"जीवन भर मेरा सपना था भारत के लिए क्रिकेट खेलने का. पिछले 24 वर्षों से
मैं हर दिन ये सपना जी रहा था. मेरे लिए अपनी ज़िंदग़ी का एक भी दिन बिना
क्रिकेट के सोचना मुश्किल है क्योंकि 11 साल की उम्र से मैं यही कर रहा
हूँ. अपने देश का प्रतिनिधित्व करना और दुनिया भर में खेलना मेरे लिए बड़े
गौरव की बात रही है. मैं अपनी ज़मीन पर 200वाँ टेस्ट खेलने को लेकर उत्सुक
हूँ."
सचिन
रमेश तेंदुलकर द्वारा मीडिया को दिए गए इस बयान का मजमून सचिन के
ऐतिहसिक सफ़र की तस्दीक कराने के लिए काफी है । 24 बरस ... 463 वन डे मैच
..18426 रन ... 86.23 का स्ट्राइक रेट ..., 199 टेस्ट मैच , 15837 रन .
इन बरसों में कई बल्लेबाज टीम में आये और कई गए । कई गेदबाज टीम में अपनी
जगह बनाने में सफल हुए तो कई कुछ मैच खेलने के बाद न जाने कहाँ गुमनामी
के अंधेरो में खो गए। इस दौरान खेल भी बदला समय ने ऊँची करवट ली लेकिन एक
चीज जो नहीं बदली वह थी सचिन रमेश तेंदुलकर के तीन फीट लम्बे भारी बल्ले
की धमक जिसकी आग ने मानो विपक्षी टीम का मान मर्दन करा दिया । सचिन का
बल्ला अपनी आग उगलता रहा और क्रिकेट की किताब में एक -एक रन दर्ज होकर
इतिहास बनता गया । शायद इसी वजह से भारतीय क्रिकेट का यह सितारा इतिहास में
कोहिनूर बन गया और क्रिकेट का भगवान कहा जाने लगा लेकिन क्रिकेट के भगवान
की वन डे पारी का ऐसा खामोश अंत इस तरह बेबस ढंग से होगा इसकी कल्पना
शायद ही किसी ने की होगी । बीते दिनों अचानक सचिन ने टेस्ट क्रिकेट को
अलविदा कह देश के करोडो प्रशंसको को निराश कर दिया ।
जिस
समय बी सी सी आई के चयनकर्ता नवम्बर में वेस्ट इंडीज के साथ नवम्बर
में खेली जाने वाली सीरीज के लिए तैयारियों को अंतिम रूप देने में
जुटे थे ठीक उसी समय क्रिकेट का यह भगवान टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने
की तैयारियों में जुटा हुआ था । बीते शुक्रवार को को सचिन ने बी सी सी आई
के जरिए जारी किये गए एक प्रेस नोट में टेस्ट फोर्मेट से सन्यास का फैसला
लेकर सभी को चौंका दिया । 40 साल के सचिन 200वाँ टेस्ट खेलने के बाद
संन्यास ले लेंगे. सचिन दिसंबर 2012 में वन डे इंटरनेशनल से संन्यास ले
चुके हैं. शाम ढलते ढलते यह खबर सभी की जुबान पर छा गई । सचिन के टेस्ट
से सन्यास पर विपक्षी टीम के गेंदबाजो ने भले ही राहत की सांस ली हो
लेकिन इस खबर ने उनके करोडो प्रशंसकों को मायूस ही किया । सचिन अपना अंतिम
टेस्ट मैच अपने घरेलू मैदान वानखेड़े में खेलेंगे लेकिन पिछले कुछ समय से
उनके प्रदर्शन पर न केवल पूर्व भारतीय कप्तानो की एक बड़ी जमात सवाल उठा
रही थी वरन उनको टीम से बाहर करने का ताना बाना बुन रही थी जिसमे
चयनकर्ताओ के आसरे उन पर मजबूरन सन्यास का दबाव बनाया जा रहा था और शायद
यही कारण था सचिन ने किसी के दबाव के आगे न झुकते हुए अपने अंतर्मन की
आवाज को सुना और खुद को अब टेस्ट क्रिकेट से दूर करने का फैसला कर लिया ।
जबकि यह सच शायद ही किसी से छुपा है सचिन का प्रदर्शन पिछले कुछ समय से
टेस्ट क्रिकेट में ही खराब चल रहा था । इस दौरान वह अपनी कई पारियों में
'क्लीन बोल्ड' हो गए थे । उनकी तकनीक को लेकर पहली बार इस दौर में सवाल
उठने लगे जिसके बाद चयनकर्ताओ ने सचिन को नसीहत दे डाली अब नए खिलाडियों को
मौका देने की मांग जोर पकड़ रही है लिहाजा वह खुद से सोचकर यह तय करें कि
आगे उन्हें क्या करना है ? इसी के तहत "फेबुलस फोर " की जमात में शामिल
रहे गांगुली ,राहुल द्रविड़, लक्ष्मण से बीते दिनों जबरन सन्यास दिलवाया
गया और सचिन भी चयनकर्ताओ की इस गुगली के फेर में आ गए ।
अपने
अब तक के करियर में सचिन ने रिकार्डो का जो पहाड़ मैदान में खड़ा किया है
उसे शायद ही आने वाले दिनों में कोई छू पाए । सचिन के नाम वन डे , टेस्ट
मैचो में सबसे अधिक मैच , सबसे अधिक रन , शतक, अर्धशतक बनाने का रिकॉर्ड
जहाँ दर्ज है वहीँ सबसे अधिक मैन आफ द मैच से लेकर मैन आफ द सीरीज जीतने
तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं । तभी सर डॉन ब्रेडमैन ने एक दौर में सचिन में अपना
अक्स देखा था और शेन वार्न सरीखे कलाई के जादूगर की रातो की नीद को उड़ा
डाला था । सचिन के नाम अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतको का रिकॉर्ड
दर्ज है । इसी साल मार्च में सचिन ने अपना आखरी शतक बांग्लादेश के खिलाफ
ठोंका था । सचिन ने 463 वन डे मैचो की 452 परियो में 44.83 की औसत से
18426 रन बनाये तो वहीं वन डे में 49 शतक बनाकर अपनी बल्लेबाजी का लोहा
पूरी दुनिया के सामने मनवाया । फ़रवरी 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वन
डे में दोहरा शतक लगाने वाले पहले खिलाडी बनने के साथ ही गेदबाजी में
अपना कमाल 154 विकेट लेकर दिखाया । साझेदारी बनाने से लेकर साझेदारी तोड़ने
तक में सचिन का कोई सानी नहीं था । दो बार उन्होंने वन डे मैचो में एक साथ
5 विकेट झटकने के साथ ही सर्वाधिक 62 बार मैन आफ द मैच से लेकर 15 बार
मैन आफ द सीरीज का रिकॉर्ड अपने नाम किया । वाल्श से लेकर डोनाल्ड , अकरम
से लेकर वकार , शोएब अख्तर से लेकर ब्रेट ली और फिर शेन वार्न से लेकर
मुरलीधरन सबकी गेदबाजी से सामने सचिन ऐसे चट्टान की भांति डटे रहते थे
जिनका विकेट हर किसी के लिए अहम हो जाता था । 15 नवम्बर 1989 को पाकिस्तान
के विरुद्ध महज 16 साल की उम्र में घुंघराले बाल वाले इस युवा खिलाडी ने
जब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया था को किसी ने अंदाजा नहीं
लगाया था कि भविष्य में यह खिलाडी क्रिकेट के देवता के देवता के रूप में
पूजा जायेगा लेकिन सचिन ने अपनी प्रतिभा 1988 में ही दिखा दी जब अपने बाल
सखा विनोद काम्बली के साथ 664 रन की रिकॉर्ड साझेदारी कर इतिहास रच डाला
था । पाकिस्तान के दौरे में अब्दुल कादिर की गुगली पर उपर से छक्का जड़कर
उन्होंने अपने इरादे जता दिए थे । यही नहीं उस दौर को अगर याद करें तो
सियालकोट के टेस्ट में एक बाउंसर सचिन की नाक में जाकर लग गया । नाक से खून
बह रहा था लेकिन इन सबके बीच सचिन मैदान से बाहर नहीं गए और डटकर गैदबाजो
का सामना किया ।
1990
में इंग्लैंड का ओल्ड ट्रेफर्ड सचिन का पहले शतक का गवाह बना जब उन्होंने
विदेशी धरती से अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी । इसके बाद सिडनी और
पर्थ की खतरनाक समझी जाने वाली पिचों पर सचिन ने अपनी शतकीय पारियों से
प्रशंसको का दिल जीत लिया । इसके बाद तो उनके नाम के साथ हर दिन नए रिकॉर्ड
जुड़ते गए । आज सचिन की इन उपलब्धियों के पहाड़ पर कोई खिलाडी दूर दूर तक
उनके पास तक नहीं फटकता । सचिन में एक खास तरह की विशेषता भी है जो उनको
अन्य खिलाडियों से महान बनाती है । उनका क्रिकेट के प्रति जज्बा देखते ही
बनता है और पूरे करियर के दौरान उन्होंने इसे जिया । शालीन और शांतप्रिय
होने के अलावे धैर्य और अनुशासन उनमे ऐसा गुण था कि विषम परिस्थितियों में
में सचिन अपना रास्ता खुद से तय करते थे । कभी शून्य पर भी आउट हो जाते तो
आलोचकों को करारा जवाब अपने खेल से ही देते । टीम इंडिया में एक
मार्गदर्शक के तौर पर उन्होंने युवाओ को एक नया प्लेटफार्म दिया जहाँ उनसे
सलाह मांगने वालो में खुद धोनी , युवराज , भज्जी सरीखे खिलाडी शामिल रहते
थे । प्रत्येक खिलाडी उनसे कुछ नया सीखने की कोशिश में रहता । यह हमारे लिए
फक्र की बात है सचिन को हमने उनके शुरुवाती दौर से खेलते हुए देखा है ।
आने वाले भावी पीढियों को हम सचिन की गौरव गाथा बड़े गर्व के साथ सुना
पाएंगे ।
सचिन
के लिए वर्ल्ड कप एक सपना था और धोनी की अगुवाई वाली टीम का हिस्सा बनने
पर उन्हें काफी नाज है । इसकी झलक वन डे और फिर टेस्ट से सन्यास के समय
उनके द्वारा दिए बयानों में साफ झलकी जहाँ उन्होंने टीम के वर्ल्ड कप जीतने
पर ख़ुशी जताई और अगले वर्ल्ड कप के लिए अभी से एकजुट हो जाने की बात कही ।
सचिन जैसे कोहिनूर अब भारत को शायद ही मिलें क्युकि सचिन जैसे समर्पण की
बात आज के खिलाडियों में नदारद है । क्रिकेट आज एक मंडी में तब्दील हो
चुका है जहाँ खिलाडियों की करोडो में बोलियाँ लग रही हैं । सारी व्यवस्था
मुनाफे पर जा टिकी है जहाँ खेल का पेशेवराना पुराना अंदाज गायब है जो
अस्सी और नब्बे के दशक में देखने को मिलता था । आज के युवा खिलाडियों की एक
बड़ी जमात ट्वेंटी ट्वेंटी के जरिये अपनी प्रतिभा को दिखा रही है जबकि वन
डे और टेस्ट क्रिकेट से उनका मोहभंग हो गया है । यही नहीं इसमें उनका
प्रदर्शन भी फीका ही रहा करता है । ऐसे में बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है
सचिन, गांगुली, राहुल , वी वी एस वाली लीक पर कौन आज के दौर में चलेगा वह
भी उस दौर में जब ट्वेंटी ट्वेंटी टेस्ट से लेकर वन डे को लगातार निगल रहा
है ।
बहरहाल
सचिन ने वन डे अब टेस्ट से सन्यास के बाद करोडो चहेते प्रशंसको को निराश
कर दिया है । टेस्ट से अचानक लिए गए सन्यास पर सस्पेन्स अब भी बना है ।
आगे भी शायद यह बना रहे क्युकि मैदान से अन्दर और बाहर सचिन जिस शानदार
टाइमिंग से खेलकर कई लोगो को आईना दिखाते थे वैसी टाइमिंग उनके टेस्ट से
सन्यास लेते समय देखने को नहीं मिली । जाहिर है सचिन पहली बार चयनकर्ताओ
के निशाने पर सीधे तौर पर आये और आखिरकार दबाव झेलने की वजह से उन्होंने
टेस्ट से अचानक सन्यास की घोषणा कर सभी को चौंका ही दिया और शायद स
भावुक पल में उन्होंने मीडिया के सामने आना भी मुनासिब नहीं समझा लेकिन जो
भी हो सचिन ने रिकार्डो का जो पहाड़ अब तक खड़ा किया है शायद आने वाले
दिनों में कोई इसके आस पास तक फटक पाए ।
1 comment:
सचिन को सब याद करेंगे
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