उत्तराखंड में सत्तारुढ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर घमासान तेज होता जा रहा है । मौजूदा दौर में दोनों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष की विदाई तय मानी जा रही है लेकिन नए सूबेदार के लिए दोनों दलों में कई नाम सामने आने से अब पार्टी आलाकमान के सामने दिक्कतें दिनों दिन बढती ही जा रही है । भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल जहाँ दिसम्बर में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं तो वहीं एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले के आधार पर राज्य के कांग्रेस प्रभारी चौधरी बीरेन्द्र सिंह बीते बरस ही मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य को बदलने की बात कह चुके हैं । लिहाजा सर्द मौसम में दून से लेकर दिल्ली तक सभी की जुबान पर इन दिनों एक ही सवाल है उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस का नया सूबेदार कौन होगा ? वह भी तब जब लोक सभा चुनावो की उल्टी गिनती शरू हो चुकी है और उससे पहले राज्य में दोनों पार्टियों को निकाय चुनाव और पंचायत चुनावो का सामना करना है ।
भले ही भाजपा और कांग्रेस आंतरिक लोकतंत्र , अनुशासन का हवाला देकर अपने को पाक साफ़ बताये लेकिन उत्तराखंड में इन दोनों राष्ट्रीय दलों में कुछ भी ' आल इज वेल' नहीं है । मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जहाँ अपने अंदाज में प्रदेश को चला रहे हैं वहीं कांग्रेस का आम कार्यकर्ता इस दौर में हताश हो चुका है क्युकि सरकार और संगठन में दूरी इस कदर बढ़ चुकी है कि इस दौर में नौकरशाह आम कांग्रेसी कार्यकर्ता को भाव नहीं दे रहे हैं तो वहीं भाजपा में खंडूरी, कोश्यारी और निशंक सरीखे नेता अपने अपने अंदाज में पंचायत चुनावो से लेकर निकाय और लोक सभा चुनावो की बिसात बिछाने में लगे हुए हैं । आम भाजपा का कार्यकर्ता भी इस दौर में भाजपा से परेशान हो चुका है । ऐसे में दोनों दलों के सामने नए अध्यक्ष को लेकर पहली बार सर फुटव्वल की स्थति बनती दिख रही है । आम सहमति बननी तो दूर हर गुट अपने अपने अंदाज में अपने समर्थको के साथ एक दूसरे को पटखनी देने में लगा हुआ है । राज्य में जातीय समीकरण इतने जटिल हैं कि मुख्यमंत्री से लेकर नेता प्रतिपक्ष और विधान सभा अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक सभी इस दौर में इसी राजनीती के आसरे चुने जा रहे हैं ।
भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल तो अपना कार्यकाल दिसंबर में ही पूरा कर चुके हैं लेकिन गडकरी के दुबारा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के लिए संघ ने जिस तरह पार्टी संविधान में संशोधन किया उससे चुफाल के समर्थक इस दौर में बम बम जरुर हैं लेकिन खुद चुफाल अब दुबारा इस जिम्मेदारी को लेने के के मूड में नहीं हैं । हालाँकि गडकरी के दुबारा अध्यक्ष बनाये जाने की सूरत में अगर चुफाल के उत्तराधिकारी की तलाश में दावेदारों की संख्या बढती है तो नए मुखिया के चयन में गडकरी की बड़ी भूमिका देखने को मिल सकती है । ऐसे में चुफाल के सितारे फिर से बुलंदियों में जा सकते हैं । चुफाल अभी भले ही न्यूट्रल हैं लेकिन उनकी सबसे बड़ी ताकत खंडूरी से निकटता है । चुफाल ही वह पहले शख्स थे जिन्होंने 2007 में खंडूरी के मुख्यमंत्री बनाये जाने का खुले तौर पर सबसे पहले समर्थन किया था । उस दौर को अगर याद करें तो 20 से ज्यादा विधायक भगत सिंह कोश्यारी के समर्थन में खड़े थे । अपने समर्थन के लिए कोश्यारी की चिट्टी जब सभी भाजपा विधायको के पास गई तो कोश्यारी के समर्थन में कई लोगो ने बिना चिट्टी पढ़े ही दस्तखत कर डाले थे वहीँ चुफाल ने पूरी चिट्टी न केवल पड़ी बल्कि कोश्यारी की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के विरोध में निशंक के साथ खंडूरी का खुलकर साथ भी दिया । इसके बाद खंडूरी ने उनको अपनी कैबिनेट में न केवल मलाईदार मंत्रालय दिया बल्कि प्रदेश अध्यक्ष की बिसात भी अपने ही बूते बिछाई थी । लिहाजा इस बार भी अगर दावेदारों का झगडा आलाकमान के सामने बढता है तो खंडूरी का वीटो चुफाल के लिए फिर से नई सम्भावना का द्वार खोल सकता है । चुफाल के कार्यकाल में भाजपा न केवल विधान सभा चुनावो में सत्ता के लगभग करीब पहुची बल्कि टिहरी उपचुनाव में विजय बहुगुणा के बेटे साकेत को धूल चटाई ।
चुफाल के उत्तराधिकारी के चयन के लिए इस समय भाजपा में खंडूरी, कोश्यारी, निशंक के कई समर्थक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं । नए सूबेदार के लिए भाजपा में कई नाम उभरकर सामने आ रहे हैं । बताया जाता है पार्टी आलाकमान छेत्रीय संतुलन की बिसात पर काम कर रहा है । वर्तमान में भाजपा में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट कुमाऊँ से हैं तो नए सूबेदार का पद इस हिसाब से गढ़वाल के खाते में जाना चाहिए । यही नहीं अजय भट्ट राज्य में भाजपा के ब्राहमण चेहरे हैं इस लिहाज से गढ़वाल में किसी ठाकुर नेता को संतुलन साधने के लिहाज से आगे किया जा सकता है । दावेदारों में तीरथ सिंह रावत, मोहन सिंह गांववासी, त्रिवेन्द्र सिंह रावत और धन सिंह रावत के नाम प्रमुखता से उठ रहे हैं । इन सभी के पास अपने अपने दावे हैं जिनको नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है लेकिन इतना तय है भाजपा आलाकमान बिना खंडूरी को विश्वास में लिए बगैर भाजपा के नए सूबेदार की घोषणा नहीं करेगा क्युकि हलिया विधान सभा चुनावो में इसी खंडूरी फैक्टर के बूते भाजपा का प्रदर्शन तमाम आशंकाओ के बावजूद ठीक रहा था । यह अलग बात है कुछ सीटो पर गुटबाजी, भीतरघात , गलत टिकटों के आवंटन से भाजपा सत्ता में वापसी से चूक गई । चौबटटाखाल से भाजपा विधायक तीरथ सिंह रावत नए अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे हैं । वह खंडूरी के सबसे करीबी हैं और इसी के चलते कई महीनों पहले से खंडूरी अपने इस विश्वासपात्र का नाम पार्टी आलाकमान के सामने दिल्ली में रख चुके हैं । हालाँकि आलाकमान खंडूरी को खुद प्रदेश अध्यक्ष का पद आफर कर चुका है लेकिन खंडूरी ने इस जिम्मेदारी को लेने से इनकार कर दिया है । साफ़ है अगले चुनावो में भी भाजपा का बाद चेहरा खंडूरी ही रहेंगे और खंडूरी तीरथ के आसरे अब भविष्य की भाजपा तैयार करने का खाका अपने निर्देशन में खींचने वाले हैं । त्रिवेन्द्र सिंह रावत को कोश्यारी का हनुमान जरुर कहा जाता है लेकिन खंडूरी और निशंक की गुड बुक में उनका नाम इस दौर में गायब है जिसके चलते उनकी प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी कमजोर नजर आ रही है । वैसे भाजपा नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में वह कुछ समय पहले कोश्यारी से गहन निकटता के बावजूद नेता प्रतिपक्ष की लड़ाई में अजय भट्ट से पिछड गए । कोश्यारी की मुश्किल इस दौर में निशंक ने बढाई हुई है । प्रदेश अध्यक्ष के लिए एक गुट द्वारा कोश्यारी का नाम आगे किये जाने के बाद निशंक अपने समर्थको के साथ कोश्यारी को डेमेज करने के लिए खंडूरी के साथ हाथ मिला सकते हैं । निशंक समर्थको की मजबूरी ऐसी सूरत में खंडूरी के करीबी तीरथ सिंह रावत के साथ जाने की बन रही है । मोहन सिंह गांववासी का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए गलियारों में उछल रहा है । वह संघ के सबसे करीबियों में शामिल होने के साथ ही कुशल संगठनकर्ता भी हैं तो वहीँ धन सिंह रावत भी संघ में सीधी पकड़ रखने के साथ ही आलाकमान पर पकड़ रखते हैं जिस कारण उनका दावा भी अपनी जगह है । वैसे बताते चलें इन सबसे इतर रेस में खंडूरी, निशंक , भगत सिंह कोश्यारी भी बने हुए हैं लेकिन इनकी कम सम्भावनाए इस रूप में बन रही हैं क़ि पार्टी आने वाले लोक सभा चुनावो में पार्टी इन्हें अपना बड़ा चेहरा बना रही है और इसी के जरिये भाजपा राज्य में पांच सीटो पर कांग्रेस को तगड़ी चुनौती दे सकती है । पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रकाश पन्त जो सितारगंज में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से बुरी तरह परास्त हो गए वह भी अब अपनी नजरें नैनीताल संसदीय सीट पर लगाये हैं । पार्टी में एक तबका उके राजनीतिक पुनर्वास के लिए उनको भाजपा की कमान राज्य में देने की बात कह रहा है लेकिन कोश्यारी खेमे ने उनके नाम पर फच्चर फंसा दिया है । वैसे बताते चलें इसी खेमे ने प्रकाश पन्त को सितारगंज सरीखी ऐसी विधान सभा से पिछले साल बहुगुणा के विरोध में उतारा उठाया जहाँ पहाड़ी वोटर गिने चुने हैं । इस खेमे की कोशिश प्रकाश पन्त की भावी राजनीति पर ग्रहण लगाने के रही और शायद यही कारण है प्रकाश अब राजनीतिक बियावान में अपने लिए मैदानी इलाको में जमीन तलाश रहे हैं ।
वहीँ कांग्रेस में भी प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों की लम्बी चौड़ी फ़ौज खड़ी है । मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य के कैबिनेट मंत्री बनाये जाने के बाद पार्टी आलाकमान उन्हें सरकार और संगठन की दोहरी जिम्मेदारी नहीं देना चाहता लिहाज पार्टी के प्रदेश प्रभारी चौधरी बीरेंद्र सिंह ने बीते साल ही दून आकर कांग्रेस का कप्तान बदले जाने की बात कही थी । तब से कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष बदलने की राग भैरवी तान हर जिले में सुनने को मिली है । संगठन को ठेंगा दिखाते हुए पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस का सूबेदार बदले जाने की बात खुले आम मीडिया में कहने से परहेज नहीं कर रहा था जिसके बाद प्रदेश प्रभारी को ऐसी बयानबाजी पर रोक लगानी पड़ी । अभी भी कई कार्यकर्ता बहुगुणा सरकार की कार्यशैली से निराश हैं । उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को 10 महीने पूरे होने वाले हैं लेकिन लालबत्ती पाने की कार्यकर्ताओ की हसरत अभी तक अधूरी ही है । वहीँ सरकारके तमाम मंत्री और संतरी इस दौर में अपने नाते रिश्तेदारों को लालबत्ती के पदों पर समायोजित करने में लगे हुए हैं जिससे कांग्रेस का आम कार्यकर्ता बहुत ज्यादा नाराज है । ऐसे में यशपाल आर्य भी अब कार्यकर्ताओ के सीधे निशाने पर हैं । उनके पुत्र संजीव आर्य को हाल ही में सहकारी बैंक की लालबत्ती से नवाजा जा चुका है तो वहीँ यशपाल की मुख्यमंत्री बहुगुणा के साथ लगातार बढती निकटता हरीश रावत के समर्थक नहीं पचा पा रहे हैं । कुमाऊं से होने के बाद भी यशपाल कुमाऊं के कार्यकर्ताओ का दिल जीतने में नाकामयाब अब तक रहे हैं । हालांकि यशपाल के अध्यक्ष पद पर रहते कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में जहाँ भाजपा को सभी 5 सीटो पर पराजित किया था वहीँ टिहरी उपचुनाव में मुख्यमंत्री बहुगुणा के बेटे साकेत की हार पर कार्यकर्ता यशपाल को सीधे निशाने पर लेने से नहीं चूक रहे हैं । उत्तराखंड में कांग्रेस का मतलब केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत हैं । उनकी आम कार्यकर्ता से लेकर उत्तराखंड के आम जन जन तक पैठ आज भी कायम है लेकिन मुख्यमंत्री पद की रेस में इस बार भी वह विजय बहुगुणा से पिछड गए जबकि हरीश रावत के पास अपने समर्थको और विधायको की बड़ी तादात थी । ऐसे में अब हरीश रावत के समर्थक यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए दिल्ली में पूरी तरह से एकजुट है । टिहरी में कांग्रेस की हार का ठीकरा वह संगठन पर फोड़ रहे हैं जिसकी कमान यशपाल आर्य के हाथ में है ।
हरीश रावत के समर्थक यशपाल आर्य के स्थान पर जहां सांसद प्रदीप टम्टा और पिथौरागढ़ से विधायक मयूख महर के नाम के लिए दस जनपथ में लाबिग कर रहे हैं वहीँ नारायण दत्त तिवारी गुट के समर्थक विधायको का एक गुट हरीश रावत गुट को पटखनी देने के लिए सांसद सतपाल महाराज के नाम का बड़ा दाव खेल सकते हैं । इधर उत्तराखंड कांग्रेस में बने कई गुटों ने राज्य के प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह की मुश्किलों को बढा दिया है । 13 दिसंबर को देहरादून में हुए उत्तराखंड कांग्रेस के चिंतन शिविर में महेंद्र पाल ने जिस तरह विजय बहुगुणा की तारीफों में कसीदे पड़े उससे उनका नाम भी भावी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर लिया जा रहा है । महेंद्र पाल कुमाऊं से आते है और मुख्यमंत्री बहुगुणा गढ़वाल के है । लिहाजा संतुलन के लिहाज से भी यह सही रहेगा । खुद केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत को पाल के नाम से कोई ऐतराज नहीं है । वहीँ हरीश रावत का एक गुट राज्य के पूर्व परिवहन मंत्री हीरा सिंह बिष्ट के नाम का दाव खेलने के मूड में भी दिख रहा है । देहरादून पी सी सी कार्यालय में उनको लेकर दस जनपथ तक में एक बड़ा बाजार गरम दिखाई दे रहा है । हरीश रावत के विरोधी यह तर्क दे रहे हैं मुख्यमंत्री बहुगुणा सितारगंज से विधायक हैं जो कुमाऊ में आता है । वही इस लिहाज से देखें तो उनके हिसाब से प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल के ही खाते में आना चाहिए । लेकिन कांग्रेस की नजरें अभी भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष पर भी टिकी हैं । राज्य में कांग्रेस के सूत्रों का मानना है भाजपा का अध्यक्ष घोषित होने के बाद कांग्रेस अपने पत्ते पूरी तरह खोलेगी ।
18 से 20 जनवरी तक जयपुर में होने जा रहे कांग्रेस पार्टी के चिंतन शिविर में उत्तराखंड कांग्रेस के अगले प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर भी चिंतन होने के आसार दिख रहे हैं । इस बार नए अध्यक्ष पद के चयन में मुख्यमंत्री बहुगुणा की चलने की पूरी संभावना दिख रही है । दस जनपथ में बहुगुणा की सीधी पकड़, रीता बहुगुणा और अम्बिका सोनी, अहमद पटेल से सीधी पकड़ और सांसद सतपाल महाराज के साथ गहन निकटता प्रदेश अध्यक्ष के चयन में उनको फायदा पंहुचा सकती है । सतपाल महाराज के समर्थक हरीश रावत के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में आने के बाद से अपने को असहज महसूस कर रहे है और महाराज के कई समर्थक अब इस बार उन पर प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने का बहुत दबाव डाल रहे हैं । सतपाल और हरीश रावत गुट में शुरू से 36 का आंकड़ा उत्तराखंड में जगजाहिर रहा है । विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाये जाने में सतपाल महाराज की भूमिका भी किसी से शायद ही छिपी है । सतपाल ने ही हरीश रावत सरीखे खांटी कांग्रेसी नेता के मुख्यमंत्री बनने की राह इस बार भी मुश्किल की जिसके बाद हरीश रावत की राय पर आलकमान ने रावत के करीबी ज्यादा विधायको को बहुगुणा कैबिनेट में जगह दी । अब सतपाल हरीश के केन्द्रीय मंत्री बनाये जाने को नहीं पचा पा रहे हैं ऐसे में वह खुद राज्य के अध्यक्ष की कमान अपने हाथो में लेना चाहेंगे । अगर सतपाल खुद आगे नहीं भी आते हैं तो संभावना है वह बहुगुणा को भरोसे में लेकर किसी के नाम को आलकमान के यहाँ आगे करें । वैसे बताते चलें बहुगुणा और सतपाल अभी भी यशपाल आर्य को ही दूसरा कार्यकाल देने के लिए आलाकमान को किसी तरह से मनवाने में लगे है ।
बहरहाल भाजपा और कांग्रेस के लिए आने वाला समय उत्तराखंड में खासा चुनौतीपूर्ण रहने वाला है । छत्रपो के कई गुट , सरकार और संगठन को साथ लेकर दोनों दलों को 2013 के मध्य में निकाय , पंचायत चुनावो का सामना करना है । फिर 2014 में लोक सभा चुनावो की डुगडुगी बजेगी । ऐसे माहौल में सांगठनिक कौशल के आसरे ही दोनों दल तमाम चुनौतियों से पार पा सकते हैं लेकिन मौजूदा दौर में उत्तराखंड में नए सूबेदार के लिए दोनों दलों की नूराकुश्ती थमती नहीं दिख रही है लिहाजा कड़ाके की ठण्ड में भी उत्तराखंड का राजनीतिक पारा पूरी तरह गर्म है ।
2 comments:
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति लिए ”ऐसी पढ़ी लिखी से तो लड़कियां अनपढ़ ही अच्छी .”
आप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
अपनी-अपनी गोटियां बिछाने के इस खेल में राजनीति का उद्देश्य अर्थात् जनसेवा का भाव पृष्ठभूमि में पहुंच गया है। कांग्रेस के बारे में तो बोलना बेकार है पर भाजपा के लिए यदि चौबट्टाखाल विधानसभा के विधायक तीरथ सिंह रावत का नाम भावी नेता के लिए उठता है, तो यह अच्छा कदम होगा।
Post a Comment