Tuesday 13 January 2009
आस्था और विश्वास के प्रतीक है ..... बागनाथ
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा है | दूर दूर तक फेली हरी भरी पहाडिया बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेती है| उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से पूरे देश में खासा महत्व रखता है | यहाँ के पर्यटक स्थलों की ख्याति दूर दूर तक फेली है | जिस कारन साल दर साल यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है | एक बार यहाँ की वादियों में घूमा पर्यटक दुबारा घूमने की चाह लिए फिर से कामना किया करता है |
सरयू नदी के तट पर बसे बागेश्वर धाम को उत्तराखंड का काशी कहा जाता है|इस तीर्थ की महिमा का वर्णन कर पाना किसी के लिए सम्भव नही है | सरयू के तट पर इस तीर्थ पर भक्तो को मुह मागा वरदान मिल जाता है ऐसा विश्वास किया जाता है |यहाँ पर की गई स्तुति व्यर्थ नही जाती और मन वंचित कामना पूरी होती है|ऐसा प्राचीन समय से कहा जाता है| सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही इस पावन नगरी का पुराणों में भी वर्णन मिलता है |
पुराणों के अनुसार जब भोलेशंकर भगवान शिवशंकर अपनी पत्नी पार्वती के साथ यहाँ पर पधारे तो वह कोई संगम न देखने से मायूस हो गए | यहाँ पर बताते चले की तत्कालीन समय में यहाँ पर गोमती नदी बहती थी जिसके तट पर लखनऊ बसा है | संगम हेतु शिवशंकर भगवान ने वशिस्ट को आदेश दिया की वह यहाँ पर सरयू नदी को उतरे| आदेश का पालन करते हुए वशिस्ट मुनि सरयू लाने चल दिए | लेकिन ऐसा प्रसंग मिलता है की जब वह वापस लौट रहे थे तो बागेश्वर में कार्केंदेस्वर पर अचानक सरयू नदी पर अवरोध आ गया क्युकी नदी के प्रवाह मार्ग पर मार्कंडेय ऋषि का आश्रम था | मुनि का धयान भंग हो जाने से वशिस्ट शाप के डर से काफी दुखी हुए|
कहा जाता है तब वशिस्ट ने शिवशंकर भगवान का स्मरण किया और भोलेनाथ की शरण में जाकर उनसे सहायता मांगी |शंकर ने बाघ और पार्वती गाय का रूप धारण कर मार्कंडेय ऋषि के सामने उतरने का संकल्प किया |दोनों उनके सामने प्रकट हुए| बाघ और गाय के द्वंद युद्ध को देखकर मार्कंडेय ऋषि का तप भंग हो गया और वह अपना आसन छोड़कर गौ माता की रक्षा को दौडे| इसी दौरान सरयू को मार्ग मिल गया | मारकंडेश्वर की उस शिला को आज भी उन्ही के नाम से जाना जाता है| सरयू के आगे बढते मार्कंडेय ऋषि को शिवशंकर भगवान् और उनकी पत्नी पार्वती ने दर्शन दिए| मार्कंडेय ऋषि ने ही इस स्थान का नाम "व्यग्रेश्वर " रखा जो आगे चलकर बागेश्वर हुआ |
इस पावन बागेश्वर की बागनाथ नगरी की महिमा बड़ी निराली है| यहाँ पर आज व्याघ्रः अर्थात बाघ के रूप में शिवशंकर भोलेनाथ भगवान् का स्मरण किया जाता है | इस तीर्थ का वर्णन इस धारा का कोई प्राणी नही कर सकता |धार्मिक मान्यताओ के मुताबिक इस धारा पर दाह संस्कार करने से मरे व्यक्ति को सवर्गकी प्राप्ति होती है | बागनाथ की स्थापना "कत्यूर और चंद" राजाओ के शासन में हुई|ऐसा माना जाता है की चंद वंश के "रुद्रचंद" के बाद रजा "लक्ष्मी चंद" ने १६०२ में बाघ्नाथ मन्दिर जीर्णोधार कर उसको वृहत रूप प्रदान किया | छोटे शिव मन्दिर ने लक्ष्मी चंद के प्रयासों से ही विशाल रूप ग्रहण किया | यह मन्दिर स्कन्द पुराण के मानसखंड में सम्पुण निर्माण कथा और गाथाओ के समेटे हुए है|यही नही बागनाथ के विषय में बहुत सारी लोक कथाये भी प्रसिद्ध है | राजुला मालूशाही में भी बागनाथ के प्रसंगों का वर्णन मिलता है |
१४ जनवरी को पंजाब में लोहडी मनाई जाती है| पूरे देश में इसको मकर संक्रांति के नाम से जानते है | मनाने का तरीका अलग अलग होता है| उत्तराखंड में भी इस त्यौहार का खासा महत्व है | कुमाउनी इलाकों में इसको"पुसुडिया" " नाम से जानते है जिसमे "काले कौए" को पूरी बड़े खिलाने की परम्परा सदियों से चली आ रहे है| इस दिन बच्चे सुबह से अपने घरो में माला डालकर कौए को बुलाते है |"उत्तरायनी " पर्व की गाथाये भी बागनाथ के सम्बंद में विशेष महत्त्व की है | यहीं पर " भीष्म पितामह " ( जिनका नाम आपने महाभारत में सुना होगा ) ने सर सहीया पर लेटकर सूर्य के उत्तरायनी में जाने पर सरीर त्यागा था |इस लिहाज से इस स्थल का महत्त्व बहुत है|हर शिवरात्रि को यहाँ पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है | मकर संक्रांति के दिन सावन में यहाँ पर विशाल मेला लगता है जहाँ पर बड़ी संख्या में लोग नहाने को पहुचते है|
५०० वर्ष पुराना यह मन्दिर अनेक रहस्य पूण गाथाओ को अपने में समेटे हुए है | विशाल अंतराल के बाद भी आज यह उपेक्चित पड़ा है | इसके संरख्चनकी कोई व्यवस्ता न होने से यह पौराणिक धरोहर अंधेरे में पड़कर रह गई है | पुरातत्व विभाग की अक्चमता भी साफ तौर पर उजागर होती है क्युकी उसका धयान इस ओर आज तक नही जा पाया है| राज्य की भाजपा सरकार की नीतिया भी इस मामले में कम दोषी नही है | उसकी उपेक्षा के चलते आज बागनाथ सरीखे तीर्थ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे है | इस मसले पर राज्य के पर्यटन मंत्री "प्रकाश पन्त " का कहना है "सरकार बागनाथ सरीखे तीर्थो के लिए एक कार्ययोजना को तैयार कर रही है | पन्त का मानना है की राज्य में पर्यटकों की बदती तादात को देखते हुए सरकार इसको " पर्यटन प्रदेश " के रूप में विकसित करने के लिए पूरी तरह से कटिबद्ध है"
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4 comments:
लेख पढ़कर अच्छा लगा. इसी प्रकार पौराणिक महत्त्व के अन्य स्थानों की जानकारी देते रहिये, धन्यवाद!
सुंदर चित्र रोचक जानकारी धन्यबाद
Pradeep Manoria
http://manoria.blogspot.com
http://kundkundkahan.blogspot.com
Achhi jankari Bagehswar ke baare mai....
निश्चित ही कुमाऊं के तीर्थों में बागेश्वर का अपना महत्त्व है. उत्तराखंड सरकार की प्राथमिकताओं में पर्यटन स्थलों को सुगम्य और सुंदर बना कर पर्यटन व्यवसाय को बढावा देना होना चाहिए, जिससे राजस्व और रोज़गार मिल सके.
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