Thursday 26 October 2017

'आबेनॉमिक्स' की छाँव तले जापान



जापान के मध्यावधि चुनाव में प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की है |  आबे के एलडीएफ नेतृत्व वाले गठबंधन को संसद के निचले सदन में  मिली   शानदार जीत में  दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल हुआ है ।  पिछले दिनों आबे  की रेटिंग में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली जिसके चलते उन्हें अचानक चुनाव कराने  का जुआ खेलने को मजबूर होना पड़ा । इस  जीत से आबे ने अपने विरोधियों को भी करारा जवाब दिया है |  आबे की अचानक चुनाव कराने की रणनीति काम कर गई  और विपक्ष को करारी हार का सामना करना पड़ा। मध्यावधि चुनाव करने का शिंजो का यह दांव  सही समय में काम आया  इससे विपक्षी दलों के पास खुद को संभालने का वक्त  नहीं  मिला  और उन्होंने सशक्त विकल्प के अभाव में  में आबे को ही वोट दिया। 

आबे की एलडीपी और उसके गठबंधन सहयोगी न्यू कोमितो ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 76 उनके हिस्से में आई |  ऊपरी सदन की कुल 242 सीटों में 135 पर अब इसी गठबंधन का कब्जा है |  शिंजो  दिसंबर 2012 से जापान के प्रधानमंत्री पद पर बने हुए हैं। इन्होंने 2006 - 2007 तक के दौर में भी  जापान के प्रधानमंत्री पद की सत्ता को संभाला  था । जब अबे जापान की राष्ट्रीय संसद  'डाइट'   के विशेष सत्र में  2006  में पहली बार प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए, तब  वह  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने। साथ ही आबे  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मे पहले प्रधानमंत्री हैं |
 
2006 में सुधारवादी प्रधानमंत्री जूनीचीरो कोइजूमी की पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद इस जीत ने आबे के लिए प्रधानमंत्री के रूप में लंबे कार्यकाल की उम्मीद भी मजबूत कर दी हैं | आबे के पास इस पारी में लम्बे समय तक पी एम पद पर टिके  रहने का शानदार मौका है क्युकि आने वाले दौर में वह नई इबारत गढ़ने जा रहे हैं |  वह जापान में सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री बन जाएंगे। दूसरे विश्वयुद्घ के बाद से जापान में प्रधानमंत्रियों का औसत कार्यकाल दो वर्ष के करीब रहा है। वर्ष 2012 में उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले के छह वर्ष में जापान में छह प्रधानमंत्री हुए। 

जापान  में संसद के ऊपरी सदन में जीत के साथ प्रधानमंत्री शिंजो  की सत्ता की मजबूत ठसक बरक़रार रही है |  इस दौर में जापान के सामने कई  मुश्किलें बाएं  खड़ी हैं | बेशक जापान की  अर्थव्यवस्था कुलांचे मार रही है और रोजगार  भी पैदा  हुए हैं लेकिन  भारी बहुमत मिलने के बाद  नई  पारी में आबे अपनी राष्ट्रवादी सोच तले  जापान को एक नई  दिशा दे सकते हैं | इस नई  पारी में  उनकी प्राथमिकता आर्थिक कार्यक्रमों को तेज करने की होगी   |  मौद्रिक नीति, सरकारी खर्चे में कमी और आर्थिक सुधार ऐसे पहलू  हैं जिस  पर उनके रुख पर  सबकी नजर रहेगी | इस चुनाव का ख़ास पहलू युवाओं का रुझान था जिसने जापान  की सियासत को अपने वोट से पहली बार नई दिशा दी  और सियासत के रुख को ही बदल दिया |  इस चुनाव को लेकर सबसे बड़ी दिलचस्पी शिंजो आबे के ‘राष्ट्रवादी’ एजेंडे और संविधान में एक खास संशोधन के उनके घोषित इरादे की वजह से रही । पिछले दिनों उत्तर कोरिया ने  मिसाइल दागी जो  जापान के होक्काइयो द्वीप से सीधे समुद्र में समां गई | इसके बाद से जापान और उत्तर कोरिया के रिश्तों को लेकर प्रेक्षक अपना नया  आकलन करने लगे थे | यूँ तो जापान की पहचान एक शांतिप्रिय देश की रही है और उसके उत्तर कोरिया के साथ किसी तरह के राजनीतिक और आर्थिक सम्बन्ध नहीं हैं  लेकिन इस नई पारी में शिंजो का उत्तर कोरिया के प्रति रुख क्या होता है इस पर सबकी नजर रहेगी |  इस तरह की रिपोर्टें आ रही हैं इस पारी में आबे  संविधान के शांतिप्रिय  अनुच्छेद नौ में संशोधन करना चाहते हैं जिससे सुरक्षा के मोर्चे और उत्तर कोरिया की मिसाइल चुनौती से वह बखूबी निपट सकें | लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएंगे यह बड़ा सवाल है |  यूँ तो इस जीत के बाद प्रधानमंत्री शिंजो आबे को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और उत्तर कोरिया पर उनके पहले से कड़े रूख को मजबूत करने में मदद  मिलने  की बात कही है लेकिन चुनावी मोड में  तो राजनेता तमाम तरह की घोषणाएं करते रहते हैं | चुनाव निपटने के बाद कथनी और करनी का पता चल पाता है | ऐसे में देखना दिलचस्प होगा शिंजो क्या नई लकीर खींच पाएंगे ? 

जापान के सामने पहली चुनौती नॉर्थ कोरिया से परमाणु हमले का खतरा है। यही मुद्दा चुनाव में भी छाया रहा। देश की जनता ने भी किम जोंग-उन के खिलाफ आबे के सख्त कदमों के समर्थन में उन्हें एकमुश्त वोट किया। जीत के बाद अपने संबोधन में आबे ने कहा वह जापान की जनता की खुशहाली को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध  हैं | उन्होंने  कोरिया के मिसाइल, परमाणु और अपहरण के मामलों के लिए निर्णायक और सशक्त कूटनीति  का जिक्र कर इस बात को तो जतला ही दिया है आने वाले दिनों में  नॉर्थ कोरिया पर  कड़ा रुख जापान की तरफ से देखने को मिल सकता है | जहां तक भारत और जापान के रिश्तों का सवाल है, शिंजो आबे के अब तक के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध  प्रगाढ़ ही हुए हैं।  शिंजो  का वापस आना हमारे लिए  अहम है | भारत और जापान ऐसी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिनमें अनेक पूरक पहलू हैं। मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी , बुलेट ट्रेन  योजनाओं को लेकर जापान के  कारोबारी  उत्साहित हैं | द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाईयों पर ले जाते हुए भारत और जापान के बीच  रक्षा और परमाणु ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों और बुलेट ट्रेन नेटवर्क निर्माण सहित कई समझौतों पर काम शुरू हो  चुका  है |   हमने  जापान के साथ असैन्य परमाणु ऊर्जा  सहयोग पर भी  हस्ताक्षर किए हैं  जो वाणिज्य एवं स्वच्छ ऊर्जा के लिए अहम है । भारत संभावनाओं का देश है और  जापान की तकनीक उसकी  ताक़त है और  ऐसे में अगर शिंजो और मोदी की गलबहियां आने वाले दिनों में कोई नया गुल खिलाती हैं तो पूरी दुनिया की नजर रहेगी | 

कुल मिलाकर आबे का सत्ता में मजबूती से वापस आना कई वजहों से बेहतर है। इस दौर में  जापान  भारत  की दोस्ती खूब परवान चढ़ी  है और जापान ने छोटे  भाई की तरह भारत का हर संभव सहयोग किया है | जापान की  स्थिरता रक्षा, व्यापार और बुनियादी ढांचागत सुधार  में भारत के लिए बेहतर होगी। दो एशियाई ताकतों जापान और भारत का साथ  आने से अब चीन की परेशानी और अधिक बढ़ सकती है | भारत और जापान  दोनों ही चीन की बढ़ती आर्थिक व सैन्य ताकत तथा सतत आर्थिक विकास की साझा रणनीतिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और जापान का साथ आना आज की नई जरूरत बन गई  है | । लुक  ईस्ट पॉलिसी पूर्व एशियाई क्षेत्र में मजबूती हासिल करने की भारत की सामरिक आर्थिक नीतियों में से एक है जिसके  तहत भारत का प्रयास है इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सामरिक , आर्थिक संबंधों को मजबूत किया जा सके | इस नीति पर चलते हुए भारत ने बीते कुछ बरसों में श्रीलंका, सिंगापुर, थाईलैंड  सरीखे देशों के साथ अपने सम्बन्ध मधुर किये हैं और अब इस कड़ी में  जापान भारत के लिए अहम कड़ी साबित हो सकता है  जिससे भारत जापान सम्बन्ध के आने वाले दिनों में  और प्रगाढ़ होने की उम्मीद बंध रही है | 

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