Monday 5 January 2009

आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बना नक्सलवाद ......

......... लंबे समय से बिजी होने के कारन ब्लॉग पर लेखन को समय नही दे पा रहा रहा था .....| अब नए साल में फिर से अपने ब्लॉग से जुड़ गया हूँ .....| अब लेखन जारी रहेगा... | आपको नए साल की बधाई.....| ब्लॉग पर न लिखने के कारन से अपने कई दोस्त फोन पर बतियाने लगे अरे यार बोलती कलम क्यों रुक गई? मैंने उनको बताया यार रुकी नही ...... मै भी तो आदमी हूँ यार काम करते करते थक जाता हूँ कलम को भी तभी रेस्ट दिया ....

खैर आज शुरुवात नए विषय से करते है॥| नक्सलवाद... | यह कोई नया विषय नही है...| नक्सलवाद किसानो मजदूरों का ऐसा संगठन है जो शासन व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहा है ......|पिचलेकुछ समय से यह आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है जिसकी आहटपी ऍम के उस बयां से लगायी जा सकती है जिसमे उन्होंने इसको देश के सामने इक बड़ी चुनोती के रूप में स्वीकार किया है...|


केन्द्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल , झारखण्ड, उप, समेत १४ राज्य इस हिंसा से बुरी तरह से प्रभावित है...| इन चेत्रो में पाए जाने वाले सघन वन भी इनके सरन स्थल बनकर उभर रहे है॥|

नक्सलवाद के उदय का कारण सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक असमानता से जूडा है...\ बेरोजगारी, चेत्रियता , असंतुलित विकास भी नक्सली हिंसा को बढावा दे रहे है...| नक्सलवादी विचारधारा आतंकवाद से अलग है....| नक्सलवादी राज्य का अंग होने के बाद भी राज्य से संघर्स कर रहे है...| इनका दूरगामी लक्ष्य राजनितिक व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करना है...| इसे कारण से सत्ता की कुर्सी सँभालने वाले राजनेताओ और नौकरशाहों को यह राजनीतिक व्यवस्था के सबसे बड़े दलाल के रूप में चिन्हित करते है...| नक्सलवादी हिंसा के व्यापक रूप लेने का अन्य कारण भूमि सुधार कानूनों का सही ढंग से लागू नही हो पाना भी है...| जिस कारण अपने प्रभाव के इस्तेमाल द्वारा कई ऊँची रसूख वाले जमीदारों ने गरीबो की जमीन पर कब्जा कर दिया...| जिसके एवज में उसमे काम करने वाले किसानो का , मजदूरों का न्यूनतम मजदूरी देकर शोसन शुरू हुआ ... मौके की इसी नजाकत को भापकर लाभ नक्सलियों उठाया......| और मासूम बेरोजगारों को न्याय का झांसा देकर अपने संगटन में शामिल करना शुरू कर दिया | यही से नक्सलवाद ने पाव पसारने शुरू कर दिए.....| आज आलम यह है की इनका कोने कोने में संगटन काम कर रहा है॥|| हमारा पुलिसिया तंत्र इनके सामने तमाशबीन बना रहता है...| इसी कारण कई राज्यों में नक्सली समांतर सरकार चलाने में सफल हुए है...|

देश की सबसे बड़ी नक्सलवादी कार्यवाही १३ नवम्बर २००५ को घटित हुई जहाँ जहानाबाद जिले में माओवादियों द्वारा घेराबंदी किले की तर्ज में की गई...| जिसमे स्थानीय प्रशासन को कब्जे में लेने के बाद ३०० से अधिक केदियो को अपने साथ ले गए...| "ओपरेशन जेल ब्रेक " की इस घटना ने केन्द्र और राज्य सरकारों की मुसीबते बड़ा दी....|
वर्त्तमान में नक्सल विचारधारा हिंसक रूप ले चुकी है...| सर्वहारा साशन तंत्र की स्थापना हेतु यह हिंसक साधनों के जरिये अपना लक्षय पाना चाहते है...| सरकार की सेज सरीखी नीतियों ने भी आग में घी डालने का काम किया है...| सेज की आड़ में सभी कारपोरेट घराने अपने उद्योगों की स्थापना हेतु जहाँ बंजर भूमि की मांग कर रहे है , वहीँ राज्य सरकार भी धन् के मोह के चलते इन कंपनियों को निवेश के मौके दे रही है...| खेती योग्य भूमि जो हमारी अर्थ व्यवस्था के लिए सोने के सामान है उसे ओधयोगिक कंपनियों को भेट स्वरूप दिया जा रहा है...| जिससे किसानो की रोजी रोटी के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है॥| यहाँ पर गौर करने लायक बात यह है की सेज देश में बंजर इलाकों में भी स्थापित की जा सकती है लेकिन कंपनियों की सुविधाओ को धयान में रखकर सरकार उन पर दरियादिली दिखा रही है ....| अब किसानो के विस्थापन का सवाल है तो उसको बेदखल की हुई भूमि का विकल्प नही मिल पा रहा है ....| मुआवजों का आलम यह है की सत्ता में बैठे हमारे राज्नेताऊ का अगर कोई करीबी रिश्तेदार या उसी जाती का का कोई किसान यदि मुआवजे की मांग कर रहा है तो उसको अधिक धन दिया जा रहा है...| मंत्री महोदय का यही फार्मूला किसानो के बीच की खाई को चौडा कर रहा है.....| सरकार से पराजित मासूमो के पास बेदखली के बाद फूटी कौडी भी नही बचती है जिस कारण समाज में बड़ी असमानता उनको नक्सलवाद की ओर मोड़ रही है.....|"सलवा जुडूम" का आलम यह है आदिवासियों को हथियार देकर उन्ही के खिलाफ लड़ाया जा रहा है ओर जमीन से विस्थापन की प्रक्रिया का आगाज हो चुका है...| हाँ यह अलग बात है अपने चावल वाले बाबा जी नक्सल प्रभावित इलाकों में ज्यादा सीट जीतकर उन विपक्षियों के आरोपों को सिरे से खारिज करते है जो "सलवा जुडूम" के खिलाफ सवाल उठाते रहे है |


नक्सलवाद ने पंख पसारने शुरू कर दिए है...| नयागढ़ घटनाओ को अंजाम देना इनके दाए हाथ का खेल है.....| अब तो इस तरह की भी पुष्टखबर आ रही है की नक्सलियों के नेपाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई से भी तगडे संपर्क होने लगे है...| हिंसा अराजकता को बढावा देने में जहाँ चीन इनको हथियारों की सप्लाई कर रहा है वहीँ हमारे देश के कुछ सफेदपोश नेताऊ द्वारा इनको धन देकर हिंसक गतिविधियों के लिए उकसाया जा रहा है...| जम्मू कश्मीर के कतिपय अलगाववादियों के इनसे संपर्को की चर्चा है ...| यह सब हमारी आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है...|
केन्द्र सरकार के पास इससे निपटने के लिए कोई कारगर नीति नही है ॥| हमारा पुलिसिया तंत्र भी नक्सलियों के आगे बेबस नज़र आता है॥| राज्य सरकारों में सामंजस्य की कमी का फायदा नक्सली ले रहे है...| पुलिस थानों में हमला बोल हथियार लूटकर वह जंगलो के माध्यम से इक राज्य की सीमा से दूसरे राज्य की सीमा में घुस रहे है...| दोनों राज्य सरकार और पुलिस कार्यबल की असफलता के पीछे पड़ोसी राज्य को जिम्मेदार मानता है इसी के चलते हम आज तक नक्सली हिंसा से बचने का रास्ता नही खोज पाये...| गृह मंतरालय की स्पेशल टास्क फाॅर्स बनाने का विचार अभी तक विचाराधीन है...| पुलिस के आधुनिकीकरण का सपना कब पूरा होगा इसकी हम आस ही लगा सकते है...| केन्द्र सरकार की मदद का सही इस्तेमाल पुलिसिया तंत्र द्वारा नही हो पाया है...| करप्शन रुपी भस्मासुर का घुन इस तंत्र में लगने के कारन सकारात्मक रिजल्ट नही आ पा रहा है...| नक्सल इलाकों में आबादी के अनुरूप पुलिस कर्मियों की तेनती नही हो पाई है...| कांस्टेबल से लेकर अफसरों की कई पोस्ट खाली पड़ी हुए है...| इसके बाद भी सरकार का गाव गाव थाना खोलने का फेसला समझ से परे लगता है...| हमारे यहाँ पुलिस कर्मियों का अनुपात भी अमेरिका की तुलना में बहुत कम है॥|
बहरहाल , नक्सली समस्या पर केन्द्र सरकार को सही ढंग से विचार करने की जरूरत है...| नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में रोटी, कपडा, मकान जैसी बुनियादी सुविधाऊ का अकाल है ...| विकास का पंछी यहाँ के दरख्तों से नदारत है.....| जिस कारन से रोजगार के आभाव में भुखमरी की समस्या खड़ी हुई है....| सरकार की असंतुलित विकास की नीतियों ने इनको फटे हाल छोड़ दिया है ॥| विकास के मोर्चे पर हुई भारी उपेक्षा ने इनको हिंसक साधनों का प्रयोग करने पर मजबूर कर दिया है...| इस दिशा में सरकार द्वारा कारगर प्रयास करने की जरूरत है अन्यथा यह नक्सलवाद "सुरसा के मुह" की तरह अन्य राज्यों को भी अपने चपेट में ले लेगा जहाँ पर खेती उन्नत अवस्था में है...|


कुल मिलकर नक्सलवाद वर्त्तमान में भयावह रूप ले चुका है...| बुद्ध, गाँधी की धरती आज अहिंसा का रास्ता छोड़कर हिंसा पर उतारू हो गई है...| विदेसी वास्तु का बहिस्कार करने वाले आज पूरी तरह से विदेशी विचारधाराओ पर निर्भर हो गए है....| उन्हें मार्क्स, लेनिन, माओ पिता तुल्य नज़र आने लगे है...| नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस कर्मियों की निर्संस हत्या , हथियार लूटना बतियाता है की नक्सलवादी "लक्ष्मण रेखा" लाँघ दी है...| नक्सल प्रभावित राज्यों में जनसन्ख्या के अनुरूप पुलिस कर्मियों की संख्या कम है...| पुलिस जहाँ पर संसाधनों का रोना रोती है वहीँ हमारे नेताओ में एकजुटता की कमी दिखाई देती है...| राज्य सरकारों के पास नक्सलवाद से लड़ने की नीति तो है परन्तु सही नीयत नही...| खुफिया विभाग की नाकामी भी इसके पाव पसारने को जिम्मेदार है॥

इक हालिया रिपोर्ट को आधार बनाये तो नक्सलवादियों को जंगलो में मायेन्स से करोडो की आमदनी होती है...| कई बड़ी योजनाये तो इनके दबाब के चलते लंबित पड़ी है...| नक्सलवादियों के वर्चस्व को जताने का सबसे नायाब उदाहरण झारखण्ड का चतरा जिला है जिसे नक्सलवादियों का "जाफना " कहा जा सकता है...| जहाँ पर बिना केन्द्रीय पुलिस बल की मदद लिए बिना पुलिस का पत्ता नही हिलता...| ऐसी जगहों पर नक्सलवादी पुलिस की गतिविधियों पर नज़र रखते है...| यह काफी चिंताजनक है की नक्सल प्रभावित राज्य में आज भी आम आदमी अपनी सिकायत थाने में दर्ज नही करना छटा क्युकी वहां के पुलिसिया तंत्र में ऊपर से नीचे तक करप्शन रुपी घुन लगा है.....
अतः सरकार को चाहिए वह ग्रामीण इलाकों में अधिकाधिक रोजगार का सृजन करे क्युकी आर्थिक विसमता ने ही लोगो को बन्दूक उठाने को बाध्य कर दिया है......| साथ ही सरकारी इमदाद का सही इस्तेमाल होना चाहिए | समस्या गंभीर है जिस पर पहल करनी होगी.....| देखना होगा अपने पाटिल की विदाई के बाद नए गृह मंत्री चिदंबरम इससे कैसे निपटते है???????????

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