Tuesday 13 September 2011

हिलजात्रा ..............



लोकसंस्कृति का सीधा जुडाव मानव जीवन से होता है..... उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुषमा और सौन्दर्य का धनी रहा है ..... यहाँ पर मनाये जाने वाले कई त्योहारों में अपनी संस्कृति की झलक दिखाई देती है... राज्य के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ में मनाये जाने वाले उत्सव हिलजात्रा में भी हमारे स्थानीय परिवेश की एक झलक दिखाई देती है...


हिलजात्रा एक तरह का मुखौटा नृत्य है .... यह ग्रामीण जीवन की पूरी झलक हमको दिखलाता है... भारत की एक बड़ी आबादी जो गावों में रहती है उसकी एक झलक इस मुखौटा नृत्य में देखी जा सकती है... हिलजात्रा का यह उत्सव खरीफ की फसल की बुवाई की खुशी मनाने से सम्बन्धित है... इस उत्सव में जनपद के लोग अपनी भागीदारी करते है...


"हिल " शब्द का शाब्दिक अर्थ दलदल अर्थात कीचड वाली भूमि से और "जात्रा" शब्द का अर्थ यात्रा से लगाया जाता है ... कहा जाता है मुखौटा नृत्य के इस पर्व को तिब्बत ,नेपाल , चीन में भी मनाया जाता है... उत्तराखंड का सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ सोर घाटी के नाम से भी जाना जाता है ...यहाँ पर वर्षा के मौसम की समाप्ति पर "भादों" माह के आगमन पर मनाये जाने वाला यह उत्सव इस बार भी बीते दिनों कुमौड़ गाव में धूम धाम के साथ मनाया गया...


इस उत्सव में ग्रामीण लोग बड़े बड़े मुखौटे पहनकर पात्रो के अनुरूप अभिनय करते है.....कृषि परिवेश से जुड़े इस उत्सव में ग्रामीण परिवेश का सुंदर चित्रण होता है......इस उत्सव में मुख्य पात्र नंदी बैल , ढेला फोड़ने वाली महिलाए, हिरन, चीतल, हुक्का चीलम पीते लोग, धान की बुवाई करने वाली महिलाए है .... कुमौड़ गाव की हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण "लखिया भूत " होता है... इस भूत को "लटेश्वर महादेव" के नाम से भी जानते है॥ मान्यता है यह लखिया भूत भगवान् भोलेनाथ का १२वा गण है ... कहा जाता है इसको प्रसन्न करने से गाव में सुख समृधि आती है...


हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण लखिया भूत होता है जो सबके सामने उत्सव के समापन में लाया जाता है... जिसको दो गण रस्सी से खीचते है...यह बहुत देर तक मैदान में घूमता है ..... माना जाता है यह लखिया भूत क्रोध का प्रतिरूप है...... जब यह मैदान में आता है तो सभी लोग इसका फूलो और अक्षत की बौछारों से अभिनन्दन करते है...इस दौरान सभी शिव जी के १२ वे गण से आर्शीवाद लेते है...कहते है इस भूत के प्रसन्न रहने से गाव में फसल का उत्पादन अधिक होता है ...


कुमौड़ वार्ड के पूर्व सभासद गोविन्द सिंह महर कहते है यह हिलजात्रा पर्व मुख्य रूप से नेपाल की देन है... जनश्रुतियों के अनुसार कुमौड़ गाव की "महर जातियों की बहादुरी के चर्चे प्राचीन काल में पड़ोसी नेपाल के दरबार में सर चदकर बोला करते थे ... इन वीरो की वीरता को सलाम करते हुए गाव वालो को यह उत्सव उपहार स्वरूप दिया गया..... तभी से इसको मनाने की परम्परा चली आ रही है ..... आज भी यह उत्सव पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है......

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

परम्पराओं का सुन्दर वर्णन।

Jyoti Mishra said...

very informative..
Nice read