Friday 18 October 2013

यू पी बचाने में लगे भाजपा के नाथ.………….



" दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। " यह कथन भारतीय राजनीती के सम्बन्ध में परोक्ष रूप से सही मालूम पड़ता है। आज उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है। बड़े  पैमाने पर भाजपा और कांग्रेस का ब्राह्मण वोट आपस में छिटक गया है और यही वोट बसपा और सपा में बट  गया है । लेकिन आज हालत एकदम उलट हैं ।  
यह सवाल सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में  जिसको कचोट रहा है वह है  उत्तर प्रदेश  की भाजपा ।  यू पी  मे पार्टी की सेहत सही नही चल रही है.....   बीजेपी की प्रदेश  मे डगमग हालत के चलते उसका हाई कमान भी चिंतित है ।  चिंता लाजमी भी है क्युकि पांच   राज्यों के विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है ऐसे में बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने गृह प्रदेश को लेकर  अभी से हाथ पैर मारने में लग गए है। 

हाल ही मे   प्रदेश में   चुनाव प्रचार की कमान  पूरी तरह  नरेन्द्र मोदी के दाहिने हाथ अमित शाह  को   सौपे जाने को विश्लेषक  एक नई  कड़ी का हिस्सा मान रहे है । . सूत्र बताते है कि संघ  पिछले विधान सभा के चुनावो से कुछ सबक लेना चाह रहा है लेकिन राजनाथ  की इस साल बिछाई  गई बिसात में संघ की एक भी नहीं चल रही ।   इसी के चलते  इस बार  चुनाव में उत्तर प्रदेश में कद्दावर नेताओ को एक एक करके चुनावो से किनारे लगाया जा रहा है ।  

राजनाथ  की बिसात  " जिताऊ " उम्मीदवारों के रास्ते जहाँ गुजरती  है वही  संघ का रास्ता उसके स्वयंसेवको  और पार्टी का झंडा लम्बे समय से उठाये नेताओ के आसरे गुजरता है  ।   दिल्ली मे पार्टी के एक नेता की माने तो इस बार अपने हाई टेक फोर्मुले के सहारे  सपा और बसपा के साथ जा मिले ब्राहमण वोट बैंक को वापस अपनी तरफ लेने की कोशिशे ना केवल  तेज कर रहे हैं बल्कि कांग्रेस के वोट बैंक पर   सेंध सपा के जरिये  लगा रहे हैं ।  उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर  में हुए सांप्रदायिक दंगो के बाद पहली बार  सपा और भाजपा को लाभ मिलता दिख रहा है । 

अगर भाजपा का इस बार का हिंदुत्व कार्ड अमित शाह के जरिये चल गया तो   भाजपा और सपा  की प्रदेश में चांदी  तय है ऐसे में बसपा और कांग्रेस के वोट बैंक में सैंध  लगनी तय है ।   पार्टी के नेताओ का मानना है कि  ब्राहमण   वोट बैंक शुरू से उसके  साथ रहा है लेकिन बीते कुछ  चुनावो मे यह माया मैडम के साथ जा मिला तो वहीँ इस बार के विधान सभा चुनावो में यह सपा के पास गया  है ।  इसको फिर से अपनी  ओर लाकर ही  उत्तर  प्रदेश  में पार्टी की ख़राब हालत सुधर सकती है शायद इसी के मद्देनजर भाजपा के नाथ  की बिसात में जहाँ वह एक छोर  पर  खुद खड़े   हैं  तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी के  कार्ड को खेलकर उसने ब्राहमण और ठाकुर  वोट के अलावे अन्य पिछड़े वोट  को अपने  पाले में लाने का नया फ़ॉर्मूला बिछाया है । 
यह बताने कि जरुरत किसी को नहीं कि राजनाथ और कलराज  मिश्र  के  समर्थक उत्तर प्रदेश में शुरू  से एक दूसरे के आमने सामने खड़े रहते थे । . पहली  बार अपनी बिसात में  राजनाथ ने नई व्यूह रचना इस प्रकार की है जिसके जरिये हिन्दू वोट बैंक को पार्टी अपने पाले में ला सके ।.  इस बार राजनाथ  ने  जहाँ  एक ओर  प्रदेश  अध्यक्ष लक्ष्मी कान्त वाजपेयी  खेमे को भी चुनावी चौसर बिछाने में साथ लिया है तो वहीँ  कल्याण सिंह ,  उमा भारती को "स्टार प्रचारक " बनाकर और पिछड़ी जातियों के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की  गोल बंदी कर डाली है  ।

यही नहीं राजनाथ इस बार अन्य दलों से नाराज चल रहे विधायको पर भी नजर गढाए हैं । आने वाले दिनों में अगर कई विधयक भाजपा के पाले में जायें तो किसी को   कोई आश्चर्य  होना चाहिए  इतना जरुर है इन सबके  जरिये पहली बार राजनाथ  ने संघ की हिंदुत्व प्रयोगशाला के सबसे बड़े झंडाबरदार  योगी आदित्यनाथ और विनय कटियार सरीखे नेता को अगर टिकट चयन से दूर रखा है तो समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के चुनावो में किस तरह  संघ ने अपने लाडले राजनाथ पर पूरा भरोसा जताया है ।  

इस बार  राजनाथ  ने टिकट  जीतने वाले उम्मीदवारो  पर डाव लगाने की ठानी है  और चुनावो से पहले ही  अपने इरादे जता दिए है जिससे लम्बे समय से पार्टी का झंडा उठाये हुए नेताओ की दाल  गलनी मुश्किल दिख  रही है क्युकि वही नेता टिकट  में कामयाब होगा जो अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की चुनावी बिसात में फिट बैठेगा । वही अमित शाह को आगे कर मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपना बड़ा दाव चलकर एक बार फिर  अपने कदम यु पी  की तरफ बड़ा दिए हैं । मोदी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं अगर भाजपा ने आगामी लोक सभा चुनाव में दिल्ली में सरकार बनानी है तो  लिटमस टेस्ट उत्तर प्रदेश ही होगा । यहाँ अच्छा  करने  पर ही पार्टी केंद्र में सरकार  बनाने का दावा ठोक  सकती है ।       .   

कुछ महीने पहले से ही पार्टी संसदीय बोर्ड में  हिंदुत्व के मुद्दे पर चर्चा की अटकलें सुनाई दे रही थी  ।  उत्तर प्रदेश भाजपा की  हिंदुत्व प्रयोगशाला का पहला पड़ाव रहा है जहाँ राम लहर की  धुन बजाकर  भाजपा  ने कभी राज्य में अपनी सरकार बनाई थी ।  पार्टी  के नेता मानते है हिंदुत्व की आधी मे वह केन्द्र मे सत्ता मे आयी लेकिन अपने कार्यकाल मे उसने कई मुद्दों को ठंडे बस्ते मे डाल दिया जिस कारण केन्द्र में यू पी ऐ की सरकार आ गयी और बीजेपी अवसान की ओर चली गयी ......इस बार पार्टी फिर हिन्दुत्व पर वापस लौटने  का मन बना रही है |

पार्टी की चाल देखकर ऐसा लगता है कि वह अपनी हिंदुत्व की आत्मा को अलग कर नही चल सकती और मोदी उसकी इस बिसात में उत्तर प्रदेश में तारणहार बन सकते हैं । अयोध्या आन्दोलन के दौर में उत्तर प्रदेश में  की  नैय्या  इसी हिन्दू कार्ड ने पार लगाई और अब भाजपा मोदी के जरिये राजनीति के मैदान पर ध्रुवीकरण वाला वही फार्मूला चल रही है  जिसने नब्बे के दशक में भाजपा को बड़ी पार्टी के रूप में ना केवल उभारा  बल्कि हिंदुत्व की छाँव तले  उसे राष्ट्रवाद से जोड़ा ।  आज के दौर में भाजपा के पास मोदी के अलावा कोई   नहीं है जो बड़े पैमाने पर    ध्रुवीकरण कर पार्टी की सीटें बड़ा सके  और इसी को ब्रांड बनाकर भाजपा विकास के जरिये मोदिनोमिक्स की छाँव तले उत्तर प्रदेश के अखाड़े में  बड़ा सवाल यह है कि वह सबको साथ लेने के किस फोर्मुले पर चलेगी ? इतिहास गवाह है केंद्र में सत्ता  हथियाने के बाद पार्टी मे पिछडे नेताओ को उपेक्षित बीते कुछ समय  से रखा जाता रहा है.....


जब पार्टी मे यह तय हो चुका है वह आगामी चुनाव मे अपने ओल्ड एजेंडे पर चल रही है तो ऐसे मे पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश  सबसे बड़ी रन भूमि बन गया है....यही वह प्रदेश है जहाँ की सांसद  संख्या दिल्ली का ताज तय करती है ...... वैसे भी पूत के पाव पालने मे ही दिखाए देते है बीजेपी भी इसको अच्छी तरह से जानती है, तभी वह आजकल बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का तोड़  निकालने मे जुटी है.......


बीजेपी के अन्दर के सूत्र बताते है कि ब्राह्मणों को लुभाने की मंशा  से पार्टी ने अपने पांच   ट्रंप  कार्ड फैक दिए है जो पार्टी का जहाज उत्तर प्रदेश  में  बचाने की  पूरी कोशिश  करेंगे........ पहला कार्ड राजनाथ  सिंह  का है जो  चुनाव  प्रभारी है.... वह ख़ुद  ठाकुर  है ....दूसरा कार्ड राज्य मे मौजूद पार्टी प्रेजिडेंट  लक्ष्मी कान्त वाजपेयी    का है जो खुद  ब्राह्मण हैं   तीसरा  कार्ड  जो  फेंका  गया है वह है  कलराज मिश्रा वह  उत्तर प्रदेश में ब्राहमण बिरादरी का झंडा लम्बे समय  से  उठाये  है..... अटल बिहारी की खडाऊं पहनकर लखनऊ से सांसद तो है ही साथ ही यू पी की सियासत को बखूबी समझते है   ........ चौथा कार्ड हाल ही  मे  मोदी  के रूप में के रूप में फेंका गया है जिसके जरिये पार्टी पिछडो के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत में है .......  यही नहीं पांचवे कार्ड के रूप  में रामेश्वर चौरसिया के रूप में फेंका गया है  जो अमित शाह के साथ सहराज्य प्रभारी बनाये गए हैं ।
   
पार्टी का मानना है  राज्य मे ब्राहमणों   की बड़ी संख्या  १६ वी  लोक सभा चुनाव मे उसका गणित सुधार सकती है साथ मे हिंदुत्व का मुखोटा फिर से पहनने  से उसका खोया जनाधार  वापस आ सकता है.......वैसे भी नब्बे  के दशक  मे राम मन्दिर की लहर ने हिंदू वोट को उसकी ओर खीचा था जिसके बूते सेण्टर मे न केवल उसकी  सीटें  बढ़ी  बल्कि केंद्र  मे वाजपेयी की सरकार भी सही से चली थी ..............

राजनाथ अपनी पार्टी की केंद्र में सत्ता  में वापसी   के लिए उत्तर प्रदेश  पर टकटकी लगाये हुए है..... वह इस बात को जानते है कि  पार्टी की  उत्तर प्रदेश  में  इस बार पतली हालत होने पर उनका सपना पूरा नही हो पायेगा....


अतः पार्टी पहले इस यू पी  की चुनोती से पार पाना चाहती है....लोक सभा के लिए बीजेपी  अभी से कमर कस चुकी है ....पार्टी द्वारा पिछले  चुनाव मे अपने एजेंडे से भटकने के कारण  संघ भी इस  बार अपने को यू पी के चुनावो से दूर कर रहा है...... संघ मानता है  दलित और मुस्लिम वोट शुरू  से कांग्रेस के साथ रहा है लेकिन पिछले कुछ  चुनाव मे यह बसपा और सपा  के साथ जा मिला..... प्रदेश के ब्राहमण मतदाताओ  के  माया  के  साथ जाने से भाजपा  की हालत  सबसे ख़राब हो गयी है....

अतः राजनाथ  का रास्ता  ब्राहमणों के वोट बैंक  को बीजेपी के साथ लेने की कोशिशो  मे जुटा है...... बीजेपी बीते  चुनावो  से इस बार सबक ले रही है..... समय समय पर उत्तर प्रदेश  को लेकर मीटिंग हो रही है..हर बैठक में   उत्तर प्रदेश को लेकर गंभीर मंथन हो रहा है ....   राजनाथ  सिंह   के पास विरोधियो को राजनीती की पिच  पर मौत देने का तोड़  है........अपनी छमताओ  को वह बीते कुछ वर्षो मे कर्नाटक , बिहार, हिमांचल, उत्तराखंड , गुजरात मे साबित कर चुके है ... अब बारी उनके खुद के प्रदेश उत्तर प्रदेश की है जहाँ के वह  मुख्य मंत्री भी रह चुके है ..... यह  बड़ा प्रदेश है.... हालात  अन्य प्रदेश से अलग है..... यहाँ पर खेलने के लिए बड़ा दिल रखना पड़ता है.......  पार्टी की  उत्तर प्रदेश  में हालत सही करने का जिम्मा अब राजनाथ   और कलराज  के कंधो  मे है .....उनको अच्छा तभी कहा जा सकता है जब वह पार्टी को  प्रदेश  मे अच्छी सीट दिलाने में मदद करें.....


२००२ के  चुनाव में बीजेपी को विधान सभा मे ४०२ सीट् मे ५१ सीट ही मिल पाई..... १४६ मे उसके जमानत जब्त हो गयी इसके बाद वहां के चुनाव मे पार्टी ४ नम्बर पर आ गयी ......बसपा को ३०.४३% वोट  मिले.... समाजवादी  पार्टी को ९७ सीट हासिल हुई ... वोट  २५% रहा वही बीजेपी  का  १६% रहा ....इसके  बाद तो पार्टी का  २००७  मे ऐसा जनाजा  निकला  पार्टी की माली  हालत  खस्ता  हो गयी...... 

ऐसे मे राजनाथ के सामने  उत्तर प्रदेश की  पुरानी  खोयी हुई जमीन को बचाने की बड़ी चुनौती  है.......  देखना होगा   राजनाथ की  इस नयी बिसात में ये चारो कहाँ  फिट बैठते है?  वह भी ऐसे समय में जब  राज्य में पार्टी के पुराने  संजय जोशी, विनय कटियार, योगी  सरीखे चेहरे हाशिये  पर है.......... 
राजनाथ  पार्टी का   पुराना  चेहरा है.........  उनको कलराज मिश्र  की तरह यू पी की गहरी समझ है .... साथ में उमा और वाजपेयी  की जोड़ी उत्तर प्रदेश में भाजपा की साख को बचाने का काम कर सकती है...........इन चारो  को आगे कर भाजपा उत्तर प्रदेश में समाज के हर वर्ग में अपनी उपस्थिति सामाजिक समीकरणों के जरिये बिछा रही  है ........ ब्राहमण  से लेकर ठाकुर , राजपूत से लेकर पिछड़ी जातियों पर डोरे डालकर हर किसी को लुभाने का दाव  राजनाथ चल रहे हैं । राजनाथ की इस बार  की  बिसात में अगर कलराज ,राजनाथ उमा ,वाजपेयी की चौसर बिछी है तो वही  असंतुष्ट नेताओ से  पार पाना भी भाजपा की बड़ी मुश्किल बनती जा रही है ....क्युकि अगर इस चुनाव में योगी, कटियार , संजय जोशी सरीखे कई कद्दावर नेताओ की  एक भी नहीं चलेगी  और उनके जैसे कई कार्यकर्ता जो पार्टी का झंडा  वर्षो  से उठाये है वह भी अगर इस दौर  हाशिये  में चले जायेंगे  तो ऐसे में कीचड में कमल खिलने में  परेशानी हो सकती है...... वैसे भी पिछले दिनों बाबू सिंह कुशवाहा  के मुद्दे पर पार्टी की खासी किरकिरी हो चुकी है..... ऐसे में चुनावी डगर  मुश्किल दिख रही है..... फिर भी संघ  की गोद से  निकले राजनाथ अगर संघ से दूरी बनाकर पूरे उत्तर प्रदेश को  साधने की कोशिश कर रहे है तो उसे उत्तर प्रदेश में भाजपा के डूबते जहाज को बचाने की अंतिम कोशिशो के तौर पर  ही देखा जाना चाहिए......

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