोहन यादव की सरकार ने  महाकाल की नगरी  उज्जैन, जबलपुर  ग्वालियर में ‘रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव’ के सफल आयोजन किया जिसके माध्यम से प्रदेश में बड़ा निवेश आया है और रोजगार की दिशा में मोहन सरकार का यह बड़ा कदम है। किसानों के कल्याण के लिए मध्य प्रदेश सरकार  संकल्पित  नजर आती है। उसने सदैव किसानों की चिंता की है।  मोहन सरकार ने सोयाबीन के दाम 4892 रुपए समर्थन मूल्य पर करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था जिसे मोदी सरकार ने पास कर दिया है।  हाल ही में मध्यप्रदेश को फिर से  सोया स्टेट का दर्जा भी मिला है। मध्य प्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र को पीछे छोड़कर सोया स्टेट बना है।  

मध्यप्रदेश के गरीब और मध्यमवर्ग के परिवारों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा परिवार में कोई सदस्य  अगर बीमार पड़ गया तो उसे एयर एम्बुलेंस जैसी सुविधा मिलेगी लेकिन डॉ. मोहन ने अपने कार्यकाल में प्रदेश की जनता को इसकी  बड़ी सौगात दी।  मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने अपने गुड गवर्नेंस के मॉडल को सभी के सामने पेश किया है जिसमें जनता  के हितों की अनदेखी होनी  फिलहाल तो मुश्किल दिखाई दे रही है। नया 'मोहन मॉडल 'सबकी जुबान पर चढ़ रहा है। एमपी की जनता भी उनके  निर्णयों पर हामी भरती नजर आ रही है। पक्ष और विपक्ष भी उनकी नीतियों और काम करने के अलहदा अंदाज का का तोड़ नहीं निकाल पा रहा है। मोहन सरकार की अब तक की दिशा देखकर स्पष्ट नजर आता है कि वह  पार्टी के संकल्प पत्र में किये गए वायदों को पूरा करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन  और मोदी की हर गारंटी पूरा करने के लिए डॉ. मोहन यादव ने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। हालाँकि सरकार का 9 माह का कार्यकाल बहुत छोटा होता है लेकिन मोहन यादव ने अपने छोटे से कार्यकाल में इस बात को प्रदेश के भीतर स्थापित कर दिया है उन्हें कमतर आंकने की भूल कोई भी नहीं करे, वह मध्यप्रदेश की राजनीती नहीं बल्कि देश की सियासत में भी लम्बी रेस के घोड़े साबित होंगे।

Saturday, 21 September 2024

पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अनुष्ठान है श्राद्ध

पूर्वजों की आत्मा की शांति पूजा के लिए वर्ष के 15 दिन बहुत खास माने जाते हैं, इन्हें पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृलोक से धरती लोक पर आते हैं इसलिए इस दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान आदि करने का विधान है।  पितृ पक्ष में सोलह श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और पूर्वज परिजन को खुशहाली का आशीर्वाद  देते हैं।  मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों का ऋण चुकता हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।वह परिवारजन को खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।  

ऋषियों ने हमारे संपूर्ण जीवन चक्र को सोलह संस्कारों में बांधा है। जहां गर्भदान  प्रथम संस्कार है वहीँ  अंत्येष्टि अंतिम। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है इसलिए पितृ पक्ष के दौरान भक्ति पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना चाहिए।

हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह प्रक्रिया पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शाति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।  पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान बड़ी संख्या में किया जाता है।  सही मायनों में कहा जाए तो श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्ति प्रदान करना है। मान्यता है कि पितरों का आशीर्वाद न मिलने से रक्त संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार में समस्या आ सकती है।  ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम पितरों को जल. अन्न और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं, जिससे उनको आत्मा संतुष्ट होती है।   विशेष रूप से पितृ पक्ष (सोलह श्राद्ध) में यह प्रक्रिया को जाती है।  

 भारतीय पुराणों में तीन ऋणों का उल्लेख है- देव ऋण , मनुष्य ऋण और पितृ ऋण।   देव पूजन जितना आवश्यक है पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।   सभी 18 महापुराणों में श्राद्ध, तर्पण और पितरों के पूजन का विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है।  शास्त्रों में विशेष तिथि श्राद्ध के दिन दैहिक कर्म करने के बाद विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं जैसे कि एकोदिष्ट श्राद्ध, नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, सोरस श्राद्ध (सोलह बाद्ध) और महालय श्राद्ध इन्हें समय-समय पर किया जाना चाहिए क्योंकि पितरों की अपेक्षाएं और भावनाएं हमारे साथ जुड़ी होती हैं।यदि पितर अतृप्त होते हैं तो उनके रक्त संबंधी या करीबी को प्रभावित करते हैं जिससे उन्हें समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। श्राद्ध के प्रतीक कुश, तिल, गाय, कौआ, कुत्ते को श्राद्ध के तत्व के प्रतीक के रूप में माना जाता है । कुश के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु,मूल भाग में भोलेशंकर भगवान का निवास माना गया है ।कौआ  यम का प्रतीक है जो दिशाओं का फलक बताता है। गौ माता तो हिंदू धर्म में सारी वैतरणी को पार लगाने वाली माता के रूप में देखा जाता है। दिन की शुरुआत से पहले गाय को पहली रोटी देने की परम्परा अपने देश में बरसों से चली आ रही है।  

 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष  या श्राद्ध पक्ष में दान का विशेष महत्व माना गया है जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहते हैं पितृ पक्ष के इन 15 दिनों में अपने पितरों के नाम का दान जरूर करना चाहिए जिससे महापुण्य की प्राप्ति होती है लेकिन कुछ ऐसी भी चीजें हैं जिनका पितृ पक्ष में दान नहीं करना चाहिए।  पितृ पक्ष में लोहे से बने बर्तनों का कभी भी दान नहीं करना चाहिए इसके अलावा आप चाहें तो पीतल, सोने और चांदी के बर्तनों का दान कर सकते हैं।  पितृ पक्ष में चमड़े से बनी चीजों या वस्तुएं का इस्तेमाल निषेध है। माना जाता है कि पितृ पक्ष में चमड़े का प्रयोग बहुत अशुभ होता है।  

इसके अलावा, पितृ पक्ष में पुराने कपड़े भी दान में देना अच्छा नहीं माना जाता है। पितृ पक्ष में हमेशा ब्राह्मणों को नए वस्त्र ही दान करने चाहिए।   हिंदू पूजा और सभी अनुष्ठानों में काले रंग का इस्तेमाल करना निषेध होता है, साथ ही अशुभ भी होता है इसलिए पितृ पक्ष में काले रंग के वस्त्र दान करने से बचें। पितृ पक्ष में किसी भी तरह का तेल दान में नहीं करना  चाहिए। सरसों के तेल के दान से बचना चाहिए।इसी तरह से  श्राद्ध पक्ष में पितरों को सिर्फ शुद्ध एवं ताजा भोजन ही अर्पित करना चाहिए।  पितरों को गलती से भी झूठा या बचा खाना नहीं देना चाहिए।  पितृ  पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए, तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए। मान्यता है कि  है कि पूर्वज इन रुपूण में कभी भी आपके घर आ सकते हैं। हमारे पुराने घरों में चिड़ियाँ को दाना डालने की भी पुराणी परंपरा रही है।  पितृ  पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं, तो यह फलदायी होता है।  पूजा-अनुष्ठान, उद्यापन, कथा, विवाह आदि में चाहे ब्राह्मणों की परीक्षा न करें, लेकिन पितृ कार्य में अवश्य करें। समस्त लक्षणों से युक्त, हाथ का सच्चा, व्याकरण का विद्वान, शील एवं सद्गुणों से युक्त, तीन पीढ़ियों से विख्यात ब्राहाणों के द्वारा संयत रहकर श्राद्ध सम्पन्न करे तो यह परिवार के लिए फलदायी रहता है ।

 श्राद्ध पांच प्रकार के होते हैं जिनमें पितृपक्ष के श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाते हैं। इन में अपराह्न व्यापिनी तिथि की प्रधानता है। जिनकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। श्राद्ध हमेशा मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए। अग्नि में जलकर, विष खाकर, दुर्घटना में या पानी में डूबकर, शस्त्र आदि से जिनकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चर्तुदशी को करना चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष में सनातन संस्कृति को मानने वाले सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए, इससे पितर संतृप्त हो कर हमें आशीर्वाद देते हैं। आज की नई पीढ़ी इन सब चीजों को ढकोसला बताती है जो सही नहीं है।  भारतीय कर्मकांड को आज  विज्ञान  भी मान रहा है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए महापर्व का समय है। इसमें ये पिंडदान और तिलांजलि की आशा लेकर पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए श्राद्ध का कभी भी परित्याग न करें, अपने पितरों को संतुष्ट जरूर करें तभी आपके जीवन में खुशहाली  आ सकती है ।

 पुराणों में भी श्राद्ध और तर्पण का विशेष  उल्लेख मिलता है।  विष्णु पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महत्त्व बताया गया है।  इसमें कहा गया है कि पितरों को अर्पित जल और अन्न से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।  इसी तरह से  ब्रह्म पुराण  में  पितरों के लिए श्राद्ध की विधियों का विवरण इस पुराण में मिलता है जिसमें  यह भी बताया गया है कि पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशेष तिथि पर श्राद्ध करना आवश्यक है।  शिव पुराण में श्राद्ध की प्रक्रिया और इसके लाभों का उल्लेख मिलता है।  भागवत पुराण में पितरों के तर्पण और श्राद्ध की विधियां और उनका महत्व वर्णित है।  इसमें पितरों को अर्पित सामग्री की विधि भी बताई गई है।  मत्स्य पुराण में  पितरों के श्राद्ध की विभिन्न विधियों, जैसे एकोदिष्ट और नित्य श्राद्ध, का विवरण इस पुराण में मिलता है।  नारद पुराण में भी पितरों के प्रति श्राद्ध की विधियां और इसके महत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है।  वामन पुराण में  पितरों के श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है जिसमें पितरों को शांति देने के उपाय बताए गए हैं। कूर्म पुराण में  पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध की प्रक्रियाओं का वर्णन  किया गया है।  इसी तरह से लिंग पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण की विधियों का वर्णन किया गया ‌ है और यह बताया गया है कि इससे पितरों को शांति मिलती है।गरुड़ पुराण, श्रीभगवत पुराण, सत्यम्बुधि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्मृति पुराण, प्रदीप पुराण, अग्नि पुराण, श्री भागवत पुराण और कालिक पुराण में भी पितरों के श्राद्ध की विधियां, आत्मा को शाति देने के लिए प्रक्रियाओं और धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है।

 आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि को (मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो) जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना, गौ ग्रास निकालना और उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता हमें जीवन में पितृ ऋण और पितृ दोषों से मुक्त करा देती है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों की आज्ञा का पालन और उनके लिए श्राद्ध करना संतान की सार्थकता को सिद्ध करता है। यह भी कहा गया है कि एक बार गया श्राद्ध करने से संतान होना सार्थक होता है. पितरों के निमित्त श्राद्ध एक महत्वपूर्ण अंग है, जो परिवार में शांति और समृद्धि का कारण बनता है।  श्राद्धकर्ता  को पितृपक्ष में क्षौर कर्म यानी बाल या नाखून नहीं कटवाने चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन, पान खाना, किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन, तेल मालिश और परान्न भोजी ये सात बातें श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं। श्राद्ध के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।      



Thursday, 19 September 2024

प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता के संकल्पों को साकार कर रहा है मध्यप्रदेश



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता  भारत मिशन के संकल्प को साकार करने के दिशा में मध्यप्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति की है।  मध्यप्रदेश ने इस मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य भारत को साफ-सुथरा बनाना है, जिसमें प्रमुख रूप से खुले में शौच से मुक्ति और ठोस और तरल कचरे का उचित प्रबंधन शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू हुए इस मिशन के तहत मध्यप्रदेश ने अपने स्वच्छता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ठोस नीतियां और योजनाएं बनाई हैं। 

 प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिवस  17 सितंबर से “स्वच्छता ही सेवा-2024” अभियान शुरू हुआ है जो इस वर्ष  गांधी जयंती तक पूरे प्रदेश में चलाया जाएगा। यह अभियान ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ थीम पर केन्द्रित है  जिसमें जन-भागीदारी के अभियान से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने की कोशिश रहेगी। स्वच्छता अभियान में इस वर्ष  स्थानीय निकायों की भागीदारी पर भी विशेष जोर  सरकार द्वारा दिया गया है। स्वच्छता को जन -जन अपने व्यवहार में आत्मसात करे , इस हेतु  प्रदेश में वृहद स्तर पर विभिन्न गतिविधियाँ  भी संचालित की  जा रही हैं । प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है  कि प्रदेश में स्वच्छता ही सेवा अभियान की इस वर्ष की थीम स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता रखी गई है। 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान के शुभारंभ अवसर पर मंत्रीगण अपने-अपने प्रभार के जिलों में शामिल हुए हैं  जिसने इस अभियान को  एक नई गति देने का काम किया है। अभियान की शुरूआत में 17 सितम्बर को प्रदेश में किफायती दाम पर दवाईयाँ उपलब्ध कराने वाले जनऔषधि केन्द्रों का शुभारंभ भी किया गया । 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान का समापन 2 अक्टूबर "महात्मा गांधी जयंती" पर प्रदेश भर में होगा। इस दिन महात्मा गांधी के स्वच्छता संबंधी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास किये जायेंगे। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों से ऑनलाइन अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने का प्रयास होगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर सफाई कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि, सफाई कर्मचारियों को स्टार रेटिंग प्रणाली के आधार पर पुरस्कृत किया जाएगा। खास बात यह है कि सफाई कर्मचारियों द्वारा अर्जित प्रत्येक स्टार के लिए उन्हें एक हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। यानी एक स्टार पाने वाले कर्मचारी को एक हजार रुपए और सात स्टार पाने वाले प्रत्येक कर्मचारी को सात-सात हजार रुपए दिए जाएंगे।

मध्यप्रदेश ने खुले में शौच से मुक्ति प्राप्त करने में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। राज्य ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शौचालय निर्माण पर जोर दिया है। पंचायतों और नगरपालिकाओं के सहयोग से, हजारों व्यक्तिगत स्वच्छता शौचालयों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही, स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए व्यापक अभियानों का संचालन भी किया गया है। वर्ष 2014 से वर्ष 2019 तक सरकार और जनता की सक्रिय भागीओदारी के माध्यम से प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन के तहत पहले चरण में 70 लाख से अधिक घरों में नए शौचालय बने जिससे सभी 51 हजार ग्राम तय समय सीमा से पहल खुले में शौच से मुक्त हुए।  इस अभियान में 50 हजार से अधिक स्थानीय स्वच्छताकर्मियों  ने प्रेरक भूमिका निभाई।  इसी तरह प्रदेश में वर्ष 2020 से स्वच्छ भारत का दूसरा चरण शुरू हुआ जिसमें 2024 तक सरकार ने सभी ग्रामों को शौच से मुक्त बनाये रखते हुए ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन मॉडल द्वारा मॉडल श्रेणी में ओडीएफ प्लस बनाने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए प्रदेश में अभी तक 8  लाख से अधिक नए शौचालय बनाने के साथ ही 16 हजार से अधिक सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाये गए और 41 हजार से अधिक गाँवों को ओडीएफ प्लस मॉडल बनाया गया है।  मध्यप्रदेश ने ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। राज्य सरकार ने कचरे को सेग्रीगेट करने, उसका पुनर्चक्रण करने, और उसे कम करने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। खासकर बड़े शहरों जैसे भोपाल, इंदौर, और जबलपुर में स्वच्छता प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए उन्नत तकनीकों और प्रणालियों का उपयोग किया गया है। 25 हजार से अधिक स्वच्छता मित्रों को इस कार्य में शामिल किया गया साथ ही 900 स्वसहायता समूहों को शामिल करने के साथ ही उनकी आजीविका में भी वृद्धि हुई। वर्तमान में प्रदेश के भीतर ग्रामों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एमआरएफ  बनाये जा रहे हैं जिसमें  शहरी निकायों का भी निरंतर सहयोग मिल रहा है। पशुओं के गोबर से खाद और बायो गैस बनाने की दिशा में गोवर्धन योजना से भी  विशेष लाभ मिल रहा है।  

 इंदौर की गिनती आज देश के सबसे स्वच्छ शहरों में अगर हो रही है तो इसका कारण स्वच्छता का संकल्प ही रहा है जिसने कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई है। इंदौर ने देश में हुए 'स्वच्छता सर्वेक्षण' में लगातार सातवीं  बार  शीर्ष स्थान प्राप्त किया है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ के नागरिक और प्रशासन दोनों मिलकर स्वच्छता के लिए प्रतिबद्ध हैं। इंदौर को साफ बनाने में वहां के  नगर निगम जनभागीदारी की  बड़ी भूमिका रही है। आज इंदौर की सफाई प्रणाली पूरे देश को प्रेरणा देने का काम कर रही है। इंदौर शहर से निकले वाले कचरे से गैस  बनाई जाती है जिससे शहर में सीएनजी बसों का परिचालन होता है। कचरे से गैस बनाने के लिए इंदौर में एशिया का सबसे बड़ा प्लांट है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।

एमपी के जन- भागीदारी मॉडल ने  हाल के वर्षों में देश में  विशेष पहचान  बनाई है।  स्वच्छता के उद्देश्यों को साकार करने में मध्यप्रदेश के नागरिकों की भागीदारी भी बड़ी महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश ने स्थानीय समुदायों को स्वच्छता अभियानों में शामिल करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। स्वच्छता संबंधी कार्यशालाएं, जागरूकता अभियानों और स्कूलों में स्वच्छता शिक्षा जैसी विशिष्ट पहल के माध्यम से, राज्य ने नागरिकों को इस मिशन में सक्रिय भागीदार बनाया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से  'एक पेड़ माँ के नाम' जैसे  पौध-रोपण के कार्यक्रम भी  प्रदेश के हर कोने में आयोजित किए जा रहे हैं जिसका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। स्वच्छता संबंधी चुनौतियों के  समाधान हेतु राज्य सरकार ने  स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और कचरा निस्तारण के लिए नई तकनीकों का भी उपयोग किया है। मध्यप्रदेश सरकार भविष्य में स्वच्छता मिशन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई योजनाएं बना रही है। सतत विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार  डिजिटल तकनीक, नवाचार और जनभागीदारी के मॉडल के जरिये अपने स्वच्छता लक्ष्यों को  साकार करने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के स्वच्छता संकल्प को साकार करने के लिए मध्यप्रदेश ने उत्कृष्ट प्रयास किए हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्य की योजनाएं और पहल न केवल स्वच्छता के मानक स्थापित कर रही हैं, बल्कि  आम नागरिकों के जीवन स्तर को भी ऊपर उठाने का काम कर रही है। मध्यप्रदेश की प्रतिबद्धता और योजनाओं से यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से  राज्य भविष्य में स्वच्छता के क्षेत्र में और भी नई ऊँचाइयों को छूने के लिए तैयार है।

Wednesday, 31 July 2024

टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश की धमक और चमक बरक़रार






 मध्यप्रदेश को भी प्रकृति ने न केवल मुक्त हस्त से संवारा है बल्कि नैसर्गिक सौंदर्य और हरियाली से आच्छादित किया है, वहीं प्रदेश सरकार ने भी वन्य प्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर इसे वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से  चलते आज मध्यप्रदेश देश और दुनिया में अग्रणी प्रदेश बना है । यह गर्व की बात है कि देश के 'हृदय प्रदेश ' मध्यप्रदेश को लगातार तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस  29 जुलाई को प्रतिवर्ष  मनाया जाता है।  विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था।  इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे।  इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है।  मध्यप्रदेश में पिछली गणना के अनुसार 785  बाघ हैं, जो देश में सर्वाधिक  हैं। इसके बाद 563 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे और 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है।  

मध्यप्रदेश के कुछ बाघ ऐसे हैं, जो देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। मुन्ना, कॉलरवाली, सीता, चार्जर, बामेरा और टी1 यह कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विशेषताओं के  चलते अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं।  पर्टयक दूर-दूर से इन्हें देखने आते हैं और अलग  तरह का अनुभव लेते हुए खुद को बड़े रोमांचित महसूस करते हैं । कान्हा टाइगर रिजर्व का मुन्ना ऐसा बाघ रहा जिसने 20 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा। वह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण पूरे देश में चर्चा में रहा। वह पर्यटकों के बीच इतना लोकप्रिय रहा  कि देश में सबसे ज्यादा खींची गई बाघों की तस्वीरों में उसकी भी तस्वीर शामिल है। पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया। इसे पेंच की सुपरमॉम के रूप में भी जाना जाता रहा है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता था। बामेरा अपने अलग अंदाज, कद-काठी के लिए जाना जाता रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन रही। विश्व में सर्वप्रथम अनाथ बाघ शावकों को उनके प्राकृतिक परिवेश में बढ़ाकर संरक्षित क्षेत्रों में मुक्त होकर विचरण करने का सफल प्रयास प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व में किया गया। जहां से पन्ना, सतपुड़ा, संजय, दुर्गावती टाइगर रिजर्व एवं माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों को छोड़ा गया था। 

बाघ की दहाड़ अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी  सुनाई दे रही है।  राजधानी भोपाल के  शहरी इलाकों में  भी बाघों की आवाजाही अब देखी  जा सकती है। बाघों  को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी बढ़ने की  संभावनाओं  से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 1973 में बाघों को विशेष संरक्षण प्रदान करने के लिए देश में टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी।  प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना।  इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है।  मध्यप्रदेश में 7 टाइगर रिजर्व हैं  जिनमें कान्हा टाईगर रिजर्व - मंडला  बालाघाट, बांधवगढ टाईगर रिजर्व - उमरिया, पन्ना टाईगर रिजर्व - पन्ना, पेंच टाईगर रिजर्व - सिवनी, सतपुडा टाईगर रिजर्व - होशंगाबाद, संजय - दुबरी टाईगर रिजर्व - सीधी में तथा 7वां टाइगर रिजर्व है रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व  है जो  टाइगर रिजर्व सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के दो अभयारण्य को मिलाकर बनाया गया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 24 अभयारण्य हैं और 11 नेशनल पार्क हैं। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य अपनी विशिष्ट पहचान के लिए  देश में जाने जाते हैं।  यह सुखद  है कि  अब प्रदेश के भीतर  बाघों  की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से  बढ़ रही  है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों  की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही  है।  सतना  से लेकर सीधी , शहडोल  से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला  तक  में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। तीन बार  टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया  है।  इन राष्ट्रीय उद्यानों में  कुशल  प्रबंधन  और अनेक नवाचारी  तौर तरीकों को अपनाया गया है।  प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों और चिड़ियाघरों में भी बाघ हैं, जहां इनका संरक्षण और प्रजनन होता है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने  ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक  कार्यक्रम समय समय पर भी  चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है। 

मध्यप्रदेशके टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में इस समय सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन है।   टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही प्रदेश राष्ट्रीय  उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है।  सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है।   भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में  पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है।  बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है।   इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। खुली जगह  के साथ  वन्यजीवों को तनावमुक्त वातावरण और उचित आहार की भी जरूरत होती है जिस दिशा में प्रदेश में पिछले कुछ समय से बेहतरीन कार्य हुआ है जिसके  चलते  बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है।जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है।  कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।  प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। राज्य शासन की सहायता से कई सौ गाँवों का विस्थापन किया हगया जिससे  बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त हुआ  है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है।  

 बाघों की सुरक्षा के प्रति भी मध्यप्रदेश सरकार संवेदनशील है। हाल ही में हिट एंड रन की वजह से घायल हुए दो बाघ शावकों को विशेष ट्रेन के माध्यम से भोपाल लाने के निर्देश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिए थे। प्रदेश में वन्य क्षेत्रों के पर्यटन से लगभग 55 से 60 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, जिसका 33 प्रतिशत संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्राम विकास में खर्च किया जाता है। वनों और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ-साथ इन वन्य  क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाएं भी मध्यप्रदेश में निरंतर बढ़ रही हैं। वर्ष 2022-23 में 26 लाख 91 हजार 797 पर्यटकों ने प्रदेश  के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का भ्रमण किया। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर रही है जिससे बाघों की हर गतिविधि पर नजर  रखी जा रही है।  बाघ  संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए प्रदेश के  टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन  किया है  जिससे प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य योजना तैयार की जाती है जिसके माध्यम से निगरानी रखने, वन्यजीवों की खोज और बचाव करने, जंगल की आग का पता लगाने और उससे रक्षा करने और मानव-पशुओं के संघर्ष को कम करने के लिये की गई है जिससे जैव-विविधता के दस्तावेज़ीकरण में भी मदद मिल रही है ।

मध्यप्रदेश ने  तीन बार टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।   बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है।पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया गया है। बाघों की सुरक्षा के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक के माध्यम से बाघों की गतिविधि पर नजर वनों में रखी जाती है और बघीरा एप की सहायता से जंगल में सफारी की गतिविधि को ट्रैक किया जाता है। कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है।सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ पर सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है। प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य- योजना तैयार की जाती है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में 'ड्रोन दस्ता' भी  काफी उपयोगी साबित हुआ है।  वन्य प्राणियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रदेश स्तर पर अनुभूति कैम्प भी आयोजित किये जा रहे हैं।  'मैं भी बाघ ' थीम पर इस बार पूरे प्रदेश में विभिन्न जगहों पर आयोजन किये जा रहे हैं। ख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लेने का आहवान किया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं। बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो वन विभाग के सहयोग से संभव हुई है।सही  मायनों में कहा जाए तो  मध्यप्रदेश सरकार ने  वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में  अनेक  पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में  कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके  नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं।

Tuesday, 23 July 2024

मोहन के नेतृत्व में आएगा निवेश, आगे बढ़ेगा मध्यप्रदेश

                                             

                   

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में देश का हृदय प्रदेश इस बार निवेश का नया अध्याय लिखने जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार के 7 माह से अधिक समय के छोटे से कार्यकाल में भारतीय और विदेशी निवेशक अभूतपूर्व संख्या में मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सक्रियता इसमें नया रंग भरने का काम कर रही है। इससे पूर्व प्रदेश में इस तरह के निवेशक सम्मेलन औद्योगिक नगरी इंदौर में आयोजित किये जाते रहे लेकिन मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा सूबे की कमान सँभालते ही पहली बार उज्जैन में आयोजित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से प्रदेश की धार्मिक नगरी में उद्योग की संभावनाओं को नए पंख लगे। यह दूरदर्शी पहल मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की सरकार की राज्य के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इसी तरह की संभावनाओं को प्रदेश के अन्य शहरों में भी प्रदेश सरकार भविष्य में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन आयोजित कर तराशने की कोशिश कर रही है। आगामी 20 जुलाई को प्रदेश के जबलपुर में एक दिवसीय क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन ( रीजनल इन्वेस्टर्स समिट) का आयोजन किया जा रहा है।

उज्जैन में मोहन सरकार ने अपना पहला क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन इसी वर्ष 1 और 2 मार्च को आयोजित किया जिसके सकारात्मक परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। इस भव्य आयोजन में कई उद्योग समूहों ने निवेश करने में अपनी रूचि दिखाई है। राज्य में आयोजित हुए पहले क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के माध्यम से बड़े पैमाने पर निवेशक मध्यप्रदेश की तरफ तेजी से आकर्षित हुए जिसमें अदाणी समूह ने अकेले 75,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रदेश के भीतर करने जा रहा है। उज्जैन में महाकाल एक्सप्रेस वे के निर्माण से लेकर दो सीमेंट पीसने वाली इकाइयां देवास और भोपाल में स्थापित करने के साथ ही यह ग्रुप राज्य में फूड प्रोसेसिंग, लॉजिस्टिक्स, कृषि-लॉजिस्टिक्स और रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में भी बड़ा निवेश करने जा रहा है। सिंगरौली में ‘महान एनर्जी प्लांट’ में बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए भी ग्रुप ने अपनी रूचि दिखाई है जिससे पूरे मध्यप्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं। इस सम्मेलन में एग्रो आयल एन्ड जे. के सीमेंट ने 75000 करोड़ , प्रणव अडानी द्वारा 4000 करोड़ समेत कई निवेशकों ने करोड़ों के निवेश का प्रस्ताव रखा था। उज्जैन क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में लगभग 250 औद्योगिक घरानों को लगभग 508 हेक्टेयर भूमि आवंटन पत्र जारी किये गए जिससे प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ने तय हैं। मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर उद्योगपति रूचि दिखा रहे हैं। ऊर्जा से लेकर हेल्थ, पर्यटन से लेकर शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में प्रदेश के भीतर बड़ी संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं।

मध्यप्रदेश में निवेश, नवाचार और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बीते दिनों मुम्बई में उद्योगपतियों और निवेशकों से सीधा संवाद भी स्थापित किया जिसमें  प्रदेश में निवेश के अवसरों और संभावनाओं की जानकारी सभी को दी गई । कार्यक्रम में राज्य के औद्योगिक परिदृश्य पर सभी ने नामी उद्योगपतियों के साथ अपने दृष्टिकोण को साझा किया। मुंबई में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उद्योगपतियों से वन टू वन चर्चा ने निवेशकों को प्रमुख हितधारकों के साथ जुड़ने, राउंड टेबल चर्चाओं में भाग लेने और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ नेटवर्क बनाने का एक बेहतर मंच उपलब्ध कराया है। प्रदेश के जबलपुर में 20 जुलाई को प्रस्तावित क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन हेतु जोर- शोर से अब स्वदेशी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। जबलपुर के इस भव्य आयोजन में 1500 निवेशकों की भागीदारी होने जा रही है। एक तरफ प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न राज्यों के चुनिंदा शहरों में वन टू वन शो करवा ही रही है वहीँ प्रदेश भर में भी निवेशकों को आकर्षित करने का अभियान भी चलाया जा रहा है। उद्योग जगत भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के विजन की सराहना कर रहा है और मध्यप्रदेश की तरफ नई उम्मीद की नज़रों से देख रहा है। प्रदेश सरकार का फोकस भी चहुंमुखी विकास पर है और देशी निवेशकों का मध्यप्रदेश में विश्वास तेजी से हाल के दिनों में तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार अपनी जीएसडीपी को बढ़ाने के लिए सभी संभव प्रयास किये जा रहे हैं। क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन लाजिस्टिक से जुड़े क्षेत्रों के साथ ही सभी क्षेत्रों के लिए भी एक बेहतरीन अवसर है। मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात है मुम्बई के अलावा कनाडा, नीदरलैंड, थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया के कई औद्योगिक घरानों को प्रदेश की जमीन पसंद आई है और वे यहाँ उद्योग लगाने के लिए तैयार हैं। जबलपुर समिट हेतु कनाडा के एकाग्रता समूह की लंबटन कंपनी के प्रमुखों ने 1100 करोड़ के निवेश को लेकर अपनी सहमति भी प्रदान कर दी है वहीँ रिलायंस समूह अकेले 50 हजार करोड़ से अधिक के निवेश को तैयार है। इस दौरान प्रदेश में 70 परियोजनाओं का शिलान्यास भी किया जाएगा जिससे 1222 करोड़ का निवेश प्रस्तावित होगा।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा मध्यप्रदेश में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2025 को "उद्योग वर्ष" घोषित किया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न रणनीतियों, योजनाओं के माध्यम से सकारात्मक वातावरण के सुदृढ़ीकरण का सतत प्रयास किया जा रहा है। फरवरी 2025 में भोपाल में “इन्वेस्ट मध्यप्रदेश-ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2025" का आयोजन प्रस्तावित है। उद्योगपतियों का कहना है कि हाल के वर्षों में सभी क्षेत्रों में मध्यप्रदेश का तेजी से विकास हुआ है। आज प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकल आया है और ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर की तर्ज पर प्रदेश के हर शहर निवेश के माध्यम से विकास में साझीदार बनाने की पहल कर रहे हैं। प्रदेश में निवेश बढ़ाने के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के प्रयासों का असर अब जिलों तक भी पहुंच रहा है। इससे निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और आने वाले समय में होने वाले अन्य क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन के लिए अधिक निवेशक प्रेरित और प्रोत्साहित होंगे। यदि क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन में होने वाला निवेश पूरी ईमानदारी के साथ धरातल पर उतर आता है तो मध्य प्रदेश की प्रगति और खुशहाली को कोई रोक नहीं सकता।पिछले कुछ वर्षो में मध्यप्रदेश में औद्योगिक निवेश और रोजगार ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। मध्यप्रदेश ने सुशासन और ईज आफ डुइंग बिजनेस के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है और बढ़ता हुआ निवेश इसी का परिणाम है। प्रदेश में देशी कंपनियों के साथ ही विदेशी कंपनियों की भी रूचि मध्यप्रदेश को लेकर काफी बढ़ी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इन्वेस्टर फ्रेंडली नीतियों का ही नतीजा रहा कि प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर स्वदेशी कम्पनियाँ भी अब निवेश को लेकर रूचि दिखा रही हैं जिनमें आईटी, इलेक्ट्रानिक्स, उत्पादन, सेवा क्षेत्र आदि की कई इकाइयां शामिल हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है कि सुशासन के चलते आज प्रदेश में उद्योग , व्यापार और दृष्टि से अनुकूल माहौल बना है। औद्योगिक विकास में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी प्रदेश प्रगति के पथ पर अग्रसर है। सूबे की सरकार ने इस बार के बजट में उद्योगों के लिए पर्याप्त राशि भी रखी है जिससे देश की जीडीपी को आगे बढ़ाने में प्रदेश अब पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ेगा। मध्यप्रदेश में देश का सबसे बड़ा मेडिकल डिवाइस पार्क, विक्रम उद्योगपुरी, उज्जैन में स्थापित होने जा रहा है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास के अंतर्गत अनेक प्रचलित व प्रस्तावित परियोजनाओं पर कार्य तेजी से चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ देश आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश देश का दिल है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल में भी मध्यप्रदेश बसता है। जो भी उद्योगपति मध्यप्रदेश में निवेश और व्यवसाय के लिए रूचि दिखाएंगे, इससे उनकी ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश की भी प्रगति होगी। आने वाले समय में प्रदेश सरकार सभी जिलों में क्षेत्रीय स्तर पर अलग -अलग समिट आयोजित करेगी। 20 जुलाई को जबलपुर में क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन (रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव) के आयोजन के बाद ग्वालियर, दमोह-सागर, रीवा और अन्य जिलों में भी इस तरह के क्षेत्रीय आयोजन होंगे। इसके प्रस्ताव सरकार को मिलने अभी से शुरू हो चुके हैं।

Sunday, 9 June 2024

देश के हृदयप्रदेश में 'मोहन 'की 'मुस्कान 'का मतलब तो है !




मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में डॉ. मोहन यादव को शुरू में भले ही ‘डार्क हॉर्स’ नहीं माना जा रहा था लेकिन इस लोकसभा चुनाव में जिस मेहनत और संकल्प शक्ति के बूते उन्होंने  स्टार प्रचारक बनकर एक नया सन्देश पूरे देश में दिया है और जिस तरह के  चुनाव  परिणाम सामने आये हैं,  उससे साफ़ दिख रहा है कि कोई अब  उन्हें ‘हल्के’ में लेने की भूल नहीं करेगा।  

लोकसभा चुनाव 2024  के इस बड़े लोकतंत्र के महायज्ञ में डॉ. मोहन यादव ने एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर इस लोकसभा चुनाव के  जरिये अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश भी है। खास बात यह है कि डॉ. मोहन यादव  इस लोकसभा चुनावों के जरिये न केवल मध्यप्रदेश बल्कि  देश की राजनीती में अब स्थापित होते नजर आ रहे हैं।  मध्यप्रदेश में डॉ  मोहन यादव के  मुख्यमंत्री रहते  पहली बार सूबे  में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है। देश के हृदय प्रदेश  में ऐसा 'मोहन युग'  में ही पहली बार संभव हुआ है। सबसे खास बात ये है मध्यप्रदेश में कमलनाथ का अभेद किला छिंदवाड़ा भी इस 'मोहन युग ' में  ढह गया है। एक उपचुनाव जिसमें सुंदरलाल पटवा को जीत मिली थी अगर उसको  छोड़ दिया जाए तो ऐसा पहली बार हुआ है  मध्यप्रदेश भाजपा  छिंदवाड़ा लोकसभा सीट अपनी झोली में लाने में कामयाब हुई है। छिंदवाड़ा की जीत के बाद मध्यप्रदेश के  सीएम डॉ.  मोहन यादव  लोकसभा चुनावों की अपनी पहली अग्निपरीक्षा में पूरी तरह से पास  हो गए हैं।

 17 वर्ष तक मध्यप्रदेश की  कमान सँभालते हुए शिवराज सिंह चौहान  ने अपनी खुद की 'मामा'  वाली राजनीति  से  अपना अलग नरेटिव गढ़ने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वे भी कभी मुख्यमंत्री रहते छिंदवाड़ा सीट फतह करने में कामयाब नहीं हो पाए। कई बरसों से प्रदेश के मुखिया रहने के चलते उनके प्रति आम जनमानस में एक निरंकुशता का भाव पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद से बन गया था। यही नहीं शिवराज के कार्यकाल में  प्रशासनिक तंत्र जनता से हर दिन  दूर होता गया।


 नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने भी वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी नए मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो शिवराज सरकार की छाया और प्रशासनिक  तंत्र से बाहर निकलकर नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं  लेकिन डॉ. मोहन यादव  की  बेहतर  सोच, सरकार , संगठन और  संघ से बेहतर तालमेल,  मोदी की गारंटी को  क्रियान्वित करने का जूनून,  बेलगाम नौकरशाही में धमक,  नई  बसाहट के साथ काम करने के  विजन एक सहारे  इस लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता का दिल जीतने की कोशिश की है। इस दृष्टि से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सीएम डाॅ.मोहन यादव ने कम समय में  अपने इस स्लॉग ओवर की गुगली से  कांग्रेस के पसीने ही छुड़ा दिए हैं।  इस बात के प्रमाण कमलनाथ के अभेद किले पर  जीत के साथ ही मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर कमल खिलने से दिखाई दे रही है ।

कमलनाथ के मजबूत गढ़ में कमल खिलाने के लिए सीएम डॉ. मोहन यादव ने छिंदवाड़ा में 10 दिन डेरा डाला और  यहां केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो और मोदी की गारंटी से माहौल बदलकर उसे भाजपा का मजबूत किला बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चुनावों के ऐलान से पहले ही नाथ परिवार की विरासत रही छिंदवाड़ा  सीट पर कांग्रेस के मजबूत कार्यकर्ताओं और नेताओं को  भाजपा में शामिल कराने  की दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ाये। मध्य प्रदेश भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक और  भाजपा के संकटमोचक पूर्व गृहमंत्री मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा इस जीत में मैन आफ दि सीरीज बने हैं।  उन्होनें चुनाव हारने के बाद जिस तेजी के साथ संगठन को मजबूत करने की किलेबंदी की उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती।   मध्यप्रदेश के इतिहास में मोहन युग  में ऐसा पहली बार  हुआ  जब प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के बाद भी  कई दिग्गज  नेता और कांग्रेस कार्यकर्ता  छोड़कर भाजपा  में शामिल हुए।  छिंदवाड़ा जिले की सभी सात विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का एकछत्र राज  रहा लेकिन कमलनाथ के करीबी पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और उनके बेटे ने नाथ का साथ छोड़ दिया और भाजपा  में शामिल हो गए।  यही नहीं हजारों की संख्या में  कांग्रेसी कार्यकर्ता इस मोहन युग में  भाजपा में शामिल हो गए।  इस साल की शुरुआत से ही  हर दिन कोई न कोई  नेता, कार्यकर्ता  कांग्रेस छोड़ता हुआ नजर आया और कमलनाथ अपनी ही पार्टी में अलग थलग नजर आए।  कमलनाथ ने  लोकसभा चुनावों के  दौर में भी भावनात्मक  कार्ड खेलने की भरपूर कोशिश की लेकिन दांव भी जनता की अदालत में कारगर साबित नहीं  हो पाया।  मुख्यमंत्री मोहन यादव के  बेहतर माइक्रो मैनेजमेंट ने प्रभावी बढ़त बनाते हुए कमलनाथ के कई समर्थकों को भाजपा में लाने में काफी हद तक कामयाब रहे और इसका असर प्रदेश की हर संसदीय सीट में देखने को मिला।

 चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ बैठकर मोहन ने  न केवल  कारगर  रणनीति की बनाई बल्कि खुद की नई  लीक पर  सामान्य कार्यकर्ता बनकर चले।  कांग्रेस के  नेताओं के भाजपा में  शामिल होने से भाजपा के रूठे नाराज नेता कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेकर बेहतर डैमेज कंट्रोल भी किया।  बूथ मैनेजमेंट से निपटने के लिए  भाजपा के संगठन  के साथ बेहतर बूथ प्रबंधन  पर अपना पूरा फोकस  किया।  भाजपा संगठन,  कैडर से जुड़े नेताओं,  कार्यकर्ताओं  में नए जोश का संचार किया।  मुख्यमंत्री यादव प्रदेश के जिस इलाके में गये वहां जनता की भारी भीड़ ने उनके सामने भरोसा दिलाया कि पिछले लोकसभा चुनावों की इस  लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाने का फैसला तो  प्रदेश की जनता पहले  ही कर चुके हैं।हर जगह मुख्यमंत्री यादव के रोड शो और चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ उनकी अपार लोकप्रियता की गवाही दे रही थी। 

इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कन्धों पर  मध्यप्रदेश के साथ ही पूरे देश में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने की भी बड़ी  भी महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी रही जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।  चिलचिलाती  गर्मी में भी ताबड़तोड़ 200 से अधिक जनसभाएं की, 58 रोड शो किए और तकरीबन 12 राज्यों में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार किया।  मध्यप्रदेश के अलावा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दर्जन भर राज्यों में काफी सक्रिय रहे। उन्होंने कई  लोकसभा क्षेत्रों  का कई बार दौरा भी  किया।  जनसभाएं करने के साथ ही अपने  रोड शो से भाजपा के वोट प्रतिशत को भी बढ़ाया। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड,  दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की सबसे अधिक मांग रही । भाजपा ने डॉ मोहन यादव को सबसे ज्यादा अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार में सक्रिय किया, जहां यादव मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक थी।  लोकसभा क्षेत्र में यादव  बाहुल्य इलाकों में मतदाताओं को अपने पाले में लाकर विपक्ष को कैसे नेस्तनाबूद किया जा सकता है, यह काम  भाजपा आलाकमान ने मोहन को भरोसे में लेकर किया जिसमें भाजपा का प्रदर्शन कई सीटों पर बेहतर रहा। 

उत्तर प्रदेश में अखिलेश को भले ही बड़ी सफलता इस बार के लोकसभा  चुनाव में  मिली लेकिन डॉ. मोहन यादव  केंद्रीय नेतृत्व  के भरोसे मोर्चा हर दिन खुद संभाले हुए नजर आये। एक सामान्य से कार्यकर्ता बनकर महाकाल की नगरी के हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय बनते हुए बड़ी मजबूती के साथ मोदी की गारंटी और भाजपा की विचारधारा का हर लोकसभा सीट पर प्रसार किया।    

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने जहाँ अपने प्रचार से यदुवंशियों का दिल जीता वहीँ गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी अपनी सभयबन के माध्यम से हिंदुत्व की नई अलख जगाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाबी हासिल की।  उत्तर प्रदेश और बिहार  के साथ ही पंजाब से लेकर हरियाणा, उड़ीसा से लेकर बंगाल, आंध्र से लेकर तेलंगाना तक हर सीट पर एक सामान्य कार्यकर्ता बनकर भाजपा के पक्ष में प्रचार कर उसकी वर्तमान और भविष्य की राजनीती की संभावनाओं को ही मजबूत करने का काम किया। उनकी सभाओं और रोड शो में उमड़ने वाली भीड़ , विनम्रता और मनमोहनी निश्चल मुस्कान हर मतदाता का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित करती थी। विपक्ष पर तंज कसने के उनके बेबाक अंदाज की भी जनता मुरीद हुई।   महज छह माह के भीतर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने  हिंदुत्व के बड़े पोस्टर बॉय  के साथ ही पूरे देश में एक सख्त प्रशासक की छवि भी बनाई । 

 एक तरफ अपनी सभाओं में उन्होंने अयोध्या, काशी, भोजशाला , ज्ञानवापी और मथुरा का जिक्र किया वहीँ सनातन के पक्ष पर खुलकर देश के  मतदाताओं के बीच मुखर होकर अपना पक्ष मजबूती के साथ रखा जिससे मतदाता भाजपा के पक्ष में लामबंद हुआ। मुख्यमंत्री यादव ने अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस को  रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव का हिस्सा न बनने  के लिए उसे आड़े हाथों लेने में भी देरी नहीं की। सनातन विरोधी बयानों के चलते कांग्रेस के ही कई नेताओं ने कांग्रेस से गुडबाई  कहने में देरी नहीं की  इसीलिए जनता का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया और  यह बात जनता के दिल के भीतर तक  बस  गई। 

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ भी जमकर मुखर होने से पीछे नहीं रहे।  4 जून को आये नतीजों ने फिलहाल मुख्यमंत्री डॉ. मुख्यमंत्री मोहन यादव को लम्बी रेस का घोड़ा साबित किया है।  मध्यप्रदेश में सभी लोकसभा सीटें भाजपा के नाम करने से भाजपा शासित राज्यों के  मुख्यमंत्री के रूप में  डॉ. मोहन यादव की स्थिति बेहद मजबूत होगी।