Sunday, 16 February 2025

जीआईएस बनेगी एमपी के लिए वरदान, रोजगार सृजन के साथ अर्थव्यवस्था को मिलेगी 'बूस्टर डोज'


एमपी में आगामी 24 और 25 फरवरी को राजधानी भोपाल में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है।  यह ग्लोबल इन्वेस्टर समिट 2025 प्रदेश की अर्थव्यस्था के लिए एक मील का पत्थर  साबित  होगी जो राज्य  को विकास की एक नई दिशा प्रदान  करेगी।  इस समिट के जरिए मध्यप्रदेश ने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा है जिससे राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश की संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। इसके माध्यम से एमपी की अर्थव्यवस्था को एक ‘बूस्टर डोज’ मिल सकता है। मध्य प्रदेश की वर्तमान जीडीपी 2.9 लाख करोड़ रूपये है। अब मोहन सरकार जीआईएस और अपनी  निवेश नीति में बदलाव कर अगले 5 सालों में इसे बेहतर करने की दिशा में मजबूती के साथ अपने कदम बढ़ाती नजर आ रही है। अगर निवेश सही से परवान चढ़ा तो वर्ष 2030 तक मध्यप्रदेश की जीडीपी लगभग 6 लाख करोड़ रूपये को पार कर सकती है।  

ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का मुख्य उद्देश्य राज्य में उद्योग, वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना है। यह समिट मध्य प्रदेश के आर्थिक ढांचे को सुदृढ़ करने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने  में सहायक साबित हो सकती है।निवेश के समुचित अवसरों को देखते हुए  राज्य सरकार ने विभिन्न सेक्टरों में  निवेशकों को आमंत्रित किया है जिसका अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।  जीआईएस 2025 एमपी के लिए  न केवल निवेश के अवसर प्रदान करने का एक आयोजन है बल्कि यह राज्य को वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर उभारने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है।

मध्यप्रदेश सरकार उद्योग के अनुकूल माहौल बनाने के लिये प्रतिबद्ध नजर आ रही है। मध्यप्रदेश पर्यटन फार्मास्युटिकल्स ऑटोमोबाइल खनन डेयरी और खाद्य प्र-संस्करण जैसे क्षेत्रों के प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है। मध्यप्रदेश एक्सपोर्ट प्रिपेअर्डनेस इंडेक्स में देश के शीर्ष दस राज्यों में मध्यप्रदेश ईज़-ऑफ-डूइंग बिजनेस रैंकिंग में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है। यहां व्यापार संचालन और निवेश के लिये माहौल को अत्यधिक अनुकूल बनाया गया है। इसके साथ ही नियामकीय प्रक्रियाओं को अत्यंत सरल किया गया है। इससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिल रहा है। प्रदेश में किये गए मुख्य सुधारों में ऑनलाइन पंजीकरण, लाइसेंसिंग और अनुमति स्वीकृति जैसी व्यावसायिक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण और इन्वेस्ट मध्यप्रदेश विंडो प्रमुख हैं। इन्वेस्ट पोर्टल को नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम के साथ एकीकृत किया गया है। इससे निवेशकों का एमपी में तेजी से विश्वास बढ़ रहा है। 

मोहन यादव की निवेशक-फ्रेंडली नीतियाँ राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनके द्वारा शुरू हुई रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव की पहल से एक साल के भीतर  निवेशकों के लिए एक आकर्षक माहौल तैयार हुआ है। उन्होंने राज्य में औद्योगिक विकास के लिए एक मजबूत नीति तैयार की जिसमें स्थिरता और पारदर्शिता की गारंटी दी गई। इसने निवेशकों का  दिल जीता और मोहन के प्रति विश्वास बढ़ाया जिसने  राज्य में निवेश बढ़ाने के रास्ते खोले।निवेशकों के लिए एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू र पारदर्शी प्रशासन रहता है । सीएम डॉ.मोहन यादव ने यह सुनिश्चित किया कि राज्य में प्रशासनिक प्रक्रियाएं पारदर्शी हों, जिससे निवेशकों को कानूनी और प्रशासनिक अड़चनों का सामना न करना पड़े। उन्होंने कई व्यवस्थाओं को डिजिटल किया जिससे प्रशासन में विश्वास बढ़ा और राज्य में निवेश बढ़ा। उनके  द्वारा किए गए सुधारों से राज्य में विदेशी कंपनियों के लिए अनुकूल माहौल तैयार हुआ जिससे राज्य में विदेशी निवेश परवान चढ़ रहा है और  कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने यहां अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करने में रूचि दिखा रही हैं।

मध्यप्रदेश में निवेशकों के लिए 1.25 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र की औद्योगिक भूमि-बैंक है। इसमें से 19,011 हेक्टेयर क्षेत्र उद्योगों के लिए विकसित किए जा चुके हैं । राज्य में 76 विकसित 19 विकासाधीन और 13 प्रस्तावित भूमि-बैंक हैं जो 5 ग्रोथ सेंटर्स में फैले 79 भूखंडों में वितरित हैं। टैक्सटाइल नीति के अंतर्गत संयंत्र और मशीनरी के लिए गए टर्मलोन पर 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान सुविधा 5 वर्षों के लिए अधिकतम, 50 करोड़ रूपये प्रदाय की जाएगी।   अपेरल प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना पर 25 प्रतिशत सहायता अधिकतम 50 लाख रूपये वित्तीय सहायता प्रदाय की जाएगी साथ ही 500 करोड़ रूपये से अधिक का निवेश करने वाली मेगा श्रेणी की इकाईयां सीसीआईपी अंतर्गत कस्टमाइज्ड पैकेज के लिए पात्र होंगी।  इसी प्रकार नवकरणीय ऊर्जा उपकरण विनिर्माण नीति में विकास शुल्क में 50 प्रतिशत की रियायत दी जाएगी।  गुणवत्ता प्रमाणन लागत का 50 प्रतिशत या 1 लाख रूपये जो भी कम हो, की प्रतिपूर्ति की जाएगी।   250 करोड़ से अधिक का निवेश करने वाली मेगा श्रेणी की इकाइयां सीसीआईपी अंतर्गत कस्टामाइज्ड पैकज के लिए पात्र होंगे जाएगी।परिधान, फुटवियर, खिलौने और सहायक उपकरण नीति में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार प्रति कर्मचारी 5 हजार रूपये प्रति माह 5 वर्षों तक नियोक्ता को दिया जाएगा। प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए 13 हजार रूपये प्रति नए कर्मचारी के लिए 5 वर्षों तक प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार टर्मलोन पर 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान, अधिकतम 50 करोड़ रूपये दिया जाएगा। विकास शुल्क में 25 प्रतिशत की रियायत देने के साथ स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क सहायता में 100 प्रतिशत की छूट दी  जाएगी। विद्युत टैरिफ रियायत के रूप में 1 रूपये प्रति यूनिट, अधिकतम 5 वर्षों के लिए प्रदान की जाएगी।  सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को इस समिट से लाभ मिलेगा। अभी प्रदेश में 12.50 लाख एमएसएमई इकाइयां हैं। इनमें 66 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। जीआईएस में देश के बड़े उद्योगपतियों के साथ विदेशों के भी निवेशक शामिल होंगे। हाल ही में मुयमंत्री डॉ मोहन यादव ने जापान की यात्रा की। वहां के निवेशकों ने अपने मौजूदा उद्यमों का विस्तार करने की बात कही है। इसके पहले सीएम की ब्रिटेन और जर्मनी यात्रा के दौरान भी वहां की कंपनियों ने निवेश में रुचि दिखाई थी। यह तीनों देश जीआइएस में सहभागी रहेंगे।  नवाचार-आधारित उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश स्टार्ट-अप नीति-2022 जारी की है। एमएसएमई इकाइयों के विस्तार और राज्य में स्व-रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना प्रारंभ की गई है। निवेश को आकर्षित करने के लिए, राज्य सरकार ने एमएसएमई विकास नीति और औद्योगिक प्रोत्साहन नीति प्रारंभ की है।

ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में भाग लेने वाले निवेशक न केवल राज्य में निवेश करने के इच्छुक हो रहे हैं, बल्कि इस समिट के माध्यम से मध्य प्रदेश के पास औद्योगिक विकास के लिए कई नई परियोजनाओं की शुरुआत हो सकती है। प्रदेश में होने जा रहे निवेश के परिणामस्वरूप राज्य में औद्योगिक ढांचा मजबूत होगा और नई रोजगार संभावनाएं उत्पन्न होंगी।समिट के आयोजन के बाद नए निवेश से सड़क, परिवहन, ऊर्जा, जल आपूर्ति और संचार क्षेत्र में विकास होगा। इससे राज्य के अंदर और बाहर व्यापार की गति तेज होगी, और इससे राज्य की विकास दर में तेजी से वृद्धि होगी। निवेश के कारण नए उद्योगों के निर्माण से राज्य सरकार को टैक्स और अन्य राजस्व की प्राप्ति होगी। ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के जरिए विभिन्न विदेशी कंपनियां मध्य प्रदेश में अपना उद्योग स्थापित करने के लिए आकर्षित होंगी। इससे राज्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और राज्य का वैश्विक मानचित्र पर स्थान बनेगा। साथ ही यह समिट न सिर्फ उद्योग क्षेत्र में, बल्कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन क्षेत्रों में भी नए अवसरों का द्वार खोलेगा।इससे राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी निवेश के जरिए समूचे प्रदेश में  नए उद्योगों की स्थापना से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसके अलावा राज्य सरकार रोजगार वृद्धि के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्रामों को भी बढ़ावा देगी, जिससे युवाओं को नए कौशल मिलेंगे। समिट में विशेष रूप से उन उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा  जो पर्यावरण के अनुकूल हों, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, जैविक कृषि और पर्यावरण-प्रेरित उद्योग। इससे राज्य को ‘हरित’ और सतत विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण लाभ होगा। यह न केवल आर्थिक विकास में योगदान करेगा, बल्कि पर्यावरणीय सुधारों के लिए भी एक मजबूत कदम होगा।एम ने जापान से लौटते ही मध्य प्रदेश में सेमी कंडक्टर को लेकर नई पॉलिसी लाए। यह भारत में उभरता हुआ क्षेत्र है। इसमें निवेश की भी बड़ी संभावनाएं हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के सफल आयोजन के लिए पहले ही कई नीतियाँ बनाई हैं, जैसे निवेशकों के लिए प्रोत्साहन योजना, भूमि अधिग्रहण की सरल प्रक्रिया, और विभिन्न कर लाभ। इसके अलावा, सरकार ने निवेशकों को एक स्थिर और पारदर्शी व्यापार वातावरण प्रदान करने का भी वादा किया है। यह निवेशकों के लिए राज्य को आकर्षक बना देगा और समिट के उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकेगा।इन विभागीय समिट से सरकार मध्यप्रदेश में निवेशकों को सुरक्षित, पारदर्शी और उद्योग-अनुकूल वातावरण देने के लिए प्रतिबद्ध है। जीआईएस के इस नए स्वरूप से न केवल उद्योग और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर भी सृजित होंगे। इससे पहले सात रीजनल इंडस्ट्री समिट से भी हजारों करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आ चुके हैं। कुछ उद्योगों के लिए जमीन भी आवंटित कर दी गई है।

मोहन यादव ने 7 रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव के माध्यम से  यह सिद्ध कर दिया कि देश के हृदयप्रदेश एमपी  अब एक आकर्षक निवेश स्थल बन चुका है जो  निवेशकों के लिए कई  क्षेत्रों में नए अवसर प्रदान कर रहा  है। यह ग्लोबल इन्वेस्टर समिट मध्यप्रदेश के लिए एक टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकती  है। जीआईएस 2025 न केवल एक आयोजन है, बल्कि यह राज्य के भविष्य को नया आकार देने का एक प्रयास है। इस समिट के जरिए मध्यप्रदेश न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाएगा। यह राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, रोजगार सृजन करने और समग्र विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा । राज्य सरकार की बेहतर  योजनाओं और इन्वेस्टर फ्रेंडली नीतियों के माध्यम से यह समिट एमपी को विकास के नए प्रगतिपथ पर ले जाएगी।  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस समिट में  उद्योगपतियों और निवेशकों के साथ वन-टू-वन चर्चा करेंगे। उनकी प्राथमिकता है कि राज्य में निवेशकों को आवश्यक सहायता और संसाधन प्रदान किए जाएं। यह कदम न केवल राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देगा, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी खोलेगा।

Tuesday, 11 February 2025

दिल्ली में आपदा की विदाई और भाजपा आई

 

दिल्ली की राजनीति में भाजपा की हालिया जीत और आम आदमी पार्टी (आप) की हार ने मौजूदा दौर में कई सवाल खड़े किए हैं। दिल्ली में जब चुनावी डुगडुगी बजी तो भाजपा और आप दोनों ही दलों के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिला। पहले केजरीवाल दिल्ली के चुनावों में हमेशा नरेटिव बनाया करते थे और विपक्ष उसकी काट नहीं ढूंढ पाता था लेकिन इस बार  भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के लिए एक सशक्त प्रचार रणनीति अपनाई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में आप-दा ने दिल्ली का पैसा लूट लिया का बेहतर नरेटिव बनाकर भाजपा को प्रचार में आगे किया और केजरीवाल की रेवडी के नहले पर बड़ी रेवड़ी का दहला मारकर  आप-दा पार्टी के कामकाज पर सवाल उठाए और दिल्ली की जनता से यह वादा किया कि भाजपा सरकार बनने पर विकास के नए आयाम स्थापित किए जाएंगे। मोदी और अमित शाह का प्रचार अभियान बड़े पैमाने पर था, जो स्थानीय मुद्दों को लेकर  जनता से जुड़ा हुआ था।

आप पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि उसने पिछले कुछ वर्षों में जिन विकास कार्यों को सबसे बड़ी सफलता के रूप में प्रस्तुत किया था, वे अब जनता के लिए उतने प्रभावी नहीं रहे। शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली-पानी के मुद्दों पर भले ही आप ने दिल्ली के लोगों को आकर्षित किया हो लेकिन यह महसूस किया गया कि अब कुछ नया नहीं है। लोगों ने यह देखा कि आप की सरकार दिल्ली में कुछ बड़े मुद्दों को सुलझाने में विफल रही जैसे रोजगार, महिला सुरक्षा और प्रदूषण नियंत्रण।  इसके साथ ही यमुना की साफ़ सफाई नहीं हो सकी। आप पार्टी में आंतरिक कलह और नेतृत्व की कमी भी हार का एक बड़ा कारण बनकर सामने आई। पार्टी के भीतर लगातार आपसी विवाद और संगठन के भीतर असंतोष ने आम आदमी पार्टी की छवि को प्रभावित किया। रही सही कसर शराब घोटाले और उसकी टॉप लीडरशिप के जेल जाने ने पूरी कर दी।

 अरविंद केजरीवाल का नेतृत्व इस बार उतना प्रभावी नहीं था, जितना पहले था।दिल्ली में भाजपा ने एक बड़ी रणनीति के तहत पूर्वांचल समुदाय के लोगों के वोट बैंक के साथ महिला वोट बैंक और कुछ झुग्गियों के वोट बैंक को अपने पाले में खींचने में सफलता हासिल की।  भाजपा ने अपनी रैलियों में स्थानीय मुद्दों को बेहतर तरीके से उठाया और  यह संदेश देने की कोशिश की कि केवल वे ही दिल्ली  के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में यह रणनीति काम आई, क्योंकि भाजपा ने हर वर्ग को आकर्षित करने के लिए अपनी विचारधारा को मजबूती से प्रस्तुत किया इसमें कोई संदेह नहीं है कि केजरीवाल को मात देने हेतु भारतीय जनता पार्टी और संघ  ने पूरा दम लगाया। उसने धारणा के स्तर पर केजरीवाल की कट्टर ईमानदार की छवि भंग कर दी थी और माइक्रो मैनेजमेंट किया।

 अरविंद केजरीवाल अन्ना की टोपी पहनकर ईमानदारी की राजनीति करके सत्ता में आए थे। दिल्ली की जनता उनसे संपूर्ण ईमानदारी की उम्मीद कर रहा था।तभी शराब नीति से जुड़े घोटाले में नाम आने और जांच शुरू होने के साथ ही अगर वे इस्तीफा देते तो यह उनका बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता था लेकिन कुर्सी से चिपके रहना उन्होनें पसंद किया। वह जेल में रहकर दिल्ली की सत्ता में बने रहना चाहते थे जिसने लोगों के मन में उनके प्रति धारणा बदली। जेल से छूट गए तो खुद को सीएम के रूप में मतदाताओं के बीच प्रोजेक्ट करने लगे इससे सीएम की बनने की उनकी महत्वाकांक्षाएं फिर से जगी। 

 जेल जाकर सीएम बने रहना उनको भारी पड़ गया और शराब घोटाले में उन  पर गंभीर आरोप लगे जो प्रकरण अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है और वह बेल पर हैं। केजरीवाल के जेल जाने से दिल्ली पूरी तरह से ठहर सी गई। अरविन्द ने पिछले वर्ष के बजट में महिलाओं को नकद पैसे देने की घोषणा की थी लेकिन इस साल फरवरी के चुनाव तक महिलाओं को कोई पैसा नहीं मिला। उल्टा ये देखा गया महिलाओं से जो फार्म भरवाए गए वो कूड़े के ढेर में पाए जाने के वीडियो खूब वायरल हो गए। मैंने दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना आंदोलन के दौर को करीब से देखा था ।तब समाज के हर तबके ने अन्ना  के आंदोलन में प्रतिभाग किया था और अरविन्द की पार्टी आप ने भी समाज के हर तबके को अपनी फ्री की रेवड़ियों के द्वारा आकर्षित किया था लेकिन शराब घोटाले के बाद दिल्ली में हर वर्ग में उनको लेकरअसंतोष बढ़ने लगहै। खासकर उन लोगों को निराशा हुई जो केजरीवाल एक माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन की बड़ी  उम्मीदें लगाए बैठे थे। दो साल पहले एमसीडी में बहुमत के बाद भी  दिल्ली की बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी समस्याएं दुरुस्त नहीं  हो पाई। जगह- जगह कूड़े के ढेर, सीवर की समस्याओं और बढ़ते प्रदूषण से लोग त्रस्त हो गए। उनके जेल में होने से पांच महीने तक सारे कामकाज ठप्प रहे। पार्टी ने जिस तरह से लोगों की बुनियादी को नजरअंदाज किया, उससे जनता में आप के खिलाफ बड़ी निराशा फैली।

 आम आदमी पार्टी  की दिल्ली में हार, एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में उभरी है, जिसने न केवल दिल्ली की राजनीति को प्रभावित किया है, बल्कि देशभर में इसके असर को महसूस किया जा रहा है। यह हार उस समय हुई जब पार्टी की उम्मीदें और राजनीतिक ताकत अपने उच्चतम बिंदु पर थी और एक मजबूत चुनावी आधार पर खड़ी थी। दिल्ली में आप और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने से उनका कुछ वोट कांग्रेस के पास चला गया जिससे आप को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। केजरीवाल ने अपने पुराने कई साथियों की टिकट  काट दी और दूसरे दलों से आये उम्मीदवारों को  पैसा लेकर जमकर टिकट बांटी  जिसका उनको बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। जिन 27 नए लोगों को टिकट दी थी उनमें से 20 लोग चुनाव हार गए। शीशमहल विवाद  ने केजरीवाल की छवि को चुनौती दी है। इस पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या एक नेता जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आंदोलन चला रहा था, वह इतनी भव्यता और विलासिता में रहना आखिर सत्ता में आने के बाद कैसे पसंद कर सकता है ?यह कदम एक प्रकार से केजरीवाल की उस छवि के विपरीत है जो उन्होंने खुद को एक फ्लोटर  सैंडल पहने साधारण आदमी नेता के रूप में पेश की थी। इस विवाद ने जनता और उनके कार्यकर्ताओं को एक  मौका दिया है कि वह उनके नेतृत्व पर सवाल उठाएं और यह आरोप लगाएं कि वे भी सत्ता में आने के बाद वही सब कुछ करने लगे हैं, जिसे वे पहले भ्रष्ट मानते थे। शीशमहल का विवाद न केवल आम लोगों में असंतोष का कारण बना है, बल्कि पार्टी के भीतर भी इस पर  आवाजें चुनावों से पहले आने लगी थी ।

 केजरीवाल ने अपने 10 साल  की सफलता का पैमाना मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, महिलाओं को मुफ्त बस मान लिया। उन्होंने दिल्ली के विकास से कोई सरोकार नहीं रखा और आये दिन केंद्र और उप राज्यपाल  को निशाने पर लेते रहे जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। अरविंद केजरीवाल ने आज से ठीक 5 साल पहले एक जनसभा में कहा था मुझे 5 साल का समय दे दो। अगर 2025 में मैं यमुना साफ न कर पाऊं तो मुझे वोट मत देना। असल में यही दावा केजरीवाल पर भारी पड़ गया। रही सही कसर केजरीवाल के यमुना में जहर को लेकर केजरीवाल के बयान ने पूरी कर दी जब चुनावों से पहले उन्होंने कह डाला हर‍ियाणा से यमुना नदी में जहर मिलाया जा सकता है। इसे पीने से द‍िल्‍ली में नरसंहार हो सकता है। लोगों की मौत हो सकती है।भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने यमुना में जाकर पानी पीकर दिखाया  हरियाणा से जो पानी छोड़ा जा रहा है वह तो साफ है लेकिन दिल्ली में यह गंदा कर दिया जाता है वहां अरविंद केजरीवाल की सरकार है जो सफाई नहीं कर पाती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे जनसभाओं में उठाया और कहा जिस यमुना जल को मैं 11 साल से पी रहा हूं, उसमें केजरीवाल कहते हैं कि जहर मिला हुआ है।  क्‍या यह हर‍ियाणा के लोगों का अपमान नहीं है? यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी  तक यमुना पर केजरीवाल को चैलेंज देते नजर आए । इसी बीच अर‍विंद केजरीवाल का एक और बयान वायरल होने लगा जिसमें वे कह बैठे लोग यमुना पर वोट नहीं देते। यह सब भी  केजरीवाल के खिलाफ ही गया। हरियाणा की जाट -गुर्जर आबादी और बाहरी दिल्ली के जो लोग द‍िल्‍ली के वोटर हैं, वे इससे खासे नाराज नजर आए और इससे आप के विरुद्ध स्वर मुखरित होने लगे। 

बेशक आपचुनाव हारी है, लेकिन उसे 43.57 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। सत्तारूढ़ होने वाली भाजपा को 45.56 फीसदी वोट मिले हैं। मात्र 2 फीसदी वोट का फासला रहा लेकिन भाजपा ने 48 सीटों का ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया, जबकि आप’ 62 सीटों से लुढक़ कर 22 सीटों पर आ गई। दिल्ली हार के बाद केजरीवाल का अहंकार भी समाप्त हुआ है । इसके लिए केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं। आम मतदाता ने इस बार उनकी कट्टर ईमानदार की छवि को स्वीकार नहीं कर पाया। 

चुनावी नतीजों में यह निष्कर्ष भी सामने आया है कि दलित, महिला, मध्य वर्ग ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया नतीजतन भाजपा सत्ता तक पहुंच पाई। पिछले चुनाव तक ये समुदाय आपके समर्थक और जनाधार माने जाते थे क्योंकि केजरीवाल की नई छवि के साथ इन वर्गों ने उन्हें वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक माना था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का चुनावी अभियान उम्मीदों के मुताबिक नहीं चल सका। जिस तरह से उन्होंने दिल्ली में अपने विकास कार्यों और शिक्षा-संस्था सुधार के मुद्दे को प्रचारित किया था, वह आम लोगों को आकर्षित नहीं कर सका। इसके साथ ही पार्टी को केंद्र सरकार के खिलाफ लगातार विरोध की रणनीति से भी अधिक सफलता नहीं मिली। चुनावी वादे और कार्यों में बुनियादी बदलावों की उम्मीदें पूरी नहीं हो पाईं, जिसके परिणामस्वरूप मतदाताओं का विश्वास कमजोर हुआ। अब सब कुछ बेनकाब हो गया। इस चुनाव ने विपक्ष के इंडियावाले नेरेटिव को ध्वस्त कर दिया है। लोकसभा चुनाव के जनादेश की व्याख्या यह की गई थी कि मजबूत हुआ है। उसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली के चुनाव जीत कर भाजपा-एनडीए ने इंडियाको लगभग बिखेर दिया है। इस चुनाव में इंडियाके ही घटक दलों ने आपका समर्थन किया और कांग्रेस का खुलेआम विरोध किया। नतीजा यह रहा कि कांग्रेस लगातार तीसरे चुनाव में शून्यरही। दिल्ली में 70 में से 68 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है।

 भाजपा ने दिल्ली में अपनी ताकत को पुनः स्थापित किया  और यह साबित किया वह गलतियों से सबक लेती है और कोर्स करेक्शन करना बेहतर जानती है। भाजपा की कड़ी मेहनत, मजबूत प्रचार अभियान, और स्थानीय मुद्दों पर फोकस ने पार्टी को आम आदमी पार्टी के मुकाबले अधिक प्रभावी बना दिया। वहीं कांग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने में  विफल रही  जिसने आम आदमी पार्टी के वोट बैंक को कुछ हद तक प्रभावित किया। आम आदमी पार्टी के लिए अब एक बड़ी चुनौती है कि वह अपने समर्थकों के बीच विश्वास को फिर से कैसे बहाल करे। भाजपा ने हमेशा खुद को एक ज़मीन से जुड़ी पार्टी के साथ ही 365 दिन चुनावी माड़ में रहने वाली पार्टी के तौर पर पेश किया है। दिल्ली में भी भाजपा ने स्थानीय मुद्दों पर बात की और अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत किया। भाजपा के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर प्रचार किया और लोगों को पार्टी के पक्ष में गोलबंद किया। इस ज़मीन से जुड़ी रणनीति ने भाजपा को काफी लाभ पहुंचाया। संघ के स्वयंसेवकों ने भी दिन रात दिल्ली एक हर इलाके में अपनी पहुँच से केंद्र सरकार की उपलब्धियों और केजरीवाल की विफलताओं को लोगों के सामने रखा। दिल्ली में स्थानीय मुद्दों ने भी चुनावी नतीजों पर बड़ा प्रभाव डाला।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी मजबूत प्रचार रणनीति, स्थानीय मुद्दों को उठाने के जरिए जनता को आकर्षित किया। वहीं आप पार्टी अपने विकास कार्यों के बावजूद आंतरिक संघर्ष, नेतृत्व संकट और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देने के कारण हार गई। दिल्ली की राजनीति में यह बदलाव एक संकेत है कि अब सिर्फ फ्री चुनावी रेवड़ी ही निर्णायक नहीं हो सकती बल्कि जनता की व्यापक उम्मीदों और अपेक्षाओं को भी समझना बेहद ज़रूरी है।


 

Tuesday, 4 February 2025

मोहन के जापान दौरे से मध्यप्रदेश के औद्योगिक विकास को मिलेगी नई दिशा

 


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की जापान यात्रा ने न केवल जापान की औद्योगिक प्रगति और विकास को करीब से समझने का अवसर प्रदान किया बल्कि वहाँ के लोगों की जीवनशैली, संस्कृति, तकनीकी विकास को भी करीब से देखा। जापान सरकार और प्रवासी भारतीयों द्वारा डॉ. यादव का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। जापान में उनकी यात्रा का उद्देश्य एमपी और जापान के सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना रहा। जब वह टोक्यो पहुंचे तो उनका वहाँ स्थानीय प्रशासन द्वारा स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव जापान दौरे के पहले दिन टोक्यो में विभिन्न महत्वपूर्ण बैठकों और कार्यक्रमों में शामिल हुए।  टोक्यो में जापान के निवेशकों और औद्योगिक संस्थानों के प्रमुखों के साथ मध्यप्रदेश में औद्योगिक गतिविधियों के बढ़ावा देने वाले क्षेत्रों और संभावनाओं के विषयों पर चर्चा की। इस दौरान मुख्यमंत्री डॉ. यादव "फ्रेंड्स ऑफ एमपी-जापान" टीम के साथ भेंट करने के साथ ही टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ औद्योगिक और निवेश सहयोग के विषय पर बैठक की जिसके बाद टोक्यो स्थित भारतीय दूतावास में "सेलिब्रेटिंग इंडिया-जापान रिलेशनशिप : फोकस मध्यप्रदेश" रोड-शो में भी सहभागिता की ।

जापान के तकनीकी विकास से डॉ. मोहन यादव को काफी प्रभावित किया। उन्होंने देखा कि कैसे जापान अपने अत्याधुनिक तकनीकी अविष्कारों और इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। वहाँ की रेल प्रणाली ने उन्हें खासा प्रभावित किया। उन्होंने बुलेट ट्रेन की सवारी की और महसूस किया कि कैसे यह तकनीकी दृष्टि से दुनिया के सबसे तेज और सुरक्षित परिवहन साधनों में से एक है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के साथ टोक्यो के मिनाटो-कू में विस्तृत चर्चा की जिसमें जापानी कंपनियों के मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर संभावनाओं और सहयोग के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ। जेट्रो ने मध्यप्रदेश सरकार के साथ बड़े  निवेश पर चर्चा की। डॉ. मोहन यादव ने जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी को मध्यप्रदेश में हाइड्रो प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन करने वाली कंपनी एएनडीडी मेडिकल के निदेशक डाइकी अराई ने मध्य प्रदेश में निर्माण इकाई स्थापित करने की मंशा जाहिर की।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने टोक्यो में एएनडी मेडिकल कम्पनी के निदेशक डाइकी अराई से मुलाकात कर मध्यप्रदेश में चिकित्सा उपकरण निर्माण के अवसरों पर विस्तृत चर्चा की। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने उज्जैन के अत्याधुनिक मेडिकल डिवाइस पार्क में निवेश के लिये आमंत्रित करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश सरकार औद्योगिक इकाइयों को रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध करा रही है। उन्होंने इस पार्क को भारत के तेजी से विकसित हो रहे हेल्थ केयर और मेडिकल डिवाइस सेक्टर का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बताया। उज्जैन में बन रहे मेडिकल डिवाइस और मुख्य रूप से मेडिकल सेक्टर के लिए भी जापान के उद्योगपतियों से निवेश की बात कही है। सीएम डॉ. यादव के प्रयासों से मध्य प्रदेश में मेडिकल और फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरिंग का नया हब बनने जा रहा है जिसके लिए जापान से निवेशकों  के बड़े प्रस्ताव भी मिले हैं। उन्होंने सिस्मेक्स की अत्याधुनिक मेडिकल डिवाइस निर्माण तकनीक का अवलोकन किया और मध्यप्रदेश में सिस्मेक्स को आमंत्रित किया।

एएंडडी मेडिकल ने मध्यप्रदेश में अपनी निर्माण इकाई स्थापित करने में विशेष रूचि दिखाते हुए इसे वर्ष के अंत तक इसे शुरू करने की बात कही है। जापान की एएंडडी मेडिकल कम्पनी वैश्विक स्तर पर चिकित्सा उपकरण और स्वास्थ्य निगरानी उत्पादों का उत्पादन करती है। डॉ. मोहन यादव ने कोबे और ओसाका में स्थित हेल्थ केयर और डॉयग्नोस्टिक कम्पनी साइसमेक्स प्रमुख औद्योगिक कम्पनियों के उद्योगपतियों के साथ बैठक की और हेल्थ केयर, ऊर्जा और मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्रों में निवेश एवं साझेदारी पर भी चर्चा की। उन्होंने जापानी कार निर्माता कंपनी ‘टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन' के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात कर उनसे मध्य प्रदेश में निवेश की संभावनाओं पर चर्चा की।पैनासोनिक एनर्जी कपंनी लिमिटेड, डॉयग्नोस्टिक कंपनी साइसमेक्स सहित कई औद्योगिक कंपनियों ने बैटरी निर्माण और प्रदेश में ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में गहरी रूचि दिखाई और एमपी में भरपूर  निवेश का भरोसा दिलाया। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने जापान दौरे में प्रवासी भारतीयों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आपने जो नींव तैयार की है उसका फायदा भारत की आने वाली पीढ़ियों को मिलेगा।जापान की यात्रा डॉ.मोहन यादव के लिए एक अद्वितीय अनुभव है। जापान में डॉ. यादव की सादगी लोगों के दिल में उतर गई। डॉ. यादव ने अपने सोशल मीडिया में एक ऐसा वीडियो शेयर किया जो खूब वायरल हो रहा है जिसे देखकर लोग भावुक हो रहे हैं। इस वीडियो में उनके सहज, सरल और आकर्षक व्यक्तित्व की विलक्षण छाप देखने को मिल रही है। लोग जापानी अंदाज और भाषा में उन्हें विदाई दे रहे हैं। इम्पीरियल होटल से चेक-आउट करते समय होटल के सदस्यों ने बड़ी देर तक खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाईं और तस्वीरें खिंचवाईं। लोग तब तक होटल के मुख्य द्वारा पर खड़े रहे, जब तक सीएम डॉ. यादव कार में नहीं बैठे।

मध्य प्रदेश वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन  24-25 फरवरी 2025 को भोपाल में आयोजित होगा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे। इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के 15,000 से अधिक निवेशकों के शामिल होने की उम्मीद है। यह सम्मेलन उद्योगपतियों के लिए आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र होगा। इस बार की समिट में जापान कंट्री पार्टनर होगा जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूती मिलेगी। जापानी निवेशकों के अलावा अन्य देशों के भी निवेशक इस समिट में भाग लेंगे। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 मध्य प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित होगी। इस आयोजन से नए उद्योगों की स्थापना, रोजगार के अवसरों में वृद्धि और राज्य की औद्योगिक छवि को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की उम्मीद है। कहा जा सकता है कि डॉ.मोहन यादव का जापान दौरा एमपी में जापानी कंपनियों के बीच निवेश को बढ़ावा देने में कारगर साबित हुआ है। उन्होंने अपनी चार दिन की जापान यात्रा में न केवल जापान के प्रमुख उद्योगपतियों से मुलाकात की और निवेश और व्यापार के नए अवसरों को तराशा बल्कि जापानी समाज और संस्कृति को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया। उन्होंने वहाँ की तकनीकी प्रगति, कला, संस्कृति और व्यापारिक दृष्टिकोण को अपनी यात्रा के अनुभवों में समाहित किया। यह यात्रा मध्यप्रदेश और जापान के बीच संबंधों को प्रगाढ़ करने में भी सहायक साबित हुई है ।

Thursday, 23 January 2025

आज़ादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे। उनका नाम भारतीय आज़ादी के संघर्ष सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। वे न केवल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता थे, बल्कि अपनी संघर्षशीलता के चलते दुनिया भर में प्रेरणा के स्रोत बने। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिन्होंने अपनी नीतियों, साहस और समर्पण से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

 सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा में एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। वे परिवार के नौवें और अंतिम संतान थे। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी कर सुभाष ने 1915 में बीमारी के बावजूद इंटरमीडिएट परीक्षा दी और द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की जिसके बाद 1919 में बी.ए. आनर्स प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्राप्त किया। अपनी अध्ययनशीलता के कारण वह  कालेज में हमेशा अव्वल दर्जे के छात्र रहे। उन्होंने इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। भारत माता को ब्रिटिश शासन सत्ता से मुक्ति के लिए हुए स्वाधीनता संघर्ष में भाग लिया। 

छात्र जीवन में ही सुभाष ने विवेकानन्द साहित्य का अध्ययन कर लिया था जिसने उन्हें राष्ट्रीय चेतना से समृद्ध किया और चिंतन-मनन करने की सुदृढ़ जमीन दी। पुत्र को आईसीएस बनाने की पिता की इच्छा का मान रखते हुए सुभाष 1919 में ब्रिटेन के  लिए रवाना हुए और आईसीएस परीक्षा न केवल उत्तीर्ण की बल्कि अंग्रेजों की चाकरी को स्वीकार न कर भारत माता की सेवा-साधना का पथ अंगीकार किया। सेवा से त्यागपत्र देकर जून 1921 में भारत वापस आकर राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी से जुड़े और फारवर्ड समाचार पत्र का संपादन भी किया। 1923 में उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उनके क्रांतिकारी आन्दोलनों के चलते उन्हें 1925 में मांडले जेल भी भेजा गया जहाँ उन्हें तपेदिक की बीमारी हो गई थी। 1938 में बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उस दौर को याद करें तो सुभाष की लोकप्रियता जबरदस्त रही। कांग्रेस के 51वें अधिवेशन में  कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दिया गया उनका भाषण दुनिया के सर्वश्रेष्ठ  भाषणों में शुमार किया जाता है। कांग्रेस में सुभाष के बढ़ते प्रभाव से कुछ वषों में ही कांग्रेस के अन्दर के नेताओं का प्रभामंडल कमजोर होने लगा। इस दौर में गांधी जी से  उनका मतभेद भी हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि 1939 के त्रिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के मनोनयन की परम्परा के उलट कांग्रेस को चुनाव करवाना पड़ा। देश और कार्यकर्ताओं की पहली पसंद सुभाष थे लेकिन गांधी जी ने अपने प्रत्याशी के रूप में पट्टाभि सीतारमैया को सुभाष के विरुद्ध खड़ा कर जिताने की अपील की किन्तु सुभाष ने सीतारमैया को पराजित कर दिया जिस पर गांधी जी इस टिप्पणी कि सीतारमैया की हार मेरी हार है। सक्रिय  सुभाष बहुत दुखी हुए और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने 1928 में नेशनल कांग्रेस के महासचिव के रूप में कार्य किया लेकिन उनकी नीतियों से असहमति होने पर वे कांग्रेस से अलग हो गए। विदेश प्रवास के दौरान सुभाष ने कांग्रेस के भीतर फारवर्ड ब्लॉक बनाकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष  किया तब उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया।

 बापू के सुझाव पर सुभाष कोलकता आकर देशबंधु जी के साथ काम करने लगे। दास ने कोलकता महापालिका का चुनाव लड़ा और जीत अर्जित कर महापौर बने। तब उन्होंने सुभाष को महापालिका का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया। यहां पर सुभाष ने की कार्यशैली ने सबका दिल जीत लिया और जनता के दिलों में अलहदा पहचान बनाने में सफलता हासिल की। आजादी की लड़ाई के दौरान वह 11 बार जेल भी गए। 1933 से 1936 तक जब स्वास्थय लाभ लेने के लिए वे यूरोप में रहना रहे तो मुसोलिनी और आयरलैण्ड के नेता डी. बलेरा से भेंट कर सहयोग का वचन लिया। आस्ट्रिया में चिकित्सा प्राप्त करने के दौरान पुस्तक लिखने हेतु टाईपिस्ट एमिली शेंकेल से प्रभावित हुए और  उनसे विवाह कर लिया। हालाँकि अपनी राजनीतिक छवि को ठेस न पहुंचे इसलिए उन्होनें इस रिश्ते को बड़ा गोपनीय रखा। 29 नवम्बर 1942 को अनीता बोस के रूप में  उन्हें  पुत्री मिली जिससे वे कभी मिल नहीं सके। 

जनवरी 1941 में नजरबंदी के दौरान ही ब्रिटिश पुलिस और जासूसों को चकमा देकर वे जर्मनी पहुंचे। हिटलर एवं जर्मनी के अन्य नेताओं से भेंट कर आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की। वहां से जापान पहुंच कर जनरल तोजो से भेंट की और जापानी संसद को सम्बोधित किया। जापान के सहयोग से रासबिहारी बोस के मार्गदर्शन में आजाद हिन्द फौज का गठन कर सिपाहियों और नागरिकों का आह्वान किया कि तुम मूझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर में टाउन हॉल के सामने आजाद हिन्द फौज के सम्मुख ओजस्वी भाषण देते हुए पहली बार 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था। उनकी फौज ने बर्मा, कोहिमा, इम्फाल के मोर्चे पर अंग्रेजी सेना से मुकाबला कर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। नेताजी ने स्वतंत्रता आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जर्मनी के बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना के साथ ही आज़ाद हिन्द रेडियो की भी शुरुआत की। इस रेडियो के माध्यम से आज़ादी के आंदोलन से जुड़े समाचार और कार्यक्रम प्रसारित किये जाते थे। अंग्रेजी सरकार सुभाष चन्द्र बोस से इतनी भयभीत थी कि सुभाष और आजाद हिन्द फौज के विरुद्ध दुष्प्रचार करने हेतु एक एंटी इंडिया रेडियो की स्थापना की थी।

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष ने आजाद हिन्दुस्तान की अंतरिम सरकार बनाई जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री का दायित्व स्वयं निर्वहन किया। इस आजाद हिन्द सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैण्ड आदि  देशों ने मान्यता प्रदान की थी। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद सुभाष आजादी की लड़ाई हेतु आवश्यक संसाधन जुटाने हेतु रूस जाने का निश्चय कर 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज से निकले किन्तु रास्ते में ही वे लापता हो गये। कहा गया कि उनका हवाई जहाज रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें बोस की मृत्यु हो गई। हालांकि ताईवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया था कि उस दिन ताईवान के आकाश में कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं।

 सरकारी दस्तावेजों के अनुसार 18 अगस्त 1945 को बोस का निधन हुआ। नेताजी जापान जा रहे थे और उनका विमान ताइहोकू हवाई अड्डे के पास क्रैश हो गया जिस हादसे में वो बुरी तरह से जल गए और ताईहोकू अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। हालाँकि उनका शव नहीं मिला लेकिन मृत्यु पर सवाल आज तक उठ रहे हैं। उनके मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए देश में दो आयोग भी बने जिन्होंने विमान हादसे को मौत का कारण माना जबकि तीसरे आयोग ने 1999 में ये दावा किया कि 1945  में कोई विमान दुर्घटना ही नहीं हुई थी। सरकार द्वारा ये रिपोर्ट अस्वीकार कर दी गई। बोस की मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है लेकिन उनका योगदान आज़ादी के संग्राम में अमिट रहेगा। पहले सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन 23  जनवरी को बोस जयंती के रूप में मनाया जाता रहा लेकिन 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के अविस्मरणीय योगदान को देखते हुए इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

सुभाष जीवित रहे या विमान दुर्घटना का शिकार हुए यह सत्य तो काल के गर्भ में है लेकिन माँ भारती की सेवा में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। उनका विचार था कि भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, धर्मनिरपेक्षता, और असमानता को समाप्त कर एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र की नींव रखी जा सकती है। उनका उद्देश्य था कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ उसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त कराया जाए।


 

Monday, 23 December 2024

राजनीति के अजातशत्रु ' अटल '

         

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के एक अद्वितीय और प्रभावशाली नेता रहे। उन्होनें  न केवल भारतीय राजनीति में अपनी अलहदा पहचान बनाई बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सम्मान अर्जित किया। अटल को राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी  किसी से द्वेष नहीं रखा और हर विचारधारा का सम्मान किया। उनका जीवन सिद्धांतों, नैतिकता और समर्पण का प्रतीक था। 

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक स्कूल शिक्षक थे, जिन्होंने उन्हें शिक्षा और जीवन के मूल्यों की अहमियत सिखाई। अटल जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर से प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने राजनीति विज्ञान में भी गहरी रुचि ली और एक अच्छे वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई।अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक जीवन भारतीय जनसंघ से जुड़कर शुरू हुआ। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रेरित थे और उनकी विचारधारा को अपनाया। 1957 में, वे पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। इसके बाद, उनका राजनीतिक करियर लगातार उन्नति की ओर बढ़ता गया। वे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के संस्थापक सदस्य रहे और पार्टी को एक नई दिशा देने में उनकी भूमिका अहम रही।

अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल भारतीय राजनीति के एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद किया जाता है। वे 1996, 1998 और 1999 में तीन बार प्रधानमंत्री बने। उनके कार्यकाल में 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण हुआ । विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के वो पहले नेता थे  जिसने अपनी भाषण कला से दुनिया  का दिल जीत लिया। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और अटल जी 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 1998 में  वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। 13 महीने के इस कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की ताकत  का अहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत किसी के आगे नहीं झुका।  

अटल ने ही 1999 में दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई और पड़ोसी  पाक  के साथ एक नए युग की शुरुआत की लेकिन ये मित्रता अधिक दिनों तक नहीं चल सकी।  पाकिस्तानी सेना ने कारगिल क्षेत्र में बड़ी घुसपैठ की जहाँ  पाक को हार का सामना करना पड़ा।  इस विजय का  श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को गया और 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर  सबसे बड़ी पार्टी बनी और  सरकार बनायी। अटल जी ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में भी सकारात्मक बदलाव की कोशिश की। 1999 में उन्होंने अपनी बस से भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद का नया रास्ता खोला ।

अटल जी की  विदेश नीति जबरदस्त रही। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने कई वैश्विक मंचों पर अपनी ताकत दिखाई। उनके नेतृत्व में भारत  वैश्विक राजनीति के केंद्र में स्थापित हुआ जहाँ  राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता मिली। अटलबिहारी वाजपेयी  गठबंधन की राजनीती के सबसे बड़े जनक रहे। दो दर्जन से अधिक दलों  को  साथ लेकर सरकार चलाना बहुत कठिन काम उस दौर में समझा गया लेकिन अटल जी ने अपनी दूरदृष्टि से यह संभव कर दिखाया। उनकी सरकार ने गठबंधन की राजनीति को एक नई राह दिखाई। अटल में  सबको साथ लेकर चलने की  जबरदस्त कला थी जो उन्होनें अपनी गठबंधन सरकार के कुशल  नेतृत्व के माध्यम से देश को दिखाया।  अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व  एक उदार चरित्र का प्रतीक था। उनके भाषणों में गहरी सोच दिखाई देती थी साथ ही उनका कवि दिल  बड़ा था और वे समाज के वंचित और शोषित तबके की आवाज को मुखरता के साथ उठाया करते  थे। अटल  ने अपने पूरे जीवन में राजनीति को एक साधन के रूप में देखा। उनकी राजनीती में सुशासन,  ईमानदारी के गुण दिखाई देते थे। वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद प्रति भी सम्मान का भाव रखते थे शायद यही वजह रही  कि उन्हें राजनीति के अजातशत्रु कहा गया। अटल ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए तत्कालीन  केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री  बी. सी. खंड़ूडी के नेतृत्व में स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की। उनकी सरकार ने सुशासन को सही मायनों में साबित करके दिखाया और गाँव के अंतिम छोर  तक विकास की किरण पहुंचाने का काम किया। 

अटल की सरकार ने के रहते देश में हर क्षेत्र में विकास की नई गौरवगाथा लिखी गई। 2004 में जब  लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने  उनके नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और  मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ्य रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया।अटल जी की कविता, भाषण करने की  कला, नेतृत्व क्षमता ने राजनीति को एक नई ऊँचाई पर पहुंचाया। वे भारतीय राजनीति के ऐसे सितारे  कहे जा सकते हैं जिनकी चमक हमेशा बनी रहेगी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया। भारतीय राजनीति के युगपुरुष, अजातशत्रु  अटल  जी का 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। सही मायनों में अगर कहा जाए तो  अटल बिहारी वाजपेयी  भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे। देश अटल जी के योगदान को कभी भुला नहीं पायेगा।  

Sunday, 22 December 2024

मोहम्मद रफ़ी का जन्म शताब्दी वर्ष

 मोहम्मद रफ़ी भारतीय संगीत और सिनेमा के अद्वितीय गीतकार, गायक और संगीतकार एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका योगदान अविस्मरणीय है। आज भी ऐसा लगता है मानो उनका संगीत और आवाज़ भारतीय सिनेमा की आत्मा में समाहित हो गए हैं। रफ़ी साहब के व्यक्तित्व का प्रभाव सिर्फ उनके गीतों के माध्यम से ही नहीं बल्कि उनकी सरलता, विनम्रता और पेशेवर अंदाज  में भी महसूस किया जा सकता था। 

 रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को पंजाब (अब पाकिस्तान) के अमृतसर जिले के कोटला सुलतान सिंह गांव में हुआ था। उनका परिवार संगीत के प्रति स्नेह रखने वाला था। इनके बड़े भाई की नाई दुकान थी। रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था। उसकी आवाज रफ़ी को पसन्द आई और रफ़ी उसकी नकल किया करते थे। उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई दुकान में उनके गाने की प्रशंसा करने लगे।  उनके मन में संगीत का बीज एक भीख मांगने वाले फ़कीर को देखकर  अंकुरित हुआ। तब उनके मन में भी उस फ़कीर जैसे गाने की इच्छा जगी।  जब उन्होनें गाना शुरू किया तो पिता ने ही सबसे पहले विरोध  किया जिसके लिए उनकी पिटाई भी हुई  लेकिन संगीत को मन में  बसाने की तमन्ना लिए रफ़ी कभी भी अपने लक्ष्य से नहीं डिगे।  लाहौर में कुन्दनलाल सहगल जब अपना स्टेज शो करने निकले तब रफ़ी महज 13 बरस की उम्र में उनको सुनने गए।  वहां मंच पर लाइट चली गई  तो भीड़ शांत करने के लिए एक नौजवान को गाने का मौका मिला।  रफ़ी ने ऐसा गाना उस स्टेज में गाया सब देखते रहे और सबको झूमने पर मजबूर कर दिया। तब संगीतकार श्यामसुन्दर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और मायानगरी में आकर प्लेबैक गायक बनने का मौका दिया और पंजाबी फिल्म गुल बलोच में गाना गाया।यह गाना रफी का ज़ीनत बेगम के साथ एक युगल गीत था जिसके बोल थे : नी सोहनिये नी हीरिये तेरी याद ने। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। उनका रुझान शास्त्रीय संगीत की ओर तेजी से बढ़ा और उनका गायक बनने का सपना साकार होने की दिशा में कदम बढ़ने लगे। रफी साहिब की गायन-प्रतिभा को पहचानते हुए संगीतकार फिरोज़ निज़ामी ने रफी को आल इंडिया रेडियो लाहौर में नौकरी दिलवा दी। 

रफ़ी की  हिन्दी गायकी की असल शुरुआत 1941 में हुई जब उन्होंने पहली बार रेडियो पाकिस्तान के लिए  गाना गाया  लेकिन उनका बॉलीवुड में प्रवेश 1944 में हुआ जब उन्होंने "सोनिये नी हीरिये", "तू हिंदू बनेगा मुसलमान बनेगा" और अन्य छोटे-छोटे गीतों के माध्यम से हिंदी सिनेमा में अपनी अलहदा पहचान  बनाने की दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ाये।  हालांकि उन्हें असली पहचान 1946 में फिल्म "गांव की गोरी" से मिली जिसमें उनका गीत "सोनिये नी हीरिये" काफी हिट हुआ। भारत का वो दौर याद करें जब  देश विभाजन के सदमे की त्रासदी से उबर ही रहा था।  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।  उस दौर में  राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीत 'सुनो सुनो ए दुनिया वालों, बापू की ये अमर कहानी' को हुस्नराम भगत राम ने अपना संगीत से कालजयी बना डाला। इस नग्मे को 'रफ़ी साहब' ने अपनी दिलकश आवाज़ से झंकृत करने का काम बखूबी किया। उस दौर में रफ़ी होने के मायने आप इस बात से समझ सकते हैं कि  इस गीत को सुनने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ख़ासतौर से 'रफ़ी साहब' को  अपने दिल्ली  निवास स्थान पर आमंत्रित किया और इस  गीत सुनकर नेहरू की आँखें भी नम हो गई। भारत की आज़ादी की पहली वर्षगाँठ पर नेहरू ने उस दौर में रफ़ी को चाँदी का एक छोटा सा  मेडल भेंट किया तब  मोहम्मद रफ़ी की उम्र महज 24 बरस की रही जो उनके लिए किसी बड़े  सम्मान से कम नहीं था। 

रफ़ी साहब ने अपनी गायकी में विविधता और प्रयोग की कोई कमी नहीं छोड़ी। चाहे वह रोमांटिक गीत हों या फिर देशभक्ति गीत हों या फिर दर्द भरे नग्मे, रफ़ी की दिलकश आवाज़ में वह ताकत थी कि हर गीत  उस दौर में अपनी पूरी कहानी खुद बयां कर देता था। उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 28,000 से अधिक गीत गाए जो आज भी हर संगीत प्रेमी के दिल में गूंजते हैं। उनके गायन में जो मिठास थी वह अनमोल मानी जाती है। 

रफ़ी साहब के गाने सिर्फ सुरों और शब्दों का मिलाज नहीं होते थे बल्कि उन गीतों में जो भावनात्मक गहराई थी जो उस दौर के रेडियो सुनंने वालों को  दिल में उतार देती थी। "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई" (नौशाद द्वारा संगीतबद्ध), "कुछ तो लोग कहेंगे"(शंकर जयकिशन), "आजकल पाँव ज़मीन पर नहीं" (आर.डी. बर्मन) जैसे गीतों में रफ़ी की आवाज़ ने न केवल गीतों को संजीवनी दी बल्कि ये सभी  गीत  हिंदी  सिनेमा की अनमोल धरोहर बन गए। रफ़ी ने हिन्दी सिनेमा के लिए बिना फीस लिये या बेहद कम पैसोँ लेकर भी नायाब गीत गाए। उनका कहना था, "मेरा काम घास - घोड़ा चिल्लाना नहीं है।  मेरा काम इंसानों के काम आना है। इंसानो से दोस्ती करने का है। मेरा शौक, मेरी इबादत संगीत है। वह करना मुझे अच्छा लगता है इसलिए मैं कभी भी पैसे के लिए नहीं गाता। न मैंने कभी भी किसी से पहले से कोई समझौता किया जिसने जो दे दिया मैंने अपनी रोजी-रोटी समझकर रख लिया क्योंकि गायिकी मेरी अपनी जागीर नहीं थी।  खुदा की दी हुई नायाब नेमत है"। 

 रफ़ी की गायकी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि वे हर प्रकार के गीत गाने में माहिर थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, भक्ति गीत, भजन, ग़ज़ल, रोमांटिक गीत, हास्य गीत और यहां तक कि फ़िल्मी गानों के साथ भी प्रयोग किया। "मन तड़पत हरि दर्शन को" (बैजू बावरा), "सारे जहाँ से अच्छा" (पाकिस्तान दिवस पर गाया गया गीत) जैसी विविधताएं दर्शाती हैं कि रफ़ी का गायन सिर्फ एक शैली तक सीमित नहीं था। रफ़ी की आवाज़ में वह सहजता और सरलता थी जो उन्हें एक आम आदमी से जोड़ देती थी। उनकी आवाज़ में गंभीर सादगी नजर आती  थी जो श्रोताओं के दिलों के भीतर उतर जाती थी। रफ़ी के  संगीतकारों के साथ सम्बन्ध भी बड़े सौहार्दपूर्ण रहे। उन्होंने नौशाद, शंकर जयकिशन, ओ.पी. नैय्यर, एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन, और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया। रफ़ी और नौशाद की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को कई कालजयी गीत दिए हैं। नौशाद की फ़िल्म "बैजू बावरा" में रफ़ी की गायकी ने सिनेमा जगत को एक नया मोड़ दिया। रफ़ी साहब की पहचान एक संगीतकार से अधिक एक कलाकार के रूप में थी। वे न केवल अपने गीतों के लिए प्रसिद्ध थे बल्कि उनके व्यक्तित्व की विनम्रता भी लोगों के दिलों में बसी थी। उनकी आवाज़ ने सैकड़ों अभिनेता-अभिनेत्रियों की फिल्मों में जान डाली। 

1945 से जब से गोल्डन एरा शुरू हुआ तब से ही हर अभिनेता की इच्छा होती थी कि रूपहले पर्दे पर मुझे महान रफ़ी साहब की रूहानी मिलें।  ख़ासकर देव, दिलीप, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, धर्मेंद्र, शशि कपूर, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना सरीखे कई अदाकारों आदि की कामयाबी में सबसे बड़ा रोल रफ़ी का रहा। हिन्दी सिनेमा में रफ़ी  ने सबसे ज्यादा शम्मी के लिए गाया। क्लासिकल ग़ज़ल के उस्ताद रफ़ी साहब शम्मी कपूर की इमेज का पूरा ख्याल रखते थे। ‘शंकर-जयकिशन’ का संगीत और मोहम्मद रफी की आवाज में लिखे जो खत तुझे’- कन्यादान का गाना आज भी उतना  चर्चित है जितना यह 1968 में था। आशा पारेख और शशि कपूर पर शूट किया गया यह गाना मोहम्मद रफ़ी की बेहतरीन पेशकश में से एक है। मुगल-ए-आजम फिल्म को भला कौन भूल सकता है। सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी की लोकप्रियता को देखते हुए ही आगे चलकर इस फिल्म को कलर रूप दिया गया। इसके गाने आज भी बहुत  पॉपुलर हैं । मोहम्मद रफ़ी ने सबसे ज्यादा गाने शम्मी कपूर के लिए गाए थे। मोहम्मद रफ़ी  और शम्मी कपूर के नाम कई हिट ‘बदन पे सितारे’, ‘तुमसे अच्छा कौन है’,‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ हैं। शम्मी कपूर अपने आप को मोहम्मद रफ़ी के बिना अधूरा मानते थे। मोहम्मद रफ़ी और शम्मी कपूर की जोड़ी ने कई हिट गाने दिए हैं। इन्हीं में एक गाना था ‘जंगली’ फिल्म का ‘सुकु-सुकु’।ये गाना आज भी उतना ही खुशमिजाज लगता है जितना उस दौर में लगता था। 

रफ़ी को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1967 में "पद्मश्री" और 1977 में "पद्मभूषण" जैसे उच्चतम सम्मान प्राप्त हुए। साथ ही उन्हें 6 फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले। मोहम्मद रफ़ी का आखिरी गीत फिल्म 'आस पास' के लिए था जो उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए अपने निधन से ठीक दो दिन पहले रिकॉर्ड किया था। गीत के बोल थे 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त'...। संगीत जगत में रफ़ी जिस मुकाम पर थे शायद यदि कोई और होता तो उसे सफल होने का घमंड होता लेकिन रफ़ी  का व्यक्तित्व सहज और सरल था। वो किसी का हक मारने में विश्वास नहीं रखते थे। वे बहुत ही नेकदिल  इंसान थे।

आज भी रफ़ी का संगीत सिनेमा प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके गाए गीत आज की नई पीढ़ी की जुबां पर उतरते हैं। रफ़ी की दिलकश आवाज़ ने भारतीय सिनेमा को वह रूप दिया है जिसे सिनेमा प्रेमी सदियों तक याद करेंगे। रफ़ी के जन्म शताब्दी वर्ष पर यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि रफ़ी सरीखे गायक हजार बरस में एक बार पैदा होते हैं। रफ़ी साहब जब दुनिया रुखसत कर गए तो संगीत के सिरमौर नौशाद ने रफी पर कसीदे पढ़ते हुए सच ही कहा था

कहता है कोई दिल गया दिलबर चला गया

साहिल पुकारता है समुन्दर चला गया

लेकिन जो बात सच है, वो कहता नहीं कोई

दुनिया से मौसकी का, पयम्बर चला गया



Saturday, 12 October 2024

'शक्ति 'और 'विजय' का उत्सव विजयादशमी

     

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू होते हैं जो नौ दिनों तक चलते हैं।  शुक्लपक्ष की दशमी का बड़ा विशेष महत्व है।  विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो  हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजयादशमी का अर्थ है  'विजय का दसवां दिन' और यह दिन रावण के खिलाफ भगवान राम की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विजयादशमी का त्यौहार भगवान राम की कथा से जुड़ा हुआ है। रावण एक महापराक्रमी लेकिन अधर्मी राजा था जिसने  माता सीता का हरण किया था। राम के द्वारा रावण का वध न केवल धर्म की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि अंततः सत्य और न्याय की विजय होती है। इस दिन को मनाने के लिए रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होते हैं।विजयादशमी केवल राम की विजय का पर्व नहीं है, बल्कि यह नवरात्रि के पर्व का अंतिम दिन भी है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और विजयादशमी के दिन देवी की शक्ति और संहारक रूप की विजय का जश्न मनाया जाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है।  इस दिन दशहरा पूरे देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन श्रीराम, मां दुर्गा, श्री गणेश, विद्या की देवी सरस्वती और हनुमान जी की आराधना करके परिवार के मंगल की कामना की जाती है। दशहरा या विजयादशमी सर्वसिद्धिदायक तिथि मानी जाती है इसलिए इस दिन सभी शुभ कार्य फलकारी माने जाते हैं। विजयादशमी या शस्त्र पूजा हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। अश्विन मास  के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने इसी दिन  लंकेश रावण का वध किया था। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है इसलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा पर्व  वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियां में से एक है। अन्य दो हैं  चैत्र शुक्ल की  प्रतिपदा और कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इस दिन का भारतीय सनातन संस्कृति में बड़ा महत्व है जब सभी  लोग अपना  नया कार्य प्रारंभ करते हैं और शस्त्र पूजा भी करते हैं। इस दिन को विशेष रूप से शस्त्र पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो सैन्य, सुरक्षा, या विभिन्न प्रकार के व्यवसायों से जुड़े होते हैं।शस्त्र पूजा का उद्देश्य अपने अस्त्र-शस्त्रों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना और उन्हें पवित्र मानना है। यह पूजा विशेष रूप से सैनिकों, पुलिसकर्मियों, और उन लोगों के लिए की जाती है जो विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग करते हैं। शस्त्र पूजा से यह संदेश मिलता है कि युद्ध और हिंसा का उपयोग केवल जब आवश्यक हो तब किया जाए, और उससे पहले अपने अस्त्रों का सम्मान किया जाए।विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हम अपने शस्त्रों का उपयोग केवल आवश्यकता के समय करें और सदैव शांति और सद्भाव की भावना को प्राथमिकता दें

विजयादशमी के त्योहार मनाने के पीछे एक दूसरी भी पौराणिक मान्यता प्रचलित है। महिषासुर नाम के एक दैत्य ने सभी देवताओं को पराजित करते हुए उनके राजपाठ छीन लिए थे। महिषासुर को मिले वरदान और पराक्रम के काण उसके सामने कोई भी देवता टिक नहीं पा रहा था। तब महिषासुर के संहार के लिए ब्रह्रा, विष्णु और भोलेनाथ ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा का सृजन किया। मां दुर्गा और महिषासुर दैत्य के बीच लगातार 9 दिनों तक युद्ध हुआ और युद्ध के 10वें दिन मां दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध करके उसकी पूरी सेना को परास्त किया था। इस कारण से शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है और पांडालों में स्थापित देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।

प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर अपनी विजय  यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन को उत्साव का रूप दिया गया है जब  पूरे देश में विशेष आकर्षण देखा जा सकता है।  जगह-जगह मेले लगते हैं और  रामलीलाओं का आयोजन होता है।   दशहरे के अवसर पर रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया भी जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान रघुनाथ जी की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा की उपासना का पर्व है और शस्त्र पूजन की तिथि है जो  एक तरह से  हर्ष , उल्लास  और  विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक और शक्ति की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव  पर्व के रूप में रखा गया है। दशहरा का पर्व 10 प्रकार के पापों काम. क्रोध,  लोभ , मोह ,मद , मत्सर,  अहंकार ,  हिंसा और चोरी के परित्याग की सदप्रेरणा प्रदान करता है। 

दशहरे का एक सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है और जब किसान अपने खेत में   फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति को अपने घर लाता है तो इससे  उसके उल्लास और उमंग का कोई ठिकाना नहीं रहता। इस ख़ुशी  के अवसर को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण  के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी से मनाया जाता है। सायं काल के समय पर सभी ग्रामीण जन सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित होकर गांव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्ते के रूप में स्वर्ण मानकर उसे  अपने ग्राम में वापस आते हैं और फिर उस पत्ते  का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।

दशहरे के  भारत के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग  रूप  दिखाई देते  हैं।  दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा की पूजा के रूप में दोनों में यह शक्ति और विजय का उत्सव  है। हिमाचल प्रदेश के कल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य स्थानों की भांति यहां पर 10 दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इसकी तैयारी आरंभ हो जाती हैं। स्त्रियां  और पुरुष सभी सुंदर कपड़ों  से सुसज्जित होकर  तुरही ,बिगुल , ढोल , नगाड़े , बांसुरी आदि  जिसके पास जो भी वाद्य यंत्र होता है उसे  लेकर अपने घरों से  बाहर  निकलते हैं।  हिमाचल के पहाड़ी लोग इस मौके पर अपने कुलदेवता का धूमधाम से समरण  कर जुलूस निकालकर उसकी आराधना करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत आकर्षक और सुंदर ढंग में सजाया जाता है और पालकी में बिठाया जाता है, साथ ही वे अपने  मुख्य देवता  रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं।  इस विशाल जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हुए लोगों को झूमने पर मजबूर कर देते हैं।  इस प्रकार जुलूस बनाकर के मुख्य मार्गों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कल्लू नगर में देवता रघुनाथ जी की वंदना से दशहरे के उत्सव को शुरू करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा बड़ी निराली होती है।

 पंजाब में दशहरा नवरात्रि की 9 दिन का उपवास रखकर मनाते  हैं। इस दौरान यहां आगुंतकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहार से किया जाता है। यहां भी रावण दहन के अनेक आयोजन होते हैं और मैदान पर मेले  भी लगते हैं।  छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर में  भी दशहरे  पर विशेष आकर्षण देखने को मिलता है।  बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को  राम की रावण पर विजय न मानकर लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी है जो दुर्गा का ही एक  रूप है। ये आयोजन यहाँ पर  पूरे 75 दिन चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन शुक्ल की त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन  जिसे 'काछिन गादि'  कहते हैं, देवी से समारोह आरंभ करने की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटो की सेज पर विराजमान रहती है। यह  कन्या एक अनुसूचित जाति की कन्या  है  जिससे बस्तर के राज परिवार के व्यक्ति अनुमति देते हैं। यह समारोह लगभग 15 वीं शताब्दी से शुरू हुआ था।  इसके बाद जोगी -बिठाई होती है और इसके बाद भीतर 'रैनी  विजयदशमी 'और बाहर ' रैनी रथ यात्रा' और अंत में ' मुरिया'  दरबार लगता  है। इसका समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को 'ओहाड़ी' पर्व से होता है।   बंगाल, उड़ीसा और असम में यहां पर दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व बंगाल, उड़ीसा और असम के लोगों का सबसे प्रमुख त्यौहार है। पूरे बंगाल में  सप्ताह भर से अधिक दिन तक इस पर आयोजन किये जाते हैं।  उड़ीसा और असम में 4 दिन तक त्यौहार चलता है। यहां देवी को भव्य  रूप में सुसज्जित  पांडालों  में विराजमान करते हैं। देश के नामी कलाकारों को  दुर्गा की मूर्ति तैयार  करने के लिए बुलाया जाता है।  इसके साथ ही  अन्य देवी, देवताओं की भी कई मूर्तियां भी  बनाई जाती है। त्योहार के दौरान शहर में छोटे-स्टॉल भी लगाए जाते हैं जो  मिठाइयों की मिठास से भरे रहते हैं।यहां षष्टी के दिन दुर्गा देवी का भजन, आमंत्रण और  प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन भी  किया जाता है। उसके उपरांत अष्टमी और नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। अष्टमी के दिन महापूजन और  बलि  भी दी जाती है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और प्रसाद  चढ़ाने के साथ ही   प्रसाद का वितरण और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं जिसे 'कोलाकुली' कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं और देवी को अश्रुपूरित  विदाई देती हैं।  इसके साथ ही वे आपस में सिंदूर भी  लगाती हैं  है और सिंदूर से खेलती भी हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके पश्चात देवी देवताओं को बड़े-बड़े  ट्रकों में भरकर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की ये यात्रा बड़ी सुहानी और दर्शनीय होती है। तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दशहरा पूरे 10 दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी ,सरस्वती और दुर्गा देवी की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती, कला और विद्या की देवी की पूजा अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा की शक्ति की देवी स्तुति की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है लोग एक दूसरे को मिठाई और कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने  के लिए बहुत ही शुभ समय होता है। 

कर्नाटक में मैसूर का दशहरा विशेष उल्लेखनीय है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सजाया जाता है और हाथियों का श्रृंगार करके पूरे शहर में एक विशाल जुलूस  निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालाओं  से दुल्हन की तरह सजाया जाता है और इसके साथ ही शहर में लोग टॉर्च लाइट के साथ  नृत्य और संगीत की शोभा यात्रा का आनंद लेते हैं।इन द्रविड़ प्रदेशों में भी रावण दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।

गुजरात में मिट्टी सुरभि रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक मानी जाती है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर  पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान होती है।  पुरुष और स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर  आपस में बजाते  हुए घूम-घूम कर नृत्य करते  हैं। इस अवसर पर भक्ति, फिल्म और पारंपरिक लोक संगीत सभी का सुन्दर समन्वय  देखने को मिलता है। पूरा गुजरात गरबे के रंग से सरोबार होता है और इन दिनों प्रदेश की रौनक देखते ही बनती है।  पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात तक चलता है जिसमें सभी थिरकने से अपने को नहीं रोक पाते हैं। नवरात्रि में सोने और गहनों  की खरीद को बहुत ही शुभ माना जाता है।

 महाराष्ट्र में नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं जबकि दसवें  दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है।  इस दिन विद्यालय में जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या की आराध्य देवी के लिए यह  दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह प्रवेश और नए घर खरीदने को शुभ मुहूर्त समझते हैं। कश्मीर के अल्पसंख्यक भी  हिंदू नवरात्र के पर्व को बहुत श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सभी सदस्य वयस्क 9 दिन तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। अत्यंत पुरानी परंपरा के अनुसार 9 दिनों तक लोग माता खीर  भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं और एक मंदिर एक झील के बीचों- बीच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है की देवी ने अपने भक्तों से कहा हुआ कि यह यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। कहा जाता है कि इंदिरा गाँधी की हत्या के ठीक एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले यहाँ का पानी सचमुच काला  हो गया था।  

दशहरे का उत्सव शक्ति और विजय का  उत्सव है। नवरात्रि के 9 दिन आदिशक्ति  जगदंबा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य भी विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है और इस दृष्टि से दशहरे का बहुत महत्व है जिसे विजय के  प्रस्थान  उत्सव के रूप में मान्यता मिली हुई है।  भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता और शक्ति की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता का प्रादुर्भाव होने के कारण से ही दशहरे  का उत्सव मनाया जाता है।  यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा न कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति की निशानी है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक  है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु भी इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न  शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी  दिन प्रस्थान करके सनातन हिंदू धर्म की रक्षा की थी। ऐसे अनेकों  उदाहरण हमारे इतिहास में हैं जब हमारे हिंदू राजाओं ने इस दिन विजय के रूप में प्रस्थान किया करते थे।इस पर्व को भगवती के विजया नाम पर विजयदशमी भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक मुहूर्त होता है। यह कार्य सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है इसलिए भी इसे विजयदशमी कहते हैं। ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग उसे और भी शुभ बनता है। 

युद्ध करने का प्रसंग ना होने पर भी इस काल में राजाओं ने महत्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोगों की  सीमा का उल्लंघन किया । दुर्योधन ने पांडवों को जुए  में पराजित कर 12 वर्ष के वनवास के साथ 13 वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। 13वें वर्ष का  पता उन्हें अगर  लग जाता तो उन्हें फिर से  12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना टुनीर धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था और स्वयं वृहन्नला के वेश  में राजा विराट के यहां नौकरी शुरू कर ली थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र और द्रौपदी  के भाई  धृष्टद्युम्न  ने  अर्जुन को अपने साथ रख लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने  हथियार उठाकर शत्रुओं पर प्रचंड विजय प्राप्त की थी।  विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम चंद्र जी लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था इसीलिए इस विजय काल के उत्सव में में शमी  का पूजन बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जो आज भी बड़ा फलदायी  है। भगवान राम को मिले 14 वर्ष के वनवास के दौरान लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। तब भगवान राम, लक्ष्मण, हनुमानजी और वानरों की सेना ने माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए भीषण  युद्ध किया था। कई दिनों तक भगवान राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। भगवान राम ने 9 दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना करते हुए 10वें दिन रावण का वध किया था। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था और रावण के बढ़ते अत्याचार और अंहकार के कारण भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध कर पृथ्वी को रावण के अत्याचारों से मुक्त कराया।

विजयादशमी केवल राम की विजय का पर्व नहीं है, बल्कि यह नवरात्रि के पर्व का अंतिम दिन भी है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और विजयादशमी के दिन देवी की शक्ति और संहारक रूप की विजय का जश्न मनाया जाता है। विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का आयोजन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में किया जाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अस्त्रों और औजारों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी रखनी चाहिए। विजयादशमी पर्व  हमें आत्मविश्वास, साहस और नैतिकता का पाठ  पढ़ाता  है, जिससे हम अपने समाज की भलाई के लिए कार्यरत रह सकें। यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की ही  विजय होती है।