बीते 20 दिसम्बर के दिन को याद करें । इस दिन पूरे देश की नजरें गुजरात विधान सभा चुनावो पर केन्द्रित थी । गुजरात के साथ ही इस दिन हिमाचल के विधान सभा चुनावो के परिणाम भी सामने आये लेकिन पूरा मीडिया मोदीमय था । तीसरी बार गुजरात को हैट्रिक लगाकर फतह करने के बाद नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का जोश देखते ही बन रहा था । उनकी जीत ने कार्यकर्ताओ के जोश को भी दुगना कर दिया । भाजपा के अहमदाबाद दफ्तर में उस समय जहाँ दिवाली मनाई जा रही थी वहीँ 11 अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय दफ्तर पर सन्नाटा पसरा था । पार्टी का कोई आला नेता और प्रवक्ता न्यूज़ चैनल्स को बाईट देने के लिए उपलब्ध नहीं था ।
लेकिन संयोग देखिये 27 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जैसे ही मोदी के कदम दिल्ली स्थित भाजपा के दफ्तर अशोका रोड की तरफ बढे तो पूरा माहौल मोदीमय हो गया । हर कोई उनकी तारीफों में कसीदे पढता ही जा रहा था । यह भाजपा में मोदी के असल कद का अहसास करा रहा था जब गुजरात जीतने के बाद दिल्ली के दफ्तर और तोरण दुर्गो में लगे बड़े बड़े कद के "ब्रांड मोदी " वाले पोस्टर मोदी की भारी जीत की गवाही दे रहे थे । पोस्टरों में मोदी के बाँए जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर लगी थी वहीँ उनके दाएँ आडवानी और गडकरी की लगी तस्वीर । और इन सबके बीच मोदी की लगी बड़ी तस्वीर भाजपा की दिल्ली वाली ड़ी कंपनी को सही रूप में आईना दिखा रही थी ।
राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली आये मोदी के लिए यूँ तो पार्टी ने साढ़े चार बजे का समय कार्यकर्ताओ से मिलने के लिए तय किया था लेकिन मोदी के स्वागत के लिए सुबह से ही कार्यकर्ताओ की भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी ।
जैसे ही मोदी के कद पार्टी दफ्तर पर पड़े तो कार्यकर्ताओ ने आतिशबाजी ,ढोल नगाडो के साथ मोदी का स्वागत किया । हर कार्यकर्ता मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा था और यही वजह थी कि दिल्ली पहुचकर मोदी ने इशारों इशारों में इस बात के संकेत तो दे ही दिए कि गुजरात से इतर वह कोई भी नई जिम्मेदारी लेने को तैयार खड़े हैं । मोदी द्वारा कार्यकर्ताओ को दिए गये संबोधन में बीच बीच में पीएम - पी एम के नारों ने भी यह तो बतला ही दिया कार्यकर्ताओ के बीच मोदी कितना लोकप्रिय चेहरा बन चुके हैं । इस दौरान कई युवा कार्यकर्ता अपने बड़े कद के इस नेता की तस्वीर कैमरों से उतार रहे थे । हर कोई मोदी की झलक पाने को बेताब था । कोई उनके भाषण को रिकॉर्ड कर अपने साथ रखना चाहता था तो कोई मंच पर मोदी के साथ फोटो खिंचवाने का सुनहरा मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । कार्यकर्ताओ में मोदी ब्रांड की यह दीवानगी बता रही थी , अब हर कोई मोदी को दिल्ली के तख़्त पर देखना चाहता है ।
तो क्या माना जाए मोदी 2014 की लोक सभा की बिसात में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा होंगे ? क्या मोदी के कदम अब सीधे अहमदाबाद से निकलकर दिल्ली के तख़्त की तरफ तेजी के साथ बढ़ रहे हैं ? क्या मोदी भी कुछ समय बाद अपने कार्यकर्ताओ वाली लीक पर चलने का साहस दिखायेंगे और गुजरात से निकल कर सीधे राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे ?
ये ऐसे सवाल हैं जो इस समय भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के सहयोगियों और यू पी ए के सहयोगियों से लेकर कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं । गुजरात चुनाव जीतकर मोदी ने सही मायनों में अपनी अखिल भारतीय छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है । गुजरात चुनावो से पहले यह भ्रम बन गया था कि मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं लेकिन हलिया चुनाव परिणामो ने इस भ्रम को हकीकत में बदल दिया है । मोदी के बारे में उनके विरोधी ही नहीं भाजपा में उनको नापसंद करने वाली जमात का एक बड़ा तबका इस बार मोदी की जीत को लेकर आशंकित था । इस बार के चुनावो से पहले उन्होंने मोदी का किला दरकने के प्रबल आसार बताये थे साथ ही 2002 , 2007 की तरह मोदी का जादू फीका होने की बात मीडिया के सामने रखी थी लेकिन मोदी ने अपने बूते गुजरात फतह कर यह बता दिया पार्टी में उनको चुनौती देने की कुव्वत किसी में नहीं है ।
अस्सी के दशक को याद करें तो उस दौर में एक बार इंदिरा गांधी ने तमाम सर्वेक्षणों की हवा निकालकर दो तिहाई प्रचंड बहुमत पाकर संसदीय राजनीती को आईना दिखा दिया था । इस बार मोदी ने दो सीटो के नुकसान के बावजूद विकास के माडल को अपनी छवि के आसरे जीत में तब्दील कर दिया । जहाँ 2002 में उनकी जीत के पीछे सांप्रदायिक कारण जिम्मेदार थे वहीँ 2007 में कांग्रेस द्वारा उन्हें मौत का सौदागर बताने भर से उनकी जीत की राह आसान हो गई थी लेकिन इस बार की मोदी की जीत अहम रही ।
विकास के नारे के आगे सारे नारे फ़ेल हो गए । यह इस मायनों में कि जनता ने मोदी के विकास माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि मुस्लिम बाहुल्य इलाको में मुस्लिम प्रत्याशी ना उतारे जाने के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा । यही नहीं गुजरात फतह करने के बाद अब अब मोदित्व का परचम एक नई बुलंदियों में पहुच गया है ।
विकास और वायब्रेन्ट गुजरात का जादू लोगो पर सर चदकर बोल रहा है । उनका जादू किस कदर चला इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहरी इलाकों में 53 सीटो में से 48 सीटें भाजपा अपने नाम कर गई वहीँ अर्द्ध शहरी इलाको की 31 सीटो में से 23 सीटें उसे मिली । इस तरह कुल शहरी इलाको की तकरीबन 84 में से 71 सीट भाजपा की झोली में आई । यह मोदी की लोकप्रियता और उनके विकास की कहानी को असल रूप में बयाँ करवाने के लिए काफी है । लेकिन ग्रामीण इलाको में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला जहाँ पर 98 सीटो में कांग्रेस भाजपा से 3 सीटें आगे निकल गई । वहीँ मुस्लिम इलाके जहाँ पर 20 फीसदी मुस्लिम बाहुल्य इलाका था वहां की 12 सीटो में से 8 सीट भाजपा की झोली में सीधे गई जो यह बता रहा था गुजरात का मुस्लिम मतदाता अब अपने को समय के साथ बदल रहा है । वह अब अपने को मोदी के गुजरात में सुरक्षित मान कर चल रहा है ।
सौराष्ट्र से लेकर मध्य गुजरात और दक्षिण गुजरात से लेकर उत्तर गुजरात हर जगह मोदी की तूती ही इस चुनाव में बोली है ।पूरा गुजरात इस कदर मोदीमय था कई समाज के नाराज तबको का समर्थन जुटाने की कांग्रेस की गोलबंदी इस चुनाव में काम नहीं आ सकी । शहरी , ग्रामीण , गैर आदिवासी ,छत्रिय समाज इस चुनाव में मोदी के साथ ही खड़ा दिखा । स्थिति यह थी सौराष्ट्र में केशुभाई पटेल की पार्टी के विरुद्ध बड़े पैमाने पर मोदी ने पटेल उम्मीदवार उतारकर उनकी पार्टी को भी सियासी अखाड़े में धूल चटा दी जहाँ केशु बप्पा के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सके ।
दक्षिण गुजरात में तो कांग्रेस के कददावर चेहरे और दस जनपथ के सबसे बड़े पावर हॉउस रहे अहमद पटेल के घर में मोदी ने सेंध लगाकर अपनी बादशाहत को सही रूप में सबके सामने साबित कर दिखाया । गुजरात की आबादी में पटेलो की तादात 28 फीसदी है जिसमे लेउआ पटेल और करवा पटेल अहम हैं । हाल के चुनावो में करवा पटेल को मोदी के लिए कई प्रेक्षक खतरा बता रहे थे लेकिन मोदी को पटेलो का मिला बड़ा वोट यह साबित करता है कि इस चुनाव में पटेलो ने अपना खुला समर्थन मोदी को देकर केशुभाई पटेल को सीधे खारिज ही कर डाला । पूरे देश का युवा वोटर अब मोदी पर गुजरात की तरह उन पर अपनी नजरें गढाये बैठा है । उसकी मानें तो कलह से जूझती भाजप का बेडा मोदी ही पार लगा सकते हैं । गुजरात में हैट्रिक लगाकर मोदी अब बड़े नेता के तौर पर उभर कर सामने आ गए हैं । जहाँ मीडिया उन्हें भावी पी एम के रूप में देख रहा है वहीँ कॉरपोरेट तो पहले ही उनको प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर चुका है ।
गुजरात जीत के बाद मोदी निश्चित ही भाजपा में अब सबसे मजबूत हो गए हैं और संघ भी अब भाजपा की भावी रणनीतियो का खाका मोदी के आसरे ही खींचेगा क्युकि स्वयंसेवको की बड़ी कतार चाहती है 2014 में भाजपा किसी युवा चेहरे पर अपना दाव लगाये और यह चेहरा उनको मोदी के रूप में सामने दिखाई दे रहा है । गुजरात जीत के बात भाजपा का जोश बढ़ गया है । मोदी देश के वोटर को प्रभावित कर सकते हैं । खुद संघ भी लोक सभा चुनाव से ठीक पहले मोदी के बारे में अपने पत्ते खोल सकता है । हिंदुत्व और विकास के आसरे मोदी ने गुजरात में जो लकीर खींची है वह अब गुजरात में इतिहास बन चुकी है । हो सकता है भाजपा मोदी के माडल को भाजपा शासित राज्यों में अपनाए । इसके संकेत गडकरी ने मोदी के बीते दिनों दिल्ली आने के दौरान दिए जब उन्होंने कहा गुजरात भाजपा का विकास माडल है ।
गुजरात की जंग जीतने के बाद अब मोदी के कदम दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे हैं । भाजपा के कई वरिष्ठ नेता जहाँ मोदी की दावेदारी से से सहमे हुए हैं वही एन डी ए की सबसे बड़ी सहयोगी जे डी यू की भौहें मोदी को देखकर पहले से ही तनी हुई है । खुद नीतीश कुमार ने इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में मोदी को पी एम पद के लिए खारिज कर दिया था । ऐसे में मोदी के लिए दिल्ली की डगर आसान नहीं है । वैसे भी वर्तमान युग गठबंधन राजनीती का है जहाँ अपने बूते 272 के आंकड़े को छूना भाजपा के लिए मुश्किल है । वहीँ मोदी को अपने समर्थन में उन दलों को लामबंद करना होगा जो किसी समय अटल बिहारी की सरकार के साथ खड़े थे और ये सब घटक आज एन डी ए का साथ छोड़ चुके हैं । ऐसे हालातो में ममता, नीतीश ,चंद्रबाबू को मोदी के साथ आने में कठिनाईयां पेश आ सकती हैं । 2013 के अंत में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,दिल्ली , कर्नाटक ,राजस्थान, जम्मू , मिजोरम, नागालैण्ड , त्रिपुरा ,मेघालय जैसे 10 राज्यों के चुनाव होने हैं जो मोदी के लिए किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं होंगे । यहाँ पर ब्रांड मोदी की भूमिका देखने लायक रहेगी । अगर अपने बूते ही वह पार्टी के ठन्डे पड़े कैडर में जोश फूंक पाए तो पार्टी में नम्बर वन बनने से मोदी को कोई नहीं रोक पायेगा। आने वाले दिनों में संघ उन्हें साथ लेकर पूरे भारत में विवेकानंद विकास यात्रा का खाका तैयार कर सकता है जहाँ भारत भ्रमण पर निकल कर वह देश में विकास का कार्ड फेंककर बड़े वोट बेंक को भाजपा के साथ गोलबंद कर सकते हैं ।
वैसे अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में अपने शपथ ग्रहण समारोह के मेगा शो के ट्रेलर के बहाने मोदी ने एन डी ए के सभी सहयोगियों को लामबंद कर लिया । जयललिता के साथ नवीन पटनायक के प्रतिनिधि की उपस्थिति जहाँ मोदी की सफलता में चार चाँद लगा रही थी वहीँ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लेकर पार्टी के बड़े नेताओ से पूरा स्टेडियम खचाखच भरा पड़ा था जो कहीं न कहीं मोदी की गुजरात वाली महफ़िल की शोभा बढ़ा रहा था । मिशन दिल्ली के लिए हुए इस मेगा शो के बहाने मोदी ने कम से कम यह तो दिखा ही दिया वह सियासत की हर बिसात को अपनी ढाई चाल से मौत देने की छमता तो रखते ही हैं शायद तभी उनके विरोधी भी उन्हें सत्ता से बाहर खदेड़ने के मंसूबो पर कामयाब नहीं हो पाते हैं । दिल्ली की पिच पर उतरकर उन्होंने मनमोहन को ही क्लीन बोल्ड कर दिया । मनमोहनी इकोनोमिक्स को अपने मोदिनोमिक्स के आसरे चुनौती दे डाली । राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली आये मोदी ने खुले मच से यू पी ए की ख़राब नीतियों का मर्सिया पढ़ा और धीमी विकास दर के लिए सीधे मनमोहन को निशाने पर लिया । विकास के मोदिनोमिक्स ब्रह्मास्त्र के आसरे अब मोदी देश के करिश्माई नेता के तौर पर अपने को स्थापित करना चाहते हैं और शायद यही वजह रही यूथ कार्ड फैंककर उन्होंने यह कहा पहले गुजरात सोचता है फिर हिन्दुस्तान ।
गुजरात में अपना झंडा गाड़ने के बाद मोदी गदगद हैं और दिल्ली के तख़्त पर काबिज होने से पहले उनके हौसले बुलंद भी हैं । तभी दिल्ली आकर इशारो इशारो में बतला ही दिया आने वाले दिनों में वही भाजपा की नैया पार लगायेंगे । आज नहीं तो कल संघ दिल्ली जाने के लिए उनके नाम पर अपनी सहमति जताएगा ही । सम्भावनाये तो यहाँ तक हैं कि अगले लोक सभा चुनावो से पहले संघ मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगाएगा । इसके संकेत केशव कुञ्ज में सुरेश सोनी और भागवत की गुप्त बैठकों में भी देखने को मिले हैं । यह बैठक नागपुर में 4 से 5 दिसंबर के बीच हुई थी । उससे पहले खुद मोदी झंडेवालान स्थित संच के कार्यालय में भागवत से मिलने गए थे जहाँ मोहन भागवत ने उनको गुजरात चुनाव के बाद देश का सरदार बनाने के लिए राजी कर लिया है । वैसे भी संघ से लेकर भाजपा के कैडर में मोदी को लेकर पहली बार एक ख़ास हलचल है क्युकि पीएम पद के लिए मोदी ही एक ऐसा चेहरा भाजपा में वर्त्तमान में हैं जो भारतीय मध्यम वर्ग, युवा वोटर के साथ कारपोरेट को लुभाने की छमता इस दौर में रखते हैं ।संघ भी अब उनमे हिन्दू ह्रदय सम्राट से इतर भाजपा के बड़े सम्राट बनने का अक्स देख रहा है क्युकि संघ के एजेंडे को आगे बढाने के साथ ही वह गुजरात की तर्ज पर देश को आगे ले जा सकते है । कार्यकर्ता जहाँ मोदी में अपना भविष्य देख रहे हैं वहीँ संघ भी मौका आने पर आज नहीं तो कल उनके नाम को भुनायेगा ही ।
वैसे वर्तमान में भाजपा का असल संकट गडकरी बने हुए हैं ।पूर्ति के गडबडझाले के बाद उनके दूसरे कार्यकाल पर सस्पेंस बना हुआ हैं । पार्टी में एक बड़ा खेमा उनको हटाने की मांग कर चुका है । खुद मोदी गडकरी के साथ नहीं हैं और वह उनकी दुबारा ताजपोशी के पक्ष में नहीं हैं । अटकले ऐसी हैं संघ नए अध्यक्ष के चयन में अब मोदी की राय की अनदेखी नहीं करेगा । ऐसे में सम्भावना है मोदी गडकरी की जगह डॉ मुरली मनोहर जोशी के नाम का दाव चल सकते हैं । डॉ जोशी के साथ मोदी की ट्यूनिंग नब्बे के दशक से ही अच्छी है तब मोदी जोशी के साथी रहे थे । वैसे बीते दिनों मोदी ने जीत के बाद दिल्ली आकर सबसे पहले डॉ जोशी के घर जाकर मुलाक़ात की । गौर करने लायक बात यह है मुलाक़ात में आडवानी का घर रास्ते में सबसे पहले नहीं पड़ा । जबकि गुजरात की राजनीती में यह तथ्य शायद ही किसी से छुपा है मोदी अहमदाबाद से आडवानी को अब तक बिना प्रचार के अपने दम पर जिताते आये हैं । अगर आने वाले दिनों में संघ मोदी के अनुसार चलता है तो उत्तरायण के ठीक बाद नई भाजपा का स्वरूप हमें देखने को मिल सकता है जहाँ मोदिमेव जयते का नारा गूंज सकता है । तब पार्टी के संसदीय बोर्ड में भी भारी बदलाव देखने को मिल सकते हैं । संगठन में अगर बदलाव हुए तो वही नेता जगह बनाने में कामयाब हो पाएंगे जो मोदी - जोशी का भरोसेमंद रहेगा । आर एस एस कैडर से निकले ये दोनों चेहरे तब संघ के अनुकूल 2014 की भाजपा की बिसात बिछायेंगे जहाँ तहसील से लेकर जिला स्तर पर लोक सभा चुनाव के लिए स्वयंसेवक एक नई मोर्चाबंदी कर सकते हैं ।
बहरहाल जो भी हो भाजपा में मोदी अब एक बड़े नेता के तौर पर उभर चुके हैं । मोदी की ताकत उनके शपथ ग्रहण समारोह में तो दिखी ही साथ ही 11 अशोका रोड में मोदी का जोश और कार्यकर्ताओ का जोश यह गवाही तो दे ही रहा था अब मोदी के लिए दिल्ली ज्यादा दूर नहीं है । भले ही पत्रकारों से बातचीत में मोदी ने अपनी दिल्ली वापसी के बारे में कोई जवाब नहीं दिया लेकिन इशारो इशारो में केंद्र सरकार पर वार द्वारा यह बता दिया अब वह गुजरात से निकलकर दिल्ली का सरदार बनने की पूरी योग्यता तो रखते ही हैं । शायद तभी मोदी के स्वागत में दिल्ली में हुए अभिनन्दन समारोह में यह नारा गूंजा "गुजरात की जीत हमारी है अब भारत की बारी है " । देखना होगा आने वाले दिनों में मोदी दिल्ली में अपने कदम कैसे बढ़ाते है और क्या उन्हें दिल्ली आने से रोक पाना संभव होगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है ।
2 comments:
बेहतर आकलन।
Nice
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