Monday, 22 December 2025

राजनीति के अजातशत्रु ' अटल '

 

अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह भी कहा जाता है।उन्होंने करीब 5 दशक तक सियासत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। अटल भारतीय राजनीति के उन विरले राजनेताओं में से एक थे जिन्हें उनके विरोधी भी पूर्ण सम्मान देते थे। वे केवल एक प्रधानमंत्री नहीं बल्कि एक कवि, प्रखर पत्रकार, ओजस्वीवक्ता, दार्शनिक और एक संवेदनशील इंसान थे। उनका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी था कि इसे एक लेख में समेटना असंभव है। उनकी सबसे बड़ी पहचान यह रही कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को एक क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय स्तर की प्रमुख राजनीतिक शक्ति के केंद्र के रूप में उभारा और भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

अटल भारतीय राजनीति के एक अद्वितीय और प्रभावशाली नेता रहे। उनका जीवन सिद्धांतों, नैतिकता और समर्पण का प्रतीक था। उन्होनें न केवल भारतीय राजनीति में अपनी अलहदा पहचान बनाई बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सम्मान अर्जित किया। सही मायनों में कहा जाए तो अटल को राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी से द्वेष नहीं रखा और हर विचारधारा का तहे दिल से सम्मान किया शायद यही वजह रही उनके दरवाजे पर हर नेता, कार्यकर्ता और आमजन की दस्तक हुआ करती थी।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर, मध्यप्रदेश में हुआ। उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक स्कूल शिक्षक थे जिन्होंने उन्हें शिक्षा और जीवन के मूल्यों की अहमियत सिखाई। अटल जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर से प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने राजनीति विज्ञान में भी गहरी रुचि ली और एक अच्छे वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी बीए की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में हुई इसके बाद 1945 में उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज में राजनीति शास्त्र से एमए में दाखिला लिया। 1947 में एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसी कॉलेज में एलएलबी में एडमिशन लिया। उनके पिता ने भी उनके साथ यहां एलएलबी में दाखिला लिया हालांकि इस कोर्स को वह बीच में छोड़कर पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए।

अटल को छात्र जीवन से ही राजनीति में गहरी रुचि थी। विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अटल कॉलेज के संघ मंत्री और उपाध्यक्ष भी बने। उस दौर में उनकी सक्रियता ग्वालियर में आर्य समाज आंदोलन की युवा शाखा आर्य कुमार सभा से शुरू हुई।1944 में वह इस सभा के महासचिव भी बने। अटल जी का परिवार पहले से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से प्रेरित था यही वजह रही उस  छात्र दौर में में ही वह आरएसएस से जुड़ गए और तभी से तमाम भाषण , वाद -विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौर में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उस दौर को याद करें तो यही वह दौर था जब भारत ब्रिटिश उपनिवेश का दंश झेलने के बाद आजाद हुआ था और देश बंटवारे के त्रासदी से गुजर रहा था। बंटवारे के चलते दंगों के कारण उन्होंने कानून की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दी। उन्होंने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया। पत्रकार के रूप में उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। बाबा साहब आप्टे से प्रभावित होकर उन्होंने 1940 से 1944 के दौरान संघ के अधिकारी प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया और 1947 में प्रचारक बन गए। 1951 में वह भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया। इसी वर्ष 21 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने दक्षिणपंथी राजनीतिक दल की नींव रखी थी। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं दीनदयाल उपाध्याय और प्रोफेसर बलराज मधोक इसके संस्थापक संघ थे। इस दौरान संघ ने ब्रिटिश राज के शासनकाल के दौरान शुरू किए गए अपने काम को जारी रखने और अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए एक राजनीतिक दल के गठन पर विचार करना शुरू कर दिया था। 1957 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। सही मायनों में उनका राजनीतिक सफर भारतीय जनसंघ से जुड़कर शुरू हुआ। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रेरित थे और उनकी विचारधारा को अपनाया। इसके बाद उनका राजनीतिक करियर लगातार उन्नति की ओर बढ़ता गया।

 वे भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे और पार्टी को एक नई दिशा देने में उनकी भूमिका अहम रही। वाजपेयी जी की सबसे बड़ी खूबी सहिष्णुता और समन्वय थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन से जुड़कर भी उन्होंने कभी हिंदुत्व को संकीर्ण अर्थों में नहीं लिया। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा सम्बन्ध मधुर रहे। 1975 में आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी गैर कांग्रेसी सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो उन्होंने पूरे विश्व में भारत की छवि बनाई। विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। अपनी भाषण कला से दुनिया का दिल जीत लिया। अटल जी के भाषण के मुरीद सब थे, फिर चाहे वे विपक्ष का नेता ही क्‍यों ना रहा हो। तत्कालीन प्रधानमंत्री  जवाहरलाल नेहरू भी उनसे खासा प्रभावित रहते थे। एक बार नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो अटल ने कहा मैं जानता हूं पंडित जी रोजाना शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे उससे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मेरी पार्टी की तस्‍वीर उल्‍टी ना देखें। यह सुनते ही जवाहर लाल नेहरू ठहाका मारकर हंस पड़ें। भले ही नेहरू राजनीत‍ि में अटल के विरोधी रहे हों, लेकिन उनके मुरीद भी थे। एक बार नेहरू ने भारत यात्रा पर आए एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वाजपेयी को मिलवाते हुए कहा था इनसे मिलिए, ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं। हमेशा मेरी आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं। 1961 में जब नेहरू ने राष्‍ट्रीय एकता परिषद का गठन किया तो उसमें वाजपेयी को शामिल किया जबकि परिषद में में दिग्‍गज नेता और लोग शामिल थे। अटल उसमें सबसे युवा थे लोकसभा में चुनकर आये थे लेकिन 1962 में परिषद की पहली बैठक होनी थी तब वे लोकसभा के सदस्‍य नहीं रह गये थे। इसके बाद जब वाजपेयी बलरामपुर से चुनाव लड़े तो नेहरू उनके खिलाफ प्रचार करने नहीं गये। 29 मई 1964 मई 1964 में नेहरू के निधन के बाद वाजपेयी ने जो श्रद्धांजलि नेहरू को दी, उसे अपने आप में एक यादगार भाषण कहा जाता है। उनके भाषण से पूरा सदन भावुक ही हो गया था। 

उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे मजबूत व्यक्तित्वों के साथ काम किया और क्षेत्रीय क्षत्रपों को न केवल मजबूत किया बल्कि अपनी सरकार में हर किसी को काम करने की पूरी आज़ादी दी। 1998-2004 की एनडीए सरकार में 24 दलों का गठबंधन था जिसे पंचमेल खिचड़ी कहा गया लेकिन भारतीय राजनीती में गठबंधन युग को  उन्होंने कुशलता से संभाला। उनके कार्यकाल में भारत ने आर्थिक और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना हो या टेलीकॉम क्रांति, भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित करना हर जगह उन्होनें अपने विजन से देश को नई दिशा देने का काम किया। सरकार और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट क्रांति की नींव अटल ने अपने मजबूत कार्यकाल में रखकर दुनिया में भारत की धाक जमाई। 

अटल ने तीन बार देश के पीएम पद की कमान संभाली। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और अटल 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 1998 में वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। 13 महीने के इस कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी ने सम्पूर्ण विश्व को भारत की धमक का अहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत उनके कुशल नेतृत्व में भारत किसी के आगे नहीं झुका। अटल जी ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में भी सकारात्मक बदलाव की कोशिश की। लाहौर बस यात्रा दुश्मन देश के साथ शांति की पहल का सबसे बड़ा उदाहरण है। मुशर्रफ के साथ पाक के साथ सम्बन्ध सुधारने की भरसक कोशिश अटल ने की। उन्होनें  1999 में पहली बार दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई और पड़ोसी और आगरा समिट करवाकर पाक के साथ नए सम्बन्ध बनाने हेतु एक नए युग की शुरुआत की लेकिन ये मित्रता अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। पाकिस्तानी सेना ने कारगिल क्षेत्र में बड़ी घुसपैठ की जहाँ  पाक को हार का सामना करना पड़ा। इस विजय का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी के खाते में गया जिसके बाद 1999 के लोकसभा के आम चुनावों में भाजपा फिर सबसे बड़ी पार्टी बनी और मिली जुली सरकार बनायी। कारगिल युद्ध के दौरान भी उन्होंने पाकिस्तान को संदेश दिया कि हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन अगर मजबूर किया गया तो जवाब देंगे।

अटल की विदेश नीति जबरदस्त रही। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने कई वैश्विक मंचों पर अपनी ताकत दिखाई। उनके नेतृत्व में भारत वैश्विक राजनीति के केंद्र में स्थापित हुआ जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता मिली। अटलबिहारी वाजपेयी  गठबंधन की राजनीती के सबसे बड़े जनक रहे। दो दर्जन से अधिक दलों को साथ लेकर सरकार चलाना बहुत कठिन काम उस दौर में समझा गया लेकिन अटल जी ने अपनी दूरदृष्टि से यह संभव कर दिखाया। उनकी सरकार ने गठबंधन की राजनीति को एक नई राह दिखाई। अटल में सबको साथ लेकर चलने की जबरदस्त कला थी जो उन्होनें अपनी गठबंधन सरकार के कुशल नेतृत्व के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाया। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व एक उदार चरित्र का प्रतीक था। उनके भाषणों में गहरी सोच और गहराई दिखाई देती थी साथ ही उनका कवि दिल इस भाषण की कला में चार चाँद लगा देता था। अटल समाज के वंचित और शोषित तबके की आवाज को मुखरता के साथ उठाया करते थे। उन्होनें अपने पूरे जीवन में राजनीति को जनसेवा के एक साधन के रूप में देखा। उनकी राजनीती में सुशासन,के गुण दिखाई देते थे। वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के प्रति भी सम्मान का भाव रखते थे शायद यही वजह रही कि उन्हें राजनीति के अजातशत्रु कहा गया। अटल ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए तत्कालीन केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री बी. सी. खंड़ूडी के नेतृत्व में स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की। उनकी सरकार ने सुशासन को सही मायनों में साबित करके दिखाया और गाँव के अंतिम छोर तक विकास की किरण पहुंचाने का काम किया। अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए जीते थे।

उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-अमेरिका संबंधों में नया अध्याय जुड़ा जब 2000 में बिल क्लिंटन की भारत यात्रा हुई और 2001 में जॉर्ज बुश के साथ निकटता से संबंधों में बड़ी गर्मजोशी आई जिससे परमाणु समझौते की नींव पड़ी जो बाद में मनमोहन सरकार में पूर्ण हुआ। अटल की सरकार ने के रहते देश में हर क्षेत्र में विकास की नई गौरवगाथा लिखी गई। 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तब उनके नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया और फील गुड फैक्टर का नारा देकर चुनाव लड़ा गया लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया।

अटल नेतृत्व क्षमता ने देश की राजनीति को एक नई ऊँचाई पर पहुंचाया। वे भारतीय राजनीति के ऐसे सितारे कहे जा सकते हैं जिनकी चमक और धमक देश की राजनीती में हमेशा बनी रहेगी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता थे जिन्होंने कविता की भाषा में राजनीति की और राजनीति की भाषा में कविता की। उन्होंने कट्टरता से दूर रहकर समावेशी राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व किया। उनकी सबसे बड़ी विरासत यह रही कि उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर एक आत्मविश्वासी और सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

अटल का 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। विरोधी को भी साथ ले कर चलने की उनकी भावना का हर कोई मुरीद था। सही मायनों में अगर कहा जाए तो  अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे। देश अटल जी के योगदान को कभी भुला नहीं पायेगा। वाजपेयी जी एक संवेदनशील कवि, एक राष्ट्रवादी पत्रकार, जननेता, राष्ट्रनायक थे।आज जब हम राजनीति में नफरत, तिरस्कार और ध्रुवीकरण देखते हैं तब अटल का व्यक्तित्व संयम, गरिमा, मानवता और देशभक्ति का जीता-जागता प्रतीक बन जाता है। भारत ने कई प्रधानमंत्री देखे लेकिन अटल सरीखा दूसरा  नेता नहीं देखा।

 

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