चाहे
कल्याण सिंह के बारे में कैसे ही कयास क्यों ना लगाये जायें लेकिन उनकी
भाजपा में वापसी लगभग तय मानी जा रही है । इसके संकेत कल्याण सिंह के
भाजपा के
प्रति उमड़ रहे प्रेम से दिखाई दे रहे है जब 25 दिसंबर को पूर्व प्रधान
मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन के मौके पर एक कार्यक्रम में शिरकत
करने पहुंचे कल्याण ने अटल बिहारी की तारीफों में कसीदे पड़े जिसके बाद
उनकी भाजपा में वापसी की पटकथा लगभग तैयार हो चुकी है । माना जा रहा है
आगामी 21 जनवरी को एक सादे समारोह में उनकी राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का
भाजपा में विलय होगा । हालाँकि कल्याण की नजरें फिलहाल आने वाले लोक सभा
चुनावो पर लगी हुई हैं जहाँ अपने बेटे राजवीर के लिए वह लोक सभा चुनावो की
बिसात
बिछा रहे हैं । भाजपा भी कल्याण सिंह के चेहरे और जनाधार को बखूबी समझती
है
शायद तभी उत्तर प्रदेश में उनके प्रभाव वाली सीटों पर इस बार वह उनको फ्री
हैण्ड दे सकती है । उत्तर प्रदेश में मिली करारी पराजय ने भाजपा को अपने
गिरेबान में झांकने को मजबूर कर दिया है लिहाजा वह फिर से कल्याण की शरण
में जाने को मजबूर हुई है ।
भाजपा को छोड़ते समय कल्याण का मिजाज कुछ अलग था लेकिन अटल जी के जन्म दिवस पर हिंदुत्व की जैसी राग भैरवी तान कल्याण ने छेड़ी है उसने भाजपा को भी पार्टी में वापस लाने को मजबूर कर दिया है । वह भी एक दौर था जब कल्याण ने कभी भाजपा में वापस ना लौटने की बात दोहराई थी लेकिन अब लोक सभा चुनावो की बेला पास आते देख कल्याण ने यू टर्न ले लिया है । भाजपा भी इस दौर में उत्तर प्रदेश में वैंटिलेटर पर है और इस दौर में अकेला कल्याण का ऐसा चेहरा है जिसके बूते वह लगातार नीचे जा रहे अपने प्रदर्शन को कुछ हद तक सुधार सकती है । शायद इसी के मद्देनजर दिल्ली में भाजपा के संसदीय बोर्ड और शीर्ष नेताओ ने पहली बार कल्याण की भाजपा में वापसी के संकेत दिए हैं । हालाँकि संघ उनकी वापसी का शुरू से हिमायती रहा है । पार्टी अध्यक्ष गडकरी उनकी वापसी का रास्ता उमा भारती की तर्ज पर बनाने में पिछले कुछ समय लगे हुए थे लेकिन यू पी में कल्याण विरोधी बड़ा खेमा उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ था । लेकिन इस बार पार्टी की यू पी में लगातार गिरती हुई साख को देखते हुए कल्याण के मसले पर विरोध के स्वर कुछ कम हुए हैं और यही वजह है पहली बार राजनाथ सिंह सरीखे उनके धुर विरोधी नेता कल्याण की भाजपा में वापसी को लेकर आशान्वित हैं । समय समय पर कल्याण के बंगले में होने वाली दोनों की ये मुलाकातें बहती हवा का संकेत तो बीते बरस से दे ही रही हैं लेकिन दोनों के बीच सीटो के बटवारे को लेकर अभी भी सहमति बनती नहीं दिख रही है । साथ ही कल्याण के निर्दलीय सांसद होने से दिक्कतें पेश आ रही है क्युकि आने वाले लोक सभा चुनावो में कल्याण अपने साथ अपने बेटे राजवीर के लिए भी लोक सभा का टिकट मांग सकते हैं ।
कल्याण सिंह के जाने के बाद से उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने को अनाथ महसूस कर रही है क्युकि वर्तमान में कोई नेता उनके जाने से रिक्त हुई जगह की भरपाई नहीं कर पाया । तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण नब्बे के दशक में संघ परिवार का बड़ा चेहरा रहे हैं जिनका नाम बाबरी विध्वंस केस में भी जुड़ा । अपने कार्यकाल में यू पी में भाजपा को कल्याण सिंह ने नई ऊंचाई पर पहुचाया । राम जन्म भूमि आन्दोलन के उस दौर में रामलला हम आयेंगे मंदिर यहीं बनायेंगे के नारे कल्याण लगाते जहाँ पाए गए वहीँ उस दौर को अगर हम याद करें अपने को पिछडो के बड़े नेता के तौर पर उन्होंने स्थापित किया । यही वह दौर भी रहा जब विध्वंस के समय वह 24 घंटे के लिए जेल भी गए और छूट भी आये । उस दौर में कल्याण को ट्रम्प कार्ड के तौर पर इस्तेमाल कर भाजपा ने ब्राहमणों , राजपूतो के अलावे पिछडो के एक बड़े वोट बैंक की गोलबंदी अपने पाले में की । इसके बाद 1999 में पार्टी नेताओ के कुप्रबंधन ने कल्याण को भाजपा छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था । .1999 में उन्होंने अपनी खुद की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई । उस दौर में कई लोगो को कल्याण की कुसुम राय से मित्रता रास नहीं आई । कुसुम लखनऊ की जब पार्षद हुआ करती थी तो दोनों एक दूजे के करीब आ गए । शास्त्री भवन इसका गवाह रहा । कल्याण कभी कुसुम की राय को अनसुना नही किया करते थे तभी उनको राज्य सभा का सांसद भी बनाया । उस दौर में "जहाँ बाबू जी जायेंगे वहां मैं जाउंगी " के नारे का तो कुसुम ने जनाजा निकाल दिया क्युकि राज्य सभा में होने के चलते अगर वह भाजपा का साथ छोडती तो उनको राज्य सभा की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ता । खैर कल्याण जान गए पार्टी से बाहर होने का खामियाजा क्या होता है ? जनवरी 2004 में भाजपा में वापस भी आ गए । भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया । बुलंदशहर से लोक सभा का चुनाव भी लडाया लेकिन 20 जनवरी 2009 को भाजपा को फिर से गुड बाय कहकर मौलाना मुलायम का दामन थाम लिया । इस बार का लोक सभा चुनाव उन्होंने एटा से निर्दलीय जीतकर भाजपा के बड़े नेताओ को आइना दिखा दिया । नवम्बर 2009 में फिरोजाबाद उपचुनाव में मुलायम की पार्टी की नाक कट गई और मुलायम को कल्याण के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ा जिसके बाद कल्याण ने सपा छोड़ी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के रथ पर सवार हुए । 2010 में कल्याण ने अपने को संघ का सच्चा सेवक बताया लेकिन भाजपा में फिर से शामिल होने को नकार दिया ।
2009 में कल्याण ने भाजपा इसलिए छोड़ी क्युकि वह बुलंदशहर से अपने बेटे राजबीर के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी आलकमान ने यहाँ से अशोक प्रधान को टिकट दे दिया । खुद आडवानी उस दौर में कल्याण के खिलाफ चले गए ,कल्याण ने भाजपा को भला बुरा कहा । जाहिर है भाजपा छोड़ने के बाद राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी के जरिये वह लोगो के बीच भी गए लेकिन पार्टी यू पी में कोई बड़ा आधार और संगठन तैयार नहीं कर सकी । इतना जरुर है कल्याण के भाजपा छोड़ने के बाद भाजपा यू पी में नेताविहीन पार्टी हो गई । रही सही कसर अटल जी के संसदीय राजनीती से सन्यास ने पूरी कर दी जिसके बाद भाजपा में अंतर्कलह बढ़ गई । रमापति राम त्रिपाठी ,लाल जी टंडन , अरुण जेटली, राजनाथ सिंह , सूर्या प्रताप शाही के जरिये भाजपा यू पी के सियासी अखाड़े में उतरी लेकिन विधान सभा चुनावो, पंचायत चुनावो से लेकर लोक सभा चुनाव तक कुछ ख़ास करिश्मा नहीं कर सकी । लाल जी टंडन के पास जहाँ अटल जी की खडाऊ के सिवाय कुछ नही था तो वहीँ कलराज मिश्र संगठन के आदमी थे जिन्हें पार्टी अक्सर पिछले दरवाजे से राज्य सभा और विधान परिषद भेजती थी । यही हाल अरुण जेटली का भी रहा । उनका हाल भी राजनाथ सिंह सरीखा हो गया जिन्होंने अपने जीवन में चुनाव लड़ने के बजाए अक्सर कलराज की तरह बैक डोर से ही संसदीय राजनीति की । शाही भी राज्य के सियासी पारे का बैरोमीटर नहीं नाप सके । ऐसी सूरत में यू पी में भाजपा की सेहत गिरनी ही थी । योगी आदित्यनाथ , विनय कटियार को भी पार्टी ने भाव नहीं दे रही थी जिसके चलते इनका प्रभाव केवल अपनी विधान सभा सीटो तक ही सिमट कर रह गया । रही सही कसर कल्याण ने पार्टी छोड़कर पूरी कर दी ।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस का दाग कल्याण पर जरुर लगा लेकिन पिछड़ी जतियो में कल्याण की मजबूत पकड़ का लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं । शायद एक दौर में मौलाना मुलायम भी उनको साथ लेकर यू पी के पचास फीसदी वोट अपने पाले में लाने के समीकरण बना रहे थे । अब कल्याण के भाजपा में वापस आने से भाजपा के वोट बैंक पर प्रभाव पड़ना तय है क्युकि उनकी खुद की लोध जाति पर पकड़ के साथ ही कुर्मी और अन्य पिछड़े वर्गों पर पुरानी ठसक आज भी बरकरार है । कभी कल्याण ने ही उत्तर प्रदेश में विनय कटियार, ओ पी सिंह, रामकुमार वर्मा को राजनीती ककहरा सिखाया था और यह सब चेहरे अति पिछडो का एक बड़ा चेहरा भी बन गए थे । यू पी की तकरीबन 30 लोक सभा सीट जिनमे ,खुर्जा अलीगढ, बुलंदशहर ,एटा ,इटावा , मैनपुरी, कन्नौज , फतेहपुर, आगरा, जालौन, हमीरपुर, बांदा और झाँसी सरीखे संसदीय इलाके शामिल हैं जहाँ पर कल्याण फैक्टर के प्रभाव को हम आज भी नहीं नकार सकते । ऐसी सूरत में कल्याण की वापसी का लाभ भाजपा को मिलना तय है । पिछडो की तादात यू पी में तकरीबन 52 फीसदी है और कल्याण की पकड़ भी इसी वर्ग में मजबूत है । हिंदुत्व का बड़ा चेहरा होने से ब्राह्मण भाजपा के पाले में आ सकते हैं । अटल जी के राजनीती से सन्यास के बाद भाजपा के प्रति ब्राहमणों का रुख सकारात्मक नहीं है और यही वजह है इस दौर में वह बसपा और समाजवादी पार्टी के साथ चले गए । राजपूतो की बड़ी तादात भी इस दौर में भाजपा से नाराज है । ऐसे में कल्याण की वापसी से भाजपा में खलबली जरुर मचेगी । साथ ही भाजपा कल्याण के जरिये उत्तर प्रदेश में अब फिर से अपना हिन्दू कार्ड चल सकती है जिससे बड़े पैमाने पर वोटो का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो जाए और यू पी की खोयी हुई जमीन भाजपा पा सके । गुजरात में मोदी की वापसी के बाद लखनऊ में लाल जी टंडन के संसदीय इलाके में जिस तरह मोदी की अटल जी से बड़ी तस्वीरें लगी दिख रही हैं वह राजनीती के नए मिजाज को बता रही हैं । इन परिस्थियों में मोदी यू पी के अखाड़े में अपनी बिसात बिछाते अगर आने वाले दिनों में दिखते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए । इस काम में उनको उमा भारती का साथ मिल सकता है । ऐसे में वह वरुण गाँधी को अपना बड़ा चेहरा आने वाले चुनावो में बना सकते है ।
लेकिन यह सवाल अब भी बना है क्या भाजपा 90 के दशक वाला इतिहास दोहरा पायेगी ? ऐसी पार्टी जो राम मंदिर आन्दोलन की आंधी में केंद्र की सत्ता में आई क्या वह उत्तर प्रदेश में अपनी खोयी जमीन वापस पायेगी यह सवाल अहम होगा ? लेकिन असल सवाल तो कल्याण के सामने खड़ा है क्या भाजपा में वह अपना पुराना खोया हुआ सम्मान हासिल कर पाएंगे ? उनके साथी नेता उन्हें किस रूप में स्वीकारते हैं यह भी देखने वाली बात होगी क्युकि इन्ही पुराने नेताओ की राजनीती ने कल्याण को कभी भाजपा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था । ऐसे में भाजपा में कल्याण की वापसी सवालों को पैदा तो जरुर करेगी ।
भाजपा को छोड़ते समय कल्याण का मिजाज कुछ अलग था लेकिन अटल जी के जन्म दिवस पर हिंदुत्व की जैसी राग भैरवी तान कल्याण ने छेड़ी है उसने भाजपा को भी पार्टी में वापस लाने को मजबूर कर दिया है । वह भी एक दौर था जब कल्याण ने कभी भाजपा में वापस ना लौटने की बात दोहराई थी लेकिन अब लोक सभा चुनावो की बेला पास आते देख कल्याण ने यू टर्न ले लिया है । भाजपा भी इस दौर में उत्तर प्रदेश में वैंटिलेटर पर है और इस दौर में अकेला कल्याण का ऐसा चेहरा है जिसके बूते वह लगातार नीचे जा रहे अपने प्रदर्शन को कुछ हद तक सुधार सकती है । शायद इसी के मद्देनजर दिल्ली में भाजपा के संसदीय बोर्ड और शीर्ष नेताओ ने पहली बार कल्याण की भाजपा में वापसी के संकेत दिए हैं । हालाँकि संघ उनकी वापसी का शुरू से हिमायती रहा है । पार्टी अध्यक्ष गडकरी उनकी वापसी का रास्ता उमा भारती की तर्ज पर बनाने में पिछले कुछ समय लगे हुए थे लेकिन यू पी में कल्याण विरोधी बड़ा खेमा उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ था । लेकिन इस बार पार्टी की यू पी में लगातार गिरती हुई साख को देखते हुए कल्याण के मसले पर विरोध के स्वर कुछ कम हुए हैं और यही वजह है पहली बार राजनाथ सिंह सरीखे उनके धुर विरोधी नेता कल्याण की भाजपा में वापसी को लेकर आशान्वित हैं । समय समय पर कल्याण के बंगले में होने वाली दोनों की ये मुलाकातें बहती हवा का संकेत तो बीते बरस से दे ही रही हैं लेकिन दोनों के बीच सीटो के बटवारे को लेकर अभी भी सहमति बनती नहीं दिख रही है । साथ ही कल्याण के निर्दलीय सांसद होने से दिक्कतें पेश आ रही है क्युकि आने वाले लोक सभा चुनावो में कल्याण अपने साथ अपने बेटे राजवीर के लिए भी लोक सभा का टिकट मांग सकते हैं ।
कल्याण सिंह के जाने के बाद से उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने को अनाथ महसूस कर रही है क्युकि वर्तमान में कोई नेता उनके जाने से रिक्त हुई जगह की भरपाई नहीं कर पाया । तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण नब्बे के दशक में संघ परिवार का बड़ा चेहरा रहे हैं जिनका नाम बाबरी विध्वंस केस में भी जुड़ा । अपने कार्यकाल में यू पी में भाजपा को कल्याण सिंह ने नई ऊंचाई पर पहुचाया । राम जन्म भूमि आन्दोलन के उस दौर में रामलला हम आयेंगे मंदिर यहीं बनायेंगे के नारे कल्याण लगाते जहाँ पाए गए वहीँ उस दौर को अगर हम याद करें अपने को पिछडो के बड़े नेता के तौर पर उन्होंने स्थापित किया । यही वह दौर भी रहा जब विध्वंस के समय वह 24 घंटे के लिए जेल भी गए और छूट भी आये । उस दौर में कल्याण को ट्रम्प कार्ड के तौर पर इस्तेमाल कर भाजपा ने ब्राहमणों , राजपूतो के अलावे पिछडो के एक बड़े वोट बैंक की गोलबंदी अपने पाले में की । इसके बाद 1999 में पार्टी नेताओ के कुप्रबंधन ने कल्याण को भाजपा छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था । .1999 में उन्होंने अपनी खुद की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई । उस दौर में कई लोगो को कल्याण की कुसुम राय से मित्रता रास नहीं आई । कुसुम लखनऊ की जब पार्षद हुआ करती थी तो दोनों एक दूजे के करीब आ गए । शास्त्री भवन इसका गवाह रहा । कल्याण कभी कुसुम की राय को अनसुना नही किया करते थे तभी उनको राज्य सभा का सांसद भी बनाया । उस दौर में "जहाँ बाबू जी जायेंगे वहां मैं जाउंगी " के नारे का तो कुसुम ने जनाजा निकाल दिया क्युकि राज्य सभा में होने के चलते अगर वह भाजपा का साथ छोडती तो उनको राज्य सभा की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ता । खैर कल्याण जान गए पार्टी से बाहर होने का खामियाजा क्या होता है ? जनवरी 2004 में भाजपा में वापस भी आ गए । भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया । बुलंदशहर से लोक सभा का चुनाव भी लडाया लेकिन 20 जनवरी 2009 को भाजपा को फिर से गुड बाय कहकर मौलाना मुलायम का दामन थाम लिया । इस बार का लोक सभा चुनाव उन्होंने एटा से निर्दलीय जीतकर भाजपा के बड़े नेताओ को आइना दिखा दिया । नवम्बर 2009 में फिरोजाबाद उपचुनाव में मुलायम की पार्टी की नाक कट गई और मुलायम को कल्याण के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ा जिसके बाद कल्याण ने सपा छोड़ी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के रथ पर सवार हुए । 2010 में कल्याण ने अपने को संघ का सच्चा सेवक बताया लेकिन भाजपा में फिर से शामिल होने को नकार दिया ।
2009 में कल्याण ने भाजपा इसलिए छोड़ी क्युकि वह बुलंदशहर से अपने बेटे राजबीर के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी आलकमान ने यहाँ से अशोक प्रधान को टिकट दे दिया । खुद आडवानी उस दौर में कल्याण के खिलाफ चले गए ,कल्याण ने भाजपा को भला बुरा कहा । जाहिर है भाजपा छोड़ने के बाद राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी के जरिये वह लोगो के बीच भी गए लेकिन पार्टी यू पी में कोई बड़ा आधार और संगठन तैयार नहीं कर सकी । इतना जरुर है कल्याण के भाजपा छोड़ने के बाद भाजपा यू पी में नेताविहीन पार्टी हो गई । रही सही कसर अटल जी के संसदीय राजनीती से सन्यास ने पूरी कर दी जिसके बाद भाजपा में अंतर्कलह बढ़ गई । रमापति राम त्रिपाठी ,लाल जी टंडन , अरुण जेटली, राजनाथ सिंह , सूर्या प्रताप शाही के जरिये भाजपा यू पी के सियासी अखाड़े में उतरी लेकिन विधान सभा चुनावो, पंचायत चुनावो से लेकर लोक सभा चुनाव तक कुछ ख़ास करिश्मा नहीं कर सकी । लाल जी टंडन के पास जहाँ अटल जी की खडाऊ के सिवाय कुछ नही था तो वहीँ कलराज मिश्र संगठन के आदमी थे जिन्हें पार्टी अक्सर पिछले दरवाजे से राज्य सभा और विधान परिषद भेजती थी । यही हाल अरुण जेटली का भी रहा । उनका हाल भी राजनाथ सिंह सरीखा हो गया जिन्होंने अपने जीवन में चुनाव लड़ने के बजाए अक्सर कलराज की तरह बैक डोर से ही संसदीय राजनीति की । शाही भी राज्य के सियासी पारे का बैरोमीटर नहीं नाप सके । ऐसी सूरत में यू पी में भाजपा की सेहत गिरनी ही थी । योगी आदित्यनाथ , विनय कटियार को भी पार्टी ने भाव नहीं दे रही थी जिसके चलते इनका प्रभाव केवल अपनी विधान सभा सीटो तक ही सिमट कर रह गया । रही सही कसर कल्याण ने पार्टी छोड़कर पूरी कर दी ।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस का दाग कल्याण पर जरुर लगा लेकिन पिछड़ी जतियो में कल्याण की मजबूत पकड़ का लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं । शायद एक दौर में मौलाना मुलायम भी उनको साथ लेकर यू पी के पचास फीसदी वोट अपने पाले में लाने के समीकरण बना रहे थे । अब कल्याण के भाजपा में वापस आने से भाजपा के वोट बैंक पर प्रभाव पड़ना तय है क्युकि उनकी खुद की लोध जाति पर पकड़ के साथ ही कुर्मी और अन्य पिछड़े वर्गों पर पुरानी ठसक आज भी बरकरार है । कभी कल्याण ने ही उत्तर प्रदेश में विनय कटियार, ओ पी सिंह, रामकुमार वर्मा को राजनीती ककहरा सिखाया था और यह सब चेहरे अति पिछडो का एक बड़ा चेहरा भी बन गए थे । यू पी की तकरीबन 30 लोक सभा सीट जिनमे ,खुर्जा अलीगढ, बुलंदशहर ,एटा ,इटावा , मैनपुरी, कन्नौज , फतेहपुर, आगरा, जालौन, हमीरपुर, बांदा और झाँसी सरीखे संसदीय इलाके शामिल हैं जहाँ पर कल्याण फैक्टर के प्रभाव को हम आज भी नहीं नकार सकते । ऐसी सूरत में कल्याण की वापसी का लाभ भाजपा को मिलना तय है । पिछडो की तादात यू पी में तकरीबन 52 फीसदी है और कल्याण की पकड़ भी इसी वर्ग में मजबूत है । हिंदुत्व का बड़ा चेहरा होने से ब्राह्मण भाजपा के पाले में आ सकते हैं । अटल जी के राजनीती से सन्यास के बाद भाजपा के प्रति ब्राहमणों का रुख सकारात्मक नहीं है और यही वजह है इस दौर में वह बसपा और समाजवादी पार्टी के साथ चले गए । राजपूतो की बड़ी तादात भी इस दौर में भाजपा से नाराज है । ऐसे में कल्याण की वापसी से भाजपा में खलबली जरुर मचेगी । साथ ही भाजपा कल्याण के जरिये उत्तर प्रदेश में अब फिर से अपना हिन्दू कार्ड चल सकती है जिससे बड़े पैमाने पर वोटो का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो जाए और यू पी की खोयी हुई जमीन भाजपा पा सके । गुजरात में मोदी की वापसी के बाद लखनऊ में लाल जी टंडन के संसदीय इलाके में जिस तरह मोदी की अटल जी से बड़ी तस्वीरें लगी दिख रही हैं वह राजनीती के नए मिजाज को बता रही हैं । इन परिस्थियों में मोदी यू पी के अखाड़े में अपनी बिसात बिछाते अगर आने वाले दिनों में दिखते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए । इस काम में उनको उमा भारती का साथ मिल सकता है । ऐसे में वह वरुण गाँधी को अपना बड़ा चेहरा आने वाले चुनावो में बना सकते है ।
लेकिन यह सवाल अब भी बना है क्या भाजपा 90 के दशक वाला इतिहास दोहरा पायेगी ? ऐसी पार्टी जो राम मंदिर आन्दोलन की आंधी में केंद्र की सत्ता में आई क्या वह उत्तर प्रदेश में अपनी खोयी जमीन वापस पायेगी यह सवाल अहम होगा ? लेकिन असल सवाल तो कल्याण के सामने खड़ा है क्या भाजपा में वह अपना पुराना खोया हुआ सम्मान हासिल कर पाएंगे ? उनके साथी नेता उन्हें किस रूप में स्वीकारते हैं यह भी देखने वाली बात होगी क्युकि इन्ही पुराने नेताओ की राजनीती ने कल्याण को कभी भाजपा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था । ऐसे में भाजपा में कल्याण की वापसी सवालों को पैदा तो जरुर करेगी ।
3 comments:
आपके सवालों को श्रेष्ठ उत्तर मिलनेवाला है....डेढ़ साल प्रतीक्षा करिए बस।
विकेश ..... अब सही हूँ मैं .... पिछली बार नाम टाइप करने में गलती हो गई ...... मेरा मानना है डेढ़ साल तो बहूत दूर हैं लेकिन भाजपा में इसी महीने कल्याण की वापसी पक्की है ...........
मेरा डेढ़ साल से मतलब.... लोकसभा चुनाव में हाथ की सफाई से है।
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