Wednesday 24 October 2012

मलाला के जज्बे को सलाम ..................






" मैं स्कूल के लिए तैयार हो रही थी और ड्रेस पहनने  वाली थी कि मुझे याद आया कि प्रधानाचार्य ने हमसे स्कूल की ड्रेस नहीं पहनने के लिए कहा है | इसलिए मैंने अपनी पसंदीदा गुलाबी रंग की पोशाक पहनी |  स्कूल की बाकी लड़कियां भी रंग बिरंगी पोशाको में थी  | सुबह असेम्बली में हमसे कहा गया कि हम रंग बिरंगे परिधान न पहने क्युकि तालिबान को इस पर आपत्ति होगी " 

पाकिस्तान की स्वात घाटी में रहने वाली १४ वर्षीय मलाला युसुफजई की "गुल मकई " नाम से २००९ में बीबीसी उर्दू के लिए खास तौर पर  लिखी गई यह डायरी उसके इरादों को बताने के लिए काफी है | बीते ९ अक्टूबर को दोपहर १२.४५ पर मिंगोरा में चंद नकाबपोश आतंकियों ने एक स्कूल वैन को रोका जिसमे तीन छात्राए घर वापस लौट रही थी | आतंकियों ने पूरी बस को घेर लिया और पूछा कौन है मलाला ? वहां पर मौजूद तीनो सहेलियां मलाला को पहचानने से साफ इनकार कर देती हैं | ए के ४७ की पिस्टल उनकी कनपटी पर तनी रहती है लेकिन जान की परवाह किये बिना वह अपना मुह नहीं खोलती हैं |   मलाला के जज्बे को देखिये वह सहेलियों को बचाने के लिए खुद को आगे आने से नहीं रोकती है और अपना परिचय नकाबपोशो को खुद देती है | तब नकाबपोशो के हाथ एक बड़ी कामयाबी उस समय हाथ लगती है जब मलाला को गोली लगती है | उस पल  वहां के माहौल को देखकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं | वातावरण गोलियों की थर्राहट से काँप उठता है | गोली मलाला के सर और गर्दन में लगती है जिससे वह बुरी तरह घायल हो जाती है | इससे अंदाजा लगाया जा सकता है मलाला पर हुआ आतंकी हमला कितना भीषण रहा होगा | आज वह गंभीर स्थिति में है और जिन्दगी  और मौत से जूझ  रही है | पेशावर के एक अस्पताल में कोमा में चले जाने के बाद अब उसको लन्दन के एक अस्पताल में वेंटिलेटर पर इलाज के लिए भेजा गया है जहाँ   मलाला यूसुफजई कोमा से बाहर आ गई है । लन्दन के क्वीन  एलिजाबेथ अस्पताल के डेव रोजर ने यह जानकारी दी। 'द न्यूज' ने रोजर के हवाले से बताया कि मलाला  कोमा से बाहर आ गई है  और उसने अपने विचारों को पहली बार  लिखकर व्यक्त किया। रोजर के अनुसार मलाला बोल नहीं पा रही हैं लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही बोलने लगेगी। उसे वेंटीलेटर से हटा दिया गया है।घायल होने के बाद मलाला पहली बार सहारे के साथ खड़ी भी हुई है । पूरे विश्व में लोग आज  उसकी सलामती की दुआ कर रहे हैं | खुदा करे वह लन्दन से ठीक होकर फिर से अपने देश वापस लौटे और महिलाओ को  शिक्षित करने के अपने मिशन में फिर से लग जाए |
                       


इस हमले के बाद तालिबान की प्रतिक्रिया गौर करने लायक थी क्युकि तालिबान के प्रवक्ता ने  कहा अगर  हमले के बाद भी वह जिन्दा बच जाती है तो हम उस पर फिर से हमला कर देंगे | लेकिन मलाला के जज्बे को देखिये उसकी हिम्मत को देखकर तालिबानी लड़ाको के पसीने छूट गए  | पहले भी उसे तालिबान से जान से मारने की कई धमकियाँ मिल चुकी हैं लेकिन इन सबसे बेपरवाह होकर उसने महिला शिक्षा की अपनी आवाज को हमेशा से बुलंद ही रखा | तालिबानी कट्टरपंथियों  के अलावा पाकिस्तान  के कुछ कट्टरपंथियों की धमकियों से बेपरवाह होकर वह स्त्री शिक्षा के लिए अपने संघर्ष को जारी रखती है वह भी उस देश में जहाँ स्त्री शिक्षा का विरोध शुरू से होता आया है | पाकिस्तान की राजनीती पर पकड़ रखने वाले कई जानकारों का मानना है कि वहां बीते कुछ  समय से तालिबान ने पाक के आवाम में जैसा खौफ पैदा किया है उसके मुकाबले के लिए  अभी कई  और मलाला चाहिए |  इस  घटना के बाद पाकिस्तान में मलाला के समर्थन में एक बड़ा तबका उसके साथ खड़ा दिखता है और एक नयी मोर्चाबंदी की आहट वहां सुनाई देने लगी है जिसमे तालिबान के विरोध  में कई स्वर मुखरित हुए हैं | तो क्या माना जाए मलाला की यह लकीर पाकिस्तान को  पहली  बार उसे एक नई मोर्चाबंदी की तरफ ले जाती दिख रही है जिसमे  पाक के आम जनमानस के साथ धर्म गुरुओ की बड़ी जमात तालिबान को अपने गिरेबान में झाँकने को मजबूर कर रही है जिसमे महिला शिक्षा के बारे  में उसके  गैर मुस्लिम दृष्टिकोण पर सवाल उठाकर  पाक एक नई लीक पर जाने का साहस दिखा रहा है | असल में पूरी तस्वीर ऐसी नहीं है | पाकिस्तान में एक तबका जहाँ मलाला के साथ खुलकर खड़ा है तो वहीँ कट्टरपंथियों  की एक बड़ी जमात तालिबानियों के सुर में सुर मिलते हुए दिखाई दे रही है | तालिबानियों ने मलाला को निशाना बनाकर यह दिखा दिया वह किस तरह आज भी महिलाओ की शिक्षा का कितना बड़ा विरोधी है | साथ ही इसकी हिमाकत करने वाली एक छोटी सी बच्ची को मारने में भी वह देरी नहीं कर सकता | तालिबान के निशाने पर मलाला उस दौर से है जिस दौर में २००९ में तालिबानियों ने स्वात घाटी में अपने झंडे गाड़ लिए थे और अपनी मनमानी द्वारा वहां के सारे स्कूल ,कालेज बंद करा दिए थे | यही नहीं उनके अनुसार महिलाओ की जगह घर की चहारदीवारी में है और उसे वहीँ कैद रहना चाहिए | इसका विरोध करने वाली महिलाओ को मौत के घाट उतारा जाना वहां आम बात हो गई थी | उस समय वहां के बारे में  यह कहा जाने लगा था यहाँ जान भी सस्ती है | उसी दौर में मलाला महिला शिक्षा के लिए खुलकर सामने आती हैं और घर घर जाकर लोगो से महिला शिक्षा की उपयोगिता के बारे में  भाषण देती है तो तबसे वह तालिबान की आँखों में खटकने लगी | मलाला को उसके इस  कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय शांति  पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है  और अब मलाला पर हाल में हुए हमलो ने पूरी दुनिया में उसके  नाम को सबकी जुबान पर ला दिया है | आज विश्व के तमाम देशो में लोग  मलाला की बहादुरी से प्रेरित होकर जहाँ अपनी लडकियों के नाम उसके नाम पर रख रहे है वहीँ अब घर घर में रहने वाली बेटियां मलाला बनने का सपना पालने लगी हैं | 
                                  
                           

                    तालिबान में लम्बे समय से कट्टरपंथियों का शासन रहा है | वह  आधुनिकीकरण के घोर विरोधी रहे है | यहाँ तक की महिलाओ को शिक्षित करने के फैसलों के खिलाफ वह खुलकर फसाद करने से भी बाज नहीं आते | इसी के चलते अपने प्रभाव वाले इलाको पर उसने स्कूल कालेज  लम्बे समय से बंद किये हुए  हैं  और इस फैसलों के विरोध में जाने वाले लोगो को बंदूक के दम पर खौफ दिखाकर ठिकाने लगाया जाता रहा है | लेकिन मलाला को देखिये उसने तालिबानियों की मांद में घुसकर  उन्हें ललकारा है और तालिबान को उसी की भाषा में जबाव महिला शिक्षा का समर्थन  कर दिया है | तालिबानी नेता फजल उल्लाह ने अपने गुर्गो को मलाला को मारने के लिए भेजा जिसमे वह बुरी तरह घायल हो गई | अभी वह जिन्दगी और मौत से जूझ  रही है | लेकिन तालिबान ने अभी भी यह कहा  है कि वह उसे मार कर ही दम लेंगे | तालिबान के कट्टरपंथी पाकिस्तान के कुछ कठमुल्लों के समर्थन  के बूते  महिला  शिक्षा विरोधी  झंडा  थामे हुए हैं लेकिन शायद यह कहते हुए वह यह भूल रहे है इस्लाम में महिला शिक्षा पर किसी तरह के प्रतिबन्ध की बात नहीं कही गई है | पैगम्बर साहब तो खुद महिलाओ को शिक्षित किये जाने पर शुरू से बल देते थे | इस लिहाज से तालिबान के इस कदम की जितनी निंदा की जाये उतनी कम है क्युकि वह महिला शिक्षा को देश की प्रगति में एक बड़ा रोड़ा मानता रहा है |शायद वह यह समझते हुए वह  यह भूल जाता है कि महिलाओ को शिक्षित करने से जहाँ उनका सामाजिक स्तर ऊँचा उठता है वहीँ वह पुरुष की बराबरी पर आकर खड़ी हो जाती हैं | लेकिन तालिबानियों के गले यह बात थोड़ी उतरती है | अगर ऐसा होता तो मलाला पर हमला नहीं होता | तालिबान द्वारा मलाला पर हमले से उसकी खासी किरकिरी हुई है शायद तभी अब वह अपने निशाने पर विदेशी मीडिया को लेने से बाज नहीं आ रहा जिसकी  बेरोकटोक कवरेज से मलाला के पक्ष में ना केवल लहर  चली बल्कि दुनिया के कोने कोने से उसे खासी सहानुभूति भी मिली | आज स्थिति यह है कि प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी के निशाने पर तालिबान है | यही नहीं अब तो सोशल मीडिया में भी पूरी दुनिया मलाला के साथ में आकर खड़ी हो गई है |अफगानिस्तान के इलाको में भी मलाला का जादू सर चदकर बोलने लगा है और लोग मलाला के समर्थन में आकर खड़े हुए है | पाकिस्तान में 14 साल की मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई पर हमले के बाद एक और स्कूली लड़की ने तालिबान से धमकी मिलने का दावा किया है। मूलत: स्वात घाटी की रहने वाली हिना खान ने कहा है कि वह तालिबान की हिट लिस्ट में है। हिना मालकंद घाटी में तालिबान के खिलाफ लगातार सार्वजनिक रूप से आवाज उठाती रही है। हिना के हवाले से डॉन अखबार ने लिखा है लड़कियों के स्कूल जाने पर तालिबान की धमकी के बाद हमें स्वात छोड़ना पड़ा, लेकिन अब तालिबान की ताजा धमकी के बाद मुझे लगता है कि मैं इस्लामाबाद में भी स्कूल नहीं जा पाऊंगी। हालांकि तालिबान की ओर से इसकी पुष्टि नहीं हो पाई  है लेकिन  हिना के पिता रायतुल्ला खान ने अखबार को बताया कि उनकी सामाजिक कार्यकर्ता पत्नी फरहत को भी इसी साल अगस्त में धमकियां मिलनी शुरू हुईं।  कुछ दिनों पहले जब वह घर से बाहर निकले  तो दरवाजे पर एक लाल क्रॉस देखा। उन्होंने  यह सोचकर इसे मिटा दिया कि यह किसी बच्चे की करतूत होगी लेकिन अगले रोज  उसे दोबारा देख वह  डर गए । इसके अगले दिन उनको  एक फोन आया और किसी  ने कहा कि हिना अगली मलाला होगी। यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि मलाला पर घटी आतंकी घटना आज भी वहां के लोगो को अच्छे से याद है और पहली बार लोग उसी तर्ज पर सामने आने से खुलकर बोलने से नहीं कतरा रहे जिस लीक पर चलने का साहस अकेले मलाला सरीखी लडकियों ने दिखाया है  | आज आलम यह है कि हर परिवार के सदस्य अपनी आप बीती मीडिया के सामने लाने से पीछे नहीं हट रहा  है तो इसका बड़ा कारण मलाला का जज्बा है जो लोगो को तालिबान के विरोध में बिगुल बजाने  को मजबूर कर रहा है |
             
               

अरब देशो में भी मलाला ने अपने काम के बूते जागरूकता ला दी है | शायद इसी के चलते अब वहां भी लोग महिलाओ को अच्छी शिक्षा देने की पैरवी अगर खुलकर करने लगे हैं तो समझा जा सकता है मलाला इस दौर में कितना लोकप्रिय हो गई हैं ? यह स्थिति उस अफगानिस्तान की भी है जहाँ कभी तालिबान के शासन  में महिलाओ का घर से बाहर निकलना मुश्किल होता था | लेकिन पाकिस्तान में तस्वीर का दूसरा पहलू भी देखने को मिलता है जहाँ वहां के आवाम का बड़ा  तबका आज भी खुलकर मलाला के साथ आने से परहेज करता हुआ देखा जा सकता है |वैसे भी पाकिस्तान में सेना, सरकार और आई एस आई तीनो की राह अलग अलग चलती रही है | वहां पर आज भी तालिबान को लेकर एक विशेष हमदर्दी देखी जा सकती है | सेना तालिबान के समर्थन  में खड़ी देखी जा सकती है | उसके बिना वहां पत्ता भी नहीं हिला करता  और यही जमात ऐसी है जो आज भी अमेरिका को उसका दुश्मन नम्बर एक मानती है | भले ही हिचखोले खाती पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अमेरिका के सहयोग से चलती है लेकिन पाकिस्तान इस मदद का बेजा इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के इस्तेमाल में करता आया है जिसके चलते आज भी वहां का लोकतंत्र खतरे में है| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नाम की कोई चीज वहां नहीं बची है | भले ही वहां की  सरकार अमेरिका का गुणगान आर्थिक मदद के चलते करती आई है लेकिन पाक में कट्टरपंथियों  की एक बड़ी जमात आज भी खूनखराबे और आतंक पर ही भरोसा करती है शायद इसलिए वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नाम मात्र की बची है | अमेरिका आतंक के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी राशि प्रतिवर्ष पाक को देता है जिसमे तकरीबन १७ करोड़ डॉलर शिक्षा के लिए दिए जाते हैं ताकि वहां की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर आ सके लेकिन इस मदद का बेजा इस्तेमाल वह आतंकी गतिविधियों में करता रहा है जिस पर अमेरिकी सीनेट  में भी कई बार सवाल उठ चुके हैं | और शायद यही कारण है कि हाल के दिनों में सी आई ए के पूर्व  अधिकारी ब्रूस रीडेल ने "डेली बीस्ट "  के सम्पादकीय में अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति  पद के दोनों उम्मीदवारों से  आखरी बहस में अपना ध्यान पाकिस्तान पर केन्द्रित करने की नसीहत दे डाली है | उन्होंने सवाल उठाते हुए पूछा है अगर तालिबान की फिर से सत्ता में वापसी हो जाती है और वहां स्कूल जाने वाली तीस लाख  से  ज्यादा लडकियों के साथ मलाला जैसे बर्ताव होता है तो उनकी हिफाजत के लिए अमेरिका की क्या नीति है ?  पाकिस्तान अगर सच में महिलाओ का हितेषी होता  होता तो  मलाला पर हमला करने की जुर्रत तालिबान नहीं कर पाता और ना ही पाकिस्तान के गृह मंत्रालय को उन उलेमाओ को धमकी देनी पड़ती जिन्होंने मलाला पर हमले के विरोध में तालिबानियों की इस कार्यवाही के खिलाफ सवाल उठाये थे और फ़तवा जारी किया था | इसे  आतंकी कट्टरपंथियों के आगे घुटने  टेकना ना कहें  तो और क्या कहें  ?  लेकिन जो भी हो इस पूरे वाकये में मलाला के जज्बे को सलाम करने की जरुरत है |  

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आतंक को जवाब मिले, मलाला पुनः स्वस्थ हो।

Harshvardhan said...

प्रवीण जी आतंक के मुकाबले के लिए आज मलाला जैसा जज्बा चाहिए ...... सही फ़रमाया आपने .....