Saturday, 5 January 2013

टूटने लगा धोनी की कप्तानी का तिलिस्म .......

आज से तकरीबन दो साल पहले महेन्द्र  सिंह धोनी की अगुवाई में जब टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप अपने नाम किया था तो क्रिकेट के करोड़ो भारतीय प्रशंसकों को उम्मीद थी कि आने वाले दिनों में टीम इंडिया जीत की गौरव गाथा इतिहास के पन्नो में लिखेगी लेकिन उन  प्रशंसकों को धोनी  और उनकी टीम ने निराश कर दिया है ।

सीरीज दर सीरीज हार टीम इंडिया के पतन की पटकथा लिख रही है । बेशक धोनी के नाम पर 2 विश्व कप जीतने और भारत के सबसे सफलतम कप्तान का रिकॉर्ड है लेकिन पिछले कुछ समय से मैच दर मैच टीम इंडिया की हार से खुद धोनी को लेकर सवाल उठने लगे हैं । अपनी घरेलू पिचों पर जहाँ टीम इंडिया के बल्लेबाजो का बल्ला नहीं चल पा रहा है वहीँ घरेलू स्पिन ट्रेको पर पर भी हमारे गेंदबाज बेअसर साबित हो रहे हैं । तेज गेंदबाज जहीर खान की बढती  उम्र जहाँ इस दौर में धोनी की सबसे बढ़ी मुश्किल बन गई है वहीँ फेबुलस फोर  गांगुली, द्रविड़ , लक्ष्मण  और फिर सचिन के संन्यास के बाद कोई भी युवा खिलाडी अपने को टीम में इस दौर में साबित नहीं कर पाया है ।

क्रिकेट के पंडितो की मानें तो बतौर कप्तान धोनी इस समय टीम इंडिया में एक बड़ी त्रासदी झेल रहे हैं क्युकि  जिस युवा टीम इंडिया को भविष्य की टीम बताया जा रहा है  उसी  टीम में युवा खिलाडियों का प्रदर्शन फीका हो चला  है। विदेशी सरजमीं पर टीम इंडिया की हार में कई बहाने चल जाते थे लेकिन आज तो अपनी टर्न लेनी वाली पिचों पर  जहाँ टीम इंडिया का वर्चस्व कई वर्षो से बना है वहां पर यह टीम एक के बाद एक मैच हारती ही जा रही है जो कई सवालों को तो पैदा करता ही है ।

                      दरअसल हार और जीत तो खेल का एक अंग है लेकिन टीम इंडिया की लगातार एक के बाद एक हार को हमारे करोडो क्रिक्रेट प्रशंसक नहीं पचा पा रहे हैं । बीते साल जहाँ  इंग्लैंड ने टीम इंडिया को 28 साल बाद उसी के घर में मात  दी वहीँ इस साल की शुरुवात में हम पाकिस्तान की टीम के साथ वन डे सीरीज  7 साल बाद  गवा चुके हैं । ऐसे में प्रशंसको का निराश होना लाजमी ही है ।इस हार के कारणों की विवेचना अगर हम करें तो लगातार खेली जा रही क्रिकेट जहाँ खिलाडियों और टीम की फिटनेस को नुकसान पहुंचा रही है वहीँ ट्वेंटी ट्वेंटी और आई पी एल ने टीम इंडिया का बेडा गर्क कर दिया है ।

युवा खिलाडियों का दिल इस दौर में अपना प्रदर्शन सुधारने से ज्यादा  आई पी एल के आसरे पैसा कमाने और मुनाफा बनाने में लगा हुआ है। पैसे की इस चकाचौंध तले  अब इन युवा खिलाडियों को  अपने देश के लिए खेलने में ज्यादा मजा भी नहीं आता क्युकि आई पी एल की देर रात तक चलने वाली पार्टियों में थिरकना उनका शगल इस दौर में बन चुका  है । टीम इंडिया को इस बार सीनियर खिलाडियों की कमी सबसे ज्यादा खल रही है ।  इस वेक्यूम को कोई जूनियर खिलाडी अब तक नहीं भर पाया है । यह सीनियर खिलाडी  एक दौर में  टीम इण्डिया के लिए संकटमोचक बन दीवार की भाँति पिच पर न केवल खूंटा गाड़कर खड़े हो जाते थे बल्कि वेरी वेरी स्पेशल और मास्टर ब्लास्टर बनकर मैदान में डटकर टीम को अपने दम पर मैच जिताया करते थे ।

                       2012 टीम इंडिया के लिए अपशकुनी रहा है । बीते  दौर में जहाँ कई सीनियर खिलाडियों ने क्रिकेट को  अलविदा कहा वहीँ 4 महत्वपूर्ण सीरीज टीम इंडिया ने गवाई । पाकिस्तान के साथ हाल की इस सीरीज में हार से पहले इंग्लैंड के हाथो हम बुरी  तरह पिट  चुके हैं तो ट्वेंटी ट्वेंटी वर्ल्ड  कप में करारी हार से लेकर एशिया कप  और सीबी सीरीज में हर जगह धोनी की इस टीम की भदद ही पिटी  है । जबकि आज से दो साल पहले विश्व चैम्पियन हम बने थे । विश्व कप जीतने के बाद से हमारी इस टीम ने ऐसा  कुछ कमाल  नहीं किया है जो हम कह सकें धोनी के शेर चैम्पियन हैं । 2012 में खेले गए 17 वन डे मैचो में जहाँ भारतीय टीम को 10 मैचो में हार मिली है वहीँ 8 टेस्ट मैचो में में हम केवल 3 मैच ही जीत सके हैं और इन सबके  बीच टीम ने वेस्ट इंडीज और न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू दो -दो मैचो की टेस्ट सीरीज ही जीती है ।

  किसी भी टीम में कप्तान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । लेकिन हमारे कप्तान धोनी खेल के हर मैदान में अपना वह प्रदर्शन नहीं दिखा पाए हैं जिसके लिए उन्हें जाना जाता है । 2011 में वर्ल्ड कप जीतने के बाद से धोनी की कप्तानी  का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है और आज हालात इस कदर बेकाबू हो गए हैं कि धोनी अर्श से फर्श पर आ चुके हैं । बीते 2 बरस में धोनी ने टेस्ट क्रिकेट में अपनी 32 पारियों में 14 बार जहाँ बमुश्किल 20 का आंकड़ा छू पाए हैं वहीँ 5 बार शून्य पर बोल्ड हुए हैं । वेस्ट इंडीज  के खिलाफ  एक शतकीय पारी ही इस दौर में उनकी सबसे बड़ी पारी टेस्ट मैचो में  रही है । विश्व कप 2011 के बाद से धोनी ने 27 वनडे मैच खेले। इसकी 24 पारियों में धोनी ने  हजार  रन जुटाए हैं। हाल ही में पकिस्तान के साथ की सीरीज में धोनी ने एक शतक जरुर मारा लेकिन उसके बाद भी उनकी टीम को हार का मुह ही देखना पड़ा ।

कोलकाता में दूसरे  वन डे मैच में उनकी धीमी हाफ सेंचुरी  भी टीम इंडिया को  हार  से नहीं बचा सकी   जिसके बाद चयनकर्ताओ की गाज  धोनी पर गिर सकती है । सम्भावना है धोनी से वन डे की कप्तानी छीन ली जाए और उन्हें टेस्ट और ट्वेंटी ट्वेंटी की कप्तानी का विकल्प चुनने को कहा जाए ।  इसके साथ ही टीम इंडिया से जहीर , हरभजन की तरह  अब युवराज और सहवाग का बोरिया बिस्तर बाँध दिया जाए । पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता रहे श्रीकांत तो पहले ही  धोनी को कप्तानी से हटाने की बात कर चुके हैं । दीगर यह है कि किसी दौर में यही धोनी श्रीकांत के आसरे कप्तान बने थे । वहीँ पूर्व भारतीय कप्तान मोहिन्दर अमरनाथ तो पाक से हालिया सीरिज में हार के बाद धोनी को कप्तानी  हटाने का बयान  दे चुके हैं ।

वैसे जहीर, हरभजन , सहवाग और युवराज को अब अपना पूरा ध्यान अपना फॉर्म वापस  लाने में देना चाहिए जिसके लिए रणजी  क्रिकेट खेलने का सबसे बेहतर विकल्प उनके सामने खुला है । ट्वेंटी ट्वेंटी में  चकाचौंध और पैसा जरुर है लेकिन एक अच्छे खिलाडी की प्रतिभा का इससे अंदाजा नहीं लगाया  जा सकता ।  यह ट्वेंटी ट्वेंटी  तो पैसा फेंको और तमाशा देखो जैसा ही है ।

रहा सवाल धोनी की कप्तानी का तो अब उनके साथ टीम इंडिया के  कोच डंकन फ्लेचर की कोचिंग भी पहली बार सवालों के घेरे में है ।  हमें यह नहीं भूलना चाहिए यह वही डंकन हैं जिनके आसरे इंग्लैंड का प्रदर्शन बीते 7 बरस में कहाँ से कहाँ पहुच गया लेकिन संयोग देखिये  उसी डंकन की कोचिंग में  हमारी टीम इंडिया टेस्ट से लेकर वन डे और फिर ट्वेंटी ट्वेंटी में अर्श से सीधे फर्श में आ  गई  ।

आज अगर धोनी की कप्तानी जाती है तो इसकी गाज डंकन पर भी गिर सकती है । ऐसे में नए कोच को खोजना बीसीसीआई  के लिए चुनौतीपूर्ण  रहेगा । वैसे  मोहिन्दर अमरनाथ ने तो गांगुली  को कोच बनाने की पुरजोर मांग कर  डाली है जिससे भारतीय  क्रिकेट का पुराना वैभव वापस आ सकें । हमें यह नहीं भूलना चाहिए दादा ही वह कप्तान रहे जिनकी अगुवाई में  हमने देश से लेकर विदेश तक में जीतने का ककहरा सीखा था ।  आज आलम यह है टेस्ट से लेकर वन डे और ट्वेंटी ट्वेंटी में  टीम इंडिया का  खराब प्रदर्शन बदस्तूर  जारी है ।

     पाक के साथ खेली जा रही हाल की सीरीज में पहले वन डे और फिर ईडन गार्डंन्स में ख़राब खेल का मुजायरा कर टीम इंडिया ने पूरे देश को शर्मसार ही कर दिया । तमाम भारतीय सूरमाओ ने पाक के गेंदबाजो के आगे घुटने टेक  दिए  । गंभीर से लेकर सहवाग , विराट से लेकर रैना , युवराज से लेकर  जडेजा सभी कागजो में अच्छे  बल्लेबाज जरुर लगते  हैं लेकिन मैदान में इनका प्रदर्शन खराब  ही रहता है । पाक के साथ खेले गए दो वन डे में टीम इंडिया की गेंदबाजी भी बेअसर रही ।

 दूसरे  वन डे में पाक को 250 में रोकने के बाद भी हम विकेट पर टिक कर नहीं खेल सके । हमारे बल्लेबाजो ने अपनी पिछली गलतियों से कोई सबक नहीं लिया । टीम को एकजुट रखने का जिम्मा कप्तान पर होता है लेकिन धोनी को देखिये हर बार हार का ठीकरा कभी टॉप आर्डर तो कभी मिडिल आर्डर और कभी गेंदबाजो  पर फोड़ देते हैं । कोलकाता में पाक के हाथो पिटने के बाद भी ऐसा ही लगता है वह जिम्मेदारी  से बच  निकलना  चाहते हैं । रहाणे  और पुजारा  जैसे युवा इस समय अपनी सबसे अच्छी फॉर्म में हैं लेकिन उन्होंने इन दोनों को मौका देने के  बजाए युवराज और सहवाग पर ही पिछले दो मैचो  में अपना भरोसा दिखाकर  धोनी ने अपनी नाकाबिलियत को ही दिखाया है  ।

अगर इस दौर के भारतीय क्रिकेट का सच यही है तो 2015 का वर्ल्ड कप को देखते हुए इसे ठीक नहीं कहा जा सकता । अब युवाओ को ज्यादा मौके देने होंगे चाहे इसके लिए  सहवाग, युवराज सरीखे सीनियर खिलाडियों  की बलि ही क्यों ना लेनी पड़  जाए ?

जो भी हो धोनी के लिए अब पाक से हार के बाद अपनी कप्तानी बरकरार रख पाना  आसान  नहीं दिख रहा । धोनी की सबसे बड़ी ताकत  राजीव शुक्ला और बी सी सी आई  सचिव एम श्रीनिवासन रहे हैं लेकिन पाक से हार के बाद अब धोनी ने इन दोनों का भरोसा तो खो ही दिया है । ऐसे में अब आने वाले दिन धोनी के लिए खासे चुनौतीपूर्ण रहेंगे । देखना होगा धोनी इससे पार कैसे पाते हैं ?

3 comments:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

मैं भी कभी यानि कि नब्‍ब्‍ो के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम में जाकर खेलने का संकल्‍प पाले हुए था। तब क्रिकेट एक आदर्श था। आज क्रिकेट पर आपका लेख पढ़ते हुए ही ध्‍यान जाता है। लगता है कि क्रिकेट में कोई जीते या हारे, हम जैसे आम लोगों को इससे क्‍या मिलेगा? ये मेरी उपलब्धि है कि मैंने क्रिकेटीय लाग-डाट से छुटकारा पा लिया है। क्रिकेट से अनजान व्‍यक्ति की तरह ही मैं शांति से हूं।

Harshvardhan said...

विकास , आपसे सहमति रखता हूँ ... वैसे मैच फिक्सिंग वाले दौर से मेरी भी क्रिकेट में रूचि घाट गई है। एक दौर में मैं भी क्रिकेट का कीड़ा था .... खैर कलम के जादूगर हैं तो लिखना ही पड़ता है क्रिकेट पर भी .....

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

मेरा सम्‍बोधन "विकेश" के बदले "विकास" हो गया है। प्रभु जब मेरे सही नाम को ही आपकी कृपादृष्टि नहीं मिल पाई तो काम बहुत दूर लगता है।