Friday 9 January 2009

अगाध आस्था और विस्वास का केन्द्र : नीम करोली बाबा का कैंची धाम .........



हिमालय की गोद में रचा बसा उत्तराखंड वास्तव में दिव्य लोक की अनुभूति कराता है यहाँ के कण कण में देवताओ का वास है पग पग पर देवालयों की भरमार है जिस कारन एक बार यहाँ का भ्रमण करने वाला पर्यटक दूसरी बार यहाँ घूमने की चाहत लिए यहाँ जाने की कामना करने लगता है यहाँ की शांत वादियों में घूमने मात्र से सांसारिक मायाजाल में घिरे मानव की सारी कठिनायियो का निदान हो जाता है उत्तराखंड के देवालयों में आने वाले सैलानियों की तादात दिनों दिन बदतीजा रही है तीर्थाटन की दृष्टीसे ऐसे मनोहारी स्थान राज्य के आर्थिक विकास में खासेउपयोगी है हाँ यह अलग बात है सरकारी उपेक्षा के चलते राज्य में अभी कई सुंदर स्थान ऐसे है जो सरकार की आँखों से ओझल है जिस कारन कई पर्यटक स्थलों का अपेक्चित लाभ हासिल नही हो पा रहा है

देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है जो राज्य में आने वाले पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है यहाँ पहुचकर सुकून की प्राप्ति होती है और सारे बिगडे काम नीम करोली बाबा की किरपा से बन जाते है

सरोवर नगरी नैनीताल से २० किलोमीटर की दूरी पर अल्मोडा राजमार्ग पर हरी भरी घाटियों पर स्थित इस धाम में यू तो वर्ष भर सेलानियो का ताँता लगा रहता है लेकिन १५ जून का यहाँ पर खासा महत्त्व है इस दिन यहाँ पर विशेष भंडारे का आयोजन होता है जिसमे कुमाऊ के इलाकों के साथ साथ बहार से भी पर्यटक पहुचते है जो बाबा नीम करोली के शरण में शीश नवाते है इस दिन भारी जन सेलाब की मौजूदगी में पूजा अर्चना और अनुष्ठान के कार्यक्रम संपन्न होते है

नीम करोलीबाबा की महिमा बड़ी न्यारी है भक्तजनों की माने तो बाबा की किरपा से बिगडे काम बन जाते है यही कारन है की बाबा के द्वारा बनाये गए सारे मंदिरों में भक्तो का जन सेलाब उमड़ पड़ता है इस नीम करोली धाम को बनाने के सम्बन्ध में कई रोचक कथाये प्रचलित है बताया जाता है की १९६२ में जब बाबा ने यहाँ की भूमि पर अपने कदम रखे तो जनमानस को हतप्रभ कर दिया एक कथा के अनुसार माता सिद्धि और तुला राम के साथ बाबा किसी वहां से रानीखेत से नैनीताल जा रहे थे , तब वह अचानक कैंची धाम के पास उतर गए इसी बीच उन्होंने तुलाराम को बताया की"श्यामलाल अच्छा आदमी था " तुलाराम को यह बात अच्छी नही लगी , क्युकी श्यामलाल उनके समधी थे भाषा में "थे" के प्रयोग से वह बहुत बेरुखे हो गए और अपने गंतव्य स्थान की और चल दिए बाद में कुछ समय के बाद उनको जानकारी मिली की उनके समधी का हिरदय गति रुकने से निधन हो गया कितना दिव्य चमत्कार था यह बाबा का जो उन्होंने दूर से ही यह जान लिया की उनके समधी का अब बुलावा आ गया है

इसी प्रकार एक दूसरी चमत्कारिक घटना के अनुसार १५ जून को आयोजित विशाल भंडारे के दौरान "घी " की कमी पड़ गई बाबा जी के आदेशो पर पास में बहने वाली नधी की धारा से पानी कनस्तरों में निकालकर प्रसाद बनने के प्रयोग में लाया गया जब वह पानी प्रसाद के लिए डाला गया तो वह अपने आप "घी" में परिणित हो गया इसे चमत्कार से भक्त जन नतमस्तक ही गए तभी से उनकी आस्था और विस्वास नीम करोली बाबा के प्रति बना हुआ है जो आज दूना हो गया है

7 comments:

योगेश समदर्शी said...

बहुत उत्तम जानकारी है... यहां कैसे जाया जाये, और वहां ठहरने की क्या वयवस्था है,क्या जून के अलावा भी कभी जाया जा सकता है... आदि प्रश्नों के उत्तर मिलते तो अच्छा रहता.... आप यह जानकारी मुझे मेरे मेल पर भी दे सकते है... आलेख के लिये धन्यवाद
yogesh.samdarshi@gmail.com

Udan Tashtari said...

आभार इस जानकारी का.

प्रदीप मानोरिया said...

अत्यन्त सुंदर जानकारी पूर्ण आपकी प्रस्तुति धन्यबाद

Science Bloggers Association said...

इस महत्‍वपूर्ण जानकारी के लिए आभार।

Vineeta Yashsavi said...

mujhe yeha malum nahi tha.....

Aapne kafi achhi jankariya uplabdha karayi hai.

hem pandey said...

जिस प्रकार शिर्डी जैसे एक छोटे गाँव को साईं बाबा ने एक जाना माना तीर्थ स्थान बना दिया उसी प्रकार नीम करौली बाबा ने कैंची जैसे अज्ञात स्थान को भी दर्शनीय बना दिया है.

योगेश चन्द्र उप्रेती said...

aapne bahut hi badiyaa tarike se kaischi dhaam ki katha prastut ki hai mein aapka bahut aabhaar wyakt karta hoon...